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Wednesday, April 29, 2015

शिर्डी दर्शन

(२९ अप्रैल २०१५) तो नीता टूर की "Mumbai To Shirdi (Seating)(2X2) Volvo Multi-Axle & Mercedes-Benz"  शानदार बस भी आ गयी , चुकी टिकट पहले ही बुक कर चुके थे तो बस में सिर्फ बैठना ही था, भारत में तो सरकारी बसों के अलावा कोई अनुभव नहीं था लक्जरी का .. तो येही चुनाव किया था .. खैर बस शानदार थी मस्त वातानुकूलित, भीड़ ज्यादा नहीं थी हमारी सिट भी आगे की ही थे माता जी को ले कर बिराज लिए .. चल पड़ी बस .. शिर्डी के लिए , रस्ते में एक अच्छे ढाबे में रोका था.. लेकिन माता जी ने कुछ खाने से मना कर दिया तो एक बोतल ठंडा पानी पि कर ही फिर बस पर बैठ गए.. खैर सवा सात बजे हम शिर्डी पहुच ही गए.. जहा बस रुकी उसके पास ही अपना होटल बुक था.. चुकी दर्शन का प्रोग्राम कल सुबह का था, लेकिन बस से उतरते ही होटल के दलालों की भीड़ उसी में मिल गया एक फुल वाला
बोला अभी दर्शन कर लीजिये, अभी ज्यादा भीड़ नहीं है.. थके थे हम तो.. बोले अभी नहीं बाद में देखेगे.. सामान ले होटल में प्रवेश किया ... दिन भर के थके थे तो नहा लिया, फिर माता जी से आग्रह किया चलिए बाहर से देख कर आते है कैसा है साईं का दरबार .. माता जी को ले कर निचे उतरे रिसेप्सन पर पूछ ताछ किया तो पता चला बाबा का समाधी स्थल पास में है आधा किलो मीटर से भी कम .. तभी वो फुल वाला फिर आ गया , बोला साहब अभी चल चलिए आराम से दर्शन हो जायेगा.. कल बृहस्पतवार है, सुबह से ही लम्बी लाइन होगी.. बात दिमाक में घुस गयी , मोबाईल कैमरा अन्दर ले जाना मना है तो फिर रूम में रख कर चल दिए अम्मा को ले कर.. बस ४ मिनट में ही पहुच गए.. उसी माले वाले के यहाँ चप्पल उतार, बाबा को अर्पण करने के लिये कुछ फ़ुल, माला, प्रसाद वगैरह लेने के बाद डरे अंदाज में फुल वाले ने कहा बाबा को कपडा भी चडता है.. मैंने माता जी की तरफ नजर घुमाई.. फिर ले लिया कपडा भी ..भुगतान किया चल पड़े अन्दर..

आम दिनों में भी साँई मंदिर व समाधि स्थल के दर्शन हेतु भक्तों की लंबी कतारें लगती है परंतु 
गुरुवार, दशहरा व अन्य त्योहारों पर यहाँ बाबा के दर्शन हेतु भक्तों का हुजूम उमड़ता है। बाबा के दर्शन किए परंतु उस दिन भी हमें दर्शन की कतार में खड़े-खड़े लगभग एक आधा से भी अधिक का समय लगा। रात्रि आरती का समय बाबा के पास आलोकिक दर्शन .. कतारों हेतु बनाया गया चक्करदार रास्ता हमारी बाबा के दर्शनों की उत्सुकता को ओर अधिक बढ़ा रहा था। अंतत: जब हमें बाबा के दर्शन हुए, वो पल एक अविस्मरणीय पल था। सोने के सिंहासन पर विराजित बाबा की चमत्कारी प्रतिमा का तेज देखते ही बनता था। ऐसा लग रहा था मानो वो मूर्ति अभी बोल पड़ेगी। सौभाग्य से हमें १५ मिनट तक  लगातार बाबा की प्रतिमा को निहारने का मौका मिला। "ॐ साईं राम जय जय साईं राम का मधुर भजन कानो में .. पुजारी ने भी माला फुल प्रसाद और बाबा के कपडे बाबा को स्पर्श करा कर प्रसाद और कपडे वापस कर दिया ... बताया की कपडा दान कक्ष में देना है .. समाधी स्थल से निकले बाहर पहुच गए दान कक्ष में , दान की सारी सामग्री वही स्वीकार की जाती है , और प्रसाद में बाबा का भभूत मिलता है, तो ले कर बाहर निकले.. एक छोटे से गांव शिरडी में भक्ति की ऐसी खुशबू है कि दुनिया भर से आध्‍यात्मिक झुकाव वाले भक्‍तों का तांता, यहाँ लगा रहता है। आध्‍यात्मिकता की नजर से शिरडी दुनिया के नक्‍शे पर सबसे नम्‍बर एक पर है। यहाँ अन्‍य देवी-देवता जैसे शनि, गणपति और शिव आदि की पूजा भी की जाती है। इस पवित्र मंदिर में साल के किसी भी मौसम में दर्शन किऐ जा सकते है। लेकिन आमतौर पर मानसून के मौसम को ज्‍यादा पंसद किया जाता है क्‍योकि इस दौरान वहां की जलवायु उचित होती है। दर्शनार्थी अपनी यात्रा को अक्‍सर तीन मुख्‍य
त्‍यौहारों- गुरू पूर्णिमा, दशहरा और रामनवमी पर प्‍लान करते है। शिर्डी में त्‍यौहारों के दौरान असंख्‍य भक्‍त आते है और पूरे माहौल को भजन व रथयात्रा में शामिल होकर जीवंत कर देते है। इन दिनों बाबा की समाधि पूरी रात खुली रहती है। साई बाबा के पवित्र निवास स्‍थान तक सड़क, रेल और हवाईजहाज से आराम से पहुंचा जा सकता है। शिर्डी गांव पूरी तरह से विकसित है और बसों के द्वारा पुणे, नासिक और मुम्‍बई से जुड़ा हुआ है। यहाँ  आसपास के क्षेत्र में एक एयरपोर्ट भी बनाया जा रहा है ताकि दुनिया के कोनों कोनों से आने वाले पर्यटको को आराम हो जाऐ। सड़क मार्ग से अहमदनगर- मनमाड राज्‍य राजमार्ग न. १० सबसे सुलभ पड़ेगा जोकि छोटे से गांव कोपरगांव से १५  किमी. की दूरी पर स्थित है।आमतौर पर भक्‍त, साई बाबा की समाधि और प्रतिमा की झलक पाने के लिए भोर से ही लाइन में खड़े हो जाते है। गुरूवार को काफी भीड़ रहती है, इस दिन बाबा की मूर्ति की विशेष पूजा होती है।मंदिर प्रतिदिन सुबह ५ बजे प्रार्थना के साथ खुल जाता है और और रात में प्रार्थना के साथ १० बजे बन्‍द हो जाता है। यहाँ ६०० भक्‍तों की दर्शन क्षमता वाला एक बड़ा हॉल है। मंदिर की पहली मंजिल में बाबा के जीवन के अनमोल चित्र लगें हुऐ है जोकि देखने के लिए खुले हुऐ है। शिर्डी गांव की सड़को पर बाबा के जीवन पर आधारित वीडि़यो, सी.डी. बेचने वाली कई दुकाने लगी रहती है।साई बाबा की मूल उत्‍पत्ति के बारे  में किसी को कुछ नहीं पता है, उनके जन्‍म का विवरण एक रहस्‍यमयी पहेली बनी हुई है। हालांकि, उन्‍हे पहली बार १६ वर्ष की दांपत्‍य उम्र में एक नीम के पेड़ के नीचे देखा गया था। बाबा ने अपनी पूरी उम्र गरीबों की पीड़ा को दूर करने और उनका उत्‍थान करने में निकाल दी। साई बाबा, भगवान के बच्‍चे के रूप में विख्‍यात थे और वह स्‍ंवय भगवान शिव के सार्वभौमिक रूप को मानते थे। साई बाबा ने अपना पूरा जीवन शिर्डी में सभी धर्मो और समुदायों के बीच शांति का संदेश और एकता का उपदेश देने में बिता दिया।जिसे अक्‍सर हम सुनते है- सबका मालिक एक।पहले शिर्डी में दर्शनार्थी देश के कोने- कोने से बाबा के चमत्‍कार अपनी आंखों से देखने आते थे। १९१८ में महान संत साई का निधन हो गया और यहाँ  पर उनकी समाधि बना दी गई। आज भी लाखों पर्यटक शिर्डी में बाबा के समाधि स्‍थल के दर्शन करने आते है। शिर्डी में जहाँ  बाबा अपने बालयोगी रूप में पहली बार देखे गऐ थे उस जगह को गुरूस्‍थान कहा जाता है। वर्तमान में यहाँ एक छोटा सा मंदिर और श्राइन बोर्ड बनवाया गया है। शिर्डी में साई बाबा से जुड़े स्‍थलों में द्धारकामें मस्जिद भी है जहाँ बाबा वैकल्पिक रातों में सोया करते थे।बाहर काफी चहल पहल थी तो माता श्री एक दुकान में घुस गयी, तलब लगी थी सिगरेट की क्यों की दिन भर एक भी नहीं पि पाया था तो माता जी को अपना पर्स दे ... निकल पड़ा सिगरेट खोजने.. मिल ही गए एक दुकान... फुका कलेजा तब जा कर चैन आया ...

उसी बिच गूगल बाबा के सहारे से पता चला की साईं बाबा का जन्म २८ सितंबर, १८३६ ई. में हुआ था। इनके जन्म स्थान, जन्म दिवस और असली नाम के बारे में भी सही-सही जानकारी नहीं है। लेकिन एक अनुमान के अनुसार साईं बाबा का जीवन काल १८३८ से १९१८  के बीच माना जाता है। फिर भी उनके आरंभिक वर्षों के बारे में रहस्य बना हुआ है। अधिकांश विवरणों के अनुसार बाबा एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और बाद में एक सूफ़ी फ़क़ीर द्वारा गोद ले लिए गए थे। आगे चलकर उन्होंने स्वयं को एक हिन्दू गुरु का शिष्य बताया। लगभग १८५८  में साईं बाबा पश्चिम भारतीय राज्य महाराष्ट्र के एक गाँव शिरडी पहुँचे और फिर आजीवन वहीं रहे। साईं बाबा मुस्लिम टोपी पहनते थे और जीवन में अधिंकाश समय तक वह शिरडी की एक निर्जन मस्जिद में ही रहे, जहाँ कुछ सूफ़ी परंपराओं के पुराने रिवाज़ों के अनुसार वह धूनी रमाते थे। मस्जिद का नाम उन्होंने 'द्वारकामाई' रखा था, जो निश्चित्त रूप से एक हिन्दू नाम था। कहा जाता है कि उन्हें पुराणों, भगवदगीता और हिन्दू दर्शन की विभिन्न शाखाओं का अच्छा ज्ञान था। बाबा के नाम की उत्पत्ति 'साईं' शब्द से हुई है, जो मुस्लिमों द्वारा प्रयुक्त फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है- पूज्य व्यक्ति और बाबा पिता के लिए एक हिन्दी शब्द। 

साई बाबा एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु और फ़कीर थे, जो धर्म की सीमाओं में कभी नहीं बंधे। वास्तविकता तो यह है कि उनके अनुयायियों में हिन्दू और मुस्लिमों की संख्या बराबर थी। श्रद्धा और सबूरी यानी संयम उनके विचार-दर्शन का सार है। उनके अनुसार कोई भी इंसान अपार धैर्य और सच्ची श्रद्धा की भावना रखकर ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है। सबका मालिक एक है के उद्घोषक वाक्य से शिरडी के साईं बाबा ने संपूर्ण जगत को सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वरूप का साक्षात्कार कराया। उन्होंने मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताया और कई ऐसे चमत्कार किए, जिनसे लोग उन्हें भगवान की उपाधि देने लगे। आज भी साईं बाबा के भक्तों की संख्या को लाखों-करोड़ों में नहीं आंका जा सकता। 

कहा जाता है कि सोलह वर्ष की अवस्था में साईं बाबा महाराष्ट्र के अहमदनगर के शिरडी गाँव पहुँचे थे और जीवन पर्यन्त उसी स्थान पर निवास किया। शुरुआत में शिरडी के ग्रामीणों ने पागल बताकर उनकी अवमानना की, लेकिन शताब्दी के अंत तक उनके सम्मोहक उपदेशों और चमत्कारों से आकर्षित होकर हिन्दुओं और मुस्लिमों की एक बड़ी संख्या उनकी अनुयायी बन गई। कुछ लोग मानते थे कि साईं के पास अद्भुत दैवीय शक्तियाँ थीं, जिनके सहारे वे लोगों की मदद किया करते थे। लेकिन खुद कभी साईं ने इस बात को नहीं स्वीकारा। उनके चमत्कार अक्सर मनोकामना पूरी करने वाले रोगियों के इलाज़ से संबंधित होते थे। वे कहा करते थे कि मैं लोगों की प्रेम भावना का ग़ुलाम हूँ। सभी लोगों की मदद करना मेरी मजबूरी है। सच तो यह है कि साईं हमेशा फ़कीर की साधारण वेश-भूषा में ही रहते थे। वे जमीन पर सोते थे और भीख माँग कर अपना गुजारा करते थे। कहते हैं कि उनकी आंखों में एक दिव्य चमक थी, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती थी। साई बाबा का एक ही लक्ष्य था- "लोगों में ईश्वर के प्रति विश्वास पैदा करना"।

साईंबाबा जी की आरती 
आरती श्रीसाईं गुरुवर की। परमानंद सदा सुरवर की ॥ 
जाकी कृपा विपुल सुखकारी। दुख-शोक, संकट, भयहारी ॥ 
शिरडी में अवतार रचाया। चमत्कार से जग हर्षाया ॥ 
कितने भक्त शरण में आए। सब सुख-शांति चिरंतन पाए ॥ 
भाव धरे जो मन में जैसा। पावत अनुभव वो ही वैसा ॥ 
गुरु की उदी लगावे तन को। समाधान लाभत उस मन को ॥
साईं नाम सदा जो गावे। सो फल जग में शाश्वत पावे ॥ 
गुरुवासर करि पूजा सेवा। उस पर कृपा करत गुरु देवा ॥ 
राम, कृष्ण, हनुमान, रूप में। जानत जो श्रद्धा धर मन में ॥ 
विविध धर्म के सेवक आते। दर्शन कर इच्छित फल पाते ॥ 
साईं बाबा की जय बोलो। अंतर मन में आनंद घोलो ॥ 
साईं दास आरती गावे। बसि घर में सुख मंगल पावे ॥ 

आरती बाच कर मसाला जमाया वापस आया माता जी के पास.. झोला भर चूका था,सामानसे.. चुकी मोबाईल कैमरा होटल में ही छोड़ के आया था तो सोचा होटल में रख के आते है, खाने पिने की दुकाने भी खूब थे वहा तो सोचा माता श्री को प्रसाद के नाम पर यही  खाना खिला दे.. सामान रख मोबाईल ले कर फिर वापस आया समाधी के पास.. और कुछ फोटो खीच ही ले... फिर माता जी के ले एक रेस्टुरेंट में घुस गए.. मुझे तो हप्पक के भूख लगी थी.. लेकिन माता श्री के लिए बिना प्याज लहसुन वाला खाना, फ़िलहाल ११ बज चुके थे तो भीड़ भी कम हो रही थी... मैंने अपने लिए एक डोसा..और माँ के लिए बिना प्याज का उत्तपम , नारियल चटनी के साथ... जचाया तबितय से पेट फुल... वापस आ गए होटल ...अब कल का काम आज ही हो गया तो करते क्या फिर प्लान के अनुसार सुबह ही
शिर्डी से शनि शिगनापुर का सफर ..शिर्डी साँई बाबा के दर्शन के बाद हमारा अगला पड़ाव था 'शनि शिगनापुर', जोकि शिर्डी से लगभग ९०  किमी की दूरी पर है। खैर रात में आराम से सोये.. सुबह माता जी ८ बजे जगा ही दी .. चले का नहीं हव का शिगनापुर, माता जी नहा धो तैयार हो चुकी थे , २ चाय मगाया ९ बजे तक फ्रेश हो लिए... शिगनापुर के लिए टैक्सी ३ बजे ही बुलाया था अपना प्रोग्राम था .. शिर्डी से शनि शिगनापुर होते औरंगाबाद.. लेकिन एजेंट को फोन किया तो बोला टैक्सी ११ बजे तक पहुच जाएगी... फिर ले कैमरा पहुच गए साईं मंदिर,सुबह से ही भक्‍त जमा हो गए थे तो भीड़ पूरी थी तो पहुक गए द्वारका माई. शिरडी के सांई मंदिर का द्वारका माई वह स्थान है जहां सांईबाबा भोजन बनाते थे, वहीं पर धूनी रमाते थे और उसी धूनी का प्रसाद लोगों को देते थे। धूनी की भभूत से लोगों के दुःख-दर्द दूर होते थे और वह स्थान जहां बाबा का समाधी मंदिर है दोनों स्थान पास-पास है।यह दोनों स्थान वर्तमान सांई मंदिर परिसर की दक्षिण दिशा में है। इस भाग की जमीन ऊंचाई लिए हुए है और परिसर के बाहर दक्षिण दिशा में सड़क है। सड़क के दूसरी ओर दुकानें हैं जहां प्रसाद, सांईबाबा के फोटो एवं साहित्य मिलते है। परिसर की चारों दिशाओं में द्वार है, परन्तु परिसर का मुख्यद्वार उत्तर दिशा में है जहां से भक्त कई बड़े कमरों से गुजरते हुए समाधी मंदिर तक जाते हैं। १ घंटा घूम वापस आ गए तो माता जी भी मेरा इतजार करते निचे उतर चुकी थी.. सामान भी निचे मगवा लिया थोड़ी देर में टैक्सी भी आ गयी. .. सवार हो चल पड़े 'शनि शिगनापुर'

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3 comments:

  1. बढिया यात्रा गुरु। हम यहां 20 बरस पहले पहुंचे थे। फिर दुबारा जाने का मन नही हुआ।

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति धन्यवाद

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