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Saturday, June 27, 2015

ऐ माँ फिर से ..

ऐ माँ फिर से मुझे मेरा बस्ता देदे की दुनिया के दिये सबक मुश्किल बहुत है

पी लिया करते हैं जीने की तमन्ना में कभी,
डगमगाना भी ज़रूरी है संभलने के लिए।

उसे ये कोन बतलाये, उसे ये कोन समझाए कि खामोश रहने से ताल्लुक टूट जाते है

तेरी मोहब्बत को कभी खेल नही समजा ,
वरना खेल तो इतने खेले है कि कभी हारे नही….!


वो जाते जाते कह गया कि हम, सिर्फ खाव्बो मे आयेगें,

हम ने कहा वादा तो करो, हम जिन्दगी भर के लिये सो जायेगें


कहा से हम बड़े हो गए.. माँ बाप के साये से दूर .....थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी
                                                                      मुनासिब होगा मेरा हिसाब कर दे…!!”

बचपन में हम बहुत अमीर हुवा करते थे!!
इस बारिश में 2 - 3 जहाज़ हमारे भी चला करते थे !!

काग़ज़ के ही क्यों नही पर
हवा में हमारे भी विमान उड़ा करते थे !!

मिट्टी - गारे का हि क्यों ना हो हमारे भी
महल किले हुवा करते थे !!!

अब कहा रही वो अमिरी
अब कहा रहा वो बचपन

ज़िंदगी भी "टेम्पल रन" और "सब्वे सर्फर" गेम जैसी हो
गयी है .. भागते दौड़ते पैसे कमा रहे हैं पर जाना कहा है किसी को पता नही

जिम्मेदारियां ओढ़ के निकलता हूँ घर से यारो..
वर्ना बारिशों में भीगने का शौक तो अब भी है...!!

जिन्दगी में बड़ा वही बन पाता है जिसे “चुनौतियों” और “चूतियों” से एक साथ
निबटना आता हो. ..!


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