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Friday, October 25, 2013

गिलाफ-ए-औज़ार-


" गिलाफ-ए-औज़ार-ए-मज़ा-ए-मोहब्बत औ' बंदिश-ए-इज़ाफा-ए-नस्ल " का इस्तेमाल नहीं किया बस उस रात ये ही तकलीफ थी

येही कमी है मेरे अन्दर.. मुझे अफ़सोस करना नहीं आता.. आज से ठीक १० साल पहले २४ ओक्टोबर २००३ दिल्ली से बनारस शिवगंगा खचाखच भरी ट्रेन .. लटकता हुवा बनारस जा रहा हु.. वो भी बिना टिकट.. क्या जल्दी है मुझे.. पता नहीं.. पर बनारस जाना है..
सुबह ८ बजे बनारस पहुच कर सीधे औरगाबाद कमल जिया जी के यहाँ पंहुचा था.. जेब बे सिर्फ १०० रुपये.. वो भी सिर्फ ५-५ के नोट ... दिवाली का दिन वो भी सनिवार २५ अक्तूबर २००३ .. सिखा दीदी ने कहा क्षमा को अस्पताल ले जाना है.. जल्दी नाहा धो लो..

११ बजे कमल जिया जी और सिखा दीदी के साथ बांस फाटक के सेवा सदन हस्पताल में पंहुचा था .. सासु जी धरम पत्नी को ले कर अकेले .. शायद उस दिन ..

अस्पताल में भरती करया .. जेब में सिर्फ १०० ............. कुछ नहीं कर पाया था .. शायद जिन्दगी ऐसी ही होती है..

२५ अक्तूबर २००३ दिन के ठीक १२ बजे .. पूरा हस्पताल खली था .. कोई नहीं मेरे आगे पीछे.. पागलो की तरह दौड़ रहा था..
अब आज १० साल हो गए उस बात को ..

आज मेरे दुलरुआ का जन्म दिन का १० साल हो गया है ,मै दूर हूँ , शायद पास भी होता तो 'विजयी भव 'से ज्यादा क्या कहता .दसवा साल जिंदगी के सबसे हसीं दिनों की शुरुआत है और दिल कहता है
बस और कुछ नहीं
जीवो जीवन और जगमग जीवन जीवो
ऐसा जीवो जीवन जो न सिर्फ रचे बल्कि गुनगुनाये
ऐसा ही जगमग जीवन जीवो..
आज तक तुम्हारे लिए हजारो नाम रखे
लेकिन तुम
A
Kshama
s
h
a
Rajeev
ही रहोगे..
सर्वोपद्रवनिर्मुक्त: सर्वव्याधिविवर्जित:|
सर्वदापूर्णहृदय: सक्षात शिवमयोभव: ||
सुदिनं सुदिनं जन्मदिनम तव, विजयी भव सर्वत्र सर्वदा, भवतु मंगलम जन्मदिनम || शतं जीव शरद:|
आयुष्मान भवः



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