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Tuesday, August 14, 2012

अलविदा...पापा की उन यादो के साथ

१० अगस्त २०१२, सुबह ऑफिस में, काठमांडू में टैक्सी और सार्वजानिक यातायात की हड़ताल.. तो पैदल ही ऑफिस में.. महीने का १२ दिन थोडा ज्यादा ही प्रेसर होता है काम का, उपर से लोड शेडिंग , तो थोड़ी बत्ती की भी परेशानी, कागज फिअल दिया था , स्टाफ लोगो की सेलरी फाइनल करनी थी, तो लग गया था काम में... काम का बोझ था तो खाना खाना भी भूल गया था ... बस सिगरेट चाय.. दोपहर का ३ बजा ही था की श्रीमती जी Kshama का ..फोन बजा.. पता नहीं क्यों मेरी आदत है उनका फोन दिन में.. क्या बात .. उनका फोन काट के मैंने इधर से मिलाया.. क्या बात.. श्रीमती जी ने कहा संजू भैया का फोन आया था .. मैंने कहा नहीं.. तुम तुरंत घर आ जाओ, मै काटन मिल जा रही हु.. अरे क्या हुवा बताओ तो.. बस उधर से रोना शुरू... तुम कैसे भी तुरंत घर पहुचो.. अभी कोई फ्लाइट मिले तो पकड़ लो.. अरे क्षमा कुछ बोलो तो..


पापा नहीं रहे .. क्या.. हा.. १२.३० पर पापा चले गए .. आज जीवन के किस चक्रधर में हु.. क्या ये ही जीवन का सन्देश है.?? . क्या भगवन तुम्हे भी मेरे साथ खेलने की आदत है.!!!!.बहुत बड़ा दुःख दिया है न .समझ में नहीं आ रहा था क्या करू.. ऑफिस में सिर्फ मै और मेरे मित्र ब्रांड मनेजर निलन जी... अब क्या करू, कैसे जाऊ.. निलन जी ने तुरंत फोन घुमाना शुरू किया फ्लाइट के लिए.. शाम का ४ बज चूका था बनारस के लिए एक फ्लाइट जी ३.१० पर जा चुकी थी.. दिल्ही की किसी भी फ्लाइट में टिकट नहीं.. सब पैक.. अब क्या करे .. उपर से हड़ताल.. कोई बस, या संसाधन नहीं बॉर्डर के लिए, कुछ समझ में ही न आये क्या करू.. अपने पुरानी कम्पनी आंगन में फोन किया श्रवन जी को... सर मुझे अभी घर जाना है.. 
बहुत जरुरी है.. पर आज हड़ताल है.. फ्लाइट में टिकट नहीं .. क्या हुवा क्यों जाना है.. बस मेरा भी सब्र टूट गया ... मेरे हाथ से मोबाइल ले निलन जी ने बताई बात.. श्रवन जी बोले उसको भेज दीजिये पुतली सडक, मै कुछ करता हु, बस निलन जी मेरा लेपटॉप पैक कर मुझे ले कर चल दिए पुतली सड़क, वैसे मेरा ट्रेवल बेग हमेशा तैयार ही रहता है, बस मै दौड़ उपर अपने कमरे में बैग ले निचे आया, तब तक श्रवन जी ने एक एम्बुलेंस की ब्यवस्था कर दिया था, जो मुझे भैरहवा तक छोड़ता.. तुरंत बैठ गया उसमे शाम का ५ बज चूका था रास्ता भी पूरा खाली था तो कही कोई परेशानी नहीं.. एम्बुलेंस थी तो किसी हड़ताली ने भी नहीं रोका... मैंने निवेदन किया ड्राइवर से बहुत जरुरी है भाई.. कितना समय लगेगा भाई... बोला उसने १० बजे तक आप को भैरहवा पंहुचा दुगा... हवा की रफ़्तार से चल रहा था वैसे अमूमन ७-८ घंटा लग जाता है बॉर्डर पहुचने में.. बस आख में आसू.. रुकने का नाम ही न ले.. पापा से अप्रैल में ही मिला था , तब तक वो एक दम ठीक थे.. वैसे उनको सुगर की ज्यादा परेशानी थी.. पिछले साल पैर से भी परेशान थे... ८ बजे तक हम लोग नारायण घाट पहुच गए थे... ड्राइवर ने पूछा.. बॉर्डर से कैसे जायेगे बनारस... अभी कोई बस मिलेगी आप को .. अरे हा.. वो तो मैंने सोचा ही नहीं था.. गुरु आप का कोई लिंक हो तो एक टैक्सी मिला दीजिये बॉर्डर से...नारायण घाट में गाड़ी रोकी चाय पिने के लिए और फोने से मिलाने लगा टैक्सी का जुगाड़... वो भी हो गया ५०००/- बॉर्डर से बनारस .. चल पड़ी फिर हमारी सवारी... १०.१० पर हम एक दम बॉर्डर पर पहुचे एम्बुलेंस वाले का भुगतान किया और ५०० दिया खाना खाने के लिए .. उसने ही मेरा बेग पकड़ के इंडियन टैक्सी में बैठा दिया, टैक्सी चल दी मेरी बनारस के लिए... गोरखपुर के आगे भयंकर बरसात ... आंधी के साथ इस लिए ज्यादा ट्रैफिक नहीं था सुबह ५ बजे पहुच गए घर... सभी लोग आ चुके थे रात तक, मै ही सबसे देर में.. घर के अन्दर .. छोटे भाई ने दाह संस्कार कर दिया था अब क्या


चलो बस सायद आपका यही आखिरी खेल है..!! बस आज एक यादे..पापा के लिए मुझे आज भी याद है बचपन में पापा के डाट..उनके पड़ाने का अंदाज उनके प्यार की अदा जीवन के हर पहलू में पापा का वो साथ.. मेरे बचपन के मेले - आज भी दीखता है पापा की ऊँगली पकड़कर मेले में घूमना छोटी छोटी चीजों के लिए मचलना और जब पापा वो दिलवा देते तो लगता क्या नहीं मिल गया हर साल वही खिलोने लेकिन हर साल नया मज़ा नाटी इमली के भारत मिलाप से बनारस की मस्ती से लेकर करीब करीब पूरा बनारस अपने मस्ती में चड़ता था जब कही भी लगता था मेला,पापा के ऑफिस के पास लक्ष्मी कुंड का मेला, नाग पंचमी में छोटे गुरु का बड़े गुरु का नाग, गरम नानखटाई, बुडिया का बाल... पत्ते वाले भोपूं का कान फाडू शोर, धनुष तीर, गदा, मुखौटे, चक्कर वाले झूले, कागज के बने रंग बिरंगे चश्मे, सावन में तुलसी मानस मंदिर में जाकर झांकी देखना और फिर वहां घास के मैदान में लोटना और फिर माँ से बोलना खुजली हो रही खुजा दो ना रीटा आइसक्रीम और पाचक और गोलगप्पे खाकर लगता था जैसे दुनिया की सबसे अच्छी चीज़ येही होती है.. घर में पूरी रात से जन्माष्टमी की झांकी सजाना चौका घाट में पानी टंकी के पीछे से पहाड़ बनाने के लिए बड़े वाले मंझे निकलना और हाथ कट जाने से माँ की लड़ भरी डांट.. दीपावली पर झालर सजाने में पापा का वो डर .. यार कोई तो लौटा दो वो दिन फिर से....मेरे पापा के साथ वो दिन बस अपने होशो के साथ १० अगस्त २०१२ तक पापा का साथ.. आज हर दिन हर समय हर लम्हा बस


"‪#‎पिता‬ वो होता है जिनको आँसू लाने की भी इजाज़त् नही होती"

और

"‪#‎माँ‬ वो होती जिसका प्यार कीमत नहीं मांगता "


पापा की उन यादो के साथ
पापा कभी गले नहीं लगाते कभी प्यार नहीं जताते
कभी पसंद नहीं पूछते फिर भी
पसंद की हर चीज़
बिन कहे ही ला देते हैं
जाने कैसे !

बात करना उन्हें पसंद नहीं चुप ही रहते हैं अक्सर
मन की सारी बातें फिर भी
जान जाते हैं मन से
बिन कहे सब कह जाते हैं
जाने कैसे !

पापा कुछ सख्त सी दूरियाँ रखते हैं हमारे साथ
पर किसी और की सख्ती मंज़ूर नहीं उन्हें
अपने इस प्रेम को सख्ती से छुपाते हैं जाने कैसे ! 


फर्क नहीं उन्हें हम दूर हों या पास या कि किसके साथ
जबकि फर्क है उन्हें हम कहाँ हैं
और हैं किसके साथ
कहते नहीं जताते भी नहीं छुपाते हैं जज़्बात
जाने कैसे ! 


उठ कर चल देते हैं जब भी बात होती है कोई भावुक सी कहते हैं
फ़ालतू बातें करते हो तुम सभी अपनी भावनाओं को कभी बहने नहीं देते
जाने कैसे ! 


पापा का जीवन हूँ मै और मेरा सब कुछ वो
न कभी खुद कहते हैं
न कभी कहने देते हैं
जब भी कहना चाहूँ बात बदल दते हैं
जाने कैसे ! 


पर आज
कहता हूँ न रोक सकेंगे आप
मेरी आवाज़
मेरे जज़्बात
मेरे पापा आप हो सबसे ख़ास
मेरे पापा आप हो सबसे ख़ास..!! 


पापा.. आप को देख तो नहीं पाया आप के आखिरी समय में शायद आप से दूर होकर.. चलो .. बस आप को आज मेरे प्यार का वास्ता.. जिन्दगी भार आप मुझे हमेशा हौसला देते रहे.. लेकिन अब में आप मेरे पीछे ही रहेगे..
चलो... आप को आखिरी प्रणाम.. बस जीने का सहस देते रहो.. अलविदा ....


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