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Thursday, September 28, 2017

Maihar Yatra मैहर यात्रा

मैहर यात्रा 28 September 2017
हिन्दु धरम में सबसे बड़ी परेशानी है की मेहरारू के साथ धरम करम करना पड़ता है, इस साल कही पत्नी जी को ले कर कही निकले नहीं थे समाधी में, मने मेडिटेशन में क्यों की पत्नी जी के साथ मेडिटेशन करने से शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से हम स्वस्थ्य रह सकते हैं। मेडिटेशन तनाव और चिंता जैसी गंभीर समस्याओं के समाधान में भी लाभदायक है। तो सोचा था इस साल कुछ तूफानी करते है, चुकी पत्नी जी संघी मिजाज की है तो धार्मिक आस्था की बवासीर हर समय चपका रहता है आउर हम रहे सम्भोग से समाधी वाले, यही मामला नहीं मिलता है हर दिन किसी न किसी बात पर पत्नी जी से पंगा हो जाता है, लेकिन हिन्दू धरम में दहेज़ एक बुरी प्रथा है जो पैसे के लालच में मा बाप अपने बेटे के बेच देते है रोज सुनना पड़ता है .. एकदम्मे चूतिया हो का बे ???????? 


पहिले कही चलते है इस साल दशहरे की छुट्टी में दर्शन करने , कहा चलना है प्लान कर लो, वैसे इस साल किसी देवी के मंदिर में चलते हा अपन ठहरे रमन चमन वाले तो सोचा की धरम के साथ करम दोनों करते है बस इसी का प्रपोजल दे दिए पत्नी जी को .. बस पत्नी जी बज गयी..हम तुमको कित्ती बार समझाए हैं , हमरे सामने ज्ञान मत चोदा करो ....... साले दिनवा भर हियाँ फेसबुकियाते हो ....... अबे जरा बहरे निकलो....... कुछ मोटीभेसन दो और कुछ ल्यो ........ और सुनो ........ कल रात जब तुम भाट्स आइप पर चुतियापा कर रहे थे न थे तो हम गूगल पढ़ रहे थे ....... चलो चलते है मैहर देवी.... अपने पूर्वी उत्तर प्रदेश में मध्य प्रदेश के मैहर जिला में मा मैहर की बड़ी महिमा है ... सब लोग जाते है, अपन दुनिया घूम चुके है मस्ती किये लेकिन भगवान तुमको बुद्धि देते है नहीं... बस दिमाक में १००० वाट वाला लाइट बल गया ... बेबी मैहर के पास खुजराहो भी है वहा भी चलेगे .... ऐसा है बबुआ ......... मैहर कहा खजुराहो कहा, प्यार से समझाया .. बेबी बाबा आदम के ज़माने से ही भारत अपनी धार्मिक आउर सांस्कृतिक धरोहर के लिए विश्वगुरु रहा है। लोग मानते भी है कि ‘चार कोस पर पानी बदले, आठ कोस पे वाणी, भारत में विभिन्न धर्मों के मानने वाले हैं और उनके अलग-अलग आराध्य देव और प्रतीक हैं। हिंदुओं के देवी-देवताओं में एक हैं- मां शारदा या मां सरस्वती। मैहर, मां शारदा देवी का धाम है, जो मध्य प्रदेश के सतना जिले में, तहसील मैहर, ग्राम पंचायत आरकंडी के परिक्षेत्र में त्रिकूट पर्वत पर स्थित है।
 
पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों से भरपूर यह धाम बाघेल खंड और बुंदेल खंड की संस्कृति का सदा से ही केंद्र बिंदु रहा है। कहा जाता है कि जब शंकर जी सती के मृत शरीर को लेकर विलाप करते हुए एक स्थानसे दूसरे स्थान विचरण कर रहे थे, तब इस स्थान पर मां के गले का हार गिरा था। इसी कारण इस स्थान का नाम ‘माईहार’ पड़ा जो बाद में बिगड़ते-बिगड़ते ‘मैहर’ हो गया। शक्ति के बिना देवता भी कुछ नहीं कर सकते। मां शारदा उस आदि शक्ति के ही रूप हैं जिनकी शक्ति और साथ प्राप्त करके ब्रह्मा जी सृष्टि का निर्माण कार्य, विष्णु जी पालन कार्य और शिवजी संहार का कार्य करते हैं। भगवती मां शारदा को विद्यादात्री माना जाता है। ब्रह्म परमेश्वरी मां शारदा के शरीर का रंग कुंद पुष्प तथा चंद्रमा के समान धवल है और उनका वाहन हंस है। वे चार भुजाओं वाली हैं, जिनके एक हाथ में वीणा, दूसरे में पुस्तक, तीसरे में माला है। उनका चैथा हाथ वरदान देने की मुद्रा में है। वे सदा श्वेत वस्त्र धारण करती हैं व श्वेत कमल पर निवास करती हैं। उनकी कृपा से ही व्यक्ति परम विद्वान बनता है। हिंदू धर्म में तो यह भी मान्यता है कि मां शारदा दिन में एक बार हर व्यक्ति की जिह्वा पर जरूर विराजती हैं और उस समय कही गई बात सिद्ध हो जाती है। बस आगे कुछ दूर चलने से खजुराहो भी आ जाता है ... खैर मोटिवेट कर दिया ..इस पूरी सोच को आप “ खजुराहो दर्शन “ में पड़ ले ये धरम का पन्ना है तो एक दिन अचानक गूगल में माँ मैहर खोजा को की मेरा तो रूट था खजुराहो, लेकिन धरम के आगे हार मन्नना पड़ता है तो Maihar Yatra 

बनारस से हर ट्रेन मुंबई जाने वाली मैहर रूकती है तो अपन दोनों भी टिकट बनवा लिए  Sarnath Express -15159 ( Chhapra to Durg ) (https://www.cleartrip.com/trains/15159/) २८ सितम्बर २०१७ को दिन के साढ़े १२ का .. लेकिन 1 घंटे की देरी से हमारी यात्रा शुरू हुई.... चुकी बनारस में १० मिनट का स्टापेज था तो आराम से सामान रख बैठ गए सिट पर... ट्रेन भी भरी थी मैहर के यात्रियों से शाम के ९ बजे पहुच ही गए मैहर धाम, स्टेसन पर ज्यादा भीड़ भांड नहीं थे, पत्नी जी की झोला उठा बाहर निकाल ही रहे थे तभी एक ऑटो वाला मिल गया , सर कहा जाना है, तब तक तपाक से पत्नी जी बोल दी, एक अच्छा होटल चाहिए जो मंदिर के पास हो, ऑटो वाला सामान उठा ऑटो की तरफ बढ़ा... हम दोनों भी बैठ लिए, ऑटो वाला निकाल पड़ा, १० मिनट बाद हम एक होटल में पहुचे, हम मोबाइल से होटल खोज रहे थे , पत्नी जी खुदे चल पड़ी रूम देखने के लिए लेकिन तुरंत वापस आई, ऑटो वाले को कुछ बोलते हुवे , मैंने पूछा क्या हुवा, तब तक दूसरा होटल भी आ गया वहा थोडा चहल पहल भी था “ होटल सिद्धार्थ इन & मैरिज हाल, (Hotel Siddharth Inn Maihar, Vijayraghavgarh - Maihar - Satna Road, Maihar, Madhya Pradesh, India) 

 
घंटा घर के पास, मुझे भी खीच के ले गयी रूम देखने के लिए , फ़िलहाल होटल में ज्यादा भीड़ नहीं थी तो एक रूम पत्नी जी ने पसंद कर लिया , ऑटो वाले को ५० रुपये दे बिदा किया आउर रूम में चेकिंग कर गए, लेकिन पत्नी जी ने ऑटो वाले से पूरा मैहर माँ के मंदिर का इतिहास और भूगोल समझ लिया और सुबह ८.३० पर आने का आदेश भी पारित कर दिया ... रात के ११ बज गया था , हम दोनों का नवरात्र के अस्टमी का ब्रत भी था ,तो बिस्तर पकड़ लिए, सुबह ५ बजे कान में भीड़ का आवाज सुने दी, आख खुल गयी पत्नी जी रूम के बालकनी से बाहर का नजारा ले रही थी, बिस्तर से उठना पड़ा.... नाहा धो निकाल पड़े माँ मैहर के दरबार में … रात वाला ऑटो को तो ८.३० का आदेश था वो ७.३० पर कहे आये.... दूसरा ऑटो बुलाया गया धाम तक का ७० रूपया , बैठ गए भाई , आगे चलते ही मंदिर का मेला का नजारा दिखने लगा ,

लगभग दो किमी होगी। धाम में बहुत पहले ही गाडि़यों को रोक लिया जाता है। एक बड़े पार्किंग के पास गाडियों को रोक देते है वहा से माला फुल की दुकान शुरू होती है और सीढ़ियां चढ़ने से पहले छोटा सा बाजार है जहां आप प्रसाद ले सकते हैं। लेकिन सीढ़ियां के साथ रोपवे का है विकल्प - मां मैहर देवी के मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को १०६३ सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। अपना भारी भरकम सामान छोड़ कर चढ़ाई शुरू कर सकते हैं। हालांकि २००९ के बाद अब यहां रोपवे बन गया है। जो श्रद्धालु सीढिया नहीं चढ़ना चाहते वे रोपवे से जा सकते हैं। रोपवे का संचालन दामोदर रोपवे कंपनी करती है। दमोदर रोप- से मैहर वाली माता के दर्शन कराने के लिए २५ ट्रालियां लगाई गई है। एक ट्राली में एक साथ ४ भक्तों की बैठने की व्यवस्था है। जिससे एक चक्कर में १०० भक्त नीचे से ऊपर जाते है। जो क्रमश: उपर से नीचे की ओर घूमती रहती है। एसडीएम से परमीशन लेकर साल में एक दो बार मेंटीनेंश किया जाता है। उस समय सिर्फ एक दो दिन रोप-वे बंद रहता है।
अब उड़न खटोला (रोपवे) देख लिया, निचे ही प्रसाद की दुकान दिखी तो पत्नी जी ने प्रसाद ले भीड़ काफी थी तो लग गए लाइन में लेकिन १०.३० तक पहुच गए मंदिर में रोपवे के सहायता से कहा जाता है कि माता शारदा के दर्शन हररोज सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। तालाब से 2 किलोमीटर और आगे एक अखाड़ा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा-उदल कुश्ती लड़ते थे। मां शारदा देवी के मंदिर में बलि देने की प्रथा थी जिसे १९२२ में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने प्रतिबंधित कराया। माँ शारदा के इस मंदिर को प्रायः शक्तिपीठ माना जाता है। मंदिर बहुत विशाल नहीं है किंतु त्रिकूट पर्वत शिखर खर पर स्थित होने के कारण सुंदर और महत्त्वपूर्ण लगता है। ऐसी मान्यता है कि देवी सरस्वती का एक पुत्र था जिसका नाम दामोदर था। वह बहुत ही प्रखर बुद्धि का था । एक बार शास्त्रार्थ में उसने देवगुरू बृहस्पति को ब्रहमर्शियों के सामने हरा दिया। इससे क्रोधित होकर देवगुरू ने उसे पृथ्वीलोक पर जन्म लेने का श्राप दिया। श्राप जानकर माता सरस्वती को बहुत दुख हुआ और उन्होंने देवगुरु से बहुत अनुनय-विनय की। गुरु ने उसे तेजस्विता का वरदान दिया। अंततः यही पुत्र पृथ्वी लोक पर जन्म लेकर सोलह वर्ष की उम्र में यश प्राप्त किया और समुद्र के तट पर भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर बैकुंठ लोक को गया। उस पुत्र की स्मृति में पृथ्वी पर माता शारदा की इस प्रतिमा की स्थापना पिता देवधर ने कराई। देवी दुर्गा का निरूपण सिंह पर सवार एक निर्भय स्त्री के रूप में की जाती है। दुर्गा देवी आठ भुजाओं से युक्त हैं जिन सभी में कोई न कोई शस्त्रास्त्र होते है। उन्होने महिषासुर नामक असुर का वध किया। महिषासुर (= महिष + असुर = भैंसा जैसा असुर) करतीं हैं। हिन्दू ग्रन्थों में वे शिव की पत्नी दुर्गा के रूप में वर्णित हैं। जिन ज्योतिर्लिंगों मैं देवी दुर्गा की स्थापना रहती है उनको सिद्धपीठ कहते है। वँहा किये गए सभी संकल्प पूर्ण होते है।

हिन्दुओं के शाक्त साम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है(शाक्त साम्प्रदाय ईश्वर को देवी के रूप में मानता है)। वेदों में तो दुर्गा का व्यापाक उल्लेख है, किन्तु उपनिषद में देवी "उमा हैमवती" (उमा, हिमालय की पुत्री) का वर्णन है। पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। दुर्गा असल में शिव की पत्नी आदिशक्ति का एक रूप हैं, शिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है। एकांकी (केंद्रित) होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवश अनेक हो जाती है। उस आदि शक्ति देवी ने ही सावित्री(ब्रह्मा जी की पहली पत्नी), लक्ष्मी, और पार्वती(सती) के रूप में जन्म लिया और उसने ब्रह्मा, विष्णु और महेश से विवाह किया था। तीन रूप होकर भी दुर्गा (आदि शक्ति) एक ही है। इस मंदिर के पीछ प्रसिद्ध ऐतिहासिक योद्धा आल्हा-ऊदल की कथाएँ जुड़ी हैं।वैसे तो आल्हा-ऊदल का कोई बड़ा ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता किंतु उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेशके लोकगायक आल्हा-ऊदल की कथाओं को अतिरंजित करके बड़ा रोमांच पैदा करते हैं। इन दो भाइयों के अथाह बल को आज भी प्रषंसा प्राप्त है और साथ में उनके माहिल मामा शकुनि मामा की तरह कुटिल किंतु लोकप्रिय पात्र के रूप में याद किए जाते हैं।सबसे बड़ी किंवदंती यह है कि माना जाता है कि आज भी आल्हा शारदा माँ के मंदिर में प्रथम पुष्प अर्पित करते हैं। प्रातःकाल जब मंदिर के किवाड़ खुलते हैं तो माँ के चरणों में ताजे फूल चढ़े मिलते हैं। इस रहस्य के पीछे आल्हा का अमर होना माना जाता है जिन्हंे माँ शारदा ने अमर होने का वरदान दिया था।
खैर मंदिर धाम में पहुच गए, लाइन लम्बी थी... तो पहम दोनों बनारसी, तो जुगाड़ शुरू.... जय माता दी जय माँ शेरा वाली चिल्लाते पत्नी ही मेरा हाथ पकड़ भीड़ में घुस गयी, हमारा भी माथा ठनका... अबे ये तो सच्ची में माँ शारदा ही रास्ता बना रही है ... एक दम साक्षात् माँ के शामने पहुचे, पत्नी जी ने बनारसी दिमाक लगाया था हाथ में १००-१०० के १० या १५ नोट पकड़ रखे थे, हाथ में पैसा देखते ही ही पुजारी जी मुस्कुराये आउर दोनों तरफ के भीड़ रोक प्रसाद चदा दिया... पत्नी जी हमही को घुर रही थी... २ मिनट निहारा माता को ... बाहर निकले मंदिर की परिक्रमा की फिर मंदिर की सीढ़ियो के पास गणेश जी की मूर्ति... बस पत्नी जी ले घुस गयी... चन्दन लगवाया.... १०० की पत्ती झारी.... मंदिर के सामने ही कुछ छोटे छोटे मंदिर है जहा कुछ स्पेसल पूजा होती है बस पत्नी जी हाथ पकड़ बैठा दी, पंडित जी को आर्डर कर दी ५०१- वाली पूजा की, बस पादित जी बड़का झोला निकाल शुरू हो गए, माथा ठनका अबे इए ५०१/- लिया है, कही nanveg पूजा न कर दे.. क्यों की मैंने सुना है की अधिकतर देवी के मंदिर में बलि प्रथा है... हम अपना आख पंडित के हाथ में गडाए थे.. लेकिन माँ की कृपा से पूजा veg ही निकली.... खैर टिका प्रसाद ले वहा से बिदा हुवे... तो सोचा मंदिर पूरा उपर घूम ही लिया जाये... 
 
शारदा देवी की पत्थर की मूर्ति के पैर शारदा देवी मंदिर के पास में स्थित प्राचीन शिलालेख है। वहाँ शारदा देवी के साथ भगवान नरसिंह की एक मूर्ति है। इन मूर्तियों Nupula देवा द्वारा शेक ४२४ चैत्र कृष्ण पक्ष पर १४ मंगलवार, विक्रम संवत् ५५९ अर्थात ५०२ ई. स्थापित किया गया। चार पंक्तियों में इस पत्थर शिलालेख शारदा देवी देवनागरी लिपि में "3.5 से" 15 आकार की है। मंदिर में एक और पत्थर शिलालेख एक शैव संत Shamba जो बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी ज्ञान था द्वारा 34 "31" आकार का खुदा होता है। इस शिलालेख Nāgadeva के एक दृश्य भालू और पता चलता है कि यह Damodara, सरस्वती के बेटे के बारे में थी, कलियुग का व्यास माना जाता है। और यह है कि पूजा के दौरान उस समय बकरी बलिदान की व्यवस्था चली. स्थानीय परंपरा का पता चलता है कि योद्धाओं Alha और Udal, जो पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध किया था इस जगह के साथ जुड़े रहे हैं। दोनों भाई शारदा देवी के बहुत मजबूत अनुयायी थे। कहा जाता है कि Alha १२ साल के लिए penanced और शारदा देवी के आशीर्वाद स अर्मत्व है। Alha और Udal करने के लिए इस दूरदराज के जंगल में देवी की यात्रा पहले कहा जाता है। Alha को नाम 'शारदा माई' द्वारा देवी माँ कह कर बुलाते थे और अब वह 'के रूप में माता शारदा माई' लोकप्रिय हो गया। एक नीचे मंदिर, के रूप में 'Alha तालाब' ज्ञात तालाब के पीछे पहाड़ी देख सकते हैं। हाल ही में इस तालाब और आसपास के क्षेत्रों में साफ किया गया है / तीर्थयात्रियों के हित के लिए rennovated. इस तालाब से 2 किलोमीटर की दूरी पर Alha और Udal जहां वे कुस्ती का अभ्यास किया था के अखाड़े स्थित है।
चक्कर मारे फोटू सोटू खिचे घूम घाम लग गए रोपवे की लाइन में... ध्यान आया कुछ लोग हम दोनों के बड़े ध्यान से देख रहे थे, मने जैसे बचपन में कोने अग्रेज को देखते बड़ा मजा आता था अग्रेज्वन को देख... खैर वो बचपन था लोग हम दोनों पहुच गए ट्रोली के साथ... माता श्री की कृपा से ट्राली मेन ने हम दोनों को ही भेजा... मैहर की खूब सुरती को कैमरे में कैद करते निचे रोपवे से निचे उतर बाहर निकले, सामने ही ये नारियल काटने का एक नया तरीका दिखा सो कैमरे में कैद कर लिए .. अब पेट पूजा की बारी आई तो पहले चाय.. एक ठेले की चाट की दुकान तो पत्नी जी कहा पीछे रहने वाली चलो २ प्लेट टमाटर चाट... फिर छुटपुट दुकाने लगी थी, अपन के काम का कुछ नहीं, मंदिर के सामने एक शायद निशुल्क भोजन गृह था, अपन भी घुसे लेकिन पुरे सतना की भीड़ वही, अपन बाहर खा लेगे चलो वापस होटल.. अब दर्शन पूर्ण हुवा, माता से माँगा बस आप ने मेरी औकात के हिसाब से तो दे ही दिया है, बस हमरे धरम पत्नी को दे दीजिये, जो मागे... हमरे तरफ से भी ... रस्ते में एक अच्छा भोजनालय दिखा वो भी मोदी थाली.. दिल्ही दरबार भोजनालय .. वहा गोभी का पराठा आउर छोला दबाया एक बोतल पानी तब कुछ दिमाक का बत्ती चला .. बाहर निकले वही पर ऑटो वाले खड़े थे वैसे सर मैहर घूम लीजिये... पूरा मैहर घुमा देगे... 

कितना टाइम लगेगा भाई इतना घुमने में आउर धन का क्या खर्चा लगेगा ... ५०० रोप्ये में ३ घंटा ५ मंदिर घुमने की बात हुई बोले ३ बजे होटल पर आये, होटल पहुच आराम कर निकल चले घुमने टेम्पू से मदिर घुमने के बाद ६ बजे होटल वापस पहुचे 
 
मैहर मुख्यतः शारदा माँ के मंदिर के लिए ही विख्यात है। सामान्य रूप से लोग दर्शन करके वापस चले जाते हैं। चूँकि अपनी दृश्टि दर्शन से अधिक वहाँ के भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्त्व पर अधिक रहती है, इसलिए आस-पास के स्थलों को देखे बिना मेरे लिए वापस आना असंभव सा होता है। सुना था कि यह भूमि आल्हा की प्रसिद्ध भूमि महोबा के आस-पास की है, सो आल्हा-ऊदल के अवशेष जरूर होंगे। कभी यू tube में सुना था - 

खारा पानी है मोहबे का खारी बात सही ना जाय ऊदल लड़ैया तेग न छोडें़, 
चाहे राज अमल होइ जाय। 



सो, पता लगा कि पास में ही आल्हादेव मंदिर, आल्हा का तालाब एवं आल्हा का अखाड़ा है। लेकिन उधर ऑटो बंद था सो देख नहीं पाए एक बड़ा आॅटो रिक्शा पांच सौ रुपये में घुमा लाने को तैयार हो गया। वो करीब १८ साल का पड़ा लिखा था उसकी लोकल जानकारी अच्छी थी, सो उसने सब अच्छे से घुमाया

अन्य दर्शनीय स्थल- 

• तुलसी संग्रहालय, रामवन 

• शिवमंदिर बीरसिंहपुर 

• ग्रिद्धराज पर्वत 

• भरहुत 

• वैशनो देवी मंदिर, सतना 

• चोमुख्ननाथ मन्दिर (गन्ज सलेहा) 

• नागौद किला 

• राम वन 

• परसमनिया पठार 

• भरजुना देवी 

• भाकुल बाबा 

• कर्द्मेश्वर नाथ 

• बर्मेन्द्र जिला पुस्तकालय (नागौद) 

• साइ मन्दिर 

• पशुपतिनथ मन्दिर 

• छोटा स्थान सोहावल 

 

सतना जिला ऐतिहासिक रूप से बघेलखंड क्षेत्र में आता है। इस पर रीवा राजघराने का शासन था। बाद में इस पर अंग्रेजी हुकूमत का आधिपत्य हो गया। इनमें मैहर, नागौद. कोठी, जासो, सोहावल और बारौधा और चौबे जागीर में पालदेव, पहरा, तरौन, भैसुंदा और कामता-राजुला थे। बौद्ध धर्म की किताब और महाभारत में भी इसका उल्लेख है। 

सो घूम घाम होटल में वापसी, पत्नी जी की शीशे में तस्वीर उतर दी ..अब कल की तयारी लेकिन पत्नी जी ले चली बगल में एक माँ का पंडाल था तो वहा दर्शन किये आउर आस पास का बाजार देखा खास नहीं था हम कमरे में वापस पहुचे अब कल खजुराहो जो निकला था, पत्नी जी बोली हम बाहर घूम के आते है , जाओ भाई अपन लग गए मैहर से खजुराहो के टेक्सी में खजुराहो के लिए एक टैक्सी फिक्स हुई, हम भी ख़ुशी ख़ुशी निचे उतरे, पत्नी जी पाओ भाजी खा रही थी, तो हम भी अधिया लिए, पत्नी जी को कोल्ड ड्रिंक पिला के होटल के कमरे में खाने का आर्डर दे अब सामान पैकिंग आउर खजुराहो की तयारी में ... 





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