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Saturday, May 28, 2016

भगवान तिरुपति के दर्शन

(28 April 2016 Thursday) भक्‍तों के ठहरने के लिए वहां धर्मशाला से लेकर कॉटेज तक की पूरी व्‍यवस्‍था है...और इनका किराया महज ५० से १००० रुपए रोज पर आपको यहां धर्मशाला और कॉटेज मिल जाता है, लेकिन इसके लिए इंटरनेट से पहले ही बुकिंग लेनी पड़ती है। लेकिन हमने कोई बुकिंग नहीं की थी... तो drivar के साथ पहुचे कमरा लेने के लिए... उसको बोला एक AC रूम दिलवा दे भाई... बुकिंग आफिस में करीब १५० लोगो की लाइन... हम भी लगे लाइन में... वहा डिस्प्ले के माध्यम से खाली कमरों की सुचना दी जाती है जिसमे AC रूम सिर्फ २ ही थे जो खाली नहीं थे... सिर्फ ५० रुपये वाले ही कमरे.. तो क्या करते ले लिए ५० रुपये में काटेज जिसके लिए ५००/- रुपये कासन मनी जमा करनी पड़ती है जो
खाली करते समय वापस मिल जाती है.. तिरुपति में अगर कमरा किराए पर लेना है तो अपना आईकार्ड दिखाना होगा.. तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर के दर्शनों के जाने वाले दर्शनार्थियों को तिरुपति परिसर में ठहरने के लिए अपनी पहचान बतानी पड़ती है आप अपने पहचान पत्र में सारा डिटेल लिख कर दे दीजिये.. और वो कंप्यूटर में दर्ज कर लिया जाता है साथ में अंगूठे के निशान बाय़ोमिट्रिक मशीन से स्कैन किये जाते है... सामने ही लगे कैमरे में आप की तस्वीर भी ले ली जाती है .. ये सब प्रक्रिया करने के बाद हो गया हमारे ठहरने का प्रबंध काटेज में । 

बालाजी के दर्शन के लिए सामान्‍य दिनों में करीब एक लाख और विशेष दिनों में पांच लाख तक भक्‍तों की भीड़ होती है, इसलिए वहां जाकर रूम बुक कराने का विचार मन से निकाल दीजिए... और हां यदि आपने दर्शन कर लिया है तो आपको अधिक देर तक रूम में रहने की इजाजत भी नहीं होती, क्‍योंकि कोई दूसरा भक्‍त उस रूम के लिए इंतजार कर रहा होता है। वैसे यहां नि:शुल्‍क कमरे व डोरमेट्री में ठहरने की भी व्‍यवस्‍था है। भाषा की जानकारी न होने की वजह से टैक्सी वाले के मदत से ही हम माता श्री को ले और औपचारिकताये पूरा कर के पहुच गए अपने रूम में फस्ट फ्लोर का एक दम फ़्लैट स्टाइल काटेज २ कमरों का साफसुथरा और बड़ा बाथरूम... मन प्रस्सन वाह... अपने तरफ को लोग वहा पहुच जाये तो लोग कब्जिया के वही बैठ जाये... खैर कमरे में सामान रखकर निचे उतरे चाय की खोज में.. यहाँ चाय बनानेका ढ़ंग भी निराला है, और चाय हमेशा तैयार रहती है, पर हमेशा ताजी, बनी बनायी नहीं। चाय की पत्ती का बर्तन अलग होता है अपने मग्गे जैसा और उसमें एक लंबी से छलनी रखते हैं, जिसमें चाय पत्ती रहती है और मग्गे में पानी जो कि चाय का हो जाता है, अलग से गिलास में शक्कर डालकर थोड़ी से चाय का अर्क इस छलनी में से गिलास में डालते हैं, और फ़िर थोड़ा सा दूध डालकर उसे एक मग से अल्टी पल्टी करते हैं। बस हो गयी चाय तैयार। ..माता जी को चाय पिला फिर फ्रेस हो नहाये धोये । धोये इसलिये क्योंकि ट्रेन में दो सफर हो चुके थे और इन दिन में कोई कपडा धोया नही गया था तो यहां पर सबसे पहले ये काम निपटाया गया और उसके बाद मै चला बाहर जी जानकारी लेने 

भगवान व्यंकटेश स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है। हर साल करोड़ों लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं। साल के बारह महीनों में एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब यहाँ वेंकटेश्वरस्वामी के दर्शन करने के लिए भक्तों का ताँता न लगा हो। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान भारत के सबसे अधिक तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। इसके साथ ही इसे विश्व के सर्वाधिक धनी धार्मिक स्थानों में से भी एक माना जाता है। तिरुपति विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धनी देवस्थान है, वहाँ पर भक्तों के लिये सभी सुविधाएँ मुफ़्त उपलब्ध हैं या फ़िर बहुत ही कम दामों पर। लूट तो हर जगह होती है, बस जरुरत है तो आपको ऐसे लोगों से बचने की। तिरुमाला में किसी भी ठग का शिकार न बनें वहाँ पर तमिल, तेलेगु, हिन्दी और अंग्रेजी में सभी तरह के संदेश लिखे हुए हैं, किसी से कुछ भी पूछने की जरुरत नहीं पड़ती है। तिरुमाला में बसें लगातार चलती रहती हैं, जिससे आप एक स्थान से दूसरे स्थान जा सकते हैं, ये भी मुफ़्त हैं, और बसें भी विशेष प्रकार की हैं, जैसे भगवान का खुद का रथ हो।

तिरुपति बालाजी की यात्रा के कुछ नियम भी हैं। नियम के अनुसार, तिरुपति के दर्शन करने से पहले कपिल तीर्थ पर स्नान करके कपिलेश्वर के दर्शन करना चाहिए। फिर वेंकटाचल पर्वत पर जाकर बालाजी के दर्शन करें। वहां से आने के बाद तिरुण्चानूर जाकर पद्मावती के दर्शन करने की पंरापरा मानी जाती है।

कल्‍याण काट या केश मुंडन जगह केश मुंडन बाला जी की प्रधान मनौती है। मंदिर में देश के विभिन्न भागों से जनसमूह प्रभु के दर्शनों के लिए आता है. श्रद्धालु यहाँ आकर अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए प्रार्थना करते हैं. अपनी सुख व समृद्धि की आस लगाकर भगवान से वरदान माँगते हैं. जब उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं तब वह भगवान का आशीर्वाद मानकर श्रद्धा, आस्था तथा विश्वास के साथ अपने सिर के सारे बालों को कटवा देते हैं. स्त्री हो अथवा पुरुष हो दोनों ही मुराद पूरी होने पर अपने केशों का दान मंदिर में करते हैं. प्रतिदिन हजारों व्यक्ति अपने सिर का मुण्डन करवाते हैं. इन कटे हुए बालों से भी मंदिर को बहुत सा राजस्व मिलता है. कटे हुए बालों का निर्यात भी किया जाता है.
तो हम भी लग गए लाइन में मुंडन के लिए, २०० लोगो के पीछे... लेकिन लाइन फटाफट आगे खिसकती गयी.... गेट के पास एक निशुल्क टोकन, एक ब्लेड और मुंडन के बाद सर पर लगाने के लिए एक एन्टीसेप्टिक की टिकिया भी दी जाती है.... हाल के अंदर प्रवेश करने पर तुरंत सिट मिल गयी... क्यों की इस काम को करने के लिए एक बहुत ही संख्या में कर्मचारी लगे होते है.... बस दो मिनट में ही... सर के बाल और दाढ़ी मुछ सफा चट्टा.. वापस कमरे में पहुच, माता जी को ले चले बाला जी के दरबार में, रूम से उतारते ही एक टैक्सी मिल गयी, बस सवार हो पहुच गए बाला जी के दर्शन करने । टैक्सी वाले ने मंदिर के पास के गेट (बैकुंठ तोरण ) पर छोड़ दिया
बैकुंठ तोरण, जिन्‍होंने केश समर्पण किया है वो और जिन्‍होंने ने नहीं किया है वो भी मंदिर के इस फाटक से प्रवेश करते हैं, जिसे बैकुंठ तोरण कहा जाता है। अंजान जगह, अंजान बोली .. मंदिर किधर को है और रास्ता किधर को, सामने दिखा पूछ ताछ आफिस.. वहा पूछने पर पता चला की वहां दर्शन के लिए नि:शुल्‍क व्‍यवस्‍था तो है ही, लेकिन भीड़ से बचने के लिए ३०० के टिकट की भी व्‍यवस्‍था है, जिसमें अलग-अलग जगह से लाइन में बीच में प्रवेश का रास्‍ता बना हुआ है। लेकिन अब स्पेसल दर्शन का टिकट ऑनलाइन ही मिलता है जो हमने कराया नहीं था अब सिर्फ एक ही रास्ता निशुल्क दर्शन पता चला कि विशेष दिनों में सामान्‍य दर्शन में १५० घंटे तक लग जाते हैं, लेकिन आज कल अधिकतम छह घंटे में दर्शन हो जाता है। पाइप की लम्बी बैरकेटिंग के बीच चलते पहुच गए मुख्य द्वार में जहा मोबाइल चप्पल जमा कर मुख्य भवन के अन्दर प्रवेश कर पुनः एक बार चेकिंग की प्रक्रिया को पार कर पहुच गए दर्शन के रास्ते में, माता जी को ले निशुल्क दर्शन के लिए लेकिन अभी कहा, अभी तो दिन के तीन ही बजे थे सोचा था की दर्शन के पश्चात ही खाना खायेगे लेकिन दिल्ली दूर थी.. जेल की बैरक की तरह वहा कई हाल जहा भक्तो को बैठाया जाता है जब वो हाल भक्तो से भर जाता है तो पीछे से गेट बंद कर दिया जाता है तो हम भी पहुच गए एक हाल के अन्दर हाल में खचाखच भीड और वो दोनो ओर से बंद है जिस क्रम में हाल बंद होंगे उसी क्रम में दर्शन के लिए खुलेंगे यानि की श्रद्धालु उसी क्रम से छोडे जायेंगें । और लड्डू का टोकन भी यही मिलता था, पूछ ताछ पर पता चला की रात ११ बजे अपना नंबर आएगा, सब बनारसी दिमाक लगाया लेकिन एक भी न चली... क्यों की वहा टिकट की कोई ब्यवस्था नहीं थी.. इतनी धक्का मुक्की थी कि पूछो मत । भूख के मारे जान निकल रही थी और खडे खडे पैर दुख गये थे । 


बुरा हाल था । माता जी को ले निकल गए बाहर, अब टिकट ले के ही दर्शन करेगे, बाहर निकल चप्पल मोबाइल लेने गए तो पता चला की वो मंदिर के बाहर निकलने वाले मार्ग में ही मिलेगा, घूमते घूमते सामान वापस लिया और पहुच गए नास्ता करने, भर पेट नास्ता कराया माता जी को इडली डोसा हमने कुछ और देखने की नही सूझ रही अब टिकट कैसे मिले उसकी ही चिंता, सो रूम वापस जाने के लिये गाडी ढूंढी और फिर पहुंचे वापस पहुचे रूम, वहा लैपटॉप पर शुरू कर दी ऑनलाइन टिकट के जुगाड़ के लिए, रजिस्टेसन करने के बाद बुक हो गया दो लोगो का ६०० रूपये का टिकट और ४ लड्डू .. माता जी को ले निकले टिकट प्रिंट करने फिर बाजार घूम लिया, काफी देर एक मार्किट में बैठे थे, देखते रहे लोगो की एक्टिविटीज एक मंदिर में चबूतरे पर बैठकर वहाँ की स्थानीय भाषा में भजन हो रहे थे, हालांकि हमें बोल समझ में तो नहीं आ रहे थे परंतु, बहुत ही आनंद मय वातावरण था काफी देर आनंद लिया फिर एक होटल से अपने लिए और माता जी के लिए खाना पैक करा वापस रूम में... खाना खाने के लिये यहां पर कोई दिक्कत नही है । शाकाहारी लोगो के लिये काफी विकल्प हैं माता जी को खिला, पकड़ लिया बिस्तर...


अगले दिन (29 April 2016 - Friday )के दर्शन के लिए ११ से १२ का टाइम सो सुबह 7 बजे नींद खुली, नहा धो १० बजे निकल पड़े माता जी को दर्शन के लिए, कल की दौड़ भाग से रास्ता पूरा समझ में आ चूका था, सो पैदल ही, फोटो खीचते चल रहे थे, मंदिर के करीब फिर एक बार सूचना कक्ष में फिर से समझ लिया मंदिर का रास्ता, रेडीमेट नोटिस दिखा दिया साहेब ने “The Special Entry (Rs.300/-) Darshan Pilgrims are requested to report at "ATC CAR PARKING AREA". रास्ता तो पता चल गया, लेकिन सुचना अधिकारी ने बताया की लाकर रूम में कैमरा और सेल्फी स्टिक जमा नहीं होगी, तो वापस रूम में रख चल पड़े अपना मोबाईल बंद करके चप्पल के साथ जमा कर दिया स्टैंड में, केवल कुछ नकद और क्रेडिट कार्ड और पासपोर्ट की फोटो कॉपी पहचान पत्र के हिसाब से लेकर चल दिये अन्दर तिरुपति बालाजी देवस्थानम के शीघ्र दर्शनम के लिए ATC CAR PARKING AREA की तरफ । कल जहा फ्री दर्शन की लाइन में लगे थे पास में ही टिकट की लाइन थी हम तो तीन सौ के टिकट को भी बहुत सुपर मान रहे थे आज तक किसी पिक्चर का भी नही लिया था। फ्री दर्शन वालीब्यवस्था से कुछ ये अलग ही थी, कल की तरह वैसी भीड़ नहीं दिखी, कुछ दूर चलने के बाद एक बड़े हाल में प्रवेश करना पड़ता है, फिर टिकट की स्कैनर द्वारा जाच पहचान पत्र के जाच के बाद सुरक्षा जाच, फिर शुरू होती है लाइन, हम लाईन में लग लिये, और महामंत्र “हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” का जाप करने लगे। कुछ लोग “ऊँ वेंकटेश्वराय नम:” का जाप कर रहे थे, कुछ समूह में लोग थे जो “गोविंदा गोविंदा” कहकर धीरे धीरे रेंग रहे थे जैसे ही पहला बैरिकेड पार वहीं पर देवस्थानम के गुंबद का छोटा सा मॉडल बना हुआ रखा था। फ़िर बेरिकेड्स के रास्ते धीरे धीरे आगे बड़ने लगे। नीचे पहुँचे तो वहाँ रास्ते में ही कमरे जैसे बनाये हुए हैं, जिसमें बैठने के लिये बैंच लगा रखी हैं, जिस पर बैठकर सुस्ता सकते हैं जब तक कि वहाँ का दरवाजा नहीं खुल जाता। इस तरह कम से कम दस दरवाजों से गुजरना पड़ता है लेकिन शीघ्र दर्शनम के लिए लेकिन ज्यादा भीड़ न होने के कारण हमें उन कमरों में नहीं जाना पड़ा.. क्यों की अपनी लाइन धीरे धीरे चल रही थे। फ़िर एक लंबा सा गलियारा आया और फ़िर बिल्कुल खुला हिस्सा जहाँ पर एक पुल से देवस्थानम की ओर जाना था, यहाँ सुन्दरसन दर्शन और मुफ़्त दर्शन वालों की लाईन साथ में ही लगी हुई थी, अब अंतर यह था कि वे लोग खड़े थे और हम लोग फ़टाफ़ट आगे बड़ते जा रहे थे। जल्दी ही बालाजी के मुख्य मंदिर का द्वार आ रहा था। मुख्य द्वार के पहले एक अजीब सी बात देखने को मिली कि मंदिर की दीवार बहुत ही प्राचीन थी मंदिर का मुख्य द्वार आ चुका था, वहीं पर पानी का छोटा सा स्रोता जैसा था, जिससे अपने पांव शुद्ध हो जायें। और फ़िर बिल्कुल सामने मुख्य मंदिर था, जहाँ तिरुपति बालाजी विद्यमान हैं। बिल्कुल ऐसा लगा कि स्वर्ग में आ गये हों, पूरा मंदिर स्वर्ण जड़ित है, स्वर्ण की आभा से सब दमक रहा .... पूरी मूर्ति के दर्शन होते हैं सिर्फ शुक्रवार को मंदिर में बालाजी के दिन में तीन बार दर्शन होते हैं। पहला दर्शन विश्वरूप कहलाता है, जो सुबह के समय होते हैं। दूसरे दर्शन दोपहर को और तीसरे दर्शन रात को होते हैं। इनके अलावा अन्य दर्शन भी हैं, जिनके लिए विभिन्न शुल्क निर्धारित है। पहले तीन दर्शनों के लिए कोई शुल्क नहीं है। भगवान बालाजी की पूरी मूर्ति के दर्शन केवल शुक्रवार को सुबह अभिषेक के समय ही किए जा सकते हैं। 



तो शुक्रवार का दिन .. दो घंटे लाइन में लगने के बाद माता जी को ले मंदिर के गर्भगृह में पहुंचे । बहुत भीड़ थी, जैसे जैसे मंदिर में अंदर की ओर जा रहे थे, भीड़ का दबाब बड़ता जा रहा था। रेलिंग के बीच फ़ँसे हुए हम लोग आगे जा रहे थे, बालाजी बिल्कुल हमारे सामने थे, हम एकटक देखे जा रहे थे, मात्र १ या २ मिनिट होते हैं चलते हुए ही दर्शन करने होते हैं, हम भी अपने हाथ ऊपर करके गोविंदा गोविंदा करते हुए दर्शन लाभ ले रहे थे, हम भूल गये थे कि हम भीड़ में हैं, पूरे मनोयोग से बालाजी में ध्यानमग्न थे, बालाजी हमारे सामने थे, सबसे आनंददायक क्षण थे
साभार : गूगल तिरूमल (तिरुपति) बालाजी
ये जीवनकाल के। रोम रोम भक्ति में डूबा हुआ था, सामने हल्की सी टिमटिमाती रोशनी में बालाजी के दर्शन से हम धन्य हो गये। भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन किये और बाहर मंदिर परिसर में आ गये । हम जैसे ही बाहर निकले हमारे ठीक दायीं ओर एक द्वार था, जिस पर ताला लगा हुआ था और लाख की सील लगी हुई थी, जिस पर लिखा था, वैकुण्ठ द्वार, जो कि केवल वैकुण्ठ चतुर्दशी और उसके अगले दिन ही खुलता है। फ़िर वहीं पास में बैठकर हम मंदिर के गुंबद को बाहर से निहारने लगे। भला स्वर्ग में से भी किसी के जाने की इच्छा होती है। वहाँ और भी मंदिर थे, उनमें भी दर्शन किये। वहीं पर लक्ष्मीजी की एक मूर्ती थी लोग उस पर अपना पर्स, नोट छूकर अपने को धन्य मान रहे थे, बेचारे सुरक्षाकर्मी उन्हें भगाभगाकर परेशान थे। वहीं फ़िर बालाजी की हुंडी थी, जिसमें लोग अपना हिस्सा बालाजी को देते हैं। हमने कई लोगों को देखा जो बड़ी रकम भी डाल रहे थे, और अपने को धन्य मान रहे थे। सब अपनी श्रद्धा अनुसार हुंडी कर रहे थे। हुंडी एक बड़ा सा पात्र जैसा होता है, जिसमें बालाजी के लिये चढ़ावा डाला जाता है, जो कि एक बड़े सफ़ेद कपड़े से घड़े जैसी आकृति का पात्र होता है।

फ़िर वापिस मुख्य द्वार से बाहर की ओर निकले, उल्टे हाथ की ओर जाना था, वहीं पर बालाजी के यहाँ आये हुए चढ़ावे की गिनती होती है, ये जेल जैसा एक लंबा सा रास्ते के साथ जाते हुवे गलियारे में बनाया गया है, जिसमें हुंडी में और दानपेटी में आई हुई रकम और आभूषणों को आप देख सकते हैं, कम से कम २५ लोग छँटाई और गिनाई का काम करते हैं, जहाँ आप देख सकते हैं, पहले कुछ लोग केवल नोट सीधा करने का कार्य करते हुए मिलेंगे, फ़िर नोट अलग अलग करेंगे, जैसे १०००, ५००, १००, ५०, २०, १०, ५, २, १। फ़िर आगे वाले लोग उनकी गड्डी बनायेंगे और रखते जायेंगे। कितने ही डॉलर भी थे और कितनी ही अलग अलग करंसी। अवधारणा है कि हुंडी में लोग बालाजी का हिस्सा डालते हैं, जी हाँ यह सच है, वहीं के एक व्यक्ति ने मुझे बताया था, कि लोग बालाजी को अपने व्यापार में पार्टनर बनाते हैं, और जितना भी हिस्सा तय होता है, वह बालाजी के पास देने आते हैं, अब भला खुद ही सोचिये जिसके व्यापार के पार्टनर खुद बालाजी हों, उसके व्यापार में भला कभी हानि या परेशानी हो सकती है।

माता जी के साथ १० मिनट तक मंदिर में पूजा अर्चन करने के बाद माता श्री के पैर छू आशीर्वाद लिया अब बाहर के रस्ते वहीं आगे लिखा था मुफ़्त प्रसादम, हम भी उधर ही लाईन में लगकर चल दिये। वहाँ पर एक बड़ा सा कमरा जो कि लोहे की राडों से बना हुआ था, और उसमें पीतल के बड़े बड़े बर्तनों में हलुआ, और चावल बने हुए रखे थे, शुद्ध घी ऊपर तैरता हुआ नजर आ रहा था। दोनों तरफ़ एक एक पंडित कागज के दोनों में प्रसाद भक्तों को दे रहे थे। दोने में शुद्ध घी से बने हुए गुड़ में पके हुए चावल थे, दोने हालांकि छोटे थे, और प्रति व्यक्ति केवल एक ही दोना मिल रहा था, जो भी एक से ज्यादा दोनों के लिये बोल रहे थे, किसी को दे रहा था तो किसी को झिड़क रहा था, नीचे चलते हुए चिपचिप हो रही थी, क्योंकि लोग खाते हुए गिरा भी रहे थे, हमने पूरे मजे लेते हुए वह प्रसाद ग्रहण किया, और दिल से बालाजी को नमन कर यह अवसर देने के लिये धन्यवाद दिया। वहीं हाथ धोने के लिये बहुत सारे नल लगे हुए हैं, वहीं हाथ धोकर, निकल पड़े मंदिर के परकोटे से बाहर की ओर जहाँ लिखा था, कि लड्डू के लिये टीटीडी देवस्थानाम का रास्ता, हम उधर ही चल पड़े।

परकोटे से सटा हुआ लंबा सा गलियारा है, जहाँ लोगों की बहुत भीड़ थी, लड्डू लेने जाने वालों की भी और लेकर आने वालों की भी। वहीं पर बालाजी को बेचने वाले ओह माफ़ कीजियेगा उनकी तस्वीरें और किताबेंऔर भी पता नहीं क्या क्या। हम सबको अनदेखा करते हुए लड्डू लेने के लिये चल दिये, जो कि गलियारा खत्म होते ही दायीं ओर जाने पर सामने एक बड़ा सा हाल दिखता है, जहाँ लिखा हुआ भी है, लड्डू प्रसादम, १० की लाईन अलग, ५० की अलग, ३०० की अलग, वीआईपी की अलग, वाह री माया। सब अलग बैंको के काऊँटर थे, जहाँ लड्डू मिल रहे थे। लड्डू के साथ लड्डू का कवर फ़्री नहीं था, उसके लिये अलग से दो रुपये शुल्क देय है। हमने भी अपनी जेब से दो रुपये शुल्क दिया और कवर में लड्डू रखकर हमें दे दिये गय। पूरे वातावरण में लड्डुओं की महक, मन तो बस लड्डुओं में ही रम गया था। वैसे भी पुरानी कहावत है कि अगर किसी का दिल जीतना है तो “रास्ता पेट से होकर जाता है”। अगर लड्डू अच्छा है तभी तो आप बालाजी वापिस आने का सोचेंगे, भले ही दर्शन के लिये नहीं पर लड्डू के लिये जरुर।

वापिस आते हुए फ़िर वही गलियारा पड़ा और हमने भी बालाजी की हिन्दी की एक इतिहास की किताब ली। वहीं बायीं ओर बहुत बड़ा कुण्ड है जहाँ पर लोग नहाते भी हैं, फ़िर हम चल दिये मंदिर के बाहर की ओर, बहुत बड़ा मैदान पार करने के बाद, सीढ़ियाँ आईं, वहाँ पर नारियल और कपूर बिक रहा था, वहाँ पर नारियल और कपूर बालाजी को चढ़ाया जाता है, मतलब होम किया जाता है, वहाँ पर बहुत सारे नारियल एक साथ होम हो रहे थे। वह नजारा देखते ही बनता था, चारों ओर कपूर की गंध माहौल में थी। हिंदू धर्मावलंबी तिरुपति बालाजी के दर्शन को अपने जीवन का ऐसा महत्त्वपूर्ण पल मानते हैं, जो जीवन को सकारात्मक दिशा देता है। देश-विदेश के हिंदू भक्त और श्रद्धालुगण यहां आकर दान करते हैं, जो धन, हीरे, सोने-चांदी के आभूषणों के रूप में होता है। इस दान के पीछे भी प्राचीन मान्यताएं जुड़ी हैं। जिसके अनुसार भगवान से जो कुछ भी मांगा जाता है, वह कामना पूरी हो जाती है। एक मान्यता के अनुसार भगवान बालाजी से मांगी मुराद पूरी होने पर श्रद्धालु तिरुपति के इस बालाजी मंदिर में श्रद्धा और आस्था के साथ अपने सिर के बालों को कटवाते हैं।



साभार : गूगल तिरूमल (तिरुपति) बालाजी मंदिर

मंदिर की भव्‍यता : तिरुमला का मंदिर करीब २५०० फुट की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर अंदर से बेहद भव्‍य है। सोने से लदा हुआ और हर तरफ ऐश्‍वर्य बिखेरता हुआ। भगवान बालाजी भी महंगे आभूषणों से अलंकृत हैं। मंदिर में दर्शन के बाद परिक्रमा करने के उपरांत दान देने के लिए वहां एक कपड़े की हुंडी टंगी हुई है, जिसमें आप अपनी मर्जी मुताबिक धन दान स्‍वरूप डालिए।
 
मुझे यह उत्‍तर भारत के मंदिरों के लिहाज से उचित व उत्‍तम व्‍यवस्‍था लगी...उत्‍तर भारत में तो भगवान पर सिक्‍के उछालने, नोट चढ़ाने और पंडाओं के लूट का स्‍थापित हो चुका चलन है, जो बहुत ही क्षुद्र और ओछा लगता है। भगवान बाला जी के मंदिर में बोरे भर-भर कर नोट आते हैं, जिसे एक साथ गिनने का काम लोगों के सामने ही चलता रहता है। इस देश में मुकेश अंबानी हो या अनिल अंबानी....अमिताभ बच्‍चन हो या एकता कपूर...हर कोई आर्थिक संकट से निपटने के लिए बाला जी के दरबार में ही हाजिरी लगाता है और देखिए उनके धन की चमक-दमक से आप भी अचंभित होते रहते हैं.... हमने ३०० रुपए का टिकट लिया था और करीब डेढ से दो घंटे में बालाजी के मंदिर तक पहुंचे। बचपन से सुनता आया हूँ कि भगवन सब के हैं, सब भगवान के सामने बराबर हैं। तिरुपति के उस लाइन में जो मैंने देखा, और कईयों ने भी देखा होगा, वो देखकर ऐसा लगा कि या तो जो अभी तक सुना है वो गलत है, झूठ है, या फिर वहाँ भगवान हैं ही नहीं। किसी भगवान के दरवाजे पर उसके भक्त को औकात नहीं याद दिलाई जा सकती।

 





 


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