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Saturday, June 8, 2013

गरुण पुराण: मृत्यु एक ऐसा सच है जिसे कोई भी झुठला नहीं सकता ।

आज जहा भी देखो लोग सिर्फ हिन्दू धर्म को छोड़ हिन्दू लोग दुसरे धर्म की ब्याख्या करने लगे है... पर 
शास्त्रों  के अनुसार... ४ वेद और १८  पुराण...जिसमे सबसे खतरनाक मुझे गरुण पुराण लगता है.. हे भगवान .... क्या  लीला है तेरी.... ये सुनना भी कब पड़ता है .. जब जीवन के आधार दाता  .. माँ या बाप हमको छोड़ के चले जाये.... कैसे डेर्वाते है पंडित जी.... मृत्यु एक ऐसा सच है जिसे कोई भी झुठला नहीं सकता ।

रूड़ पुराण वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित है और सनातन धर्म में मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है। इसलिये सनातन हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद गरुड़ पुराण के श्रवण का प्रावधान है। इस पुराणके अधिष्ठातृ देव भगवान विष्णु हैं। इसमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार, निष्काम कर्म की महिमा के साथ यज्ञ, दान, तप तीर्थ आदि शुभ कर्मों में सर्व साधारणको प्रवृत्त करने के लिये अनेक लौकिक और पारलौकिक फलोंका वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें आयुर्वेद, नीतिसार आदि विषयोंके वर्णनके साथ मृत जीव के अन्तिम समय में किये जाने वाले कृत्यों का विस्तार से निरूपण किया गया है। आत्मज्ञान का विवेचन भी इसका मुख्य विषय है।


अठारह पुराणों में गरुड़महापुराण का अपना एक विशेष महत्व है। इसके अधिष्ठातृदेव भगवान विष्णु है। अतः यह वैष्णव पुराण है। गरूड़ पुराण में विष्णु-भक्ति का विस्तार से वर्णन है। भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों का वर्णन ठीक उसी प्रकार यहां प्राप्त होता है, जिस प्रकार 'श्रीमद्भागवत' में उपलब्ध होता है। आरम्भ में मनु से सृष्टि की उत्पत्ति, ध्रुव चरित्र और बारह आदित्यों की कथा प्राप्त होती है। उसके उपरान्त सूर्य और चन्द्र ग्रहों के मंत्र, शिव-पार्वती मंत्र, इन्द्र से सम्बन्धित मंत्र, सरस्वती के मंत्र और नौ शक्तियों के विषय में विस्तार से बताया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में श्राद्ध-तर्पण, मुक्ति के उपायों तथा जीव की गति का विस्तृत वर्णन मिलता है'गरूड़ पुराण' में उन्नीस हजार श्लोक कहे जाते हैं, किन्तु वर्तमान समय में कुल सात हजार श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस पुराण को दो भागों में रखकर देखना चाहिए। पहले भाग में विष्णु भक्ति और उपासना की विधियों का उल्लेख है तथा मृत्यु के उपरान्त प्राय: 'गरूड़ पुराण' के श्रवण का प्रावधान है। दूसरे भाग में प्रेत कल्प का विस्तार से वर्णन करते हुए विभिन्न नरकों में जीव के पड़ने का वृत्तान्त है। इसमें मरने के बाद मनुष्य की क्या गति होती है, उसका किस प्रकार की योनियों में जन्म होता है, प्रेत योनि से मुक्त कैसे पाई जा सकती है, श्राद्ध और पितृ कर्म किस तरह करने चाहिए तथा नरकों के दारूण दुख से कैसे मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन प्राप्त होता है।

कथा एवं वर्ण्य विषय

महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज गरुड़ को भगवान विष्णु का वाहन कहा गया है। एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से मृत्यु के बाद प्राणियों की स्थिति, जीव की यमलोक-यात्रा, विभिन्न कर्मों से प्राप्त होने वाले नरकों, योनियों तथा पापियों की दुर्गति से संबंधित अनेक गूढ़ एवं रहस्ययुक्त प्रश्न पूछे। उस समय भगवान विष्णु ने गरुड़ की जिज्ञासा शांत करते हुए उन्हें जो ज्ञानमय उपदेश दिया था, उसी उपदेश का इस पुराण में विस्तृत विवेचन किया गया है। गरुड़ के माध्यम से ही भगवान विष्णु की श्रीमुख से मृत्यु के उपरांत के गूढ़ तथा परम कल्याणकारी वचन प्रकट हुए थे, इसलिए इस पुराण को ‘गरुड़ पुराण’ कहा गया है। श्री विष्णु द्वारा प्रतिपादित यह पुराण मुख्यतः वैष्णव पुराण है। इस पुराण को 'मुख्य गारुड़ी विद्या' भी कहा गया है। इस पुराण का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्माजी ने महर्षि वेद व्यास को प्रदान किया था। तत्पश्चात् व्यासजी ने अपने शिष्य सूतजी को तथा सूतजी ने नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषि-मुनियों को प्रदान किया था।

इस पुराण में सबसे पहले पुराण को आरम्भ करने का प्रश्न किया गया है, फ़िर संक्षेप से सृष्टि का वर्णन है। इसके बाद सूर्य आदि की पूजा, पूजा की विधि, दीक्षा विधि, श्राद्ध पूजा नवव्यूह की पूजा विधि, वैष्णव-पंजर, योगाध्याय, विष्णुसहस्त्रनाम कीर्तन, विष्णु ध्यान, सूर्य पूजा, मृत्युंजय पूजा, माला मन्त्र, शिवार्चा गोपालपूजा, त्रैलोक्यमोहन, श्रीधर पूजा, विष्णु-अर्चा पंचतत्व-अर्चा, चक्रार्चा, देवपूजा, न्यास आदि संध्या उपासना दुर्गार्चन, सुरार्चन, महेश्वर पूजा, पवित्रोपण पूजन, मूर्ति-ध्यान, वास्तुमान प्रासाद लक्षण, सर्वदेव-प्रतिष्ठा पृथक-पूजा-विधि, अष्टांगयोग, दानधर्म, प्रायश्चित-विधि, द्वीपेश्वरों और नरकों का वर्णन, सूर्यव्यूह, ज्योतिष, सामुद्रिकशास्त्र, स्वरज्ञान, नूतन-रत्न-परीक्षा, तीर्थ-महात्म्य, गयाधाम का महात्म्य, मन्वन्तर वर्णन, पितरों का उपाख्यान, वर्णधर्म, द्रव्यशुद्धि समर्पण, श्राद्धकर्म, विनायकपूजा, ग्रहयज्ञ आश्रम, जननाशौच, प्रेतशुद्धि, नीतिशास्त्र, व्रतकथायें, सूर्यवंश, सोमवंश, श्रीहरि-अवतार-कथा, रामायण, हरिवंश, भारताख्यान, आयुर्वेदनिदान चिकित्सा द्रव्यगुण निरूपण, रोगनाशाक विष्णुकवच, गरुणकवच, त्रैपुर-मंत्र, प्रश्नचूणामणि, अश्वायुर्वेदकीर्तन, औषधियों के नाम का कीर्तन, व्याकरण का ऊहापोह, छन्दशास्त्र, सदाचार, स्नानविधि, तर्पण, बलिवैश्वदेव, संध्या, पार्णवकर्म, नित्यश्राद्ध, सपिण्डन, धर्मसार, पापों का प्रायश्चित, प्रतिसंक्रम, युगधर्म, कर्मफ़ल योगशास्त्र विष्णुभक्ति श्रीहरि को नमस्कार करने का फ़ल, विष्णुमहिमा, नृसिंहस्तोत्र, विष्णवर्चनस्तोत्र, वेदान्त और सांख्य का सिद्धान्त, ब्रह्मज्ञान, आत्मानन्द, गीतासार आदि का वर्णन है।

मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन है। किस प्रकार मनुष्य के प्राण निकलते हैं और किस तरह वह पिंडदान प्राप्त कर प्रेत का रूप लेता है।

* जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोल नहीं पाता है। अंत समय में उसमें दिव्य दृष्टि उत्पन्न होती है और वह संपूर्ण संसार को एकरूप समझने लगता है । उसकी सभी इंद्रियां नष्ट हो जाती हैं। वह जड़ अवस्था में आ जाता है, यानी हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाता है। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगता है और लार टपकने लगती है । पापी पुरुष के प्राण नीचे के मार्ग से निकलते हैं ।

* मृत्यु के समय दो यमदूत आते हैं । वे बड़े भयानक, क्रोधयुक्त नेत्र वाले तथा पाशदंड धारण किए होते हैं । वे नग्न अवस्था में रहते हैं और दांतों से कट-कट की ध्वनि करते हैं । यमदूतों के कौए जैसे काले बाल होते हैं । उनका मुंह टेढ़ा-मेढ़ा होता है । नाखून ही उनके शस्त्र होते हैं। इन दूतों को देखकर प्राणी भयभीत होकर मलमूत्र त्याग करने लग जाता है। उस समय शरीर से अंगूष्ठमात्र (अंगूठे के बराबर) जीव हा हा शब्द करता हुआ निकलता है।

* यमराज के दूत जीवात्मा के गले में पाश बांधकर यमलोक ले जाते हैं। उस पापी जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी दूत भयभीत करते हैं और उसे नरक में मिलने वाली यातनाओं के बारे में बताते हैं । ऐसी भयानक बातें सुनकर पापात्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते हैं ।

* इसके बाद वह अंगूठे के बराबर शरीर यमदूतों से डरता और कांपता हुआ, कुत्तों के काटने से दु:खी अपने पापकर्मों को याद करते हुए चलता है। आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह जीव चल नहीं पाता है । वह भूख-प्यास से भी व्याकुल हो उठता है । उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरता है और बेहोश हो जाता है। उसको अंधकारमय मार्गसे ले जाते हैं।

* यमलोक . पापी जीव को दो- तीन मुहूर्त में ले जाते हैं। इसके बाद उसे भयानक यातना देते हैं। यह भोगने के बाद यमराज की आज्ञा से यमदूत आकाशमार्ग से पुन: उसे उसके घर छोड़ आते हैं।

* घर में आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा रखती है, लेकिन यमदूत के पाश से वह मुक्त नहीं हो पाती और भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समय में दान करते हैं, उससे भी प्राणी की तृप्ति नहीं होती, क्योंकि पापी पुरुषों को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस प्रकार भूख-प्यास से बेचैन होकर वह जीव यमलोक जाता है।

* जिस पापात्मा के पुत्र आदि पिंडदान नहीं देते हैं तो वे प्रेत रूप हो जाती हैं और लंबे समय तक निर्जन वन में दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय बीतने के बाद भी कर्म को भोगना ही पड़ता है, क्योंकि प्राणी नरक यातना भोगे बिना मनुष्य शरीर नहीं प्राप्त होता। मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। उस पिंडदान के प्रतिदिन चार भाग हो जाते हैं। उसमें दो भाग तो पंचमहाभूत देह को पुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत का होता है तथा चौथा भाग प्रेत खाता है। नवें दिन पिंडदान करने से प्रेत का शरीर बनता है। दसवें दिन पिंडदान देने से उस शरीर को चलने की शक्ति प्राप्त होती है।

• शव को जलाने के बाद पिंड से हाथ के बराबर का शरीर उत्पन्न होता है । वही यमलोक के मार्ग में शुभ-अशुभ फल भोगता है। पहले दिन पिंडदान से मूर्धा (सिर), दूसरे दिन गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से हृदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नवें और दसवें दिन से भूख-प्यास उत्पन्न होती है । यह पिंड शरीर को धारण कर भूख-प्यास से व्याकुल प्रेतरूप में ग्यारहवें और बारहवें दिन का भोजन करता है ।

* यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन प्रेत को बंदर की तरह पकड़ लिया जाता है । इसके बाद वह प्रेत भूख-प्यास से तड़पता हुआ यमलोक अकेला ही जाता है। यमलोक तक पहुंचने का रास्ता वैतरणी नदी को छोड़कर छियासी हजार योजन है । उस मार्ग पर प्रेत प्रतिदिन दो सौ योजन चलता है । इस प्रकार 47 दिन लगातार चलकर वह यमलोक पहुंचता है । मार्ग में सोलह पुरियों को पार कर यमराज के घर जाता है।

* इन सोलह पुरियों के नाम इस प्रकार है - सौम्य, सौरिपुर, नगेंद्रभवन, गंधर्व, शैलागम, क्रौंच, क्रूरपुर, विचित्रभवन, बह्वापाद, दु:खद, नानाक्रंदपुर, सुतप्तभवन, रौद्र, पयोवर्षण, शीतढ्य, बहुभीति । इन सोलह पुरियों को पार करने के बाद प्राणी यमपाश में बंधा मार्ग में हाहाकार करते हुए यमराज पुरी जाता है । ( मरने के बाद क्या होता है , श्री गरुण पुराण कि यह बात -.-

मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन है । )


मृत्यु जीवन का सत्य है लेकिन एक सत्य, मृत्यु के बाद शुरु होता है। इस सच के बारे में, बहुत कम लोग जानते हैं। क्या वाकई, मृत्यु के समय व्यक्ति को कोई दिव्य दृष्टि मिलती है? आखिर मृत्यु के कितने दिनों बाद, आत्मा यमलोक पहुंचती है? गरुण पुराण में, भगवान के वाहन गरुण, श्रीहरि विष्णु से मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति को लेकर प्रश्न उठाते हैं। वह पूछते हैं कि मृत्यु के बाद, आत्मा कहां जाती है? इसका उत्तर भगवान विष्णु ने, गरुण पुराण में दिया है। गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। 

क्या होता है मृत्यु से पहले?

गरुण पुराण के अनुसार, मृत्यु से पहले, मनुष्य की आवाज चली जाती है। जब  अंतिम समय आता है, तो मरने वाले व्यक्ति को दिव्य दृष्टि मिलती है। इस दिव्य दृष्टि के बाद, मनुष्य, सारे संसार को, एक रूप में देखने लगता है। उसकी सारी इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं।
क्या होता है मृत्यु के समय?

गरुण पुराण के अनुसार, मृत्यु के समय 2 यमदूत आते हैं। इनके भय से अंगूठे के बराबर जीव, हा हा की आवाज़ करते हुये, शरीर से बाहर निकलता है। यमराज के दूत, जीवात्मा के गले में पाश बांधकर, उसे यमलोक ले जाते हैं। इसके बाद, जीव का सूक्ष्म शरीर, यमदूतों से डरता हुआ आगे बढ़ता है।
कैसा है मृत्यु का मार्ग?

मृत्यु का रास्ता अंधेरा और गर्म बालू से भरा होता है। यमलोक पहुंचने पर, पापी जीव को यातना देने के बाद, यमराज के कहने पर, उसे आकाश मार्ग से घर छोड़ दिया जाता है। घर आकर वह जीवात्मा, अपने शरीर में, फिर से घुसना चाहती है। लेकिन यमदूत के पाश से मुक्त नहीं हो पाती है। पिंडदान के बाद भी, वह जीवात्मा तृप्त नहीं हो पाती है। इस तरह भूख प्यास से बेचैन आत्मा, फिर यमलोक आ जाती है। जब तक उस आत्मा के वंशज, उसका पिंडदान नहीं करते, तो आत्मा दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय यातना भोगने के बाद, उसे विभिन्न योनियों में नया शरीर मिलता है। इसीलिये मनुष्य की मृत्यु के 10 दिन तक, पिंडदान ज़रुर करना चाहिए। दसवें दिन पिंडदान से, सूक्ष्म शरीर को चलने की शक्ति मिलती है। मृत्यु के 13वें दिन फिर यमदूत उसे पकड़ लेते हैं। उसके बाद शुरू होती है वैतरणी नदी को पार करने की यात्रा। वैतरणी नदी को पार करने में पूरे 47 दिन का समय लगता है। उसके बाद जीवात्मा यमलोक पहुंच जाती है। 

क्या है गरुण पुराण?
गरुण पुराण के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं। इसमें 19 हजार श्लोक थे, लेकिन अब सिर्फ 7 हज़ार श्लोक ही हैं। गरुण पुराण 2 भागों में है। पहले भाग में श्रीविष्णु की भक्ति, उनके 24 अवतार की कथा और पूजा विधि के बारे में बताया गया है। दूसरे भाग में, प्रेत कल्प और कई तरह के नरक के वर्णन है। मृत्यु के बाद मनुष्य की क्या गति होती है? उसे किन-किन योनियों में जन्म लेना पड़ता है? क्या प्रेत योनि से मुक्ति पाई जा सकती है? श्राद्ध और पिंडदान कैसे किया जाता है? श्राद्ध के कौन-कौन से तीर्थ हैं? मोक्ष कैसे मिल सकता है? इस बारे में विस्तार से वर्णन है।

गरुण पुराण की कथा
महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हैं। एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से मृत्यु के बाद जीवात्मा की स्थिति के बारे में प्रश्न किया था। तब विष्णु जी ने, मृत्यु के बाद की जीवात्मा की गति के बारे में, गरुण को बताया था। इसीलिए इसका नाम गरुण पुराण पड़ा।

गरुण पुराण का विषय
गरुण पुराण की शुरुआत में सृष्टि के बनने की कहानी है। इसके बाद सूर्य की पूजा की विधि, दीक्षा विधि, श्राद्ध पूजा, नवव्यूह की पूजा विधि के बारे में बताया गया है। साथ ही साथ भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार और निष्काम कर्म की महिमा भी बताई गयी है। श्राद्ध में गरुण पुराण के पाठ से आत्मा को मुक्ति और मोक्ष मिलता है। इसीलिये श्राद्ध के 15 दिनों में जगह जगह गरुण पुराण के पाठ का आयोजन होता है। अपने पितरों और पूर्वजों को मुक्ति दिलाने के  लिये, ज़रूर पढ़ें गरुण पुराण।
गरुड़ पुराण में वर्णन है 36 नर्क का,

हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में 36 तरह के मुख्य नर्कों का वर्णन किया गया है। अलग-अलग कर्मों के लिए इन नर्कों में सजा का प्रावधान भी माना गया है। गरूड़ पुराण, अग्रिपुराण, कठोपनिषद जैसे प्रामाणिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। आज हम आपको उन नर्कों के बारे में संक्षिप्त रूप से बता रहे हैं- :


1. महावीचि- यह नर्क पूरी तरह रक्त यानी खून से भरा है और इसमें लोहे के बड़े-बड़े कांटे हैं। जो लोग गाय की हत्या करते हैं, उन्हें इस नर्क में यातना भुगतनी पड़ती है।

2. कुंभीपाक– इस नर्क की जमीन गरम बालू और अंगारों से भरी है। जो लोग किसी की भूमि हड़पते हैं या ब्राह्मण की हत्या करते हैं। उन्हें इस नर्क में आना पड़ता है।

3. रौरव- यहां लोहे के जलते हुए तीर होते हैं। जो लोग झूठी गवाही देते हैं उन्हें इन तीरों से बींधा जाता है।

4. मंजूष- यह जलते हुए लोहे जैसी धरती वाला नर्क है। यहां उनको सजा मिलती है, जो दूसरों को निरपराध बंदी बनाते हैं या कैद में रखते हैं।

5. अप्रतिष्ठ- यह पीब, मूत्र और उल्टी से भरा नर्क है। यहां वे लोग यातना पाते हैं, जो ब्राह्मणों को पीड़ा देते हैं या सताते हैं।

6. विलेपक- यह लाख की आग से जलने वाला नर्क है। यहां उन ब्राह्मणों को जलाया जाता है, जो शराब पीते हैं।

7. महाप्रभ- इस नर्क में एक बहुत बड़ा लोहे का नुकीला तीर है। जो लोग पति-पत्नी में फूट डालते हैं, पति-पत्नी के रिश्ते तुड़वाते हैं वे यहां इस तीर में पिरोए जाते हैं।

8. जयंती- यहां जीवात्माओं को लोहे की बड़ी चट्टान के नीचे दबाकर सजा दी जाती है। जो लोग पराई औरतों के साथ संभोग करते हैं, वे यहां लाए जाते हैं।

9. शाल्मलि- यह जलते हुए कांटों से भरा नर्क है। जो औरत कई पुरुषों से संभोग करती है व जो व्यक्ति हमेशा झूठ व कड़वा बोलता है, दूसरों के धन और स्त्री पर नजर डालता है। पुत्रवधू, पुत्री, बहन आदि से शारीरिक संबंध बनाता है व वृद्ध की हत्या करता है, ऐसे लोगों को यहां लाया जाता है।

10. महारौरव- इस नर्क में चारों तरफ आग ही आग होती है। जैसे किसी भट्टी में होती है। जो लोग दूसरों के घर, खेत, खलिहान या गोदाम में आग लगाते हैं, उन्हें यहां जलाया जाता है।

11. तामिस्र- इस नर्क में लोहे की पट्टियों और मुग्दरों से पिटाई की जाती है। यहां चोरों को यातना मिलती है।

12. महातामिस्र- इस नर्क में जौंके भरी हुई हैं, जो इंसान का रक्त चूसती हैं। माता, पिता और मित्र की हत्या करने वाले को इस नर्क में जाना पड़ता है।

13. असिपत्रवन- यह नर्क एक जंगल की तरह है, जिसके पेड़ों पर पत्तों की जगह तीखी तलवारें और खड्ग हैं। मित्रों से दगा करने वाला इंसान इस नर्क में गिराया जाता है।

14. करम्भ बालुका- यह नर्क एक कुएं की तरह है, जिसमें गर्म बालू रेत और अंगारे भरे हुए हैं। जो लोग दूसरे जीवों को जलाते हैं, वे इस कुएं में गिराए जाते हैं।

15. काकोल- यह पीब और कीड़ों से भरा नर्क है। जो लोग छुप-छुप कर अकेले ही मिठाई खाते हैं, दूसरों को नहीं देते, वे इस नर्क में लाए जाते हैं।

16. कुड्मल- यह मूत्र, पीब और विष्ठा (उल्टी) से भरा है। जो लोग दैनिक जीवन में पंचयज्ञों ( ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, पितृयज्ञ, मनुष्य यज्ञ) का अनुष्ठान नहीं करते वे इस नर्क में आते हैं।

17. महाभीम- यह नर्क बदबूदार मांस और रक्त से भरा है। जो लोग ऐसी चीजें खाते हैं, जिनका शास्त्रों ने निषेध बताया है, वो लोग इस नर्क में गिरते हैं।

18. महावट- इस नर्क में मुर्दे और कीड़े भरे हैं, जो लोग अपनी लड़कियों को बेचते हैं, वे यहां लाए जाते हैं।

19. तिलपाक- यहां दूसरों को सताने, पीड़ा देने वाले लोगों को तिल की तरह पेरा जाता है। जैसे तिल का तेल निकाला जाता है, ठीक उसी तरह।

20. तैलपाक- इस नर्क में खौलता हुआ तेल भरा है। जो लोग मित्रों या शरणागतों की हत्या करते हैं, वे यहां इस तेल में तले जाते हैं।

21. वज्रकपाट- यहां वज्रों की पूरी श्रंखला बनी है। जो लोग दूध बेचने का व्यवसाय करते हैं, वे यहां प्रताड़ना पाते हैं।

22. निरुच्छवास- इस नर्क में अंधेरा है, यहां वायु नहीं होती। जो लोग दिए जा रहे दान में विघ्न डालते हैं वे यहां फेंके जाते हैं।

23. अंगारोपच्य- यह नर्क अंगारों से भरा है। जो लोग दान देने का वादा करके भी दान देने से मुकर जाते हैं। वे यहां जलाए जाते हैं।

24. महापायी- यह नर्क हर तरह की गंदगी से भरा है। हमेशा असत्य बोलने वाले यहां औंधे मुंह गिराए जाते हैं।

25. महाज्वाल- इस नर्क में हर तरफ आग है। जो लोग हमेशा ही पाप में लगे रहते हैं वे इसमें जलाए जाते हैं।

26. गुड़पाक- यहां चारों ओर गरम गुड़ के कुंड हैं। जो लोग समाज में वर्ण संकरता फैलाते हैं, वे इस गुड़ में पकाए जाते हैं।

27. क्रकच- इस नर्क में तीखे आरे लगे हैं। जो लोग ऐसी महिलाओं से संभोग करते हैं, जिसके लिए शास्त्रों ने निषेध किया है, वे लोग इन्हीं आरों से चीरे जाते हैं।

28. क्षुरधार- यह नर्क तीखे उस्तरों से भरा है। ब्राह्मणों की भूमि हड़पने वाले यहां काटे जाते हैं।

29. अम्बरीष- यहां प्रलय अग्रि के समान आग जलती है। जो लोग सोने की चोरी करते हैं, वे इस आग में जलाए जाते हैं।

30. वज्रकुठार- यह नर्क वज्रों से भरा है। जो लोग पेड़ काटते हैं वे यहां लंबे समय तक वज्रों से पीटे जाते हैं।

31. परिताप- यह नर्क भी आग से जल रहा है। जो लोग दूसरों को जहर देते हैं या मधु (शहद) की चोरी करते हैं, वे यहां जलाए जाते हैं।

32. काल सूत्र- यह वज्र के समान सूत से बना है। जो लोग दूसरों की खेती नष्ट करते हैं। वे यहां सजा पाते हैं।

33. कश्मल- यह नर्क नाक और मुंह की गंदगी से भरा होता है। जो लोग मांसाहार में ज्यादा रुचि रखते हैं, वे यहां गिराए जाते हैं।

34. उग्रगंध- यह लार, मूत्र, विष्ठा और अन्य गंदगियों से भरा नर्क है। जो लोग पितरों को पिंडदान नहीं करते, वे यहां लाए जाते हैं।

35. दुर्धर- यह नर्क जौक और बिच्छुओं से भरा है। सूदखोर और ब्याज का धंधा करने वाले इस नर्क में भेजे जाते हैं।

36. वज्रमहापीड- यहां लोहे के भारी वज्र से मारा जाता है। जो लोग सोने की चोरी करते हैं, किसी प्राणी की हत्या कर उसे खाते हैं, दूसरों के आसन, शय्या और वस्त्र चुराते हैं, जो दूसरों के फल चुराते हैं, धर्म को नहीं मानते ऐसे सारे लोग यहां लाए जाते हैं।

हे प्रभु इन मूर्खो को ज्ञान दो... हमारे ही धर्म में बू सी बाते लिखी है... जो एक जीवन में सफल होने के मंत्र है... ये मुर्ख अपने धर्म को छोड़ दुसरे के धर्म में घुसते है.... ज्ञान दे प्रभु... त्राहि माम.... 










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