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Thursday, May 7, 2015

मुंबई दर्शन

मुम्बई दर्शन (मुम्बई भ्रमण) ८ मई २०१५- शुक्रवार ..(टैक्सी के द्वारा) 

आज का प्रोग्राम था मुम्बई दर्शन तो सुबह ही नहा धो कर तैयार हो गए और १० बजे टैक्सी आने वाली थी खैर पूरा मुंबई घुमने का सोच रखा था लेकिन माता जी के लिए पहले सिद्धि- विनायक मंदिर और मुम्बा देवी था, तो हम माता जी के ले मामा जी और मामी जी के साथ चल पड़े मुंबई दर्शन के लिए हमारी टैक्सी निकल पड़ी भयंदर से मुंबई सेंट्रल वाया.

भयंदर, मीरा रोड, दहिसर, कांदिवली, मलाड, गोरेगाँव, जोगेश्वरी, अंधेरी, विले पार्ले, सांताक्रूज़, खार रोड, बांद्रा, माहिम जंक्शन, माटुंगा रोड ग्रांट, दादर, एल्फिंस्टोन रोड,लोअर परेल, महालक्ष्मी

खैर १ घंटे के इस सफ़र के बाद पहुच ही गए मुंबई.. वैसे कहा जाता है की धार्मिक लोगों के लिये मुंबई में देश के कई पवित्र स्थल हैं। इनमें से दो प्रमुख स्थल भगवान गणेश को समर्पित सिद्धिविनायक मंदिर और हाजी अली मस्ज़िद हैं जिनकी अपनी अलग कहानी है। इन दोनों की वास्तुकला लगभग एक जैसी है तथा ये जिस वास्तुकला को प्रदर्शित करते हैं उसकी वैयक्तिक सराहना ही की जा सकती है। हालांकि सावधान रहें, इन दोनों स्थानों पर बहुत ज़्यादा भीड़ होती है। अत: अपने दोस्तों, रिश्तेदारों या पर्यटन मार्गदर्शक से पूछ लें कि सैर के लिये उत्तम समय कौन सा है। यदि आप बहुत ज़्यादा धार्मिक नियमों का पालन नही करते तो मंगलवार और गुरूवार को सिद्धिविनायक मंदिर नही जाना चाहिए।

यूं तो सिद्घिविनायक के भक्त दुनिया के हर कोने में हैं लेकिन महाराष्ट्र में इनके भक्त सबसेज्यादा हैं। समृद्धि की नगरी मुंबई के प्रभा देवी इलाके का सिद्धिविनायक मंदिर उन गणेश मंदिरों में से एक है, जहां सिर्फ हिंदू ही नहीं, बल्कि हर धर्म के लोग दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। हालांकि इस मंदिर की न तो महाराष्ट्र के 'अष्टविनायकों ’ में गिनती होती है और न ही 'सिद्ध टेक ’ से इसका कोई संबंध है, फिर भी यहां गणपति पूजा का खास महत्व है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के सिद्ध टेक के गणपति भी सिद्धिविनायक के नाम से जाने जाते हैं और उनकी गिनती अष्टविनायकों में की जाती है। महाराष्ट्र में गणेश दर्शन के आठ सिद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल हैं, जो अष्टविनायक के नाम से प्रसिद्ध हैं। लेकिन अष्टविनायकों से अलग होते हुए भी इसकी महत्ता किसी सिद्ध-पीठ से कम नहीं। आमतौर पर भक्तगण बाईं तरफ मुड़ी सूड़ वाली गणेश प्रतिमा की ही प्रतिष्ठापना और पूजा-अर्चना किया करते हैं। कहने का तात्पर्य है कि दाहिनी ओर मुड़ी गणेश प्रतिमाएं सिद्ध पीठ की होती हैं और मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में गणेश जी की जो प्रतिमा है, वह दाईं ओर मुड़े सूड़ वाली है। यानी यह मंदिर भी सिद्ध पीठ है।तो हम पहुच गए सिद्धि-विनायक मंदिर, मंदिर के बाहर सुरक्षा का पूरा पहरा.. हम भी बाहर माला फुल नारियल ले जाच के पश्चात अन्दर पहुचे.. वहा तो ऐसी लाइन की आज का दिन तो सिर्फ गजानन के ही दरबार में.. इधर उधर देख ही रहे थे की एक साहब मिल ही गए.. VIP दर्शन करने के लिए, भाव पूछा तो पर हेड १५०/- मतलब हम चारो का ६००/- चलो भाई कराओ दर्शन, अभी पता चला की पास का २५० अलग से लगेगा, क्या है भाई २५०/- वाला पास.. तभी एक सुनहरे रंग का दुपट्टा दिया बोला इस दुपट्टे के प्रसाद के ऊपर रख लीजिये, ले लिए स्पेसल पास और दे दिया ८५०/- तो साहब एक VIP गेट पर ले गए जो सबसे पहला गेट था, एक तेज तर्रार पुलिस के साहब तैनात थे, उनको सिग्नल मिल गया था ४ को अन्दर जाने का, हम भी घुस गए.. लेकिन पैसा वसूल.. आराम से दर्शन, वो पास भी काम आया, तो गजानना को अर्पित हो गया .. चलो दर्शन हुवा.. निकले बाहर, 
अब बारी थी महालक्ष्मी के दर्शन के लिए.. रास्ते में ही हाजी अली की दरगाह भी था, लेकिन कड़ी धुप के वजह से मामा जी तैयार नहीं हुवे, वस्तुतः हमारे आराध्य देव भगवान शिव हैं लेकिन हम सभी देवी देवताओं में आस्था रखते हैं. और जहाँ तक धर्म की बात है हमें अपने सनातन धर्म में सर्वाधिक आस्था है लेकिन हम दुसरे धर्मों का और उनके देवताओं का भी बहुत सम्मान करते हैं तथा किसी भी धर्म और किसी भी भगवान की वंदना करने में कभी कोई कंजूसी नहीं दिखाते. तो बाहर से ही मनन कर हम पहुच गए महालक्ष्मी के दर्शन के लिए, टैक्सी वाले ने मेन रोड पर उतर दिया और हम लोग चल पड़े गलियों के रास्ते महालक्ष्मी‍ मंदिर में.. मुंबई के सर्वाधिक प्राचीन धर्मस्थलों में से एक है यहाँ का महालक्ष्मी मंदिर। समुद्र के किनारे बी. देसाई मार्ग पर स्थित यह मंदिर अत्यंत सुंदर, आकर्षक और लाखों लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर कम्पाउंड में हार, फुल, चुनर प्रसाद, मिठाई आदि की बहुत सी दुकानें हैं, इन सामग्रियों को देवी के भक्त खरीद कर माता को अर्पित करते हैं. 

माँ लक्ष्मी को धन की देवी माना गया है। महालक्ष्मी की पूजा घर और कारोबार में सुख और समृद्धि‍ लाने के लिए की जाती है। महालक्ष्मी‍ मंदिर के मुख्य द्वार पर सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की आकर्षक प्रतिमाएँ स्थापित हैं। मंदिर का इतिहासअत्यंत रोचक है। अंग्रेजों ने जब महालक्ष्मी क्षेत्र को वर्ली क्षेत्र से जोड़ने के लिए ब्रीच कैंडी मार्ग को बनाने की योजना बनाई तब समुद्र की तूफानी लहरों के चलते पूरी योजना खटाई में पड़ती प्रतीत हुई। उस समय देवी लक्ष्मी एक ठेकेदार रामजी शिवाजी के स्वप्न में प्रकट हुईं और उन्हें समुद्र तल से देवियों की तीन प्रतिमाएँ निकालकर मंदिर में स्थापित करने का आदेश दिया। रामजी ने ऐसा ही किया और ब्रीच कैंडी मार्ग का निर्माण सफलतापूर्वक संपन्न हुआ ! मंदिर सुबह ६ बजे खुलता है तथा रात १० बजे बंद होता है. तीनों माताओं के असली स्वरुप सोने के मुखौटों से ढंके रहते हैं. बहुत कम लोग जानते हैं की इस मंदिर में विराजमान देवी महालक्ष्मी की मूर्ती स्वम्भू है, वास्तविक मूर्ती को बहुत कम लोग देख पाते हैं, असली मूर्ती के दर्शन करने के लिए आपको रात में लगभग ९.३० बजे मंदिर में जाना होगा, इस समय मूर्तियों पर से आवरण हटा दिया जाता है तथा १० से १५ मिनट के लिए भक्तों के दर्शन के लिए मूर्तियों को खुला ही रखा जाता है और उसके बाद मंदिर बंद हो जाता है. सुबह ६ बजे मंदिर खुलने के साथ ही माता का अभिषेक किया जाता है तथा उसके तत्काल बाद ही मूर्तियों के ऊपर फिर से आवरण चढ़ा दिए जाते हैं. हम भी कमल का फुल ले कर चल पड़े दर्शन के लिए.. वहा पुरुष और महिलाओ की लाइन अलग थी तो हम और मामा जी पुरुषो की लाइन में और माँ मामी जी के साथ.. लगता था पुजारी जी ही बिरादर ही थे, कंधे पर गमछा देख कमल का फुल ले माँ के चरणों में चड़ा दिया और दूसरा फुल प्रसाद स्वरुप दे दिया हमने तो माता के दर्शन आवरण सहित ही किये क्योंकि स्वम्भू मूर्ति के दर्शन का समय हमारे समय से मैच नहीं हो रहा था. इस सुन्दर मंदिर के दर्शनों के बाद तथा माता का आशीर्वाद प्राप्त करके हम मंदिर से बाहर निकल आये.महालक्ष्मी मंदिर से ही लगे कुछ छोटे बड़े अन्य मंदिरों में एक स्यंभू श्री पाताली हनुमान मंदिर बड़ा ही सुन्दर लगा. मंदिर के अन्दर हनुमान जी की मूर्ति चांदी के आवरण में इतनी लुभावनी लग रही थी की बस नजरें हटाने का मन ही नहीं कर रहा था..मंदिर का एक चक्कर लगा कर महिलाओ के निकलने वाले गेट पर खड़े हो गए माता जी के इतजार में, इंतजार करते करते २० मिनट निकल गया माता जी नहीं निकली तो मामा जी ने आदेश दिया , बाहर देख कर आओ, कही वो लोग बाहर तो नहीं निकल गए, अन्दर मोबाईल भी काम नहीं कर रहा था , तो मंदिर के चारो तरफ चक्कर लगा के मंदिर के बाहर निकले, वहा गेट पर ही माता जी खडी हम लोगो का इंतजार कर रही थी.. तब तक मामा जी भी बाहर निकलते दिखाई दिए.. खैर सब लोग चल दिए बाहर.. 

१ बज चूका था तो सोचा अब तो दर्शन पूजन हो चूका है तो माता जी को कुछ खाना पीना खिला दिया जाये.. लेकिन माता जी कहा सुनने वाली.. अभी तो मुम्बा देवी बाकि ही था.. मैंने भी ड्राइवर को फोन कर के मुम्बा देवी चलने को कहा तो उसने कहा येही तो है मुम्बा देवी.. अरे.. गूगल बाबा सहारा लेने की कोशिश की तो मोबाईल में टावर ही नहीं..क्या करते माता जी को समझाया, फिर ले चल पड़े शाकाहारी भोजन के तलाश में, पास में ही एक साऊथ इंडियन रेस्टोरेंट मिल गया तो पहुचे अन्दर.. वहा खाना तो नहीं फिर अम्मा के लिए बिना प्याज का इडली और चटनी और हम लोगो ने डोसा का स्वाद लिया, आइसक्रीम का आनंद लेने के बाद निकले आगे के लिए.. 

लेकिन मामा जी वापस चलने का आदेश दे दिए, बोले शाम हो रही है, अब जाम लग जायेगा तो घर पहुचते रात हो जाएगी.. क्या करता तो टैक्सी वाले को वापस चलने के लिए कह दिया,  वापस चलो जो रास्ते में दिखे, दिखा देना चल पड़ी हमारी टैक्सी.. अगली मंजिल थी……..तारापुरवाला एक्वेरियम.

तारापुरवाला मछलीघर मुंबई शहर का एकमात्र एक्वेरियम है जिसका निर्माण सन १९५१ में आठ लाख रुपये की लागत से हुआ था. यहाँ पर समुद्री तथा स्वच्छ पानी की १०० से भी ज्यादा विभिन्न प्रजाति की मछलियाँ और पानी के अन्य जीव जैसे कछुए, झींगे, इल, स्टार फिश आदि प्रदर्शित किये गए हैं. एक अलग कक्ष में बोतलों में समुद्री तथा पानी के जीवों के जीवाश्म तथा मछलियों को संरक्षित करके रखा गया है. यह एक्वेरियम प्रसिद्द मरीन ड्राइव के नजदीक स्थित है. इसका नाम एक प्रसिद्द समाजसेवी के नाम पर रखा गया है जिन्होंने इसके निर्माण के लिए दो लाख रुपये का दान में दिए थे.

हमारे भ्रमण के दौरान हमें हमारे ड्राइवर ने एक बहुत ही नायाब चीज़ के दर्शन करवाए, और वो है “एंटीलिया” विश्व का सबसे महंगा घर “एंटीलिया”. प्रसिद्द उद्योगपति मुकेश अम्बानी का घर “एंटीलिया”. एंटीलिया दक्षिण मुंबई में स्थित एक सत्ताईस मंजिला भवन है (उंचाई के हिसाब से साठ मंजिल के बराबर) जो की रिलायंस उद्योग के अरबपति चेयरमेन मुकेश अम्बानी का निवास स्थान है. इस घर की देख रेख के लिए पुरे ६०० का स्टाफ है और इसी वजह से इसे विश्व का सबसे महंगा घर करार दिया गया है. इसे २१ वीं सदी के भारत का ताज महल भी कहा जाता है. इस घर में मुकेश अम्बानी उनकी पत्नी नीता अम्बानी, उनके दो बच्चे एवं उनकी माँ कोकिला बेन अम्बानी रहते हैं.
एंटीलिया की विशेषताएं: 
१. ४०००० स्के. फीट रहने की जगह. 
२. १६८ कारों के लिए पार्किंग की जगह. 
३. एक पूरी मंजिल वाहनों की मरम्मत तथा रख रखाव के लिए 
४. ९ लिफ्टें तथा ३ हेलीपेड. 
५. ५० लोगों के बैठने की क्षमता वाला थियेटर आठवें माले पर.

इस दुर्लभ घर को हर कोण से निहारने के बाद हम चल पड़े अपनी अगली मंजिल ताज महल होटल एवं गेट वे ऑफ़ इंडिया की ओर. 

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ताज महल होटल: ताजमहल होटल मुंबई के कोलाबा इलाके में गेट वे ऑफ़ इन्डिया के सामने स्थित एक अत्यंत ख़ूबसूरत पांच सितारा होटल है तथा अपने ऐतिहासिक महत्त्व एवं विशिष्ट निर्माण कला की वजह से मुंबई के कुछ चुनिन्दा दर्शनीय स्थलों में से एक भी है.यह होटल प्रसिद्द औद्योगिक समूह टाटा ग्रुप की संपत्ति है. लगभग १०९ साल पुराने इस होटल ने अब तक विश्व भर की कई प्रसिद्द हस्तियों की मेहमान नवाजी की है उनमें से कुछ हैं बिल क्लिंटन, नोर्वे के रजा और रानी, ड्यूक ऑफ़ एडिनबर्ग, प्रिंस ऑफ़ वेल्स, एंजेलिना जोली, ब्रेड पिट, हिलेरी क्लिंटन, बराक ओबामा, ओप्रा विनफ्री और भारत में आनेवाली कई देशों की क्रिकेट टीमें आदि. होटल में कुल ५६५ कमरे हैं. होटल का शुभारम्भ १६ दिसंबर १९०३ में हुआ था, कहा जाता है की जमशेद जी टाटा को उस समय के मुंबई के एक प्रसिद्द होटल वाटसन होटल में प्रवेश नहीं करने दिया गया क्योंकि यह होटल सिर्फ गोरे फिरंगियों को ही प्रवेश देता था तो उन्होंने उसी समय निर्णय लिया की मैं इससे भी बड़ा होटल बनवाऊंगा. इस होटल के वास्तविक वास्तुविद थे सीताराम खंडेराव वैद्य, अशोक कुमार और डी.एन.मिर्ज़ा लेकिन इस परियोजना को पूर्ण किया अंग्रेज इंजिनियर डब्ल्यू. ए. चेम्बर्स ने. 

रास्ते में अम्बानी जी का महल, वाह क्या बात है.. फिर जुहू चौपाटी के किनारे किनारे देखते रहे गेट वे ऑफ़ इंडिया तथा समुद्र तट से जो हिस्सा इस होटल का दिखाई देता है वह वास्तव में इसका पिछवाडा है और सामने का हिस्सा इसकी विपरीत दिशा में है. ऐसा कहा जाता है की इस होटल के वास्तुविद (आर्किटेक्ट) ने गलती से समुद्र (हार्बर) की ओर इसका पिछला हिस्सा बना दिया जबकि इस ओर अगला हिस्सा होना था. होटल बन जाने के बाद उसे लोगों बार बार यह कहा की इतने सुन्दर तथा महंगे भवन को आपे उल्टा बना कर उसकी पूरी सुन्दरता नष्ट कर दी. लोगों ने उसे इस बात पर इतना कोसा की वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गया और उसने आत्महत्या कर ली. लेकिन होटल प्रबंधन का मत है की सच्चाई यह नहीं है, सच्चाई यह है की ऐसा निर्माण जान बुझ कर किया गया है. ऐसा संभवतः इसलिए किया गया की घोडा गाड़ियाँ जो शहर के अन्य हिस्सों से यहाँ तक मेहमानों को लेकर आती थी उनकी सुविधा के लिए समुद्र से विपरीत दिशा में प्रवेश द्वार बनाना ज्यादा आवश्यक था. (अब सच्चाई क्या है यह भगवान ही जानता है) 

गौरतलब है की २६ नवम्बर २००८ को इस होटल पर एक जबरदस्त आतंकवादी हमला हुआ था जिसके बारे में हम सभी जानते है. चलते चलते मुंबई के आखिरी छोर पर पहुच हए.. और पहुच गए समुद्र के किनारे.. थोड़ी देर निहारा वहा से मुंबई को, फिर माता जी के साथ खूब फोटो खिचवाई, पूरी तीर्थ यात्रा में तो सिर्फ सेल्फी ही थे लेकिन यहाँ पूरी कसर निकल ली.. अब अगला पड़ाव था गेट वे ऑफ़ इंडिया: 

गेटवे ऑफ़ इंडिया एक ऐतिहासिक स्मारक है जो की होटल ताज महल के ठीक सामने स्थित है. यह स्मारक साउथ मुंबई के अपोलो बन्दर क्षेत्र में अरब सागर के बंदरगाह पर स्थित है. यह एक बड़ा सा द्वार है जिसकी उंचाई २६ मीटर (८५ फीट) है. अरब सागर के समुद्री मार्ग से आने वाले जहाजों आदि के लिए यह भारत का द्वार कहलाता है तथा मुंबई के कुछ टॉप टूरिस्ट स्पोट्स में से एक है. यह स्मारक किंग जोर्ज पंचम तथा क्विन मेरी के सन १९११  में समुद्री मार्ग से भारत आगमन पर उनके स्वागत के लिए बनवाया गया था. 

गेटवे ऑफ़ इंडिया से टिकिट लेकर एक बड़ी मोटर चालित नाव द्वारा समुद्री यात्रा कर एलिफेंटा की गुफाएं देखने समुद्र के बीच स्थित टापू के गाव धारापुरी जाया जा सकता है फिर तट से गुफा तक जाने के लिए पैदल लगभग १ किलो मीटर पद यात्रा या छोटी ट्रेन (जेसी बच्चो के पार्क में होती हे ) पंहुचा जा सकता हे । गुफाओं के पास पहुचकर पुरातन भारतीय गोरव शाली इतिहासिक विशाल मूर्तियों मंदिरों और भारतीय वैभव को जानने का अवसर मिलता है पर हम तो वापस चल पड़े.. फिर कभी देखेगे गेटवे ऑफ़ इंडिया, 

अब चल पड़े वापस भयंदर, वैसे मुम्बई दर्शन के लिए बेहतर है मुबई दर्शन की बस सेवा बहुत अच्छी और उपयोगी है जो कई ट्रेवल्स कम्पनी चलती है, जिसमे नीता ट्रेवल्स की बस से मुंबई की सैर करवाती है, अगर आप आगरा जाएं तो ताजमहल देखने जाते हैं और हैदराबाद जाएं तो चारमीनार. कुछ उसी तरह जब लोग मुंबई आते हैं तो अमिताभ बच्चन के बंगले 'प्रतीक्षा' के दर्शन किए बिना वापस नहीं जाते. मिलेनियम स्टार का ये बंगला पिछले तीन दशकों से उनके प्रशंसकों के लिए मक्का बना हुआ है. ये बंगला मुंबई दर्शन में शामिल रहता ही है. लेकिन सपने में ही देख लिया, 

अब वापसी थी तो टैक्सी वाले ने सी लिंक पकड़ लिया, मुंबई का सी लिंक. कई लोग इसे इंजीनियरिंग का करिश्मा मानते हैं तो कई इसे रोज़मर्रा की सहूलियत समझते हैं.और कई इसे मुंबई का सबसे रोमांटिक हिस्सा कहते हैं. अरब महासागर पर समुद्र से २१३ फीट की ऊँचाई पर जाती ये सड़क मुंबई के दो छोरों को जोड़ती है. बांद्रा - वर्ली सी लिंक मुंबई का प्रमुख और नवीनतम आकर्षण है। यह मुंबई की शान को और अधिक बढाता है। यह लटकता हुआ पुल वाहन चालकों को वर्ली और बांद्रा के बीच की दूरी १० मिनिट में तय करने में मदद करता है। लटकते हुए पुल पहले भारत में इतने प्रसिद्द नही थे क्योंकि इनका निर्माण बहुत कठिन था और मुंबई सी लिंक इसकी अनुपस्थिति को पूर्ण करता है। इस पुल पर से अरब सागर का अदभुत दृश्य दिखता है ये शहर के ट्रैफिक को हल्का करती है. पांच किलोमीटर के बांद्रा-वर्ली सी लिंक पर चौबीसों घंटे गाड़ियाँ सफ़र करती हैं. 


ज्ञानी लोग बताते है की मुंबई शहर, भूतपूर्व बंबई, महाराष्ट्र राज्य की राजधानी है। यह दक्षिण-पश्चिम भारत देश का वित्तीय व वाणिज्यिक केंद्र और अरब सागर में स्थित प्रमुख बंदरगाह है। मुंबई दुनिया के विशालतम व सबसे घनी आबादी वाले शहरों में से एक है। मुम्बई को पहले बॉम्बे के नाम से जाना जाता था। मुम्बई शहर को बिजनेस केपिटल ऑफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ देश के प्रमुख वित्तीय और संचार केन्द्र है। भारत का सबसे बड़ा शेयर बाज़ार, जिसका विश्व में तीसरा स्थान है मुम्बई में ही स्थित है। मुम्बई भारत के पश्चिमी समुद्रतट पर स्थित है। यह अरब सागर के सात द्वीपों का एक हिस्सा है। मुम्बई सामान्य रूप से सात द्वीपों जिनके नाम कोलाबा, माजागाँव, ओल्ड वूमन द्वीप, वाडाला, माहीम, पारेल और माटूंगा-सायन पर स्थित है। सन् १६६१ में इंग्लैंड के महाराजा चार्ल्‍स ने पुर्तग़ाल की राजकुमारी कैटरीना डे ब्रिगेंजा से शादी की थी। शादी में दहेज के रूप में चार्ल्‍स को बम्बई शहर मिला था, जो वर्तमान समय में मुम्बई के नाम से जाना जाता है। लेकिन सन् १६६८ में मुम्बई ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथों में चला गया। सन् १८६८ में महारानी विक्टोरिया ने शहर के प्रशासन को ईस्ट इंडिया कम्पनी से वापस ले लिया। 

मुंबई पर्यटन के लिए भी विश्व विख्यात हैं। जहाँ लोग दूर-दूर से घूमने के लिए आते हैं। यहाँ पर कई पर्यटन स्थल है जहा हा नहीं जा पाए सिर्फ गूगल में ही देख कर संतोष कर लिया जो इस प्रकार है:- 

जोगेश्‍वरी गुफ़ा 
जोगेश्‍वरी की गुफ़ा १५००  साल पुरानी है। जोगेश्‍वरी की गुफ़ा मंदिर में विशाल केंद्रीय हॉल भी है। इसके अतिरिक्त हनुमान, देवी माता, जोगेश्‍वरी और गणेश जी की मूर्तियाँ भी यहाँ स्थित है। 

हेंगिग गार्डन 
हेंगिग गार्डन को फ़िरोजशाह मेहता गार्डन के नाम से भी जाना जाता है। 

फ़्लोरा फ़ाउंटेन 
फ़ाउंटेन का नाम रोम में समृद्धि के देवता के नाम पर पड़ा था। अब यह फ़ाउंटेन उस क्षेत्र में है, जहाँ महाराष्ट्र राज्य के लिए शहीद होने वालों की याद में स्मारक बनाया गया है। 

जुहू चौपाटी 
जुहू बीच मुम्बई का सबसे प्रसिद्ध बीच है। यह मुम्बई से तीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चौपाटी बीच मारीन ड्राईव में स्थित है। यह जगह मुम्बईवासियों की पहली पंसद है। 

हाजी अली दरगाह 
हाजी अली महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर में एक मशहूर मस्जिद एवं दरगाह है। यह स्थान अरबियन समुद्र के समुद्र तट पर बने महालक्ष्मी मंदिर के समीप स्थित है। 

माउंट मेरी चर्च 
माउंट मैरी चर्च मुंबई शहर के विशिष्ट और भव्य चर्चों में से एक है। माउंट मैरी चर्च १६४० में बनाया गया था और फ़िर इसे गिरा दिया गया और १७६१ में इसे दुबारा बनाया गया था। 

महालक्ष्मी रेस कोर्स 
महालक्ष्मी रेस कोर्स महालक्ष्मी समुद्र तट के समीप स्थित है। महालक्ष्मी रेस कोर्स विश्‍व के प्रसिद्ध रेस कोर्स में से एक है। 

नेहरू प्लेनेटेरियम और विज्ञान केन्द्र  
नेहरू प्लेनेटेरियम को विज्ञान केन्द्र के नाम से भी जाना जाता है। नेहरू प्लेनेटेरियम वर्ली में स्थित है। हरू प्लेनेटेरियम का नाम पंडित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद रखा गया। 

द प्रिंस ऑफ़ वेल्स संग्रहालय 
द प्रिंस ऑफ़ वेल्स संग्रहालय गेटवे ऑफ़ इंडिया से बस थोड़ी सी दूरी पर स्थित है। द प्रिंस ऑफ़ वेल्स संग्रहालय में शिल्पकला, मूर्तिकला, चाइना और प्राचीन इत्यादि सम्बन्धित बहुमूल्य संग्रह है। 

तारापोरवाला एक्वेरियम 
तारापोरवाला एक्वेरियम मरीन ड्राईव में स्थित है। तारापोरवाला एक्वेरियम में अलग-अलग आकार, प्रकार और रंग की मछलियाँ हैं। 

विक्टोरिया गार्डन 
विक्टोरिया गार्डन में रोचक वनस्पतियों और जीवों का संग्रह है। विक्टोरिया गार्डन वनस्पतिक और प्राणी विज्ञान से सम्बन्धित बगीचा हैं। 

एलिफेंटा की गुफाएँ 
एलिफेंटा की गुफाएँ महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर से ११ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एलिफेंटा की गुफाएँ मुम्‍बई महानगर के पास स्थित पर्यटकों का एक बड़ा आकर्षण केन्‍द्र हैं। एलिफेंटा की गुफाएँ को घारापुरी के पुराने नाम से जाना जाता है जो कोंकणी मौर्य की द्वीप राजधानी थी। 

एसेल वर्ल्‍ड 
एसेल वर्ल्‍ड गौरी बीच के समीप स्थित है। एसेल वर्ल्‍ड भारत का सबसे बड़ा मनोरंजन पार्क है। 

मुंबा देवी मंदिर महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में कई ऐतिहासिक व दर्शनीय पर्यटन स्थल हैं, जिनमें से एक मुंबा देवी मंदिर का प्रमुख स्‍थान है. मुंबा देवी और मंदिर की महिमा अपरंपार बताई गई है. मुंबई नाम ही मराठी के शब्‍द- 'मुंबा' 'आई' यानी मुंबा माता के नाम से निकला है. मंदिर का गौरवशाली इतिहास मुंबा देवी को समर्पित मंदिर चौपाटी की रेतीले तटों के निकट बाबुलनाथ में स्थित है. मुंबा देवी मंदिर का गौरवशाली इतिहास करीब ४०० वर्ष पुराना है. पूरे महाराष्‍ट्र में इस मंदिर की बहुत मान्यता है. इतिहास से हमें जानकारी मिलती है कि मुंबई आरंभ में मछुआरों की बस्ती थी. इन लोगों को यहां कोली कहा जाता था. कोली लोगों ने बोरीबंदर में तब मुंबा देवी के मंदिर की स्थापना की. कहा जाता है कि इन देवी की कृपा से मछुआरों को कभी समुद्र ने नुकसान नहीं पहुंचाया. यह मंदिर अपने मूल रूप में उस जगह बना था, जहां आज विक्टोरिया टर्मिनस बिल्डिंग है. इस निर्माण साल १७३७ में हुआ था. बाद में अंग्रेजों के शासन के दौरान मंदिर को मैरीन लाइन्स-पूर्व क्षेत्र में बाजार के बीच में स्थापित किया. उस मंदिर के तीन ओर एक बड़ा तालाब था, जो अब पाट कर बराबर कर दिया गया है. इस मंदिर की भूमि पांडु सेठ ने दान की थी. शुरू में मंदिर की देखरेख भी उन्हीं का परिवार करता था.  
न्‍यास करता है मंदिर की देखरेख बाद में वर्षों में मुंबई हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक, मुंबा देवी मंदिर न्यास की स्थापना की गई. अब भी मंदिर न्यास ही इसकी देखरेख करता है. मुंबा देवी का मंदिर अत्‍यंत आकर्षक है. इसमें स्‍थापित माता की मूर्ति भी काफी भव्‍य है. यहां मुंबा देवी की नारंगी चेहरे वाली रजत मुकुट से सुशोभित मूर्ति स्थापित हुई है. न्यास ने यहां अन्नपूर्णा और माता जगदंबा की मूर्तियां भी मुंबा देवी की अगल-बगल स्थापित करवाई थीं.  
मुंबा देवी पूरी करती हैं मन्‍नतें मुंबा देवी मंदिर में हर दिन ६ बार आरती की जाती है. वैसे तो मंदिर में भक्‍तों की भीड़ हर रोज होती है, पर मंगलवार को यहां लोगों का सैलाब उमड़ आता है. श्रद्धालुओं में ऐसी मान्‍यता है कि यहां मांगी गई मन्‍नतें पूरी होती है. मुंबा देवी मंदिर में मन्नत मांगने के लिए यहां की लकड़ी पर सिक्कों को कीलों से ठोका जाता है. 

ताजमहल होटल  
ताज होटल मुंबई के अपोलो बंडर में स्थीत है। ताज महल होटल १०४ साल पुरानी इमारत है। ताज होटल में ५६५ कमरे हैं। भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र मुम्बई में स्थित है। यह भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग के अन्तर्गत नाभिकीय विज्ञान एवं अभियांत्रिकी एवं अन्य सम्बन्धित क्षेत्रों का बहु-विषयी नाभिकीय अनुसंधान केन्द्र है। नरीमन पाइंट नरीमन पॉइंट मुंबई का सबसे प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है। इसका यह नाम एक पारसी दूरदर्शक खुर्शीद फ़्राम्जी नरीमन के नाम पर रखा गया। १९९५ में यहाँ वाणिज्यिक अचल संपत्ति किराया ८७५० रू॰ प्रति वर्ग फुट था। 

कन्हेरी गुफ़ाएँ  
कन्हेरी गुफ़ाएँ मुंबई शहर के पश्चिमी क्षेत्र में बसे बोरीवली के उत्तर में स्थित हैं। ये संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के परिसर में ही स्थित हैं और मुख्य उद्यान से ६ कि.मी और बोरीवली स्टेशन से ७ कि.मी दूर हैं। ये गुफ़ाएँ बौद्ध कला दर्शाती हैं। कन्हेरी शब्द कृष्णागिरी यानी काला पर्वत से निकला है। नको बड़े बड़े बेसाल्ट की चट्टानों से बनाया गया है। 

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस 
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस को पहले विक्‍टोरिया टर्मिनस के नाम से जाना जाता था। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस अपने लघु नाम वी.टी., या सी.एस.टी. से अधिक प्रचलित है। यह भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई का एक ऐतिहासिक रेलवे-स्टेशन है, जो मध्य रेलवे, भारत का मुख्यालय भी है। यह भारत के व्यस्ततम स्टेशनों में से एक है। आंकड़ों के अनुसार यह स्टेशन ताजमहल के बाद भारत का सर्वाधिक छायाचित्रित स्मारक है। 

संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान 
संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान को बोरीवली नेशनल पार्क और संजय गांधी नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता था। जो मुम्‍बई में बोरीवली उप नगर के आस पास स्थित है। इसे १९७४ में अधिसूचित किया गया। यह सामान्‍य दर्शनीय स्‍थलों के कारण बड़े शहर का एक आकर्षण बन गया। 

माध द्वीप तट (मारीन ड्राईव, मुम्बई) 
माध द्वीप तट भारत के मुम्‍बई शहर के उत्तर पश्चिमी तट के साथ स्थित है। इस तट पर एक अदभूत दृश्‍य दिखाई देता है। 

वरसोवा तट  
वरसोवा तट जुहू तट के उत्तर में स्थित है और ग्रेटर मुम्‍बई ज़िले में आता है। वास्‍तव में वरसोवा तट को जुहू तट का एक विस्‍तार माना जाता है, जिनके बीच केवल एक छोटी सी दरार है।

सोचते पढते हम पहुच ही गए मामा जी के घर, चाय नास्ता के बाद कल की बिदाई के लिए माता जी की तयारी.. तो छोटी बहन मंजरी के प्रसाद और उसके बच्चो का खिलौना सब कुरियर करने आ आदेश.. क्यों की का इंडियन एयर लाइन्स से delhi की यात्रा थी, तो माता जी सामान कम कर रही थी.. खैर.. सामान ले पहुच गए कोरियर करने.. फिर कल वाली दुकान पर पहुचे नास्ता करने.. कल तो हम दोनों ने अकेले मस्ती की थी.. तो सोचा कुछ मामा जी मामी जी के लिए भी ले चलते है, मामा जी की प्यारी बिटिया निफ्फी भी जॉब में है तो वो भी ब्यस्त ही रहती है, सो सबके लिए ले चलते है, पर मामा जी का बेटा "मट्टू" भैया मत लीजिये पापा मम्मी बाहर का नहीं खाते.. लेकिन मैंने तो मामा जी के साथ बचपन में उससे ज्यादा समय बिताया था.. फिर भी डर लग रहा था कही मामा जी बदल तो नहीं गए.. फिर भी हम लोगो ने भर पेट नास्ता किया और २ प्लेट ग्रील्ड सैंडविच पैक करवा लिया,
मुझे लगा की उसमे प्याज नहीं होगा तो अम्मा भी खा ले गी... मै ध्यान से देख रहा था , पैक करा वापस चल पड़े घर पर.. निफ्फी भी आ चुकी थी.. तो सब ने लुफ्त उठाया.. पर मामा जी तो मम्मी के भाई.. उनको प्याज की गंध लग गयी.. पता नहीं कब डाला वो भगवान ही मालिक.. अम्मा तो नहीं खाई.. खैर.. सैंडविच के साथ बात चित करते माता जी भी अपने फाइनल पैकिंग के लिए.. अब घर वापसी जो थी ... भूख तो नहीं थी .. फिर भी २ रोटी दबा कर बिस्तर पकड़ लिए ..

अब कल मुंबई से delhi की यात्रा.. ऐसा लग रहा था बस कल का दिन आखिरी... उसके बाद मुझे फासी माँ से दूर.. 

"गीले से सुखे की तरफ करते हुए, करवटे न जाने कितनी बदली होगी, 
माँ ने, आज माँ की करवटे, मुश्किल में है, कुछ कर भी तो नहीं सकता, 
बीवी पर ऐतबार के अलावा, बङे रूआब से माँ की बगल, 
सोया हाथ पांव न जाने क्या क्या चलाये, सहमा सा अब हूं, 
तब न था,तब मैं बस में था माँ के, अब माँ बेबस है,और मैं भी ॥"

यही सोचते आज की रात माँ आराम से सोये.. कल पहले मै ही उठुगा.. और अम्मा को जगाउगा .. लेकिन वो तो अम्मा है न मेरी ९ मई २०१५- शनिवार . ४.४० पर उठा तो अम्मा नहा रही थी .. अरे बाप रे.. अभी ५ ही बजा अम्मा नहा रही है .. हम भी कहा पीछे रहने वाले... सिगरेट ले मुख्य दरवाजा खोल के जला लिए.. बाहर भी अँधेरा ही था.. ३ सुट्टा लगाया ही था की अम्मा बाहर .. हमहू सिगरेट भुझा पानी पि .. चले गए निपटान गृह... लेकिन सफलता प्राप्त हुई.. फारिग हो नहाने के लिए घुस गए.. ६ बजे तक हम तैयार लेकिन फ्लाइट १० बजे की .. तब तक मामी जी भी उठ कर चाय पिलाई.. ७ बज चूका था 


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