(६ मई २०१५- बुधवार, यात्रा का नौवा दिन)
आज नौ दिन सिर्फ अम्मा के साथ, शायद अपने होसो हवास में ४२ साल की इस उम्र में पहली बार, जो इतना समय बिताया माँ के संग, मन उदास हो चूका था की अब ये यात्रा ख़त्म होने के कगार पर, मेरी हालत ऐसे ही, जैसे किसी मुजरिम को फासी की सजा.. कैसे बीत गया ये नौ दिन, मै अपने को तो एकदम बच्चा ही समझ रहा था क्यों की माँ थी न मेरे पास, खैर अब तो चलना ही था, तो अम्मा को ले चल पड़े द्वारका स्टेशन, अगली ट्रेन जो थी मुंबई की .. उदास मन आज लगा की भगवान भी कोई चीज है..
आज नौ दिन सिर्फ अम्मा के साथ, शायद अपने होसो हवास में ४२ साल की इस उम्र में पहली बार, जो इतना समय बिताया माँ के संग, मन उदास हो चूका था की अब ये यात्रा ख़त्म होने के कगार पर, मेरी हालत ऐसे ही, जैसे किसी मुजरिम को फासी की सजा.. कैसे बीत गया ये नौ दिन, मै अपने को तो एकदम बच्चा ही समझ रहा था क्यों की माँ थी न मेरे पास, खैर अब तो चलना ही था, तो अम्मा को ले चल पड़े द्वारका स्टेशन, अगली ट्रेन जो थी मुंबई की .. उदास मन आज लगा की भगवान भी कोई चीज है..
"अजीब सौदागर हैं ये वक़्त भी.......जवानी का लालच दे के बचपन ले गया"
खैर इन शेर शायरियो की क्या वक्त माँ के प्यार के सामने.. वही बचपन .. लड़ना माँ से.. माँ चिल्लाती.. डाट खाता रहा, लेकिन मजा आया.. पता नहीं कल हम रहे या न
रहे.. इस उम्र में भी माँ का दुलार पाया ..
होटल से निकलने के बाद रास्ते में नास्ता पैक करा लिया था माँ के लिए, फल फुल के साथ, पहुच ही गए स्टेशन .. १२ बज चूका था १२.१५ की ट्रेन थी... लेकिन अपने किस्मत में कहा
राईट टाइम के ट्रेन .. ट्रेन जो ओखा से आने वाली, मात्र २८ किलो मीटर वो भी ४० मिनट लेट.. खैर प्लेटफॉर्म पर पहुच सामान रखा, और दौड़ा स्टेशन मास्टर के कमरे की तरफ ..इस यात्रा में एक गलती हो चुकी थी, सारा ट्रेन, होटल, टैक्सी सब की बुकिंग पहले ही कर चुके थे उसी क्रम में द्वारका मुंबई टिकट बनाने में हड़बड़ी में माँ के नाम के जेंडर पुरुष हो गया था .. खैर ये भारतीय रेल है.. ऐसी समस्यों का कोई निदान नहीं... उस समय गूगल में निदान मिला था, स्टेशन मास्टर ठीक कर सकता है अगर आप के पास दस्तावेज हो तो... अब वो जिसने भी लिखा था पता नहीं वो भारत का कौन सा प्रान्त था , लेकिन मै तो गुजरात में था, स्टेशन मास्टर साहब किसी खुबसूरत कन्या से साथ बात करने में ब्यस्त थे.. मै पंहुचा दाल भात में मुसरचंद की तरह.. खैर भारत की संस्कृति के तरह मुझे ऐसी ही जवाब की उम्मीद थी.. खैर कोई बात नहीं.. मन उदास हो गया मै तो ऐसी ब्यवस्था की कई बार मुकाबला कर चूका हु.. लेकिन साथ में माँ थी इस लिए डर लग रहा था.. कुछ गड़बड़ हुई तो अम्मा फिर चप्पल से मारेगी...सोचा चलो देखेगे.. जो होगा देखा जायेगा.. क्या होगा , फिर पेनाल्टी के साथ टिकट का दाम, उससे ज्यादा क्या . बाहर आये.. माँ के लिए नास्ता... कोल्ड ड्रिंक .. अपने टेंशन को दूर करने के लिए.. लेकिन अम्मा खाली कोल्ड ड्रिंक .. चलो कुछ तो खाया माँ ने..
इसी २० मिनट के ड्रामे में ट्रेन भी आ गयी ..
ट्रेन का शेड्दुल किस इस प्रकार था
राईट टाइम के ट्रेन .. ट्रेन जो ओखा से आने वाली, मात्र २८ किलो मीटर वो भी ४० मिनट लेट.. खैर प्लेटफॉर्म पर पहुच सामान रखा, और दौड़ा स्टेशन मास्टर के कमरे की तरफ ..इस यात्रा में एक गलती हो चुकी थी, सारा ट्रेन, होटल, टैक्सी सब की बुकिंग पहले ही कर चुके थे उसी क्रम में द्वारका मुंबई टिकट बनाने में हड़बड़ी में माँ के नाम के जेंडर पुरुष हो गया था .. खैर ये भारतीय रेल है.. ऐसी समस्यों का कोई निदान नहीं... उस समय गूगल में निदान मिला था, स्टेशन मास्टर ठीक कर सकता है अगर आप के पास दस्तावेज हो तो... अब वो जिसने भी लिखा था पता नहीं वो भारत का कौन सा प्रान्त था , लेकिन मै तो गुजरात में था, स्टेशन मास्टर साहब किसी खुबसूरत कन्या से साथ बात करने में ब्यस्त थे.. मै पंहुचा दाल भात में मुसरचंद की तरह.. खैर भारत की संस्कृति के तरह मुझे ऐसी ही जवाब की उम्मीद थी.. खैर कोई बात नहीं.. मन उदास हो गया मै तो ऐसी ब्यवस्था की कई बार मुकाबला कर चूका हु.. लेकिन साथ में माँ थी इस लिए डर लग रहा था.. कुछ गड़बड़ हुई तो अम्मा फिर चप्पल से मारेगी...सोचा चलो देखेगे.. जो होगा देखा जायेगा.. क्या होगा , फिर पेनाल्टी के साथ टिकट का दाम, उससे ज्यादा क्या . बाहर आये.. माँ के लिए नास्ता... कोल्ड ड्रिंक .. अपने टेंशन को दूर करने के लिए.. लेकिन अम्मा खाली कोल्ड ड्रिंक .. चलो कुछ तो खाया माँ ने..
इसी २० मिनट के ड्रामे में ट्रेन भी आ गयी ..
ट्रेन का शेड्दुल किस इस प्रकार था
Okha Saurashtra Mail - 19006 Train Okha Saurashtra Mail - 19006 from Okha to Mumbai Central passes through following stations:
| Station Name (Code) | Arrives | Departs | Stop time | Day | Distance |
|---|---|---|---|---|---|
| Okha (OKHA) | Starts | 12:25 | - | 1 | 0 km |
| Mithapur (MTHP) | 12:34 | 12:36 | 2 min | 1 | 10 km |
| Dwarka (DWK) | 12:56 | 12:58 | 2 min | 1 | 29 km |
| Bhatiya (BHTA) | 13:37 | 13:39 | 2 min | 1 | 71 km |
| Khambhaliya (KMBL) | 14:16 | 14:18 | 2 min | 1 | 114 km |
| Kanalas Jn (KNLS) | 15:00 | 15:02 | 2 min | 1 | 141 km |
| Jamnagar (JAM) | 15:33 | 15:35 | 2 min | 1 | 168 km |
| Hapa (HAPA) | 15:48 | 15:50 | 2 min | 1 | 177 km |
| Alia Bada (ALB) | 16:02 | 16:04 | 2 min | 1 | 186 km |
| Jam Wanthali (WTJ) | 16:15 | 16:17 | 2 min | 1 | 198 km |
| Padadhari (PDH) | 16:40 | 16:42 | 2 min | 1 | 228 km |
| Rajkot Jn (RJT) | 17:15 | 17:45 | 30 min | 1 | 253 km |
| Wankaner Jn (WKR) | 18:21 | 18:23 | 2 min | 1 | 294 km |
| Than Jn (THAN) | 18:50 | 18:52 | 2 min | 1 | 321 km |
| Surendranagar (SUNR) | 19:30 | 19:32 | 2 min | 1 | 369 km |
| Lakhtar (LTR) | 19:53 | 19:55 | 2 min | 1 | 390 km |
| Viramgam Jn (VG) | 21:04 | 21:06 | 2 min | 1 | 434 km |
| Sanand (SAU) | 21:39 | 21:41 | 2 min | 1 | 471 km |
| Ahmedabad Jn (ADI) | 22:25 | 22:50 | 25 min | 1 | 499 km |
| Nadiad Jn (ND) | 23:30 | 23:32 | 2 min | 1 | 545 km |
| Anand Jn (ANND) | 23:50 | 23:52 | 2 min | 1 | 563 km |
| Vadodara Jn (BRC) | 00:40 | 00:45 | 5 min | 2 | 599 km |
| Bharuch Jn (BH) | 01:33 | 01:35 | 2 min | 2 | 669 km |
| Surat (ST) | 02:30 | 02:35 | 5 min | 2 | 728 km |
| Navsari (NVS) | 02:59 | 03:01 | 2 min | 2 | 758 km |
| Valsad (BL) | 03:40 | 03:42 | 2 min | 2 | 797 km |
| Vapi (VAPI) | 04:05 | 04:07 | 2 min | 2 | 821 km |
| Palghar (PLG) | 05:06 | 05:08 | 2 min | 2 | 904 km |
| Borivali (BVI) | 06:05 | 06:07 | 2 min | 2 | 961 km |
| Dadar (DDR) | 06:40 | 06:42 | 2 min | 2 | 985 km |
| Mumbai Central (BCT) | 07:10 | Ends | - | 2 | 990 km |
समान ले माँ के साथ विराज हुवे ट्रेन की अपनी निर्धारित सिट पर... ट्रेन तो पूरी खाली.. मै अम्मा के साथ.. और कोई नहीं.. १ मिनट के विश्राम के बाद ट्रेन चल पड़ी ,
बस माँ चिल्लाने
लगी.. "नास्ता कैई ले १ बज गयल.." पाहिले तू खा, तब खाब, नहीं हम ता केला खाब, पेट ठीक नहीं हव.. माँ को निकल के फलो का झोला दिया माँ ने १ केला खाया, तब मैंने भी ४ पुड़ी खा ली.. खैर माँ की पसंद का और कुछ खाना खोज रहे थे.. लेकिन भारतीय रेल तो भारत का ब्यवसाय है.. जहा ग्राहक वही सेवा..
ट्रेन चल रह थी.. वहा इन्टरनेट के डाटा की सुविधा भी अच्छी नहीं तो माता जी के साथ बात चित.. २ घंटे अम्मा के साथ बात किया, समाज के बारे में.. अपने बारे में,
घर के बारे में.. अच्छा लगा माँ की बातो की सुन कर .. खैर ट्रेन चल रही थी... ट्रेन जहा रूकती.. वहा से २-४ यात्री चढ़ ही जाते ट्रेन में.. फिर भी ट्रेन खाली ही थी ..
जाम नगर पहुचते पहुचते ४.३० हो चूका था, तो वहा ट्रेन रुकी , हम भी उतर पानी ठंडा ले लिए, फिर राजकोट में चाय नास्ता किया क्यों की शाम का ६.३० हुवा था, ट्रेन
चल रही थी, १० बजा तो माता जी को मेरे खाने की चिंता होने लगी, उस
समय तक मोटी मोटा बोगी भर चुकी थी, अब आनंद स्टेशन आने वाला था सोचा ये तो अमूल
वालो का गाव है, वहा कुछ मस्त मिलेगा.. ट्रेन पहुची तो स्टेशन पर भी सन्नाटा ही था, फिर बोगी में ही खोज तलाश शुरू की , चलते चलते एक डिब्बे में अमूल की
लस्सी और दही मिल रहा था, सो अपने किये और अम्मा के लिए लेकर अपनी सिट पर आ गए.. खा ही रहे थे तभी एक खाने वाला आ गया "खाना-खाना" बस माता जी
ने १ शाकाहारी खाना बोल दिया, अम्मा तू ,हम न खाब , पेट भरल हव.. तब तक खाना वाला खाना भी ला दिया, अब तक की यात्रा में सबसे अच्छा खाना यही मिला ,
फिर भी माँ को जिद कर १ रोटी दही के साथ खिला ही दिये, फिर अपने बस्तर पर, बोगी में काफी लोग गुजरात के लोग मुंबई जा रहे थे, सब अपनी मण्डली में बात
चित कर रहे थे, उनकी बाते सुन्नते सुनते कब आख लग गयी, पता ही नहीं चला
लगी.. "नास्ता कैई ले १ बज गयल.." पाहिले तू खा, तब खाब, नहीं हम ता केला खाब, पेट ठीक नहीं हव.. माँ को निकल के फलो का झोला दिया माँ ने १ केला खाया, तब मैंने भी ४ पुड़ी खा ली.. खैर माँ की पसंद का और कुछ खाना खोज रहे थे.. लेकिन भारतीय रेल तो भारत का ब्यवसाय है.. जहा ग्राहक वही सेवा..
ट्रेन चल रह थी.. वहा इन्टरनेट के डाटा की सुविधा भी अच्छी नहीं तो माता जी के साथ बात चित.. २ घंटे अम्मा के साथ बात किया, समाज के बारे में.. अपने बारे में,
घर के बारे में.. अच्छा लगा माँ की बातो की सुन कर .. खैर ट्रेन चल रही थी... ट्रेन जहा रूकती.. वहा से २-४ यात्री चढ़ ही जाते ट्रेन में.. फिर भी ट्रेन खाली ही थी ..
जाम नगर पहुचते पहुचते ४.३० हो चूका था, तो वहा ट्रेन रुकी , हम भी उतर पानी ठंडा ले लिए, फिर राजकोट में चाय नास्ता किया क्यों की शाम का ६.३० हुवा था, ट्रेन
चल रही थी, १० बजा तो माता जी को मेरे खाने की चिंता होने लगी, उस
समय तक मोटी मोटा बोगी भर चुकी थी, अब आनंद स्टेशन आने वाला था सोचा ये तो अमूल
वालो का गाव है, वहा कुछ मस्त मिलेगा.. ट्रेन पहुची तो स्टेशन पर भी सन्नाटा ही था, फिर बोगी में ही खोज तलाश शुरू की , चलते चलते एक डिब्बे में अमूल की
लस्सी और दही मिल रहा था, सो अपने किये और अम्मा के लिए लेकर अपनी सिट पर आ गए.. खा ही रहे थे तभी एक खाने वाला आ गया "खाना-खाना" बस माता जी
ने १ शाकाहारी खाना बोल दिया, अम्मा तू ,हम न खाब , पेट भरल हव.. तब तक खाना वाला खाना भी ला दिया, अब तक की यात्रा में सबसे अच्छा खाना यही मिला ,
फिर भी माँ को जिद कर १ रोटी दही के साथ खिला ही दिये, फिर अपने बस्तर पर, बोगी में काफी लोग गुजरात के लोग मुंबई जा रहे थे, सब अपनी मण्डली में बात
चित कर रहे थे, उनकी बाते सुन्नते सुनते कब आख लग गयी, पता ही नहीं चला
मुम्बई ७ मई २०१५- गुरुवार ..(टैक्सी के द्वारा) :
तो माता जी ने ५.४० पर जगा दिया बम्बई आ गयल.. उठ.. " ए अम्मा सुता अभी रात हव" अभई टाइम हव.. अन्हार हव ".. अरे सचिन
मामा का फोन आ गयल.. उ
स्टेशन में पहुच गैएलन ... माता श्री की आवाज .. तो उठ ही गया.. मामा श्री के आदेशा अनुसार हमको बोरीवली उतरना था ! उस समय हमारी बोगी भी भरी ही थी.. पूछ
ताछ करने में पता चला की ३० मिनट लगेगा बोरीवली आने में, फिर गेट पर खड़े हो कर लगे मुंबई निहारने, भारत का एक महानगर जादुई सपनो के निर्माण(फिल्म) का
एक प्रमुख स्थान, प्रत्येक व्यक्ति एक बार इस महानगर को जरुर देखना चाहता हे। हर छोटे बड़े शहरों से यहाँ पहुचने के सभी साधन उपलब्ध हें।
हम अपने मामा जी के के घर गए थे.. वहा माता जी का आदेश था मामा जी के घर पर ही रुकना है तो वहा मैंने होटल का प्रभंध नहीं किया था ..अत: मुझे आवास
सम्बन्धी जानकारी नहीं थी..
खैर हम ६.४५ पर वोरिवली पहुच ही गए.. मामा जी स्टेशन पर इंतजार ही कर रहे थे..ट्रेन से अम्मा को ले कर निकले सामान ले, अब वहा से
लोकल ट्रेन पकड़ कर हमें भायंदर जाना था, मुंबई के लोकल ट्रेन की अजीब ही कहानी है, कोई स्लो, कोई फास्ट, सबके अपने ही नखरे है, खैर सामान उठा पटक कर कर
के मिल ही गयी फ़ास्ट ट्रेन विरार की तरफ जाने वाली, उसमे सवार हो हम माता जी के साथ पहुच गए भायंदर, फिर ऑटो से मामा जी के घर.. भारत के सभी महानगर,
कैसे जीते है लोग, छोटे कमरे, न हवा न धुप, न बगल वाले से मतलब, घर में मुख्य दरवाजे पर सुरक्षा के समुचित प्रबंध.. इस लिए मुझे मुंबई पसंद नहीं आता, अपुन तो
एक दम बनारसी स्टाइल में खुल कर जीने वाले आदमी.. एक छोटा सा २ कमरे का फ्लैट , जिसमे मामा मामी जी अपने २
बच्चो के साथ.. जैसे ४० नंबर के गंजी की
जगह ३० नंबर की गंजी पहन ली हो.. मामा जी के घर पहुच कर चाय पानी पि कर मामा जी के बेटे के साथ बाहर निकला, कैसा है भायंदर, देश के अन्य भागों की
जीवन पद्धति और मुंबई की जीवन पद्धति में अंतर स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। यहाँ की हवा में दोस्ती की एक अंतर्निहित भावना है और यहाँ आप व्यस्त रास्ते पर
चलती हुई टैक्सियों और स्काय वॉक पर चलने वाले राहगीरों को अनुशासन के एक विचित्र प्रकार के शिकंजे में देखेंगे जिसके वे अभ्यस्त हो गए हैं।, रस्ते में बहुत जगह ऐसे पोस्टर दिखे, सोचा दारू और सोडा मिलता है, लेकिन बाद में मतलब समझ में आया "दारू छुड़ाया जाता है ;) आधे घंटे घुमने के
बाद वापस आ गए, नहाया धोया, खाना पीना उसके बाद सोचा घुमने के लिए, एटनरी तो पहले से ही बना रखा था
मामा का फोन आ गयल.. उ
स्टेशन में पहुच गैएलन ... माता श्री की आवाज .. तो उठ ही गया.. मामा श्री के आदेशा अनुसार हमको बोरीवली उतरना था ! उस समय हमारी बोगी भी भरी ही थी.. पूछ
ताछ करने में पता चला की ३० मिनट लगेगा बोरीवली आने में, फिर गेट पर खड़े हो कर लगे मुंबई निहारने, भारत का एक महानगर जादुई सपनो के निर्माण(फिल्म) का
एक प्रमुख स्थान, प्रत्येक व्यक्ति एक बार इस महानगर को जरुर देखना चाहता हे। हर छोटे बड़े शहरों से यहाँ पहुचने के सभी साधन उपलब्ध हें।
हम अपने मामा जी के के घर गए थे.. वहा माता जी का आदेश था मामा जी के घर पर ही रुकना है तो वहा मैंने होटल का प्रभंध नहीं किया था ..अत: मुझे आवास
सम्बन्धी जानकारी नहीं थी..
लोकल ट्रेन पकड़ कर हमें भायंदर जाना था, मुंबई के लोकल ट्रेन की अजीब ही कहानी है, कोई स्लो, कोई फास्ट, सबके अपने ही नखरे है, खैर सामान उठा पटक कर कर
के मिल ही गयी फ़ास्ट ट्रेन विरार की तरफ जाने वाली, उसमे सवार हो हम माता जी के साथ पहुच गए भायंदर, फिर ऑटो से मामा जी के घर.. भारत के सभी महानगर,
कैसे जीते है लोग, छोटे कमरे, न हवा न धुप, न बगल वाले से मतलब, घर में मुख्य दरवाजे पर सुरक्षा के समुचित प्रबंध.. इस लिए मुझे मुंबई पसंद नहीं आता, अपुन तो
एक दम बनारसी स्टाइल में खुल कर जीने वाले आदमी.. एक छोटा सा २ कमरे का फ्लैट , जिसमे मामा मामी जी अपने २
बच्चो के साथ.. जैसे ४० नंबर के गंजी की
जगह ३० नंबर की गंजी पहन ली हो.. मामा जी के घर पहुच कर चाय पानी पि कर मामा जी के बेटे के साथ बाहर निकला, कैसा है भायंदर, देश के अन्य भागों की
जीवन पद्धति और मुंबई की जीवन पद्धति में अंतर स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। यहाँ की हवा में दोस्ती की एक अंतर्निहित भावना है और यहाँ आप व्यस्त रास्ते पर
चलती हुई टैक्सियों और स्काय वॉक पर चलने वाले राहगीरों को अनुशासन के एक विचित्र प्रकार के शिकंजे में देखेंगे जिसके वे अभ्यस्त हो गए हैं।, रस्ते में बहुत जगह ऐसे पोस्टर दिखे, सोचा दारू और सोडा मिलता है, लेकिन बाद में मतलब समझ में आया "दारू छुड़ाया जाता है ;) आधे घंटे घुमने के
बाद वापस आ गए, नहाया धोया, खाना पीना उसके बाद सोचा घुमने के लिए, एटनरी तो पहले से ही बना रखा था----सुबह ११ बजे..नेहरू प्लेनेटेरियम (साइंस सेंटर और फिल्म शो)
----दोपहर एक बजे गेट वे ऑफ़ इण्डिया देखा और बोट द्वारा समुद्र की सेर
----होटल ताज (नयी और पुरानी)
----दोपहर चार बजे --हैंगिंग गार्डन ,कमला नेहरू पार्क और बूट हाउस...
----मंत्रालय, विधानभवन ,
----शाम को सात बजे जुहू चौपाटी का भ्रमण..
----बीच-बीच में समय -समय पर ट्यूर गाइड में अन्य स्थानो के भी दर्शन जैसे
---हाजी अली की दरगाह,नरीमन पॉइंट, मेरीन ड्राइव, मालाबार हिल बीच केन्डी हॉस्पिटल,
जसलोक हॉस्पिटल, लीलावती हॉस्पिटल,..फिल्म स्टारों के बंगले...सचिन का नया घर, महालक्ष्मी रेसकोर्स,वानखेड स्टेडियम आदि.. लेकिन दिन का १२ बज चूका था माता जी
आराम के मुड में थी, बोली कल चलेगे, हमने भी कहा ठीक है, हम भी दुसरे कमरे में मामा जी
के बेटे के साथ बाच चित में ब्यस्त हो गए, ३ बज तो मामा जी माँ को
ले कर कही बाहर जानेका प्रोग्राम बना रहे थे, मामी जी भी साथ में, वो निकले पीछे से हम भी मामा जी के बेटे के
साथ निकल पड़े बाहर, मुंबई में सब कुछ मिलता है,
शॉपिंग से लेकर खाना और दर्शनीय स्थलों से लेकर प्रसिद्द नाईटलाईफ़ संस्कृति। इस शहर में ब्रांड खरीददारी के अलावा फैशन स्ट्रीट और बांद्रा में लिंकिंग रोड़ दो प्रमुख
रोड़ साईड शॉपिंग स्थल हैं। गर्म दोपहर में समुद्र के किनारे जाईये, पिकनिक की योजना बनाईये और समुद्र किनारे के मुंबई कुछ प्रसिद्द व्यंजनों जैसे सैंडविच, कुल्फी और
फालूदा, पानीपुरी और महाराष्ट्र के प्रसिद्द वडा पाव की विभिन्न शैलियों का आनंद उठा सकते है, लेकिन मुंबई तो अभी दूर था तो पास के ही मुंबई के उपनगर मीरा भयंदर की जैसलपार्क चैपाटी पर पहुच गए मामा जी के बेटे के साथ,
के बेटे के साथ बाच चित में ब्यस्त हो गए, ३ बज तो मामा जी माँ को
ले कर कही बाहर जानेका प्रोग्राम बना रहे थे, मामी जी भी साथ में, वो निकले पीछे से हम भी मामा जी के बेटे के
साथ निकल पड़े बाहर, मुंबई में सब कुछ मिलता है,
शॉपिंग से लेकर खाना और दर्शनीय स्थलों से लेकर प्रसिद्द नाईटलाईफ़ संस्कृति। इस शहर में ब्रांड खरीददारी के अलावा फैशन स्ट्रीट और बांद्रा में लिंकिंग रोड़ दो प्रमुख
रोड़ साईड शॉपिंग स्थल हैं। गर्म दोपहर में समुद्र के किनारे जाईये, पिकनिक की योजना बनाईये और समुद्र किनारे के मुंबई कुछ प्रसिद्द व्यंजनों जैसे सैंडविच, कुल्फी और
फालूदा, पानीपुरी और महाराष्ट्र के प्रसिद्द वडा पाव की विभिन्न शैलियों का आनंद उठा सकते है, लेकिन मुंबई तो अभी दूर था तो पास के ही मुंबई के उपनगर मीरा भयंदर की जैसलपार्क चैपाटी पर पहुच गए मामा जी के बेटे के साथ, ![]() |
| जैसलपार्क चैपाटी |
जैसलपार्क चैपाटी शायद अभी नया ही बनाया गया है, लेकिन शानदार, मुंबई के चौपाटी स्टाइल में
वहा भी खाने पिने की दुकाने, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के भैया लोग ही चलते है, हम दोनों भी
खाते पीते घूमते रहे जैसलपार्क चौपाटी, वहा बोटिंग की ब्यवस्था भी थी, लेकिन
सोचा की माता जी के ले कर आउगा.. फिर हम दोनों चैपाटी के किनारे बैठे बात करते रहे, क्या है जिन्दगी.. १ घंटे बाद फिर उठ चले भयंदर स्टेशन के पास, वहा खाने
पिने की एक मस्त दुकान, कुछ नया दिखा तो हम दोनों भाई मस्ती के साथ थोडा थोडा स्वाद लिए, फिर चल पड़े वापस घर के तरफ, तब तक मामा जी भी वापस आ चुकी थी और बात चित में मगशूल तो हम भी शामिल हो लिए उस गरचौल में.. फिर माता जी ने दिन भर का हिसाब पूछा तो हमने जितनी मस्ती की थी सब बता दिया, फिर माता जी को जैसलपार्क चौपाटी जाने का अनुरोध किया, अभी शाम के सात ही बजे थे तो मामा जी को ले कर चल दिए चौपाटी, किनारे ही बैठने के लिए कुर्सी लगा था तो माता जी मामा श्री के साथ दुनिया दीवाना बतियाने में ब्यस्त थी तो हम लोग इधर उधर घुमने में ब्यस्त, वहा खूब चहल पहल थी लोग अपने परिवार के साथ घुमने में मस्त.. जैसलपार्क चौपाटी मुंबई के जुहू चौपाटी जैसा तो नहीं पर वहा के रहने वालो के लिए समय काटने का एक सहज उपाय है, एक घंटे चांदनी रात में निहारा चौपाटी को.. फिर टहलते घूमते वापस घर वापस ९ बज चूका था तो भोजन ग्रहण कर बिस्तर पकड़ लिए
खाते पीते घूमते रहे जैसलपार्क चौपाटी, वहा बोटिंग की ब्यवस्था भी थी, लेकिन
सोचा की माता जी के ले कर आउगा.. फिर हम दोनों चैपाटी के किनारे बैठे बात करते रहे, क्या है जिन्दगी.. १ घंटे बाद फिर उठ चले भयंदर स्टेशन के पास, वहा खाने
पिने की एक मस्त दुकान, कुछ नया दिखा तो हम दोनों भाई मस्ती के साथ थोडा थोडा स्वाद लिए, फिर चल पड़े वापस घर के तरफ, तब तक मामा जी भी वापस आ चुकी थी और बात चित में मगशूल तो हम भी शामिल हो लिए उस गरचौल में.. फिर माता जी ने दिन भर का हिसाब पूछा तो हमने जितनी मस्ती की थी सब बता दिया, फिर माता जी को जैसलपार्क चौपाटी जाने का अनुरोध किया, अभी शाम के सात ही बजे थे तो मामा जी को ले कर चल दिए चौपाटी, किनारे ही बैठने के लिए कुर्सी लगा था तो माता जी मामा श्री के साथ दुनिया दीवाना बतियाने में ब्यस्त थी तो हम लोग इधर उधर घुमने में ब्यस्त, वहा खूब चहल पहल थी लोग अपने परिवार के साथ घुमने में मस्त.. जैसलपार्क चौपाटी मुंबई के जुहू चौपाटी जैसा तो नहीं पर वहा के रहने वालो के लिए समय काटने का एक सहज उपाय है, एक घंटे चांदनी रात में निहारा चौपाटी को.. फिर टहलते घूमते वापस घर वापस ९ बज चूका था तो भोजन ग्रहण कर बिस्तर पकड़ लिए
कहते है मुंबई, जो कभी थमती नहीं, कभी रुकती नहीं. कुछ ऐसा आकर्षण है इस शहर में कि जो एक बार यहां रह लेता है फिर वो यहीं का होकर रह जाता है. इसीलिए तो मुंबई को मायानगरी कहते हैं जिसकी माया से कोई नहीं बच पाता.. कभी कही पढ़ा था कि मुंबई दुनिया का सबसे अनोखा शहर है और ये हैं वो १४ कारण जो साबित करते हैं.
1. मुंबई लोकल का सफ़र
मुंबई लोकल शहर की लाइफलाइन है. ये थमी तो समझो पूरा मुंबई शहर थम गया. अगर आप इस मायानगरी का पूरा नज़ारा लेना चाहते हैं तो मुंबई लोकल में चढ़
जाइए. और यदि आप रास्ता भटक गए तो आपके साथ सफर कर रहे पैसेंजर आपकी हर संभव मदद करेंगे.
2. ये सपनों का शहर है
आप चाहे अमिताभ बच्चन बनना चाहते हो या फिर अनिल अंबानी, ये शहर आपको आपके सपने पूरे करने का मौका देगा. यकीन नहीं तो आकर देखो.
3. मन में उलझन हो तो समंदर को बताओ
आपके मन में जब भी कोई उलझन हो या आपको अपना सुख-दुःख किसी से बांटना हो तो इस शहर में सबके पास एक दोस्त है, यहां का समंदर. जिससे आप अपने दिल
की हर बात शेयर कर सकते हो.
4. पैसा सबसे बड़ा धर्म, संप्रदायों के लिए बहुत कम जगह
मुंबई में पैसा ही एकमात्र धर्म है, जिसके लिए बाकी संप्रदाय के लिए एकसाथ खड़े होने के तैयार हैं. यहां संप्रदायों के लिए लेशमात्र जगह है, बस.
5. यहां महिलाएं ज़्यादा सुरक्षित हैं
हालांकि मुंबई में भी कुछ एक ऐसे हादसे हुए हैं जिन्होंने मुंबई में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं पर फिर भी ये एक ऐसा शहर हैं जहां महिलाएं दूसरे
शहरों से कहीं ज़्यादा सुरक्षित हैं. कम से कम उन्हें हर 5 मिनट में अपने पीछे पलट कर तो नहीं देखना पड़ता.
6. जेब मैं पैसे कम हों तो भी वड़ा पाव है ना!
मुंबई में आप पैसों की तंगी चाहे कितनी ही झेल रहे हों, आपको पेट भरने के लिए बेहद सस्ता वड़ा पाव तो मिल ही जाएगा.
7. जगह भले कम हो, पर दिल बहुत बड़ा है.
मुंबई में जगह की बहुत तंगी है. लोग इतने छोटे घरों में रहते हैं कि आप देख कर हैरान हो जाएंगे. लेकिन इन लोगों का दिल देखकर आप खुद को ये कहने से नहीं रोक
पाएंगे कि “घर भले छोटा है, पर दिल बहुत बड़ा है”!
8. सड़क पर हर त्योहार की रौनक
चाहे जन्माष्टमी की दही हांड़ी हो, ईद की रौनक, गुड फ्राइडे का जश्न हो या फिर होली का हुल्लड़, मुंबई आपको हर त्योहार के रंग से रंगी हुई नज़र आएगी. हां, लेकिन
त्योहार के दिन आप घर कितने बजे पहुंचेंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं.
9. कुछ मीठा हो जाए!
मुंबई में जिसने भी ओवन फ्रेश, कैंडीज़ या फिर इंडिगो आदि का मीठा स्वाद चखा है वो इसे ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकता.
10. मॉडर्न है, पर इतिहास की झलक दिखती है यहां…
मुंबई का अंदाज़ सबसे जुदा है लेकिन यहां आज भी उस पुराने दौर को महसूस किया जा सकता है. गेटवे ऑफ़ इंडिया, एलिफेंटा केव्स, नरीमन पॉइंट और न जाने कितनी
ही ऐसी जगहें हैं जहां जाकर आपको ऐसा लगेगा मानो आप अलग ही दुनिया में आ गए हैं.
11. खुशमिजाज़ पारसियों का घर है मुंबई
पारसी बेहद खुशमिजाज़ और अच्छे बिजनसमैन होते हैं और इनके बिना तो मुंबई अधूरा है.
12. ये शहर सबको गले लगाता है
मुंबई का दिल बहुत बड़ा है. यहां जो भी आता है ये शहर उसे खुले दिल से गले लगता है और यही इसकी सबसे बड़ी खूबी है.
13. जम के मेहनत करो, जम के उड़ाओ!
मुंबई पर ये बात खूब फिट बैठती है. यहां के लोग मेहनत भी खूब करते हैं और इंजॉय भी खूब करते हैं.
14. और फिर आपको असली मुंबई का अहसास होगा
एक आम दिन जब इस शहर का शोर और भीड़ आपकी पूरी एनर्जी निकाल लेगी तो आपको सही मायनों में मुंबई का अहसास होगा.
खैर बड़ी बड़ी इमारते, ओवर ब्रिज, यातायात के बेहतरीन सिस्टम से ही तो चलता है मुंबई, हमारे यु.पी.-बिहार के लोग अपने सपनो को पूरा करने इस माया नगरी में आते
है, ये मुंबई सबको ही अपने दिल में बसा कर रखता है .
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