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Saturday, March 25, 2017

आखिर ये धर्म है क्या ?

अभी बेटे का एग्जाम ख़तम हुवा, परेशान हो गया था वो ,हफ्ता हो गया अब उने वापसी का टाइम तो तो कल पशुपति नाथ मंदिर मंदिर गया था दीवाल पर एक नया वाल तो माँ मने मेरी धर्म पत्नी के साथ आ गए काठमांडू. एक  पेंटिंग लगा था ।। धर्म के लिए जीना सीखिए ।।  चुकी हाथ में पूजा का सामान पकडे थे नहीं तो फोटो खीच लेता लेकिन ये बात पड़ के सर चकरा गया। अब चूकि धर्म पत्नी साथ में थी तो धर्म पे वार्तालाप हो नहीं सकता था । ये सोच के की जब धर्म साथ में ही है तो क्या सीखे , मन मसोस के रह गए तो चुपचाप रहना ही उचित समझा । खैर शांत मन से मंदिर के अन्दर घुसा, लाईन लम्बी थे तो लग गए सबसे आगे धर्म पत्नी जी बिच में सुपुत्र जी पीछे है सिर्फ "पति" जिसमे कोई धर्म का सरोकार नहीं , लगे शिव जाप करने

नागेन्द्र हराया त्रिलोचानाया बस्मंगा रागाया महेस्वराया निथ्याया शुधाया दिगम्बराया तस्मै॑ नकाराया नमशिवाया शिवा त्राहिमाम शिवा त्राहिमाम शिवा त्राहिमाम शिवा त्राहिमाम महादेव जी त्राहिमाम, 
 
यही जपते अपना भी नंबर आ गया, धर्म पत्नी को फुसफुसा रहे थे, "अक्षर " को अब पूजा पाठ में schedule करो,

अब सीखे धर्म संस्कार, तभी पत्नी जी ने बताया की "हनुमान चालीसा पूरा पड़ लेते है, तब तक अपना भी नंबर आ गया, पहुच के बाबा पशुपति नाथ की साक्षात् आराधना की , शिवोहम हुवे मंदिर के फेरे लिये, अब अन्दर की परिक्रमा के लिए बासुकी नाथ, के साथ सब छोटे बड़े भगवान को हाथ जोड़ते , गणेश जी के मंदिर पहुचे टिका लगवाया अक्षर को, धर्म की चकरी चलवाई अक्षर से, फिर भैरो नाथ में अक्षर को टिका लगवा, चन्दन ले मंदिर के बाहर निकले, अब पत्नी के साथ तीर्थ कर रहे है , इस मॉडर्न युग में तो फोटू तो बनता ही है, सेल्फी ले चले जूता लेने , १० बज चुके थे अब आफिस तो का टाइम भी हो रहा था , तो चले गौ शाले की तरफ, पहले कबूतर देख बेटा दाना डालने की जिद कर बैठा तो दाना दिलाया, दाना डालने के क्रम में ही एक गाय भी आ गयी तो बचा दाना गाय माता को दल दिया क्यों की मुझे अब लेट हो रहा था , अब तुरंत गौ शाले के तरफ कूदे वहा २५०० की स्लिप कटवाई, बेटे के हाथ से एक दो फोटो मारा, अब कुछ खाने के लिए, लेट हो रहा था , खैर नास्ता झोर वापस घर की तरफ , घर पहुच कर बैग ले ओफ्फिस ३० मिनट लेट...




शाम को घर लौटा तो सोचने लगा गजब स्लोगन लिखा है अब धर्म के लिए कैसे जिया जा सकता है ।या तो धर्म से जिया जा सकता है या धर्म के बिना जिया जा सकता है । अब धर्म से जीवन सरल हो सकता है जिन्दगी आसान हो सकती हैं तो धर्म से जीना तो ठीक है क्योंकि धर्म हैं ही धारण करने योग्य । तो जो जीवन जीने के लिए अपनाया जा सकें वो सब धर्म हैं ।

धर्म के बगैर भी जिया जा सकता है पर वो केवल जबरन ना मानने वाली बात होगी क्योंकि वो सभी बातें जिनसे जीवन प्रभावित हो सकता है धर्म के अंतर्गत आती हैं । तो ऐसे में जीवन जीते हुए उन्हीं सब चीजों के विरोध में खड़े होना जिनका निषेध संभव ही नहीं कोरे झूठ से ज्यादा कुछ भी नहीं ।पर धर्म के लिए जीना तो विचित्र बात है ऐसा लगता है कि भगवान खुद अपने व्यवसाय का प्रचार कर रहे हो जो कि शायद कुछ मंदा चल रहा हो । और लोगो को ये बताया जा रहा हो कि केवल धर्म के लिए ही जीवन के सारे क्रिया कलाप करने हैं जिससे उसे हानि से लाभ की स्थिति में लाया जा सके ।


इसी मंथन में ओफ्फिस का काम भी करता रहा, बेटे के साथ बात भी करता रहा .. उधर पत्नी जी किचन में खाना बनाते हुवे अपने फोटो फेस बुक पर डाल रही थी ... उधर मेरे फेसबुक पर पत्नी जी के बहन का ये कमेन्ट आया इस फोटो को देख कर "Gau seva......following yogi......good" हम फिर चकरा गए थे तो हमने सिखा भगवान, धर्म संस्कार, लेकिन उतना ही जितना उनको लगा की वो सिखा सकते है

 
आखिर ये धर्म है क्या ?

हम बचपन में माँ बाप के द्वारा धर्म को सीखे है... आगे पिता जी बीच में हम पीछे माता जी, चलना है मंदिर, पूजा करनी ही है, ये मंत्र पड़ना पड़ेगा... उस समय हम क्या करते, सब कुछ करना ही पड़ा, बिना पूजा किये भोजन नसीब नहीं होता, तो पापी पेट का सवाल, समझ गए तब,

अब वही प्रक्रिया हम रिपीट कर रहे है, अपने बेटे के साथ, मंदिर जाना है, पूजा करना है, गाय को खाना देना ही है, नहीं तो...

लेकिन औरो के काम में पंगा लेना न सिखा न बेटे को सिखाता हु, मैंने जो सिखा है, बस बेटे को उतना ही सिखाना है... अगर कोई कमी है तो आपस में बात चित से सहमती बनायेगे, लेकिन दुसरे के साथ पंगा क्यों करना महराज,

हमने तो मनु इस्मृति पड़ी है उसके अनुसार

मनु ने धर्म के दस लक्षण बताये हैं:

    धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
    धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥


    (धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरङ्ग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना) ; ये दस धर्म के लक्षण हैं।)

जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये - यह धर्म की कसौटी है।

    श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्।
    आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ॥


    (धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।)

धर्म के मुख्यतः दो आयाम हैं। एक है संस्कृति, जिसका संबंध बाहर से है। दूसरा है अध्यात्म, जिसका संबंध भीतर से है। धर्म का तत्व भीतर है, मत बाहर है। तत्व और मत दोनों का जोड़ धर्म है। तत्व भीतर है, मत बाहर है। तत्व और मत दोनों का जोड़ धर्म है। तत्व के आधार पर मत का निर्धारण हो, तो धर्म की सही दिशा होती है। मत के आधार पर तत्व का निर्धारण हो, तो बात कुरूप हो जाती है।

धर्म के मुख्यतः दो आयाम हैं। एक है  संस्कृति, जिसका संबंध बाहर से है । दूसरा है अध्यात्म, जिसका संबंध भीतर से है। धर्म का तत्व भीतर है, मत बाहर है। तत्व और मत दोनों का जोड़ धर्म है। तत्व के आधार पर मत का निर्धारण हो, तो धर्म की सही दिशा होती है।

पर मूल बात तो ये है कि धर्म कोई व्यवसाय नहीं हो सकता, धर्म किसी मुनीम का बहीखाता नहीं हो सकता, धर्म कोई बैंक नहीं हो सकता, धर्म किसी ऐक की जागीर नहीं हो सकता क्योंकि धर्म विशुद्ध और विशुद्ध रूप से जीवन जीने का उपक्रम हैं बगैर उसके जीवन की न तो संभावना है न ही संरचना ।


विचार मेरे मैं गलत भी हो सकता हूँ।अब सिखाना क्या चाइये बेटे को उपर वाला धर्म या निचे का ओशो प्रवचन

छोटे कपड़ों वाली लड़कियां। फैशनेबुल लड़कियां। नौकरी करती लड़कियां। शराब सिगरेट पीने वाली लड़कियां।

ऐसी लड़कियां बहुत से लोगों को पसन्द नहीं होतीं। लेकिन मुझे पसंद हैं। मेरी आदत है मैं जब किसी के बारे में सोचता हूँ, तो खुद को उस जगह पर रख देखने की कोशिश करता हूँ। सतही ही सही, लेकिन यही वाजिब भी लगता है। जब मैं किसी छोटे कपड़े वाली, खुली कमर और टांगों वाली, स्लीवलेस पहने, बिना दुप्पटा-पल्ला लिए निकलने वाली लड़की को देखता हूँ तो बरबस ही उसके प्रति सम्मान पैदा हो जाता है। सोचता हूँ मैं होता तो क्या ऐसी दुनिया में ऐसे कपड़े पहनने की हिम्मत कर पाता जहाँ चार परत ओढ़े बदन को।लोग नज़रों से चीरने की कुव्वत रखते हैं। मुझे सोच कर ही असहज महसूस होने लगता है। उन लड़कियों की बेपरवाही और सहजता देख कर महसूस होता है कि उन्होंने एक लंबा रास्ता तय किया है। कदम दर कदम ही सही, उन्होंने बेड़ियां तोड़ी हैं। जहाँ कपड़े पहनने, न पहनने, कपड़ों के डिजाईन, रंग और फिटिंग तक पर समाज की बपौती हो वहां कम से कम मेरी हिम्मत तो नहीं होती आगे बढ़ कर नज़र में चढ़ने की। इसी तरह सिगरेट शराब पीने वाली लड़कियां भले ही ग़लत हों, लेकिन अपने आप में क्रन्तिकारी सी लगती हैं। शराब पीने वाले पुरुषों के साथ बैठ कर पीना, डिस्को में लार टपकाती नज़रों के बीच लापरवाह होने की हिम्मत और खुल कर ज़िन्दगी जीने की ललक पुरुषों में तो कम ही दिखती है। अपनी ललक के लिए कोई भी रिस्क लेने की अदा इन लड़कियों को बेहद दमदार शख़्सियत बना देती हैं मेरी नज़र में। नौकरी करने वाली लड़कियां हर दिन इस बात को डंके की चोट पर झुठला रही है कि लड़कियां घर की चारदीवारी में बेहतर लगती हैं। लड़कियों का काम चूल्हा चौका ही नहीं है, ये बात दिन में किये जाने वाले हर फोन कॉल के साथ पुख़्ता कर देती हैं ये लड़कियां। और ऐसा ही मेरा लाइफ स्टाइल है, क्यों की मी ये सब अपनी पत्नी में ही देख लेता हु,
मुझे नहीं पता ऐसा सिर्फ़ मेरे साथ ही होता है या आपको भी लगता है ऐसा, लेकिन यकीन मानिए, जब आप अपनी पत्नी को इनके व्यक्तित्व की मजबूती के साथ देखेंगे तो आपको सच में बहुत प्यारी, बहुत खूबसूरत, बहुत भरोसेमंद नज़र आएंगी। वैसे भी दुनिया का ठेका नज़रिए ने ही दिया था। नजरिया बदलते ही ठेकेदार बदल जाते हैं। ये शायद धर्म का डर है । लेकिन हम तो ऐसे ही है भईया, सुबह वो धर्म कर लिए अब रात्रि में पत्नी के साथ ऐसे ही सोच को यथार्थ में बदलते है, पत्नी जी जा चुकी है बनारस के लिए, हम क्वाटर लड़ा रहे है, इस मंथन के साथ...की

कर्नाटक,महाराष्ट्र और आँध्र में लिंगायतों के शैव सम्प्रदाय का असर है।इस सम्प्रदाय की स्थापना बसव ने की थी, वह कल्याणी के राजा कालचूरी बिज्जल के प्रधानमंत्री थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उन्होंने 1156में चालुक्य शासकों के सिंहासन पर क़ब्ज़ा कर लिया था । उन्होंने वेदों की प्रामाणिकता को अस्वीकार किया । ब्राह्मणों के आदेशों और निषेधों को मानने से इंकार किया।तीर्थ यात्राओं और यज्ञों का उपहास किया।सभी नर-नारियों की समानता पर जोर दिया।

शैव सिद्धांत के अनुसार पशु,पाशम् और पति ये तीन बंधन हैं, इन तीनों से मुक्ति के लिए ईश्वर की शरण में जाओ।बसव ने शैव सम्प्रदाय की स्थापना 1160 में की थी। वे मानते थे महिलाओं को समानता का स्तर और स्वतंत्र दृष्टिकोण मिले, जात-पाँत खत्म हो, जीवन में उद्देश्यपरकता और सादगी आए,रोज़गारों और शारीरिक श्रम को प्रोत्साहन मिले।

चलते चले बस यही कहना है की एक सफल जीवन के कई पहलु है, जिसमे समाज, परिवार, धर्म और संस्कार आते है, अब धर्म का पहला मतलब जो है सो तो हयिये है, लेकिन पारिवारिक संतुस्ती पहले है तभी आप ( अच्छे दिन ) की तरफ जा सकते है अब आप पाने जीवन में देख लीजिये न शास्त्रों में कहा गया है की
कराग्रे वसते लक्ष्मी

कर मध्ये सरस्वती

कर मूलेतु श्री हरि
प्रभाते कर दर्शनम्

सुबह 5 बजे उठते ही कल ..बाबा सरबताचार्य कि देववाणी कानो में गूंजी चाहिए ... मतलब

" हे भक्त ! तेरे हाथो के अगले भाग में सरस्वती , मध्यभाग में सरस्वती, और हाथो के मूल में साक्षात भगवांन का वास होता है, इसी लिए सुबह उठाते ही सर्व प्रथम इनका दर्शन करना चाहिए ...बोलो "राधे राधे "
अपन के जीवन का सार भी यही है इस लिएहर दिन उठ कर

चट से दोनों हाथों को आँखों पे रगड़ माँ लक्ष्मी, सरस्वती और त्रिलोकिनाथ का दर्शन कर दिन शुभ कर लेते है  :)

नित्य कर्म से मुक्त हो चाय की प्याली के साथ लक्ष्मी जी प्रकट होती है  .. और सारंगी के स्वर में उवाचती है
" ए जी , सुनिए !

" B G सुनाईये ? "

(B G से मेरा मतलब बीबी है AG से मतलब ...नहीं पता ;) )

बेटे की आज से छुट्टी हो गयी है, मिसेज पटनायक के साथ मै

आज मार्केटिंग को 10 बजे जा रही हूँ , कुछ पैसे दे जाना ..

12,000 लक्ष्मी ..लक्ष्मी के हवाले करते मन में आरती गुंजी

" तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा ...." आखिर कराग्रे वस्ति लक्ष्मी ... सिद्ध हुवा ....

चाय से निवर्त होते ही १४ साल का बेटावा .....माँ सरस्वती के विद्याबैंक किताबो के सथ खड़ा था ..." पापा एग्गो बात बतावोगे ?

दुग्गो पूछ मेरे लाल !

पापा, to -टू , do- डू , तो go - गू , क्यों नहीं होता ...

बेटा तेरा मौसा , अंग्रेजी में मास्टर है इसी हप्ते आने वाला है

उसी से पूछ लेना ...बल्कि तू सवालों की लिस्ट अभी से रेडी रख साक्षात् सरस्वती माँ विर्सजमान हैं उसकी मुन्ड़ी में ...हमको बक्स दे ....

(माँ सरस्वती यो प्रकट होंगी सोंचा न था )

थका हारा शाम 6 बजे घर पहुंचते ही BB लपक के दरवाजा खोली तो,बदन सिहर उठ्ठा ...एतना पियार ..."खतरा !!

सामने नजर पड़ी तो "मेहमान के रुप में भगवाँन " उर्फ़ श्री हरि विराजमान थे दर्शन देने को ...साले की जगह सासु पकौड़ो कि सर्जिकल स्ट्राइक किये जा रही था और होम थियेटर पे बज रहा था ....

"मेहमान जो हमारा होता है वो जान से प्यारा होता है "

मतलब साफ था ...

अब कल से .........लक्ष्मी डबल स्पीड में आगे, भगवान रूपी मेहमान का 3 माह सर्जिकल स्टाईक और सबसे बड़ी बात....

माँ सरस्वती ... साले से ज्यादा मुझ पे मेहरबांन् है ..

रहम करो मितरोँ , आप ही बता to -टू ...do - डु , तो .. go - गो क्यों ?

अब समझते रहिये की इस पारिवारिक बंधन में धर्म क्या है !!!! धर्म यही है की अग्नि का फेरा लीजिये, गदहे की तरह नौकरी कीजिये, महीने की १ तारिक को पत्नी श्री एटीएम में कार्ड डाल पैसा निकल कर घर चलाये , और पत्नी का चमकता चेहरा देखते रहिये दूर धर्म पर ज्ञान पलते रहिये फेसबुक व्हाट्स एप पर और आप जीवन की कहानी लिखते रहिये 
!! हरि बोल !!
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