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Tuesday, October 15, 2019

MUKTINATH :NEPAL : यात्रा मुक्तिनाथ की

Mustang Trip 
(Kathmandu-Pokhara-Beni-Tatopani-Marpha-Jomsom-Muktinath)

मुक्तिनाथ यह माना जाता है कि एक बार इस मंदिर में जाने से सभी प्रकार के कष्ट/शोक से राहत मिल जाती है (मुक्ति=निर्वाण, नाथ=भगवान) भगवान मुक्तिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर नेपाल के धौलागिरी अंचल के मुस्तांग जिले में, जोमसोम से १८ किमी उत्तर पूर्व में लगभग ३७४९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मुख्य मंदिर पैगोडा आकार में भगवान विष्णु को समर्पित एक मंदिर है। इसके चारों ओर दीवार में बने १०८ गौ मुख जल धारा है जहा से काली गण्डकी नदी का प्रारंभ है। आज से करीब दो अरब वर्ष पूर्व पृथ्वी पर सृष्टि की शुरुआत हुई थी। विश्व बह्मांड में सभ्यता की शुरुआत जंबूद्वीप के आर्यावर्त से हुई थी। पुराणों के अनुसार, हमारी पृथ्वी ७ भागों और ४ क्षेत्रों में बंटी हुई है। उसमें सर्व प्रथम मानव सभ्यता का विकास सरीसृप युग के बाद जंबूद्वीप में हुआ। उस जंबूद्वीप में चार क्षेत्र, चार धाम, सप्तपुरी आदि का वर्णन मिलता है। उस क्षेत्र में प्रमुख मुक्ति क्षेत्र हिमवत खंड हिमालय नेपाल में पड़ता है। इन चार क्षेत्रों में प्रमुख क्षेत्र है मुक्तिक्षेत्र। नेपाल के पूर्व दिशा में वराह क्षेत्र नेपाल से बहने वाली गंडकी नारायणी और गंगा के संगम में हरिहर क्षेत्र और विश्व प्रसिद्ध कुरुक्षेत्र भारत में पड़ता है।


शांडिल्य ऋषि द्वारा संरक्षित गंडकी नदियों में प्रमुख काली गंडकी में अवस्थित शालिग्राम पर्वत और दामोदर कुंड के बीच भाग में त्रिदेवों में एक ब्रह्मा ने मुक्तिक्षेत्र में यज्ञ किया था। उस यज्ञ के प्रभाव से अग्नि ज्वाला रूप में रुद्र भगवान शिव और शीतल जल के रूप में भगवान नारायण विष्णु उत्पन्न हुए थे। इसी से सर्व पाप विनाशिनी मुक्तिक्षेत्र का प्रादुर्भाव हुआ था और उस में सती वृंदा के श्राप से शिला रूप होने का जो श्राप भगवान विष्णु को मिला था, उस श्राप से मुक्ति के लिए शालिग्राम शिला के रूप में उत्पन्न हुए थे। इसलिए इस क्षेत्र का नाम मुक्तिक्षेत्र पड़ा। 



भगवान मुक्तिनाथ एवं मुक्तिक्षेत्र की महत्ता पूजा-अर्चना वैदिक काल एवं पौराणिक काल से अनवरत चली आ रही है। उपनिषद एवं ब्रह्मसूत्र तथा स्कंद,वाराह,पद्म, ब्रह्मांड सहित सभी पुराणों में मुक्तिक्षेत्र व शालिग्राम का विस्तार से वर्णन मिलता है। श्री भगवान मुक्तिनाथ नारायण का स्वरूप, आदि शालिग्राम स्वरूप जो सती वृंदा के श्राप के कारण भगवान विष्णु ने गंडकी नदी में शिला रूप धारण करके मोक्ष प्राप्त किया था। अन्य शालिग्राम भगवान नारायण की आज्ञा स्वरूप विश्वकर्मा ने बज्रकीट के रूप धारण करके सहस्र वर्षों तक विभिन्न रूपों एवं शालिग्राम शिला निर्माण करके शालिग्राम पर्वत प्रकट किए। 
 
ऐतिहासिक काल में आदि शालिग्राम गर्भगृह में स्थापित करके बाहर भगवान नारायणकी मूर्ति मुक्तिनाथ नारायण तथा बुद्ध भगवान लोकेश्वर जैसी भी लगती है। इसलिए यह हिंदू और बौद्ध धर्म को मानने वालों के बीच आस्था और धार्मिक सहिष्णुता का केंद्र बना हुआ है। विभिन्न पुराणों में वर्णित कथानुसार भगवान श्री बद्रीनाथ और मुक्तिनाथ के बीच में अनन्य संबंध है क्योंकि भगवान बद्रीनाथ के गर्भगृह में शालिग्राम भगवान की पूजा होती है। इसी तरह भगवान जगन्नाथ का भी दारु विग्रह है और उनके गर्भगृह में भी शालिग्राम भगवान की पूजा होती है। मुक्तिनाथ धाम के दामोदर कुंड जलधारा और गंडकी नदी के संगम को काकवेणी कहते हैं। इस जगह पर तर्पण करने से २१ पीढि़यों का उद्धार हो जाता है। रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम भी गंडकी नदी के किनारे स्थित था। यहीं पर देवी सीता ने लव-कुश को जन्म दिया था। आज से ३०० साल पहले अयोध्या में जन्मे अद्भुत बालक स्वामी नारायण ने भी कागबेनी के मध्य एक शिला पर कठोर तप करके सिद्धि प्राप्त की थी। 

मुक्तिनाथ की पौराणिक कथा मुक्तिनाथ वैष्‍णव संप्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह तीर्थस्‍थान भगवान शालिग्राम के लिए जाना जाता है। शालिग्राम दरअसल एक पवित्र पत्‍थर होता है जिसको हिंदू धर्म में पूजनीय माना जाता है। यह मुख्‍य रूप से नेपाल की ओर प्रवाहित होने वाली काली गण्‍डकी नदी में पाया जाता है। जिस क्षेत्र में मुक्तिनाथ स्थित हैं उसको मुक्तिक्षेत्र' के नाम से जाना जाता हैं। हिंदू धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार यह वह क्षेत्र है, जहां लोगों को मुक्ति या मोक्ष प्राप्‍त होता है। मुक्तिनाथ की यात्रा काफी मुश्किल है। फिर भी हिंदू धर्मावलंबी बड़ी संख्‍या में यहां तीर्थाटन के लिए आते हैं। यात्रा के दौरान हिमालय पर्वत के एक बड़े हिस्‍से को पार करना पड़ता है इस लिए यह हिंदू धर्म के दूरस्‍थ तीर्थस्‍थानों में से एक है।  
 
मुक्तिनाथ १०८ दिव्‍य देशों में से एक है। यह 'दिव्‍य देश' वैष्‍णवों का पवित्र मंदिर कहा जाता है । पारंपरिक रूप से विष्‍णु शालिग्राम शिला या शालिग्राम पत्‍थर के रूप में पूजे जाते हैं। इस पत्‍थर का निर्माण प्रागैतिहासिक काल में पाए जाने वाले कीटों के जीवाश्‍म से हुआ था, जो मुख्‍यत: टेथिस सागर में पाए जाते थे। जहां अब हिमालय पर्वत है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार शालिग्राम शिला में विष्‍णु का निवास होता है। इस संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं। इन्‍हीं कथाओं में से एक के अनुसार जब भगवान शिव जालंधर नामक असुर से युद्ध नहीं जीत पा रहे थे तो भगवान विष्‍णु ने उनकी मदद की थी। कथाओं में कहा गया है कि जब तक असुर जालंधर की पत्‍नी वृंदा अपने सतीत्‍व को बचाए रखती तब तक जालंधर को कोई पराजीत नहीं कर सकता था। ऐसे में भगवान विष्‍णु ने जालंधर का रूप धारण करके वृंदा के सतीत्‍व को नष्‍ट करने में सफल हो गए। जब वृंदा को इस बात का अहसास हुआ तबतक काफी देर हो चुकी थी। इससे दुखी वृंदा ने भगवान विष्‍णु को कीड़े-मकोड़े बनकर जीवन व्‍यतीत करने का शाप दे डाला। फलस्‍वरूप कालांतर में शालिग्राम पत्‍थर का निर्माण हुआ, जो हिंदू धर्म में आराध्‍य हैं। पुरानी दंतकथाओं के अनुसार मुक्तिक्षेत्र वह स्‍थान है जहां पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहीं पर भगवान विष्‍णु शालिग्राम पत्‍थर में निवास करते हैं। मुक्तिनाथ बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए भी एक महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। इसी स्‍थान से होकर उत्‍तरी-पश्चिमी क्षेत्र के महान बौद्ध भिक्षु पद्मसंभव बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए तिब्‍बत गए थे

शिवलिंग की तरह शालिग्राम भी बहुत दुर्लभ है। अधिकतर शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गण्डकी नदी के तट पर पाया जाता है।काले और भूरे शालिग्राम के अलावा सफेद, नीले और ज्योतियुक्त शालिग्राम का पाया जाना तो और भी दुर्लभ है। पूर्ण शालिग्राम में भगवाण विष्णु के चक्र की आकृति अंकित होती है।

शालिग्राम के प्रकार:- 
विष्णु के अवतारों के अनुसार शालिग्राम पाया जाता है। यदि गोल शालिग्राम है तो वह विष्णु का रूप गोपाल है।यदि शालिग्राम मछली के आकार का है तो यह श्री विष्णु के मत्स्य अवतार का प्रतीक है। यदि शालिग्राम कछुए के आकार का है तो यह भगवान के कच्छप और कूर्म अवतार का प्रतीक है। इसके अलावा शालिग्राम पर उभरने वाले चक्र और रेखाएं भी विष्णु के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण के कुल के लोगों को इंगित करती हैं। इस तरह लगभग 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं जिनमें से 24 प्रकार को विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित माना गया है। माना जाता है कि ये सभी 24 शालिग्राम वर्ष की 24 एकादशी व्रत से संबंधित हैं।  

शालिग्राम की पूजा:- घर में सिर्फ एक ही शालिग्राम की पूजा करना चाहिए। विष्णु की मूर्ति से कहीं ज्यादा उत्तम है शालिग्राम की पूजा करना। शालिग्राम पर चंदन लगाकर उसके ऊपर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।प्रतिदिन शालिग्राम को पंचामृत से स्नान कराया जाता है। जिस घर में शालिग्राम का पूजन होता है उस घर में लक्ष्मी का सदैव वास रहता है।शालिग्राम पूजन करने से अगले-पिछले सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। शालिग्राम सात्विकता के प्रतीक हैं। उनके पूजन में आचार-विचार की शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।श्रीमद्भागवत महापुराण आदि ग्रंथों के अनुसार कलियुग के पांच हजार वर्ष बाद गंगा आदि नदियां अपवित्र हो जाएंगी और सिर्फ पानी रह जाएगा। केवल गंडकी नदी कलियुग के दस हजार वर्ष पर्यन्त पवित्र रहेगी। अंत में, मुक्तिक्षेत्र हिंदू और बौद्ध धर्म के महान एवं पुरातन धार्मिक आस्था के केन्द्र हैं तथा मुक्तिक्षेत्र एवं भगवान मुक्तिनाथ समस्त जगत के कल्याण के लिए धरा पर अवतरित हैं। सालिग्राम की पहचान करने का तरीका पत्थर को सोने से खरोंचना है और अगर यह एक सफेद रेखा छोड़ता है, तो यह एक साधारण पत्थर है और अगर यह एक सोने की रेखा छोड़ता है, तो यह एक वास्तविक सालिग्राम है। इसी तरह चांदी के साथ भी आप स्वयं जाच सकते है  

नेपाल की खूबसूरत पहाड़ियों के बीच स्थित इस ऐतिहासिक मंदिर का संबंध सृष्टि के आरंभ काल से माना जाता है। कहते हैं, यहां भगवान विष्णु को देवी वृंदा के शाप से मुक्ति मिली थी इसलिए यह मुक्ति धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।  

यात्रा श्री मुक्तिनाथ की-:
पोखरा को मुक्तिनाथ का 'गेटवे' भी कहा जाता है जो केंद्रीय नेपाल में स्थित है। दर्शानार्थियों को यह सलाह दी जाती है कि वे पहले काठमांडु आएं तथा वहां से पोखरा के लिए सड़क या हवाई मार्ग से जा सकते हैं। वहां से पुन: जोमसोम जाना होता है। यहां से मुक्तिनाथ जाने के लिए आप हेलिकॉप्‍टर या फ्लाइट ले सकते हैं। यात्री बस के माध्‍यम से भी यात्रा कर सकते हैं। सड़क मार्ग से जाने पर काठमांडू से पोखरा पहुंचने के लिए करीब २०० कि॰मी॰ की दूरी तय करनी होती है। निम्न माह में मुक्तिनाथ यात्रा करना कठिन और खतरनाक होता है। जून, जुलाई और अगस्त पहाड़ी इलाका होने के कारन भारी बारिश होती है।बड़े पैमाने पर भूस्खलन होता है। सड़क मार्ग से मुक्तिनाथ का जाना खतरनाक और कठिन होता है।दिसंबर, जनवरी और फरवरी
सर्दी का मौसम होने के कारण मुक्तिनाथ क्षेत्र में भारी बर्फ बारी होती है। यह क्षेत्र बर्फ से ढका रहता है। मुक्तिनाथ मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय सितंबर, अक्टूबर और नवंबर यह नेपाल में पीक सीजन है, न तो बहुत ठंडा और न ही बहुत गर्म। मौसम साफ रहता है। नीले आकाश में बर्फ से ढके पहाड़ों के शानदार दृश्य दिखाई देते है। मार्च, अप्रैल और मई तापमान सामान्य रहता है। नेपाल का राष्ट्रीय फूल रोडोडेंड्रोन (hododendrons) इस मौसम में पूरी तरह से खिलता है और पहाड़ के दृश्य बहुत ही सुन्दर दिखते हैं। 

भारतीय मूल के यात्रियों को सलाह दी जाती है की इस यात्रा से पहले परमिट अवश्य लेले.. 
मुक्तिनाथ यात्रा परमिट: 
अन्नपूर्णा कंजर्वेशन एरिया के २ भाग है 
१- लोअर मुस्तांग 
२- अपर मुस्तांग 
मुक्तिनाथ लोअर मुस्तांग क्षेत्र में आता है। और परमिट के लिए भारतीय नागरिक के लिए आवश्यक डॉक्यूमेंट में एक आईडी प्रूफ और ४ फोटो लगते है। पोखरा से मुक्तिनाथ तक सड़क, ट्रेक या उड़ान द्वारा अपनी यात्रा शुरू करने से पहले लोवर मुस्तांग के लिए २ परमिट की आवश्यकता पड़ती है। १. ACAP अन्नपूर्णा कंजर्वेशन एरिया प्रोजेक्ट (१०००NPR)  अन्नपूर्णा संरक्षण क्षेत्र परियोजना परमिट (ACAP): इस परमिट को Nepal Tourism Board (NTB) भृकुटी मंडप, काठमांडू या पोखरा में स्थित नेपाल पर्यटन बोर्ड से एकत्र किया जा सकता है।                                         २. TIMS ट्रेकर इंफॉर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम (६००NPR) ट्रेकर की सूचना प्रबंधन प्रणाली परमिट (TIMS)। इस परमिट को नेपाल के टूरिस्ट आफिस काठमांडू या पोखरा में स्थित से प्राप्त किया जा सकता है। आप को यहाँ पर मुस्तांग के मौसम की जानकारी दी जाती है.. वहा हवा का दबाव कम होता है जिसे नेपाली में लेक (Altitude sickness )लगना कहा जाता है ऊंचाई की बीमारी उच्च ऊंचाई पर उपलब्ध ऑक्सीजन की कम मात्रा (हवा के कम दबाव के कारण) की प्रतिक्रिया है। आपका शरीर इसके लिए कई तरह से प्रतिक्रिया देगा कुछ सामान्य हैं, कुछ बीमारियाँ हैं। जिससे सुरक्षा उपाय की जानकारी मिल जाती है लक्षणों में सिरदर्द, उल्टी, थकान, नींद न आना और चक्कर आना शामिल हो सकते हैं।.

सभी तयारी के साथ काठमांडू से मुक्तिनाथ जी के यात्रा के लिए अपन चल पड़े सड़क मार्ग से पोखरा के लिए, काठमांडू के बस पार्क या कलंकी से पोखरा के लिए बस या छोटी गाड़िया मिल जातीहै जिनका किराया नेपाली ५५० से २००० रुपये तक है, सुविधा के अनुसार... और करीब ६-८ घंटे लगते है  

कोठमांडू से जोमसोम के लिए सीधी बस - वैसे काठमांडू से भी दैनिक बस सेवा है। काठमांडू से बस दोपहर में 02:30 बजे निकलती है। आप सुबह लगभग 09:00 बजे जोमसोम पहुंचेंगे।बस का किराया करीब १२०० भारतीय रूपए में होता है।  

मुस्तांग / जोमसोम के लिए पोखरा के पृथ्वी चौक बस पार्क से जोमसोम के लिए सुबह ६ से ८ के बीच में सीधे बस जाती है। सुबह ७ -८ बजे के बाद जोमसोम के लिए सीधे बस मिलना मुश्किल होता है। फिर पोखरा से बेनी तक बस से जाना पड़ता है और आगे बेनी से जोमसोम तक बस या छोटी गाडियों से जाना पड़ता है । जोमसोम के लिए यह सीधी बस पोखरा, बेनी, तातोपानी, घासा, कालोपानी, मार्फा से होकर जोमसोम तक जाती है यात्रा के लिए करीब १२ घंटे लगते है, वैसे पोखरा से छोटी गाड़िया भी चलती है  

बेनी से जोमसोम तक के मार्ग के दोनों ओर का प्राकृतिक दृश्य जितना मनमोहक है राह उतनी ही खतरनाक भी है । बायीं ओर चट्टानी पर्वत तो दायीं ओर काली गण्डकी नदी की जलधारा । चट्टान स्खलन के कारण पर्वत से गिरे बड़े बड़े शिलाखंडो को काली गण्डकी से फसे हुए देखकर इस सोच से दिल काँप उठता है कि कहीं कोई शिलाखण्ड फिसलकर गाड़ी पर गिरी तो स्थिति क्या होगी ? पूरी यात्रा की करीब ७५% सड़क कच्ची ही है ऑफ रोड (Off road) पर चल रही बस की गति से आप को यात्रा का रोमांचक अहसास कराती है अगर ड्राइवर स्पीड बढ़ा भी दे तो आप धीमे चलने का निवेदन करेगे हाँ, काली गण्डकी की किनारे किनारे पहाड़ो झरनों का मनमोहक दृश्य दिखता रहता है संध्याकालीन सूर्य की लाल किरणों से चमकता हिमपर्वत की सुंदरता को कुछ देर आप निहार सकें, यही यात्रा का आनंद है ।  

गलेश्वर महादेव : बेनी से लगभग 3 किमी आगे एक छोटा सा कस्बा है– गलेश्वर। माना जाता है कि म्याग्दी जिले के धनन गांव में गलेश्वर का मंदिर उसी स्थान पर स्थापित किया गया था, जहां सती देवी का गला गिरा था। मंदिर को जदेश्वर और जडाभेशवर्श के नाम से भी जाना जाता है और कालीगंडकी नदी के तट पर स्थित होने के कारण इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता है। मूल मंदिर की स्थापना की तिथि अज्ञात है। वर्तमान संरचना, हालांकि, १९६३ ई। में बनाई गई थी। पूजा की एक शिला है, जिसके किनारे शालिग्राम, त्रिशूल, नंदी की मूर्ति और घंटियाँ हैं। यहाँ उत्सव के प्रमुख अवसर शिवरात्रि, बालाचतुर्दशी, और श्रावण के पूरे महीने के त्योहार हैं। गलेश्वर कस्बा पार करने के बाद नदी यहाँ से यू–टर्न ले लेती है और इसके साथ ही सड़क भी। इसके बाद कच्चे रास्ते की शुरूआत हो जाती है।  

रास्‍ते में आमतौर पर सभी जगहों पर रुकने के लिए निजी लॉज- होटल मिल जाते हैं। ये लॉज- होटल सभी तरह की मुलभूत सुविधाएं मुहैया कराते हैं। कई बार तो यात्रियों के लिए काफी बेहतर सुविधाएं भी उपलब्‍ध कराई जाती हैं। इन सबके बावजूद तीर्थयात्रियों को अपने साथ स्लिपींग बैग भी जरूर ले जाना चाहिए ताकि किसी भी तरह के अतिरिक्‍त परेशानियों से बचा जा सके। यात्रा के दौरान मार्ग में पिट्ठू आसानी से उपलब्‍ध हो जाते हें। चूंकि इस मार्ग का उपयोग विदेशियों के द्वारा भी किया जाता है, अत: यहां खाने की अच्‍छी व्‍यवस्‍था होती है। भोजन में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन उपलब्‍ध रहते हैं। इसके अलावा सीलबंद पानी भी आसानी से मिल जाता है। लेकिन सामान्‍यत: नेपाली शैली का भोजन दाल-भात आसानी से मिलता है। अगर आप गाइड रखना चाहते हैं तो वह भी मिल सकता है।  

बेनी : बेनी सदर मुकाम 899 मीटर की ऊंचाई पर काली गंडकी नदी और म्याग्दी नदी के संगम पर स्थित है। नेपाल के त्रि-शहरों के क्षेत्र में सबसे उत्तरी होने के कारण, यह ज़ोनल मुख्यालय बाग्लुंग के उत्तर में १२ किमी दूर स्थित है। यह मुख्य रूप से काली गंडकी नदी द्वारा दो भागों में विभाजित है। पश्चिमी भाग म्याग्दी जिले में स्थित है और मुख्य कार्यालय वहां स्थित हैं। दूसरा हिस्सा परबत जिले में है और अपेक्षाकृत छोटा है।  

तातोपानी कुंड :
म्यागदी नदी के तट पर स्थित है जो बेनी बाजार के पश्चिम में स्थित है। तातोपानी कुंड गर्म पानी में नहाने के लिए प्रसिद्ध है। कुंडा (वसंत) का तापमान 45-57 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। ऐसा माना जाता है कि वसंत के गर्म पानी में स्नान करने से विभिन्न रोग ठीक हो जाते हैं। सार्वजनिक अनुसंधान के आधार पर, गैस्ट्रिक, यूरिक एसिड, पीठ में दर्द, विभिन्न त्वचा रोग, सूजन, गलगंड, गठिया जैसे रोगों को ठीक किया गया। शोध में यह पाया गया कि तातोपानी कुंड में काला नमक और फास्फोरस प्रचुर मात्रा में होता है। काला नमक और फास्फोरस प्राकृतिक एंटीबायोटिक्स हैं। लोग अपनी इच्छा के अनुसार 2 दिनों से लेकर कई हफ्तों तक स्नान करते हैं। एक बार में लगभग 300 की संख्या में लोग वसंत में स्नान कर सकते हैं।  

जोमसोम से मुक्तिनाथ के लिए प्रस्थान करना 
मुक्तिनाथ - पृथ्वी पर स्वर्ग  

जोमसोम से मुक्तिनाथ जाने के लिए बस या जीप मिल जाती है। जो जोमसोम पहुँचने पर रात हो चुकी थी । वहाँ एक थकाली होटल में पहुँचे , खाना–पीना वहीं हुआ । भूख के कारण या भोजन स्वादिष्ट होने के कारण मजे से खाए । वैसे भी थकालियों के द्वारा बनाया गया खाना अत्यंत स्वादिष्ट होता है । अतः थकाली भोजन स्वादिष्ट भोजनों मे प्रसिद्व है । अब सुबह मुक्ति नाथ के लिए.. काकबेनी होते हुवे रानीपौवा तक जाती है। पहाड़, कुछ बर्फ से ढकी - नीलगिरि और धौलागिरी हिमालय पर्वतमाला के दृश्य के साथ काली गण्डकी के किनारे चलते रानीपौवा बस पार्किंग तक यात्रा होती है वहा से पैदल या घोड़े की सहायता से मुक्तिनाथ मंदिर तक चढ़ाई कर जाना होता है तो आखिर आप पहुच जाते है भगवान मुक्तिनाथ के दरबार में १०८ सीढियों की मदत से मंदिर का प्रवेश तिब्बती शैली के प्रवेश द्वार से मंदिर के रास्ते में हरे भरे सेव के पेड़ और किनारे झरनों की आवाज आप को एक मानसिक शांति का अहसास कराती है मुक्तिनाथ घाटी में सात ऐतिहासिक प्रसिद्ध गाँव हैं: रानीपउवा, पुतक, झोंग या द्ज़ोंग, छ्योखर या चोंगुर, पुरंग, झारकोट और खिंगा।  

रानी पउवा बस्ती का नाम रानी सुबरन प्रभा देवी द्वारा दान किए गए एक विशाल तीर्थयात्री घर से मिला। चूंकि 'रानी' का मतलब रानी और 'पउवा' तीर्थयात्रियों का आश्रय था, इसलिए इस गांव का नाम रानीपउवा रखा गया, जिसे कभी-कभी गलती से मुक्तिनाथ भी कहा जाता है। दरअसल मुक्तिनाथ रानीपउवा से ऊपर है और इसमें 20 मिनट लगते हैं। रानीपउवा से मुक्तिनाथ के मंदिर तक जाने के लिए।  


श्री मुक्तिनाथ, विष्णु का एक नाम है और इसका अर्थ है: "भगवान के मुक्ति" बार-बार जन्म और मृत्यु (संसार) के चक्र से मुक्ति प्रदान करना। 'मुक्ति' का अर्थ है मुक्ति और "नाथ" का अर्थ है भगवान.. इस मंदिर में आने से सारे कष्ट दूर होते है और मिलता है सीढियों के रास्ते मंदिर तक पहुचने में अन्य रमणीय जगहों के दर्शन होते है 

मुक्तिनाथ मंदिर तक पहुचने के लिए १०८ सीढी के रास्ते चल कर आप मुक्तिनाथ मंदिर के परिसर में पहुच सकते है मंदिर का स्वरूप ऐतिहासिक है । पैगोड़ा शैली में बनाया गया यह मंदिर १४ फीट ऊँचा और ८ फीट चौड़ा है । मुक्तिनाथ बाबा के दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश करने से पहले इस मंदिर के सामने मुक्ति कुंड है। यह एक विश्वास है कि जो इसमें डूबा है वह अपने पिछले पापों या नकारात्मक गतिविधियों से मुक्त होगा। मंदिर के चारों ओर आकर्षण का एक और बिंदु १०८ जल कुंड की मुक्तिधारा है। यहां का पानी लगातार कालीगण्डकी नदी से बहता है। प्रत्येक मुक्तिधारा में इस उम्मीद से स्नान किया जाता है कि यह हमें मुक्ति दिलाती है।  


1. 108 Water Spouts 
2. 2 Holy Ponds 
3. Shiva Temple & Char Dham 
4. Yagyashala 
5. Bishnu Paduka 
6. Samba Gompa 
7. Jwala Mai Temple 
8. Patal Ganga 
9. Narshingh Gompa  

मुक्तिनाथ यज्ञशाला 
मुक्तिनाथ यज्ञशाला एक ऐसी जगह है जहाँ पवित्र अग्नि के हवनकुण्ड में हवन पूजन किया जाता है इस रहस्यमयी और चमत्कारी हवनकुंड के बारे में जानकर पता चला की चैत्र माह के नवरात्री से आश्विन माह के नवरात्र तक अनवरत हवन होता रहता है इस इमारत के सामने थिरुमंगई अज़वार के मधुर तमिल भजनों के साथ बोर्ड रखा गया है।

विष्णु-पादुका-मंदिर (Vishnu Paduka Mandir)
विष्णु-पादुका मंदिर, भगवान विष्णु के चरण कमल, मुख्य मुक्तिनाथ मंदिर के रास्ते में दाईं ओर एक छोटा मंदिर है। इसमें भगवान विष्णु के पैरों की छाप के साथ-साथ नीलकंठ वर्णी (शवमी- नारायण) की छवि भी शामिल है, जो एक बाल योगी है जो गंभीर ध्यान के लिए एक पैर पर खड़े है। मुक्तिनाथ मंदिर के परिसर में संगमरमर का मंडप 'विष्णु पादुका मंदिर' (स्वामी नारायण स्मारक)। गुजराती शैली में निर्मित, यह स्वामी नारायण के भक्तों द्वारा बनाया गया है, बाल-योगी नीलकंठ वर्णी के बारे में बताया जाता है की जिन्होंने पूरे भारतीय हिमालय की यात्रा की, नंगे पैर और केवल लंगोट पहने वर्ष 1849 में विक्रम संवत, जो हमारे पश्चिमी कैलेंडर के वर्ष 1792 A.D से मेल खाती है, नीलकंठ वर्णी मुक्तिनाथ में कड़ी तपस्या कर रहे थे, दो महीने और 20 दिनों के लिए एक पैर पर खड़े थे। बाद में उन्हें स्वनामार्ण के नाम से जाना जाने लगा। २००३ में उनके अनुयायियों ने मुक्तिनाथ के आस-पास उनके लिए एक छोटा सा स्मारक बनाया जिसे विष्णु पादुका मंदिर (स्वामी नारायण स्मारक) कहा जाता है।  

शिव पार्वती मंदिर: 
शिव मंदिर मुख्य मुक्तिनाथ मंदिर की ओर जाते समय प्रवेश द्वार के बाईं ओर स्थित है। देवी पार्वती के साथ भगवान शिव को समर्पित शिव पार्वती मंदिर, चार छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। बाईं ओर दक्षिणावर्त, विष्णु का मंदिर, इसके पीछे भगवान राम का मंदिर, इसके बगल में भगवान कृष्ण का मंदिर, और दाईं ओर शिव और पार्वती के पुत्र गणेश का मंदिर है। एक बहुत छोटा नंदी मंदिर के बाहर बैठता है, प्रवेश द्वार की रखवाली करता है।  

मुक्तिकुंड  मंदिर के सामने 2 कुंड (पानी के तालाब) हैं, जिनका नाम देवी लक्ष्मी और सरस्वती कुंड के नाम पर रखा गया है।इसमें गंडक नदी और दामोदर कुंड की धारा मिलती है इसे मुक्ति-कुंड भी कहा जाता है। यह माना जाता है कि पानी में एक पवित्र डुबकी सभी नकारात्मक कर्मों को धो सकती है, जो पिछले नकारात्मक कार्यों का परिणाम है। 
  
मुक्ति धारा: मुक्तिनाथ मंदिर के पीछे "मुक्तिधारा" नामक १०८ जल धारा है गौ मुख आकृति में . मुक्ति ’का अर्थ है मुक्ति और धारा का अर्थ है वेग , तीर्थयात्री यह विश्वास करते हैं कि यह १०८ धारा में स्नान करने से उन्हें मोक्ष या मोक्ष प्रदान करता है। लगभग सात फीट की ऊंचाई पर, धारा के बीच मुश्किल से एक फुट के अंतर के साथ अर्ध-चक्र में व्यवस्थित गंडकी नदी का पानी लगातार गो मुख से बहता है। मंदिर में आने वाले तीर्थयात्री इनमें से प्रत्येक धारा के नीचे पवित्र स्नान करते हैं। लेकिन पानी के ठंडे होने के कारण यहां पवित्र स्नान करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है। इसलिए स्नान करना आमतौर पर तेज गति से किया जाता है, क्योंकि तापमान में कमी होती है :-) जो स्नान करने में असमर्थ होते हैं, वे अपनी पक्की हथेली में कुछ पवित्र जल लेंगे और शुद्धिकरण के लिए इसे सिर पर फेंक देंगे। आप तीर्थयात्रियों को अपने परिवार के लिए कुछ पवित्र पानी की बोतलें पा सकते हैं, खासकर अगर कोई बीमार या पीड़ित है। साथ ही तीर्थयात्री अपनी बोतलें पवित्र जल से, पूजा के लिए और पीने के लिए भी भरते हैं।  

श्री मुक्तिनाथ श्री मुक्तिनाथ नेपाल में सबसे अधिक देखे जाने वाले तीर्थों में से एक है, जो हिंदुओं और बौद्धों द्वारा पूजनीय हैं और विष्णु पुराण में मुक्तिनाथ की महिमा का बखान किया जाता है। मुक्ति का स्थान "मुक्ति", लक्ष्मी और सरस्वती देवी और गरुड़ के साथ, श्री मुक्तिनाथ का निवास स्थान है। पैगोडा शैली के मुक्तिनाथ मंदिर को १८१५ ई में नेपाल के राजा शाह राणा बहादुर (1775-1806) की दूसरी पत्नी रानी सुबर्णा प्रभा द्वारा स्वप्न में देखने के बाद संरक्षित किया गया था। यह भगवान "मुक्ति-नाथ" को समर्पित है, जो भगवान मोक्ष या मोक्ष का अनुदान देते हैं। केवल हिंदुओं को ही आंतरिक मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति है, जिसे मुक्ति-नारायणन -क्षेत्रम भी कहा जाता है।  

बौद्ध परंपरा में, श्री मुक्तिनाथ विष्णु / लोकेश्वर को अवलोकितेश्वर (चेनरेगिग) के रूप में पूजा जाता है। बौद्ध धर्म की उत्पत्तिसे पहले,मुक्तिनाथ का प्राचीन स्थान का नाम तिरु नारिग्राम था, जो भगवान नारायण का स्वाभाविक रूप से उपलब्ध रूप था। बौद्ध इसे चुमिग ग्यात्सा या 'सौ जल' भी कहते हैं, और तिब्बती बौद्ध इसे डकीनी, देवी स्काई डांसर्स का एक महत्वपूर्ण निवास मानते हैं। मुक्तिनाथ भी ५१ शक्तिपीठों में से एक है। स्थान के पारंपरिक पुजारी बौद्ध धर्मावाल्बियो के महिलाओ के द्वारा किया जाता है ।  

मुक्तिनाथ नेपाल के हिमालय में अन्नपूर्णा सर्किट में करीब ३७५० मीटर (12,300 फीट) पर हिंदू तीर्थयात्रियों और तिब्बती बौद्धों दोनों के लिए एक पवित्र स्थान है। यह एक महान उदाहरण है कि कैसे दो धर्म परस्पर सम्मान और समर्थन के साथ एक ही पवित्र स्थान को साझा कर सकते हैं।  

ज्वाला माई मंदिर 
अखंड ज्योति का मंदिर : शक्ति पीठम मुक्तिनाथ में शक्ति पीठ ५१ शक्ति मंदिरों में से एक है। माना जाता है कि यहां शक्ति का माथा गिरा था। ज्वाला माई (अग्नि की देवी) अग्नि की ज्वाला का मंदिर है, जो तिब्बती शैली के ढोला मेबर गोम्पा के अंदर स्थित है, जो मुख्य मुक्तिनाथ मंदिर के पूर्व में स्थित है। यह एक भूमिगत जल धारा के ऊपर बनाया गया है, और गोम्पा के नीचे छोटे प्राकृतिक गैस जेट पानी के ऊपर लगातार जलती हुई लपटें पैदा करते हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के संयोजन में एक झरने के साथ पवित्र ज्योति, मुक्तिनाथ के धार्मिक महत्व की उत्पत्ति प्रतीत होती है, केवल यहां सभी तत्व एक स्थान पर मौजूद हैं  

नरसिंह गोम्पा (मर्मा ल्हा खांग) 
Mharme Lha Khang Gompa एक पवित्र दीपकों के रूप में माना जाता है जो मुख्य मुक्तिनाथ मंदिर के उत्तर-पश्चिम में स्थित है औरइसमें प्रसिद्ध गुरु रिनपोछे (पद्मसंभव) की मूर्ति है। जैसा कि यह मठ गुरु रिनपोचे को समर्पित है, उनकी विशाल प्रतिमा को रखा गया है: दाईं ओर लाल ड्रैगपो और बाईं ओर नीले सेन्ग डोंग्मा।चूंकि सिंगे डोमा शेर के देवता हैं, इसलिए हिंदू नरसिंह के रूप में पूजा करते हैं उन्होंने अपने ध्यान के दौरान ज्ञान प्राप्त किया था। इस मठ में बॉन देवताओं की मौजूदगी से संकेत मिलता है कि वर्तमान में शुरुआती दिनों में मुक्ति तीर्थस्थल बोन धर्म या बॉन धर्म (བོན་, Bön) हुआ करता था।  

शालिग्राम - गंडकी नदी मुक्तिनाथ की तीर्थयात्रा के लिए एक और आकर्षण काली गंडकी नदी है पुराणों में इसे गंगा की सात धाराओं में से एक धारा माना जाता है। हिमालय की धौलागिरि के एकमात्र पर्वत नारायण से सप्त गण्डक स्थान पर प्रकट होकर मुक्ति नाथ, भैरहवा आदि में प्रवाहित होती हुई यह गण्डकी, सोनपुर-पटना के पास गंगा नदी में समाहित हो जाती है। नेपाल के अधिकांश भाग में बहने वाली इस नदी के ऊपरी भाग में सुवर्ण मिश्रित शालग्राम मिलते हैं जिससे इसे हिरण्यवती नाम भी दिया गया है। वैसे इसके और भी नाम हैं। भागवत एवं ब्रह्मांड पुराण में बलरामजी की तीर्थयात्रा प्रसंग में यहां आने का विशेष उल्लेख है। जरासंध वध के समय कृष्ण, अर्जुन, भीमसेन आदि ने इसमें स्नान किया था। उल्लेखनीय है कि इसके जल में स्नान करने वालेको अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। उसे सूर्य लोक की भी प्राप्ति हो जाती है। वृंदा, शंखचूड़ की पत्नी थी लेकिन विष्णु की उपासक सदा तन-मन से उन्हीं को पति रूप में पाने के लिए उपासना करती। विष्णु उनके मन की बात जानते थे, इसलिये छल से पति बनने का अभिनय किया तो वृन्दा रुष्ट हो गई और उन्होंने विष्णु को शाप दिया कि वे पत्थर बन जाएं और छल से पति का रूप धरा, इसलिये उस शरीर को त्याग स्वयं गंडकी नदी में बदल गई तथा उन्हें हृदय में धारण कर लिया। हिमालय के मध्य भाग में शालग्राम शिखर है। यह शिखर शालग्राम पर्वत तथा मुक्तिनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यहां भगवान विष्णु के गण्डस्थल से समुद्रभूत गण्डकी नदी प्रवाहित होती है और जिसके गर्भ में शालग्राम शिला प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। सोमेश्वर की पहाड़ियों से निकली बूढ़ी गंडक नदी तथा मध्य हिमालय के अन्नपूर्णा, मानंग मोट एवं कुतांग की गंडक उपर्युक्त गण्डकी नदी के प्रतिरूप हैं।। वैष्णव (हिन्दू) पवित्र नदी गंडकी में पाया जाने वाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को भगवान विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में उपयोग करते हैं। शालीग्राम को प्रायः 'शिला' कहा जाता है। शिला शालिग्राम का छोटा नाम है जिसका अर्थ "पत्थर" होता है। शालीग्राम भगवान विष्णु का ही एक प्रसिद्ध नाम है। इस नाम की उत्पत्ति के सबूत नेपाल के एक दूरदराज़ के गाँव से मिलते है जहां विष्णु को शालीग्रामम् के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में शालीग्राम को सालग्राम के रूप में जाना जाता है। शालीग्राम का सम्बन्ध सालग्राम नामक गाँव से भी है जो गण्डकी नदी के किनारे पर स्थित है तथा यहां से ये पवित्र पत्थर भी मिलता है। 


मुस्ताङ जिल्ला 
मुक्तिनाथ में कई स्थानों पर जाने के बाद, अपन कागबेनी धाम, धुम्बाताल और तिब्बती कला संस्कृति कागबेनी, झारकोट और कई अन्य स्थानों के माध्यम से पूरे प्राकृतिक सुदरता को निहारते जोम्सोम लौट आए, जहां हम वास्तव में अपने पर्यावरण को महसूस कर सकते थे। "जोमसोम बजारमा बारह बजे हावा सरर, एहजुर घर त मेरो पोखरा ।' ये गीत हरेक नेपाली के मुख से सुन सकते है... प्राकृतिक सौदर्य को निहारते... । कालीगण्डकी नदी के पावन जल से प्रच्छालित, नीलगिरी और धौलागिरी के हिमाच्छादित श्रृँखलाओं से सुशोभित, हरी–भरी पहाडि़यों से सुसज्जित और तेज गति से बहती नदियों की जलधारा की ध्वनि से गूँजता मुक्तिनाथ क्षेत्र को यदि भगवान विष्णु और आदिदेव महादेव का निवास स्थल के रूप में दर्शनीय और पूजनीय माना जाता है तो इसे अतिशयोक्ति के रूप में नही देखा जाना चाहिए । वहाँ के जनजीवन, उनके रहन सहन, रीतिरिवाज और संस्कृति से परिचित होने और धार्मिक स्थलों को देखते हुए आनंद उठाने का अवसर प्राप्त होता है । अत्यधिक दुर्गम छेत्र होने के कारण से यहाँ का जन जीवन अलग है है यहाँ उत्तर में भोटे, गुरुङ, विष्ट और ठकुरी जाती के लोग आउर दक्षिण की तरफ थकाली समुदायक के अतिरिक्त अन्य जाती के लोग गुरुङ्, शेर्पा , राइ  और थकाली जाती के साथ वौद्ध धर्म के लोग का निवास है थकाली समुदाय की बस्ती ठिनी भी देखने लायक है कागबेनी का सौदर्य वास्तव में स्वर्ग का ही आनंद देती है.. इस यात्रा के समापन के साथ 



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2 comments:

  1. वाह .. साक्षात् घर बैठे श्री मुक्तिनाथ जी की यात्रा कर लिए.. सजीव दर्शन.. जय श्री मुक्ति नाथ जी

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