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Sunday, July 8, 2018

History of Langot ; लंगोट का इतिहास

जब से पता चला है कि लंगोटे की बिक्री में 30% की कमी आई है अब से तो टेंशन हो गया हालांकि लंगोट के बारे में बहुत अभी भी कम ही लोग जानते हैं अगर गूगल में खोजा जाए तो गूगल के अनुसार लंगोट पहलवानों के इस्तेमाल में आता है और कुछ हिंदूवादी संगठन भी लोगों के खास प्रचार प्रसार करते रहते हैं ऐसा गूगल में देखा जाता है लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता मेरे हिसाब से लंगोट एक विशुद्ध भारतीय प्राचीन अंग वस्त्र है, जिसका उपयोग खास कर पूर्वी उत्तर प्रदेश में होता है... ये पताका के रूप में बनारस और उसके आस पास दिख जायेगे... खास कर बनारस शहर में उसके उपयोगकर्ता दिखते है... 


अगर आप लंगोट की हिंदी शब्दकोश में परिभाषा देखेंगे तो यह कमर में बांधने का एक वस्त्र है  लंबी आकार का या अधिक होना होता है जो कमर पर लपेटने के लिए डोरी होती है हालांकि गूगल के अनुसार पहलवान कुश्ती लड़ने या कसरत करते समय से पहना करते हैं वैसे मुझे लगता है कि लगोट का जन्म तो बनारस में ही हुआ है कहानियां सुनी जाती थी कि बनारस का लंगोट मुंबई में अगर कोई पुराना बनारस वासी होगा तो आप उससे लंगोट की तमाम कहानियां सुने सकते हैं वैसे पूर्वांचल का एक प्राचीन अन्तर वस्त्र अभी भी माना जाता है शहर में घाट के किनारे अगर आप देखेंगे तो अभी भी लोगों का वैसे ही प्रचलन है जहाँ बाकी देश में खासकर बड़े शहरों में ब्रीफ़्स और अण्डरवियर्स का चलन है, बनारस में लंगोट अभी भी लोकप्रिय है, घाट पर नहाते पुरुषों में अधिकतर लोग आप को ब्राण्डेड अण्डरवीयर में ज़रूर दिखेंगे मगर एक अच्छी संख्या लंगोटधारियों की भी मिलेगी। और नगरों में लंगोट को लोगों ने पके करेले की तरह त्याग दिया है। करेला तो वो पहले भी था क्योंकि जो लोग लंगोट के योग्य अपने को नहीं पाते थे उन्होने पिछली पीढ़ी में ही पटरे वाले जांघिये का आविष्कार करवा लिया था। अब तो खैर! ये भी बात होने लगी है कि लंगोट पहनने से आदमी नपुंसक हो जाला।
 
इस हिसाब से उसके मैन्युफैक्चर और उत्पादक भी बहुत अभी गूगल पर देखे तो ऑनलाइन लंगोट भी मिलती है लेकिन सवाल यह है कि जिसके बारे में हम बात कर रहे है क्यों यह विलुप्त होती जा रही है .. अब सवाल यह कि जिस लंगोट के बारे में हम इतना बोलते हैं, आखिर वह लंगोट आज कहीं दिखती क्यों नहीं? क्यों सिर्फ पहलवानों तक ही लंगोट सीमित रह गई है? क्यों हम देशी लंगोट छोड़, विदेशी अंडरवियर पहनने लगे हैं? 
 
कभी भारत की पहचान थी जो ‘लंगोट’, वह आज ‘अंडरवियर’ में कैसे बदल गई ?
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लंगोट पहनने का इतिहास बहुत पुराना है. आज इसे हम कई नामों से जानते हैं चड्डी, अंडरवियर, लंगोट लेकिन क्या आपको पता है ये नाम भी कहां से और क्यों आए. लंगोट का इस्तेमाल इंसान 7 हजार साल से करता आ रहा है. सबसे पहले इस अविष्कार चमड़े के बने एक पट्टे के रूप में किया गया था. जिसे टांगों के बीच से निकालकर पीछे बांध लिया जाता था. लोग इसे इसलिए पहनते थे ताकि भागने में किसी तरह की कोई परेशानी न हो. उसके बाद देखा गया कि रोम के आदमी और औरत एक विशेष प्रकार का अंडरवियर पहनते थे जिसे अंग्रेजी में Subligaculum कहते थे. इस लंगोट में एक चौड़ी बेल्ट होती थी जिसमें लगे कपड़े इंसान के अंगों को आगे और पीछे से ढक लेते थे. इसे कुर्ते के नीचे पहना जाता था. इसका इस्तेमाल योद्धा सबसे ज्यादा करते थे.अं यहाँ से लगोट की सूरत बदलने लगी 
 
पुनर्जागरण काल के बाद लोगों के पहनावे में बदलाव आया. वे टाइट कपड़े पहनने लगे जिसके स्वरूप उनके अंत:वस्त्र का रूप भी बदलता गया. अब अंडरवियर का आकार छोटा हो गया था और उसमें पेशाब करने के लिए एक फ्लैप दिया जाने लगा. लेकिन ये डिजाइन भी स्थायी नहीं था उसके बाद एक विशेष तरह के अंडरवियर बाजार में उतरे. ये भी पढ़ें-घर या किचेन से चींटियों को दूर रखना हो तो करें ये सरल उपाय, इनका आकार बड़ा था लेकिन ये सूती कपड़े के बने होने के कारण काफी आरामदायक थे. काफी लंबे टाइम तक इस तरह के अंडरवियर का चलन रहा.


लेकिन बदलते वक्त के साथ अंडरवियर के कई रूप देखने को मिले. अब इसका आकार छोटा और टाइट हो चुका था. चूंकि सबसे पहले इसे एक बॉक्सर ने रिंग में पहनकर फाइट की थी तो इसका नाम बॉक्सर रख दिया गया. इसके बाद एथलिट के लिए भी कुछ अलग और कम्फर्टेबल अंडरवियर तैयार किए गए.
बता दें, अंडरवियर बनाने वाली पहली कंपनी का नाम ‘Guelph Elastic Hosiery’था. जिन्होंने 1927 में अंडरवियर पर पेटेंट करवा लिया था. 1927 में पहला पीस बेचा गया था. इस अंडरवियर को पहनने के बाद लोगों ने कई शिकायते दर्ज करवाई जिसमें किडनी खराब होने और इन्सोमनिया की शिकायत सबसे ज़्यादा थी.

हिन्दी शब्दकोश में लँगोट की परिभाषा
लँगोट, लँगोटा संज्ञा पुं० [सं० लिङ्ग + ओट] [स्त्री० लँगोटी] कमर पर बाँधने का एक प्रकार का बना हुआ वस्त्र जिससे केवल उपस्थ ढका जाता है । विशेष—यह प्रायः लंबी पट्टी के आकार का अथवा तिकोना होता है, जिसमें दोनों ओर कमर पर लपेटने के लिये बंद लगे रहते हैं । प्रायः पहलवान लोग कुश्ती लड़ने या कसरत करने के समय इसे पहना करते हैं । रुमाली । यौ०—लंगोट का कच्चा या ढीला = विषयी । कामी । लँगोट- बद = ब्रह्माचारी । स्त्रीत्यागी । मुहा०—लँगोट कसना या बाँधना = लड़ने को तैयार होना । लँगोट रखना = (१) 'लंगर लँगोट रखना' । (२) पहलवानो छोड़ देना ।
वैसे आप ने कई फिल्मो में या लोगो के मुखार विन्दु से मुहावरे के तौर लगोट पर प्रवचन सुना होगा. इसे सुनने के बाद आपके मन में कुछ सवाल भी जरूर आए होंगे...

अगर आपके मन में भी ऐसे ही सवाल आते हैं, तो चलिए आज जानते हैं कि कैसे भारत लंगोट पीछे छोड़ अंडरवियर पहनने लगा..

कभी भारत की पहचान थी जो 'लंगोट', वह आज 'अंडरवियर' में कैसे बदल गई? ROAR का ये लेख

रामायण और महाभारत के समय से जुड़े हैं लंगोट के तार...
लंगोट का साथ हमारे साथ आज का नहीं बल्कि कई वर्षों पुराना है. माना जाता है कि पौराणिक काल से ही लंगोट इंसानों से जुड़ गई थी. 

इसे लिंग को ढ़कने के लिए बनाया गया था मगर कभी भी इसे किसी इनरवियर की तरह इस्तेमाल नहीं किया गया. लंगोट को हमेशा ही बाहर पहना गया.
लंगोट कब आई और किसने इसकी शुरुआत की यह किसी को भी सही रूप से पता नहीं है. हां, मगर इसका इस्तेमाल बहुत लंबे समय से होता आ रहा है.
धारणाओं की मानें, तो रामायण के समय भगवान हनुमान लंगोट पहने हुआ होते थे. उनकी लंगोट लाल रंग की थी. यह लंगोट दर्शाती थी कि वह ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करते हैं.
इतना ही नहीं माना जाता है कि यह लंगोट शारीरिक बल को भी दर्शाती थी और मानिसक स्थिरता भी प्रदान किया करती थी.
यही कारण है कि आज भी हनुमान जी की मूर्ति एक लाल लंगोट के साथ दिखाई देती है. यह तो बात थी रामायण की मगर महाभारत में भी लंगोट का ज़िक्र किया गया है.
महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था. ऐसे में दुर्योधन की माता गांधारी को यह भय था कि कहीं युद्ध में उनके पुत्र की मृत्यु न हो जाए. इसलिए वह चाहती थीं कि कुछ भी करके दुर्योधन को इस युद्ध में कोई क्षति न पहुंचे.
गांधारी ने एक दिन दुर्योधन को अपने पास नग्न अवस्था में बुलाया ताकि वह अपने वरदान से उसे बलशाली बना दें. हालांकि, श्री कृष्ण उनके सामने आते हैं और वह दुर्योधन को कहते हैं कि ऐसे नग्न होकर माँ के सामने जाना ठीक नहीं है. इसलिए वह उन्हें पत्तों से बनी एक लंगोट पहनने को कहते हैं.
लंगोट के कारण दुर्योधन की जांघ में ताकत नहीं आ पाती, जिसके कारण उसकी आगे चलकर मौत भी हो जाती है. महाभारत के इस किस्से में भी लंगोट का ज़िक्र किया गया है. यह दर्शाता है कि पौराणिक काल से किस तरह से लंगोट इंसानों से जुड़ा हुआ है.

सिंधु घाटी सभ्यता में दिखा लंगोट का नया रूप!
सिर्फ रामायण और महाभारत तक ही लंगोट का इतिहास सीमित नहीं रहा. इसके इस्तेमाल के कुछ सबूत सिंधु घाटी में भी मिले.
माना जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता में लोग अपने तन को ढ़कने के लिए लंगोट का ही इस्तेमाल करते थे. हाँ, मगर उस समय लंगोट आम कपड़े की बनी लंगोट से थोड़ी अलग होती थी.
यह थोड़ी लंबी होती थी और इसका एक हिस्सा लंगोट से निकलकर अंगवस्त्र की तरह शरीर से बाँधा जाता था. इससे यह पूरी तरह से उनके बदन को ढ़कने वाला एक वस्त्र बन जाता था.
इतना ही नहीं माना जाता है कि सिंधु घाटी में कई लोग भेड़ की ऊन से बने लंगोट भी पहना करते थे. वहीं कुछ लोग जानवरों की खाल से बने लंगोट पहना करते थे.
लंगोट पहनने का उनका एक मात्र मकसद यही था कि वह अपने निजी अंगों को ढकना चाहते थे.

गुरु गोबिंद सिंह लेकर आए 'कच्छा' मगर...
जैसे-जैसे वक्त गुजरा लंगोट का चलन पीछे छूटने लगा. अब तन ढकने के लिए धोती जैसी कई चीजें आ चुकी थीं. लोगों को भी कभी इनरवियर के रूप में कुछ पहनने की जरूरत महसूस नहीं हुई.
कई सालों तक ऐसे ही चलता रहा मगर 1699 में दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह 'कच्छा' नामक एक नई चीज दुनिया के सामने लाए.
इसे सिख धर्म के पाँच ककार में से एक माना गया. इसे बनाया ही इसलिए गया था ताकि सभी सिख इसके जरिए अपने निजी अंगों को छिपा सकें.
यह कच्छा सिर्फ पुरुषों के लिए ही नहीं बनाया गया बल्कि महिलाओं को भी यह पहनने के लिए दिया गया. यह कपड़े के टुकड़ों को सिलकर बनाया जाता था.
धारणाओं की मानें तो, कच्छा इसलिए भी पहना जाता था ताकि सिखों का ध्यान न भटकें, वह अपने लक्ष्य की ओर ही खुद को समर्पित रखें.
ये कच्छा सिखों के बीच तो काफी प्रसिद्ध हुआ मगर बाकी लोगों ने इसे नहीं अपनाया. लोग काफी वक्त तक बिना किसी निजी अंग के वस्त्र के रहे. अपनी धोती के नीचे वह कुछ भी नहीं पहनते थे.
इतना ही नहीं वक्त गुजरा तो, कच्छा भी विलुप्त होने लगा. भारत में लोगों ने इसके होने न होने पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया.
अंग्रेजों ने मिलाया मॉडर्न जमाने के अंडरवियर से
गुरु गोबिंद सिंह द्वारा लाया गया कच्छा भी लोगों को ज्यादा दिन तक अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाया. थोड़े ही समय में लोग इसे भी भूल गए. लंगोट अभी भी चलती थी मगर सिर्फ पहलवानों के लिए.
वक्त गुजरा और भारत में अंग्रेज आ गए और साथ ही वह अपने साथ कई विदेशी चीजें भी लाए. इनमें से एक था 'बॉक्सर शॉर्ट्स'.
ब्रिटिश अपने साथ इलास्टिक वाले बॉक्सर शॉर्ट्स लेकर आए थे. इन शॉर्ट्स को सीधे तौर पर एक अंडरवियर के रूप में पहना जाता था.
पश्चिमी देशों में अंडरवियर का चलन शुरू हो चुका था मगर भारत में अभी तक किसी ने इसके बारे में नहीं सोचा था. अंग्रेजों के लाए हुए ये बॉक्सर शॉर्ट्स कई भारतीयों को तो पसंद आए मगर बाकी इससे दूर ही रहे.
थोड़े बहुत लोगों ने इन्हें पहनने में रुचि दिखाई. भारतीयों में अंडरवियर की थोड़ी चाह दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बढ़ी. जितने भी भारतीय सैनिक ब्रिटिश की ओर से लड़ने गए थे उन सभी को बॉक्सर शॉर्ट्स दिए गए थे.
इतना ही नहीं खुद उन्होंने भी इसे काफी बढ़िया माना और इसे अपनाया. माना जाता है कि वहीं से अंडरवियर रेवोलुशन की एक हलकी सी हवा चली थी. कई लोगों ने इसकी जरूरत को महसूस किया.
हालांकि, भारत का एक बड़ा हिस्सा अभी भी इससे दूर था.
 
...और जब भारत में आया अंडरवियर रेवोलुशन
यह दौर था 1970 का. लोग अब धोती नहीं बल्कि पैंट पहनने लगे थे. पैंट के अंदर लंगोट पहनना असहज लगता था. वहीं दूसरी ओर अंडरवियर का कोई ख़ास मार्किट भी नहीं था. इसलिए यह सबके लिए उपलब्ध नहीं थी.
जो अंडरवियर उस समय मौजूद थे वह काफी बड़े थे और पैंट में असहजता महसूस करवाते थे. ऐसे में जब इन्हें साइड से काटकर छोटा किया गया और एक नया शेप दिया गया, तो भारत में एक नई लहर शुरू हो गई.
कुछ एक अंडरवियर ब्रांड इंडिया में शुरू हो गए और लोगों ने भी उन्हें अपनाना शुरू किया. माना जाता है कि बॉलीवुड ने भी अंडरवियर को काफी प्रमोट किया.

कई फिल्मों में अंडरवियर को दर्शाया गया. वहीं कितने ही बॉलीवुड स्टार्स ने अंडरवियर ब्रांड्स को प्रमोट किया. इसके बाद, तो आम लोगों में अंडरवियर खरीदने की एक होड़ सी लग गई. बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगा भारत में अंडरवियर मार्किट को बढ़ने में. थोड़े ही वक्त में कई सारे अंडरवियर ब्रांड्स लोगों के सामने आ गए. इतना ही नहीं वक्त के साथ अंडरवियर का साइज़ भी छोटा होता गया. इसे ज्यादा से ज्यादा सहज बनाने की कोशिश होती रही.

करोड़ों का हो चुका है आज अंडरवियर मार्किट!
कभी जिस भारत में अंडरवियर का वजूद ही नहीं था, वहां आज ये इतना बड़ा मार्किट बन चुका है कोई सोच भी नहीं सकता. आज भारत में इतनी बड़ी संख्या में अंडरवियर बेचे जाते हैं कि कंपनियों को बहुत बड़ा मुनाफा इससे होता है. अंडरवियर मार्किट की इस कामियाबी का सबूत है 2018 के सेल्स रिपोर्ट. इसके आंकड़े दर्शाते हैं कि किस तरह से अंडरवियर मार्किट लगातार बढ़ता ही जा रहा है. आंकड़ों के हिसाब से अब तक 2018 में अंडरवियर मार्किट में करीब 13,848 मिलियन डॉलर का रेवेन्यू जेनरेट हो चुका है. इनता ही नहीं सालाना यह मार्किट 11 प्रतिशत की दर से बढ़ता जा रहा है. यह आंकड़े बताते हैं कि कभी लंगोट पहनने वाले भारत में आज अंडरवियर किस तरह से प्रसिद्ध हो चुकी है.

आज भी बचा है लंगोट का वजूद...
आज अधिकाँश लोग भारत में अंडरवियर पहनने लगे हैं मगर इसका मतलब यह नहीं है कि लंगोट का वजूद ही ख़त्म हो गया. आज लंगोट बहुत कम लोगों द्वारा पहनी जाती है मगर यह विलुप्त नहीं हुई है. आज साधू और पहलवानों को लंगोट पहने देखा जा सकता है. इन्होंने लंगोट को बचा के रखा हुआ है. लंगोट भले ही आम जीवन से दूर जा रही है मगर लोगों की श्रद्धा में आज भी यह जीवित है.

नागा साधु! ये शब्द सुनते ही हमारे मन में ऐसे लोगों की छवि बनती है जिनकी लंबी-लंबी जटाएं और तन राख से लिपटी हो. मौसम चाहे ठन्डे का हो या गर्मी का नागा साधु कपड़ों के नाम पर सिर्फ़ लंगोट पहनते हैं. यही कारण है कि शिव भक्त नागा साधु दिगंबर भी कहलाते हैं.

हर साल होने वाले 'लंगोट अर्पण' मेले को देखकर पता चलता है कि लंगोट आज भी बहुत मायने रखती है. बिहारशरीफ में बाबा मणि राम की समाधि पर हर साल लोग आकर लंगोट चढ़ाते हैं. कई सालों से यह प्रथा जारी है. लोग अपनी किसी ख्वाइश के साथ यहाँ आते हैं और बाबा को लंगोट चढ़ाते हैं. धारणाओं की मानें तो, बाबा यहाँ आने वाले हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी करते हैं.

यहाँ पर बाबा मणि राम द्वारा बनाया गया एक अखाड़ा है, जहाँ हर साल गुरु पूर्णिमा पर एक भव्य लंगोट अर्पण मेला लगता है. कई बड़े-बड़े लोग और नेता यहाँ पर लंगोट चढ़ा चुके हैं. इस मेले को देखकर आभास होता है कि लंगोट की अहमियत आज भी पहले जैसी ही है. आज भी इसे पहले के जैसे लाभकारी माना जाता है.
 
भारत का लंगोट से अंडरवियर पर आने का सफर वाकई में काफी रोचक था. किस तरह से इंसान की जरूरतें बदलती हैं, यह इस कहानी के जरिए समझ आता है. आज भले ही लोग लंगोट से अंडरवियर पर आ गए हैं मगर लंगोट का महत्व जरा भी कम नहीं हुआ है. आज भी इसकी साख बरकरार है.
लंगोट की इस कहानी के बारे में आपके क्या विचार हैं, कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं.


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1 comment:

  1. Very good 👍👌👌👍👌👍👌👍👌👍👌👍👌👍👌👍👌👍👌👍👌👍👌👍👌

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