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Thursday, April 30, 2015

शनि मंदिर, शिंगणापुर

३० अप्रैल २०१५ (गुरुवार ), तीर्थ यात्रा का चोथा दिन 

तो अगली यात्रा के लिए हम निकल पड़े शनि शिंगणापुर, शिर्डी से शिंगणापुर की दूरी - 70 किमी,सुबह ११ बजे चले आराम से, यहाँ से एक नयी टैक्सी मिल गयी थी जो; महाराष्ट्र के पूरी यात्रा के लिए बुक थी .. वैसे शिर्डी से शनि मंदिर के लिए छोटी गाड़िया/ बस भी मिलती है जो १०० से १८० तक ले ली है जैसा मुर्गा फस जाये ..देश में सूर्यपुत्र शनिदेव के कई मंदिर हैं। उन्हीं में से एक प्रमुख है महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित शिंगणापुर का शनि मंदिर।
विश्व प्रसिद्ध इस शनि मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ स्थित शनिदेव की पाषाण प्रतिमा बगैर किसी छत्र या गुंबद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजित है।.. शनि के प्रकोप से मुक्ति पाने के लिए देश विदेश से लोग यहां आते हैं और शनि विग्रह की पूजा करके शनि के कुप्रभाव से मुक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। माना जाता है कि यहां पर शनि महाराज का तैलाभिषेक करने वाले को शनि कभी कष्ट नहीं देते।

आराम से चले जा रहे थे तभी रस्ते में दिखा उख का रस.. जो बेहतरीन तरीके से निकला जा रहा है, ये सिन देख कर " कोल्हू का बैल " वाला कहावत का मतलब समझ आ गया, अहमदनगर में सडको के किनारे ऐसे बहुत दुकान दिख जाएगी जहा आप ये आनंद ले सकते है .. तो हमने भी अपनी टैक्सी रोक रस निकलने की प्रक्रिया को समझा ३ ग्लास रस बनवा कर माता जी के साथ मैंने और चक्रपथ वाहिनी के पायलट जी ने भी ग्रहण किया .. मजा आया बहुत ही मीठा..रस .. फिर चल पड़े गूगल बाबा की सहायता से समझते शनि मराहाज को 
 
शनि मराहाज के शिंगणापुर पहुंचने की कहानी बड़ी ही रोचक है। सदियों पहले शिंगणापुर में खूब वर्षा हुई। वर्षा के कारण यहां बाढ़ की स्थिति आ गई। लोगों को वर्षा प्रलय के समान लगने लग रही थी। इसी बीच एक रात शनि महाराज एक गांववासी के सपने में आए। शनि महाराज ने कहा कि मैं पानस नाले में विग्रह रूप में मौजूद हूं। मेरे विग्रह को उठाकर गांव में लाकर स्थापित करो। सुबह इस व्यक्ति ने गांव वालों को यह बात बताई। सभी लोग पानस नाले पर गए और वहां मौजूद शनि का विग्रह देखकर सभी हैरान रह गये। गांव वाले मिलकर उस विग्रह का उठाने लगे लेकिन विग्रह हिला तक नहीं, सभी हारकर वापस लौट आए। शनि महाराज फिर उस रात उसी व्यक्ति के सपने में आये और बताया कि कोई मामा भांजा मिलकर मुझे उठाएं तो ही मैं उस स्थान से उठूंगा। मुझे उस बैलगाड़ी में बैठाकर लाना जिसमें लगे बैल भी मामा-भांजा हों। अगले दिन उस व्यक्ति ने जब यह बात बताई तब एक मामा भांजे ने मिलकर विग्रह को उठाया। 
बैलगाड़ी पर बिठाकर शनि महाराज को गांव में लाया गया और उस स्थान पर स्थापित किया जहां वर्तमान में शनि विग्रह मौजूद है। इस विग्रह की स्थापना के बाद गांव की समृद्घि औरखुशहाली बढ़ने लगी। हिन्दू धर्म में कहते हैं कि कोबरा का काटा और शनि का मारा पानी नहीं माँगता। शुभ दृष्टि जब इसकी होती है, तो रंक भी राजा बन जाता है। देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग ये सब इसकी अशुभ दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते हैं। परंतु यह स्मरण रखना चाहिए कि यह ग्रह मूलतः आध्यात्मिक ग्रह है। महर्षि पाराशर ने कहा कि शनि जिस अवस्था में होगा, उसके अनुरूप फल प्रदान करेगा। जैसे प्रचंड अग्नि सोने को तपाकर कुंदन बना देती है, वैसे ही शनि भी विभिन्न परिस्थितियों के ताप में तपाकर मनुष्य को उन्नति पथ पर बढ़ने की सामर्थ्य एवं लक्ष्य प्राप्ति के साधन उपलब्ध कराता है। नवग्रहों में शनि को सर्वश्रेष्ठ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह एक राशि पर सबसे ज्यादा समय तक विराजमान रहता है। श्री शनि देवता अत्यंत जाज्वल्यमान और जागृत देवता हैं। इसलिए आजकल शनि देव को मानने के लिए प्रत्येक वर्ग के लोग इनके दरबार में नियमित हाजिरी दे रहे हैं।

शनि मंदिर का एक विशाल प्रांगण है जहाँ दर्शन के लिए भक्तों की कतारें लगती हैं। मंदिर प्रशासन द्वारा ‍शनिदेव के दर्शनों की बेहतर व्यवस्थाएँ की गई हैं, जिससे भक्तों को यहाँ दर्शन के लिए धक्का-मुक्की जैसी किसी भी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता है। जब आप यहाँ स्थित विशाल शनि प्रतिमा के दर्शन करेंगे तो आप स्वयं सूर्यपुत्र शनिदेव की भक्ति में रम जाएँगे। प्रत्येक शनिवार, शनि जयंती व शनैश्चरी अमावस्या आदि अवसरों पर यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। सुबह हो या शाम, सर्दी हो या गर्मी यहाँ स्थित शनि प्रतिमा के समीप जाने के लिए पुरुषों का स्नान कर पीताम्बर धोती धारण करना अत्यावश्क था । ऐसा किए बगैर पुरुष शनि प्रतिमा का स्पर्श नहीं पर सकते थे । लेकिन अभी इए ब्यस्था नहीं है.. अगर आप नहा धो के तैयार है तो आप अपने वस्त्रो में दर्शन कर सकते है इस हेतु यहाँ पर स्नान और वस्त्रादि की बेहतर व्यवस्थाएँ हैं। खुले मैदान में एक टंकी में कई सारे नल लगे हुए हैं, जिनके जल से स्नान करके पुरुष शनिदेव के दर्शनों का लाभ ले सकते हैं। पूजनादि की सामग्री के लिए भी यहाँ आसपास बहुत सारी दुकानें हैं, जहाँ से आप पूजन सामग्री लेकर शनिदेव को अर्पित कर सकते हैं।
तो हम पहुच ही गए शनि मंदिर, शिंगणापुर, मंदिर के थोडा आगे ही एक बड़ी पार्किंग में हमारी गाड़ी रुकी
 

वही पर ढेर सारी दुकाने है पूजनादि की सामग्री की , हमारे पायलट ने सलाह दी, मंदिर पास ही है आप येही से सामान ले ले.. माता जी को ले कर पहुचे दुकान, वहा एक पंडित अपनी पूरी दुकान लगाये थे मंदिर की फोटो से साथ , कई वेरेटी की पूजा सामग्री थी उनके पास १०० से ले हर ४५० तक की हमने कहा माता जी को पूजा करना है तो जो बेहतर हो वे दे दीजिये... शुरू हो गए प्रभु तो मै कितना याद रखता तो रिकार्ड कर लिया , जब माता जी को ज्ञान दे फारिग हुवे तो मुझे सलाह दिया, आप को भी पूजा करनी पड़ेगी अपने पत्नी का सकल्प ले कर, मैंने पूछा जब माता जी कर ही रही है अपने बच्चो, नाती पोतो, बहु दामाद तो मई भी उसमे शामिल हो गया न, आखिर मेरी ही माँ है भाई... बड़े कुटिल मुस्कान के साथ पुजारी जी ने जवाब दिया , आप शनि धाम में है तो अपने पत्नी के लिए पूजा करने में क्या परेशानी है ? बस माता जी ने मेरे लिए भी एक .... फिर मंत्र के साथ मेरा भी तैयार हो गया पूजा सामग्री, दोनों के दाम हो गए ९००/- भुगतान के लिए पुजारी जी ने, आदेश किया की पूजा कर के वापस आओ तब.. चल पड़े मंदिर की तरफ तो पुजारी जी ने कहा, आगे तेल की शीशी और काला तिल भी ले लेना, मैंने अपनी पूजा सामग्री पर नजर डाली तो  उसमे वो दोनों नदारत ... चलो.. आगे चला तभी एक पीछे से दौड़ा आया पंडित का चेला , तेल और काले तिल की भी दुकान दिखा दी.. वो भी ले कर पहुच गए मंदिर... चप्पल जमा किया... धुप तेज थी तो तेजी से बढ़ चले मंदिर के अन्दर.. अब माता जी के आदेश से हाथ धोने के लिए पानी भी खोजना पड़ा.. हाथ पैर धो कर चल पड़े शनि महराज के दर्शन के लिए.. अभी कुछ बाकि ही था खरीदना.. उसमे हवन सामग्री नहीं थी, तो एक साहब लाइन के बिच में ही बैठ कर बेच रहे थे.. सो वो भी लेना पडा... जैसे जैसे पंडित जी ने बताया था करते करते पहुच गए शनि देव के सामने ... तो वहा भी प्रक्रिया पूर्ण हुई... अंत में शनि देव के आगे ही एक हनुमान जी भी विराजमान थे तो एक लोहे का दिया छल्ला अपने उपर घुमा के उनके पास फेकना था तो वो भी कर दिया, अब बाहर निकलने लगे तो माता जी मुझे आगे और अपने पीछे हो गयी... "पीछे मत देखा" सीधे चला ... मै मुस्कुरा कर आगे निकल लिया फिर जब शनी महराज से दूर हुवा तो.... पूछा .. अम्मा अब देखी  तोहके... चल बहरे अब ... आगे ही एक बड़ा हाल बना था, जहा शनि महराज का प्रसाद बिक रहा था तो ५ पैकेट ले लिया ... और बाहर निकल छाह में माता जी को बैठा कर प्रसाद खाया, जल ग्रहण किया ... लेकिन माता जी को जल्दी थी ... शनि भगवन से दूर होने की ... तो चल पड़े बाहर... १ बज चूका था ... भूख भी तेज की लगी थी... पहुचे अपनी गाड़ी के पास .. पंडित जी का भुगतान किया , और दक्षिणा दे बिदा लिए शनि महराज से, अभी घर के लिए कुछ खरीददारी बाकि थी तो माता जी ने उसको भी पूर्ण किया " नजरबट्टू" खरीद के
अब बारी थी औरंगाबाद की शिंगणापुर से औरंगाबाद की दूरी -७०  किमी जहा कल का घृष्णेश्वर में  अभिषेक कराना था ... रास्ते में खाना खोजते रहे ... जहा भी देखते वहा खाना के साथ बार की भी सुविधा थी तो आगे बढ़  जाते ..एक अच्छे ढाबे में हमारे पायलट ने गाड़ी रोकी जहा शाकाहारी  जैनी खाना मिल गया ...  खाना खा के निकले औरंगाबाद .. ३ बजे पहुच ही गए अपने होटल औरंगाबाद में ... होटल स्टेशन के पास ही था, आधे घंटे आराम करने के बाद निकले बाहर... घूमते घूमते पहुच गए स्टेशन, क्यों की मेरा रजनीगंधा तुलसी ख़तम हो चूका था ... और मिल भी नहीं रहा था ... खोजते खोजते पहुच गए एक पान की दुकान में... मिल गया तो आखे चमक उठी... तो दुकान का सारा स्टॉक ले लिया ... पंहुचा होटल... धुप तेज ही थी... ६ बजे तो माता जी का आदेश, तनी चला बहरे .. देखल जाये का हव औरंगाबाद में , तो आदेश का पालन किया गया ... निकले बाहर .. घूमते घूमते पहुच गए बाजार में.. शहर  पसंद आया ... औरंगाबाद, भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महानगर है। अजंता (अजिंठा) और एलोरा (वेरूळ) विश्व धरोहर स्थलों समेत कई नामी पर्यटन स्थलो के सन्निध होने से यह एक महत्वपूर्ण पर्यटक केंद्र है। औरंगाबाद प्रदेश का एक प्रमुख औद्योगिक शहर तथा शिक्षा केंद्र है। यह एक जिला एवं संभाग मुख्यालय भी है। औरंगाबाद विश्‍व में अजन्‍ता और एलोरा की प्रसिद्ध बौद्ध गुफाओं के लिए जाना जाता है। इन गुफाओं का निर्माण 200 ईसा पूर्व से लेकर 650 ई. तक हुआ। इन गुफाओं को विश्व धरोहर (वर्ल्‍ड हेरिटेज) में शामिल कर लिया गया है।


मध्‍यकाल में औरंगाबाद भारत में अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखता था। औरंगजेब ने अपने जीवन का उत्तरार्द्ध यहीं व्‍य‍तीत किया था और यहीं औरंगजेब की मृत्‍यु भी हुई थी। औरंगजेब की पत्‍नी रबिया दुरानी का मकबरा भी यही हैं। इस मकबरे का निर्माण ताजमहल की प्रेरणा से किया गया था। इसीलिए इसे 'पश्चिम का ताजमहल' भी कहा जाता है। ७ बज चुके थे तो चाय पिने का मुड हुवा.. पहुच गए एक रेस्टुरेंट में .. २ चाय आर्डर किया बिना चीनी वाली.. तभी वेटर किसी और के लिए कुछ ले कर जा रहा था, तो पूछा क्या है , "साबूदाने की पकौड़ी" मन ललच गया, बचपन में मै नवरात्र में इतजार करता था .. माता जी के ब्रत का ... जब माता जी पूजा पाठ कर के अपना फलहार बनाती, कभी साबूदाने की पकौड़ी कभी कुट्टू की पकौड़ी, भुनी मुगफली... आधा मै लुट के खा जाता, खैर माँ से पूछा, बोली पाहिले १ प्लेट मगावा.. फिर बढ़िया लगी तब... २ चाय के साथ अपनी साबूदाने के पकौड़ी भी आ गयी.. साथ में दही .. मजा आ गया खा कर १-१ पिस मैंने और माँ ने खाया ... फिर आदेशानुसार दुसरे प्लेट की इक्षा बताई तो वो वेटर ने कहा .. सर वो तो ख़तम हो गया :( चलो अब का करे... भुगतान कर चल पड़े वापस होटल ... बाहर गर्मी ज्यादा ही थी.. तो धीरे धीरे ही चल रहे थे, चुकी मराठी पहले मै समझ लेता था उन दिनों जब पेट के लिए महाराष्ट्र में हुवा करता था... लेकिन सब कुछ दिमाक से गायब हो चूका था... तो दुकानों के लिखे शब्दों के सहारे मै याद कर रहा :3  होटल के पास ही एक बड़ा खेल का मैदान .. जहा बच्चे फुटबाल खेल रहे थे तो माता जी को देखने की इक्षा... अन्दर पहुचे ... ढेर सारे बच्चे फुटबाल खेलने में मगन .. तो माता जी भी प्रस्सन... ९ बजे लौट आये होटल... माता जी से खाने के लिए पूछा तो माता जी ने खाने के लिए असहमति जताई तो मैंने अपने लिए भिन्डी फ्राई.. दाल और ४ रोटी... रूम के लिए आदेश कर दिया ... ११ बजे तक यात्रा का विवरण लिखा फिर ११ बजे खाना खा सो गया ... क्यों की कल औरंगाबाद दर्शन का शेडूल जो था ...

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