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Sunday, June 5, 2016

रामेश्वरम साइड सीन

(5 May 2016- Thursday ) रामेश्वरम मंदिर की एक खास दर्शन है “मणि दर्शन” जो मंदिर में सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच मणि दर्शन कराया जाता है और मणि दर्शन में स्फटिक के शिवलिंग का दर्शन होता है सुबह सात बजे के बाद मणि दर्शन बन्द कर दिये जाते है उनके दर्शन करने के लिये नहा धोकर सुबह पांच बजे ही तैयार होना पडता है जब कहीं जाकर मंदिर में लाइन लगाकर दर्शन होते है, मणि दर्शन का शुल्क ५०/- है जिसका टिकट मंदिर के अन्दर ही मिलता है तो माता जी ५ बजे जगा दी.. अपने नहा धो के तैयार... फटाफट मै भी सुबह ही नहा धोकर, माता जी ने दूसरा धोती कुर्ता निकाल के रखा था तो तैयार हो मणि दर्शन करने के लिये पहुच गए मंदिर के अन्दर ..मणि दर्शन के लिए भी ५० लोगो की भीड़ थी... लेकिन हमारा नंबर आया ... सफ़ेद  स्फटिक के शिवलिंग.. उनके आगे एक ज्योति जल रही थी.... लगा की उस पल को देखने के लिए शायद यही सत्य है... वेद के अनुसार, इस "शेषनाग" के "मणि" है इस लिए इन्हें मणि दर्शन कहा जाता है फिर कल की तरह ही मंदिर की एक परिक्रमा की... और पहुच गए मुख्य मंदिर के बाएं तरफ जहा मंदिर का कार्यालय है जहां गंगाजल (२१ कुवो का मिश्रित जल ) की बिक्री हो रही थी और यहीं से मंदिर के दर्शन हेतु निधारित शुल्क का कूपन भी मिल जाता है यहां पर गंगाजल व पुष्प आदि के पात्र श्रद्धालुओं को वापस नहीं किये जाते बल्कि यहां से गंगाजल खरीदकर रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक हेतु श्रद्धालु आगे बढ़ते हैं।  दहिने तरफ.. जहा एक हवन कुंड बना था, जहा लोग हवन कर रहे थे वही एक हाल में प्रसाद मिल रहा था और २२ कुवो का जल भी... तो रामेश्वरम का प्रसाद और ४ बोतल जल ले कर निकले बाहर  द्वार के पीछे से ही गलियारा शुरू है और दोनों ओर दुकानें शुरू होती है इन दुकानों पर सीप शंख मोती का सामान मिलता है। कुछ दूर जाने के बाद दुकाने समाप्त हो जाती है और गलियारे में सीधा आगे जाने पर अंतिन छोर पर है गणेश जी की मूर्ति.. ग़णेश जी के दर्शन के बाद वापस गलियारे में लौट आना है। जहाँ गलियारे में दुकाने समाप्त हो जाती है वहीं से बाई ओर के गलियारे में कुछ और दुकाने है, यहीं से आगे जाकर अंतिम छोर से दाहिने गलियारे में मुड़ना है जो लम्बा गलियारा है। यहाँ अंतिम छोर पर बाई ओर जटाशंकर जी का मन्दिर है। यानि यहाँ शिव जी जटाशंकर के रूप में है और बाएँ पार्श्व में विराजमान है पार्वती जी। इस रूप में शिव जी का श्रृंगार रूद्राक्ष से होता है। माना जाता है कि रूद्राक्ष में असीम शक्ति होती है। वास्तव में रूद्राक्ष शिव जी के आँसू है। मन्दिर के द्वार के दोनों किनारों पर और तोरण की तरह रूद्राक्ष की मालाएँ लगी है। यहाँ जटाशंकर और पार्वती के दर्शन कर परिक्रमा कर हम सीधे बाहर निकल लिए अब दर्शन पूजन समाप्त.. अब चाय नास्ता.. लेकिन माता जी ने सिर्फ चाय की इक्षा बताई तो पहुच गए एक चाय की दुकान पर 

ईरानी चाय का मजा- रामेश्वर में भी दक्षिण भारत के मदुरै और श्री सैलम की तरह चाय पीने की संस्कृति है अपने अंदाज में। यहां हमने तांबे के बड़े से मर्तबान में चाय बनते हुए देखी। इसे समवार कहते हैं। यह चाय बनाने की इरानी तकनीक है। अब अगर चाय तांबे के बरतन में बनाई जाती हो तो उसका स्वाद तो कुछ अलग होगा ही. तो हमने और माता जी ने इस चाय की चुस्की ली।  फिर माता जी को होटल पंहुचा कर लगे देखने रामेश्वरम् के और दर्शनीय स्थल ..

यहाँ के विभिन्न पुण्य स्थानों पर घूमने के लिए मुख्य मन्दिर रामालय के पास से ही आटो मिल जाते है। आटो के अलावा एकाध जीप और दो-चार ताँगे भी है। इनके चालक सभी पुण्य स्थलों के बारे में जानते है इसीलिए गाइड की आवश्यकता नहीं पड़ती और यहाँ कोई गाइड नज़र भी नहीं आए। ताँगे और आटो वाले 10-12 किलोमीटर तक घुमाने के लिए प्रति व्यक्ति ५० रूपए लेते है। एक चक्कर में सभी स्थान नहीं देख सकते है क्योंकि यह विभिन्न दिशाओं में है। जीप में प्रति व्यक्ति 150 रूपए लेकर पूरे स्थान एक साथ दिखाते है। लेकिन जीप बहुत कम है, हमें भी नहीं मिली इसीलिए हमने भी आटो से ही सैर की। ४०० रुपये पर ब्यक्ति के दर से तो फिक्स हो गया ८०० में रामेश्वरम साइड सीन सुबह के 7 बज चुके थे माता जी को होटल से ले निकले.. ऑटो वाला भी टूटी फूटी हिंदी बोल रहा था जिसने रामेश्वरम्  मंदिर प्रगाण मे दर्शनीय मुख्य स्थलों का वर्णन निम्न है-ः

1 भव्य नंदी मूर्ति: मंदिर के समक्ष एक बड़ी स्वर्ण मंडित स्तंभ है और उसी के निकट 13 फुट उंची, 8 फुट लंबी व 9 फुट चौड़ी श्वेत वर्ण नंदी की मुर्ति स्थापित है।
2 हनुमदीष्वर मंदिर: रामेष्वर मंदिर के पास ही श्री विष्वनाथ या हनुमदीष्वर मंदिर स्थापित किया गया हैं।
3 परिक्रमा पथ के मंदिर व अन्य स्थल: इस मंदिर का परीक्रमा पथ इतना विशाल व बड़ा है कि भारत के अन्य किसी मंदिर मे ऐसा परिक्रमा पथ नहीं हैं। इसी पथ पर अनेक मंदिर, मूर्तियां, बावड़ी तथा अनेक पवित्र कूप स्थित हैं। इनका वर्णन करना कठिन पर यात्री जानकारी हेतु प्रयास किया जा रहा हैं।
4 संपूर्ण तीर्थ: मंदिर के भीतर व बाहर कुल मिलाकर 64 तीर्थ हैं, पर उसमें 21 मंदिर के अंदर और तीन बाहर के हि महत्वपूर्ण माने जाते हैं-इसमें अग्नि तीर्थ-मंदिर के समक्ष समुद्र है, जब कि अगस्त्य तीर्थ समुद्र के किनारे एक छोटा सरोवर है। चक्र तीर्थ- दुसरी परिक्रमा पथ पर पूर्व की ओर एक बड़ा सरोवर है।, शेष 21 तीर्थ मुख्य मंदिर के परिक्रमा मार्ग के कुएं के रूप में स्थित हैं और ये हैं- सूर्य तीर्थ, चंद्र तीर्थ, गंगा तीर्थ, यमुना तीर्थ, सरस्वती तीर्थ, गया तीर्थ, षंख तीर्थ, गायत्री तीर्थ, माधव तीर्थ, नल तीर्थ, नील तीर्थ, गवय तीर्थ, गवाक्ष तीर्थ, गंधमादन तीर्थ, ब्रहा हत्या विमोचन तीर्थ, अम्रत तीर्थ, षिव तीर्थ, सावित्रि तीर्थ, महालक्ष्मी तीर्थ, सर्वतीर्थ व कोटि तीर्थ।
5 धनुश्कोटि:  मंदिर से बीस किलामीटर दुर है व मोटर बोट द्वारा पहुंचा जा सकता है, यही पवित्र राम सेतु स्थान है जहां पिंड़दान होता हैं।

रामनाथ के मंदिर के चारों और दूर तक कोई पहाड़ नहीं है, जहां से पत्थर आसानी से लाये जा सकें। गंधमादन पर्वत तो नाममात्र का है। यह वास्तव में एक टीला है और उसमें से एक विशाल मंदिर के लिए जरूरी पत्थर नहीं निकल सकते। रामेश्वरम् के मंदिर में जो कई लाख टन के पत्थर लगे है, वे सब बहुत दूर-दूर से नावों में लादकर लाये गये है। रामनाथ जी के मंदिर के भीतरी भाग में एक तरह का चिकना काला पत्थर लगा है। कहते है, ये सब पत्थर लंका से लाये गये थे।

सबसे पहले हम पहुँचे गन्धमादन पर्वत। रास्ते में शुरुवात में ही बाईं ओर छोटा सा हनुमान मन्दिर है जिसमें स्थापित हनुमान जी की मूर्ति बाहर से ही दिखाई देती है, इसे साक्षी हनुमान का मन्दिर कहा जाता है। माना जाता है कि राम लंका जाने के लिए निकटतम स्थल रामेश्वरम द्वीप पहुँचे और यहाँ स्थित गन्धमादन पर्वत पर चढ कर उन्होनें पहली बार लंका को देखा और इस पल के गवाह रहे हनुमान। इसीलिए यह मन्दिर साक्षी हनुमान का मन्दिर कहलाता है और इस पल की स्मृति के लिए पर्वत पर बनाया गया मन्दिर पादुका मन्दिर कहलाता है। हनुमान जी के दर्शन के बाद गन्धमादन पर्वत की चढाई सड़क मार्ग से बढती जाती है लेकिन गाड़ी चलाने में अधिक कठिनाई नहीं होती। बताया गया कि गन्धमादन पर्वत पर स्थित यह पादुका मन्दिर 24 फीट की ऊँचाई पर है लेकिन कुछ लोगों ने ऊँचाई 18 फीट बताई। ऊपर मन्दिर तक जाने के लिए सीढियाँ है। यह पूरा क्षेत्र शबरी का है और आज भी वह वर्चस्व कायम है। मन्दिर की सीढियों पर शबरी के बेर बेचे जाते है। 

उसके बाद हम पहुचे रामतीर्थम जो यहाँ की एक पुण्य स्थली है जिसके पास ही है लक्ष्मण तीर्थम
और इनके सामने है सीता तीर्थम। इन स्थानों को राम पर्वत, लक्ष्मण पर्वत और सीता पर्वत भी कहते है तथा राम कुंड,  लक्ष्मण कुंड और सीता कुंड भी कहते है। मुझे कुंड कहा जाना ही सही लगा क्योंकि वास्तव में यहाँ कुंड है जो इनके लिए बनवाए गए थे। सीता कुंड पूरी तरह से सूख चुका है। कुंड के आस-पास ख़ाली
ज़मीन है, मन्दिर जैसा कुछ नहीं है।
केवल एक बोर्ड पर तमिल, अंग्रेज़ी और हिन्दी में लिखा है सीता तीर्थम। सीता कुंड के सामने है लक्ष्मण कुंड। द्वार पर ही पाच पाच रूपए के मछलियों के बिस्कुट के पैकेट बिक रहे थे जिसे हमने माता जी के लिए ख़रीद अन्दर पहुँचे। पत्थरों से बना है एक बड़ा कमरा..  सामने अंतिम छोर पर गर्भ गृह है जिसमें लक्ष्मण जी की मूर्ति है जिसके दर्शन हमने किए। दाहिनी ओर कुंड है जो साइज़ में कुछ बड़ा ही है और पानी से भरा है। बीच में एक चबूतरा सा है। कुंड में बहुत सारी बड़ी मछलियाँ है। कुंड के किनारे सीढियों पर बैठ कर पैकेट से निकाल कर बिस्कुट इन मछ्लियों के लिए पानी में फेकने पर सभी मछलियाँ किनारे पर आ कर जमा हो जाती है ... यहाँ से निकल कर हम पास ही स्थित रामकुंड देखने गए। यहाँ मन्दिर में राम लक्ष्मण और सीता के साथ हनुमान की पारम्परिक मुद्रा में मूर्तियाँ है। मन्दिर के अन्दर में एक किनारे छोटा सा पानी से भरा सिमेंट का टंकी है जिसके ऊपर लोहे की जाली लगी है। पानी में बड़ा सा पत्थर तैर रहा है। मन्दिर के लोगों के कहने पर हमने जाली में से हाथ डालकर पत्थर को नीचे किया पर हाथ हटते ही पत्थर फिर तैर कर ऊपर आ गया – बिक्री के लिए भी उपलब्ध  .. तो माता श्री ने एक राम नाम का पत्थर ले ही लिए ..



यही है रामसेतु के हल्के पत्थर जो पानी में तैरते है जिनसे पुल यानि रामसेतु बना। यहीं पर एक चित्र भी लगा है जो कलाकार द्वारा तैयार करवाया गया है जिसमें भारत और श्रीलंका के बीच पुल को दर्शाया गया है। अब अगला दर्शन था हमारा रामसेतु और विभीषण मन्दिर का ... यहाँ से करीब १० किलो मीटर दूर ..यहाँ पहुचने के लिए पक्की सड़क है। इसके दोनों ओर समुद्र लहरा रहा है। दाहिनी ओर का समुद्र श्रीलंका की ओर है और बाईं ओर का तमिलनाड़ु का। और यहाँ दोनों समुद्र मिलते है। यहीं से सेतु बनाया गया। कहते है सेतु के इस आरंभिक बिन्दु पर यानि समुद्र के किनारे समुद्र के कुछ भीतर एक मन्दिर भी था जहाँ सीढियों से उतर कर जाते थे। ये भी तूफ़ान में जलमग्न हो गया

सबसे पहला स्थान हमनें देखा रामसेतु। यह वही सेतु है जिस पर चलकर राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढाई की थी। सेतु तो अब दिखाई नही देता है। बताया गया कि वर्ष 1964 में रामेश्वरम में भयंकर तूफ़ान आया था जिससे सेतु टूट गया है और समुद्र में समा गया है। यहीं किनारे पर दाहिनी ओर यानि श्रीलंका जाते समुद्र की ओर है विभीषण मन्दिर। माना जाता है कि यहीं पर जहाँ दोनों समुद्र मिलते है वहाँ के पानी से राम ने विभीषण का अभिषेक किया था। छोटा सा मन्दिर है – पानी के अन्दर भी एक लकड़ी का पुल बना है जहा जा सकते है राम पुल पर.. लेकिन मेरी माता जी न.... खैर 

इसमें सामने पत्थर का कलश जैसा दिखाई दे रहा है जिसके पीछे दीवार दिखाई दे रही है, इसीके पीछे राम सीता लक्ष्मण और हनुमान की पारम्परिक मुद्रा में मूर्तियाँ है और हनुमान के पास हाथ जोड़े विभीषण खड़े है। शायद हमारे देश में मन्दिर में विभीषण की मूर्ति इसके अलावा कहीं और नहीं है। यहाँ से कुछ ही दूरी पर एक खंडहर सा स्थान है। यह एक गाँव था। बताया गया कि यहाँ के लोगों से अंग्रेज़ बँधुआ मज़दूरी करवाते थे। बाद में गाँव उजड़ गया और पत्थरों से बनी इमारतें रह गई थी फिर तूफ़ान में सब नष्ट हो गया और रह गया खंडहर। इस पूरे स्थान को धनुषकोटि कहते है, इस नाम के पीछे पौराणिक कथा है -

राम समुद्र के किनारे बैठे लंका तक पहुँचने के लिए विचार कर रहे थे। समय बीत रहा था और समुद्र देवता उन्हें रास्ता नहीं दे रहे थे। तब राम ने समुद्र को चीरने के लिए धनुष पर बाण चढाया तब घबराए समुद्र देवता प्रकट हुए। तब तक बाण धनुष पर चढ चुका था और बाण छोड़ना अनिवार्य था क्योंकि प्रत्यंचा पर चढने के बाद बाण उतारा नहीं जा सकता था। ऐसे में समुद्र देवता ने कहा कि सामने की चट्टान पर बाण छोड़ने से चट्टान टुकड़े-टुकड़े हो जाएगी और इन्हीं पत्थरों से सेतु बन सकेगा। वही किया गया। इन पत्थरों पर राम नाम लिखा गया जिससे यह पत्थर या शिलाएँ पानी में तैरने लगी और नल और नील के मार्गदर्शन में पुल बनाया गया। बताया जाता है कि आगे भी रामेश्वरम के धनुषकोटी से श्रीलंका तक बने पुल पर पैदल भी यात्री जाया करते थे। यह दूरी 20 किलोमीटर की मानी जाती थी।

अब रामेश्वरम यात्रा अब्दुल कलाम का घर 
रामेश्वरम चार धामों में से एक तो है ही, पर अब रामेश्वरम में एक और नया तीर्थ बन चुका है। वह है पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का घर। यहाँ मन्दिर से कुछ ही दूरी पर है पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम का पैतृक निवास अगर आप ध्यान से देखें तो इस तस्वीर में दरवाज़े की जाली के ऊपर सफ़ेद जाली से अंग्रेज़ी में लिखा है - हाउज़ आँफ़ अब्दुल कलाम। अबुल पाकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम ... डॉक्टर ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम (15 अक्टूबर 1931 को जन्मे  - 27 जुलाई 2015 को गोलोकवासी ) रामेश्वरम से आगे धनुषकोडी में मछुआरों की बस्ती में हुआ था। एक अत्यंत गरीब परिवार में पैदा हुए अब्दुल कलाम विषम परिस्थितियों में पढ़ाई कर बहुत बड़े वैज्ञानिक बने जिन्हें मिसाइल मैन और जनता के राष्ट्रपति के नाम से जाना जाता है, भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति थे। वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक और अभियंता के रूप में विख्यात थे। इन्होंने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) संभाला व भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। इन्हें बैलेस्टिक मिसाइल और प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास के कार्यों के लिए भारत में मिसाइल मैन के रूप में जाना जाने लगा। इन्होंने 1974 में भारत द्वारा पहले मूल परमाणु परीक्षण के बाद से दूसरी बार 1998 में भारत के पोखरान-द्वितीय परमाणु परीक्षण में एक निर्णायक, संगठनात्मक, तकनीकी और राजनैतिक भूमिका निभाई।

कलाम सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दोनों के समर्थन के साथ 2002 में भारत के राष्ट्रपति चुने गए। पांच वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा के अपने नागरिक जीवन में लौट आए। इन्होंने भारत रत्न, भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त किये।

रामेश्वरम आने वाले तमाम श्रद्धालु अब डा. कलाम का घर देखने भी जाते हैं। कलाम हाउस अब टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन चुका है। कलाम साहब का पैतृक घर मूल अवस्था में नहीं है। उसे बाहर से आधुनिक रुप दे दिया गया है। घर आसपास कलाम साहब के परिवार के लोग रहते हैं जिनकी आर्थिक हालात अब भी पहले जैसी ही है। हां कलाम साहब के घर के आसपास कुछ दुकानें खुल गई हैं। ये दुकानें गिफ्ट शाप्स की हैं। सभी सैलानियों को आटो रिक्शा वाले इन गिफ्ट शाप्स में लाकर छोड़ देते हैं। मजे की बात ये दुकानें कलाम साहब के नाम पर चल रही हैं। दुकानों के साइन बोर्ड देखकर ये अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है कि दुकानदार किस तरह कलाम साहब के नाम का इस्तेमाल अपनी दुकानदारी में कर रहे हैं। यहां तक कि कुछ दुकानदारों ने दुकान का नाम प्रेसिडेंट के नाम पर रख दिया है। अगर आप ये सोचकर यहां पहुंचे हों कि कलाम साहब के नाम पर यहां कोई म्यूजियम होगा तो ऐसा कुछ नहीं.. सेकेण्ड फ्लोर पर एक छोटी सी प्रदर्शनी है उनके जीवन की और एक किताब की दुकान और ऊपर एक गिफ्ट शॉप

हमारा रामेश्वरम भ्रमण लगभग तीन घंटे में पूरा हो गया था। उसी होटल पर हम आ चुके थे। भूख जोरो की लेकिन अभी १२ ही बजे थे हमारी आगे की यात्रा ३ बजे की थी... माता जी को कमरे में पंहुचा ... फिर पहुचे अग्नि तीर्थ.... वहा लाऊड स्पिकर पर कुछ बताया जा रहा था पहुचे उस उद्घोसना के पास .. वहा एक पानी की बोट चल रही थी. जो समुद्र की यात्रा करवा रही थी... वापस होटल की तरफ... माता जी
को ले कर निकले जल यात्रा के लिए.... पास ही खाने पिने की दुकाने... तो भर पेट नास्ता... इडली और डोसा... समय था क्यों की एक ही मोटर बोट जो चक्कर लगाती है.... इस लिए आराम से नास्ता कर पहुचे मोटर बोट के पास... २ टिकट ले माता जी को करवाया.. जल यात्रा.... आघे घंटे की ये यात्रा... मजा आ गया... जो आप इस विडियो में देख सकते है..... 


अब दो बज चूका था... होटल पहुच डिपारचर कर निचे इंतजार करने लगे... कन्याकुमारी के बस के लिए....तब तक माता जी लगी चिल्लाने... खाना खा ले.... होटल के सामने ही एक रेस्टुरेंट... वहा सिर्फ वेज बिरयानी.... बस माता जी बिरयानी के नाम पर .... तू खा ले... लेकिन माँ को दो चम्मच खिला ही दिया ... समझाया माँ ये प्योर साकाहारी है वो भी बिना प्याज लहसुन का.... मैंने भी जीवन में पहली बार ही खाया था वेज बिरयानी.. ऐसा... ३ बजे होटल में बस का ड्राईवर भी आ गया लेने हमें कन्या कुमारी की यात्रा के लिए... पहुचे बस के पास.. वहा दूसरा बस वाला मेरा लैपटॉप ले कर आया था.. जिस बस से हम कल आये थे रामेश्वरम.. वही बस हमें कन्या कुमारी ले कर जाने वाली.... दुसरे ड्राईवर ने मेरे लैपटॉप का बैग दिया बोला साहेब.. सामान चेक कर लीजिये.... मन में सोचा.. भैया अब लैपटॉप वापस ही कर दिया तो अब बैग क्या चेक करना.... हमारा उत्तर भारत होता. तो मामला कुछ और ही होता....  खैर दोनों drivar को ५००-५०० दिए... मदुरै में एजेंट ने बताया था की हमें रामेश्वरम से मदुरै ही आना है फिर मदुरै से कन्या कुमारी.. लेकिन शायद बस में सारे यात्री कन्या कुमारी के ही थे तो बस की यात्रा सीधे कन्या कुमारी की ही थी.. और हम चल दिया कन्याकुमारी जाने वाली बस में.. बस भर चुकी थी... हमारा सामान ड्राईवर ने पीछे डिक्की में रख दिया था... लेकिन आगे की सभी सिट भरने के कारण ड्राईवर ने कहा आप लोग पीछे बैठ जाये... अभी कुछ लोग को रामेश्वरम स्टेशन पर ही उतरना है तो आप को आगे की सिट मिल जाएगी... हम माता जी को ले पीछे की सिट पर बैठ गए... और बस 
चल दी... कुछ ही दुरी पर रेलवे स्टेशन था.. वहा ५ लोग उतर गए.. शायद उनकी आगे की यात्रा ट्रेन से ही थी... तो हमें आगे की सिट मिल गयी... बस चल दी सुबह जल्दी उठे थे.. और रामेश्वरम यात्रा से थक चुके थे.. लगे देखने रास्ता .. पता चला की रामेश्वरम से कन्या कुमारी की दुरी करीं ३२२ किलो मीटर है और समय लग सकता है ६ से 7 घंटे.. 
 

गूगल में कुछ इस तरह से था रास्ता.. जिस रास्ते से हमें चलना था... नींद आ रही थी लेकिन इतना बढिया रास्ता देखने को मिले और साथ में दक्षिण के खासतौर से तमिलनाडू का ग्रामीण परिवेश कौन सोये । रास्ता बढिया इसलिये लग रहा था की हम GPS ओन कर नक्शे में देख रहे थे कि मुख्य हाइवे जो कि कन्याकुमारी जा रहा है उसके अलावा ऐसा भी हो सकता है कि कोई रास्ता समुद्र के किनारे किनारे हो । ये वही रास्ता था जिस पर कई बार समुद्र बस साथ ही चलता दिख रहा था करीब २ घंटे की यात्रा के बाद शायद ये रामेश्वरम और मदुरई के रस्ते से कट कर कन्याकुमारी का मार्ग था वही रास्ते में एक जगह दुकान पर गाडी रोकी गयी शाम के ५ बज रहे थे तो चाय नास्ता कर लिया हमने और माता जी को भी अभी उजाला ही था पूरे रास्ते एक अच्छी चीज देखने को मिली वो थी बिजली बनाने वाली पनचक्कियां जैसी की द्धारिका जाने के रास्ते में दिख रही थी । इस पूरे इलाके में जहां समुद्र थोडा दूर होता था वहां पर समुद्र की ओर और बाकी रास्ते में समुद्र के दूसरी ओर के इलाके में इन पनचक्कियो के दर्शन होते रहे । आधे रास्ते के बाद समुद्र की साइड में समुद्र चमकना बंद हो गया और शुरू हो गये नमक के खेत । यहाँ तो पूरी तरह खेती ही है नमक की क्योंकि बडे बडे क्यारे ये नजारा भी काफी मजेदार था । एक ओर कुछ क्यारियो में अभी अभी पानी भरा गया था समुद्र का । कुछ में वो कम हो चुका था और कुछ में वो बिलकुल नही था लकडी की बनी बेलचे से मजदूर इस नमक को उठा उठाकर ढेरियां लगा देते थे । ट्रको में भरकर ये नमक फैक्ट्री में पहुंचाया जा रहा था जिस पर बाद में ब्रांड मोहर लगकर ये देश का नमक बन जाना था अब अँधेरा हो चला था नींद भी जोरो की लग रही थी... तो सो गए करीब ९ बजने वाला था.. बस कुछ उछल कूद करने लगी तो नींद खुली.. पता चला सड़क ख़राब है.. अब कन्याकुमारी के पास आ रहे थे और फिरहमारी गाडी ने उस मुख्य हाइवे को क्रास किया जिस पर से सीधा दिल्ली से आया जा सकता है अब हम कन्याकुमारी पहुंचने वाले थे.. रात  के १० बज चुके थे... हमारी बस एक दम आखिरी छोर पर पहुच चुकी थी... कन्याकुमारी की समशीतोष्ण जलवायु और शीतल हवाओं ने हमारा स्वागत किया बाहर देखा तो खाने पिने के लिए रेस्टोरेंट दिख रहे थे जैसे दिल्ही का करोल बाग... हिंदी एक तब फर्राटे ... ड्राईवर ने बताया की आप लोग यहाँ खाना खा ले फिर आप लोगो को होटल पंहुचा दुगा... लेकिन माता जी ने खाने के लिए मना कर दिया.. भीड़ पूरी थी रेस्टुरेंट में तो पैक करवा लिया... ५ रोटी भिन्डी की सब्जी और दाल...
 
चुकी हमारी ट्रेन कन्या कुमारी से चेन्नई के लिए 7 मई की थी तो सोचा की कन्या कुमारी में २ दिन रुका जाये... अगले दिन त्रिवेंद्रम घुमने का प्लान बना लिया... हम जहा रुके थे आस पास ही सब कुछ था... बस वाले ने हमारे होटल में हमें पंहुचा दिया ११ बज चुके थे... माता जी को खिला कर सुला दिया.... टीवी में कोई हिंदी चैनल नहीं तो लगे मोबाइल में कन्या कुमारी के बारे में खोजने..  कहते हैं कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक है।



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4 comments:

  1. Mishra ji aanand aa gya aapki yatra se

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  2. Rajiv Shankar jiJ aapne a bahut vistar se darshan ka vritant sunaya Aisa lag raha hai ke hum khud hi ghum rahe hai bhai mazaa aa gaya

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  3. Jankari dene hetu sadhuwad mishranji

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  4. वर्तमान में में मंदिर खुली है या बंद

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