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Monday, June 6, 2016

कन्याकुमारी और तिरुअनंतपुरम

(6 May 2016- Friday ) कश्मीर भारत माता का मस्तिष्क है तो कन्याकुमारी चरण। कन्याकुमारी, तमिलनाडु राज्य का एक प्राचीन शहर है। इस शहर का नाम कन्याकुमारी ही क्यों हैं? इस नाम के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है।
एक कहावत के अनुसार बहुत समय पहले बानासुरन नाम का दैत्या हुआ था। उसने भगवान शिव कीतपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया और वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु कुंवारी कन्या के अलावा किसी से न हो। शिव जी ने उसे मन माँगा वरदान दे दिया। उसी कालक्रम में भारत में ही एक राजा हुए जिनका नाम था भरत। राजा भरत की आठ पुत्रियां और एक पुत्र था। राजा भरत ने अपना साम्राज्य 9 बराबर हिस्सों में बांट दिया। दक्षिण का हिस्सा जहां वर्तमान में कन्या कुमारी है राजा भरत की पुत्री कुमारी को मिला। मान्यता है कि कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता है।
 
देवी कुमारी पांड्य राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। देवी कुमारी ने उस दौर में दक्षिण में कुशलतापूर्वक राज्य किया। कुमारी की हार्दिक इच्छा थी कि उसका विवाह भगवान शिव से हो, जब ये बात शिव को पता चली तो वह भी विवाह के लिए राजी हो गए। लेकिन देवर्षि नारद चाहते थे कि बानासुरन का अंत कुमारी के हाथों ही हो, इस विघ्न के चलते शिव और कुमारी का विवाह नहीं हो सका। इस दौरान जी बानासुरन को कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो वो सुनकर ही मोहित हो गया, उसने कुमारी को विवाह का प्रस्ताव पहुंचाया। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा दे तो वह बानासुरन से विवाह कर लेगीं। दोनों में युद्ध हुआ और बानासुरन मारा गया। इस तरह देवी कुमारी ने उस दैत्य को मारकर वहां रहने वाले लोगों का जीवन सुखमय कर दिया। 
इसलिए दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्या कुमारी कहा गया। मान्यता है कि जब शिव और कुमारी का विवाह अधूरा रह गया तो वहां जो भी विवाह के लिए तैयारियां की गईं थी वो सब रेत में बदल गईं। और इस तरह आधुनिक कन्याकुमारी शहर की नींव रखी गई।

१२ बज चूका था करीब 6 घंटे के सफर की थकान के कारण हम उस रात हम भी खाना का के गहरी नींद में सो गए... सुबह ६ बजे ही नींद खुल गयी... माता जी नहाने गयी थी... एक दम उजाला हो चूका था... हमारा कमरा तो ऐसा की सब कुछ कमरे से ही .. बाहर जाने की भी जरुरत नहीं ... सामने ही समुद्र और उसके अन्दर तिरुवल्लुवर प्रतिमा: सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो चट्टानें नज़र आती हैं। यह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि तिरुवल्लुवर की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ तिरुवकुरल के 133 अध्यायों का प्रतीक है।

कमरे से निचे उतरे.. चाय के जुगाड़ में... पता चला की यहाँ तो होटल में रूम सर्विस है... सब मिलेगा.. दो चाय का आर्डर कर... बाहर निकले नजारा देखने... पास ही एक ठेले पर चाय की दुकान.. तो एक चाय ले सिगरेट जला सुनने लगे सभी की बात... लेकिन तमिल न आने की वजह से कोई फैयदा नहीं .. जो बस हमको ले कर आया था वो मिल गया उसी चाय की दुकान पर उनसे बताया की कन्याकुमारी के सभी दर्शनीय स्थल मात्र दो किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं। अगर आप के पास समय है तो कन्याकुमारी भ्रमण में आये है तो लगे हाथ आप तिरुअनंतपुरम भी घूम ले क्यों की इस मार्ग में हम सुचिन्द्रम एवं नागरकोविल में मंदिरों के दर्शन कर सकते थे और उसने पुरे जगहों के बारे में बता दिया... मै गया वापस होटल... चाय पीने.. और माता जी को बताया आगे का प्रोग्राम वो चलने के लिए तैयार हो गयी... नीचे आ कर होटल से एक टैक्सी फिक्स किया ३००० रुपये में तिरुअनंतपुरम की यात्रा के लिए...
फिर निकले बाहर न नजारा लेने के लिए... होटल के चारो तरफ एक चक्कर लगया... एक जगह देखा... विवेकानन्द रॉक जाने वाला मार्ग दिखायी दिया। वहा सड़क से ही बड़ी लम्बी लाइन ... पता चला के ये मोटर बोट के लिए लगी लाइन है.. विवेकानन्द रॉक जाने के लिए ..अरे बाप रे... चल दिए आगे ...दोने तरफ बाजार.. जहा साड़ियो... और गिफ्ट की दुकाने लगी थी... आगे एक पतली से गली और सामने ही तट पर कुमारी देवी का मंदिर है.. जहां देवी पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र उतारने पड़ते हैं। दाहिने और बाये दोनों तरफ रास्ते ... हम बाये घूम गये.... आगे तो पूरी चहल पहल हम समुद्र तट पर बने शिल्प बाजार में पहुंच गए। यहां यात्रियों की खासी भीड़ दिखी  यहां से विभिन्न तरह के शंख एवं सीपी आदि खरीदे जा सकते हैं। इनके अलावा सीपी के बने अनेक सुंदर शो-पीस, नारियल के रेशों से बने हस्तशिल्प आदि भी सैलानियों को बेहद पसंद आते हैं। सामने ही समुद्र में उभरी दूसरी चट्टान पर दूर से ही एक नजारा जो दरअसल विवेकानंद रॉक मेमोरियल है। १८९२ में स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी आए थे। एक दिन वे तैर कर इस विशाल शिला पर पहुंच गए। इस निर्जन स्थान पर साधना के बाद उन्हें जीवन का लक्ष्य एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ। विवेकानंद के उस अनुभव का लाभ पूरे विश्व को हुआ, क्योंकि इसके कुछ समय बाद ही वे शिकागो सम्मेलन में भाग लेने गए थे। इस सम्मेलन में भाग लेकर उन्होंने भारत का नाम ऊंचा किया था। उनके अमर संदेशों को साकार रूप देने के लिए १९७० में उस विशाल शिला पर एक भव्य स्मृति भवन का निर्माण किया गया।

आगे बड़ने पर मिलता है शंकराचार्य मंदिर: कन्याकुमारी में तीन समुद्रों-बंगाल की खाड़ी, अरब सागरऔर हिन्द महासागर का मिलन होता है। इसलिए इस स्थान को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है। तट पर कांचीपुरम की श्री कांची कामकोटि पीठम का एक द्वार और शंकराचार्य का एक छोटा-सा मंदिर है। यहीं पर १२ स्तंभों वाला एक मंडप भी है जहां बैठ कर यात्री धार्मिक कर्मकांड करते हैं। समुद्र को छूकर आती तेज हवाओं की शीतलता हमें बहुत भा रही थी। हम प्रकृति के एक नए रूप से साक्षात्कार करने को तत्पर थे।

उसी क्रम में दीखता है नागराज मंदिर : यह शहर नागराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वैशिष्ट्य देखते ही बनता है। देखने में यह मंदिर चीन की वास्तुशैली के बौद्ध विहार जैसा प्रतीत होता है। मंदिर में नागराज की मूर्ति आधारतल में अवस्थित है। यहां नाग देवता के साथ भगवान विष्णु एवं भगवान शिव भी उपस्थित हैं। कन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है।

भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर पर स्थित कन्याकुमारी अद्वितीय शहर है। यह स्थान एक खाड़ी, एक सागर और एक महासागर का मिलन बिंदु है। अपार जलराशि से घिरे इस स्थल के पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर एवं दक्षिण में हिंद महासागर है। यहां आकर हर व्यक्ति को प्रकृति के अनंत स्वरूप के दर्शन होते हैं। कन्याकुमारी देशाटन के साथ ही तीर्थाटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थल है। सागर-त्रय के संगम की इस दिव्यभूमि पर मां भगवती देवी कुमारी के रूप में विद्यमान हैं। इस पवित्र स्थान को एलेक्जेंड्रिया ऑफ ईस्ट की उपमा से विदेशी सैलानियों ने नवाजा है। यहां पहुंच कर लगता है मानो पूर्व में सभ्यता की शुरुआत यहीं से हुई होगी। अंग्रेजों ने इस स्थल को केप कोमोरिन कहा था। तिरुअनंतपुरम के बेहद निकट होने के कारण सामान्यत: समझा जाता है कि यह शहर केरल राज्य में स्थित है, लेकिन कन्याकुमारी वास्तव में तमिलनाडु राज्य का एक खास पर्यटन स्थल है।
मंदिर से कुछ दूरी पर सावित्री घाट, गायत्री घाट, स्याणु घाट एवं तीर्थघाट बने हैं। इनमें विशेष स्नान तीर्थघाट माना जाता है। तीर्थघाट के स्नान के उपरांत भक्त मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं। घाट पर सोलह स्तंभ का एक मंडप बना है। एक सिगरेट की दुकान पर बैठे... सुलगाये... और समझने लगे तो पता चला की मंदिर के गर्भगृह में देवी की अत्यंत सौम्य प्रतिमा विराजमान है। विभिन्न अलंकरणों से सुशोभित प्रतिमा केवल दीपक के प्रकाश में ही मनोहारी प्रतीत होती है। देवी की नथ में जड़ा हीरा एक अनोखी जगमगाहट बिखेरता है। कहते हैं बहुत पहले की बात है, मंदिर का पूर्वी द्वार खुला होता था तो हीरे की चमक दूर समुद्र में जाते जहाजों पर से भी नजर आती थी, जिससे नाविकों को किसी दूरस्थ प्रकाश स्तंभ का भ्रम होता था। इस भ्रम में दुर्घटना की आशंका रहती थी। इसी कारण पूर्वी द्वार बंद रखा जाने लगा। अब यह द्वार बैशाख ध्वजारोहण, उत्सव, रथोत्सव, जलयात्रा उत्सव जैसे विशेष अवसरों पर ही खोला जाता है। माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु इस मंदिर में जलयात्रा पर्व पर आए थे।.. खैर सब समझ के आ गए वापस होटल और नहा धो माता जी को करवाया नास्ता...रात में जहा से पार्सल करवाया था वही मिल गयी पूरी सब्जी... झोर के निकल पड़े तिरुअनंतपुरम की यात्रा पर यहाँ से करीब ८ किलो मीटर ... घंटे आने जाने में... निकल पड़े माता जी को ले कर...

कन्याकुमारी से करीब ६ किलो मीटर की दुरी पर सबसे पहले हमारी गाड़ी रुकी साईं बाबा के मंदिर में... 
सोचा यहाँ भी दर्शन कर ले.. एक दम सुन सान तो टहल लिए... मंदिर में जाने के लिए सीढिया बनी है... साफ सफाई अच्छी... दर्शन कर चल दिए आगे एक तीर्थ भी है 

सुचिंद्रम
कन्याकुमारी के निकट सुचिन्द्रम नामक एक तीर्थ है, जहां धार्मिक आस्था श्रद्धालुओं को खींच लाती है। इस स्थान पर भव्य स्थानुमलयन मंदिर है। यह मंदिर ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की त्रिमूर्ति को समर्पित है। यह त्रिमूर्ति वहां एक लिंग के रूप में विराजमान है। सुचिन्द्रम कन्याकुमारी से मात्र किमी दूर है। सुचिन्द्रम के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन कन्याकुमारी में है। कन्याकुमारी जंक्शन मुख्य बस स्टैंड से 1 किमी की दूरी पर है। सुचिन्द्रम से अगला मुख्य रेलवे स्टेशन, तिरूवनंतपुरम, यह रास्ता नारियल के कुंचों से भरा है।.. हम वहा उतर चले अन्दर... तो वहा पुरुषो दक्षिण भारत के पारम्परिक भेष सफ़ेद लुंगी में लोग दर्शन के लिए जा रहे थे... हम भी अन्दर चले.. बाहर ही चप्पल उतर कर... मंदिर में जाने के लिए बिच में बैरकेटिंग हम अन्दर के रास्ते में चल पड़े.. बीच में हमें एक सभ्य पुरुष ने रोक दिया... बोला “नो शर्ट” नो कैमरा.. क्या करते शर्ट और गंजी कैमरे के साथ वही जमा किया .. चले अन्दर.. मंदिर अन्दर से भी भब्य .. एक जगह फुल माला बिक रहा था तो ले चले अन्दर.. पूजा के लिए.. अन्दर अभिषेक हो रहा था.. इसलिए भीड़ थी.. लेकिन लोग दर्शन कर के.. आगे निकलते जा रहे थे... हमारा नंबर आया तो पुजारी ने फुल माला ले कर रख दिया बोला शाम को चडेगा... जोर जोर के मंत्रोचारण संस्कृत में.. पुजारी जी से चरना मृत ले टिका लगवा.. मंदिर की एक परिक्रमा की..  मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। उस काल के कुछ शिलालेख मंदिर में मौजूद हैं। 17वीं शताब्दी में इस मंदिर को नया रूप दिया गया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु की एक अष्टधातु की प्रतिमा एवं पवनपुत्र हनुमान की 18 फुट ऊंची प्रतिमा विशेष रूप से दर्शनीय है। मंदिर का सप्तसोपान गोपुरम भी भक्तों को प्रभावित करता है। मंदिर के निकट ही एक सरोवर है। जिसके मध्य एक मंडप है। चुकी अन्दर फोटोग्राफी मना थी तो नहीं खीच पाए... दर्शन पूजन संपन्न हुवा... अपना कैमरा और कपडे ले निकले बाहर.. और मंदिर का बाहर से एक फोटो खीचा अब आगे वहां से 8 किमी. दूरी पर नागरकोविल शहर है। 
यह शहर नागराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वैशिष्ट्य देखते ही बनता है। देखने में यह मंदिर चीन की वास्तुशैली के बौद्ध विहार जैसा प्रतीत होता है। मंदिर में नागराज की मूर्ति आधारतल में अवस्थित है। यहां नाग देवता के साथ भगवान विष्णु एवं भगवान शिव भी उपस्थित हैं। मंदिर के स्तंभों पर जैन तीर्थकरों की प्रतिमा उकेरी नजर आती है। जो थोड़े आश्चर्य की बात है। नागरकोविल एक छोटा-सा व्यवसायिक शहर है। इसलिए यहां हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहाँ के बाद अब केरल शुरू हो जाता है अब हम चल रहे थे तिरुअनंतपुरम के रास्ते पर...


अब लगे पूछने त्रिवेंद्रम के बारे में ड्राईवर से.. उ तमिल भाई थे... चुकी उनको हिंदी न आने की वजह से कुछ ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाई... क्यों की वो हिंदी कम समझ रहे थे लेकिन गूगल बाबा की मदत से मिला जुला के मै समझ गया की तिरुअनंतपुरम केरल की राजधानी है, पहले इसका नाम त्रिवेन्द्रम था। तिरुअनंतपुरम का शाब्दिक अर्थ है- तिरु यानी पवित्र एवं अनंत अर्थात सहस्त्रमुखी नाग तथा पुरम यानी आवास। केरल दक्षिण भारत का एक ऐसा राज्य है जहाँ प्रकृति एवं संस्कृति का सबसे अलग संगम मिलता है। इस प्रदेश को एक तरफ अरब सागर के नीले जल तो दूसरी तरफ पश्चिमी घाट की हरी-भरी पहाड़ियों ने अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य प्रदान किया है। सबसे पहले इस राज्य को भारतीय मानसून प्रभावित करता है। इसलिए यहाँ की धरती काफ़ी उर्वर है। केरल में नारियल एवं ताड़ के वृक्षों की भरमार है। नारियल को ‘केर’ भी कहा जाता है। कहते हैं केर वृक्षों की बहुत अधिक पैदावार के कारण ही इसका नाम केरल पड़ा। केरल, भारत का सबसे साफ-सुथरा राज्य है। यहां के खूबसूरत बीच व चारों तरफ की हरियाली आपको यहां दोबारा वापिस आने को मजबूर करेंगी। यहां हर धर्म के लोग रहते हैं। कोवलम बीच, पूवर, पदनाभस्वामी मन्दिर, पेरियार, एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान, साइलेंट वैली, बैकवाटर्स घूमने के लिए बेस्ट जगहें हैं। केरल के लग्जरी बीचों में से पूवर बीच, कोवलम बीच और लाइट हाउस बीच है। यहां के बीच न केवल अपनी सुंदरता और शांति बल्कि अपनी स्वादिष्ट खाने के लिए भी जाने जाते हैं। जो लोग नेचर के क्लोस रहना पसंद करते हैं तो उनके लिए यह जगह बेस्ट है।  यहां आयुर्वेद स्वास्थ्य पद्धति से तरो-ताजा किए जाने की कला भी काफी प्रसिद्ध है। वैसे तो केरल पूरे साल में किसी भी समय जाया जा सकता है। गर्मियों में यहां तापमान 24 -33 डिग्री, सर्दियों में 22-32 डिग्री सेल्सियस और बरसाती ऋतु में 22 -28 डिग्री सेल्सियस तक होता है। खाने-पीने में आपको यहां वेज और नॉन वेज दोनों ही मिल जाएंगे। अगर आप सी फूड के शौकीन हैं तो फिश से लेकर प्रॉन तक आपको हर किस्म का लजीज खाना मिल जाएगा। नारियल पानी, काजू और केला यहां खास है। यहां के लाल केले का स्वाद आपको कहीं और नही मिलेगा।

कुछ दूर चलने के बाद एक खास जगह पर drivar ने गाड़ी रोकी.. बतया की आप यहाँ वॉटर स्पोर्ट्स और पैडल, स्पीड बोट से बोटिंग का आनंद भी ले सकते हैं केरला में बसा पूवर खूबसूरत गांव है, जहां एक ओर बीच और दूसरी तरफ बैकवार्ट्स  शांत वातावरण और नैचुरल ब्यूटी के लिए मशहूर है। अन्दर पहुचे... ये जगह थी नए ब्याहता का बीबी बच्चो के साथ मौज मस्ती करने की.. खास में ये बच्चो के लिए रोमांचकारी अनुभव होगा यह त्रिवेंद्रम के दक्षिणी सिरे पर स्थित है। खूबसूरत बीचों की वजह से ही यहां टूरिस्ट बड़ी संख्या में घूमने के लिए आते हैं। पूवर की खूबी यह है कि यहां आप बैकवॉटर और समुद्र दोनों के ही सुंदरतम दृश्य का आनंद एक साथ उठा सकते हैं। वैसे केरल की खूबसूरती का सबसे ज्यादा आनंद मानसून के दौरान ही उठाया जा सकता है। यह बात इन दिनों यहां आने वाले सैलानियों की संख्या देखकर साबित भी होती है। घने जंगल, ऊंचे-ऊंचे पर्वत शिखर, बहती नदियां, समुद्री झीलें, ताल-तलैया, झरने और आकर्षक सागरतट। चारों तरफ जबर्दस्त हरियाली। बस यूं समझिये कि प्रकृति के उपहारों का भरपूर वरदान है- केरल। तभी तो इसे ईश्वर की अपनी भूमि कहा जाता है। यहां   का बेली टूरिस्ट विलेज आधुनिक पर्यटन आकर्षण का केंद्र कहा जा सकता है। वेली लगून और उसके साथ ही विकसित मनमोहक पार्क एक सुंदर पिकनिक स्पॉट है। यहां के खूबसूरत लैंडस्केप पर्यटकों को खूब भाते हैं। यहां । हरे-भरे वृक्षों से घिरी झील और झील पर बना हैंगिंग ब्रिज भी अद्भूत नजारा पेश करता है। शहर से 16 किमी दक्षिण की ओर बसा कोवलम अपने आप में संपूर्ण पर्यटन स्थल है। कोवलम और तिरुअनंतपुरम आने वाले पर्यटक केरल की आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का लाभ भी उठाते हैं। यहां से आप आक्कुलम पर्यटन केंद्र, तिरुवल्लभ नौका विहार, पद्मनाभपुरम व मिनी हिल स्टेशन पोनमुड़ी भी जा सकते हैं। सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र माने जाने वाले मार्गी और सीवीएन कालारी जाकर कोडिअट्टम, कथकली, मोहिनीअट्टम और चाक्यारकुट्टु जैसे नृत्य का आनंद ले सकते हैं। खैर अपने माता जी को पसंद न आने की वजह से हम चले अगले पड़ाव पर 

कोवलम बीच
कोवलम का मतलब है-नारियल के पेड़ों का झुरमुट। पर कोवलम में नारियल के पेड़ों के झुरमुट नहीं, बल्कि घने जंगल हैं। दुनिया के सुंदरतम समुद्र-तटों में शुमार कोवलम हर उस सैलानी को लुभाता है, जो कुदरत की बेपनाह खूबसूरती अपने दिलो-दिमाग में भरने की ख्वाहिश रखता है। कोवलम का समुद्री तट धनुष के आकार है। वैसे तो कहने को ये तीन छोटे-छोटे समुदी तटों में बँटा हुआ है पर इसके दक्षिणी सिरे पर जो 'लाइट हाउस बीच' (Lighthouse Beach) है वही यहाँ का मुख्य समुदी तट है। सारी दुकानें, कुछ होटल और भोजनालय इसी तट पर स्थित हैं। हुआ। लाइटहाउस दिन में दो से चार बजे ही खुलता है पर अगर आपको इस पूरे धनुषाकार समुद्री तट का नज़ारा देखना हो तो आपको समय निकालकर वहाँ जाना चाहिए। ये बात हमें वहाँ से वापस लौटकर पता चली समुद्र बीच कोवलम में तीन प्रसिद्ध बीचों में से एक है। समुद्र बीच कोवलम के उत्तरी समुद्र तटीय किनारे पर स्थित है और दोनों बीचों की तरह यह पर्यटकों की भीड़ को आकर्षित नहीं करता है। इसकी मुख्य वजह दक्षिणी औए उत्तरी समुद्रतट पर बीचों की एक बड़ी रेंज की उपस्थिति है। पर्यटकों की भीड़ न होने की वजह से स्थानीय मछुआरे समुद्र तट के इस हिस्से पर मछली पकड़ना पसंद करते हैं। छोटी सी खाड़ी के समान रेतीला तट, बलखाती समुद्री लहरें, कतार से लगी छतरियों के नीचे विश्राम करते सैलानी, तट के छोर पर नजर आता लाइटहाउस, पीछे की ओर लहराते ताड़ के वृक्षों के झुरमुट, छोटे-छोटे सफेद बादलों से सजा नीला आसमान-सब कुछ एक मुकम्मल तस्वीर जैसा लगता है। समुद्री हवाओं के झोंके और लहरों का जबरदस्त शोर कुछ पल में ही एहसास करा देता है कि हम कोई तसवीर नहीं बल्कि वास्तविक दृश्य देख रहे हैं। वास्तव में कोवलम बीच संसार के सुंदरतम समुद्रतटों में से एक है। यह मनमोहक तट तीन छोटी-छोटी अ‌र्द्धचंद्राकार खाडि़यों के रूप में विभाजित है, जिनके किनारों पर छोटे-छोटे चट्टानी टीले स्थित हैं। दक्षिणी छोर के ऊंचे टीले पर एक लाइट हाउस है। तट पर विदेशी पर्यटकों की भरमार रहती है। ठंडे देशों से आए इन लोगों को कोवलम का उन्मुक्त वातावरण बहुत रास आता है।

यदि आप इतने साहसी हैं कि बीच के इस ओर आने का जोख़िम उठा सकते है तो आपको सौम्य लहरों का चट्टानों के खिलाफ साहस देख कर खुशी होगी जो वापस आने तक कम होती चली जाएगी। यहाँ समुद्र तट को घेरती हुई एक दीवार है जहां आप बैठ सकते हैं और सुंदर दृश्यों का आनंद ले सकते हैं समुद्र तट नारियल और पाम के पेड़ों से भरा पड़ा है जो इस क्षेत्र को पन्ने जैसी गुणवत्ता प्रदान करता है।

वहा पर भी बच्चो के लिए ही adventure है, किनारे गाइड घूमते है जो समुद्र बीच के पास ही अशोक बीच भी है, यह भी पर्यटकों के बीच एक हिट नहीं है और पर्यटकों को आकर्षित नहीं करता। लेकिन यहां मोटर-बोट, वॉटर स्कूटर आदि से समुद्र की सैर का भी इंतजाम है। यहां से बाएं मुडम् कर लाइट हाउस की तरफ चलें तो किनारे की रेत पर तमाम विदेशी पर्यटक बदन उघाड़े लेटे या फिर पानी में अठखेलियां करते नजर आएंगे। यहां परिवार सहित आने वाले भारतीय जरा बच कर और नजरें बचा कर ही निकलते हैं। कुरुमकल पहाड़ी पर बने 35 फुट ऊंचे इस लाइट हाउस के ऊपर जाकर आप पूरे कोवलम का विहंगम दृश्य अपनी आंखों और कैमरों में कैद करते हैं।

अब हमारा अगला पड़ाव था यहां का पद्मनाभ स्वामी मंदिर पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। मान्यता है कि यह मंदिर उसी स्थान पर स्थित है, जहां भगवान विष्णु की प्रतिमा प्राप्त हुई थी। देश में भगवान विष्णु को समर्पित 108 दिव्य देशम मंदिर हैं। यह उनमें से एक है। त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने 1733 में इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। इस भव्य मंदिर का सप्त सोपान स्वरूप अपने शिल्प सौंदर्य से दूर से ही प्रभावित करता है। इसका वास्तुशिल्प द्रविड़ एवं केरल शैली का मिला-जुला रूप है। मंदिर का गोपुरम द्रविड़ शैली में बना है। 30 मीटर ऊंचा गोपुरम बहुसंख्यक शिल्पों से सुसज्जित है। मंदिर के सामने एक विस्तृत सरोवर है। जिसे पद्मतीर्थ कुलम कहते हैं। इसके आसपास लाल टाइल्स यानी खपरैल की छत के सुंदर घर हैं। ऐसे पुराने घर यहां कई जगह देखने को मिलते हैं।

यहां दर्शन के लिए विशेष ड्रेस कोड है। पुरुषों को धोती तथा स्त्रियों को साड़ी पहन कर ही मंदिर में प्रवेशकरना होता है। ये परिधान यहां किराए पर मिलते हैं। गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा है। यहां भगवान अनंतशैया अर्थात सहस्त्रमुखी शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। शहर का नाम भगवान के अनंत नामक नाग के आधार पर ही पड़ा है। तिरु यानी पवित्र एवं अनंत अर्थात सहस्त्रमुखी नाग तथा पुरम यानी आवास। भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को पद्मानाभ एवं अनंतशयनम् भी कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान के दर्शन तीन हिस्सों में होते हैं। पहले द्वार से भगवान विष्णु का मुख एवं सर्प की आकृति दिखती है। दूसरे द्वार से भगवान का मध्यभाग तथा कमल में विराजमान ब्रह्मा नजर आते हैं। तीसरे भाग में भगवान के श्री चरणों के दर्शन होते हैं। गर्भगृह में शिखर पर फहराते ध्वज पर विष्णु के वाहन गरुड़ की आकृति बनी है। मंदिर में एक स्वर्णस्तंभ भी है। मंदिर की दीवारों पर पौराणिक घटनाओं और चरित्रों का मोहक चित्रण है। जो मंदिर को अलग ही भव्यता प्रदान करता है। मंदिर के चारों ओर आयताकार रूप में एक गलियारा है। गलियारे में 324 स्तंभ हैं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है। ग्रेनाइट से बने मंदिर में नक्काशी के अनेक सुंदर उदाहरण देखने को मिलते हैं।

मंदिर के निकट ही त्रावनकोर के महाराजा का महल स्थित है। इसका निर्माण महाराजा स्वाति तिरुनल बलराम वर्मा द्वारा कराया गया था। वह एक कवि, संगीतज्ञ एवं समाज सुधारक थे। यह महल त्रावनकोर की पारंपरिक निर्माण शैली का सुंदर नमूना है। महल के एक भाग में कुतिरामलिका पैलेस म्यूजियम दर्शनीय है। इस संग्रहालय में सुंदर चित्र, काष्ठ नक्काशी के नमूने, राज परिवार से संबंधित अनेक मूल्यवान वस्तुएं, काष्ठ प्रतिमाएं, सिक्के आदि प्रदर्शित हैं। लकड़ी से बने महल के दो मंजिला भवन में कई झरोखे एवं खिड़कियां हैं। पर्यटकों के लिए यहां समय-समय पर विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। तीन बज चूका था चुकी यहाँ माता जी के हिसाब से कुछ नाही मिला देखने लायक तो अब वापस कन्या कुमारी..रस्ते में चाय नास्ते कर .. पहुच गए ५ बजे कन्या कुमारी

अभी पूरा उजाला ही था, तो होटल में पहुच चाय पिलाई माता जी की और कुछ देर के विश्राम के बाद शाम होने से पूर्व निकल पड़े कुमारी अम्मन मंदिर हमने सुना था कि सैलानी यहां दो उद्देश्यों से आते हैं। पहला उद्देश्य कुमारी अम्मन मंदिर में पराशक्ति के दर्शन करने का तो दूसरा सूर्य के उदय और अस्त की अद्भुत बेला को देखने का होता है। इसलिए हम पैदल ही कुमारी अम्मन मंदिर की ओर चल दिए। सुबह मै बाई तरफ घुमा था.. अब दाहिनी तरफ... उपर जाने के लिए सीढिया... भीड़ भाड यहाँ भी शिल्प बाजार और कपडे.. खिलौने.. लेकिन अपने काम का कुछ भी नहीं तो हम पुन: सागर तट पर आ गए। हम भारत भूमि के अंतिम भू-बिंदु पर खड़े थे। सामने लहराता सागर, दूर क्षितिज तक फैली अनंत जलराशि, प्रकृति की यह अगाध संपदा हमें मनुष्य की लघुता का एहसास करा रही थी। ऐसे स्थान पर खड़े होकर मानव मन में ईश्वर के प्रति समर्पण का पवित्र भाव जन्म लेता है। तब हमें याद आता है कि हिमालय की विशालता भी तो ऐसे ही भाव को जन्म देती है। दोनों ही स्थानों पर प्रकृति अपने अलग-अलग रूप से एक ही सीख देती है। प्रकृति की समीपता में ही प्रभु की समीपता महसूस होती है और हृदय से सारी मलिनता धुल जाती है। तभी विचार आता है कि यहां से जाने के बाद पुन: जीवन की आपाधापी में भी क्या हम इन भावों को हृदय में संजोए रख पाएंगे? मन को मजबूत कर निर्णय लेते हैं कि इसके लिए ईमानदारी से प्रयास करेंगे। यदि कुछ भाव भी स्थायी रूप से हृदय में बस गए तो वह हमारे लिए एक उपलब्धि होगी। क्षितिज की ओर देखते हुए हम विचार मग्न थे। हमें एहसास ही नहीं हुआ कि उस स्थान पर काफी भीड़ जुट गई है। सबकी नजरें पश्चिम दिशा में थी। जिधर सूर्य अस्ताचल की ओर बढ़ रहा था।


हर सैलानी का ध्यान सूर्य की ओर था। हिलोरें लेती सागर की लहरें, चट्टानों से टकराकर गर्जन कर रही थीं, मानो यात्रियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही हों। सूर्य अपनी संपूर्ण ऊष्मा समेट चुका था। आकाश में नारंगी आभा फैलने लगी थी। लाल वृत्त का प्रतिबिंब समुद्र में झिलमिला कर अनोखे दृश्य प्रस्तुत कर रहा था। यहां तो दिनमान अपना वैभव समेट सागर में समाने को बढ़ रहा था। सबकी दृष्टि उसी दिशा में स्थिर थी। फिर वह पल भी आ गया, जब ऐसा लगा जैसे सूर्य ने सागर को स्पर्श कर लिया हो। यह क्या। जी भरकर इस दृश्य को निहारने का अवसर भी नहीं मिला। धीरे-धीरे दिवाकर सागर में समाने लगा और कुछ पलों में ही अस्त हो गया। फिर भी सबकी दृष्टि अभी भी क्षितिज पर थी, जहां अब थोड़ी-थोड़ी लोहित आभा के अलावा कुछ न था। अंधकार को तो जैसे इसी पल की प्रतीक्षा थी। उसने चारों ओर अपना प्रभाव फैलाना आरंभ कर दिया। कितनी अनुपम दृश्यावली थी। वास्तव में ऐसे दृश्य और कहां देखने को मिलेंगे? बताते हैं चैत्र माह की पूर्णिमा पर तो इस दृश्य में एक और आयाम जुड़ जाता है। उस दिन पश्चिम में सूर्यास्त होते ही पूर्व में चंद्रोदय भी देखने को मिलता है। ऐसे दृश्य की कल्पना से ही एक रोमांच महसूस हुआ। हम सोचने लगे, ऐसे दुर्लभ दृश्य को देखने का सौभाग्य क्या हमें इस जीवन में मिल सकेगा। तट से किनारे ही महात्मा गाँधी स्मारक तीन सागरों का संगम स्थल होने के कारण हमारी धरती का यह छोर एक पवित्र स्थान है। इसलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अस्थि अवशेषों का एक अंशसमुद्र संगम पर भी प्रवाहित किया गया था। समुद्र तट पर जिस जगह उनका अस्थि कलश लोगों के दर्शनार्थ रखा गया था, वहां आज एक सुंदर स्मारक है, जिसे गांधी मंडप कहते हैं। मंडप में गांधी जी के संदेश एवं उनके जीवन से संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाओं के चित्र प्रदर्शित हैं। स्मारक के गुंबद के नीचे वह स्थान एक पीठ के रूप में है, जहां कलश रखा गया था। यह शिल्प कौशल का कमाल है कि प्रतिवर्ष गांधी जी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को दोपहर के समय छत के छिद्र से सूर्य की किरणें सीधी इस पीठ पर पड़ती हैं। गांधी मंडप के निकट ही मणि मंडप स्थित है। यह तमिलनाडु के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कामराज का स्मारक है। कन्याकुमारी का सेंट मेरी चर्च भी एक दर्शनीय स्थान है। इसकी ऊंची इमारत विवेकानंद मेमोरियल से आते हुए बोट से भी नज़र आती है।

तट के किनारे आगे बढ़ते ही एक खुला सा स्थान दिखायी दिया यहाँ पर खाने-पीने का सामान बेचने वाले काफ़ी संख्या में खड़े थे। मेले जैसी भीड़... खाने की दुकाने, केले की पकौड़ी, मिर्ची वाडा मन ललच गया तो टेस्ट कर लिए तट की किनारे थोड़ी देर बैठे तो हमें एक लैटिन कहावत याद आई-सूर्य पुन: उदय होने के लिए अस्त होता है। इस कहावत का भावार्थ तो हमें समझ नहीं आया। लेकिन यहां आकर लगा कि कन्याकुमारी में तो वास्तव में सूर्य अपने अस्त होने के क्रम में खूबसूरती प्रदान कर अगली सुबह उदय होने के नियम को भी उतनी ही भव्यता प्रदान करने आता है। एक ही स्थान से सूर्यास्त और सूर्योदय का अपूर्व मंजर बस कन्याकुमारी में ही देखने को मिल सकता है। वापस होटल की ओर चले कुमारी अम्मन मंदिर के दर्शन करते हुवे 


जब हम देवी दर्शन हेतु पहुंचे तो पता चला कि मंदिर में पुरुषों को ऊपरी वस्त्र यानी शर्ट एवं बनियान उतार कर जाना होता है। इस परंपरा का कारण हमें ज्ञात न हो सका। लेकिन मैंने शर्ट एवं बनियान उतर कंधे पर रख लिया और कैमरा जमा कर दिया.. फुल माला ले कर अन्दर चले, वहा तेल भी बिक रहा था, जो मंदिर में अखंड ज्योति में डाला जाता है.. ले कर हमने भी डाल दिया और पहुच गए देवी के सामने देवी का महाभिषेक एवं श्रृंगार हमारे पहुंचने से पूर्व हो चुका था। अन्दर पहुचे तो शाम की आरती हो रही थी तो आरती देखने के लिए रुक गए। परिसर में हमने महादेव मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर और चक्रतीर्थ के दर्शन भी किए।

अब होटल वापसी... होटल के कमरे में... होटल में ही खाने की ब्यवस्था थी तो माता जी के लिए बिना प्याज लहसुन की सभी और पराठे का आर्डर दे दिया था, कमरे में आ भी गया जल्दी ही नौ बजे तो माता जी को खिला के सुला दिया और अब कल क्या देखना धुमना है लगे कमरे के बाहर बालकनी में कुर्सी लगा कर चांदनी रात में ढूढने गूगल पर... अब कल का प्रोग्राम फिक्स हुवा तो खाना खा कर बिस्तर पर... कल शाम की ट्रेन भी थी... घूम तो चुके ही थे.



(7 May 2016- Saturday ) सुबह 7 बजे माता जी जगाई उठ जा.. फटा फट उठे... सूरज पूरा सर पर... फटा फट चाय मगाया.. और फ्रेश हो निचे उतरे... अब कुछ शोपिंग की जाये... बाजार के निकट ही बोट जेटी से पर्यटक विवेकानंद रॉक मेमोरियल तक पहुंचते हैं। हम लोग जब बोट जेटी तक पहुंचे तो वहां काफी भीड़ थी। वहा सडको पर माला घडी चस्मा बेचते मिल जाते है जो हिंदी अच्छी बोल लेते है...



हमने भी कर ली बच्चो के लिए घडी और चश्मे की.. कुछ मोतियों के माले दिखे वो भी ले लिया ... १० बजे चुके थे आये कमरे में १२ बजे कमरा खाली भी करना था तो नहा धो के फ्रेश हुवे और पैकिंग शुरू की ११ बजे तक सब काम ख़त्म कर अब भोजन की बारी.. क्यों की नास्ते का समय ख़तम हो चूका था.. तो होटल का नीचे ही रेस्टोरेंट था वही चावल दाल रोटी सब्जी मिल गया १२ बजे सामान होटल के काउंटर पर रख कमरा खाली कर दिए.. 

अब बारी थी ही विवेकानंद रॉक चल पड़े अब भीड़ कम हो चुकी थी इसलिए हमें अधिक देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। थोड़ी देर में ही हमारा नंबर आ गया और बोट द्वारा १५ मिनट में हम विवेकानंद रॉक पहुंच गए। विवेकानन्द रॉक मेमोरियल पहुंचते  समय तक काफी धूप हो गयी थी। वहां हमे जूते उतारने पड़े। इस कारण वहां चलने में मुश्किल हुयी, पैर में छाले से पड़ने लगे। समुद्र की लहरों से घिरी इस शिला तक पहुंचना भी एक अलग अनुभव है। स्मारक भवन का मुख्य द्वार अत्यंत सुंदर है। इसका वास्तुशिल्प अजंता-एलोरा की गुफाओं के प्रस्तर शिल्पों से लिया गया लगता है। लाल पत्थर से निर्मित स्मारक पर ७० फुट ऊंचा गुंबद है। भवन के अंदर चार फुट से ऊंचे प्लेटफॉर्म पर परिव्राजक संत स्वामी विवेकानंद की प्रभावशाली मूर्ति है। यह मूर्ति कांसे की बनी है जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फुट है। यह मूर्ति इतनी प्रभावशाली है कि इसमें स्वामी जी का व्यक्तित्व एकदम सजीव प्रतीत होता है। यहां स्वामी विवेकानंद की विशाल आदमकद मूर्ति के अलावा उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस और गुरु मां कीतस्वीरें भी हैं। एक ध्यान मंडप भी है और एक शक्तिपीठ मंदिर भी। यहां से समुद्र का शानदार नीला नजारा नजर आता है। विवेकानंद रॉक से हमें कन्याकुमारी अंतरीप का मनभावन दृश्य भी देखने को मिला। हमने देखा कैसे सागर की उत्ताल तरंगें बार-बार तट को छू कर आती है। मानों तीनों सागरों में भारतमाता के पांव पखारने की होड़ लगी हो। शिला पर स्थित पाद मंडप में हमने देवी के पदचिह्न के दर्शन भी किए। करीब एक घंटे घुमने के बाद निकले.. लाइन लम्बी थी... तभी वहा एक सज्जन मिले इतनी भीड़ में.. बोले सर क्या आप अपना १० मिनट का समय देगे... जरुर देगे.. आप लीजिये...हमें वो उस लाइन से निकाल का सामने ही ऑफिस में ले गए ये विवेकानंद मेमोरियल का ऑफिस था... अन्दर २ लोग बैठे थे.. उन्होंने विवेकानंद ट्रस्ट की तरफ से चलाए जा रहे समाज सेवा के बारे में जानकारी दी और मेंबर बनने का अनुरोध .. खैर ५०० रुपये दे कर मेंबर भी बने.. और कुछ किताबे खरीद निकल पड़े बाहर
हम वहां से दूसरी बोट से सामने ही इसी के पास एक दूसरी चट्टान पर तमिल के संत कवि तिरूवल्लुवर की फुट मूर्ति के पास पहुचे तिरुक्कुरुल की रचना करने वाले अमर तमिल कवि तिरूवल्लुवर की यह प्रतिमा पर्यटकों को बहुत लुभाती है। 38 फीट ऊंचे आधार पर बनी यह प्रतिमा 95 फीट की है। इसका वजन 2000 टन है। इस प्रतिमा को बनाने में कुल 1283 पत्थर के टुकड़ों का उपयोग किया गया था अभी समय था दिन के २ ही बजे थे.. तो माता जी के आदेशा अनुसार पुनः पहुचे हिन्द महासागर, बंगाल की खाङी तथा अरब सागर का संगम स्थल यहाँ हर तरफ उठ रही खूबसूरत समुद्री लहरें आपके मन को हिलोरें लेने पर मजबूर कर देगी जहा माता जी ने बोतल में जल भरे... पानी की लहरे इतनी तेज थी की पहली बार बोतल बह गयी... मैंने कहा मै भर देता हु... लेकिन लहरों में जाने से मना कर दिया मुझे... और खुद ही भर के ले ली संगम का जल कपडे भीग चुके थे उनके... लेकिन हवा ठण्ड थी... थोड़ी विश्राम कर नीबू पानी पिया और चल दिए होटल से सामान ले कर एक ऑटो से चेन्नई के लिए



12634 / KANYAKUMARI EXP ट्रेन जो शाम ५.२० की ट्रेन थी... जहाँ तक नज़र उठाओ वहां तक ऐसा व्यतीत होता है जैसे नीली रेशमी चादर सिलवटों में सिमटती अपना रंग बिखेर रही हो। समुद्र का कल कल करता पानी मन को सुकून देता है। कन्याकुमारी खूबसूरत पर्यटन स्थल होने के साथ साथ तीर्थ स्थल भी है। तो अब बीबी और बेटे के साथ क्यों न धरती का आखिरी छोर कन्याकुमारी की सैर की जाए। कुली की मदत से अपनी बोगी में सामान रख दिए और लगे खोजने खाने पिने का सामान, अभी 1 घंटा बाकी था... प्लेटफोर्म पर सूजी का उपमा और आलू की सब्जी मिली, तो चटपटा बनाने के लिए एक नमकीन का पैकेट और ठंडा पानी भी लिया... माता जी के लिए केला, क्यों की वो तो खाती नाही , प्याज लहसुन जो था 
.... समय पर ट्रेन चल दी... यात्री कम ही थे... २० मिनट के बाद अगले स्टेशन पर भर गयी ट्रेन... लेकिन ट्रेन में भी खाने पिने के सामान बिक रहे थी लेकिन भाषा न समझ पाने के कारण कुछ ले नाही पाए..एक स्टेशन पर इडली दिखी तो ले लिया.. . ट्रेन अपनी पूरी गति में थी...माता जी इडली और केला खा बिस्तर लगाने के लिए आदेश दी... बिस्तर लगाते ही वो सो गयी.... तो भी उत्पम और इडली खा बिस्तर पकड़ लिया


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