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Monday, August 17, 2015

बनारस की गालियाँ

वो बनारस का बचपन, खास मुझे याद आता है.. वो अस्सी का होली सम्मलेन, शायद मै जब बाहर किसी से अपने बनारस की बात करता हु, अगर वो पूछ ले हो गया आप के इज्जत का कबाड़ा.. लेकिन सही ये है की ये ही बनारस का रस है.. लोग गाली न दे तो शहर का अपमान है... “भोसड़ी के” तो बनारस का ताज है, अगर आप को न मिले तो बनारस नीरस लगेगा
इस शहर में आप को परमानन्द की अनुभूति होगी, आज भी लोग बनारस में सुबह घाट किनारे निपटने जाते है, फिर लगोटे में दंड पेल, फिर कुछ देर साथियों से बतकही उसके बाद नाहा के मंदिरों में दर्शन पूजन करते चलते है, वैसे तो हमारे शहर में जात पात कोई महत्व नहीं रखता, हमारा जैतपुरा, रेवड़ी तालाब, मदनपुरा हिन्दू मुस्लिम की जुगलबंदी देखने मिलती है, हमारे शहर का मुसलमान भी जब एक अपने हिन्दू दोस्त से मिलता है तो पहले महादेव, कहकर शुरुवात करता है, अगर सामने वाला थोडा बकैती पेल दे तो कम से कम १० पदक तो “भोसड़ी के “ शहर के लोग आराम के साथ दिन की शुरुवात करते ही ये शहर का प्रेम ही है की मस्जिद और मंदिर साथ साथ दिक् जायेगे.. और हिन्दू हो या मुसलमान सुबह भगवान से मिलने से पहले एक दुसरे से मिलते है साथ साथ ही निकलते है, यहाँ एक मस्जिद है लाटभैरो की मस्जिद जहा मस्जिद के बीच में एक मंदिर है मस्जिद में नमाज़ और मंदिर में पूजा एकसाथ होती है

इस लिए बनारस की गालिया मशहूर है, कह लीजिये बनारस का सम्मान जो परंपरा आज तक चली आ रहीहै ..............ये तो बात हुई सहर के भीतरी अलंग   की लेकिन शहर का बहरी अलंग थोडा बदला है, शहर पिछले १० सालो से विकास के सड़क पर दौड़ रहा है, काफी मॉल बन चुके है, मेरे ज़माने के तो सिनेमा हाल भी बंद हो चुके है हमारे ज़माने में तो नटराज, साजन, टकसाल नदेसर वाला ठीक ठाक सिनेमा के लिया, भोजपुरी गरम सिनेमा के लिए तेलियाबाग वाला KCM, हम जैसे बनारसी लतखोर के लिए खोजवा का “शिल्पी” साइकिल ले के ही चल देते थे और स्टैंड में सबसे अनंत में साइकिल जमा करते थे की कोई हमारी साइकिल पहचान न जाय, बस पुरे सिनेमा में ४ मिनट का एक नहाता सिन.. अपने लिये तो वही स्वर्ग के मेनका, जैसे ये शॉट ख़तम हो, हाल खाली हो जाता था , नियमित दर्शक होने के कारण हमको भी टाइम टेबुल समझ में आ गया, जब कोई नयी पिक्चर आती इंटरवल के बाद ही जाते, शहर में बदलाव तो है, कुछ नया दिखा है पिछले १० सालो में , लेकिन जो खट्टर बनारसी है वो बदलने वाला नहीं, आज भी वही रंग है, शहर के लोग समय के हिसाब से नहीं, समय को अपने हिसाब से चलाना चाहते है, फक्कड़ी वैसी ही है, लेकिन लगता है लोग प्रयास में है, हमारे समय तो इतने कान्वेंट स्कूल भी नहीं थे, तो अपने तो राम भरोसे, अब बनारसी थे तो नैया पार लग गयी, लेकिन अब  लोग अधिकतर अपने बच्चो को कान्वेंट में ही शिक्षा करना चाहते है, देखिये आगे का मै कैसे कह सकता हु , लोग सपने देखना सीखे अच्छी बात है, वैसे तो बहुत सी ही खिसियात है बनारस की लेकिन बनारस की गालिया बनारस में जितनी सड़के है , उससे सौ गुनी अधिक गलिया है |  यदि आप बनारस की सडको का मुआइना कर बनारस के बारे में फैसला देंगे तो यह सेंट -परसेंट अन्याय होगा |  असली मजा तो बनारस की गलियों में दुबका हुआ है | 

ये बनारस शहर है, जहा गालिया भी एक संगीत की तरह ही है, बनारस के रहन सहन भी कुछ अलग ही है, पता नहीं किसी और शहर के बारे में लिखा है की नहीं लेकिन हमारे काशी के बारे में तो शास्त्रों में भी रिसी मुनि ने लिख दिया है, गलियों का आधार तो अभी बनारस में अपराध ही है..बनारस की आदत थी। २००३ - २००४  के आसपास। क्या शानदार गैंग वार होता था। पखवाड़ा न बीतता कि चेतगंज तो कभी पाण्डेपुर तो कभी सारनाथ, कभी गोदौलिया पर दनादन गोलियां चलती थीं। बड़े बड़े बम विस्फोट होते थे। पेज वन के लिए खबरों की कमी नही रही। कह लीजिये की उस ज़माने में बनारस बनारस ऐसे होनहारो को तैयार करता था   

बनारसी भाषा में उन्हें 'पक्का महाल '-'भीतरी महाल ' कहते है |  काशी खंड के अनुसार विश्वनाथ खंड -केदारखंड की तरह वर्तमान बनारस भी दो भागो में बसा हुआ है -भीतरी महाल (पक्का महाल ) और बहरी तरफ |  आपने सिर्फ बाहरी रूप अर्थात कच्चा रूप देखा है |  पक्का रूप देखना हो तो गलियों में थरान दीजिये |  यहा की सड़के अभी जुमा -जुमा आठ रोज हुए बनी है यानी 'लली ' है |   बेचारी ठीक से सुख भी नही पायी है |  यकीन   न हो तो किसी दिन गर्मी के मौसम में पैदल चलकर देख लीजिये | सुकतल्ला सडक पर चिपककर रह जाएगा और हवाली जुटा आपके पैरो में |  यदि जूता काफी मजबूत हुआ तो बनारस की धरती इस कदर प्यार से आपके कदमो को चूमेगी की उससे अपना दामन छुडाने में आप को छठी का धुध याद आ जाएगा |  अगर आपकी यह कसरत बनारसी -पठ्ठो ने देखि तो -'बोल छ्माना छे ;खिल्छे रहे पठ्ठे ,जाए न पावे 'फिकरा कास ही देंगे |कहने का मतलब यह है की बनारस की सड़के हर पैदल चलनेवाले मुसाफिरों से बेहद मुहब्बत करती है |  इनकी मुहब्बत हर मौसम में अलग -अलग ढंग से पेश आती है |बरसात में इनकी होली देश विख्यात है और बसंत ऋतू में जब ये आप पर 'गुलाल 'बरसाने लगती है तो मत पूछिए !  आनन्द आ जाता है |

यहाँ होली वाले दिन एक कवी सम्मलेन होता है जिसमे माइक का प्रयोग नहीं होता और वह सिर्फ गलियों की कविता कही जाती है एक उदहारण है सांड बनारसी का ................. चर्चौन्धी का मेला पहुचे पेले गुरु और चेला काफी मशहूर कविता है यहाँ किसी को अगर शब्द उत्तम लगे तो वह  वाह वाह नहीं कहा जाता है बल्कि बनारसी तरीके से कहा जाता है , होली की एक दिन पहले की शाम जिसको होलिका कहा जाता है, शहर के होनहार ढोलक पिट कर घर घर चंदा मागते, जो न दे बस शुरू, महतरिया बहिनिया, चंदा मिले तो होलिका के आग लगे, फिर दारू पार्टी, सुबह होते ही शाहिर में तेल तेल और बरनिस पोत कर निकल चले खलने होली, अब मोहल्ले में तो क्या गरियाये, असली मजा तो बनारस में देवर भौजी का ही होता था, अब वो भोजपुरी गानों में फिल्माया जाता ही, हमारी तो कोनो भौजी थी ह नहीं तो बस सोच के कुलकुला लेते थे, फिर १२ बजे घर आ कर नाहा धो, माता जी के हाथो का कचौड़ी सब्जी, कुछ खास ही बनता था होली में, मै लग जाता था गुझिया नमकीन बनवाने में, जब बड़े हुवे तब पता चला की बनारस के भीतरी अलंग का नजारा कुछ और ही है, वहा तो भांग ठंडाई का दौर चलता था वो लोग होली खेलने के लिए नया कुर्ता पैजामा सिलवाते, रंग अबीर से खेलते, और हम लोग पुराने फटे कपड़ो में, ताकि होली खलने के बाद कपडा फेकना ही पड़े, बस वैसे ही मनती होली, होली की दिन भर की लंठई, लेकिन शाम का बेसब्री से इतजार, अस्सी जाना है, होली का गांडीव विशेषांक से सुरु होता था लंठई का दौर, शिव लिंग की परिभाषा ही बदल जाती थी, पुरे शहर में औरते लडकिया कहा चली जाय पता ही न चले, शाम को ५ बजे ही अस्सी पहुच जाते, पहले होली पर लिखी विशेष पुस्तक जैसे मस्तराम और भी ब्लैक एंड वाइट सचित्र किताबे, होली की जो भी त्योहारी मिले सब इसी सत्कर्म में, बनारस के लिए शायद अलग और सपष्ट ही लिखा है तुलसीदास ने कि––

            जांत–पांत पुछे नहि कोई !
           बुर को भजे सो बुर का होई !!
 
यहाँ की गलियो के पीछे एक आधार है अब आप ही देख ले ... इन सब के लेखक बनारस की शान में उस समय के महाबली कवी श्री बद्री विशाल जी और चकाचक बनारसी जी का दर्शन कुछ ऐसा कहता है
     
चूत महिमा
भारतीय दर्शन और आध्यात्म के लगभग सभी ग्रन्थ बुर की महिमा से भरे पङे है ! संस्कृत भाषा मे बुर को ‘भग’  अथवा ‘योनि’ की संज्ञा दी गई है ! प्राचीन भारतीय साहित्य जिसमे वेद,पुराण,उपनिष्द,सूत्र,स्मृति आदि सभी सामिल है, का एकमात्र यही उपदेश है कि ‘भग’को आत्मसात करो तभी भगवती अथवा भगवान  (भग आवान से साक्षात्कार होगा ! पुराणे मे भग से ही भगवान की उत्पत्ति बताई गई है ! देवाधिदेव महादेव भी इस शक्ति के बिना शव है !इसलिए वे हमेशा बुर मे ही रहते है !

आश्चर्य है कि ऐसे महत्वपूर्ण और क्रियाशील अंग को लोग अश्लील मानते है ! यह एक निर्विवाद सत्य है कि बुर को अश्लील कहने वाले बुर मे चले गये ! ये विद्वान ! इनकी मां की चोदो भोसङी वाले ! इसको अश्लील कहते है ! पुराणो मे यह सपष्ट कहा गया हैकि बुर की नीन्दा करने वाला व्यक्ति घोर नरकगामी होता है !
वही यह भी लिखित है कि इसमे रमे रहने वाला व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है ! चूतलिंग पुराण के बारहवे अध्याय मे बुर की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है,

      यथा पर स्त्री दर्शनम् स्र्पशम ्पापनाशनम् !
    चुम्बनम् सर्वतीर्थानाम् चोदनम मोक्ष दायकम् !!


सृष्टि का आदि और अंत बुर से ही है !बुर की महिमा से देवता भी अछुते नही रहे ! पौराणिक कथाओ मे बुर के चक्कर मे इन्द्र पद प्राप्त नहुज स्र्वग से गीरकर अजगर बन गये ! त्रेलोक्य विजयी रावण लौङे के दक्खिन लग गया ! बुर के चक्कर मे महाभारत हो गया विश्वामित्र मेनका के आगे हार गये इस प्रकार की कहानीयां स्वयं बुर की महिमा स्पष्ट करती है !स्वतंत्र भारत मे  भी इन्दिरा गांधी से लेकर महिला नेत्रियो तक सभी की कार्यक्षमता के आगे अच्छे–अच्छे लण्डधारी लांड चाटते है! इसलिए मानव मात्र का यह प्रथम कत्र्तव्य है कि नियमित रुप से बुराधपान किया करे और मस्त रहे !वर्तमान साम्प्रदायिक तनाव और जातिय वैमनस्यता को बुर के माध्यम से आसानी से हल किया जा सकता है  ! हर प्रकार की समस्या को आप बुर में डाल सकते है लेकिन उसके बावजुद भी आपकी बुर चुदती रहेगी ! इसलिए बुर का उपयोग उपभोग और आराधना करना ही मोक्ष प्राप्ती का सहज और सरल साधन है !

और खट्टर बनारसी के जीवन के यथार्थ भी कुछ ऐसा ही है

१. गरीब और चूँची हमेशा दबाए जाते है !
२. चेहरे की अदा चूत पर कहर बनकर टूटती है !
३. चूत और साधू जात नही पुछा करते है !
४. वीर्य और पानी हमेशा गढढे मे उतरते है !
५. किस्मत और ब्रा किसी भी वक्त खुल सकती है !
६. लांङ और सांङ पुचकारने पर टाइट होते है !
७. रंडी और बंडी हर रात बदल लेनी चाहिए !
८. मुसीबत और लण्ड कभी भी खङे हो सकते है !

इतना ही नहीं एक बनारसी के सफल  दांपत्य के नौ सूत्र भी बनाये गए है

१. यदि आपकी बीबी मोटी हो रही हो तो उसे लोङे पर बैठाइए ! खुद ब खुद समझ जाएगी डाइटींग  करनी है!
२. अङियल बीबी का टेस्ट बदलना है तो लिटाकर चूत चाटना शुरु कीजिए लौङा अपनेआप मंह मे चला जाएगा !
३. भूख लगी हो तो लण्ड टाइट कर किचेन मे जाइए और बीबी की चूँची दबाकर मुस्करा दीजिए ! वह समझ जाएगी कि खाना जल्दी बनाना है !
४. दाँत साफ करके बीबी के सामने चिआरने का मतलब होता है कि आप शुबह–शुबह गदहो की तरह चोदाइ चाहती है !
५. बीबी अगर दाँतो पर जीभ फेर रही है तो इसका मतलब है कि वह चूत की मलाई आज आपको टेस्ट कराएगी !
६. बीबी जब तेल चुपङकर बालो मे चोटी या जुङो बांध ले तो हत्थु मारिए क्यो कि उसका रास्ता बँद हो चूका है !
७. बीबी जब बालो मे शैम्पू कर बिखेर ले तो शामको चमेली के फूल ले कर आइए ! वह सुहागराती चूदाइ चाहती है !
८. बीबी को उसकी  चूत का ढीलापन कभी याद मत दिलाए ! वह सर्तक हो जाएगी और नवेली नौकरानी चोदने का आपका क्रम टूट जाएगा !
९. बीबी अगर शिकायत करती है कमर दर्द की तो चूकिए मत  ! उसका मन गाँड मराने का कर रहा है !


उस ज़माने में तो इतना टी वि और इन्टरनेट तो था नहीं तो लोग
मादर चोद चुटकले से ही शांति कर लेते थे जैसे, ::
एक दिन बीबी को चोदने के लिए तैयार सरदार का लण्ड खङा नही हुआ ! परेशान सरदार लण्ड ले जाकर टब मे डुबोने लगा ! सरदारनी ने पुछा —‘ये क्या कर रहे हो ? सरदार––– देख रहा हूँ पंचर तो नही हुआ !

बिल्डर का पुत्र–– पिता जी मुझे प्यारी सी बहीन चाहिए !
बिल्डर–– बेटा उसके लिए तो नौ महिने इंतजार करना होगा !
बेटा––– इतनी देर नही चलेगी ! चार आदमी और लगा दो !

गल्र्स हास्टल की बिजली चली गई तो एक लङकी ने बिजली ऑफिस मे फोन करके कहा —लाईट चली गइ है आदमी भेजो !
उधर से जवाब आया –– आदमी नही है मोमबती से काम चला लो !
एक हकला इंटरप्व्यू देने गया ! उसे बोलने के लिए दिया गया —— इंस्टीट्यूट,आब्स्टीट्यूट,सबसीट्यूट !
हकले ने पढा—— इन की चूत,आपकी चूत,और सबकी चूत !

होटल ओबरॉय की महिला रुम अटेडेंट ने होटल शेरेटन के रुम ब्वॉय से पुछा— कितना कमा लेते हो !
रुम ब्वॉय—२५०० उपर से २०००
महिला अटेडेंट— १५०० और नीचे ५०००

सृष्टी के सम्बन्ध में एक बनारसी विद्वान का भी बिचार भी कम नहीं है .. अब ये भी दर्शन देख लीजिये...

आदमी आज तक नहीं समझ पाया की यह लंड बुर का आपसी खेल कब से चल रहा है .. बुर से लौंडा आया या लौंडे से बुर आयी/ इस तथ्य की खोज करते करते न जाने कितने ऋषि मुनियों की परम पूज्य माताए चुद गयी पर झांट नहीं पता लग सका/ इसका बस एक ही कारण है की यह बिषय न सोचने का है न कागज कलम का/ बात बस लौंडे और बुर का ही है अतः हे खोज करने वाले माधरचोदो, तुम इंही के सामने अगर तुम पुरुष हो तो अपना लंड और नारी हो तो अपनी चुत खोल कर सो जाओ, वो अपने आप ही पता लगा लेगे की यह क्रम कब से चल रहा है, फिर भी अपनी माँ चुदवाना ही चाहते हो तो सुनो—

प्रकृति खूब श्रृंगार पत्तार किये एकांत में बैठी थी, उसके सामने एक लतिका दिखाई पड़ी जो बगल में खड़े एक बिशाल बृक्ष की ओर अपनी बाहे फैला फैला कर उसे छुने का प्रयास कर रही थी/ बृक्ष भी उसके इस क्रिया कलाप को उत्सुकता से देख रहा था, उसने अपनी बाहों की छाया और बड़ा दी / लतिका प्रसन्न हो गयी और दौड़ कर बृक्ष से लिपट गयी / लिपटी तो लिपटती रह गयी , बृक्ष भी लपेटता ही रह गया/ चड़ते लिपटते वो बृक्ष के मुख तक पहुच गयी बृक्ष उसे चूमने लगा, बृक्ष ने देखा की उसकी नाक सुनी है तो उसने अपनी सबसे पतली टहनी से उसके पत्ते में एक छेद कर दिया अर्थात उसकी सुन्दर सुडौल नासिका में कील डाल दिया  फिर देखा तो लतिका पहली निशानी पा कर मुस्कुरा रही थी , बृक्ष ने उसे चूम लिया लतिका फिर मुस्कुराई और अपनी एक बांह बल्लरी से बृक्ष को कस लिया ! बृक्ष ने लगातार कई चुम्बन उसके सुन्दर कोमल अधरों पर चस्पा कर दिया लजा कर ज्यो ही लतिका ने अपना मुह फेरा और उसके अरुण कपोल बृक्ष के सामने आयी तो बृक्ष ने उसके कानो में कर्णफूल डाल दिया / लतिका लज्जित हुई , उसके कपोल सिहर  उठे, कर्ण लाल हो गए , बृक्ष ने उसे और कसना चाहा उसे लगा की लतिका अपने हाथो से सहला रही है बृक्ष प्रसन्न हो गया और अपनी प्रसन्नता से लतिका की अंगुली में अंगूठी पहना दिया/ लतिका के कटी प्रदेश का उपरी भाग सज ही गया किन्तु बृक्ष की समय सीमा टूट गयी, उसने अपनी बांहों का कंठहार लतिका के गले में डाल दिया , लतिका कुछ नहीं बोली बृक्ष ने उसे और लपेट लिया, लपेटती चली गयी निरंतर......./ बृक्ष लिपटता चला गया और उसने उसके नितम्बो को सहला दिया, अंगुलियों से कुछ ऐसा कर दिया की लतिका आनंद विभोर हो गयी और दोनों एकांतर हो गए दोनों में कुछ भेद नहीं रहा /

इस दृश्य को दो प्रेमी प्रेमिका मगर एक दुसरे से दूर पृथक पृथक देख रहे थे , दोनों एक दुसरे की ओर बढे और बिना किसी अनुबंध के लिपट गए तब से वो आज तक लिपटे पड़े है और लिपटते जा रहे है
यही है लौंडे और बुर का ;सृष्टी सञ्चालन, समझ गए न माधरचोदो

ऋषि-मुनियों, विद्वानों आदि से हमें यह परम्परागत ज्ञान प्राप्त होता आया है कि जीवन में हमेशा कर्म करते रहना चाहिए, यानी आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमारी संस्कृति एवं इतिहास भी यही कहता है कि कर्म करो और आगे बढ़ो। 

वास्तव में जो व्यक्ति, बिना रुके-बिना थके परिश्रम करते रहते हैं, निश्चित रूप से जीवन में वही आगे बढ़ते हैं। यानी कर्म ही ईश पूजा है। दरअसल, जो व्यक्ति श्रम करते हैं, कर्म करते हैं, वही आगे बढ़ते है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कर्मशील एवं परिश्रमी व्यक्ति का सामना अनगिनत समस्याओं से होता है। लेकिन उनका परिश्रम सभी मार्गो को सुगम एवं सुखद बना देता है। इससे उनका जीवन उपलब्धियों से भरा हो जाता है। वास्तव में, आपको अपने लक्ष्य की दिशा में लगातार कर्म करते रहने से ही सफलता की प्राप्ति होती है। आप देखेंगे कि आपके राह की समस्याएं स्वत: समाप्त हो गई  इसलिए जाओ तुम भी इस संसार में यही सब करो,

तुमको मेरे लौंडे का आशीर्वाद/
 

>>>>>आप इस लिंक पर अस्सी का कवि सम्मेलन को महसूस कर सकते है   


समय बदल चूका है.. अब अस्सी पर नहीं, मैदागिन के टाउन हाल में होता है.. अंदाज वही है लेकिन शबाब बदल गया है..  अब तो इन्टरनेट पर ही इतने पोर्न मूवी, और रंग बिरंगी किताबे आ चुकी है की बहरी अलंग का मिजाज बदल रहा है, हा भीतरी अलग के लोग आज भी अभी इस चका चौध से दूर है, ऐसी कितनी ही यादे है, वो किताबे छुपा छुपा के रखना, दिवाली की सफाई में सबसे पहले उन किताबो को ही सुरक्षित रखना पड़ता.. कही पकडे गए तो एक महिना बिस्तर पर ,नहीं कहा जा सकता बनारस की महिमा को, बहुतो ने लिखा है बनारस के बारे में, लेकिन लोक लाज से शायद इस विषय को नहीं लिख पाए होगे, पता नही किसी को ये जीवन शैली पसंद न हो, अच्छा न लगे लेकिन असली बनारस तो ऐसा ही है 


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2 comments:

  1. बैकग्राऊंड हल्के रंग में कर सकें तो मेहरबानी होगी
    पढने में आंखों पर बहुत जोर पडता है

    प्रणाम

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    1. सर.. आप कलर सजेस्ट करे.. बेहतरीन रंग कौन सा हो सकता है इस पेज के लिए... बना दिया जायेगा.. :)

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