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Sunday, June 25, 2017

Shambhunath Shukla: ५ दिवसी नेपाल यात्रा संमरण शम्भू नाथ शुक्ल जी की

लोगो के सेलिब्रेटिस अलग अलग ही होते है, मेरे आदर्श लोग फेसबुक पर ही मौजूद है, फेसबुक के न आने से पहले मेरा ज्ञान सिमित था, लेकिन फेसबुक से जुड़ने के बाद तमाम सोच के लोगो से परिचय हुवा, हाला की मेरा मानना है की किताबो से अच्छा कोई दोस्त नहीं हो सकता, फेसबुक भी चहरे की एक किताब है, जहा कुछ नया इनोवेसन होता रहता है, कलम के माध्यम से, इससे हमें बहुत कुछ सिखने का मौका मिलता है, हाला की सोसल मिडिया के आने से ज्ञान का बाजार बड़ा हुवा है, सामान्यतः हर आदमी के जीवन में उसका दायरा होता है, जहा वो पड़ता है, उसके अगल बगल जो लोग रहते है वो जो करते है वही वो सीखता है, उसमे अहम् रोल होता है माँ बाप का फिर गुरु का, एक कहावत भी सुने थे बचपन में की

गुरु गोविन्द दोउ खड़े हुवे काकू लागु पाव , बलिहारी गुरु आप की गोविन्द दियो बताया ...
 
हम कनफूस हो गए की पहले गुरु आये की गोबिंद, इसी परेशानी में हम गोविन्द को ही गुरु समझ लिए, इसलिए हर शिक्षक मेरे लिए भगवान ही है, ऐसा मेरा मत है,   फेसबुक के आने के बाद विचारधाराओ का पता चला , नए कल्चर का पता चला कुछ चीजे सिखने को मिली, जब तक आप लोगो को सुनेगे नहीं तब तक आप कुछ नया सिख नहीं सकते, लेकिन मेरा हाल उल्टा ही है, मेरा ज्ञान भरता ही नहीं , इस लिए फेसबुक पर लोगो के पड़ता रहता हु, शायद ये मेरा नशा है, और ये सपना रहता है की उन गुरू के दर्शन कर ले .. हाला की तमाम लोग है फेसबुक पर कलम के महारथी, कुछ उन्माद भी फैलाते है , कुछ ज्ञान की भी लहर चलती है , कुछ सामाजिक बाते भी समझ में आती है , अपन पड़ते सबको है, पसंद आया तो बोल हरि नहीं तो आगे चले, मै कमेन्ट नहीं करता क्यों की मुझे उस विषय की जानकारी नहीं है उपर ही बता दिया की मेरा ज्ञान का झोला बहुत बड़ा है .. फेसबुक पर है धासु विचारोत्तजक प्रगति शील लेख पढ़ने के लिए आप घूम ले आप लोगो के वाल पर फ़िलहाल तो मै  तो सर्वश्री Jagadishwar Chaturvedi, Pankaj Chaturvedi, Arun Maheshwari, Anita Misra & S.r. DarapuriKanwal Bharti को अवश्य पढ़ें। जरूरी नहीं कि उनसे सहमत हों पर इनको पढ़ने के बाद आपका भक्ति का बुखार अवश्य उतर जाएगा। दिमाग झन्ना जाएगा। तब आप कुछ नया और जनोपयोगी सोच पाएंगे। ये विचार है इसी मुख पोथी के धासु विचारोत्तजक प्रगति शील लेखक श्री Shambhunath Shukla जी से जुडा, आप एक सीनियर पत्रकार है Khabar NonStop वेब पोर्टल के वैसे है कानपूर के है लेकिन दिल्ही में रहते है, आप की पोस्ट में जान होती है इस लिए मै नियमित उनको वाल पर टहल लेता हु , कुछ दिल को छु गयी तो अपने वाल में बिना आभार दिए लपक लेता हु लाइक भी नहीं करता , 


पिछले दिनों आप का इनबॉक्स मिला की आप नेपाल आ रहे है, ये सुचना मिलते ही मेरा तो किस्मत का>लाइट जल गया , अरे वाह ..  आप दिल्ही बनारस होते हुवे अपने ग्रुप के साथ Indian Federation of Working Journalists  IFWJ का 125 सदस्यों का दल वाराणसी से चल कर नेपाल आया है जो नेपाल और भारत के संबंधो का अध्यन करेगा जिनका निवास करीब ५ दिन रहेगा इस दल में आँध्रप्रदेश, तमिलनाडु, झारखंड, कर्नाटक, दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत 13 अन्य राज्यों के सदस्य शामिल है। श्रीलंका से 18 सदस्य भी इस दल में सम्मिलित है।

सुबह व्हाट्स एप पर आप का खबर मिला की आप काठमांडू पहुच चुके है, मै भी दर्शन के लिए लालायित था तो आप के लिए एक सिम ले पहुच गया गौशाला के महाराजा होटल में, आप अपने ग्रुप के साथ कही बाहर निकलने की तयारी में थे मैंने उनका ज्यादा समय लेना उचित नहीं समझा, मोबाईल में सिम डलवा कुछ देर आप से बात चित करने का सौभाग्य प्राप्त हुवा... बात हुई नेपाली हिन्दुत्त्व भारत के हिन्दुत्त्व से फर्क , नेपाल के बारे में सौदर्य के बारे में, नेपाली जन मानस के सोच के बारे में नेपाली जीवन शैली के बारे में, ये तो मझे उनके ही कलम से लिखे लेख में आनंद आएगा, वैसे आप बहुत बार नेपाल आ चुके है मुझसे ज्यादा ही जानकारी होगी आप को , लेकिन मैंने उनको जो बताया है नेपाल के बारे में वो कुछ ऐसा है ..

नेपाल, (आधिकारिक रूप में, संघीय लोकतान्त्रिक गणराज्य नेपाल) भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित एक दक्षिण एशियाई भूपरिवेष्ठित हिमालयी राष्ट्र है। नेपाल के उत्तर मे चीन का स्वायत्तशासी प्रदेश तिब्बत है और दक्षिण, पूर्व व पश्चिम में भारत  है। नेपाल के ८१ प्रतिशत नागरिक हिन्दू धर्मावलम्बी हैं। नेपाल विश्व का प्रतिशत आधार पर सबसे बड़ा हिन्दू धर्मावलम्बी राष्ट्र है। नेपाल की राजभाषा नेपाली है और नेपाल के लोगों को भी नेपाली कहा जाता है।

संसार का सबसे ऊँची १४ हिम श्रृंखलाओं में से आठ नेपाल में हैं जिसमें संसार का सर्वोच्च शिखर सगरमाथा एवरेस्ट (नेपाल और चीन की सीमा पर) भी एक है। नेपाल की राजधानी और सबसे बड़ा नगर काठमांडू है। काठमांडू उपत्यका के अन्दर ललीतपुर (पाटन), भक्तपुर, मध्यपुर और किर्तीपुर नाम के नगर भी हैं अन्य प्रमुख नगरों में पोखरा, विराटनगर, धरान, भरतपुर, वीरगञ्ज, महेन्द्रनगर, बुटवल, हेटौडा, भैरहवा, जनकपुर, नेपालगञ्ज, वीरेन्द्रनगर, त्रिभुवननगर आदि है।

"नेपाल" शब्द की उत्त्पत्ति के बारे में ठोस प्रमाण कुछ नहीं है, लेकिन एक प्रसिद्ध विश्वास अनुसार यह शब्द 'ने' ऋषि तथा पाल (गुफा) मिलकर बना है। माना जाता है कि एक समय नेपाल की राजधानी काठमांडू 'ने' ऋषि का तपस्या स्थल था। 'ने' मुनि द्वारा पालित होने के कारण इस भूखंड का नाम नेपाल पड़ा, ऐसा कहा जाता है।

मानचित्र पर नेपाल का आकार एक तिरछे सामानान्तर चतुर्भुज का है। नेपाल की कुल लम्बाई करीब 800 किलोमीटर और चौड़ाई 200 किलोमीटर है। नेपाल का कुल क्षेत्रफल 147181 वर्ग किलोमीटर है।

नेपाल की संस्कृति तिब्बत एवं भारत से मिलती-जुलती है। यहाँ की वेषभूषा, भाषा तथा पकवान इत्यादि एक जैसे ही हैं। नेपाल का सामान्य खाना चने की दाल, भात, तरकारी, अचार है। इस प्रकार का खाना सुबह एवं रात में दोनो समय खाया जाता है। खाने में चिवड़ा और चाय का भी चलन है। मांस-मछली तथा अंडा भी खाया जाता है। हिमालयी भाग में गेहूँ, मकई, कोदो, आलू आदि का खाना और तराई में गेहूँ की रोटी का प्रचलन है। कोदो के मादक पदार्थ तोङ्गबा, छ्याङ, रक्सी आदि का सेवन हिमालयी भाग में बहुत होता है। नेवार समुदाय अपने विशेष किस्म के नेवारी परिकारों का सेवन करते हैं। नेपाल में एक जाती है “ थकाली “ इसके हाथ का नेपाली भोजन एक दम स्वस्दिस्ट होता है, जहा सुद्ध टिपिकल नेपाली खाना मिलता है , और भारतीय सभ्यता के लाइट तंदूरी ढाबे भी है जो लुम्बिनी तंदूरी के ग्रुप से विख्यात है, वैसे नेपाल में मांसाहारी भोजन बहुत ही प्रिय है, यहाँ के लोग भगवान के प्रसाद के रूप में भी मांस का प्रयोग करते है, गणेश को भी बलि दी जाती है,

नेपाली सामाजिक जीवन की मान्यता, विश्वास और संस्कृति हिंदू भावना में आधारित धार्मिक सहिष्णुता और जातिगत सहिष्णुता का आपस का अन्योन्याश्रित संबंध नेपाल की अपनी मौलिक संस्कृति है। यहाँ के पर्वों में वैष्णव, शैव, बौद्ध, शाक्त सभ धर्मों का प्रभाव एक दूसरे धर्मावलंबियों पर समान रूप से पड़ा है। किसी भी एक धार्मिक पर्व को धर्मावलंबियों पर समान रूप से पड़ा है। किसी भी एक धार्मिक पर्व को धर्मावलंबी विशेष का कह सकना और अलग कर पाना बहुत कठिन है। सभी धर्मावलंबी आपस में मिलकर उल्लासमय वातावरण में सभी पर्वों में भाग लेते हैं। नेपाल में छुआछुत का भेद न कट्टर रूप में है और न जन्मसंस्कार के आधार पर ही है। शक्तिपीठों में चांडाल और भंगी, चमार, देवपाल और पुजारी के रूप में प्रसिद्ध शक्ति पीठ गुह्येश्वरी देवी, शोभा भागवती के चांडाल तथा भंगी, चमार पुजारियों को प्रस्तुत किया जा सकता है।

उपासना की पद्धति और उपासना के प्रतीकों में भी समन्वय स्थापित किया गया है। मूर्तिपूजा और कर्म कांड के विरोध में उत्पन्न बौद्ध धर्म ने नेपाल में स्वयं मूर्तिपूजा और कर्मकांड अपनाया है। बौद्ध पशुपतिनाथ की पूजा आर्यावलोकितेश्वर के रूप में करते हैं और हिंदू मंजुश्री की पूजा सरस्वती के रूप में करते हैं। नेपाल की यह समन्वयात्मक संस्कृति लिच्छवि काल से अद्यावधि चली आ रही है।

नेपाल मे आधुनिक शिक्षा की शुरूवात राणा प्रधानमन्त्री जङ्गबहादुर राणा की विदेश यात्रा के बाद सन् 1854 में स्थापित दरबार हाईस्कूल (हाल रानीपोखरी किनारे अवस्थित भानु मा.बि।) से हुई थी, इससे पहले नेपालमे कुछ धर्मशास्त्रीय दर्शन पर आधारित शिक्षा मात्र दी जाती थी। आधुनिक शिक्षा की शुरूवात 1854 में होते हुए भी यह आम नेपाली जनताके लिए सर्वसुलभ नहीं था। लेकिन देशके विभिन्न भागों में कुछ विद्यालय दरबार हाईस्कूलकी शुरूवात के बाद खुलना शुरू हुए। लेकिन नेपाल में पहला उच्च शिक्षा केन्द्र काठमान्डू में त्रिचन्द्र कैम्पस है। राणा प्रधानमन्त्री चन्द्र सम्सेर ने अपने साथ राजा त्रिभुवनका नाम जोडके इस कैंपसका नाम रखाथा। इस कैंपसकी स्थापना बाद नेपालमे उच्च शिक्षा अर्जन बहुत सहज हो गया लेकिन सन 1959 तक भी देश मे एकभी विश्वविद्यालय स्थापित नहीं हो सकाथा राजनितिक परिवर्तन के पश्चात् राणा शासन मुक्त देशने अन्ततः 1959 मे त्रिभुवन विश्वविद्यालयकी स्थापना की। उसके बाद महेन्द्र संस्कृत के साथ अन्य विश्वविद्यालय खुलते गए। हाल ही में मात्र सरकार ने ४ थप विश्वविद्यालय भी स्थापित करने की घोषणा की है। नेपाल की शिक्षा का सबसे मुख्य योजनाकार शिक्षामन्त्रालय है उसके अलावा शिक्षा विभाग, पाँच क्षेत्रीय शिक्षा निदेशालय, पचहतर जिल्ला शिक्षा कार्यालय, परीक्षा नियन्त्रण कार्यालय सानोठिमी, उच्चमाध्यामिक शिक्षा परिषद्, पाठ्यक्रम विकास केन्द्र, विभिन्न विश्वविद्यालयों के परीक्षा नियन्त्रण कार्यालय नेपालकी शिक्षाका विकास विस्तार तथा नियन्त्रणके क्षेत्र में कार्यरत हैं।

नेपाल की राजधानी काठमांडू खूबसूरती और शांति का अनूठा संगम है। समुद्र तल से 1350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह रोमांटिक शहर अपनी नाइटलाइफ के लिए भी जाना जाता है। काठमांडू नेपाल का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय शहर है जहां पर्यटकों का सबसे ज्यादा आगमन होता है। पहाड़ियों से घिर इस खूबसूरत शहर को यूनेस्को की विश्वदाय धरोहरों में शामिल किया गया है। यहां की रंगीन संस्कृति और परंपराओं के अलावा विशिष्ट शैली में बने शानदार घर सैलानियों को अनायास ही अपनी और आकर्षिक कर लेते हैं। यहां के शानदार मंदिर पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखते हैं। साथ ही यहां के प्राचीन बाजारों की रौनक भी देखते ही बनती है।

पाँचवीं शताब्दी से लगभग दशवीं शताब्दी तक यहाँ लिच्छवियाें का शासन था। इस काल काे स्वर्णकाल भी कहा जाता है। उसके बाद यहाँ मल्ल शासन का अारम्भ हुअा। सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में काठमांडू में मल्ल राजाओं का शासन था। गोरखा राजा पृथ्वी नारायण शाह ने 1768 में यहां की अस्थिरता को समाप्त इसे एकीकृत किया। 1950 में इस शहर की सीमाएं विदेशी पर्यटकों के लिए खोली गईं थीं। तब से आज तक सैलानियों के यहां आने का सिलसिला जारी है।

दरबार मार्ग या Durbarmarg (नेपाली: दरबारमार्ग; Darbarmarg, अनौपचारिक रूप से राजा के तरीके के रूप में जाना जाता है) काठमांडू के नेपाली शहर में एक सड़क है। यह काठमांडू शहर के दिल के रूप में माना जाता है। यह पूर्व रॉयल पैलेस नारायणहिती की ओर जाता है के रूप में, दरबार मार्ग भी विदेशियों के बीच राजा के तरीके के रूप में जाना जाता है। यह Thamel के बाद एक प्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र है। दरबार मार्ग लक्जरी होटल, अंतरराष्ट्रीय व्यंजनों, pricey बुटीक, ट्रैवल एजेंसियों और एयरलाइन कार्यालयों की सेवा रेस्तरां के साथ काठमांडू के एक पॉश क्षेत्र है।

काठमांडू शब्द संस्कृत शब्द काष्ठमण्डप का अपभ्रंश है। काष्ठमण्डप इस नगर के मध्य में अवस्थित एक गोरखनाथजी का मंदिर और प्राचीन समय में यात्रुऔं का विश्रामस्थल है। यह भवन एक ही वृक्ष का काष्ठ प्रयोजन करके बनाया गया था। इस वैभवशाली भवन के नाम से इस नगर का नामाकरण किया गया। ऐसा विश्वास है कि इस नगर का मध्यकालीन नाम कांतिपुर इस नगर के कांति और वैभव के लिए रखा गया था। इस नगर का नेपालभाषा का नाम येँ है। यह नाम प्राचीन नेपालभाषा का ञें का अपभ्रंश है। यह नाम का उत्त्पत्ति किरांत काल मे हुवा था।

काठमांडू के सबसे प्राचीन सभ्यता का ऐतिहासिक प्रमाण नही है, परन्तु इस के बारे में विभिन्न धार्मिक पुस्तक एवं वंशावलीयौं मे लिखा हुवा है। स्वयंभू पुराण अनुसार काठमांडू उपत्यका एक विशाल तालाब था। महाचीन के बोधिसत्त्व मंजुश्री ने इस तालाब के दक्षिणी भाग में अवस्थित कक्षपाल पर्वत और गुह्येश्वरी क्षेत्र में अपने चन्द्रह्रास खड्ग से प्रहार करके इस तालाब के पानी को निकाल दिया। भूगोलविद भी यह तथ्य मानते है कि काठमाडौं पहले एक तालाब था। मंजुश्री ने धर्म रक्षित राज्य स्थापना करने के लिए एक मंजुपतन नगर का स्थापना किया (हाल के मजिपात टोल के स्थान में) और धर्माकर को इस नये राज्य का राजा बनाकर चीन लौटे।

मंजुश्री (चन्द्रह्रास खड्ग सहित), बोधिसत्त्व जिन्हे काठमांडू निर्माण का श्रेय दिया जाता है।
गोपाल वंशावली अनुसार गोपाल वंश के लोग इस स्थान में भगवान श्रीकृष्ण के अनुयायी के रूप में गाय चराते हुए इस स्थान पर पहुंचे और यहा बस गए।

परापूर्वकाल
पुरातात्विक खुदाइ से मिले जानकारी अनुसार काठमांडू मध्य हिमाली क्षेत्र के प्राचीनतम बस्ती में से एक है। विभिन्न खुदाइ से १६७ इपू से लेकर १ इसं का ईंट काठमांडू और इस के आसपास के क्षेत्र में मिला है।

लिच्छविकाल
लिच्छवि वंश के राजा गुणकाम देव के समय से पहले काठमांडू में (हाल के काठमांडौं महानगरपालिका के कोर सिटी में) दक्षिण में दक्षिण कोलिग्राम (मंजुपत्तन/यंगाल) और उत्तर में यंबु /कोलिग्राम (गौ पालकौं का बस्ती) नामक दो अलग अलग बस्ती थे। यह दो बस्ती एक खड्ग आकार के उठा हुआ जमिन पर अवस्थित था जिस के तीन तरफ नदी या जल थे (विष्णुमती, बागमती और टुकुचा) और एक तरफ क्लिफ के निचे जंगल था। सामरिक दृष्टिकोण से यह जगह नगर बनाने के लिए उपयुक्त था। अतः, गुणकामदेव नें इन दो बस्तीयौं के बीच में (दोनों बस्तीयौं को समायोजित करके) विष्णुमती नदी के किनारे कांतिपुर नगर स्थापना किया। यह नगर के चारौं तरफ खडग आकार में अष्टमात्रिका वा अजिमायुक्त शक्तिपीठौं (दुर्ग) का स्थापना किया, जो अभी भी शक्तिपीठौं के रूप में पुजित है। नेपाल के पहाडीयौं के बीच कांतिपुर जैसा सुरक्षित नगर के स्थापना से भारत और चीन-तिब्बत के बीच मे व्यापार सहज हो सकता था। अतः, गुणकामदेव नें इस नगर में व्यापारिक सुविधा के हेतु चक्राकार में व्यापारिक क्षेत्र स्थापना किया।

ऐसा माना जाता है कि नेपाल संबत के एक माह येँला (कान्तिपुर का माह) और उस माह के पुर्णिमा में मनाया जानेवाला येँया पुन्हि वा इन्द्र जात्रा कान्तिपुर के स्थापना के उपलक्ष्य पर गुणकामदेव नें मनाना शुरु किया था। इस माह में दक्षिण कोलिग्राम का लाखेजात्रा उत्तर में और कोलिग्राम का पुलुकिसि (ऐरावत) नृत्य दक्षिण में नचाया जाता है।

मल्लकाल
सन १२०० से सन १७६८ तक इस नगर में मल्ल राजाऔं का राज रहा। मल्लकाल में यह नगर नेपाली मल्ल गणराज्यौं मे से एक कांतिपुर राज्य का राजधानी रहा। इस काल में यह नगर में कला का बहुत विकास और विस्तार हुआ। यह नगर के ज्यादा मंदिर, चैत्य आदि इसी काल में निर्माण हुआ था। इस काल में इस नगर में धार्मिक सहिष्णुता, तंत्र विद्या, वास्तु, अर्थतंत्र आदि का विकास एवं विस्तार हुआ। इस काल में कांतिपुर लगायत के नेपाली मल्ल गणराज्य में रहने वाले विभिन्न नश्ल, धर्म, जाति आदि के लोगों नें एक संगठित राज्य का रूप लिया और इस राज्य में रहने वाले लोगों को नेपामि, नेवा वा नेपाली कहा गया।
सन १७६० के दशक में काठमांडू मे आए हुए क्रिस्चियन पादरी नें उस समय में काठमांडू में १८,००० होनेका जिकर किया है।

शाहकाल
गोरखा के राजा पृथ्वी नारायण शाह ने 1768 में मल्ल गणराज्य का अन्त्य कर गोर्खाली नेपाल राज्य का स्थापना किया। गोर्खालीद्वारा कान्तिपुर नगर के विजय के साथ ही कान्तिपुर नगर वा काठमांडू गोर्खाली नेपाल का राजधानी बन गया। शाह के हुकुम में राणाऔं के समय में इस नगर में राजप्रासाद तथा महल निर्माण में नेपाली वास्तु का प्रयोजन छोडकर मुघल एवं पाश्चात्य वास्तु का अनुशरण शुरु हुआ। राणाऔं के समय में बना सिंह दरबार एक विश्वप्रसिद्ध दरबार है जिसमे अभी नेपाल के प्रधानमंत्री लगायत प्रायः मंत्रालय, सर्वोच्च अदालत आदि अवस्थित है। सन १९३४ का महाभूकंप नें नगर के प्रायः क्षेत्र को ध्वस्त कर दिया। परन्तु, इस भूकंप के बाद यह नगर पहले के ही स्वरूप में फिर बनाया गया।भूकंप के बाद नगर में न्यु रोड नामक मार्ग बनाया गया जहां बेलायती शैली में घर, पार्क, दोकान, सिनेमाघर आदि का निर्माण किया गया। 1950 में इस शहर की सीमाएं विदेशी पर्यटकों के लिए खोली गईं थीं। तब से आज तक सैलानियों के यहां आने का सिलसिला जारी है।

भूगोल और मौसम

काठमांडू 1,300 मिटर की ऊंचाई पर अवस्थित है। इस नगर के सीमा इस प्रकार है-
•    दक्षिणः ललितपुर उप महानगरपालिका
•    दक्षिण-पश्चिम :कीर्तिपुर नगरपालिका
•    पश्चिम :तीनथाना, स्युचाटार, बलम्बु, पुरानो नैकाप, नयां नैकाप, रामकोट, दहचोक, भीमढुंगा, सीतापाइला
•    पूर्व : मध्यपुर थिमि
•    उत्तर : काठमांडू जिला के कुछ गाविस

यह नगर से आठ नदी बहती है। यह नगर का मौसम टेम्परेट है और इस नगर में चार ऋतु होते है। इस नग का तापक्रम १ डिग्री सेल्सियस से ३५ डिग्री सेल्सियस तक होता है।यह नगर का वार्षिक वृष्टि 1,407 मिमि है जिस मे से ज्यादातर जुन से अगस्त तक होता है।

दरबार मार्ग का निर्माण राणा वंश के शासन काल में हुए नगर विस्तार के दौरान किया गया था। यह काठमांडू पर्यटन का मुख्य केंद्र है। यहां पर महंगे होटल, रेस्टोरेंट, ट्रैवल एजेंसियां और एयरलाइंस ऑफिस मिल जाएंगे। दरबार मार्ग जंक्शन के बीच में पूर्व राजा महेंद्र की प्रतिमा लगी हुई है। इसके अलावा यहां पर बहुत से प्राचीन मंदिर और धार्मिक स्थल हैं जहां पर नेपाल की संस्कृति के दर्शन किए जा सकते हैं।

मेरा ऐसा मानना है की दुनिया भर में नेपाल स्विट्जर लैंड के बाद दूसरा ऐसा देश है जो एक स्वन्तः सुखाय की दृष्टी से परिपूर्ण है. आप किस प्रवित्ति के है वो संसाधन यहाँ मिल जायेगा...

नेपाल एडवेंचर के लिए भी जाना जाता है जहा आप बंजी, राफ्टिंग, पैरा ग्लाइडिंग  या ( adventure travel) या  जिसमें यात्री रोमांच के लिए खोजयात्रा करता है या जोखिम अनुभव करने की चेष्टा में संकटजनक (वास्तविक या प्रतीत होने वाले) गतिविधियों में भाग लेता है। इस श्रेणी में पर्वतारोहण, कुछ प्रकार के वनभ्रमण, गहरी-अंधेरी गुफ़ाओं में प्रवेश, युद्धग्रस्त क्षेत्रों का भ्रमण, पर्वतारोहण, ट्रैकिंग, बंजी जंपिंग, माउंटेन बाइकिंग, कैनोइंग, राफ्टिंग, कयाकिंग, ज़िप अस्तर, पैराग्लाइडिंग, सेड्बोरडिनग, केविनग् और रॉक क्लाइम्बिंग का आनंद ले सकते हैं



प्रकृति के अनूठे सौंदर्य, उगते व अस्त होते सूरज की लालिमा, बर्फ से ढकी चोटियां, हरी-भरी वादियां, घने जंगल और जंगलों में स्वच्छंद रूप से विचरते जानवरों की दिनचर्या को बहुत पास से देखकर आंखों के रास्ते मन में भर लेने का सुख भला कौन नहीं लेना चाहेगा। इन सबके अलावा नेपाल के प्राचीन मंदिरों के दर्शन कर पर्यटकों के सिर श्रद्धाभाव से स्वयं ही झुक जाते हैं। नेपाल की राजधानी काठमांडू में खरीदारी का भी खूब लुत्फ उठाया जा सकता है। यहां के बाजार विदेशी सामानों से अटे पड़े हैं। काठमांडू में एक ओर शाम को रंगीन बनाने के लिए कैसीनो का बंदोबस्त है तो दूसरी ओर यहां जाम छलकाते हुए गीत, संगीत व नृत्य के साथ ताश के पत्तों का मजा भी लिया जा सकता है। प्रकृति की गोद में मौज-मस्ती का यहां पूरा लुत्फ ले सकते हैं।शाम को रंगीन बनाने के लिए काठमांडू में डिस्को, गजल व डांस, स्नूकर, विडियो गेम्स और बाउलिंग जैसी तमाम सुविधाएं हैं। साथ ही दमदार कैसीनो शाम की उत्तेजना बढ़ाने के लिए अपनी चमक बिखेरते हैं। ताश के शौकीन लोग यहां कई तरह के गेम्स खेल सकते हैं।

जैसे नेपाल इन चीजो के लिए जाना जाता है वैसे ही यहाँ के लोग है, खुली सभ्यता के लोग है, आज तक मैंने ये नहीं सुना की कभी किसी लड़की को किसी ने बोल दिया है, लडकियों का पहनावा भी एक दम खुला है,चाय की दुकानों पर आसानी से मदिरा उपलब्ध है, वैसे कपने यहाँ कहा जाता है की मांस और मदिरा तामस को जनम देता है, लेकिन नेपाल में ऐसा कुछ नहीं दीखता , शराब की दुकान हो या अनाज की दुकान कपडे की दुकान या बैंक एयर lince वहा लडकियों को ही प्राथमिकता देते है, नेपाल की अपनी कमाई मुझे लगता है नेपाली लोग विदेशो में ही रोजगार करते है, दुनिया भर में इनकी मांग है, खास कर सेना में, इनोवेटिव भी है ये, कुछ नया करते रहते है, प्रससान भी चुस्त दुरुस्त है, आप किसी पुलिस में पास हथियार नहीं दिखेगा, कोर्ट कचहरी का ज्यादा कोई लफड़ा नही है , नेपाली समाज के लोग प्रगत शील है वहां सरकारी कर्मचारी रिश्वत नहीं लेते। पर भारतीयों पर भरोसा नहीं करते और अक्सर नियम-कानून तोडऩे पर भारतीय दंडित होते रहते हैं। और वो अपने स्वान्तः सुखी के अनुसार दान दक्षिणा का प्रावधान करते है,  यहाँ का देश भक्ति का राष्ट्रिय वाक्य:  “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” वहां ‘गंगा कसम’ या ‘खुदा कसम’ जैसी रवायतें नहीं हैं। सब कुछ साफ और पारदर्शी। शराब की नदियां भले बहती हों पर शराब पीकर गाड़ी चलाई नहीं कि लाइसेंस गया जीवन भर के लिए मिला कर लोग सिस्टम में चलने के आदि है, लेकिन हम भारतीयों को सिस्टम कहा पसंद है, अपन तो जहा से चलते है, भीड़ वही से सुरु, इस बात से नेपाली छिड़ते है क्यों की नेपाल की अर्थ ब्यवस्था भारतीयों के हाथ में है, इस लिए नालियों के लगता है की भारतीय लोग उनके साथ प्ले कर रहे है, चाहे वो राजनीती हो या हिंसात्मक  उस बारे में शम्भू सर के ये लेख रोचक है : 

भारत की हार पर नेपाल में दीवाली

नेपाल में साप्ताहिक अवकाश शनिवार को होता हैं.सीता का जन्म स्थल मिथिला Nepal में हैं. जहाँ भारत में राम जन्म स्थल में राम लला केवल एक टेंट के नींचे हैं तो वही जनकपुर, Nepal में सीता जन्म स्थल में विशाल सीता मंदिर भी बना हुआ हैं.पानी इकट्ठा करने के मामले में Nepal दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं.
Nepal कभी चरस-तंबाकू आदि के लिए बहुत Famous था. लेकिन अब यहां चरस, तंबाकू खरीदना, बेचना और इस्तेमाल करना गैरकानूनी है.नेपाल में हाथ मिलाकर या गले लगकर नहीं, बल्कि हाथ जोड़कर अभिवादन करने की परंपरा हैं.Nepal एक हिंदूराष्ट्र हैं, यहां की कुल जनसंख्या में से 81.3% हिंदू हैं.
Nepal में भगवान बुद्ध के प्रति लोगों में जबरदस्त श्रद्धा की भावना देखी जा सकती हैं. महाशिवरात्रि नेपाल का बहुत बड़ा त्योहार हैं.

बात चित का सारांश कुछ यु ही की महज  भौतिक सुख-सुविधाओं की ओर ध्यान ना देकर आध्यात्मिकता और मानव चेतना को समर्पित करते हुए किसी देश को बनाने की कल्पना पूरे विश्व में अनूठी है। ऐसा करने वाले देश शायद तिब्बत और नेपाल ही हैं। और मेरा सौभाग है की मै पिछले १२ सालो से देख रहा हु नेपाल को 

नेपाल देश भले ही छोटा हो, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से यह खासा महत्वपूर्ण है। हालांकि अस्थिरता के कारण यह देश अपने आध्यात्मिक खजाने को संभाल नहीं पाया और अब इस पर आधुनिकता की परत चढ़ रही है:

नेपाल अध्यात्म की भूमि है और एक समय में यह जगह पूरी तरह से जिंदगी के आध्यात्मिक पहलुओं से जुड़ी हुई थी। दुर्भाग्य से इस देश को राजनैतिक और आर्थिकस्तर पर बेहद उठा-पटक और पतन का दौर देखना पड़ा। इसी वजह से वे अपने यहां हुए इस उम्दा काम को जो कई सौ सालों में हुआ था, सही तरह से सहेज कर नहीं रख पाए। जो हम आज देख रहे हैं, वे दरअसल बचे हुए अवशेष हैं। लेकिन जो कुछ भी बचा है, वह भी असाधारण है।, हा नेपाल मुझे इस लिए पसंद आता है की नेपाल में अध्यात्म के साथ संस्कृति की भी झलक मिलती है , खुले विचार के लोग है , जीवन जीना जानते है, मेरी तरह नैरो दिमाक के नहीं, हर आदमी यहाँ मेहनत कश है, सभी कर्म पर ही विश्वास करते है, लोगो की लाइफ स्टाइल अलग ही है, लडकियों को पूरी स्वयत्ता के साथ लालन पोषण के साथ किया जाता है और लडको के उनके पैर पर खड़ा होना सिखाया जाता है, लोग अपने बच्चे को बिना मोह माया के छोटे ही उम्र में जीवन से लड़ने के लिए भेज देते है, लेकिन हम डरते है, उसके कुछ फायदे है तो कुछ नुकसान भी, लेकिन हम फायदे से ज्यादा नुकसान के बारे में सोचते है

फ़िलहाल समय कम था तो शाम की भेट के आदेश के बाद निकल लिए हम और शाम पुनः पहुच गए होटल में, होटल के बाहर निकले और चल पड़ पशुपति नाथ के तरफ, मुझे तो आप से कुछ सीखना ही था तो मैंने आप के किसी प्रश्न का जवाब नहीं दिया वो यहाँ लिख रहा हु

नेपाल का पशुपतिनाथ तांत्रिक विद्या का सबसे प्रमुख मंदिर में जाना जाता है  कुछ मायनों में तमाम मंदिरों में सबसे प्रमुख माना जाता है। ‘पशुपति’का अर्थ है – पशु मतलब ‘जीवन’और ‘पति’मतलब स्वामी या मालिक, यानी ‘जीवन का मालिक’ या ‘जीवन का देवता’। पशुपतिनाथ दरअसल चार चेहरों वाला लिंग हैं। पूर्व दिशा की ओर वाले मुख को तत्पुरुष और पश्चिम की ओर वाले मुख को सद्ज्योत कहते हैं। उत्तर दिशा की ओर देख रहा मुख वामवेद है, तो दक्षिण दिशा वाले मुख को अघोरा कहते हैं।

नेपाल अध्यात्म की भूमि है और एक समय में यह जगह पूरी तरह से जिंदगी के आध्यात्मिक पहलुओं से जुड़ी हुई थी।

ये चारों चेहरे तंत्र-विद्या के चार बुनियादी सिद्धांत हैं। कुछ लोग ये भी मानते हैं कि चारों वेदों के बुनियादी सिद्धांत भी यहीं से निकले हैं। माना जाता है कि यह लिंग, वेद लिखे जाने से पहले ही स्थापित हो गया था और इससे कई पौराणिक कहानियां भी जुड़ी हुई हैं। इनमें से एक कहानी इस तरह है- कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद अपने ही बंधुओं की हत्या करने की वजह से पांडव बेहद दुखी थे। उन्होंने अपने भाइयों और सगे संबंधियों को मारा था। इसे गोत्र वध कहते हैं। उनको अपनी करनी का पछतावा था और वे खुद को अपराधी महसूस कर रहे थे। खुद को इस दोष से मुक्त कराने के लिए वे शिव की खोज में निकल पड़े।
गूगल की कहानियो के अनुसार  शिव नहीं चाहते थे कि जो जघन्य कांड उन्होंने किया है, उससे उनको इतनी आसानी से मुक्ति दे दी जाए। इसलिए पांडवों को अपने पास देखकर उन्होंने एक बैल का रूप धारण कर लिया और वहां से भागने की कोशिश करने लगे। लेकिन पांडवों को उनके भेद का पता चल गया और वे उनका पीछा करके उनको पकड़ने की कोशिश में लग गए। इस भागा दौड़ी के दौरान शिव जमीन में लुप्त हो गए और जब वह पुन: अवतरित हुए, तो उनके शरीर के टुकड़े अलग-अलग जगहों पर बिखर गए।

नेपाल की पूरी भौगोलिक स्थिति को इस्तेमाल करते हुए एक तांत्रिक शरीर की रचना की, ताकि वहां रहने वाले सभी लोग और हरेक प्राणी एक बड़े मकसद के साथ जिए।

नेपाल के पशुपतिनाथ में उनका मस्तक गिरा था और तभी इस मंदिर को तमाम मंदिरों में सबसे खास माना जाता है। केदारनाथ में बैल का कूबड़ गिरा था। बैल के आगे की दो टांगें तुंगनाथ में गिरीं। यह जगह केदार के रास्ते में पड़ता है। बैल का नाभि वाला हिस्सा हिमालय के भारतीय इलाके में गिरा। इस जगह को मध्य-महेश्वर कहा जाता है। यह एक बहुत ही शक्तिशाली मणिपूरक लिंग है। बैल के सींग जहां गिरे, उस जगह को कल्पनाथ कहते हैं। इस तरह उनके शरीर के अलग-अलग टुकड़े अलग-अलग जगहों पर मिले ।

उनके शरीर के टुकड़ों के इस तरह बिखरने का वर्णन कहीं न कहीं सात चक्रों से जुड़ा हुआ है। इन मंदिरों को इंसानी शरीर की तरह बनाया गया था। यह एक महान प्रयोग था- इसमें तांत्रिक संभावनाओं से भरपूर इंसान का एक बड़ा शरीर बनाने की कोशिश की गई थी। पशुपतिनाथ दो शरीरों का सिर है। एक शरीर दक्षिणी दिशा में हिमालय के भारतीय हिस्से की ओर है, दूसरा हिस्सा पश्चिमी दिशा की ओर है, जहां पूरे नेपाल को ही एक शरीर का ढांचा देने की कोशिश की गई थी। नेपाल को पांच चक्रों में बनाया गया था।

इस तरह से उन्होंने नेपाल की पूरी भौगोलिक स्थिति को इस्तेमाल करते हुए एक तांत्रिक शरीर की रचना की, ताकि वहां रहने वाले सभी लोग और हरेक प्राणी एक बड़े लक्ष्य के साथ जिए। जब मैं तंत्र की बात करता हूं, तो मेरा मतलब स्वछंद यौन संबंधों से नहीं है। मेरा मतलब रस्मों, पूजा-पाठ के तरीकों या दूसरी बातों से भी नहीं है। दरअसल, मेरा मतलब जिंदगी को बनाने और मिटाने के विज्ञान से है। आप में से कइयों ने कुछ तांत्रिक तस्वीरें देखी होगी, जहां तंत्र-मंत्र करने वाले अपना सिर काटकर, उसे हाथ में लेकर चलते हैं। ये तस्वीर आपको यही बताने की कोशिश करते हैं कि तंत्र-मंत्र का अभ्यास करने वाला दरअसल जीवन देना और इसे नष्ट करना सीखता है। वह जीवन के एक रूप को दूसरा रूप दे सकता है।

यही वजह है कि इस भूमि पर इतना बलि दी गई है। अगर आप यहां साल में कुछ खास मौकों पर आएं, तो इसी बलि की वजह से ही आपको काठमांडु की सड़के लाल रंग में रंगी नजर आएंगी। इसे जानवरों के अधिकारों से जोड़कर देखें, तो हो सकता है कि आप इसे पसंद न करें। लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि उन्हे आपकी बलि देने से भी गुरेज नहीं होगा। दरअसल, उनका मकसद ही बिल्कुल अलग है। वे जिंदगी के बारे में आपकी तरह से नहीं सोचते हैं। आज भी इस सभ्यता की सोच पूरी तरह परम मुक्ति की है।

यहां एक जगह पर आपको जरूर जाना चाहिए और वह है भक्तपुर। यहां अवशेषों से आपको जानने को मिलेगा कि कभी पूर्वी संस्कृति कैसी होती थी। भक्तपुर एक ऐसा शहर है, जिसे इस तरह तैयार किया गया था कि यहां आने वाले को हर कदम पर ईश्वरीय शक्ति का आभास हो। भक्तपुर का मतलब भी यही है। तभी तो यहां हर पड़ाव वास्तव में एक मंदिर है। यहां पानी पीने की जगह भी एक मंदिर है, साफ-सफाई की जगह भी एक मंदिर है और यहां तक कि बात करने की जगह भी एक मंदिर ही है।

यानी जब हम भक्तपुर में जाते हैं, तब हम वक्त के 1100 साल पुराने दौर में होते हैं। और सोचिए, तब वक्त कैसा होता होगा- जब महिलाएं सिर्फ लाल रंग के वस्त्रों में होतीं थीं और पुरुष सफेद रंग पहना करते थे। लोग ईंटों की जिन इमारतों में रहते थे, वो आज भी खड़ी हैं। यहां कई लोग आज भी उन्हीं घरों में रहते हैं, जहां 1100 साल पहले उनके पूर्वज रहते थे।

हालांकि भक्तपुर अब कई तरीकों से नष्ट होने की कगार पर है, लेकिन आज भी यहां आने पर आपको अहसास होगा कि हजारों साल पहले के लोगों में कैसा जबर्दस्त सौंदर्य-बोध था। किसी भी चीज को सिर्फ खूबसूरती देने में कितनी मेहनत की थी उन लोगों ने। लेकिन आज कंक्रीट की आधुनिक इमारतों, बेतरतीब से लगे साइन बोर्ड, प्लास्टिक की बोतलों और प्लास्टिक से बने दूसरे सामानो का ढेर देखकर और भक्तपुर की पतली गलियों से शोर मचाते व धुआं उगलते वाहनों को गुजरते देखकर तो लगता है कि हम पावन व पवित्र से भ्रष्ट व अपवित्र की ओर जा रहे हैं।

फ़िलहाल अब नेपाल कागुण गान बंद करते है, आज शम्भू सर की पूरी रिपोर्ट आ गए हैआप यहाँ देख सखते हैज्यादा आप को समझना है तो भारतीय दूतावास के फेसबुक को यहाँ देखे 

नेपाल को अब छोटू समझने की भूल न करे भारत!
लिंक : http://www.khabarnonstop.com (काठमांडू से लौटकर शंभूनाथ शुक्ल)
पूरे तेरह दिन बाद दिल्ली लौटा हूं। इन तेरह दिनों में छह दिन तो नेपाल में गुजारे और पांच दिन वाराणसी में तथा बाकी के दो दिन दिल्ली से बनारस की यात्रा में। अब काठमांडू की विशेषता बताऊँ अथवा बनारस की इस विषय पर दिग्भ्रमित हूं। दोनों ही शहर बेमिसाल हैं। एक विश्वनाथ का तो दूसरा पशुपति नाथ का। एक शिव के त्रिशूल पर टिका है तो दूसरा त्रिशली के उदगम के समीप। पर दोनों की अपनी मस्ती है। बनारस में गोदोलिया में भांग डालकर लस्सी पी सकते हैं, मात्र पचास रुपये में दो लोग भरपेट पूरी-सब्जी खा सकते हैं और फिर बनारसी पान का बीड़ा दबाकर शाम सात बजे से रात दस बजे तक कुल दो हजार में नाव कर राजघाट से असीघाट तक मस्ती कर सकते हैं। यह शिव की नगरी है। यहां भारी संख्या में मुस्लिम हैं तो इतनी ही आबादी हिंदुओं की भी होगी। देश के हर हिस्से के लोग यहां मिलेंगे पर सब भोजपुरी अपने-अपने अंदाज में बोलते हुए। यहां मराठे हैं, मारवाड़ी-गुजराती-पंजाबी और बंगाली हैं। आंध्र के हैं तो तमिलनाडु और केरल-कर्नाटक के भी। सब हैं बनारस में पर रहते हैं रसिया बनकर ही। बीएचयू के कलाभवन में एक विद्यार्थी हमारा स्वयंभू गाइड बन गया। वह जेआरएफ था और किन्हीं खान साहब के अंडर में पीएचड़ी कर रहा था। वह जितनी श्रद्घा से खान साहब के गुण गा रहा था उतनी ही श्रद्घा से मुझे विश्वनाथ मंदिर में जाकर दर्शन करने और गंगा आरती देखने को प्रेरित भी कर रहा था। बहराइच के उस बालक का नाम मैने नहीं पूछा। ताकि यह न पता चले कि वह हिंदू था या मुसलमान और अगर हिंदू था तो ब्राह्मण था या ठाकुर अथवा कायस्थ या बनिया-यादव-कुर्मी या जाटव। ऐसी काशी नगरी पर कौन न मर मिटे।

नेपाल की राजधानी काठमांडू तो और भी विचित्र। पहले तो भैरहवा दाखिल होते ही हमें चाय की दूकानों पर चाय कम बियर और व्हिस्की ज्यादा बिकती मिलीं और बेचने वाला कोई पुरुष नहीं बल्कि महिलाएं ही होतीं। जिस अंदाज से कोई पुरुष आकर व्हिस्की खरीदता उसी अंदाज और मस्ती में लड़कियां भी। लेकिन क्या मजाल कि कोई छेडख़ानी हो जाए। यह कोई कम आश्चर्य की बात नहीं कि इस छोटे से देश नेपाल के लोग इतने संयमी व अनुशासन के पाबंद हैं कि हमारे फेसबुक मित्र और काठमांडू वासी श्री राजीव मिश्र ने बताया कि पिछले पंद्रह वर्ष से वे काठमांडू में रह रहे हैं पर आज तक किसी रेप या छेड़छाड़ की घटना न उन्होंने सुनी न पढ़ी। काठमांडू हो या पोखरा हर दूकान का नामपट नागरी लिपि में और सन की बजाय हर जगह विक्रमी संवत का ही प्रयोग। हिंदुओं की भक्ति देखनी हो तो नेपाल आकर देखिए मगर न तो जातिभेद न सांप्रदायिक भेद। आप मुसलमान हैं तो बने रहिए। ईसाई हों या यहूदी नेपाल में सब बसे हैं पर किसी के अंदर किसी को लेकर डर नहीं है। दशहरा यहां का मुख्य त्योहार है फिर शिवरात्रि। अन्य त्योहार अपने-अपने समुदाय मनाएं। फिर वह चाहे ईद हो या बकरीद या क्रिसमस अथवा रामनवमी या कृष्ण जन्माष्टमी।

नेपाल में सर्वाधिक आबादी हिंदुओं की है पर वे भारत के हिंदुओं की तरह न तो मुसलमानों से डरते हैं न ईसाइयों द्वारा धर्मान्तरण किए जाने से। वहां धर्म बदलने पर कोई बवाल नहीं मचता और कोई धर्म बदलता भी नहीं। वहां गोमाता तब तक ही माता है जब तक दूध देती है बाकी उसे काटो उन्हें फर्क नहीं पड़ता। एक वनप्रांतर में मुझे भूख लगी थी। वहां पर ढाबे की मालकिन दाल-चावल के साथ कुछ सब्जी जैसा पका रही थी। मैने पूछा- यह क्या है तो उसने बताया यह बाफा है। मुझे समझ नहंी आया तो मैने कहा चावल में थोड़ा सा बाफा मिला कर दे दो। वहां पर एक ट्रक ड्राइवर खड़ा था जो अपनी दाढ़ी और पहरावे से मुसलमान प्रतीत हो रहा था उसने आगे बढ़कर कहा कि अरे यह क्या कर रहे हो भाईजान? बाफा यानी भैंस का मीट। तब मैं बिदका। वह ट्रक ड्राइवर गोरखपुर का था। वहां बताया गया कि यहां बीफ भी खाते हैं पर चूंकि वह बहुत मंहगा है इसलिए उसे सिर्फ विदेशी यानी कि अंग्रेज ही खा पाते हैं। हर मंदिर में वहां भैंसे, कुत्ता, मुर्गा या बकरे की बलि देने की परंपरा है। पशुपति नाथ के मंदिर में जिस राग के साथ आरती होती है उसी विराग के साथ मृतक संस्कार भी। जीवन का यह भेद अनजान ही रहा मेरे लिए।

नेपाल छोटा मुल्क है पर गजब का अनुशासन। आप सड़क पर पेशाब नहीं कर सकते। हर जगह पब्लिक टायलेट्स बनी हैं। वहां जाइए। पांच रुपये पेशाब जाने के और दस रुपये शौच के। यहां तक कि हर छोटी जगह भी पब्लिक टायलेट्स हैं। छोटी-छोटी चाय की दूकानों पर भी। वहां शादियां कोई धूमधाम से नहीं होतीं। बस मंदिर जाएं और 501 रुपये नेपाली की फीस चुकाएं और वर-वधू बन कर लौटें। पिता और मां तथा बच्चे साथ में ही शराब पी लेते हैं। वहां हर चीज खूब मंहगी है और इस बहाने यह भी बताया जाता है कि “जन्म लिया है खेल नहीं है”, इसलिए राधा की तरह नाचो यानी कमाना सीखो। साठ हजार की पल्सर बाइक वहां पर दो लाख की है और ढाई लाख की मारुति साढ़े बारह लाख की। सस्ती से सस्ती नेपाली थाली भी दो सौ से कम की नहीं है। पर ठगी नहीं है, लूट नहीं है और बेईमानी नहीं है। वहां शासकीय कर्मचारी रिश्वत नहीं लेते। पर भारतीयों पर भरोसा नहीं करते और अक्सर नियम-कानून तोडऩे पर भारतीय दंडित होते रहते हैं। वहां ‘गंगा कसम’ या ‘खुदा कसम’ जैसी रवायतें नहीं हैं। सब कुछ साफ और पारदर्शी। शराब की नदियां भले बहती हों पर शराब पीकर गाड़ी चलाई नहीं कि लाइसेंस गया जीवन भर के लिए। वहां पर भारत के राजदूत श्री मनवीर सिंह पुरी ने इन सब बातों से हमें सतर्क कर दिया था और सलाह दी थी कि ऐसी हरकतें नहीं करें। मगर इसके बावजूद आम नेपाली जनमानस भारत की मौजूदा सरकार से खुश नहीं है। उसे लगता है कि भारत सरकार उसके साथ छोटू जैसा व्यवहार करती है। जैसे अभी भूकम्प के वक्त जो मदद की उसे इतना प्रचारित किया कि नेपाली जनता की सहानुभूति प्राप्त करने के भारत की सरकार को वहां घृणा से देखा जाता है। जबकि चीन, जापान और यहां तक कि पाकिस्तान के साथ उनका अपनापन अधिक है। बावजूद इसके कि नेपाल की नब्बे फीसदी जनता हिंदू है। हमें भारत स्थित नेपाली राजदूत श्री दीपकुमार उपाध्याय ने हालांकि कहा था कि ऐसा नहीं है पर वहां जाकर लगा कि ऐसा ही है।



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