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Friday, May 1, 2015

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन

१ मई २०१५ (शुक्रवार), तीर्थ यात्रा का पाचवा दिन

औरंगाबाद- श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (२५ किलो मीटर) 

*छोटे भ्राता संजीव के जन्मदिन की विशेस पूजा श्री घुश्मेश्वर में

*दर्शन पूजा का समय सुबह ९ बजे से १२ बजे तक

*२-५ बजे तक अजंता एलोरा गुफा घूमघाम

तो हम लोग भी ८ बजे नहा धो कर निचे उतर गए थे टैक्सी के इंतजार में मैनेजर ने सलाह दी की घ्रश्नेश्वर, परली वैजनाथ और औंढा नागनाथ यह तीनों ज्योतिर्लिंग क्षेत्र एक ही मार्ग में होने के कारण एक साथ ही इन तीनों क्षेतों कि यात्रा कि जा सकती है लेकिन ये प्लान में नहीं था ..खैर १५ मिनट बाद टैक्सी भी आ गयी तो चल पड़े माता जी को ले औरंगाबाद के ही समीप स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तथा एलोरा की प्रसिद्द गुफाओं के दर्शन कराने के लिए वैसे औरंगाबाद बस स्टेंड से वेरुल के लिए भारी मात्र में एस. टी. बसें उपलब्ध हैं. औरंगाबाद में मध्यवर्ती बस स्थानक से वेरुल ट्रिप (घ्रश्नेश्वर, एलोरा, दौलताबाद, खुलताबाद, भद्र मारुती, पैठन दर्शन ) के लिए सुबह ७.३० से प्रारंभ होने वाली बस कि सुविधा गाइड के साथ उपलब्ध है जो कि शाम ५ बजे वापस लौटती है.



 
श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर: एक परिचय –घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर एक प्रसिद्द शिव मंदिर है तथा हिन्दू पुराणों के अनुसार शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. रुद्रकोटीसंहिता, शिव महापुराण स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगस्तोत्रं के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग बारहवें तथा अंतिम क्रम पर आता है. यह मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद से ११ किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. यह स्थान विश्वप्रसिद्ध एलोरा गुफाओं से एकदम लगा हुआ तथा वेलुर नामक गाँव में स्थित है. 
इस मंदिर का जीर्णोद्धार सर्वप्रथम १६ वीं शताब्दी में वेरुल के ही मालोजी राजे भोंसले (छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा) के द्वारा तथा पुनः १८  वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर के द्वारा करवाया गया था जिन्होंने वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर तथा गया के विष्णुपद मंदिर तथा अन्य कई मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था.जैसा कि हर ज्योतिर्लिंग के साथ कोई न कोई कहने जुडी है वैसे ही इस के साथ भी एक प्राचीन कथा प्रसिद्ध है.
कहते हैं कि दक्षिण देश में देवगिरिपर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक एक शिव भक्त ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ  रहा करता था .उसके कोई संतान नहीं थी .पत्नी सुदेहा के दवाब में उस ने संतान प्राप्ति हेतु उसकी छोटी बहन घुश्मा से दूसरी शादी कर ली.घुश्मा शिव की अनन्य भक्त थी .वह रोज़ एक शिवलिंग बनाती पूजा करती और मंदिर के सरोवर में उसे विसर्जित कर देती . घुश्मा को जल्द ही एक पुत्र की प्राप्ति हुई. ब्राह्मण पुजारी की पहली पत्नी ने ईर्ष्यावश इस पुत्र की हत्या कर दी और उसके शव को ले जाकर उसने उसी तालाब में फेंक दिया जिसमें घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंगों को विसर्जित करती थी.घुश्मा ने अपने पुत्र के शोक में भी शिव भक्ति नहीं छोड़ी,उसकी भक्ति से प्रसन्न हो कर शिव भगवान ने उसके पुत्र को जीवनदान दिया .घुश्मा की प्रार्थना स्वीकार कर शिव जी उसी सरोवर के पास ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर वहीं निवास करने लगे.तब से देव सरोवर के पास स्थित इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर के नाम से पुकारा जाना लगा. 

घुश्मेश्वर/घृष्णेश्वर  ज्योतिर्लिंग –( राजस्थान ) बहुत से मानने वाले यह कहते हैं कि महाराष्ट्र का घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग मूल नहीं है .राजस्थान राज्य में शिवाड में ही मूल ज्योतिर्लिंग स्थापित है. वे इसकी पुष्टि शिव पुराण में दिए गए तथ्यों से करते हैं. जिस देवगिरी पर्वत का वर्णन शिवपुराण में है वह महाराष्ट्र में नहीं है. पुराण में वर्णित तालाब शिवालय के नाम से शिवार के मंदिर के पास अब भी है वो जगह जहा
खुदाई के दौरान कई शिवलिंग पाए गए (जिन्हें कथा के अनुसार घुश्मा पूजा के बाद सरोवर में फेंक दिया करती थी.) जबकि महाराष्ट्र वाले घुमेश्वर मंदिर के पास बने कुंड में कोई शिवलिंग नहीं मिला. शिव पुराण के अनुसार घुश्मा नामक जिस स्त्री के पुत्र को शिव जी ने जीवन दान दिया था.वह शिवर में रहने वाली स्त्री थी.यह भी कहा जाता है कि उस घुश्मा के वंशज आज भी शिवार में रहते हैं. प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों में इसे कुम्कुमेश्वर के नाम से भी संदर्भित किया गया है. इस मंदिर को इसके चित्ताकर्षक शिल्प के लिए भी जाना जाता है. यदि क्रम की बात करें तो हिन्दुओं के लिए घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा का मतलब होता है बारह ज्योतिर्लिंग यात्रा का समापन. घृष्णेश्वर दर्शन के बाद द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा को पूर्णता प्रदान करने के लिए श्रद्धालु काठमांडू, (नेपाल) स्थित पशुपतिनाथ के दर्शन के लिए जाते हैं.


औरंगाबाद से घृष्णेश्वर का सफ़र और वह भयंकर गर्मी जैसे गाड़ी का ऐ सी भी कूलर जैसा लग रहा था जब औरंगाबाद की सड़कों पर घुमने के बाद दौलताबाद पहुचे तो फिर उपर पहाडियों का रास्ता, जहा से शुरू
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
होता है चढाई... वहा असमान ठीक ठाक लग रहा था और धुप भी कम तो थोडा आनंद आया ..ये तो थी एक संक्षिप्त जानकारी श्री घृष्णेश्वर मंदिर के बारे में अब हम पहुच ही गए मंदिर के समीप, गाड़ी पार्किंग में लगा कर उतरे तो बच्चे अभिषेक के लिए दूध बेच रहे थे ... बड़ी मासूमियत से ... सर एक दम ताजा है ... गाय का ... साथ में चेतावनी भी मंदिर में कैमरा ले जाना मना है . खैर उनको छोड़ आगे बढे..मंदिर की दर्शन के बैरकेटिंग जहा शुरू हुई.. वही माला फुल के साथ पूजन सामग्री ले लिया तभी वे बच्चा फिर आ गया, दूध ले कर खैर पूजन सामग्री में दूध भी शामिल था, फिर भी उस मासूम बच्चे से १ पैकेट ले किया २० /- का एक पैकेट मंदिर के पास पहुच, मोबाईल कैमरा जमा कर पहुच गए मुख्य द्वार मन्दिर में घुसने से पहले हमारी तलाशी लेने की खानापूर्ति भी कर ली गयी। इसके बाद मन्दिर की चारदीवारी के भीतर दाखिल हुए। मंदिर में प्रवेश करते ही मंदिर का शिल्प देखकर हम मंत्रमुग्ध हो गए, प्राचीन शिवमंदिरों की बात ही कुछ और होती है.
 

मंदिर का सुन्दर शिल्प, आस पास का शिवमय माहौल, परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा अन्य छोटे बड़े मंदिर, मन्दिर के समीप सजी छोटी छोटी पूजन सामग्री की दुकानें, स्थानीय महिलाओं तथा बच्चों के हाथ में बेचने के लिए बिल्व पत्र, आंकड़े के फूल आदि सबकुछ एक स्वप्न की तरह लग रहा था, एक शिवभक्त को आत्मा की ताजगी और क्या चाहिए? खैर प्रवेश किया, तो स्वर्ग की तरह अनुभूति ..घृष्णेश्वर मंदिर बड़ा ही सुन्दर मंदिर है तथा इसके चारों ओर का वातावरण भी रमणीय है. यह मंदिर प्राचीन हिन्दू शिल्पकला का एक बेजोड़ नमूना है. इस मंदिर में तिन द्वार हैं एक महाद्वार तथा दो पक्षद्वार. मंदिर प्रवेश से पहले श्रद्धालु कुछ देर कोकिला मंदिर में रुकते हैं, यहाँ माता के हाथ ऊपर की ओर उठे हुए हैं जो भगवान शिव को श्रद्धालुओं के आगमन की सुचना देते प्रतीत होते हैं. गर्भगृह के ठीक सामने एक विस्तृत सभाग्रह है, सभा मंडप मजबूत पाषाण स्तंभों पर आधारित है इन स्तंभों पर सुन्दर नक्काशी की हुई है जो मंदिर की सुन्दरता को द्विगुणित करती है. सभामंड़प में पाषाण की ही नंदी जी की मूर्ति स्थित है जो की ज्योतिर्लिंग के ठीक सामने है. मंदिर के अर्धउंचाई के लाल पत्थर पर दशावतार के द्रश्य दर्शानेवाली तथा अन्य अनेक देवी देवताओं की मूर्तियाँ खुदवाई गई हैं. २४ पत्थर के खम्भों पर सभामंड़प बनाया गया है. पत्थरों पर अति उत्तम नक्काशी उकेरी गई है. मंडप के मध्य में कछुआ है और दिवार की कमान पर गणेशजी की मूर्ति है. घृष्णेश्वर मंदिर का गर्भगृह अपेक्षाकृत बड़ा है (१७ X१७ फिट) जो की श्रद्धालुओं को पूजन अभिषेक करने के लिए पर्याप्त जगह प्रदान करता है. गर्भगृह के अन्दर ही एक बड़े आकार का शिवलिंग (ज्योतिर्लिंग) स्थित है, ज्योतिर्लिंग पूर्वाभिमुखी है जो की अपने आप में विशिष्ट है. सभा मंड़प की तुलना में गर्भगृह का स्तर थोडा निचे है. गर्भगृह की चौखट पर और मंदिर में अन्य जगहों पर फुल पत्ते, पशु पक्षी और मनुष्यों की अनेक भाव मुद्राओं का शिल्पांकन किया गया है.

भक्तो के लिए नियम:
यहाँ पर मंदिर में प्रवेश से पहले ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए पुरुष भक्तों को अपने शरीर से शर्ट (कमीज) एवं बनियान तथा बेल्ट उतरना पड़ता है. वैसे दक्षिण भारत के मंदिरों में यह प्रथ बहुधा देखने को मिलती है लेकिन उत्तर तथा मध्य भारत के मंदिरों में यदा कदा ही दष्टिगोचर होती है. इस परंपरा के पीछे क्या कारण है कोई नहीं जानता.

मंदिर समय सारणी:
मंदिर रोज सुबह ५ :३०  को खुलता है तथा रात ९ :३०  को बंद होता है. श्रावण के पावन महीने में मंदिर सुबह ३ बजे से रात ११  बजे तक खुला रहता है. मुख्य त्रिकाल पूजा तथा आरती सुबह ६  बजे तथा रात ८ बजे होती है. महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान् शिव की पालकी को समीपस्थ शिवालय तीर्थ कुंड तक ले जाया जाता है.

मंदिर प्रबंधन:
श्री घृष्णेश्वर मंदिर का प्रबंधन श्री घृष्णेश्वर मंदिर देवस्थान ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है. स्थानीय पुरोहित एवं कुछ गणमान्य नागरिक इस ट्रस्ट के कमिटी मेम्बर्स हैं.

पूजन अभिषेक:
मंदिर प्रबंधन समिति के द्वारा भक्तों के लिए कई  तरह के पूजन अभिषेक की व्यवस्था है. साधारण अभिषेक, रूद्र अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक आदि रुपये २५० से लेकर ५००  तक में करवाया जा सकता है. भक्त गण तय शुल्क ट्रस्ट के ऑफिस में जमा करवा कर उसी दिन या अगले दिन अभिषेक करवा सकते हैं. यहाँ पर भक्तों को गर्भगृह में प्रवेश करके ज्योतिर्लिंग पर सीधे अभिषेक / पूजन की अनुमति है.
 

तो हमने भी कटवा लिया ५०१/- का कूपन दर्शन तथा अभिषेक के लिए तय किये गए पंडित जी के साथ गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए मंदिर के नियमों के अनुसार मुझे अपने शरीर के उपरी भाग के वस्त्रों (शर्ट तथा बनियान) को मंदिर के बाहर ही उतार कर रखना था अतः मैंने अपने कपडे उतार माता जी के झोले में ही रख दिए और माता जी के साथ मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश किया. खैर छोटे भ्राता के जनम दिन की विशेष पूजा करनी थी मैंने पुजारी जी से आग्रह किया की माता जी के हाथ से पूजन करवा दे.. लेकिन पुजारी जी का आदेश आप माँ पुत्र दोनों मिल कर करे .. तो जपने लगे शिव.. 


अन्दर गर्भगृह में भक्तों की अच्छी खासी भीड़ थी, थोड़ी देर बाद हमारा भी नंबर आ गया तो मन में लिए हम अपने पूजन अभिषेक के लिए पंडित जी के साथ ज्योतिर्लिंग के समीप बैठ गए. पुजारी जी ने विधिवत अभिषेक करवाया २० मिनट तक हम शिवोहम हो गए थे .. जब हमारा अभिषेक सम्पन्न हुआ और हम भी बाहर आये.. बची हुई प्रक्रिया और प्रसाद वितरण किया पुजारी जी ने ... पंडित जी को दक्षिणा देने के बाद आशीर्वाद ग्रहण किया और मंदिर की परिक्रमा लगाई ... और निकल पड़े बाहर..

मंदिर के बाहर कुछ छोटे बच्चे , जो तिलक लगा रहे थे.. उसमे से एक बच्चे ने कहा सर.. मुझे लिखने के लिए एक कॉपी दिलवा दो.. चुकी माता जी खरीदारी में ब्यस्त थी तो मै चल पड़ा उस बच्चे को कॉपी दिलवाने..बगल में एक स्टेशनरी की दुकान थी .. तभी ३ बच्चे और आ गए.. सब ने माग कर दी कॉपी की तो सबको १-१ बड़ी कॉपी दिलवा दिया तब बच्चो की फरमाइस बड़ने लगी.. एग्जाम पेड और पेंसिल रबर भी ... खैर सब दिलवा दिया बच्चो को जो वो मागे 

माता जी के नास्ते का अनुरोध किया तो पता चला आज प्रदोष.. इस लिए आज ब्रत... ऐय... अभी इतना चलना है ब्रत में तो कैसे ... फिर मैंने भी कहा चलो मै भी ब्रत.. तब माता जी जा कर तैयार हुई .. पास के ही एक नास्ते की दुकान पर जलपान किया फिर निकल पड़े अगले पड़ाव की तरफ, माता जी की और मंदिर के बाहर की कुछ फोटोग्राफ्स लेते हुवे अपनी गाड़ी में, शिव पुराण के ज्ञान संहिता में लिखा है–

ईदृशं चैव लिंग च दृष्ट्वा पापै: प्रमुच्यते।
सुखं संवर्धते पुंसां शुक्लपक्षे यथा शशी।।

अर्थात् ‘घुश्मेश्वर महादेव के दर्शन करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा उसी प्रकार सुख-समृद्धि होती है, जिस प्रकार शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की।

भगवान् शिव के संतोषजनक दर्शन तथा अभिषेक के बाद अब हमर अगला पड़ाव था विश्वप्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं का अवलोकन करना, है न फायदे का सौदा एक तरफ भगवान् शिव का ज्योतिर्लिंग और उसके इतने करीब विश्वप्रसिद्ध एतिहासिक महत्व की गुफाएं. घृष्णेश्वर मंदिर एलोरा गुफाओं से मात्र ५०० मीटर की दुरी पर तथा औरंगाबाद से ३० किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. औरंगाबाद से घृष्णेश्वर का ४५ मिनट का सफ़र यादगार होता है क्योंकि यह रास्ता नयनाभिराम सह्याद्री पर्वत के सामानांतर दौलताबाद, खुलताबाद और एलोरा गुफाओं से होकर जाता है.






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