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Monday, December 31, 2012

कहीं मेरा लिंग छोटा तो नहीं ?

18 + के लिए उचित

"कहीं मेरा लिंग छोटा तो नहीं?"  ये सवाल हर पुरुष कभी न कभी अपने आप से ज़रूर पूछता है।

१० साल हो गए शादी को, बस दिमाक हर पल येही सोचता, समझ में ही नए.. इस लिए मै अपनी पत्नी से हमेशा कुछ न कुछ खुरापात करता, बस येही झगडे की वहज अधिकतर समय ऐसे ही मिल जाता, थे तो बचपने के हरामी न, बी ग्रेड की मूवी तो बचपने में देखते थे, अब इन्टरनेट का युग है, हर समय यू ट्यूब में तैराकी करता तो आज में एक चैप्टर मिल गया औरत में सेक्स की इच्छा जगाने के तरीके | ये है लिंक : Female Frigidity Treatment | Sex Education Short Movie   अब तो ज्यादा ही विडियो अपडेटेड, आप को जरुरत है तो देख लीजियेगा, हम कोनो फ़ोर्स नहीं कर रहे है  हा तो मै बात कर रहा था बड़े लिंग की.. बचपन से मुझे शौक था लंगोट पहनने का, घाट किनारे वाली से शादी हुई तो लगा की अब तो सपना साकार.. लेकिन उसको तो फ्रेंची चाहिए था, पूछता उससे को कहती फ्रेंची में फुला फुला रहता है, फिर लग गया खोज में फुला फुला का रहस्य.. 
बचपन से बनारस के लडको का ये क्रेज रहा.. क्यों की शहर में कम से कम १० गुप्त रोग के डाक्टर तो हयिये है उसमे से तो टकसाल के सामने वाले राना डाक्टर... प्रचार भी उनका अजीब था " शादी से पहले या शादी के बाद ;) रोगी का नाम पता भी गुप्त रखा जायेगा.. अगर आप ट्रेन से दिल्ही या बम्बई जाये तो अमरोहा वाले हासमी दवाखाना: अभी का लिंक ये है अरे बाप रे.. उस समय लगता था दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी यही है , यो इस समस्या को समझने की कोशिस की , तो शुरुवात 

बड़ा लिंग: क्या महिलाओं की पसंद होता है? इसका अब विडियो भी है  ;)
हाल की रिसर्च छोटे आकार वालों के लिए बुरी खबर बनकर आई है- इस रिसर्च के निष्कर्ष के अनुसार महिलाओं को लम्बा, मजबूत लिंग ज्यादा पसंद आता है। तो किस पर भरोसा किया जाये? क्या टेक्नीक ज्यादा ज़रूरी है? मोटाई ज़रूरी है या लम्बाई? एक बात तो तय है- महिलाओं से ज्यादा लिंग के आकार के बारे में खुद पुरुष चिंतित रहते हैं।

हाल ही के एक ऑस्ट्रालिई अध्यान के अनुसार महिलाएं गठीले शरीर और लम्बे लिंग वाले पुरुषों के लिए आकर्षण महसूस करती हैं। रिसर्च में 13 इंच तक के लिंग दिखाए गए- लेकिन महिलाओं इससे बड़े आकार के लिए भी आकर्षित थी। "आकर्षण के मापदंड पर हमारा ग्राफ 13 इंच के आकार पर भी नीचे नहीं गया", एक रिसर्चर ने बताया। पढ़िए हमारा लेख - (प्रेस में सेक्स: साइज़ मैटर्स)

लेकिन ये अध्यन सिर्फ ऑस्ट्रेलिया की महिलाओं पर ही किया गया था। क्या केवल उनकी राय के आधार पर हम किसी निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं? इतना ही नहीं, दिखाए गए शरीर कंप्यूटर एनिमेटेड थे, जिनका चेहरा या बाल नहीं थे। यदि इन् बुतों की बजाय ज़रा सोचिये की आकर्षक आँखों और घुंगराले बालों वाला असली पुरुष हो तो क्या उसके आकर्षण का आधार केवल लिंग का आकार ही होगा?

लम्बाई, मोटाई या दोनों?
क्रोएशिया में की गयी एक स्टडी में महिलाओं से बड़े लिंग की अहेमियत के बारे में पुछा गया। और रिजल्ट जानकर पुरुषों को निश्चित रूप से ख़ुशी होगी, और शायद महिलाओं को आश्चर्य नहीं होगा। आधे से ज्यादा महिलाओं ने कहा की लम्बाई और मोटाई दोनों ही ख़ास मेटर नहीं करती। केवल 18 फीसदी महिलाओं ने कहा की बड़ा आकार अधिक आकर्षक है।

लेकिन इसमें भी एक संदेह है। महिलाओं से लिंग के आकार के बारे में सच कहलवाना उतना आसान नहीं। अपनी असली पसंद बताने की बजाय वो कह सकती है की लिंग का आकार कोई महत्व नहीं रखता। वो अपने आप को सेंसर कर लेती हैं।

इसीलिए ऑस्ट्रेलियाई रेसेअर्चेर अपने अध्यान को सही और अलग मानते हैं। उन्होंने महिलों से सीधे उनकी राय नहीं पूची बल्कि एनिमेटेड तस्वीरों के ज़रिये उनसे जानने की कोशिश की, की उन्हें क्या पसंद है। उनके अनुसार इस तरीके से उन्हें असली पसंद का पता चल पाया।

ढीला या सख्त?
एक और सवाल जो ऑस्ट्रलियाई रिसर्च में सामने आया वो ये था की महिलाओं को ढीला लिंग को रेटिंग देने को कहा गया। जिन लोगों ने लिंग देखा है, वो ये जानते हैं की ढीला से सख्त होने की प्रक्रिया में लिंग का आकार काफी बदल जाता है और इसलिए ढीला लिंग को देखकर ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल है की सख्त अवस्था में लिंग कैसा और कितना बड़ा दिखेगा? तो क्या सेक्सुअल आकर्षण की रेटिंग देने के लिए सिर्फ ढीला लिंग की तस्वीर काफी है? महिलाओं के लिए ज्यादा आकर्षक क्या है? वीडियो देखने

एक और बात, बहुत सदियों पहले लोग गुफाओं में रहते थे और कपडे नहीं पहनते थे तब बात कुछ और रही होगी, लेकिन आज के युग में कितनी महिलाएं अपने होने वाली साथी के लिंग को देखकर रिश्ते की पहेल करती हैं?
असल में बात आकार की नहीं है, ऑस्ट्रलियाई रिसर्च का कहना है। सबसे आकर्षक वो पुरुष होते हैं जो सम्पूर्ण पैकेज हों: लम्बे, गठीले शरीर और बड़े लिंग के आकार वाले।

संतुष्टि!
लुक्स को छोड़कर ज़रा कुछ और बात की जाये- क्या बड़े लिंग का अर्थ है अधिक संतुष्टि? बहुत से अध्यानो के अनुसार ये सही नहीं है। योनि की बनावट किसी भी आकार के लिंग के लिए उपयुक्त ही होती है, तो लम्बाई या मोटाई का असर असल में नहीं पड़ना चाहिए। लेकिन एक अमरीकी अध्यन के अनुसार मोटा लिंग क्लाइटोरिस को बेहतर स्तिमुलेट करने में सक्षम है।

इस स्टडी में 90 फीसदी महिलाओं ने लम्बाई की बजाय मोटाई को अधिक मेहेत्वपूर्ण मन, क्यूंकि उनके अनुसार मोटा लिंग से उन्हें ज्यादा अच्छा एहसास हुआ। किन्तु आनंद की अनुभूति का ये नजरिया असल में शारीरिक संतुष्टि और उत्तेजना से अलग हो सकता है। तो इस आधार पर  निष्कर्ष निकलना सही नहीं।

दिमाग का फितूर
और कुछ हो न हो, इस बात के ठोस सबूत हैं की महिलाओं से ज्यादा लिंग के आकार का महत्व पुरुषों के दिमाग पर हावी रहता है. कई अध्यन इस बारे में दर्शाते हैं. अब तक की सबसे बड़ी रेसेअर्चोन में से एक ये दर्शाती है की 85 फीसदी महिलाएं अपने पुरुष साथी के लिंग के आकार से संतुष्ट थी। जबकि अपने लिंग के आकार से संतुष्ट पुरुषों की संख्या 55 फीसदी ही थी। तो आखिर ये शंका कहाँ से उत्पन्न होती है? मीडिया, खासकर पोर्न शायद ये सन्देश देता है की पुरुषों की असली मर्दानगी बड़े लिंग से ही है। और पोर्न विडियो बड़े लिंग के बारे में महिलाओं की बनावटी प्रतिक्रिया इस असुरक्षा को और हवा देती है।

और क्यूंकि ये सुरक्षा बहुत से पुरुषों के दिमाग में में घर करती रही है, लिंग के आकार को बढाने वाले उत्पादों का बाज़ार भी निरंतर गर्म होता जा रहा है- बावजूद इसके की असल में इन् उत्पादों से कोई असर नहीं पड़ता। तो क्या साइज़ सचमुच मेटर करती है? जी हाँ- पुरुषों के लिए। महिलाएं अपने पुरुषों के लिंग के आकार को लेकर सहज ही रहती हैं।

लिंग आकार और लंबाई
लिंग कई आकार और लंबाई के होते हैं। और वे सभी अलग-अलग दिखते हैं: सीधा, टेढ़ा, लंबा, मोटा, पतला, खतना किया हुआ, बिना खतना के। इनमें से कोई किसी अन्य से बेहतर नहीं होता है। लिंग किसी भी एक तरफ़ झुका या तिरछा हो सकता है।

बिना तनी हुई अवस्था में अक्सर लिंग की लंबाई 6 से लेकर 13 से.मी. तक हो सकती है। तना हुआ लिंग लगभग 12 से 21 से.मी. तक लंबा हो सकता है। बड़े लिंगों की तुलना में छोटे लिंग तनाव में आने पर अधिक बढ़ते हैं।

कुछ लड़के अपने या दूसरे लोगों के लिंगों के आकार को लेकर काफी मज़ाक करते हैं। अक्सर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे अपने-आपको असुरक्षित महसूस करते हैं, या वे अपने को बलवान जताना चाहते हैं, या अपने आपको ज़्यादा जानकार दिखाना चाहते हैं।

क्या आकार से कुछ फर्क पड़ता है?
यदि आपका लिंग बड़ा है, तो ज़रूरी नहीं कि आप अच्छे प्रेमी बन जाते हैं, और इसका मतलब यह भी नहीं है कि आप बेहतर सेक्स कर सकते हैं।

लड़कियां या महिलाएं सेक्स से पहले की जाने वाली छेड़छाड़ (फोरप्ले) और रिश्तों की संतुष्टि को भी अपने साथी के लिंग के आकार जितना ही महत्व देती हैं।

क्या आप लिंग को बड़ा या मोटा करवा सकते हैं?
ऐसी कोई गैर-शल्य (बिना ऑपरेशन वाली) तकनीक नहीं है जिससे किसी लिंग को स्थायी रूप से बड़ा बना सकें। लिंग बढ़ाने के दूसरे तरीके (उत्पाद) जैसे कि गोलियां, वजन और खींचने वाले उपकरण अक्सर काफी समय के लिए कारगर नहीं होते हैं। सबसे बुरी बात तो यह है कि वे आपकी सेहत के लिए काफी खतरनाक हो सकते हैं।

क्या आप किसी व्यक्ति के हाथों और पैरों के आकार से उनके लिंग की लंबाई बता सकते हैं?
नहीं, जूते के बड़े आकार या बड़े हाथ होने का लिंग के बड़े होने से कोई संबंध नहीं है। 

क्या कुछ जातियों या प्रदेशों के लोगों (एथ्निक समूह) के लिंग दूसरों से बड़े होते हैं?
यह साबित करने के लिए ऐसे कोई पक्के सबूत नहीं हैं कि कुछ जातियों (एथ्निक समूह ) के सदस्यों के लिंग दूसरों से बड़े होते हैं।

हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे कुछ संगठनों ने पुरुषों के तने हुए औसत लिंग के आकार में थोड़ी भिन्नता बताते हुए कहा है किः

    अफ्रीकी मूल के पुरुषों का लिंग कुछ बड़ा और मोटा होता है
    यूरोपीय मूल के पुरुषों का लिंग मध्यम आकार का होता है
    एशियाई मूल के के पुरुषों का लिंग कुछ पतला और छोटा होता है

सब लिखने पड़ने के बाद यही भुझाया की पेट का फैट कम करिएः ज्यादा भारी भरकम पेट से पेनिस (लिंग) छोटा लगने लगता है। भले ही पेनिस (लिंग) बड़ा भी है लेकिन आपके भारी भरकम पेट के सामने वह छोटा ही नजर आएगा। इसलिए पेट के फैट को कम करिए। 

लेकिन इतना उपर से निचे आप पड़े और आप के काम की सही बात न मिले तो आप तो ...;) तो कुछ दिखा है इन्टरनेट पर तो आप से साँझा कर रहा हु.. 

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Tuesday, August 14, 2012

अलविदा...पापा की उन यादो के साथ

१० अगस्त २०१२, सुबह ऑफिस में, काठमांडू में टैक्सी और सार्वजानिक यातायात की हड़ताल.. तो पैदल ही ऑफिस में.. महीने का १२ दिन थोडा ज्यादा ही प्रेसर होता है काम का, उपर से लोड शेडिंग , तो थोड़ी बत्ती की भी परेशानी, कागज फिअल दिया था , स्टाफ लोगो की सेलरी फाइनल करनी थी, तो लग गया था काम में... काम का बोझ था तो खाना खाना भी भूल गया था ... बस सिगरेट चाय.. दोपहर का ३ बजा ही था की श्रीमती जी Kshama का ..फोन बजा.. पता नहीं क्यों मेरी आदत है उनका फोन दिन में.. क्या बात .. उनका फोन काट के मैंने इधर से मिलाया.. क्या बात.. श्रीमती जी ने कहा संजू भैया का फोन आया था .. मैंने कहा नहीं.. तुम तुरंत घर आ जाओ, मै काटन मिल जा रही हु.. अरे क्या हुवा बताओ तो.. बस उधर से रोना शुरू... तुम कैसे भी तुरंत घर पहुचो.. अभी कोई फ्लाइट मिले तो पकड़ लो.. अरे क्षमा कुछ बोलो तो..

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Sunday, July 8, 2012

बनारस की गलियां

विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है - 'काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:'। पुराणों के अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान है। पहले यह भगवान विष्णु (माधव) की पुरी थी। जहां श्रीहरिके आनंदाश्रु गिरे थे, वहां बिंदुसरोवर बन गया और प्रभु यहां बिंधुमाधव के नाम से प्रतिष्ठित हुए। ऐसी एक कथा है कि जब भगवान शंकर ने क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी का पांचवां सिर काट दिया, तो वह उनके करतल से चिपक गया। बारह वर्षों तक अनेक तीर्थों में भ्रमण करने पर भी वह सिर उन से अलग नहीं हुआ। किंतु जैसे ही उन्होंने काशी की सीमा में प्रवेश किया, ब्रह्महत्या ने उनका पीछा छोड़ दिया और वह कपाल भी अलग हो गया। जहां यह घटना घटी, वह स्थान कपालमोचन-तीर्थ कहलाया। महादेव को काशी इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने इस पावन पुरी को विष्णुजी से अपने नित्य आवास के लिए मांग लिया। तब से काशी उनका निवास-स्थान बन गया।

दरअसल बनारस में संबोधन का अति प्राचीन तरीका है| आनंद वन से काशी, बनारस,वाराणसी और अब . ... धर्म और संस्कृति कि राजधानी बनारस , यहाँ के लोग भी मजेदार.. हर पल दुनिया से कुछ अलग ही सोचते है , बनारस का हर आदमी कुछ अलग ही मिजाज का मिलेगा ... यहाँहर कला के कलाकार है तभी तो ये काशी ये तीनो लोको से अलग , जो आप को काशी में देखने मिलेगा वो दुनिया में कही नहीं , स्वाद में अलग , रहन सहन में अलग , बात चित में अलग .. हर कुछ अलग ही है... मै  दुनिया में कही भी रहू लेकिन मेरा दिल बनारस में ही रहता है...  कुछ तो है खास ... मुझे लगता है अगर आप किसी परेशानी में हो तो बस काशी आ जाइये .. और काशी की गलियों में ... कुछ समय दीजिये... हर परेशानी का हाल है यहाँ ...............................विश्वनाथ मुखर्जी जी "बना रहे बनारस " में कहते है बनारस में जितनी सड़कें हैं, उससे सौ गुनी अधिक गलियाँ हैं। यदि आप बनारस की सड़कों का मुआइना कर बनारस के बारे में फैसला देंगे तो यह सेंट-परसेंट अन्याय होगा। असली मजा तो बनारस की गलियों में दुबका हुआ है। बनारसी भाषा में उन्हें ‘पक्का महाल’ - ‘भीतरी महाल’ कहते हैं। काशी खंड के अनुसार विश्वनाथ खंड-केदारखंड की तरह वर्तमान बनारस भी दो भागों में बसा हुआ है - भीतरी महाल (पक्का महाल) और बहरी तरफ। आपने सिर्फ बाहरी रूप अर्थात कच्चा रूप देखा है। पक्का रूप देखना हो तो गलियों में टहरान दीजिए।
यहाँ की सड़कें अभी जुमा-जुमा आठ रोज हुए बनी हैं यानी ‘लली’ है। बेचारी ठीक से सूख भी नहीं पायी हैं। यकीन न हो तो किसी दिन गर्मी के मौसम में पैदल चलकर देख लीजिए। सुकतल्ला सड़क पर चिपककर रहा जाएगा और हवाली जूता आपके पैरों में। यदि जूता काफी मजबूत हुआ तो बनारस की धरती इस कदर प्यार से आपके कदमों को चूमेगी कि उससे अपना दामन छुड़ाने में आपको छठी का दूध याद आ जाएगा। अगर आपकी यह कसरत बनारसी-पट्ठों ने देखी तो - ‘बोल छमाना छे, खिचले रहे पट्ठे, जाए न पावे’ फिकरा कस ही देंगे। कहने का मतलब यह कि बनारस की सड़कें हर पैदल चलनेवाले मुसाफिरों से बेहद मुहब्बत करती हैं। इनकी मुहब्बत हर मौसम में अलग ढंग से पेश आती है। बरसात में इनकी होली देश विख्यात है और वसन्त ऋतु में जब ये आप पर ‘गुलाल’ बरसाने लगती हैं तो मत पूछिए! आनन्द आ जाता है। स्कूलों में आप ज्योमेट्री की शिक्षा पा चुके होंगे। मुमकिन है कि उसकी याद धुँधली हो गयी हो। यदि आप बनारस की सड़कों पर टहलान दें तो मजबूरन ज्योमेट्री के प्रति दिलचस्पी पैदा हो जाएगी। जब कोई बैलगाड़ी, ट्रक, जीप या टैक्सी इन सड़कों पर से गुजरती है तब हर रंग की, हर ढंग की समानान्तर रेखाएँ त्रिभुज, चतुर्भुज और षट्कोण के ऐसी अजीब-गरीब नक्शे बन जाती हैं कि जिसका अंश बिना परकार की सहायता के ही बताया जा सकता है। नगरपालिका को चाहिए कि वह अपने यहाँ के अध्यापकों को इस बात का आदेश दे दे कि वे अपने छात्रों को सड़क पर बने हुए इस ज्योमेट्री का परिचय अवश्य करा दे। सुना है काशी के कुछ मार्डन आर्टिस्ट इन नक्शों के सहयोग से प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं।

गलियों की विशेषता
काशी में सड़कों का कोई महत्त्व नहीं है, इसलिए बहुत कम लोग सड़कों पर चलते हैं। सड़कों का उपयोग जुलूस निकालते समय होता है। उस पर पैदल से अधिक लोग सवारी से चलते हैं। इधर कुछ ऐसे लोग (शायद मेंटल हास्पिटल से छूटकर) आ गये हैं जो सड़कों को महत्त्व देने लग गये हैं। ऐसे लोग लबे सड़क ‘मकान बिकाऊ है,’ ‘दुकान खाली है,’ अथवा ‘भाड़े पर लेना है’ का विज्ञापन छपवाते हैं।

काशी की अधिकांश गलियाँ ऐसी हैं जहाँ सूर्य की रोशनी नहीं पहुँचती। कुछ गलियाँ ऐसी हैं जिनमें से दो आदमी एक साथ गुजर नहीं सकते। इन गलियों की बनावट देखकर कई विदेशी इंजीनियरों की बुद्धि गोल हो गयी थी! जो लोग यह कहते हैं कि बम्बई-कलकत्ता की सड़कों पर खो जाने का डर रहता है, वे काशी की गलियों का चक्कर काटें तो दिन भर के बाद शायद ही डेरे तक पहुँच सकेंगे। आज भी ऐसे अनेक बनारसी मिलेंगे जो बनारस की सभी गलियों को छान चुके हैं, कहने में दाँत निपोर देंगे।

इन गलियों से गुजरते समय जहाँ कहीं चूके तुरन्त ही दूसरी गली में जा पहुँचेंगे। कलकत्ता, बम्बई की तरह सड़क की मोड़ पर अमुक दुकान, अमुक निशान रहा-याद रहने पर मंजिल तक पहुँच सकते हैं - पर बनारस में इस तरह के निशान-दुकान साइनबोर्ड भीतरी महाल में नहीं मिलेंगे। नतीजा यह होगा कि काफी दूर आगे जाने पर रास्ता बन्द मिलेगा। उधर से गुजरनेवाले आपकी ओर इस तरह देखेंगे कि यह ‘चाँइया’ इधर कहाँ जा रहा है। नतीजा यह होगा कि आपको पुनः गली के उस छोर तक आना पड़ेगा जहाँ से आप गड़बड़ाकर मुड़ गये थे। कुछ गलियाँ ऐसी हैं कि आगे बढ़ने पर मालूम होगा कि आगे रास्ता बन्द है, लेकिन गली के छोर के पास पहुँचने पर देखेंगे कि बगल से एक पतली गली सड़क से जा मिली है। अकसर इन गलियों में जब खो जाने में आता है, खासकर रात के समय, तब लगता है जैसे ऊँचे पहाड़ों की घाटियों में खो गये हैं। इन गलियों में लोग चलते-फिरते कम नजर आते हैं। जो नजर भी आते हैं, वे उस गली के बारे में पूर्ण विवरण नहीं बता सकते। हो सकता है, वे भी आपकी तरह चक्कर काट रहे हों। गलियों का तिलिस्म इतना भयंकर है कि बाहरी व्यक्ति को कौन कहे अन्य लोग भी जाने में हिचकते हैं। कुछ गलियाँ ऐसी हैं जिनसे बाहर निकलने के लिए किसी दरवाज़े या मेहराबदार फाटक के भीतर से गुजरना पड़ता है।

इन गलियों के नामकरण और उनकी दूरी को यदि आप नजरअन्दाज करें तो बनारस के पोस्टल विभाग की प्रशंसा करेंगे। हर बनारसी अपने को ‘सरनाम’ (प्रसिद्ध) समझता है। मुहल्ले का एक व्यक्ति समूचे मुहल्ले की जानकारी रखता है। उसका विश्वास है कि मुहल्ले के डाकिये से मुख्यमन्त्री तक उसके नाम से परिचित हैं। काशी में ‘दसपुतरिया गली’ महज आठ-दस मकानों का एक मुहल्ला है, पर वहाँ के रहनेवालों को ‘दसपुतरिया गली’ के नाम पर पत्र मिल जाते हैं। इस प्रकार छोटी-छोटी गलियाँ यहाँ काफी प्रसिद्ध हैं। नगरपालिका भले ही नेताओं के नाम पर गलियों का नामकरण करे, पर बनारसवाले अपनी पुरानी परम्परा को नहीं बदल सकते।

काशी की कुछ प्रमुख गलियाँ इस प्रकार हैं-

1. विश्वनाथ गली- काशी नगरी के हृदय में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर स्थित है। इस मंदिर के प्रांगण में स्वयं भगवान शंकर ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रतिष्ठित हैं। ऐसी मान्यता है कि विश्वनाथ जी के दर्शन से सभी द्वाद्वश ज्योर्तिलिंगों के दर्शन का फल मिलता है। विश्वनाथ जी के नाम पर ही इस गली का नाम विश्वनाथ गली पड़ा। यह काशी की सबसे प्रसिद्ध गली है। यह गली, ज्ञानवापी, चौक से शुरू होकर विश्वनाथ मंदिर होते हुये दशाश्वमेध घाट तक जाती है। विश्वनाथ गली व्यावसायिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस गली में कपड़े, श्रृंगार के सामान तथा लकड़ी के बने खिलौने मिलते हैं जो पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध हैं।


2. कचौड़ी गली- यह गली विश्वनाथ गली के ठीक पीछे स्थित है। इस गली की विशेषता यह है कि यहाँ पर स्थित अधिकांश दुकानें कचौड़ी की हैं। इसी कारण गली का नाम कचौड़ी गली पड़ा। यहाँ दुकानें सुबह से ही खुल जाती हैं तथा बारह बजे रात तक खुली रहती हैं। दुकानदारों में ऐसी मान्यता है कि उनके दुकानों पर भगवान शिव के गण स्वयं कचौड़ी तथा मिठाई खाने आते हैं। यहाँ पर कचौड़ी खाने वालों की भीड़ सुबह सात बजे से शुरू हो जाती है जो कि रात तक जारी रहती है। यह गली भी विश्वनाथ गली की ही तरह घाट के पास निकलती है। इस गली में कचौड़ी के अलावा पौराणिक किताबों, ग्रन्थों तथा बही खातों की दुकानें भी हैं।


3. खोवा गली- जैसा की नाम से ही प्रतीत हो रहा है कि “खोवा गली” अर्थात् इस गली में खोवा की बहुत बड़ी मण्डी लगती है। खोवा की इतनी बड़ी मण्डी शायद ही भारत के किसी शहर में लगती हो। इसी कारण से इस गली का नाम खोवा गली पड़ गया।


4. ठठेरी (बाजार) गली- यह गली चौक क्षेत्र में स्थित है। इस गली में पहले ठठेरा लोग रहते थे जो बर्तन इत्यादि का निर्माण किया करते थे। आज भी इस गली में पीतल के बर्तन बनते और बिकते हैं। पीतल के बर्तन व उससे बने सामानों का सबसे बड़ा बाजार इस गली में है। गली में अन्दर जाकर भारत के युग निर्माता तथा प्रसिद्ध कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का निवास तथा उससे कुछ दूरी पर अग्रसेन महाजनी पाठशाला है।


5. दालमण्डी गली- यह गली काशी के दो महत्वपूर्ण बाजार चौक तथा नई सड़क को आपस में जोड़ती है। इस गली में कपड़े-जूते-चप्पल तथा इलेक्ट्रानिक्स की दुकानें तथा श्रृंगार की वस्तुएँ थोक में मिलती हैं। राजाओं-महाराजाओं के समय में इस गली में नृत्यांगनायें रहा करती थीं जिनके यहाँ नृत्य, संगीत का आनन्द लेने के लिये नगर के धन्ना सेठ जाया करते थे। लखनऊ की प्रसिद्ध नृत्यांगना उमराव-जान लखनऊ छोड़कर दालमण्डी में बस गयीं थीं, उनका अन्तिम समय यहीं व्यतीत हुआ। काशी में ही उनकी कब्र आज भी स्थित है।


6. नारियल (बाजार) गली- यह गली चौक थाना के ठीक पीछे है जो दालमण्डी गली में आकर मिलती है। इस गली में नारियल, विवाह से सम्बन्धित सामान बिकते हैं। नारियल की बड़ी मण्डी होने के कारण इस गली का नाम नारियल बाजार पड़ा।


7. घुंघरानी गली-यह गली दालमण्डी से निकली है तथा दालमण्डी और काशी के मुख्य बाजार बाँसफाटक को आपस में जोड़ती है। इस गली में भी इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकानें हैं।


8. गोविन्दपुरा गली- यह गली चौक क्षेत्र में है तथा चौक मजार से पहले अवस्थित है। इसमें सोने-चाँदी के आभूषण, रत्न इत्यादि की दुकानें हैं। यह गली चौक, नारियल बाजार, रेशम कटरा को आपस में जोड़ती है।


9. रेशम कटरा गली- यह गली गोविन्दपुरा गली की मुख्य शाखा है। इसमें भी सोने-चाँदी के आभूषण की दुकाने हैं। यहाँ सोने-चाँदी के आभूषणों का निर्माण किया जाता है।


10. विन्ध्यवासिनी गली- इस गली को विन्ध्याचल की गली भी कहा जाता है। इस गली में विन्ध्याचल माता का मंदिर है जो मिर्जापुर में स्थित विन्ध्याचल मंदिर की प्रतिमा का प्रतिरूप है। इस कारण मंदिर को विन्ध्वासिनी मंदिर कहा जाता है जिसके नाम पर इस गली का नाम विन्ध्यवासिनी गली पड़ा। यह गली काशीपुरा क्षेत्र से शुरू होती है तथा रेशम कटरा में जाकर मिलती है।


11. कालभैरव गली- यह गली विश्वेश्वरगंज क्षेत्र में है। यह भैरोनाथ चौराहा से आरम्भ होकर कालभैरव मंदिर तक फैली है। कालभैरव जी काशी के कोतवाल हैं जो भगवान शंकर के प्रधान सेनापति हैं। ऐसी मान्यता है कि काशी में कोई व्यक्ति तभी निवास कर सकता है जब कालभैरव जी की अनुमति मिलती है। कालभैरव जी के नाम पर इस गली का नाम कालभैरव गली पड़ा। यहाँ स्थित मोहल्ले का नाम भैरवनाथ है।


12. भूतही इमिली की गली- यह गली मैदागिनी क्षेत्र में स्थित टाउनहाल मैदान के पीछे है। यह मालवीय मार्केट से आरम्भ होकर भैरोनाथ क्षेत्र तक जाती है। कहा जाता है कि इस गली में इमली का पेड़ था जिस पर भूत तथा चुड़ैल निवास करती थी जिसकी वजह से लोग इधर से गुजरने में डरते थे। परन्तु अब ऐसी कोई बात नहीं है। किन्तु पहले जो नाम था वही आज भी है।


13. सप्तसागर गली- यह गली मैदागिन क्षेत्र में है तथा टाउनहाल मैदान के गेट के ठीक सामने से शुरू होती है तथा नखास की ओर निकलती है। इस गली में पूर्वांचल की सबसे बड़ी दवा मण्डी है।


14. आसभैरव गली- यह गली नीचीबाग क्षेत्र में है। आस-भैरव के मन्दिर के नाम पर इस गली का नाम आसभैरव गली पड़ा। इस गली में सिक्खों का पवित्र गुरुद्वारा स्थित है।


15. कर्णघंटा गली- यह गली कर्णघंटा क्षेत्र में पड़ती है। कर्णघंटा से शुरू होकर रेशम कटरा तक जाती है। यहीं पर विन्ध्यवासिनी गली भी आकर मिलती है। कर्णघंटा क्षेत्र में छपाई व कागज सम्बन्धित सभी सामानों का बहुत बड़ा मार्केट है।


16. गोला दीनानाथ गली- गोला दीनानाथ गली में पूर्वांचल की सबसे बड़ी मसाले की मण्डी है। यह कबीरचौरा क्षेत्र में स्थित है। इस मण्डी में भगवान दीनानाथ का मन्दिर होने से इसका नाम गोला दीनानाथ पड़ा तथा इस मण्डी में आने वाली सभी गलियों को गोला दीनानाथ की गली के नाम से जाना जाता है। इस मण्डी के चारों तरफ गलियाँ हैं।


17. गोपाल मंदिर की गली- यह गली बुलानाला क्षेत्र से प्रारम्भ होकर गोपाल मंदिर तक जाती है। इस मन्दिर में गोपाल जी की अष्टधातु निर्मित प्रतिमा है। ऐसी मान्यता है कि इस प्रतिमा की पूजा महारानी कुन्ती करती थीं। यह प्रतिमा महारानी कुन्ती द्वारा स्थापित की गई है। जन्माष्टमी के समय इस मन्दिर तथा गली को दुल्हन की भाँति सजाया जाता है।


18. पत्थर गली- काशी में पत्थर की गली दो क्षेत्र में है। एक जतनबर की पत्थर गली तथा दूसरी चौक क्षेत्र की पत्थर गली। चौक क्षेत्र की पत्थर गली में सभी मकान पत्थर के थे, इसलिये उसका नाम पत्थर गली पड़ा तथा जतनबर की पत्थर गली में पत्थर का गेट बना था जिसके कारण उसका नाम पत्थर गली पड़ा। अब पत्थर का गेट नहीं है।


19. हनुमान गली- यह गली हनुमान घाट से प्रारम्भ होकर अस्सी तथा गोदौलिया मार्ग को आपस में जोड़ती है। हनुमान घाट के निर्माण के साथ ही इस गली का निर्माण हुआ। हनुमान घाट के नाम पर गली का नाम हनुमान गली पड़ा।


20. तुलसी गली- यह गली अस्सी क्षेत्र में पड़ती है। गोस्वामी तुलसीदास के नाम पर इस गली का नाम तुलसी गली पड़ा। गोस्वामी तुलसीदास जी की मृत्यु इसी गली में हुई थी।


21. गुदड़ी गली- इस गली में “बड़ा गुदड़ जी” तथा “छोटा गूदड़ जी” के नाम के दो प्रसिद्ध अखाड़े थे। इनका निर्माण अट्टारहवीं शताब्दीं में हा था। ये अखाड़े आज भी वहाँ पर अवस्थित है। इन्हीं अखाड़ों के नाम पर ही इसका नाम गुदड़ी गली पड़ा। यह गली तुलसी गली से ही निकली है।


22. शिवाला गली- यह गली शिवाला घाट से आरम्भ होती है तथा शिवाला घाट को मुख्य मार्ग से जोड़ती है। शिवाला घाट के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम शिवाला पड़ गया तथा इस गली का नाम शिवाला गली पड़ा।


23. खिड़की गली- यह गली खिड़की घाट से प्रारम्भ होती है। खिड़की घाट का निर्माण बैजनाथ मिश्र ने करवाया था। यह घाट लगभग दो सौ वर्ष पुराना है। अतः गली भी उतनी ही पुरानी है।


24. जुआड़ी गली- ऐसा कहा जाता है कि प्रसिद्ध जुआड़ी नन्द दास ने जुए की एक दिन की कमाई से इसे बनवाया था। इसलिये इस गली का नाम जुआड़ी गली पड़ा। यह गली अब विलुप्त हो चुकी है।


25. ढुंढीराज गली- यह गली चौक क्षेत्र के ज्ञानवापी से आरम्भ होती है तथा दण्डपाणि भैरव मन्दिर तक जाती है। इस गली में गणेश जी का मन्दिर है जो गणनाथ विनायक के नाम से जाने जाते है।


26. संकठा गली- यह गली संकठा घाट से आरम्भ होती है। गली में संकठा देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है जिसका निर्माण गोहनाबाई ने करवाया था। संकठा देवी नाम पर ही गली का नाम संकठा गली पड़ा तथा घाट का नाम संकठा घाट पड़ा। संकठा देवी के मन्दिर के बगल में ही कात्यायनी देवी का भी मन्दिर है। यह गली विश्वनाथ गली से आकर मिलती है।


27. पशुपतेश्वर गली- यह गली चौक क्षेत्र से आरम्भ होकर रामघाट तक जाती है। इस गली में पशुपतेश्वर महादेव का मन्दिर है। उन्हीं के नाम पर इस गली का नाम पशुपतेश्वर गली पड़ा।


28. पंचगंगा गली- पंचगंगा घाट के नाम पर इस गली का नाम पंचगंगा गली पड़ा। ऐसी मान्यता है कि पंचगंगा घाट पर पाँच नदियों का संगम होता है। गंगा, जमुना, सरस्वती के अलावा दो नदियाँ “सुकिरणा” जो भगवान सूर्य की प्रतिमा से निकलती है तथा “धूतपापा” जो घाट पर ही जमीन से निकली है। पाँच नदियों के संगम के कारण इस घाट का नाम पंचगंगा घाट पड़ा। ऐसा पुराणों में वर्णित है कि स्वयं तीर्थराज प्रयाग गंगा दशहरा के दिन अपने पाप धोने इसी घाट पर आते हैं। यही गली पंचगंगा घाट से आरम्भ होकर ब्रह्माघाट, दुर्गाघाट, राजमन्दिर, गायघाट, त्रिलोचन घाट, प्रहलाद घाट की गलियों को आपस में जोड़ती है। यह गली बहुत बड़ी तथा प्रसिद्ध है।


29. चौरस्ता गली- यह गली गायघाट से प्रारम्भ होती है और त्रिलोचन घाट, तेलियानाला होते हुये चौखम्भा तक जाती है। चौखम्भा में बीबी हटिया की पतली गली में मिलती है।


30. नेपाली गली- सुप्रसिद्ध नेपाली मन्दिर के नाम पर ही इस गली का नाम नेपाली गली पड़ा। यह विश्वनाथ गली तथा ललिता घाट को आपस में जोड़ती है। नेपाली मन्दिर के नाम पर ही इस मोहल्ले का नाम नेपाली खपड़ा पड़ा।


31. सिद्धमाता गली- यह गली मैदागिन क्षेत्र के गोलघर में स्थित है। यह गोलघर को बुलानाला मुख्य मार्ग से जोड़ती है। इस गली में सिद्धमाता देवी का मन्दिर है।


32. कामेश्वर महादेव गली- यह गली मच्छोदरी पर बिड़ला हॉस्पिटल के सामने से प्रारम्भ होती है जो कामेश्वर महादेव मन्दिर तक जाती है।


33. त्रिलोचन महादेव गली- यह गली गायघाट से प्रारम्भ होकर त्रिलोचन महादेव मन्दिर तक जाती है तथा कामेश्वर महादेव गली से आपस में मिलती है।


34. पाटन दरवाजा गली- यह गली गायघाट से शुरू होकर बद्री नारायण घाट तक जाती है।


35. भार्गव भूषण प्रेस वाली गली- मच्छोदरी स्थित भार्गव भूषण प्रेस को मच्छोदरी मुख्य मार्ग से जोड़ती है। इसलिए इस गली को भार्गव भूषण प्रेस वाली गली कहते हैं।


36. लट्ट गली- यह गली जतनबर में स्थित है तथा गणेश गली को आपस में जोड़ती है।


37. नइचाबेन गली- यह गली कोयला बाजार से प्रारम्भ होकर बहेलिया टोला तक जाती है।


38. नचनी कुआँ गली- यह गली भी कोयला बाजार से प्रारम्भ होकर भदऊ चुँगी तक जाती है।


39. चित्रघंटा गली- यह गली चौक क्षेत्र से प्रारम्भ होकर रानी कुआँ तक जाती है तथा इस गली में चित्रघंटा माता का मन्दिर स्थित है।


40. गढ़वासी टोला गली- यह गली चौखम्भा से प्रारम्भ होकर संकठा की गली में जाकर मिलती है।


41. भारद्वाजी टोला गली- यह गली प्रहलाद घाट से प्रारम्भ होकर भदऊ चुँगी तक जाती है।


42. हाथी गली- यह गली बीबी हटिया की गली से प्रारम्भ होकर दादुल चौक होते हुए ब्रह्मा घाट तक जाती है।


43. कातरा गली- यह गली राजमन्दिर क्षेत्र में पड़ती है। यह अत्यन्त छोटी गली है इस गली में केवल 4 से 5 मकान ही पड़ते हैं। यह गली एक तरफ से बन्द है।


44. चौखम्भा गली- यह गली चौखम्भा क्षेत्र से शुरू होकर ठठेरी बाजार की गली में आकर मिलती है।


45. सुग्गा गली- सुग्गा गली ठठेरी बाजार से प्रारम्भ होकर रानी कुआँ तक जाती है। इस गली पर सिन्नी टुल्लु का पहला कारखाना था।


46. गोला गली- ठठेरी बाजार स्थित भारतेन्दु भवन के पीछे की गली को गोला गली के नाम से जाना जाता है। यह गली ठठेरी बाजार की मुख्य गली से निकली है।


47. ननपटिया गली- नन अर्थात छोटी जाति के लोग इस गली में रस्सी तथा जूट से बने बोरे की सिलाई करते हैं जिसके कारण इस गली को ननपटिया गली कहते हैं। यह गली विश्वेश्वरगंज क्षेत्र में पड़ती है।


48. नरहर पुरा गली- नरहेश्वर महादेव के नाम पर इस गली का नाम नरहर पुरा गली पड़ा। यह गली डी0ए0वी0 रोड से प्रारम्भ होकर नरहरेश्वर महादेव मन्दिर तक जाती है। विवादित होने की वजह से इस मन्दिर को बन्द कर दिया गया है। यह अब श्री शिव प्रसाद गुप्त अस्पताल में स्थित है।


49. अगस्त कुण्डा गली- यह गली गौदोलिया तांगा स्टैण्ड के पास से प्रारम्भ होकर दशाश्वमेध घाट तक जाती है।


50. मीरघाट गली- यह गली मीरघाट से प्रारम्भ होकर दशाश्वमेध तक जाती है।


51. मणिकर्णिका गली- यह गली मणिकर्णिका घाट से प्रारम्भ होकर कचौड़ी गली में आकर मिलती है। इसके अलावा इस गली की अन्य शाखायें सिंधिया घाट तथा दशाश्वमेध घाट तक जाती हैं। ऐसा कथानक है कि शिवजी जब माता सती को लेकर इधर से गुजरे तो उनके कान की मणि इस घाट पर गिर पड़ी थी। जिस कारण इस घाट का नाम मणिकर्णिका और गली का नाम मणिकर्णिका गली पड़ी।


52. शवशिवा काली गली- यह गली सोनारपुरा में स्थित बंगाली टोला इण्टर कालेज के सामने से प्रारम्भ होती है तथा पाण्डेय घाट तक जाती है। इसी गली में “शव शिवा काली” जी का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है।


53. बड़ा गणेश वाली गली- यह गली लोहटिया क्षेत्र से प्रारम्भ होकर बड़ा गणेश मन्दिर तक जाती है। इस गली में गणेश जी का प्रसिद्ध मन्दिर है। उन्हें दंत हस्त विनायक या बड़ा गणेश के नाम से जाना जाता है। उन्हीं के नाम पर इस मोहल्ले का नाम बड़ा गणेश पड़ा। इस गली की अन्य शाखायें नवापुरा होते हुए दारानगर तथा हरिश्चन्द्र इण्टर कालेज के पीछे से होते हुए हरिश्चन्द्र डिग्री कालेज तक जाती है।


54. कुंज गली- कुंज गली रानी कुआँ से प्रारम्भ होकर कचौड़ी गली में जाकर मिलती है। इस गली में विश्व प्रसिद्ध बनारसी साड़ियों की गद्दियाँ हैं।


55. भूलेटन गली- यह गली भूलेटन क्षेत्र से प्रारम्भ होकर दालमण्डी की गली से होते हुए घुघरानी गली के प्रारम्भ पर जाकर मिलती है।

काशी में कुछ गलियों के नाम काशी के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के नाम पर भी रखे गये हैं उदाहरण-लाल संड की गली, लाला सूर की गली, गोयनका गली, सेवा चौधरी गली, नन्दन साहू लेन, गणेश दीक्षित लेन, ग्वाल दास साहू लेन, कूचा हाजीदरस।इन गलियों के अलावा जानवरों के नाम पर भी गलियाँ हैं-चूहा गली, हाथी गली इसके अलावा-ऊँचवा गली, सूत टोला गली, बंगाली बाड़ा, शीतला गली, गणेश गली, काठ गली, दूध विनायक गली, नीलकण्ठ गली, राजमन्दिर गली, हौज कटोरा, बुचई गली इत्यादि प्रमुख गलियाँ हैं।इन गलियों में जन्तर-मन्तर भी है, भूल-भुलैया भी है, रस भी है, अलंकार भी। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि क्योंकि जो गली आपको अपने घर पहुँचाती है वहीं गली श्मशान तक भी ले जाती है। कुछ गलियाँ ऐसी हैं कि आगे जाने पर मालूम होता है लेकिन गली के छोर के पास पहुँचने पर देखेंगे कि बगल से एक पतली गली सड़क से जा मिली है और कुछ गलियाँ ऐसी हैं जिनसे बाहर निकलने के लिये किसी दरवाजे या मेहराबदार चौखट के भीतर से गुजरना पड़ता है। अलंकारों की बात करें तो यहाँ सर्वत्र भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण मिलते हैं-इहाँ उहाँ दुई गलियन देखा। मति भ्रम मोरि कि आन बिसेखा।।देखि गली हमहूँ अकुलानी। बनारसी देखि मधुर मुसकानी।।इन गलियों से गुजरते समय जहाँ चूके तुरन्त ही दूसरी गली में आ पहुचेंगे क्योंकि यहाँ कोई निशान या साइनबोर्ड लगा नहीं मिलेगा। नतीजा यह होगा कि काफी दूर आगे जाने पर रास्ता बन्द मिलेगा। कभी-कभी तो तुरन्त सड़क आ सकती है। यदि रास्ता भूल गये तो उन्हीं गलियों में कई घंटे तक घूमते रहेंगे। आपकी इस दुविधा का आनन्द वहाँ के क्षेत्रीय बनारसी लेते हैं और आपकी ओर वे इस तरह देखेंगे कि यह इधर बन्द गली में कहाँ जा रहा है नतीजा आपको पुनः उसी गली तक वापस आना होगा जहाँ से आप भ्रमित होकर भटक गये थे। कई गलियाँ तो अपने नाम और रूप से इतनी भयानक होती हैं कि भयानक और शांत रस दोनों का एक साथ मजा देती है।आपको जिस गली में इमली के बीज बिखरे मिलें समझ लें इस गली में मद्रासी रहते हैं। जिस गली में मछली महकती हो वहाँ बंगालियों का मोहल्ला है। जिस मे हड्डी लुढ़की मिले समझिए मुसलमानी इलाका है। इस प्रकार हर गली की अपनी पहचान है, इतना पकवान है बस पारखी नजर आपके पास होनी चाहिए। इन अद्भुत गलियों के अद्भुत नाम भी हैं यथा-दस पुतरिया गली, भण्डारी गली, चूहा गली, ऊंचवा गली, दादुल गली, नारायण दीक्षित लेन, सूतटोला, ढुनमुन पंडा गली, रतन फाटक गली, बंगाली बाड़ा, भाट गली, गणेश दीक्षित लेन, पाटन गली, संतोषी माता गली, राजराजेश्वरी गली, पाण्डेय गली, केदार गली, मिसिर गली, कोहराने गली, सोना साव वाली गली, बीबी हटिया गली, दलहट्टा गली, दण्डपाणि गली।

तस्वीर एक बनारस की...



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