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Wednesday, June 1, 2016

मदुरई साइड सीन

दिन के तीन बजे हम निकले एक मिनी बस से मदुरई के अन्य दर्शनीय जगहों के दर्शन के लिए उस मिनी बस में १२-१४ परिवार था जो सब हिंदी ही बोल रहे थे

मदुरै के टूर के लिए वहा छोटे छोटे ट्रेवल एजेंट है... जो आपके बजट के हिसाब से प्लान बना देते है... और सभी एजेंट अपने अपने यात्रियों को उस रूट के बस पर यात्रिओ को बैठा देते है... जिसमे बस और गाइड की ब्यवस्था होती है...और गाइड घुमाने के एवज में २०-२० रुपये लेता है..   तब हम भी सवार हो चले... साथ ही अन्य एजेंट के भी यात्री के साथ ...
उसने भी मदुरै की कथा सुनाई की मदुरै एक समय में तमिल शिक्षा का मुख्य केंद्र था और आज भी यहां शुद्ध तमिल बोली जाती है। यहाँ शिक्षा का प्रबंध उत्तम है। यह नगर जिले का व्यापारिक, औद्योगिक तथा धार्मिक केंद्र है। उद्योगों में सूत कातने, रँगने, मलमल बुनने, लकड़ी पर खुदाई का काम तथा पीतल का काम होता है। मदुरई शहर मीनाक्षी सुंदरेश्वरर मंदिर को घेरे हुए आसपास बसा हुआ है। मंदिर के किनारे से एक दूसरे को घेरे हुए आयताकार सड़कें, महानगर की शहरी संरचना का आभास देती हैं। पूरा शहर एक कमल के रूप में रचा हुआ है. फिर हम पहुचे


तिरुमलई नायक पैलेस 
तिरुमलई नायक पैलेस मदुरै का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। यह महल मीनाक्षी मंदिर से बेहद करीब है। मदुरई में स्थित इस महल से प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर की दूरी लगभग 1.2 किमी हैइसका निर्माण 1636 में किया गया था। इस महल की रूपरेखा एक इटालियन आर्किटेक्ट ने राजा के लिए इसे बनाया था। राजा और उनका परिवार यहां रहते थे। महल की दीवारों पर की गई नक्काशी बेहद जीवंत दिखती है। इस महल के दो महत्वपूर्ण भाग हैं जिसे स्वर्गविलास और रंगविलास के नाम से जाना जाता है। स्वर्गविलास सिंहासन-कक्ष के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। महल के महत्तवपूर्ण भागों में शाही निवास, थिएटर, शस्त्रागार, शाही मंच, कमरे, तालाब और बाग शामिल हैं। तिरुमलई नायक महल का आंगन और नृत्य हॉल आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। महल के 6 फिट व्यास के मोटे-मोटे स्तंभ और सीलिंग पर की गई चित्रकारी दर्शनीय है लेकिन दुखद यह है कि इतने सुंदर एतिहासिक महल को लोग स्क्रेचिंग कर चौपट कर रहें हैं. स्तम्भों पर लोग I love you..... और I miss you...., दिल का चित्र स्क्रेचिंग कर बर्बाद कर रहें हैं. यहां तक की उस पर तमाम अश्लील बातें भी लिख दी है.कहा जाता है कि ब्रिटिश राज में महल का प्रयोग प्रशासनिक कार्यो के लिए किया जाता था।

इसके अलावा भी महल मे अनेक स्थान हैं जहां पर्यटकों को जाने की अनुमति है। इस महल में घूमने के लिए प्रवेश शुल्क देना पड़ता है। कहा जाता है कि ब्रिटिश राज में इस जगह का इस्तेमाल प्रशासनिक कार्यो के लिए किया जाता था। अब इसकी देखरेख भारतीय पुरातत्व विभाग करता है और इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जा चुका है। शाम को यहां लाइट एंड साउंट शो का आयोजन किया जाता है जिसमें रोशनी और ध्वनि के माध्यम से राजा के जीवन और उनके मदुरै में शासन के बार में बताया जाता है...

अब हमारी बस चली आगे वंदीयुर मरियम्मन तेप्पाकुलम
वंदीयुर मरियम्मन तेप्पाकुलम एक विशाल कुंड है। सरोवर के उत्तर में तमिलनाडु की ग्रामीण देवी मरियम्मन का मंदिर है। १६३६ में बना यह कुंड मदुरै का पत्थर से बना सबसे बड़ा कुंड है। इसका निर्माण राजा तिरुमलई नायक ने करवाया था। उनकी वर्षगांठ (जनवरी-फरवरी) पर यहां रंगबिरंगे फ्लोट फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है जिसमें सरोवर को रोशनी और दियों से सजाया जाता है। इस उत्सव में भाग लेने के लिए स्थानीय लोगों के अलावा बड़ी संख्या में सैलानी भी यहां आते हैं।

फिर हमारी बस पहुची गांधी संग्रहालय :
गांधी संग्रहालय रानी मंगम्मल के लगभग ३०० वर्ष पुराने महल में स्थित है। अन्दर फोटोग्राफी की जा सकती है लेकिन ५० रुपये शुल्क दे कर यह संग्रहालय देश के उन सात संग्रहालयों में से एक है जिनका निर्माण गांधी मेमोरियल ट्रस्ट ने करवाया था। यहां पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन और कार्यो को दर्शाया गया है। संग्रहालय में गांधीजी की किताबों और पत्रों, दक्षिण भारतीय ग्रामीण उद्योगों एवं हस्तशिल्प का सुंदर संग्रह देखा जा सकता है। उपरी मंजिल पर हमें देखने को मिला बापू के इस्तेमाल किए गमछे का एक टुकड़ा। यह वही गमछा है जिसे बापू ने आखिरी वक्त में अपने शरीर पर डाल रखा था। बापू को 30 जनवरी 1948 को गोली लगने के बाद खून के छींटे के निशान इस गमछे पर हैं। बापू के मदुरै में रहने वाले सहयोगी इस गमछे को लेकर आए मदुरै के संग्रहालय में। म्यूजिम के बाहर एक पुस्तक बिक्रय केंद्र भी है। पड़ोस में एक राज्य सरकार का पुरात्तव विभाग का भी संग्रहालय है। एक विशाल डायनासोर की प्रतिमा भी है। इसे कुछ भागों के बांटा जा सकता है जैसे- प्रदर्शिनी, फोटो गैलरी, खादी, ग्रामीण उद्योग विभाग, ओपन एयर थिएटर और संग्रहालय।

अजगर कोइल :
मदुरई से करीब २२  किमी. दूरी पर स्थित अलगर कोविल मंदिर, भगवान विष्णु को समर्पित है। भगवानविष्णु यहाँ देवी मीनाक्षी के भाई “अज़हागर” के रूप में पूजे जाते हैं। इस लिए यहां पर भगवान विष्णु को अजगर नाम से पुकारा जाता है। मंदिर के अन्दर फोटो खीचने की इजाजत नहीं है मंदिर में नक्काशीदार खम्बे, मंडप और गोपुरम, दक्षिण भारतीय शिल्पकला मेंबनाए गये हैं। मान्यता है कि सिरुमलाई पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में श्रीहरि अपनी बहन मीनाक्षी (माँ दुर्गा का रूप) और भगवान सुन्दरेश्वर (भगवान शिव) की शादी में आये थे। भगवान करुप्पास्वामी की मूर्ति उस समय की उत्कृष्ट मूर्तिकला का उदहारण है। भगवान सुब्रमण्यम के छ: निवासों में से एक पलामुधिरसोलक्षर अजगर कोइल के ऊपर चार किमी. दूर है। पहाड़ी की चोटी पर नुबुरगंगई नामक झरना है जहां तीर्थयात्री स्नान करते हैं। प्रत्येक वर्ष यहाँ “चिथिरै त्यौहार” मनाया जाता है।                                                  चिथिरई उत्सव, तमिलनाडू राज्य के मदुरई शहर का विश्व प्रसिद्ध उत्सव है। प्रत्येक वर्ष करीब 12 दिनों तक धूमधाम से मनाये जाने वाले इस उत्सव में लाखों की संख्या में पर्यटक शामिल होते हैं। मदुरई के प्रमुख मंदिरों में से एक श्री मीनाक्षी अम्मान मंदिर में यह उत्सव आयोजित किया जाता है। पौराणिक कथा अनुसार, भगवान कल्लाज्हागा (श्री विष्णु के अवतार) सोने के घोड़े पर सवार होकर अपनी बहन मीनाक्षी (माँ पार्वती की अवतार) और भगवान सुन्दरेश्वर (शिवजी के अवतार) की शादी में यहाँ आये थे।

चिथिरई उत्सव के विशेष आकर्षणों में देवी मीनाक्षी का राज्याभिषेक, देवी देवताओं की रथ-यात्रा तथा देवी मीनाक्षी और भगवान सुन्दरेश्वर की शादी है। इस त्यौहार के दौरान मदुरई के निकट स्थित अलगर कोविल मंदिर से भगवान कल्लाज्हागा की प्रतिमा को सोने के घोड़े पर मदुरई लाया जाता है। पर्व की समाप्ति पुनः भगवान कल्लाज्हागा के अलगर कोविल लौटने के साथ होती है।

तिरुप्परनकुंद्रम मुरुगन मन्दिर :
कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं। माता द्वारा दिये गए एक शाप के कारण ही ये सदैव बालक रूप में रहते हैं। परंतु उनके इस बालक स्वरूप का भी एक रहस्य है। इनका एक नाम ‘स्कन्द’ भी है और इन्हें दक्षिण भारत में ‘मुरुगन’ भी कहा जाता है। भगवान कार्तिकेय के अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं। इनकी पूजा मुख्यत: भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर तमिलनाडु में होती है। इसके अतिरिक्त विश्व में श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर आदि में भी इन्हें पूजा जाता है। भगवान स्कंद के सबसे प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडू में स्थित हैं, इन्हें तमिलों के देवता कह कर भी संबोधित किया जाता है। भगवान मुरुगन के छ: निवास स्थानों में से एक तिरुप्परनकुंद्रम मदुरै से १० किमी. दक्षिण में स्थित है। इस क्षेत्र पर भगवान आदिनाथ, नेमिनाथ, महावीर एवं बाहुबली की प्रतिमा जी हैं| यहाँ ७वी सदी की पाषाढ़ पर तराशी गयी प्रतिमा जी, शिलालेख एवं शिलालेख हैं |

यहां साल भर भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। इसी स्थान पर भगवान मुरुगन का देवयानी के साथ विवाहहुआ था इसलिए यह स्थान शादी करने के लिए पवित्र माना जाता है। चट्टानों को काट कर बनाए गए इस मंदिर में भगवान गणपति, शिव, दुर्गा, विष्णु आदि के अलग से मंदिर भी बने हुए हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके सबसे भीतरी मंदिर को एक ही चट्टान से काटकर बनाया गया है।वैसे तो मंदिर के अन्दर फोटो ग्राफी मना है.. लेकिन हमारा सौभाग्य था की मंदिर में भगवान का स्वर्ण जडित रथ निकल रहा था.. शायद कोई उत्सव.. तो फोटो खीचने का अवसर मिल गया साथ में भगवान का प्रसाद भी इस मंदिर की एक और विशेषता यहां के गुफा मंदिर हैं जिनमें तराशी गई भगवान की प्रतिमाएं समान दूरी पर बनाई गई हैं। उनकी यह समानता सभी को आकर्षित करती है। इन गुफाओं तक आने के लिए संकर अंधियारे रास्ते से होकर जाना पड़ता है।

मुरुगन के प्रसिद्ध मन्दिर
निम्नलिखित छः आवास, जिसे 'आरुपदै विदु' के नाम से जाना जाता है, भारत के तमिलनाडु में भगवान मुरुगन के भक्तों के लिए बहुत ही मुख्य तीर्थ स्थानों में से हैं-

1.    पलनी मुरुगन मन्दिर - कोयंबटूर से 100 कि.मी. पूर्वी-दक्षिण में स्थित।
2.    स्वामीमलई मुरुगन मन्दिर - कुंभकोणम के पास।
3.    तिरुत्तनी मुरुगन मन्दिर - चेन्नई से 84 कि.मी.।
4.    पज्हमुदिर्चोलाई मुरुगन मन्दिर - मदुरई से 10 कि.मी. उत्तर में स्थित।
5.    श्री सुब्रहमन्य स्वामी देवस्थानम, तिरुचेन्दुर - तूतुकुडी से 40 कि.मी. दक्षिण में स्थित।
6.    तिरुप्परनकुंद्रम मुरुगन मन्दिर - मदुरई से 10 कि.मी. दक्षिण में स्थित।
7    'मरुदमलै मुरुगन मन्दिर' (कोयंबतूर का उपनगर) एक और प्रमुख तीर्थ स्थान है।
8  भारत के कर्णाटक में मंगलौर शहर के पास 'कुक्के सुब्रमण्या मन्दिर' भी बहुत प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है, जो भगवान 'मुरुगन' को समर्पित हैं। लेकिन यह भगवान मुरुगन के उन छः निवास स्थान का हिस्सा नहीं है, जो तमिलनाडु में स्थित हैं।

मदुरई में खरीदारी
मदुरई शहर सदियों से अच्छे कपड़ों का केंद्र रहा है, यहां से पर्यटक मदुरई की प्रसिद्ध सिल्क साड़ियां खरीद सकते हैं। पुथु मंडपम (Puthu Mandapam) नामक बाजार से पर्यटक सूती कपड़े और बटीकस (Batiks) खरीद सकते हैं। यहाँ मिलने वाली सुनगुंडी साड़ी (Sungundi Sarees) महिलाओं के बीच काफी लोकप्रिय है। इसके अलावा चिथिरई (Chithirai,), अवनिमूला (Avanimoola), पुथुमण्डपम् (Puthumandapam) और थेवंगु चेट्टी चौल्ट्री (Thevangu Chetty Choultry) बाजारों से यात्री जरुरत की सारी वस्तुएं ले सकते हैं। साड़ियों के अलावा मदुरई से बेहतरीन गहनें, हैंडीक्राफ्ट आइटम्स आदि भी खरीदे जा सकते हैं।


घूमते घूमते शाम के 7 बज चुके थे अब होटल वापसी.. क्यों की अगले दिन हमें कोदई कनाल घुमने जाना था.. फिर ८ बजे होटल के पास बस ने हमें छोड़ दिया.. माता जी को रूम में पंहुचा के थोडा लोकल मार्किट का भ्रमण कर वापस रूम में ही दो रोटी थाली मगाई.. जिसमे पता नहीं क्या क्या ८४ ब्यंजन थे... खाया पिया फिर बिस्तर.. 


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