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Saturday, March 11, 2017

ट्रोल क्या है

जब से इन्टरनेट पर सामाजिक बहस छिड़ी है , लोग सोचने समझने लगे है बहस करते है, तर्क देते है, एक संवाद होता है , लेकिन अगर किसी की बात सुनना न चाहे तो फिर एक साधन है ट्रोल, ट्रोल का अर्थ होता है पीछा करना या किसी के पीछे पड़ जाना , ट्रोलिंग का अर्थ होता है कि किसी की बात पसंद न आये तो उसके आईडी के पीछे पड़ना और उसे लेकर गाली-गलौज करना , जिसके लिए वह ट्रोल कर रहा है उसकी आलोचना देखते ही "साँड" हो जाना और आलोचना या कोई सवाल कर रहे व्यक्ति की "माँ बहन" कर देना , मेन्शन कर के उस पोस्ट पर और ढेर सारे ट्रोल को बुला लेना और एक एक करके गाली-गलौज करना , फोटोशाप से कट पेस्ट करके किसी की अश्लील चित्र बनाना और उसे वायरल कराना।

इनका एक ग्रुप होता है जो ट्रोलिंग के लिए होता है और वहाँ ऐसी पोस्ट के लिंक पोस्ट किए जाते हैं और आईडी या वह पोस्ट रिपोर्ट कराई जाती है या फोटोशाप किये चित्र वायरल कराए जाते हैं। कुछ ट्रोल जो चालाक होते हैं वह खुद को बचाने के लिए उस फोटोशाप की हुई तस्वीर को पोस्ट कर उसकी निंदा करते हुए कैप्शन लगाते हैं कि "ऐसा करना ठीक नहीं" जिससे वह तस्वीर वायरल हो।इंटरनेट की दुनिया में ट्रोल का मतलब उन लोगों से होता है, जो किसी भी मुद्दे पर चल रही चर्चा में कूदते हैं और आक्रामक और अनर्गल बातों से विषय को भटका देते हैं. अगर ये नहीं तो फिर इंटरनेट पर दूसरों को बेवजह ऐसे मामले में घसीटते हैं, जिससे उन्हे मानसिक परेशानी हो.

अक्सर यह सभी ट्रोल एक ग्रुप में आपस में मिले होते हैं और एक दूसरे को ऐसी पोस्ट को शेयर करते हैं कि किस पोस्ट पर अटैक करना है।

खैर, ट्रोल का जन्म 2012 से होता है जब गुजरात चुनाव नरेंद्र मोदी जीत जाते हैं और उनको प्रधानमंत्री पद के लिए प्रायोजित किया जाने लगता है , नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने तक ट्रोल लोगों के आतंक से सोशलमीडिया आतंकित था । सोनिया गाँधी से प्रियंका गाँधी , डाक्टर मनमोहन सिंह से लेकर राहुल गांधी तक और यहाँ तक कि महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू तक के अश्लील फोटोशाप सोशलमीडिया पर वायरल कराए गये और जिस आईडी और पोस्ट की चाही इन ट्रोल लोगों के गिरोह ने ऐसी की तैसी कर दी।

एक एक पोस्ट को अश्लील नग्न तस्वीरों और अश्लील गालियों से भर दिया। आजकल राजनैतिक लड़ाइयां सोशल मीडिया पर लड़ी जा रही हैं। सोशल मीडिया पर ही फैसला हो जाता है कि मतदान केन्द्र पर क्या होने वाला है? इसके लिए राजनैतिक पार्टियां एक-दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोडती, ट्रोल को इस बात की ट्रेनिंग होती है की अपने विरोधी को चुप करा दिया जाये, ताकि वहा कोई भी संवाद न हो सके.

ट्रोल के कई प्रकार है जिसमे सबसे खतरनाक है, आक्रामक ट्रोल.. आक्रामक ट्रोल भी बहुत चर्चा में है। किसी साधारण सी बात से भी आप अगर असहमत हो, तो इतना आक्रामक लिखो कि सामने वाला लज्जित हो जाए। इसमें व्यंग्य की धार हो, गालियों की बौछार हो, पैरोडियां हो, लतीफे हों, मने सामने वाले को इतना लज्जित कर दो की वो सोसल संवाद ही न कर सके.

इन्सल्ट ट्रोल में  सामने वाले के प्रति नफरत का भाव प्रकट करने के लिए कोई भी कारण होना जरूरी नहीं है। उसका नाम लो और गालियां दो। इतना नकारात्मक लिखो कि सामने वाला शर्म से लज्जित हो जाए। इसे इसे साइबर बुलिंग भी कहा जाता है।

लैंग्वेज और ग्रामर ट्रोल भी बहुत चलन में है। किसी ने टिप्पणी लिखते वक्त जरा सी भी अर्द्धविराम या पूर्णविराम की भी गलती कर दी कि उस पर पिल पड़ो। लिख दो कि सामने वाला निहायत ही कमजर्फ व्यक्ति है, उसे कोई अक्ल नहीं। उसे तो भाषा तक लिखना नहीं आता, ग्रामर के नियम उसके खानदान में किसी ने नहीं पढ़े। इसी के साथ अतिरंजना वाले ट्रोल भी बहुत चर्चा में है। कोई एक बात कहे और आप उसे बढ़ा-चढ़ाकर इतनी बार लिखने रहो कि सामने वाले को भविष्य में कुछ भी लिखने से पहले हजार बार सोचना पड़े।

विषय से हटकर किए जाने वाले ट्रोल और एक अक्षर के ट्रोल भी सोशल मीडिया पर बहुत महत्व रखते है। कई लोग ऐसे है, जो राम कहे जाने पर पूरी रामायण सुनाने लगेंगे। सामाजिक न्याय लिख दो, तो वे पुणे पैक्ट तक चले जाएंगे। इतिहास को तार-तार कर देंगे। नायक को खलनायक और खलनायक को नायक बना देंगे और ऊपर से शेखी बघारेंगे कि ज्ञान की पूरी गंगा तो उन्हीं के पास है। इसके अलावा कई लोग ऐसे है, जो एक अक्षर या एक शब्द में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर देते है। आप कितनी भी महत्वपूर्ण बात लिखो, वे कमेंट कर देंगे- ‘क्या’, ‘येस’, ‘नो’, ‘के’ आदि-आदि। ये लोग अपने आप को इतना महत्वपूर्ण बताते है कि ओके के दो अक्षर टाइप करना भी इनको गवारा नहीं। लगता है ये सोशल मीडिया के यूजर नहीं, किसी महान मल्टीनेशनल कंपनी के सीईओ है। ये एक उभरता हुवा कैरियर है trolling, एक तो आप के समजने के लिए एक विडियो है
बिना बात के ट्रोल करने वालों की भी बढ़ी संख्या है। अपने आप में कुंठित हो चुके लाखों लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय है, जिन्हें दूसरों में कमियां ही कमियां नजर आती है। कुछ ऐसे लोग भी होते है, जिन्हें लाइक्स और फॉलोअर्स की भूख होती है, इन्हें लगता है कि पूरी दुनिया इनकी हर बात को लाइक करें और उनको फॉलो करती रहे। इस तरह के लोगों को यह मुगालता होता है कि वे दुनिया के महानतम लोग है।

सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स को चैन नहीं हैं. उन्हें हर दिन एक नया शिकार चाहिए होता है. 2014 के बाद ट्रोलों में कमी आई और बिहार चुनाव के बाद लगभग समाप्त ही हो गयी। परन्तु उत्तर प्रदेश के चुनाव के पहले से फिर ट्रोल प्रजाति ने जन्म लिया

देते रहिए गालियाँ करते रहिए ट्रोलिंग , इससे आप किसी और का नहीं नाम का नुकसान कर रहे हैं।

जैसे जैसे जनरेशन आगे बड रही है इसका स्वरूप भी चेंज हो रहा है , पहले आडियो अब वीडियो. और ट्रोल करवाने में मुख्य भूमिका अदा करते हैं ये पीआर और मार्केटिंग वाले. अक्षय कुमार ने थम्स्प का एड बनाया ये उसे बिकवाने के लिए तुरंत हैश टेग फलाना ढीमकाना लिख कर चालू करवा देते हैं. अच्छा पहले ये सोशल मीडिया में अपनी मजबूत फोलोइंग और पकड़ बनाते हैं उसके बाद इस ट्रोल करने के पैसे भी लेते हैं. एक हेश टेग का 30 रूपया,20 रूपया अलग लग रेट चल रहा सब जगह.

पीआर का काम देख रही कम्पनियां इस पर आजकल बहुत डिपेंड करने लगी हैं चुनाव हो या प्रोडक्ट लांचिंग हर समय इनके दिमाग में एक ही बात रहती है चलो हैश टेग करें . आओ हैश टेग करें .

लेकिन इण्डिया है यहाँ कब कैसे कौनसी चीज ट्रोल करेगी कोइ नहीं जानता. वैसे जिन्हें पता ना हो बता दूं हर राजनैतिक पार्टी में भले ही बूढ़े डिजिटल वर्ड से अनजान हैं लेकिन उन्होंने भी यंग ब्लड को एज ए सोशल मीडिया विंग रखा हुआ है जिनका काम है ट्रोलिंग में मदद करना . मदद क्या करना चीजों को ट्रोल करवाने की कोशिश करते रहना. आप कुछ भी लिखिए सोशल मीडिया में ये सिपाही तुरंत उसे कापी पेस्ट करके अपने नाम से और एक हेश टेग के साथ फैलाने लग जाते हैं.

बहुत बड़ा टापिक है इसलिए इससे आगे की जानकारी कभी और . आज के लिए इतना ही . इसके फायदे नुक्सान कैसे आया कहाँ से आया पहले के केस आज के केस कितने मरे कितने ज़िंदा. ये सब रीसर्च का विषय है 
वैचारिक विरोध से ट्रोलिंग तक देश आजकल एक नई तरह की हिंसा देख रहा है, कहने को तो ये हिंसा सोशल मीडिया पर है यानी कि ये सिर्फ शाब्दिक हिंसा है लेकिन सच पूछा जाए तो इसका असर शारीरिक हिंसा से कम नहीं है. 


जब सोशल मीडिया का असर सरकार और समाज पर इतना बड़ा हो तो कोई इसे नजरअंदाज कैसे करे. लेकिन अब सवाल ये है कि इसके बुरे असर से बचने का रास्ता क्या है. जवाब बेहद मुश्किल है.


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