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Monday, May 4, 2015

सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ मंदिर, प्रभास पतन, वेरावल, सौराष्ट्र, गुजरात

(४ मई २०१५-सोमवार, तीर्थ यात्रा का सातवा दिन) निर्धारित समय रात के १० बजे अहमदाबाद से हमारी ट्रेन खुल चुकी थी... ट्रेन में हमारा बोगी भी करीब खाली ही था, बोगी तो हमारी वतानुकिलित थी लेकिन गर्मी का एहसास ही था , १० बजे खाना खा लिया, माता जी बिस्तर पर, नींद नहीं आ रही थी.. तो लगे वेद पुराणों के बारे में चर्चा करने.. बात करते करते रात का १ बज गया ... फिर सो ही गए.. सुबह माता जी ने जगाया देखा सोमनाथ आ गयल.. "अम्मा हम लोग से वेरावल उतरे के हव .. उठ.. पाहिले कहा पहुचल ट्रेन, पूछ ताछ करने पर पता चला की अभी ट्रेन वेरावल से एक स्टेशन पहले "चोर्वाद रोड" क्रास की है करीब ६.३० तक पहुच जाएगी .. बोगी पूरी ही खाली हो चुकी थी, १५ मिनट का समय बाकी था तो सामान ले गेट पर आ गए.. २० मिनट बाद ६.४० पर हम पहुच ही गए वेरावल स्टेशन .. कोई कुली भी नहीं था वहा तो सारा सामान उठाकर प्लेटफोर्म ब्रिज क्रॉस कर के बाहर निकले
.. वहा ऑटो वालो ने घेर लिया होटल के लिए, हमने पहले ही वेरावल में होटल बुक किया था तो होटल पहुचने के लिए पूछा तो ऑटो वाला तैयार हो गया ५०/- में .. हमारा होटल वेरावल बाजार में बस स्टैंड के पास ही था, पूछा उससे सोमनाथ जाने के बारे में तो उसने अपना कार्ड निकल के दे दिया जिसमे सोमनाथ और आस पास के सारे  मंदिरों का नाम लिखा था घुमाने के हिसाब से, रेट पूछा तो ३००/- में सारे जगह घुमाने के बात तय हो गयी.. तब तक हम होटल भी पहुच चुके थे .. पहले मंजिल पर होटल था तो लिफ्ट की मदत से हम स्वागत कक्ष तक पहुचे, कुछ हिसाब किताब में गलती के कारण होटल एक दिन पहले का ही बुक हो गया था तो उस दिन के लिए नगद भुगतान के आधार पर रूम मिल गया, होटल काफी पुराने तरीके का था, तो माता जी को पसंद नहीं आया लेकिन का करते.. शाम को ही निकलना था द्वारका के लिए, तो माता जी मान गयी.. फिर मै निचे उतरा सिगरेट के चक्कर में सामने ही एक चाय-पान की दुकान, वही ३ चाय बिना चीनी के, चाय पैकिंग की ब्यवस्था भी गजब की ... काफी देर बात हुई चाय वाले से उसके हिसाब से वेरावल मछली पालन के लिए जाना जाता है। आप यहां शिल्पकारों को परंपरागत तरीके से नाव बनाते हुए और मछली पकड़ने वाले जहाज देख सकते हैं। यहां के वातावरण से हमेशा मछली की गंध आती रहती है और अगर आपको इससे समस्या है, तो वेरावल से दूर ही रहें। इसके अलावा यह स्थान एक महत्वपूर्ण तटवर्ती औद्योगिक केन्द्र भी है। जापान, यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया, फारस की खाड़ी और अमेरिका जैसे देशों में यहां से बड़ी मात्र में सीफूड का निर्यात किया जाता है। वेरावल से सोमनाथ ५ किमी दूर स्थित है, सबसे मजेदार बात वहा की, वहा कोई भी फटे नोट लेने से मना नहीं करता, लोग छोटे प्लास्टिक के कवर में रख कर नोटों का चलन करते है, चल पड़े वापस कमरे की तरफ माता जी का चाय ले कर.. चाय पि कर माता जी गयी नहाने तब तक मै गूगल बाबा के साथ लगा सोमनाथ के बारे में समझने
स्कन्दपुराण के अनुसार जगतपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र ऋषि अत्री के पुत्र सोम (चंद्रमा) का विवाह प्रजापति दक्ष की १७ पुत्रियों से हुआ। अपनी सभी पत्नियों में से वह रोहिणी नाम की पत्नी से सबसे अधिक प्रेम करते थे। उनकी अन्य सभी पत्नियों को इस बात से बहुत ईर्ष्या होती। एक दिन उनकी १६ पत्नियों ने अपने पिता दक्ष से शिकायत की। दक्ष ने सोम को समझाया कि वह अपनी सभी पत्नियों से समान प्रेम करें लेकिन चन्द्र पर उनकी बात का कोई असर नहीं हुआ। अपनी आज्ञा की अवहेलना देख दक्ष ने सोम को श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से सोम लुप्त हो गए। अन्य देवता विचलित होकर ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा श्री विष्णु की शरण में गए। विष्णु ने सोम को ढूंढकर लाने को कहा लेकिन चंद्रमा मिले नहीं तत्पश्चात ब्रह्मा ने समुद्र मंथन करने को कहा। मंथन के उपरांत एक अन्य चंद्रमा निकले।विष्णु और अन्य देवताओं ने एकमत होकर चन्द्रमा को श्रेष्ठ माना और उसे धरतीवासियों का पालन-पोषण करने को कहा।उसी समय पहले वाले चंद्रमा श्राप से मुक्त होकर लौट आए नए चंद्र को देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। वह हताश होकर ब्रह्मा के पास गए, ब्रह्मा ने उन्हें श्री विष्णु के पास भेज दिया। तब श्री विष्णु की आज्ञा से श्रापमुक्त चंद्रमा महाकाल वन गए। वहां जाकर शिवलिंग का पूजन करने के बाद वह देह रूप को प्राप्त हुए। तभी से उक्त लिंग सोमेश्वर कहलाए। सोमनाथ मंदिर की गिनती १२ ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। गुजरात के सौराष्ट्र के प्रभास क्षेत्र के वेरावल में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है।खास दिनों में इस मंदिर में जानें से विशेष फलों की प्राप्ति होती है जैसे शुक्ल पक्ष की द्वितीया, प्रदोष, पूर्णिमा को पूजन और अभिषेक से अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है।श्रावण मास में चंद्र ग्रह के दोष दूर करने के लिए इन की पूजा का खास महत्व है। कच्चे दूध से रूद्र अभिषेक करने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस मंदिर में चांदी, मोती, शंख, चावल, मिश्री आंकड़े के फूल और कपूर के दान का विशेष महत्व है। 
 
तब तक माता जी भी नहा के निकल पड़ी... मन बुदबुदाते हुवे "पानी हव की नमक" का भयल अम्मा.. जा नहाये.. सैम्पू मत लगाया... पानी में बहुते नमक हव.. बार लट हो जाई.. हसी आ गयी, कल शाम के ही माता जी ने ज्ञान दिया था, चले नहाने.. बाथरूम भी अजीब, किधर पानी खुलता है किधर बंद होता है.. सोमनाथ ही जानते होगे..खैर नहा के तैयार हो गया.. अब दर्शन के लिए निचे उतरा... १० बजे का टाइम था १५ मिनट बाकि तो माता जी लगी घबड़ाने... फोन कर ओके .. कही चल गयल होई दुसर सवारी ले के.. , क्या करता फोन करना पड़ा , वो १० मिनट में ऑटो वाला आ पंहुचा और हम माता जी को ले कर चल दिए सोमनाथ.
रास्ते में समुद्र का किनारा, वहा बड़ी बड़ी पानी की जहाजे, हर तरफ मछली की गंध, माता जी ने मुख ढक लिया बदबू से.. तब तक हम पहुच गए सोमनाथ भ्रमण में सबसे पहले भालका तीर्थ मंदिर में. ऑटो वाले ने बताया की भालका तीर्थ प्रभास – वेरावल मार्ग पर एक प्रसिद्द तीर्थ मंदिर है. ऐसा माना जाता है की यह वही जगह है जहाँ पर भगवान कृष्ण को जारा नामक एक शिकारी ने अपने तीर से घायल किया था. भगवान श्रीकृष्ण एक वट वृक्ष के निचे ध्यान साधना में मग्न थे की तभी शिकारी ने उनके पैर को हिरन का पैर समझ कर तीर चला दिया था. भगवान श्री कृष्ण के बाएं पैर के अंगूठे पर शिकारी के बाण से जहाँ खून बहा वही स्थान है भालका तीर्थ. लेकिन माता जी ने कुछ खाया पिया नहीं था १० बज चूका था तो ऑटो वाले से कहा पहले सोमनाथ चलो, वहा पूजा कर के नास्ता करेगे फिर आगे देखेगे ये सब , उसने पूछा क्या अभिषेक भी करना है तो हमने कहा हा तो वो सरपट दौड़ पड़ा सोमनाथ की शर्त कार्ट रस्ते से गलियों में और पंहुचा दिया देवी अहिल्या बाई होलकर द्वारा निर्मित सोमनाथ मंदिर, यह मंदिर मुख्य सोमनाथ मंदिर के ही परिसर में स्थित है तथा मुख्य सोमनाथ मंदिर से लगा हुआ है. चूँकि मुख्य सोमनाथ मंदिर पर बार बार मुस्लिम आक्रमणकारी आक्रमण कर रहे थे अतः मध्य काल में  इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई जो की स्वयं भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं ने सन १७८३  में इस मंदिर का निर्माण करवाया. उन्होंने ऐसा महसूस किया की सोमनाथ मंदिर पर बार बार आक्रमण होने का कारण उस स्थान का अशुभ होना है अतः उन्होंने मुख्य सोमनाथ मंदिर के स्थान से थोडा हटकर इस मदिर का निर्माण करवाया. सुरक्षा कारणों से इन्होने इस मंदिर को तलघर में बनवाया मंदिर के अन्दर पुजारियों की भीड़, हर तरफ से आवाज , पूजा कराना है इधर आ जाओ.. जाये किधर तभी माता जी का हाथ पकड़ चल पड़े मंदिर के तल घर में इस मंदिर में पूजा पाठ एवं अभिषेक/स्पर्श पर कोई पाबन्दी नहीं है अतः अभिषेक के इच्छुक भक्त यहाँ पर पूजा पाठ एवं अभिषेक करते हैं. यह मंदिर भी श्री सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के द्वारा ही संचालित किया जाता है.
एक पुजारी से बात किया उनके पास ५०० की पूजा से निचे कोई प्रोजेक्ट नहीं था तो करने के लिए निवेदन किया, पुजारी जी ले गए, गर्भ गृह में पूजा सामग्री, फुल माला और दूध ले कर आ गये, और शुरू करा दिया पूजन , मजा आ गया तबियत से हुवा भोले का अराध्य ... बाहर निकले पुजारी जी ने प्रसाद दिया, और हमने दक्षिणा दे आशीर्वाद लिया, बाहर निकले सोचा माता जी को नास्ता करा देते है.. लेकिन माता जी का आदेश अब मुख्य मंदिर में चले के लिए... तभी ऑटो वाले ने बताया ११ बजे आरती होती है उस समय जाना ठीक रहेगा, तब तक क्या करते उसने कहा सामने ही समुद्र तट है वहा घूम लीजिये, फिर हम माँ को ले अभिषेक पूजा भक्ति भावना के बाद अब समय था थोडा एन्जॉय करने का और थोडा मस्ती करने का मन हो रहा था अतः हम मंदिर से ही लगे हुए सोमनाथ बीच पर आ गए. पहले नारियल पानी पिलाया माँ को फिर रस्ते में चलते चले माता जी खीरदारी भी करती चल रही थी.. यहाँ बीच पर खूब देर तक समुद्र की लहरों की साथ अठखेलियाँ की सोमनाथ में हमारे जीवन का पहला समुद्र दर्शन था अतः हमें एक अलग ही तरह का अनुभव हो रहा था, हमने बहुत अच्छा समय बिताया, माता जी के हिसाब का वहा बाजार भी मिल गया तो पत्थर, माला और क्या क्या लेती चल रही थी... माता जी को उट पर बैठाने का मन था लेकिन माँ ने मना कर दिया , खैर अब आरती का टाइम हो रहा था तो चल दिए सोमनाथ , वहा पर भी कैमरा मोबाइल ले जाना मना है तो लोकर रूम में जमा करा पहुच गए कड़ी जाच के बाद बाबा के दरबार में .. वहा भीड़ भी पूरी थे आरती की वजह से, हमने तो ठेला ठेली कर एक दम सामने से दर्शन कर लिए, लेकिन माता जी अलग लाइन में थी, हम बाहर निकल कर मंदिर का एक चक्कर लगा महिला गेट की तरफ माता जी के निकलने का इतजार करने लगे... आधा घंटा इतजार.. आरती भी खत्म... माता जी नहीं निकली .. घुसे अन्दर. मंदिर एक दम खाली , हे भगवन .. अम्मा कहा गयी... ढूढे चारो तरफ ,अम्मा दिखी नहीं बाहर निकले तो माँ चप्पल स्टैंड के पास , सास में सास आई.. ले कर अम्मा को बाहर निकले, लाकर से सामान लिया और ऑटो वालो के बुलाया १२.३० हो चूका था .. फिर पहुचे शाकाहारी भोजनालय... भर पेट खाना खाया फिर निकले आगे के दर्शन के लिए ..सोमनाथ मंदिर के अलावा भी बहुत से अन्य दर्शनीय स्थल एवं मंदिर हैं जिनके दर्शन के बिना सोमनाथ यात्रा संपूर्ण नहीं होती. हमारा ऑटो रिक्शा वाला भी बहुत सहयोगी व्यक्ति था उसने हमें बहुत अच्छे से हर एक जगह के दर्शन कराये तथा मार्गदर्शक (गाइड) का रोल भी अदा किया.  तो चलिए अब मैं आपको थोड़ी सा जानकारी देता  हूँ सोमनाथ के कुछ अन्य दर्शनीय स्थलों के बारे में…………………. 

गीता मंदिर: 
गीता मंदिर 3 पवित्र नदियों के संगम त्रिवेणी तीर्थ पर स्थित एक कृष्ण मंदिर है जिसे बिरला परिवार ने सन 1970 में निर्मित करवाया था। यह बताया जाता है की भगवान श्रीकृष्ण शिकारी  के बाण से घायल होने के बाद भालुका तीर्थ से यहां चार किलोमीटर दूर गीता मंदिर तक घायलावस्था में ही पैदल चलकर आये थे। गीता मंदिर जिसे बिरला मंदिर भी कहा जाता है। संगमरमर से बना एक बहुत सुन्दर मंदिर है। यहां पर मंदिर की संगमरमर की दीवारों पर गीता के दोहे और श्लोक सुन्दरता के साथ उकेरे गए है। गीता मंदिर परिसर में ही बलरामजी की गुफा, लक्ष्मीनारायण मंदिर, देहोत्सर्ग स्थल, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, महाप्रभुजी की बैठक आदि स्थित हैं।
सूरज मंदिर: 
सूरज मंदिर जो सोमनाथ में सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, एक अति प्राचीन मदिर है तथा कहा जाता है की यह मंदिर आदि सोमनाथ मंदिर के समय का है. इस मंदिर का निर्माण भगवान सूर्य की पूजा अर्चना करने के लिए निर्मित किया गया था.मंदिर का वास्तु बड़ा ही सुन्दर है जहाँ हाथी, शेर एवं पक्षियों की बहुत सी छवियाँ बनी हुई हैं. यह मंदिर भी  कई बार मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किया गया था.
पांच पांडव गुफा: 
पांच पांडव गुफा एक मंदिर है जो की सोमनाथ में लालघाटी के नजदीक स्थित है. यह मंदिर एक आश्चर्यजनक मंदिर है जिसकी स्थापना स्वर्गीय श्री बाबा नारायणदास ने सन 1949  में की थी. यह मंदिर पांच पांडव भाइयों को समर्पित है तथा यहाँ पांचो पांडवों की मुर्तिया विद्यमान हैं.
देहोत्सर्ग:
इस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण ने अपने प्राण त्यागे थे तथा यहीं पर श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार किया गया था अतः इस स्थान को देहोत्सर्ग कहा जाता है. इस स्थान पर अनेक स्तंभों पर आधारित एक भव्य स्मारक (समाधी स्थल) एवं गीता मंदिर का भी निर्माण किया गया है.
बाणगंगा: 
यह एक बड़ी ही मनोरम एवं सुन्दर जगह है जहाँ पर समुद्र के अन्दर दो शिवलिंग स्थापित किये गए हैं. शिवलिंग प्राकृतिक नहीं है, ऐसा लगता है की इन्हें यहाँ लाकर स्थापित कर दिया गया है. लेकिन द्रश्य सचमुच बड़ा ही मनोहारी लगता है. आप खुद कल्पना कीजिये समुद्र के उथले किनारे पर शिवलिंग जो आधा समुद्र में डूबा हुआ है तथा समुद्र की लहरें शिवलिंग को जलमग्न करके लौट रही है. ऐसा लगता है समुद्र लगातार भगवान शिव का जलाभिषेक कर रहा है.
भालका तीर्थ:  
भालका तीर्थ वेरावल मार्ग पर एक प्रसिद्ध तीर्थ मंदिर है। ऐसा माना जाता है की यह वही जगह है जहां पर भगवान कृष्ण को एक शिकारी ने अपने तीर से घायल किया था। भगवान श्रीकृष्ण एक वट वृक्ष के निचे ध्यान साधना में मग्न थे। तभी शिकारी ने उनके पैर को हिरन का पैर समझ कर तीर चला दिया था। भगवान श्री कृष्ण के बाएं पैर के अंगूठे पर शिकारी के बाण से जहां खून बहा वही स्थान भालका तीर्थ के नाम से मंदिर की स्थापना की गई है।
४ बज चूका था, माता जी भी थक चुकी थी , तेज धुप के कारण , तो वापस होटल चलने का आदेश तो इस तरह सोमनाथ मंदिर तथा अन्य दर्शनीय स्थलों के दर्शनों के पश्चात करीब ४.३० तक हम अपने होटल पहुंचे, अन्त में पैसे देते समय जब उससे मैंने परिचय किया तो पता चला कि वह तो मुसलमान था। सोमनाथ तीर्थस्थल के बारे में उसकी जानकारी खासी अच्छी थी।कमरे में आ कर हम मुर्दासन के अवस्था में आ गए... अमता जी होटल के खिड़की से बाहर का नजारा देखती रही.. ६ बजे जगाया मुझे और कहा चलो बाहर देख के आते है क्या है वेरावल में तो चल पड़े... बाहर .. एक पुराने गाव की तरह, कुछ खास नहीं, घूमते रहे बाजार में , लेकिन माता जी तो खरीदारी के लिए दुकान खोज रही थी ..  बच्चो के लिए सामान.. अंत में एक कपडे की दुकान में जा कर भांजी के लिए गरबे वाला पोशाक खरीद वापस आ गए.. बस स्टैंड के अन्दर ही एक हनुमान जी का मंदिर था जहा माता जी आरती में शरीक हुई.. अँधेरा हो रहा था तो चाय नास्ता कर होटल से बिदा होने का समय हो चूका था .. रस्ते में ही एक भट्टी पर बन रहे पराठे की दुकान दिखी.. इस आधुनिकता के ज़माने में कोयले की भट्टी पर खाना तो रात का खाना वही से पैक करवा लिया , बोला निकलते हुवे ले लुगा.. वहा रस्ते में कपडा धोने के पावडर की बहुत दुकान दिखी.. बड़ा ताज्जुब हुवा .. इतनी दुकाने इसके लिए , एक दुकान पर पूछने से पता चला यहाँ मछुवारो के कपडे बहुत गंदे होते है.. मछली मरने के क्रम में बहुत दिन तक समुंद के अन्दर रहते है , तो वापस आने पर अपने कपडे की धुलाई के लिए इसका उपयोग करते है ... ताज्जुब की बात थी ये .. एक और अनोखी बात दिखी ,गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में एक वाहन पाया जाता है नाम है "छकडा"। इसकी खासियत यह है कि यह आदि काल से लेकर आधुनिक काल तक के वाहनों का मिश्रण लगता है...बनावट और उपयोग दोनों हिसाब से।इसका चालक भी उतना ही अजीब होता  है.. रंगीन कपडा,चप्पल और ऊँची आवाज के संगीत का शौकीन...किसी को अपने से आगे नहीं जाने देने की कसम खा के गाडी चलाता है... और अपना पैर हैन्डल के पास लगे हूक के पास रखता है...पता ही नहीं चलता है कि हैन्डल पर हाथ रखा कि पैर या दोनो। गौर करने की बात है कि यह जहाँ बनता है वहाँ पर या सड़क पर मिलता है ..... और इसकी वजह से बहुत सारी गाडियाँ गैरेज में और उनके ड्राइवर डाक्टर के पास मिलते हैं।,
वापस आ गए होटल और सामान पैक कर के निकले अगले यात्रा की तरफ .. वेरावल स्टेशन जहा से हमारी अगली ट्रेन थी द्वारका के लिए .. रास्ते में सोमनाथ मंदिर के पतन और बार-बार पुनरुत्थान के चित्र बरबस ही आंखों के समक्ष उमड़ आते थे। भारतवासी किस मिट्टी के बने हैं, यह सोमनाथ के इतिहास को देखकर जाना जा सकता है। भयंकर विदेशी आक्रमणों के कारण धूल में मिलने, पुन: संघर्ष करते हुए उन्नत मस्तक लिए संसार के समक्ष स्वाभिमानपूर्वक उठ खड़े होने की गाथा है सोमनाथ की।
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1 comment:

  1. मैं भी दिसंबर में जाने की सोच रहा हूं। आपके इस पोस्ट से काफी महत्वपूर्ण जानकारी मिली। वहां ठहरने के लिए होटल कैसे हैंत्र

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