post:


Saturday, August 22, 2015

'बना रहे बनारस' श्री विश्वनाथ मुखर्जी

ऐ बनारस बिन तेरे यह ज़िन्दगी वीरान है इस महानगरी का हर बाज़ार ज्यों शम्शान है चौक लहुराबीर अस्सी और लंका की अदाएं कौन जाने ज़िन्दगी में फिर कभी आएं न आएं क्या करेंगे यन्त्र बनकर सोच मन हैरान है ऐ बनारस बिन तेरे... उन मनोरम गालियों कि तिक्त मधु बौछार छूटी घाट पर जो रोज घटती अल्ह्डी गुंजार छूटी जो न तुझको जान पाया वो बड़ा अनजान है ऐ बनारस बिन तेरे... ज़िन्दगी क्या मौत में भी मस्तियाँ जो खोज लेता राव हो या रंक शिव का नाम वो हर रोज लेता शूल पर ठहरा शहर तिहुँलोक से भी महान है ऐ बनारस बिन तेरे... कुछ पता न तत्व क्या तुझमें जो मुझको खींचता है कौन सा सोता जो इस संतप्त दिल को सींचता है दम तेरे दामन में निकले बस यही अरमान है ऐ बनारस बिन तेरे…. (किसी अज्ञात लेखक की रचना ) 

बनारस और बनारसी किसी नियम-कानून की मर्यादा का पालन नहीं करते दिखते। अपनी सहूलियत के लिए वे जिस तरफ निकल पड़ते हैं, वही मार्ग होता है। बनारस का जीवन एक बेतरतीबी के सौन्दर्य रस से आच्छादित है। जहां मुंबई, दिल्ली और कानपुर जैसे शहर एक किस्म के रोड रेज जैसी बीमारी से ग्रस्त होते जा रहे हैं, बनारस में हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की संभावित मार्ग में निरन्तर डाका डालते रहता है, फिर भी कोई क्रोधित नहीं होता 

इस भौतिक युग में भी काशी का ठाट-बाट निराला है और जन-जन की बोली से जो रस टपकता है, उससे लगता है कि यहां के जनजीवन पर काशी के घाटों, मंदिरों और वेद मंत्रों के उच्चारण का सदाबहार प्रभाव है। कहते हैं कि चौसठ योगिनियों, बारह सूर्य, छप्पन विनायक, आठ भैरव, नौ दुर्गा, बयालीस शिवलिंग, नौ गौरी, महारूद्र, चौदह ज्योर्तिलिंग, काशी में ही हैं। अतः महाज्ञानी जब तक काशी में अपने ज्ञान की परीक्षा नहीं देता, तब तक उसका ज्ञान अधूरा रहता है। भगवान बुद्ध, शंकराचार्य, रामानुजाचार्या, गुरू नानक, गुरू रामदास, क्राइस्ट आदि ने यहां आकर अपने-अपने मतों का प्रचार किया और कबीर तुलसी जैसे संतों ने दुर्लभ साहित्य की रचना की। पुराण और महाभारत के रचयिता व्यासजी को काशी में मां अन्नपूर्णा के कोप का भाजन बनना पड़ा। पौराणिक काल में व्यासजी अपने विद्यार्थियों के साथ काशी वास की इच्छा से यहां आए। मां अन्नपूर्णा ने परीक्षा ली। तीन दिन तक उन्हें भिक्षा नहीं मिली तो वह भूख से पीडि़त होकर क्षुब्ध हो गए और श्राप दे दिया कि काशी में वास करने वाले तीन पीढ़ी तक विद्या, धन और मोक्षहीन होंगे। अन्नपूर्णा, व्यासजी के अहंकारपूर्ण श्राप से अत्यंत क्रोधित हुईं और उन्हें नगर से बाहर चले जाने की आज्ञा दी। व्यासजी का अहंकार नष्ट हो गया। उन्होंने मां अन्नपूर्णा से क्षमा मांगी। गंगा पार बसने और पर्वों के समय काशी नगरी में आने का आदेश मां अन्नपूर्णा ने उन्हें दिया। व्यासजी का प्राचीन मंदिर यहां राम नगर में व्यासपुरा में है।  

ऐसे बहुत सी कहानिया है बनारस के बारे में जिसे आप देख सकते है कमल नयन जी की सोच में 
                    किस्से शहर बनारस के


खैर हम बात कर रहे है 'बना रहे बनारस' जो श्री विश्वनाथ मुखर्जी की यह पुस्तक - सन 1958 में भारतीय ज्ञानपीठ, काशी ने छापी थी. उस समय पुस्तक की छपी कीमत है ढ़ाई रुपया. अब भी शायद 30-40 रुपये के आस-पास होगी. इस 188 पेज की पुस्तक में कुल 24 लेख हैं. अर्थात प्रत्येक लेख 7-8 पृष्ठ का है. सभी लेख बनारस से बड़ी सहज और हास्य युक्त शैली में परिचय कराते हैं. मेरे पास तो 1958 की छपी पुस्तक की फोटो कॉपी है. मैं यहां पुस्तक की लेखक द्वारा लिखी प्रस्तावना प्रस्तुत कर रहा हूं, और फिर पुस्तक के कुछ फुटकर अंश. बना रहे बनारस की प्रस्तावना: विश्वनाथ मुखर्जी के द्वारा बनारस और बनारस की मिट्टी से जिन्हें प्यार है!



Share This :

1 comment: