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Thursday, February 26, 2015

माता श्री की द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा

हिंदू धर्म के चार संप्रदाय हैं- 1.वैष्णव 2.शैव, 3.शाक्त और 4.ब्रह्म (अन्य)। चारों के तीर्थ हैं।

तीर्थ से ही वैराग्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तीर्थ यात्रा का समय संक्रांति के बाद माना गया है जबकि सुर्य उत्तरायण होता है। तीर्थ में सबसे प्रमुख कैलाश मानसरोवर को माना गया है। इसके बाद क्रमश: चार धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ, सप्तपुरी का नंबर आता है।
1.कैलाश मानसरोवर।
2.चार धाम : बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी।
3.द्वादश ज्योतिर्लिंग : सोमनाथ, द्वारका, महाकालेश्वर, श्रीशैल, भीमाशंकर, ॐकारेश्वर, केदारनाथ
विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, रामेश्वरम, घृष्णेश्वर, बैद्यनाथ।


4.बावन शक्तिपीठ : हिंगुल या हिंगलाज (पाकिस्तान), शर्कररे (करवीर-कराची-पाकिस्तान), सुगंधा-सुनंदा (शिकारपुर बांग्लादेश), महामाया (अमरनाथ के पास कश्मीर-भारत), सिद्धिदा अंबिका ज्वालादेवीजी (कांगड़ा-हिमाचल भारत), त्रिपुरमालिनी भीषण (जालंधर-पंजाब-भारत), जय दुर्गा बैद्यनाथधाम (देवघर-झारखंड), महशिरा गुजयेश्वरी मंदिर (काडमांडू-नेपाल), मानस दाक्षायणी (मनसा, मानसरोवर-तिब्बत), विरजा- विरजाक्षेत्र (ओड़िसा-भारत), गण्डकी चण्डी चक्रपाणि (पोखरा, गंडक नदी-नेपाल), बहुला चंडिका (वर्धमान-पश्‍चिम बंगाल-भारत), मंगल चंद्रिका (उज्जैन-मध्यप्रदेश-भारत), त्रिपुर सुंदरी (उदरपुर-त्रिपुरा-भारत), छत्राल चट्टल भवानी (चंद्रनाथ पर्वत-चटगांव-बांग्लादेश), त्रिस्रोत भ्रामरी (जलपाइगुड़ी-पश्‍चिम बंगाल-भारत), कामगिरि कामाख्या (गुवाहटी-नीलांचल पर्वत-असम-भारत),  ललिता (प्रयाग-उत्तर प्रदेश-भारत), जयंती (सिल्हैट जयंतीया- बांग्लादेश), युगाद्या- भूतधात्री (वर्धमान जिला खीरग्राम स्थित जुगाड्‍या पश्‍चिम बंगाल भारत), कालिका कालीपीठ (कोलकाता-पश्चिम बंगाल-भारत), किरीट- विमला भुवनेशी (मुर्शीदाबाद जिला किरीटकोण ग्राम ‍पश्चिम बंगाल भारत), मणिकर्णिका विशालाक्षी (वाराणसी-उत्तर प्रदेश-भारत), श्रवणी-सर्वाणी (कन्याश्रम-अज्ञात स्थान), सावित्री (हरियाणा-कुरुक्षे‍त्र -भारत), गायत्री (पुष्कर-राजस्थान-भारत), श्रीशैल महालक्ष्मी (सिल्हैट जिला-जौनपुर ग्राम-बांग्लादेश), कांची देवगर्भ (वीरभूमि जिला-बोलापुर स्टेशन-कोपई नदी-पश्‍चिम बंगाल-भारत), काली (अमरकंटक-कालमाधव-शोन नदी-मध्यप्रदेश-भारत), शोणाक्षी नर्मदा (अमरकंटक-शोणदेश-मध्यप्रदेश-भारत), शिवानी (चित्रकूट-रामगिरि-उत्तर प्रदेश-भारत), उमा (वृंदावन-भूतेश्वर-उत्तर प्रदेश-भारत), शुचि नारायणी (कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग-शुचितीर्थम-तमिलनाडु भारत), वाराही (पंचसागर-अज्ञात स्थान), अर्पण (शेरपुर बागुरा स्टेशन-भवानीपुर ग्राम-करतोया तट-बांग्लादेश), श्रीसुंदरी (श्रीपर्वत-लद्दाख-जम्मू और कश्मीर-भारत), कपालिनी भीमरूप (मेदिनीपुर-तामलुक -विभाष-पश्चिम बंगाल-भारत), चंद्रभागा (जूनागढ़-सोमनाथ-वेरागल-प्रभाष-गुजरात-भारत), अवंति (उज्जैन-भैरवपर्वत-क्षिप्रा नदी-मध्य प्रदेश-भारत), भ्रामरी (नासिक-जनस्थान-गोदावरी नदी-महाराष्ट्र-भारत), सर्वशैल राकिनी (राजामुंद्री-गोदावरी नदी तट-सर्वशैल-आंध्रप्रदेश-भारत), विश्वेश्वरी (गोदावरीतीर-भारत), रत्नावली कुमारी (हुगली जिला-खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग-रत्नाकर नदी तट-पश्‍चिम बंगाला-भारत), उमा महादेवी (जनकपुर-मिथिला-भारत-नेपाल सीमा), कालिका तारापीठ (वीरभूमि जिला- नलहाटि स्टेशन-पश्‍चिम बंगाल-भारत), कर्नाट जयदुर्गा (कर्नाट अज्ञात स्थान), महिषमर्दिनी (वीरभूमि जिला-दुबराजपुर स्टेशन-पापहर नदी तट वक्रेश्वर-‍पश्चिम बंगाल-भारत), यशोरेश्वरी (खुलना जिला-ईश्‍वरीपुर-यशोर-बांग्लादेश), अट्टहास फुल्लरा (लाभपुर स्टेशन-अट्टहास-पश्‍चिम बंगाल -भारत), नंदिनी (वीरभूमि जिला-सैंथिया रेलवे स्टेशन-नंदीपुर-चारदीवारी-पश्‍चिम बंगाल-भारत), इंद्रक्षी (त्रिंकोमाली-श्रीलंका), विराट- अंबिका (अज्ञात स्थान), सर्वानन्दकरी (मगध-बिहार-भारत)।

5.सप्तपुरी : काशी, मथुरा, अयोध्या, द्वारका, माया, कांची और अवंति (उज्जैन)।

6. अन्य तीर्थ :
दुर्गा के प्रमुख तीर्थ :- दाक्षायनी (मानसरोवर), माँ वैष्णोदेवी (जम्मू-कटरा), मनसादेवी (हरिद्वार), काली माता (पावागढ़), नयना देवी (नैनीताल), शारदा मैया (मैयर), कालका माता (कोलकाता), ज्वालामुखी (काँगड़ा), भवानी माता (पूना), तुलजा भवानी (तुलजापुर), चामुंडा देवी (धर्मशाला, जोधपुर और देवास), अम्बाजी मंदिर (माउंट आबू के पास), अर्बुदा देवी (नीलगिरि माउंट आबू पर्वत), तुलजा-चामुंडा (देवास माता टेकरी), बिजासन टेकरी (इंदौर), गढ़ कालिका-हरसिद्धि (उज्जैन), मुम्बादेवी (मुंबई), सप्तश्रृंगी देवी (नासिक के पास), माँ मनुदेवी (भुसावल-यावल आड़गाव), त्रिशक्ति पीठम (अमरावती, आंध्रप्रदेश विजयवाड़ा), आट्टुकाल भगवती (तिरुवनंतपुरम), श्रीलयराई देवी (गोवा), कामाख्या (गुवाहाटी), गुह्म कालिका (नेपाल), महाकाली (काशी), कौशिकी देवी (अल्मोड़ा), सातमात्रा (ओंकारेश्वर), कालका (देहली-शिमला रोड पर), नगरकोट की देवी (काँगड़ा पठानकोट-योगीन्द्रनगर लाइन पर भगवती विद्येश्वरी), भगवती कालिका (चित्तौड़), भगवती पटेश्वरी, योगमाया-कालिका (कुतुबमीनार के पास दूसरा ओखला नामक ग्राम में), पथकोट की देवी (पठानकोट), ललिता देवी (इलाहबाद-कड़ा), पूर्णागिरि (नेपाल की सरहद पर शारदानदी के किनारे), माता कुडि़या (चेन्नई), देवी चामुंडा-भेरुण्डा (मैसूर), श्रीविन्ध्यवासिनी (विन्ध्याचल), तारादेवी (कण्डाघाट स्टेशन)।

और भी :- तिरुपति बालाजी, शिर्डी, बाबा रामदेवजी (रामद्वारा), श्रीनाथजी, गजानंद महाराज, दादा धूनी वाले, शिलनाथ (देवास), गोगा महाराज, पंढरपुर दत्तात्रेय महाराज आदि।

हिंदू धर्म में कैलाश मानसरोवर और चार धाम की यात्रा का ही महत्व माना गया है। इनकी यात्रा करते हुए ज्योतिर्लिंग व सप्तपुरियों की यात्रा स्वत: ही हो जाती है। इसके अलावा अन्य किसी तीर्थ की यात्रा करना या नहीं करना अपनी-अपनी श्रद्धा का मामला है, किंतु चार धाम अवश्य करना चाहिए।


हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है।  ये संख्या में १२ है। सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ,श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर,सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर,वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। हिंदुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

स्थल १२ ज्योतिर्लिंगों के नाम शिव पुराण अनुसार (शतरुद्र संहिता, अध्याय ४२/२-४) हैं।

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। :उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥1॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।:सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।:हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रात: पठेन्नर:।:सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥4॥

भारत देश में बारह ज्योतिर्लिंग हैं.इनके नाम इस प्रकार हैं-(1) सोमनाथ, (2) मल्लिकार्जुन, (3)  महाकालेश्वर, (4) ओंकारेश्वर (5) वैद्यनाथ, (6) भीमशंकर, (7) रामेश्वर, (8) नागेश्वर, (9) विश्वनाथजी, (10) त्र्यम्बकेश्वर, (11) केदारनाथ, (12) घृष्णेश्वर [घुश्मेश्वर]. (इनमें से 3 महाराष्ट्र राज्य में त्रयम्बकेश्वर,भीमशंकर,घुश्मेश्वर) ही हैं, ( गुजरात में 2 सोमनाथ और,नागेश्वर, तमिलनाडु के1-रामेश्वरम में मौजूद (रामलिंगेश्वर), उत्तर में एक (केदारनाथ), उत्तर प्रदेश में एक (विश्वनाथ), आंध्रा प्रदेश में एक (श्रीशैलम-मल्लिकार्जुन महादेव), झारखंड के देवघर नामक स्थान में 1 (वैद्यनाथ) और मध्य प्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग (महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर) हैं.


क्रम. ज्योतिर्लिंग चित्र राज्य स्थिति वर्णन
सोमनाथ Somanatha view-II.JPG गुजरात प्रभास पाटन, सौराष्ट्र श्री सोमनाथ सौराष्ट्र, (गुजरात) के प्रभास क्षेत्र में विराजमान है। इस प्रसिद्ध मंदिर को अतीत में छह बार ध्वस्त एवं निर्मित किया गया है। १०२२ ई में इसकी समृद्धि को महमूद गजनवी के हमले से सार्वाधिक नुकसान पहुँचा था।
मल्लिकार्जुन Srisailam-temple-entrance.jpg आंध्र प्रदेश कुर्नूल आन्ध्र प्रदेश प्रांत के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तटपर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं।
महाकालेश्वर Mahakal Temple Ujjain.JPG मध्य प्रदेश महाकाल, उज्जैन श्री महाकालेश्वर (मध्यप्रदेश) के मालवा क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के तटपर पवित्र उज्जैन नगर में विराजमान है। उज्जैन को प्राचीनकाल में अवंतिकापुरी कहते थे।
ॐकारेश्वर Omkareshwar.JPG मध्य प्रदेश नर्मदा नदी में एक द्वीप पर मालवा क्षेत्र में श्रीॐकारेश्वर स्थान नर्मदा नदी के बीच स्थित द्वीप पर है। उज्जैन से खण्डवा जाने वाली रेलवे लाइन पर मोरटक्का नामक स्टेशन है, वहां से यह स्थान 10 मील दूर है। यहां ॐकारेश्वर और मामलेश्वर दो पृथक-पृथक लिङ्ग हैं, परन्तु ये एक ही लिङ्ग के दो स्वरूप हैं। श्रीॐकारेश्वर लिंग को स्वयंभू समझा जाता है।
केदारनाथ Kedarnath Temple.jpg उत्तराखंड केदारनाथ श्री केदारनाथ हिमालय के केदार नामक श्रृङ्गपर स्थित हैं। शिखर के पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर श्री बदरीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ हैं। यह स्थान हरिद्वार से 150 मील और ऋषिकेश से 132 मील दूर उत्तरांचल राज्य में है।
भीमाशंकर Bhimashankar.jpg महाराष्ट्र भीमाशंकर श्री भीमशङ्कर का स्थान मुंबई से पूर्व और पूना से उत्तर भीमा नदी के किनारे सह्याद्रि पर्वत पर है। यह स्थान नासिक से लगभग 120 मील दूर है। सह्याद्रि पर्वत के एक शिखर का नाम डाकिनी है। शिवपुराण की एक कथा के आधार पर भीमशङ्कर ज्योतिर्लिङ्ग को असम के कामरूप जिले में गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी पर स्थित बतलाया जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि नैनीताल जिले के काशीपुर नामक स्थान में स्थित विशाल शिवमंदिर भीमशंकर का स्थान है।
काशी विश्वनाथ Kashivishwnath.jpg उत्तर प्रदेश वाराणसी वाराणसी (उत्तर प्रदेश) स्थित काशी के श्रीविश्वनाथजी सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक हैं। गंगा तट स्थित काशी विश्वनाथ शिवलिंग दर्शन हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र है।
त्रयम्बकेश्वर Trimbakeshwar Shiva Temple, Trimbak, Nashik district.jpg महाराष्ट्र त्रयम्बकेश्वर, निकट नासिक श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग महाराष्ट्र प्रांत के नासिक जिले में पंचवटी से 18 मील की दूरी पर ब्रह्मगिरि के निकट गोदावरी के किनारे है। इस स्थान पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गम भी है।
वैद्यनाथ Baba-baidyanath-dham-temple.jpg झारखंड देवघर जिला शिवपुराण में 'वैद्यनाथं चिताभूमौ' ऐसा पाठ है, इसके अनुसार (झारखंड) राज्य के संथाल परगना क्षेत्र में जसीडीह स्टेशन के पास देवघर (वैद्यनाथधाम) नामक स्थान पर श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग सिद्ध होता है, क्योंकि यही चिताभूमि है। महाराष्ट्र में पासे परभनी नामक जंक्शन है, वहां से परली तक एक ब्रांच लाइन गयी है, इस परली स्टेशन से थोड़ी दूर पर परली ग्राम के निकट श्रीवैद्यनाथ को भी ज्योतिर्लिङ्ग माना जाता है। परंपरा और पौराणिक कथाओं से देवघर स्थित श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग को ही प्रमाणिक मान्यता है।
१० नागेश्वर Nageshwar Temple.jpg गुजरात दारुकावन, द्वारका श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग बड़ौदा क्षेत्रांतर्गत गोमती द्वारका से ईशानकोण में बारह-तेरह मील की दूरी पर है। निजाम हैदराबाद राज्य के अन्तर्गत औढ़ा ग्राम में स्थित शिवलिङ्ग को ही कोई-कोई नागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग मानते हैं। कुछ लोगों के मत से अल्मोड़ा से 17 मील उत्तर-पूर्व में यागेश (जागेश्वर) शिवलिङ्ग ही नागेश ज्योतिर्लिङ्ग है।
११ रामेश्वर Ramanathar-temple.jpg तमिल नाडु रामेश्वरम श्रीरामेश्वर तीर्थ तमिलनाडु प्रांत के रामनाड जिले में है। यहाँ लंका विजय के पश्चात भगवान श्रीराम ने अपने अराध्यदेव शंकर की पूजा की थी। ज्योतिर्लिंग को श्रीरामेश्वर या श्रीरामलिंगेश्वर के नाम से जाना जाता है।.
१२ घृष्णेश्वर Grishneshwar Temple.jpg महाराष्ट्र निकट एल्लोरा, औरंगाबाद जिला श्रीघुश्मेश्वर (गिरीश्नेश्वर) ज्योतिर्लिंग को घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहते हैं। इनका स्थान महाराष्ट्र प्रांत में दौलताबाद स्टेशन से बारह मील दूर बेरूल गांव के पास है।

संदर्भ


"बारह ज्योतिर्लिंग, एक यात्रा". संस्थान का आधिकारिक जालस्थल. अभिगमन तिथि: २००९.

वैसे तो हमारे काशी में सिर्फ शिव की ही महिमा है शिव की ही काशी है और पुराणों में शिव का नाम 'रुद्र' रूप में आया है। रुद्र संहार के देवता और कल्याणकारी हैं, विष्णु की भांति शिव के भी अनेक अवतारों का वर्णन पुराणों में प्राप्त होता है।शिव की महत्ता पुराणों के अन्य सभी देवताओं में सर्वाधिक है। जटाजूटधारी, भस्म भभूत शरीर पर लगाए, गले में नाग, रुद्राक्ष की मालाएं, जटाओं में चंद्र ,गंगा की धारा, हाथ में त्रिशूल एवं कटि में बाघम्बर और नंगे पांव रहने वाले शिव कैलास धाम में निवास करते हैं,,पार्वती उनकी पत्नी अथवा शक्त्ति है। गणेश और कार्तिकेय के वे पिता हैं।

शिव भक्त्तों के उद्धार के लिए वे स्वयं दौड़े चले आते हैं। सुर-असुर और नर-नारी—वे सभी के अराध्यहैं। शिव की पहली पत्नी राजा दक्षराज की पुत्री थी, जो दक्षयज्ञ में आत्मदाह कर चुकी थी। उन्हे अपने पिता द्वारा शिव का अपमान सहन नहीं हुआ था। इसी से उन्होने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी।'सती' शिव की शक्त्ति थी। सती के पिता दक्षराज शिव को पसंद नहीं करते थे। उनकी वेशभूषा और उनके गण सदैव उन्हें भयभीत करते रहते थे। एक बार दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया और शिव का अपमान करने के लिये शिव को निमन्त्रण नहीं भेजा। सती बिना बुलाए पिता के यज्ञ में गई। वहां उसे अपमानित होना पड़ा और अपने जीवन का मोह छोड़ना पड़ा। उसने आत्मदाह कर लिया। जब शिव ने सती दाह का समाचार सुना तो वे शोक विह्वल होकर क्रोध में भर उठे। अपने गणों के साथ जाकर उन्होंने दक्ष-यज्ञ विध्वंस कर दिया। वे सती का शव लेकर इधर-उधर भटकने लगे। तब ब्रह्माजी के आग्रह पर विष्णु ने सती के शव को काट-काटकर धरती पर गिराना शुरू किया। वे शव-अंग जहां-जहां गिरे, वहां तीर्थ बन गए। इस प्रकार शव-मोह से शिव मुक्त्त हुए।बाद में तारकासुर के वध के लिए शिव का विवाह हिमालय पुत्री उमा (पार्वती) से कराया गया। परन्तु शिव के मन में काम-भावना नहीं उत्पन्न हो सकी। तब कामदेव को उनकी समाधि भंग करने के लिए भेजा गया। परंतु शिव ने कामदेव को ही भस्म कर दिया। बहुत बाद में देवगण शिव पुत्र—गणपति और कार्तिकेय को पाने में सफल हुए तथा तारकासुर का वध हो सका।शिव के सर्वाधिक प्रसिद्ध अवतारों में अर्द्धनारीश्वर अवतार का उल्लेख मिलता है। ब्रह्मा ने सृष्टि विकास के लिए इसी अवतार से संकेत पाकर मैथुनी-सृष्टि का शुभारम्भ कराया था।

शिव पुराण में शिव के भी दशावतारों का वर्णन मिलता है, उनमें महाकाल, तारा, भुवनेश, षोडश, भैरव, छिन्नमस्तक गिरिजा , धूम्रवान, बगलामुखी, मातंग और कमल नामक अवतार हैं । भगवान शंकर के ये दसों अवतार तन्त्र शास्त्र से सम्बन्धित हैं। ये अद्भुत शक्त्तियों को धारण करने वाले हैं।

शिव के अन्य ग्यारह अवतारों में कपाली , पिंगल , भीम , विरुपाक्ष , विलोहित , शास्ता , अजपाद , आपिर्बुध्य , शम्भु , चण्ड तथा भव का उल्लेख मिलता है। ये सभी सुख देने वाले शिव रूप हैं। दैत्यों के संहारक और देवताओं के रक्षक हैं।

इन अवतारों के अतिरिक्त्त शिव के दुर्वासा , हनुमान , महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ , द्विजेश्वर , हंसरूप, अवधूतेश्वर , भिक्षुवर्य , सुरेश्वर , ब्रह्मचारी , सुनटनतर्क , द्विज ,अश्वत्थामा , किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है। शिव के बारह ज्योतिर्लिंग भी अवतारों की ही श्रेणी में आते हैं। तो अब हम माता जी को यात्रा के इस चरण में हम ७ ज्योतिर्लिंग और १ धाम की यात्रा करेगे जो करीब ७२०० किलो मीटर/ १५ दिन की होगी जिसमे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र राज्य और गुजरातकी यात्रा की जाएगी ...

देखे : काशी में १२ ज्योतिर्लिंग  


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