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Tuesday, April 4, 2017

सेतो मच्छिन्द्रनाथ की रथ जात्रा

काठमांडू (२०७३ चैत्र २२, मंगलवार) आज नेपाल में चैते दशाहिं (चैते दशैं), मतलब चैत्र के नवरात्र की Astmi तिथि, नेपाल के सभी सिद्ध देवी मंदिरों में मनाया जाता है, "चैते दशाहिं" में बड़ा दशाहिं (नेपाली हिन्दू का महान पर्व महान चाड बडा दशैं ) जैसे ही माँ दुर्गा भवानी की आराधना की जाती है, आज के दिन काठमांडू के दक्षिण काली, शोभा भगवती, गुहेस्वारी, नक्साल भगवती, संकठा, कलिका स्थान, मैती देवी के साथ ही गोरखा जिले के माँ मनकामना, काभ्रे जिले के पलान चौक भगवती, पोखरा के माँ विन्दवासिनी,सहित देश के सभी शक्ति पीठ में भक्त पूजा अर्चना करते है, और आज ही नेपाल में नेवारी समूह का एक बड़ा पर्व "सेतो मछेंद्र की रथयात्रा (सेतो मच्छिन्द्रनाथ की रथ जात्रा) का भी पर्व मनाया जाता है., जिसे जनबाहा द्यो, आर्यवलोकीतवारा, करुनामाया के नाम से भी जाना जाता है, जिन्हें हिन्दू और बौध दोनों
ही पूजते है । Seto Machindranath का मंदिर जन बहाल (जिसे Machhindra Bahal भी कहा जाता है) में स्थित है। कहा जाता है कि काठमांडू के असन और इंद्र चोक के बीच यह मंदिर है, और यह  यह मंदिर १० वीं शताब्दी के आसपास बनाया गया है 
 
यह माना जाता है कि राजा यक्ष मल्ला के शासनकाल के दौरान, कंटिपुरी नामक एक जगह पर लोग पवित्र नदी में स्नान करते थे और स्वयंभूनाथ से मिलने जाते थे, जिसने उन्हें मृत्यु के बाद स्वर्ग तक पहुंचाया । एक बार यमराज (देवता का देवता) स्वयंभूनाथ की शक्ति को जानने आया और उन्होंने पवित्र मंदिर का दौरा किया। मंदिर से लौटने के दौरान राजा यक्ष मल्ला और उनके तांत्रिक गुरु ने कब्जा कर लिया और अमरता की मांग की और यमराज को छोड़ दें। तो यमराज ने उसे मुक्त करने के लिए आर्य अवेलोकीतेश्वर (सेतो मच्छिन्द्रनाथ) से प्रार्थना की। भगवान ने अपनी प्रार्थना सुनाई और तुरंत पानी से दिखाई दिया। भगवान आंखों के आधे रंग के साथ रंग में सफेद थे। फिर उन्होंने राजा को एक मंदिर बनाने के लिए कहा, जहां पर कलमाटी और बागमती मिलकर रथ जुलूस आयोजित करें ताकि भगवान लोगों की यात्रा कर सकें और उन्हें खुशी और लंबी उम्र के साथ आशीर्वाद दे सकें। वर्षा और समृधि के देवता के रूप में परिचित सेतो मच्छिन्द्रनाथ की यात्रा हर वर्ष चैतेअष्टमी से शूरू होता है जो तिन दिन का होता है ये रथ यात्रा जमल के तीनधारा पाठशाला से सुरु हो कर त्रिचन्द्र क्याम्पस, रत्नपार्क, भोटाहीटी होते हुवे असन पहुचता है । आज के दिन मच्छिन्द्रनाथ रूपी भगवाव जमल में बनाये हुवे रथ में बिराजमान किया जाता है, रथ बनाने की तयारी करीब एक हफ्ते पहले से शुरू हो जाती है, इस रथ की खासियत यह है की ये सात मंजिल का होता है लगभग करीब २५ फुट लेकिन इस रथ में एक भी किल कटिया का उपयोग नहीं होता न फेविकोल. रथ के हर एक भाग को लकड़ी के खाचे में फसा कर एक विशेष प्रकार के रस्सी से बांधा जाता है। एक छोटे डोली में भगवान की मूर्ति जन बहाल के मंदिर से पूजा के पश्चात जमल में लाया जाता है इस जुलुस में सभी बड़े , बूढ़े जवान बच्चे शामिल होते है, भक्ति में तल्लीन, जिसमे सनिको की सलामी और " कुवारी कन्याओ " जीवित देवी कुमारी " की भी सहभागिता होती है


कहा जाता है की बहुत ज़माने पहले जमल भी एक जंगल ही था जहा एक किसान ( जापू कहा जाता है नेवारी में किसान को ) अपने जमल के खेत में सेतो मच्छिन्द्रनाथ की मूर्ति मिली वो किसान उस मूर्ति को अपने घर के अनांज रखने की जगह ( नेपाली में भकारी ) और हमारे बनारस में अन्न रखने का कोठा कहा जाता है, वहा किसान ने मूर्ति को रख दिया , एक जब भी वहा से अनांज निकलता वो अनाज कभी कम ही नहीं होता , तो जन कल्याण के भावना से उसने वो मूर्ति जन बहाल के मंदिर में स्थापित  कर दी,उसी परंपरा के अनुसार भगवान को जमल के रथ में बैठा कर यात्रा कराने की परंपरा है


 
धार्मिक सहिष्णुता के प्रतिक सेतो मच्छिन्द्रनाथ जी को शैव सम्प्रदाय के लोग शिव, शाक्त सम्प्रदाय के लोग शक्ति और बौद्धमहायन तथा बज्रयान सम्प्रदाय के लोग  आर्यअवलोकितेश्वरका रूपमा पूजा करते है ।
काठमांडू के जमल और बनेपा, नालाको सेतो, ललितपुर के बुङमति और चोभार के रातो सहित चार मच्छिन्द्रनाथ है   

नेपाली में अगर आप को समझना हो तो ये कुछ ऐसे बताया जायेगा !! काठमाडौ, चैत २२ । आज चैते दशैं । हिन्दु धर्मावलम्बी नेपालीहरुले दुर्गा भवानीको पूजा आराधना गरी मनाउँदै छन् ।



असोजमा मनाइने बडादशैं भन्दा कम महत्वको मानिए पनि आजका दिन देवीका मन्दिरहरुमा बली दिने र पूजा आराधना गर्ने गरिन्छ । वर्षमा दुईपटक चैत र असोजमा गरिने दुर्गा पूजाको विशेष महत्व रहेको धर्मशास्त्रहरुमा उल्लेख छ ।



आज काठमाडौमा दक्षिणकाली, शोभाभगवती, गुह्येश्वरी, नक्साल भगवती, संकटा, कालिकास्थान तथा देशैभरका शक्तिपीठहरुमा बिहानैदेखि दर्शनार्थीको घुईंचो लागेको छ ।

असोजको बडादसैंजस्तो यो बेलामा जमरा भने चैते दशैंमा प्रयोग हुँदैन ।

सेतो मच्छिन्द्रनाथ स्नान “जनबहाद्य:या म्व:ल्हुकेगु जात्रा”
महेश्वर महर्जन/ साहित्य/संस्कृति/सम्पदा - January 18, 2016 के लेख के अनुसार
नेपाल सम्वत्को तेश्रो महिना पोहेलाथ्व, अष्टमीको दिन बेलुकीपख सेतो मच्छिन्द्रनाथलाई नुहाई दिने र सजाई दिने गरिन्छ । यस दिन सेतो मच्छिन्द्रनाथको देवतालाई काठमाडौंस्थित जनबहालमा अवस्थित मच्छिन्द्रनाथको मन्दिरकै प्राङ्गणको डबलीमा ल्याइन्छ । मच्छिन्द्रनाथ देवताले लगाएका सबै आभूषण, गरगहना तथा लुगाहरू फुकालिन्छ । त्यसपछि दूध, घ्यू, मह, तातो पानी, चिसो पानीले तान्त्रिक विधिअनुसार नुहाई दिन्छ । नुहाई दिने र पछि रंगहरू लगाई सजाउने सम्पूर्ण गतिविधिहरू मन्दिरकै पुजारीहरूले गर्ने गर्दछन् । यस समारोहमा नेपालको जीवित देवी कुमारीले पनि भाग लिने गर्दछ । मच्छिन्द्रनाथलाई वर्षा र सहकालको देवताको रूपमा मानिन्छ । हिन्दू तथा बौद्धमार्गी सबैले मान्दै आएको सेतो मच्छिन्द्रनाथलाई करुणामय, अवलोकितेश्वर र जमलेश्वरको नामले पनि चिनिन्छ । सेतो मच्छिन्द्रनाथलाई यसरी नुहाई दिँदा समस्त मानव जातिमा परिवर्तन र नयाँ ऊर्जा प्राप्त हुन्छ भन्ने जनविश्वास रहेको पाइन्छ । सेतो मच्छिन्द्रनाथको स्नान भएको ठीक तीन महिनापछि अष्टमीकै दिनबाट रथ तानेर जात्रा सुरु गरिन्छ ।

सेतो मछिन्द्रनाथ स्नान
किम्बदन्तीअनुसार राजा यक्ष मल्लको पालामा कान्तिपुरीबासीहरू मृत्युपछि स्वर्ग जान पाईन्छ भन्दै कान्तिपुरका पवित्र नदीहरूमा स्नान गर्दै स्वयम्भू दर्शन गर्न जाने गर्थे । एकदिन यमराजले कान्तिपुरबासीका यी गतिविधिहरू र भगवान स्वयम्भूनाथको यस शक्तिको बारेमा थाहा पाएछ र यमराज स्वयम् मान्छेको भेषमा स्वयम्भूको दर्शन गर्न भनी आएछ । यमराज यसरी मान्छेको भेषमा स्वयम्भूनाथको दर्शन गर्न आएको कुरा राजा यक्ष मल्ल र उसका तान्त्रिक गुरुहरूले थाहा पाएछ र यमराज फर्किने बेलामा समातेर आफूहरू सधैँ अमर हुने बरदान मागेछ र यमराजलाई छोड्न मान्दै मानेनन् ।

यमराजलाई फसाद ! फसादमा परेपछि यमराजले उनीहरूबाट मुक्ति पाउन आर्य–अवलोकितेश्वर (सेतो मच्छिन्द्रनाथ)लाई प्रार्थना गरेछ । सेतो मच्छिन्द्रनाथ (सेतो रंगको देवता, आधा आँखा खोलेका) तुरुन्तै पानीबाट प्रकट भए र कालीमाटी र बागमती क्षेत्रभित्र मन्दिर बनाई रथ तान्ने जात्रा चलाउन आज्ञा दिएछ । तद्नुसार हरेक वर्ष चैत्र महिनामा तीन दिन जमलदेखि भोटाहिती हुँदै असन, असनदेखि हनुमानढोका र हनुमान ढोकादेखि लगन टोलसम्म जात्रा चलाउन लगाए । कथाअनुसार मच्छिन्द्रनाथ देवताले कान्तिपुरबासीहरूलाई सुखमय जीवन तथा दीर्घायुको लागि बरदान दिन्छ भन्ने जनविश्वास रही आएको छ । यसैको प्रतिकको रूपमा सेतो मच्छिन्द्रनाथको जात्रा हरेक वर्ष निरन्तर चल्दै आएको छ ।श्री माँ भगवती देवीको चरण कमलमा कोटी कोटी प्रणाम ! 

ॐ श्रीभगवती ... __/|\__ मनोआकांक्षा पुरा गर्ने आस्था तथा बिश्वासकी देबी श्री मनकामना माताले हामी सबैको रक्षा गरुन!!


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