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Thursday, May 26, 2016

माता जी की तीर्थ यात्रा “ भाग २

तो पिछले साल की तरह इस साल भी माता जी को ले निकल पड़े “माता जी की तीर्थ यात्रा “ भाग २ में.. इस बार का थीम था दक्षिण भारत, जहा २ ज्योतिर्लिंग है.... श्री सैलम और श्री रामेश्वरम... 

तो इस बार के यात्रा का रूट कुछ ऐसा था.. वाराणसी से तिरुपति होते श्री सैलम से मदुरै के दर्शन के बाद रामेश्वरम से कन्या कुमारी के बाद चेन्नई होते हुवे वाराणसी.. करीब १५ दिन की यात्रा... तिरूपति बालाजी, श्री सैलम (मल्लिकाजरुन ज्योर्तिलिंग), मदुरै के मीनाक्षी मंदिर, पद्मनाभम मंदिर, रामेश्वरम,व कन्याकुमारी का भ्रमण :
 
Pnbe Ers Express    16360    09:15 PM     09:15 AM     36h     Tue 
BSB    Varanasi Jn      1          20:55        21:15  20 min  0229 km 1 
TPTY    Tirupati          1            9:50        10:00  10 min  2310 km 3 
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मल्लिकार्जुन Srisailam-temple-entrance.jpg आंध्र प्रदेश कुर्नूल आन्ध्र प्रदेश प्रांत के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तटपर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं।

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रामेश्वर Ramanathar-temple.jpg तमिल नाडु रामेश्वरम श्रीरामेश्वर तीर्थ तमिलनाडु प्रांत के रामनाड जिले में है। यहाँ लंका विजय के पश्चात भगवान श्रीराम ने अपने अराध्यदेव शंकर की पूजा की थी। ज्योतिर्लिंग को श्रीरामेश्वर या श्रीरामलिंगेश्वर के नाम से जाना जाता है।.[3]
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हा तो इस बार की माता जी तीर्थ यात्रा दक्षिण भारत की थी जो Varanasi-Tirupati- Srisailam – Madurai- Kodaikanal – Rameshwaram – Kanyakumari –,Chennai-Varanasi की थी ... जिसमे हम २ ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये... 

तो इस बार की यात्रा के लिए काठमांडू से २४ अप्रैल बनारस के लिए निकले २५ की सुबह काशी पहुच बाबा काल भैरो और महामृतुन्जय के दर्शन फिर

भैरोनाथ के गौरी भैया की कचौड़ी.. दिन दिन भर बैंक का काम फिर शाम को मैदागिन की बैठकी, बाबा ठंडाई में और अगले दिन हम माता जी को ले निकल पड़े २६ अप्रैल २०१६ (मगलवार) को Train # १६३६० जो पटना से चल कर एर्नाकुलम तक जाती है... 
 
बाबा ठंडाई मैदागिन... बाबा का प्रसाद ग्रहण करते हुवे 
वैसे ट्रेन का टाइम है बनारस में ८.५५ लेकिन प्रभु जी की ट्रेन है न तो २.३० मिनट की देरी से करीब ११ बजे आ पहुची हमारी ट्रेन... टिकट भी दिसंबर में ही बना लिया था, तो आरक्षण कन्फर्म था, तो माता श्री
को ले पहुचे सेकेण्ड AC के कोच में... आदतन माता जी घर से ही पुड़ी सब्जी ले कर चली थी... इसलिए रात्रि भोज के हिसाब से माता श्री के हाथ का पूरी सब्जी दबा लिए.. माता जी का बिस्तर लगा , अपने उपर वाली बर्थ पकड़.. TT साहेब का इतजार करने लगे... ताकि टिकट जाच करवा आराम से सुते... नींद भी नहीं आ रही थी तो मोबाइल से छेड़ छाड़... करीब रात 1 बजे TT साहेब का आगमन हुवा तो टिकट जाच करवा आराम से चादर तान लिए... सुबज जब नीद खुली तब पता चला की ट्रेन जबलपुर पहुच चुकी है..घडी में ७.५० हो चूका था. कूदे उपर से बाहर की तरफ... तो माता जी पहले ही उठ के बैठी थी... फिर सोचा की चाय पिलाते है ... बाहर निकले, तब तक ट्रेन का सिग्नल हो चूका था, वापस अपने बोगी में, तभी लोकल चाय बेचने वाला दिखा तो २ चाय लिया
लेकिन बिना चीनी का ट्रेन में मिलना महाभारत ही है... माता जी को चाय पिलाया, सोचा ११.३० तक इटारसी पहुच ही जाएगी.. तो वही कुछ देखा जायेगा.... लेकिन ट्रेन में पैंट्री वालो की बराबर आवा जाही थी तो सभी कुछ उपलब्ध थे... चाय pi फ्रेश हो गेट पर खड़े हो देखने लगे विकसित भारत का नजारा... ट्रेन इटारसी पहुची तो वहा खाने पिने का सामान ले पहुचे बोगी में तो माता श्री ने सुबह के लिए भी नास्ते का इतजाम घर से ही कर चली थी... अब दोनों मिला नास्ता क्या पूरा खाना ही हो गया... दिन के १२ बज चुके थे तो फिर बिस्तर... शाम ४ बजे नागपुर पहुच चुकी थी ट्रेन वहा चाय मिल गयी बिना चीनी की .. करीब ४.४५ पर ट्रेन पहुची सेवा ग्राम सेवाग्राम की विशेष गरिमा के अनुरूप स्टेशन बहुत साफ सुथरा था। प्लेटफार्म पर सफाई कर्मी भी दिखे। सामान्यत अगर यह सूचित करना होता है कि “फलाने दर्शनीय स्थल के लिये आप यहां उतरें” तो एक सामान्य सा बोर्ड लगा रहता है स्टेशनों पर। पर सेवाग्राम में गांधीजी के केरीकेचर वाले ग्लो-साइन बोर्ड लगे थे – “सेवाग्राम आश्रम के लिये यहां उतरीये।”

स्टेशन के मुख्य द्वार पर किसी कलाकार की भित्ति कलाकृति भी बनी थी – जिसमें बापू, आश्रम और सर्वधर्म समभाव के आदर्श स्पष्ट हो रहे थे। सेवाग्राम वर्धा से 8 किलोमीटर पूर्व में है। यहां सेठ जमनालाल बजाज ने लगभग 300एकड़ जमीन आश्रम के लिये दी थी। उस समय यहां लगभग 1000 लोग रहते थे, जब बापू ने यहां आश्रम बनाया। सेवाग्राम महात्मा गाँधी और राजीव दीक्षित के लिए के लिए जाना जाता हैजो महाराष्ट्र राज्य के वर्धा ज़िले में स्थित सेवाग्राम नामक गाँव में है। पहले सेवाग्राम गाँव को 'शेगाँव' नाम से जाना जाता था। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने ही इस गाँव का नाम बदलकर सेवाग्राम रखा। सेवाग्राम आश्रम भारत में गाँधीजी द्वारा स्थापित दूसरा महत्वपूर्ण आश्रम है। इससे पूर्व गाँधीजी ने गुजरात में साबरमती आश्रम की स्थापना की थी। ये आश्रम गाँधीजी के रचनात्मक कार्यक्रमों एवं उनके राजनीतिक आंदोलन आदि के संचालन का केंद्र हुआ करते थे। यह वह स्थान है, जहाँ महात्मा गाँधी 13 वर्ष, सन 1936 से 1948 तक रहे। ऐसा विश्वास है कि 1930 में जब गाँधीजी ने साबरमती आश्रम से दांडी तक पदयात्रा प्रारंभ की थी, तब उन्होंने शपथ ली थी कि जब तक भारत स्वतंत्र नही हो जाता, वे साबरमती में कदम नही रखेंगे। महात्मा गाँधी का साबरमती आश्रम (गुजरात) दुनिया भर में प्रसिद्ध है। लेकिन उतना ही प्रसिद्ध उनका सेवाग्राम आश्रम भी है जो वर्धा(महाराष्ट्र) में स्थित है। इस आश्रम की खासियत यह है कि गाँधीजी ने अपने संध्याकाल के अंतिम 12 वर्ष यहीं बिताए। वर्धा शहर से 8 किमी की दूरी पर 300 एकड़ की भूमि पर फैला यह आश्रम इतनी आत्मिक शांति देता है जिसको आप शब्दों में नहीं पिरो सकते। 
 
इस आश्रम की कई खासियत हैं। गाँधीजी ने यहाँ कई रणनीति बनाईं, कईयों से मिले और बहुतों के जीवन को नई दिशा दी। यहाँ आकर ऐसा लगता है जैसे आप किसी मंदिर में पहुँच गए हों। सबकुछ शांत और सौम्य। आश्रम को समझने पर गाँधीजी का व्यक्तित्व भी आप ही समझ आ जाता है। यह आश्रम बापू के व्यक्तित्व का दर्पण है। अगर वाकई कोई गाँधीजी को, उनके दर्शन को और उनके जीवन को समझना चाहता है तो उसे सेवाग्राम आश्रम जाकर जरूर देखना चाहिए। वहाँ अब भी चरखे पर सूत काता जाता है। पारंपरिकता वहाँ जीवन्त है। स्वयं गाँधीजी भी वहाँ जीवन्त हैं। आश्रम देखकर सहसा विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि कोई महान पुरुष इस सादगी से भी रह सकता है।

तभी तो अल्बर्ट आइन्सटीन ने एक बार गाँधीजी के बारे में कहा था - 'मैं गाँधी को हमारे युग का एकमात्र सच्चा महापुरुष मानता हूँ। आने वाली पीढ़ियाँ कठिनाई से यह विश्वास कर पाएँगी कि गाँधी जैसा हाड़-माँस का बना व्यक्ति सचमुच इस धरती पर कभी टहलता था।' रात के खाने का आर्डर दे गूगल पर देख रहा था सेवाग्राम के बारे में... १० बजे खाना खा पकड़ लिए बिस्तर सुबह 7 बजे नीद खुली तो पता चला की अब निल्लोर आने वाला है .. बिस्तर छोड़ २ चाय मगाया... क्यों की माता जी ब्रश कर शीशे से बाहर देख रही थी.... चाय पि फ्रेश हुवे... अब तिरुपति बस १३० किलो मीटर रह गया था.. ट्रेन भी करीब करीब राईट टाइम हो चुकी थी... तो अब तिरुपति की जानकारी में जुट गए... 
बालाजी दर्शन तिरुमाला पर होते हैं, जो कि तिरुपति से सात पहाड़ दूर है, तिरुपति रेल्वे से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। और अगर कहीं और से आ रहे हैं, तो रेनुगुंटा स्टेशन पहले पड़ेगा जहाँ से तिरुपति मात्र १५ KM है .. तो हम निर्धारित समय अनुसार २८ अप्रैल को १० बजे तिरुपति पहुच ही गए.. इससे पहले मुझे तिरुपति बालाजी जी के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं थी तो सोचा था की तिरुपति में होटल में रुकेगे.. पूरी जानकारी लेगे फिर चलेगे माता जी को ले दर्शन के लिए उपर तिरुमाला ..सामान ले प्लेटफार्म से बाहर निकलने का रास्ता खोज ही रहे थे तभी ऑटो वाले, टैक्सी वाले लग गए .. वैसे ये पता था की तिरुपति से २० किमी दूर सात पहाड़ी में सबसे ऊपर तिरुमल में है बाला जी का मंदिर .. यहाँ वोल्वो बसे नहीं जाती । तिरुपति के बस स्टैंड से तिरुमाला की बस पकड़ सकते हैं जो कि हर दो मिनिट में उपलब्ध है। मंदिर देवस्थानम ट्रस्ट की ओर से भी बस चलती है जो कि फ़्री सर्विस है, वह हर आधे घंटे में उपलब्ध है। अगर आप अपनी टैक्सी या टैम्पो ट्रेवलर से जा रहे हैं तो तिरुमाला उसी से जा सकते हैं। टैक्सी वालो से पूछ ताछ करने पर पता चला की तिरुमाला के लिए बाहर से बस की सेवा है जो ४२/- पर ब्यक्ति और शेयर जिप जो ८५ रुपया पर ब्यक्ति के दर से तिरुमाला पंहुचा देते है... लेकिन तिरुमाला में कहा रुकना कैसे दर्शन करना कोई जानकारी न होने की वजह से मैंने टैक्सी करना ही मुनासिब समझा... मिल गए एक भाई... तिरुमाला पहुचने के लिए... बात पक्की हुई ५००/- की और रूम दिलवाने के एवज में १५०/- अतिरिक्त... बाहर निकल हम बैठ गए टैक्सी में... Drivar से पूछ ताछ शुरू की तिरुपति के बारे में.. सबसे पहले उनसे मेरी ID का फोटो कॉपी करवाया.. रस्ते में ही.. फिर चल पड़े उपर.. जैसे जैसे तिरुपति शहर से बाहर निकल रहे थे, तिरुमाला की ओर, मनोहारी दृश्य आते जा रहे थे, और इतना साफ़ सफाई देख आश्चर्य हो रहा था कि भारत में भी इतना साफ़ शहर मौजूद है। बहुत ही अच्छा रखरखाव है प्रशासन का, यह देखकर अच्छा लगा। पैदल चलने वालों के लिये अलग से फ़ुटपाथ बना हुआ था, जिस पर पैदल यात्री जा रहे थे, हमारे दायीं तरफ़ पहाड़ियाँ, हरियाली पूरी, शहर की सडको की हालत हमारे बनारस से बहुत ही बेहतर है .. हम वह नजारा देख ही रहे थे कि दूर से हमें भव्य द्वार नजर आया, ....शहर में करीब ३ किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में हमें ड्राईवर ने बताया कि यह यहाँ का टोल नाका है, गरुड़ टोलगेट जिसे पार करने के बाद ही करते हैं तिरुमाला के पहाडियों के लिए प्रस्‍थान किया जाता है जहाँ पर चैकिंग होती है कि आपके पास नशेयुक्त पदार्थ तो नहीं है जैसे कि बीड़ी, सिगरेट, शराब, गुटका इत्यादि। वहाँ पर लगभग आठ टोल बने हुए थे, और २५ रुपये का टोल । बालाजी के दर्शन के लिए गरुड़ टोल गेट को पार करना पड़ता है। माना जाता है कि गरुड़ जी की इजाजत मिलने के बाद ही विष्‍णु भगवान रूपी बालाजी का दर्शन होता है। वैसे सुरक्षा के लिहाज से भी यह उपयुक्‍त ही है। यहीं सुरक्षा कर्मियों द्वारा यात्रियों के एक एक सामान और गाड़ी की जाच की जाती है स्कैनर द्वारा, तभी ऊपर के लिए प्रस्‍थान करते हैं। रात १२ बजे से पहले ही गाड़ी वहां जाती है, उसके बाद सुबह के तीन-चार बजे तक गाडि़यों का प्रवेश वर्जित रहता है। वैसे पैदल का रास्‍ता भी है, जिसके लिए १८ किमी की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। पैदल वही लोग जाते हैं, जिन्‍होंने इसके लिए मन्‍नत मांगी है और उनकी मन्‍नत पूरी हुई है। खैर हम भी इस सुरक्षा प्रक्रिया से पास हो निकले.. बस जेब में रखे सिगरेट और पान मसाले को वहा जमा करना पड़ा.. शुरू हुई घुमावदार पहाडियों का रास्ता.. गर्मी भी ठीक ठाक ही थी... जब गाड़ी तिरुमला की पहाडियों की तरफ चली तो सड़क की खूबसूरती देखकर आश्‍चर्य हुआ कि क्‍या यह भारत के किसी तीर्थ स्‍थान की सड़क है? drivar से पूछने के बाद पता चला कि एक भक्‍त ने ९० करोड़ रुपए की  लागत से इस सड़क का निर्माण कराया है, वर्ना पहले एक ही सड़क से गाड़ी ऊपर जाती भी थी और नीचे उतरती भी थी। अभी आने और जाने के रास्ते अलग अलग है .. उस भक्‍त ने भगवान बालाजी से धन मांगा और उसमें उनका हिस्‍सा रखता चला गया था। जब यह हिस्‍सा ९० करोड़ पहुंचा तो उसने तिरुपति से तिरुमला तक सीमेंटेड सड़क का निर्माण करा दिया। करीब १९ साल पहले जब वह यहां आया था तो सड़क की जर्जर अवस्‍था को देखकर उसने बालाजी से कहा कि आप मुझे धन दीजिए मैं उसमें से आपके हिस्‍से से इस सड़क का निर्माण करा दूंगा। बालाजी ने छप्‍पड़ फाड़ कर उसे धन दिया और उसने भी अपना वायदा निभाया।

ज्‍यों-ज्‍यों हम पहाड़ी में आगे बढ़ते गए घाटी की खूबसूरती मन को मोहती चली गई। करीब १२ बजे हम पहुच गए तिरुमाला । तिरुमल चढने वाले भक्‍तों को आर्शिवाद देते हुए खड़े हैं भगवान श्री महागणपति। पहाड़ की तराई में टेढे-मेढे रास्‍तों को पार कर भक्‍त जन कलियुग बैकुंठ कहे जाने वाले तिरुमला के प्रवेशद्वार पर पहुंचते हैं। यहां प्रवेश करने वालों का स्‍वागत द्वारपाल जय और विजय हाथ जोड़कर करते हैं। तिरुमला में प्रवेश करते ही विष्‍णु के महाअवतार श्रीकृष्‍ण कुरुक्षेत्र में अर्जुन को उपदेश देने की मुद्रा में खड़े हैं। 
 


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