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Saturday, June 4, 2016

रामेश्वरम यात्रा

(4 May 2016 –Wednesday) सुबह उठकर रामेश्वरम के लिये निकलना था। इसलिये सुबह पाँच बजे ही उठकर नहा धोकर तैयार भी हो गये। बस वाले ने सुबह 7 बजे का समय दिया था। लेकिन जब सवा 7 बजे तक भी हमें लेने कोई नहीं आया तो मन में खटका कि हमें यही छोड़कर तो नहीं भाग गये? लेकिन शुक्र रहा कि ठीक 7:30 पर हमें लेने के लिये एक आदमी आया हम उसके साथ बस तक चले गये। मदुरै से बिदा.. यहाँ से बस में बैठकर रामेश्वरम के लिये निकलने की तैयारी होने लगी। दूसरी बस कल वाली बस की तरह थी मिनी बस ..। सामान पीछे की डिक्की में डाल दिया और लैपटॉप का बैग हाथ में .. और होटलों से यात्रियों के लेते हुवे बस मदुरै रेलवे स्टेशन वाले मोड़ पर ठीक नौ
बजे रामेश्वरम के लिये रवाना हो गयी। करीब १० बजे बस ने हाईवे पर ही एक अच्छी होटल में नास्ते के लिए रोका.. लेकिन हमें तो आज ही दर्शन करना था इस लिए कुछ भी नहीं खाया क्यों की माता जी ने कहा की वो तो दर्शन के बाद ही कुछ खाएगी रामेश्वरम पहुँचने तक बस चालक ने बस को एक बार भी बीच में कही भी नहीं रोका।दुनिय की सबसे पुरानी संस्कृति भारतीय संस्कृति। राम से लेकर कान्हा और रघु से लकर यादव कुल, ना जाने भारत की जमीं ने कितने बड़े इतिहास को खुद मे समाहीत करा हुआ है। राजपूत, मुगल और फिर अंग्रेजो की सत्ता से लोकतंत्र की चौखट पर पहुँचे भारत ने इतिहास की हर निशानी को संभाल कर रखा है। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम भारत के इतिहास की खुबसूरती बिखरी पड़ी है।

आगरा का ताजमहल दुनिया के सात अजूबों मे शूमार है, खजुराहों में इतिहास के कई उपहार है और इसलिए इसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरीटेज साइट का दर्जा दिया गया है। दिल्ली का कुतूबमीनार सीना तानकर भारत के गौरव को दिखाता है, तो लालकिला और जामा मस्जिद मुगलिया सल्तनत के इतिहास को बयां करती है। अमृतसर मे सिखों का चमचमाता स्वर्ण मन्दिर भी है तो राजस्थान के किलों से राजपूताना इतिहास के गौरव का पता चलता है। हैदराबाद की चारमीनार और तिरूपति के बालाजी से आन्ध्र प्रदेश रोशन है तो रामेश्वरम और मदुरै के मीनाक्षी मन्दिर से तमिलनाडू भी गदगद है। गेट वे ऑफ इण्डिया और ऐलोरा और अजन्ता की गुफाओ से महाराष्ट्र के इतिहास की चमक दिखाई देती है, तो सोमनाथ मन्दिर और द्वारका से जुड़े कान्हा के इतिहास से गुजरात की विरासत भी दिखाई देती है।इसी इतिहास के समझने हम रामेश्वरम की सडको पर .. सड़के तो ऐसी की हमारे जैसे लोग १६० से नीचे चले ही न... बेहतरीन सड़के .. रोड सुन्दर ही थे ! आस - पास की हरियाली , नारियल  के पेड़ , कटीली झाडिया , लाल मिटटी मन को मोह ही लेती थी ! वैसे गर्मी तो थी, लेकिन बस की रफ़्तार एक सुकून दे रही थी ..खिड़की के पास माता जी थी लेकिन हम भी बाहर के नजारे देखते हुए कब पम्बन पुल पर पहुँचे ? 

पता ही नहीं लगा! जब हमारी बस पम्बन पुल के ऊपर सड़क मार्ग से जा रही थी तो सामने दिखायी दे रहे रेलवे ब्रिज को देखकर मन कर रहा था कि आज ही उस पर भी यात्रा कर ली जाये, लेकिन बस ने पम्बन पुल केपास रोक दिया १० मिनट के लिए तो हम बस से उतर निहारे पम्बन पुल को यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार  का द्वीप है। बहुत पहले यह द्वीप भारत की मुख्य भूमि के साथ जुड़ा हुआ था, परन्तु बाद में सागर की लहरों ने इसे चारों ओर पानी से घेर कर टापू बना दिया जिसे जर्मन इंजीनियरों द्वारा बनाए गए लगभग 2 किलोमीटर लंबे पुल से मुख्य भूमि से जोड़ा गया है । यह पुल पहले बीच में से जहाजों के निकलने के लिए खुला करता था। अब तो इस पुल के समानांतर पुल पर सड़क मार्ग भी स्थित है पंबन ब्रिज को आधिकारिक रूप से एनाई इंदिरा रोड ब्रिज नाम दिया गया। इस पुल की खासियत यह है कि इसे पाल्‍क स्‍ट्रेट पर एक कैंटीलिवर ब्रिज के रूप में मनाया गया है। यह ब्रिज, रामेश्‍वरम को देश के अन्‍य हिस्‍सों से जोड़ता है। यह ब्रिज, समुद्र पर बना अपनी तरह का अनोखा ब्रिज है। बस के drivar ने बताया की यह देश का दूसरा सबसे बड़ा समुद्री पुल है जिसकी लम्‍बाई 2.3 किमी. है। इस पुल को दक्षिण भारतीय रेलवे परियोजना के हिस्‍से के रूप में बनाया गया था। वास्तव में रामेश्वरम तक पहुँचना ही पहले समुद्र के कारण कठिन था। स्वयं राम भी समुद्र को लाँघ कर यहाँ पहुँचे थे। तीर्थ यात्री रामेश्वरम द्वीप में समुद्र मार्ग से ही आते थे। अँग्रेज़ों ने अपने शासन काल में एक साहसिक कदम उठाया और चेन्नै से रामेश्वरम तक समुद्र में पुल बना और रेल की पटरियाँ बिछाई गई पुल का निर्माण 1887 में शुरू किया गया था और इसे 1912 में खत्‍म किया गया। पुल के निर्माण के अलावा, कर्मचारियों ने यहां नील - मंदिर मंदिर का निर्माण भी किया जिसमें सात गुंबदें है। 6,776 फीट लंबे पमबन पुल को 1914 में यातायात के लिए खोला गया था। मालवाहक जहाज, समुद्री रक्षा जहाज, मछली पकड़ने की नौकाएं और तेल के टैंकर सहित करीब 10 जहाज प्रति माह इस पुल से गुजरते हैं इस पुल ने फरवरी-२०१६ में 102 साल पूरे कर लिए, बावजूद इसके यह अभी भी बेहतर स्थिति में है।

बस चल दी हमारी बस सीधे रामेश्वरम मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने ही.. बस की कुछ सवारियाँ वही उतर गयी। कुछ लोग और भी थे जिन्हें वहा रुकना था हमें आज की रात यही रुकना था, अगले दिन शामके ४ बजे हमारी बस थी कन्या कुमारी के लिए, तो बस वाले ने सबके एजेंट के हिसाब से उनके होटल के पास उतार दिया हमारा होटल अलग ही था शायद तो बस अंत में पार्किंग में पंहुचा  जहा हम उतर गए और सामान ले कर ड्राईवर ने हमें होटल में पंहुचा दिया.. हमारा होटल भी मंदिर के पास ही, और समुन्द्र के पास ही जहा लोग स्नान कर के मंदिर में जाते है.. तो होटल के रूम में प्रवेश कर सामान रख दिया एक माँ के लिए चाय मगाई.. पहले तो सोचा की नहा ले लेकिन सोचे की मंदिर के इतिहास भूगोल को समझ ले तो निकल पड़े मंदिर की ब्यवस्था को समझने.. तो माता जी ने केला खाने की इक्षा जाहिर कर दी... 

नीचे उतर होटल के मनेजर से रामेश्वरम के बारे में पूछ ताछ की तो उन्हों ने रामेश्वरम घूमने के सारा रास्ता बता दिया, उसका व्यवहार बिलकुल ऐसा था जिससे लग ही नहीं रहा था कि हम एक होटल में हैं , बल्कि ऐसा लगा कि किसी रिश्तेदार के यहाँ हैं । उन्होंने हमें समुद्र का रास्ता बताया स्नान करने के लिए । निकल पड़े बाहर.. बस १० कदम चलते ही समुन्द्र में अग्नितीर्थ.. कहते हैं कि यहाँ भगवान राम ने सीता जी की अग्नि परीक्षा ली थी इसीलिए इस किनारे का नाम है अग्नि तीर्थ । दिन के २ बज रहे थे लेकिन काफी चहल पहल थी वहा... लोग समुद्र में नहा रहे थे...आस पास सुरक्षा की भी पूरा प्रबंध.. साफ सफाई एक दम टका टक

रामेश्वरम समुद्र की गोद में बसा एक बेहद खूबसूरत दर्शनीय स्थल होने के साथ साथ तीर्थ स्थल भी है जो कि चार धामों में से एक धाम है। यहाँ हर साल हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी आस्थाओं में लिपटी भगवान के प्रति प्रेम को दर्शाने आते हैं। रामेश्वरम तमिलनाडु का एक आकर्षक शहर चेन्नई से तक़रीबन 592 किलोमीटर की दूरी पर है। कहा जाता है कि जब भगवान राम लंका को जीतकर वापस लौटे तो उन्होंने भगवान शिव के प्रति अपनी प्रेम भावना को दर्शाने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर विश्व के बेहतरीन कलात्मक शैली और आस्थाओं से सराबोर मंदिरों में से एक है।
अगर प्राकृतिक सौंदर्य की बात कही जाए तो उसमे रामेश्वरम का ज़िक्र होना लाज़मी तो है ही साथ ही साथ यह चारधामों में से एक तीर्थ धाम भी है।  रास्ते में सीपें, शंख और कोड़ियाँ आदि यहाँ समुद्र में बहुत मिलती हैं वाकई रामेश्वरम का खूबसूरत नज़ारा आँखों में कैद करने जैसा होता है। घूमते घूमते पहुच ही गए मंदिर के पास.. केला खोजते खोजते पूरी मंदिर के चारो तरफ घूम लिया.. खैर पूर्वी गेट के पास केला भी मिल गया, लौटते समझ मंदिर के अन्दर जाने की प्रक्रिया समझ लिए... अब सोचा की दर्शन भी आज ही कर ले .. तुरंत होटल वापस आये रास्ते में फोटो खीचते खीचते मोबाइल का बैट्री ख़तम हो रहा था सोचा पावर बैंक ले कर चलते है... मोबाइल भी चार्ज हो जायेगा और फोटो भी खीच जाएगी... लेकिन पावर बैंक तो लैपटॉप के बैग में था..पासपोर्ट के साथ ही २ क्रेडिट कार्ड और २०००० रुपये भी लैपटॉप में और लैपटॉप बस में ही छुट गया था. हाला की अपने सामान का पूरा बिमा करवा लिया था इस लिए ये रिसर्च करने में क्या जाता था... बैकअप भी सारा एक्स्ट्रा हार्डडिस्क में काठमांडू में ही रखा था क्या टेंसन....लेकिन चहरे पर दुःख के भाव बना लिया इतना सुनते ही माता जी चिल्ला उठी... अभी जा बस से ले कर आ ३ बज चूका था, मै वापस पार्किंग में गया लेकिन बस मदुरै वापस जा चुकी थी... अब क्या करे... मदुरै के एजेंट को फोन किया.. बताया अपनी समस्या .. उसने कहा ५ मिनट में फोन करता हु... .. एक सिगरेट जलाया.. तब तक एजेंट का फोन आ ही गया... उसने बताया की आप का लैपटॉप बस में ही है... लेकिन बस रामेश्वरम से ३५ किलो मीटर आगे आ चुकी है... कल जो बस आप को लेने जाएगी.. उसमे वापस भेज देगे.. चलो भाई.. ठीक है कुछ हिम्मत आई..

 
वापस होटल पहुचे और धोती कुर्ता और पर्स में बचे बस २००० रुपये के साथ 1 क्रेडिट और 1 डेबिट कार्ड ले कर माता जी के साथ चल पड़े रामेश्वरम दर्शन हेतु... गमछा और गंजी में ही .. दर्शन में सबसे पहले समुद्र (अग्नितीर्थ ) में स्नान किया और माता जी को भी कराया, जिस कपडे में अग्नितीर्थ में स्नान किया जाता है वही गीला कपडा पहन कर के ही मंदिर के अंदर जाया जाता है..  अग्नितीर्थ में स्नान कर के निकले ही की तभी एक पंडित जी भेटा गए... और दर्शन पूजन आराम से करवाने का प्रपोजल दिया, मैंने दक्षिणा पूछी तो बस वही बनारसी स्टाइल , अपनी ख़ुशी से दे दीजियेगा... हा मै आप को २१ कुवा के जल से स्नान करवा दुगा जिसके लिए २५० रुपये दे दीजियेगा.. सोचा ठीक ही है .. ५०० – ६०० में सलट जी जायेगा. अब अन्दर का रास्ता क्या है कैसा है कुछ पता तो था नहीं.. तो मैंने स्वीकृति दे इ पंडित जी को.. कहा अगर माता जी मेरी प्रसन्न हुई तो दक्षिणा आप के हिसाब से, पहुच गए मंदिर के पास.. बस पंडित जी हमारे कपडे का झोला ले चल पड़े  मन्दिर के अन्दर चलते चलते पंडित जी लगे बताने की यह मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है। इसके प्रवेश-द्वार चालीस फीट ऊंचा है। मंदिर परिसर के अंदर सैकड़ौ विशाल खंभें है, जो देखने में एक-जैसे लगते है ; परंतु पास जाकर जरा बारीकी से देखा जाय तो मालूम होगा कि हर खंभे पर बेल-बूटे की अलग-अलग कारीगरी है।

रामनाथ की मूर्ति के चारों और परिक्रमा करने के लिए तीन प्राकार बने हुए है। इनमें तीसरा प्राकार सौ साल पहले पूरा हुआ। इस प्राकार की लंबाई चार सौ फुट से अधिक है। दोनों और पांच फुट ऊंचा और करीब आठ फुट चौड़ा चबूतरा बना हुआ है। चबूतरों के एक ओर पत्थर के बड़े-बड़े खंभो की लम्बी कतारे खड़ी है। प्राकार के एक सिरे पर खडे होकर देखने पर ऐसा लगता है मारो सैकड़ों तोरण-द्वार का स्वागत करने के लिए बनाए गये है। इन खंभों की अद्भुत कारीगरी देखकर विदेशी भी दंग रह जाते है। रामेश्वरम् के विशाल मंदिर को बनवाने और उसकी रक्षा करने में रामनाथपुरम् नामक छोटी रियासत के राजाओं का बड़ा हाथ रहा। अब तो यह रियासत तमिल नाडु राज्य में मिल गई हैं। रामनाथपुरम् के राजभवन में एक पुराना काला पत्थर रखा हुआ है। कहा जाता है, यह पत्थर राम ने केवटराज को राजतिलक के समय उसके चिह्न के रूप में दिया था। रामेश्वरम् की यात्रा करने वाले लोग इस काले पत्थर को देखने के लिए रामनाथपुरम् जाते है। रामनाथपुरम् रामेश्वरम् से लगभग तैंतीस मील दूर है।

मंदिर में सिर्फ दर्शन करने वालो के लिए सामने ही प्रवेश द्वार है.. लेकिन जिन्हें कुवो के जल से नहाना है उसका रास्ता अलग है.. मन्दिर में लगभग 21 कुएँ बनाये हुए है जिनका पानी अलग-अलग तीर्थ का पुण्य लिये हुए है। वहा कुवे में स्नान करने का चार्ज है लाइन तो ऐसी की २ घंटे में भी टिकट न मिले .. खैर पंडित जी माँ और मुझे कुवे के स्नान वाले रस्ते में खड़ा कर खुद चले गए टिकट लेने और २ मिनट में २ टिकट लेकर आ गए.. टिकट कलाई में बांधने वाला स्ट्रिप जैसा... २५ का एक..  हम दोनों के हाथ में बांध दिया और अन्दर.. अरे बाप रे बाप पंडित जी ने बताया की यहां का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। हाला की मार्ग दर्शन तो पूरा है लेकिन मार्ग दर्शन के हिसाब से चले तो २ दिन में भी न घूम पाए खैर पहुच गए पंडित जी के साथ पहले कुवे के स्नान के लिए वहा का सिन तो अलग ही है .. बहुत सारे लोग वहाँ पर छोटी सी बाल्टी लेकर खडे रहते है। जब एक समूह में लगभग १०-२०  लोग हो जाते है। यह सबसे कुएँ से पानी निकालकर नहलाने देते है एक ही बार ऐसे ही लोग नहाते है.. लेकिन अपने पंडित जी तो तमिल में हमारा परिचय करवाते है तो वाह.. डीलक्स स्नान ऐसे नहलाते हम माता जी को साथ लेकर कुए दर कुए पर आगे बढ़ते रहे  एक कुए का पानी निकाल कर उनके ऊपर डालता है उसके बाद अगला कुआ, ऐसे ही क्रमवार सभी कुओं का पानी नहाने के लिये ड़ाला जाता है। सभी कुंड एक ही स्थान पर नहीं है। पहला कुंड द्वार के पास हनुमान जी और रामजी के मन्दिर के सामने ही है। इसके बाद सभी कुंड पूरे मन्दिर में फैले है। मंदिर में यह बाईस कुण्ड के शेष बचे हैं बताया जाता है कि पहले यह कुण्ड 24 थे परन्तु किसी वजह से 2 कुण्ड सूख गए जिनमे अब बस 22 बचे हुए हैं। यह कुण्ड पवित्र तीर्थों में से एक हैं। यह भी माना जाता है कि इन कुंडों में स्नान करने से पाप धूल जाते हैं।

इन कुंडो में विभिन्न तीर्थ स्थानों से लाया गया पानी है जैसे पुष्कर तीर्थ का जल। इसीलिए इन कुंडों को यहाँ तीर्थ कहा जाता है। जितने कुंड उतने तीर्थ। इस तरह रामेश्वरम एक ऐसा स्थान है जहाँ सभी तीर्थ स्थानों के तीर्थ स्नान का लाभ मिल जाता है। इसके अलावा विभिन्न पौराणिक चरित्रों के नाम पर भी यहाँ कुंड या तीर्थ बनाए गए है जैसे अर्जुन तीर्थ। लंका विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों के नाम से भी कुंड है जैसे रामसेतु बनाने वालों के नाम पर है - नल तीर्थ और नील तीर्थ। चलते चलते एक बड़े हाल में १०८ शिव लिंग .. पंडित जी ने कह हर को छुते चले और ॐ नमः शिवाय बोलते रहे.. शुरू हो गये हम भी.. १०८ ॐ नमः शिवाय भो हो गया कहीं एक ही कुंड है तो कहीं दो या तीन कुंड भी एक जगह है जैसे गायत्री तीर्थ, सावित्री तीर्थ और सरस्वती तीर्थ साथ-साथ है। अंतिम तीर्थ है गंगा-जमुना। यह देखने में एक ही कुंड लगता है। यह कुंड गोल नहीं लम्बा है। भीतर देखने पर बीच में दीवार है, एक ओर गंगा का जल और दूसरी ओर जमुना का जल है।  हर कुंड के पास नाम और संख्या लिखी है। क्रम से एक के बाद एक कुंड के पास जाकर स्नान किया जाता है। अंतिम कुंड के पास एक और कुंड है जहाँ सभी को गंगाजल से स्नान कराया जाता है जिसके लिए पैसे नहीं देने पड़ते। अगर कोई स्नान नहीं करना चाहे तो कुछ बूंदे सिर पर डाल लेते है। साथ ही पंडित जी ने हर कुवा की महत्वा भी बताई... इस तरह गीले कपडों से पूरे मन्दिर में घूमने से मन्दिर का वातावरण बहुत ठंडा लग रहा था। वैसे भी मन्दिर पत्थरों से बना है।

स्नान पूर्ण हुवा आखिरी कुंड के पास ही महिलाओ और पुरुषो के लिए कपडे बदलने की जगह बनी है... पंडित जी ने झोला थमा दिया हम भी फटा फट कपडे बदल बनारसी अंदाज में धोती कुर्ता और गमछा पहन कर तैयार हो गए.. अब दर्शन की बारी.. मन्दिर रामालय में कुंड स्नान के बाद रामनाथ स्वामी यानि शिवजी के दर्शन किए जाते है। दर्शन के लिए चले ही की तभी एक और यजमान मिल गए... और बताया की आज है  प्रदोष व्रत। कृष्ण पक्ष द्वादशी /नक्षत्र : उत्तराभाद्रपदा /योग : विश्कुंभ /करण : तैतिल / सूर्योदय : 05:55 /सूर्यास्त : 18:23... आप माता जी को ले कर आये है इस पवित्र धाम में कहते हैं जो मनुष्य परम पवित्र गंगाजल से भक्तिपूर्वक रामेश्वर शिव का अभिषेक करता है अथवा उन्हें स्नान कराता है वह जीवन- मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। सेतुबन्ध-रामेश्वरम तीर्थ व ज्योतिर्लिंग के आविर्भाव के सम्बन्ध में इस प्रकार बताया जाता है–मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयं अपने हाथों से श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। ऐसा बताया जाता है कि श्रीराम ने जब रावण के वध हेतु लंका पर चढ़ाई की थी, तो यहाँ पहुँचने पर विजय श्री की प्राप्ति हेतु उन्होंने समुद्र के किनारे बालुका (रेत) का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की थी। ऐसा भी बताया जाता है कि रामेश्वरम में पहुँचकर भगवान श्रीराम जल पी रहे थे। उसी समय आकाशवाणी सुनायी पड़ी– ‘तुम मेरी पूजा किये बिना ही जल पी रहे हो?’ तब श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्राप्त किया। श्रीराम द्वारा प्रार्थना किये जाने पर लोक कल्याण की भावना से ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए वहाँ निवास करना भगवान शंकर ने स्वीकार कर लिया। श्रीराम ने विधि-विधान से शिवलिंग की स्थापना की और उनकी पूजा करने के बाद शिव का यशोगान किया।


उसके बाद उन्हों ने इतने ज्ञान के बाद अपना पूजा का टैरिफ बताया.. ५०० से ले कर ११००० तक का भाव.. मैंने पूछ लिया प्रभु शिव का अभिषेक करता है अथवा उन्हें स्नान कराता है उ का भाव है... पंडित जी ने १५०१ रुपये बताया... सोचा अब यहाँ तक आये है तो जलाभिषेक भी करवा ही देते है माता जी के हाथो.. चल दिए पंडित जी के पीछे... पंडित जी एक बड़े हाल में ले कर आये... शुरू किया मत्रौच्चार... पूरा सामान भी उन्ही का ... १० मिनट चला फिर ५ बजे मंदिर बंद होने वाला था 1 घंटे के लिए तो हम चल पड़े अभिषेक के लिए वहा भी पंडित जी का सोर्स लग गया २०० के दान के बाद...

गर्भगृह में एक के पीछे एक कुछ अधिक ही दूरी पर तीन दीपमालाएँ बीच की दीपमाला के दीपकों के प्रकाश में काले पत्थर से बना शिवलिंग एक दम दमक रहा था। शिवलिंग के पीछे रक्षा करते फन फैलाए नागराज जिसके पीछे शिवजी की मूर्ति भी है। हम माता जी को ले एक दम साक्षात् मंदिर के सामने पहुच गए.. माता जी ने काशी का जल से जलाभिषेक कर ही दिया .. माला फुल भी चढ़ गया यहां पर कोई भी दर्शनार्थी श्री रामेश्वरम को स्वयं जलाभिषेक नहीं कर सकता है बल्कि गंगोत्री एवं हरिद्वार या वाराणसी से लाये गए गंगाजल को मंदिर के पुजारी ही उनके सामने ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक करते हैं। इस जलाभिषेक के लिए भी निर्धारित शुल्क उन्हें देना पड़ता है। यहां पर प्रत्येक पूजा के लिए अलग अलग शुल्क निर्धारित हैं जिसे दर्शनार्थी को अदा करना पड़ता है आनंद आ गया दर्शन कर हम बाहर आए। चारों ओर दीवारों से सटे शिवलिंग के विभिन्न रूप है जिनमें सभी लिंगार्चन भी है। इस मन्दिर की बाईं ओर है पार्वती मन्दिर। पार्वती मन्दिर में प्रवेश करते ही दाहिनी ओर अष्टलक्ष्मी के दर्शन होते है। क्रम से लगी है आठ मूर्तियाँ। अच्छा लगा पार्वती जी के आठों रूपों को देखना - धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, वर लक्ष्मी, सन्तान लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी, वैभव लक्ष्मी और ऐश्वर्य लक्ष्मी भीतर गर्भगृह में भी उसी तरह से दीपमालाएँ लगी थी जैसे शिव मन्दिर में है। बीच में पार्वतीजी की विशाल मूर्ति है। पार्वतीजी के दर्शन कर हम बाहर निकले। पीछे दाहिनी ओर छोटा सा मन्दिर है जहाँ शेष शैय्या पर विश्राम कर रहे है विष्णु जी और पैरों के पास विराजमान है लक्ष्मीजी। मन्दिरों की परम्परा के अनुसार इस मन्दिर में भी नवग्रह का मन्दिर है। यहाँ कढाई में तेल गरम होता रहता है। इस तेल को दीपक में लेकर चढाया जाता है जिसमें यहाँ बैठे पुजारी मदद करते है। मुख्य मन्दिर के आस-पास एक हाथी सज-धजा खड़ा होता है इसके साथ महावत भी पुजारी की वेशभूषा में होते है ..

पंडित जी ने पूरा दर्शन करवा ही दिया. माता श्री के पैर छुवे और असिर्वाद लिया अब बारी थी, पंडित जी के दक्षिणा की.. पैसे सब ख़तम हो चुके थे ... बोला चलिए बाहर.. करते है आप की बिदाई... बाहर निकले माता जी ने पडित जी को 100 रुपये दिए.. पंडित ही हडबडा के मेरा चेहरा देख रहे... मैंने कहा अरे महराज ये माता जी की तरफ से है..  दौड़ पास के ATM से पैसे निकाल पंडित जी को ११०० रूपये पकडाए तब पंडित जी के चेहरे पर चमक आई.... सुबह से भूखे थे... तो एक चाय के दुकान पर चाय नास्ता कराया माता जी को और पंडित जी को भी और बिदा किया .. माता जी की शोपिंग बाकी ही थी वो भी हो गया.. वैसे रामेश्वरम रत्नों के लिए जाना जाता है... वहां के रत्नों में से कुछ प्रमुख है: अमेथिस्ट, फीरोजा, माणिक, नीलम, पुखराज और रक्तमणि, आदि। . रामेश्वरम में भी रुद्राक्ष पाया जाता है यहां का रुद्राक्ष काजु की भांति होता है. माता जी के खीरदारी करते ८ बज चुके थे ... अब थक चुके थे...  भूख जोरो की लग रही थी... होटल में भी खाने की ब्यवस्था बाहर का ही था तो सोचा खाना ले कर ही चलते है होटल में



रामेश्वर में शुद्ध शाकाहारी उत्तर भारतीय थाली उपलब्ध है। यहां ज्यादातर धर्मशालाओं में भोजनालाय भी है।  कुछ अलग से मारवाड़ी भोजनालय भी हैं। अग्रसेन भवन, गुजराती भोजनालय, माहेश्वरी भवन खाने पीने के अच्छे ठिकाने हैं। यहां ८० रुपये में भरपेट खाना उपलब्ध होता है। इनके मीनू में रोटी और चावल और उत्तर भारतीय तरीके से बनी सब्जियां और दाल खाने को मिल जाती है । यानी रामेश्वरम आने वाले उत्तर भारतीय को खाने के लिए कोई परेशान होने की जरूर नहीं है। हमें भी पास में ही एक गुजराती भोजनालय से रोटी कढ़ी और सब्जी पैक करा होटल वापस पहुच गए  यहां भोजनालयों में नास्ता खाना का समय तय है। दोपहर का खाना 11 बजे से ढाई बजे तक मिलता है।

पीछे : <<<------- कोदईकनाल 


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