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Wednesday, April 29, 2015

त्रयम्बकेश्वर दर्शन

२९ अप्रैल २०१५ (बुद्धवार), नासिक यात्रा का तीसरा दिन
नाशिक शक्तिशाली सातवाहन वंश के राजाओं की राजधानी थी। मुगल काल के दौरान नासिक शहर को गुलशनबाद के नाम से जाना जाता था। इसके अतिरिक्त नाशिक शहर ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में भी अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डॉ॰ आम्बेडकर ने १९३२ में नाशिक के कालाराम मंदिर में अस्पृश्योंको प्रवेश के लिये आंदोलन चलाया था। पौने बारह बजे होटल पहुचे थे तो थक चुके थे रात में देर में सोये थे तो सुबह ७ बजे से ही अम्मा चिल्लाना शुरू की .. उठ नहा धो के तैयार हो जा.. आख मलते मलते उठे.. माता नहा धो के तैयार हो चुकी थी.. बैग का सामान मिलाने में ब्यस्त.. तो मै निचे उतर कर बिना चीनी के चाय के खोज में लग गया ...
रिसेप्शन पर निवेदन के बाद, कान में आवाज आयी, सर हम १० मिनट में रूम में पंहुचा देते है... ठीक है भाई.. फिर सोचा निचे उतरा हु तो एक धूम्र पान दंडिका, लम्ब दंड चुसिका का भी सेवन कर ले तो होटल के बाहर निकल लिए और एक सुलगा लिए.. होटल के आहाते में सोलर लाइट देख कर मै अचम्भित हुवा.. गार्ड से पूछा तो उसने बताया नासिक में ये आम बात है.. पिछले ५ सालो से यहाँ अधिकतर सोलर लाइट ही इस्तेमाल करते है , बिजली की बचत जो होती है ..अच्छा लगा देख के .. होटल के लाबी में भी अधिकतर सोलर लाइट ही थी.. नेपाल में तो १० सालो से देख रहा था , पर भारत में पहली बार... खैर अपने उत्तर प्रदेश ने भी शायद शुरुवात कर दी है... खैर चाय रूम में जा चुकी.. हम भी चले वापस कमरे में.. माता जी चाय पि रही थी.. मैंने भी एक कप निकाल कर सुडुक लिया... रात में होटल वाले ने बिसलेरी की छोटी बोतले दी थी.. पिने के लिए पानी.. तो माता जी सारा पानी जग दे डाल कर उन छोटे बोतलों में गंगा जल के बटवारे में ब्यस्त हो गयी... तो मै चला बाथरूम... पौने नौ बज चुके थे... पूरी तयारी हो चुकी थी.. सब सामान पैक... पर माता जी जप में लग गयी थी तो सोचा काहे डिस्टर्ब करे उनको , चलो निचे चलते ही ... चुकी महारास्ट में टैक्सी की ब्यवस्था पहले ही कर चुके थे तो बस एजेंट को फोन ही करना था... वैसे उसको पहले ही अपने प्रोग्राम की जानकारी, होटल का पता नोट करवा दिया था तो , उसको जैसे फ़ोन किया.. " सर आप टाइम ९ बजे से है , अभी १० मिनट बाकि है.. पहुच जाएगी.. फिर सामने ही चाय की दुकान थी पहुच गए १ चाय लिया क्यों की सुट्टे के साथ चाय की आदत जो है... होटल की निचे ही ATM में घुसे कार्ड डाला और १५००० /- के लिए निवेदन किया ... ATM के अन्दर खट्टक खुत्टक हुए.. कार्ड भी बाहर साथ में एक स्लिप छापा हुवा .." SORRY, we cont process your request" मुह बना के निकल गए.. तब तक टैक्सी भी आ चुकी थी, माता जी को ऊपर कमरे से सामान के साथ निचे आये , होटल से बिदा ले चल दिए, गाड़ी में सामान रख के , गाड़ी अच्छी दी थी एजेंट ने तो सफ़र आराम से ..

दर्शन... त्रयम्बकेश्वर/पंचवटी/ सिरडी साईं बाबा
नासिक – त्रयम्बकेश्वर ३८ किलो मीटर
त्रयम्बकेश्वर-पंचवटी ३५ किलो मीटर
नासिक – सिरडी १०५ किलो मीटर
सुबह ९.३० से यात्रा शुरू नासिक की ...
त्रयम्बकेश्वर :पूजा का समय १० से १२ बजे तक

पंचवटी दर्शन: १ बजे से ३ बजे तक

नासिक सिरडी :
शाम ५ बजे 
 
त्रयम्बकेश्वर-:
शिव जी के बारह ज्योतिर्लिगों में श्री त्र्यंबकेश्वर को दसवां स्थान दिया गया है. यह महाराष्ट्र में नासिक शहर से 35 किलोमीटर दूर गौतमी नदी के तट पर स्थित है। यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। इन्हीं पुण्यतोया गोदावरी के उद्गम-स्थान केसमीप असस्थित त्रयम्बकेश्वर भगवान की भी बड़ी महिमा हैं गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए। मंदिर के अंदर एक छोटे से गङ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतिक माने जाते हैं। शिवपुराण के ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौडी-चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद 'रामकुण्ड' और 'लष्मणकुण्ड' मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।

इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार १७५५  में शुरू हुआ था और ३१ साल के लंबे समय के बाद १७८६  में जाकर पूरा हुआ। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब १६ लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी।कहा जाता है की 'प्राचीनकाल मेंत्र्यंबक गौतम ऋषि‍ की तपोभूमि थी। अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर शिव से गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी का उद्गम हुआ।' -दंत गोदावरी के उद्गम के साथ ही गौतम ऋषि के अनुनय-विनय के उपरांत शिवजी ने इस मंदिर में विराजमान होना स्वीकार कर लिया। तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा। उज्जैन और ओंकारेश्वर की ही तरह त्र्यंबकेश्वर महाराज को इस गाँव का राजा माना जाता है, इसलिए हर सोमवार को त्र्यंबकेश्वर के राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।.. 

टैक्सी वाले ने गाड़ी पार्किंग में रोक दिया और रास्ता बता दिया.. गाँव के अंदर कुछ दूर पैदल चलने के बाद मंदिर का मुख्य द्वार नजर आने लगता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधुआर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर आर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस आर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।, मंदिर के अन्दर कैमरा मोबाइल ले जाने की इजाजत नहीं है तो पास में ही एक लाकर में सब सामान जमा कर पूजा सामग्री ले चल दिया दर्शन हेतु अन्दर.. गेट में घुसते चेकिंग कड़ाई के साथ होती है, तो हमहू अम्मा को ले कर इस प्रक्रिया से गुजर अन्दर पहुचे ...पाइप ले लम्बी बरकेटिंग, भीड़ ज्यादा नहीं थी तो ज्यादा दिक्कत नहीं हुई.. गर्भ गृह के सामने एक छोटे से नंदी महराज के मंदिर से हो कर जोतिर्लिंग पंहुचा जाता है.. तो हमहू अम्मा को ले घुस गए... पहुच ही गए बाबा के पास.. मंदिर के अंदर एक छोटे से गङ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, जिन्‍हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव देवों का प्रतिक माना जाता हैं।त्र्यंबकेश्‍वर की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इस ज्‍योतिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों ही विराजित हैं. एक दम साक्षात् दर्शन होने के बाद लगा अब हम मुक्त हो चुके है... लेकिन साथ में माता जी ... माता जी का काशी का जल भी चढ़ गया ... २ मिनट रहे हम ... शिव शिव जपते... सामने ही एक बड़ा हाल है जहा इस मंदिर में काल सर्प योग की पुजा कराई जाती है, जिसके लिये देश भर से श्रद्धालु यहां एकत्र होते हैं।... हम भी उस हाल में पहुच कर आराम से बैठ गए १० मिनट मनन किया भोले का... बाहर निकले .. प्रसाद बंट रहा था तो माता जी को छा में कर के लग गए... प्रसाद लेने , वहा चन्दा देने की भी ब्यवस्था थी .. चुकी जेब में ज्यादा पैसे नहीं थे तो एक गाँधी जी निकला .. फिर अचानक नजर पड़ी.. कार्ड से भी ले लेते है वो चन्दा , स्वैप मशीन की भी प्रबंध जो था तो थोड़ी राहत हुई .. ११००/- का अनुरोध किया ... स्लिप को हस्ताक्षरित किया तो बाकायदा उन्हों ने उसकी रसीद भी दे... साथ में त्रम्ब्केश्वर की एक तस्वीर भी... प्रसाद लिया ... मैंने और माता जी ने खाया .. शुद्ध घी का हलवा.. फिर थोडा मंदिर का अवलोकन किया ... काले पत्‍थरों से बना ये मंदिर देखने में बेहद सुंदर नज़र आता है. भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में महत्वपूर्ण त्रयम्बकेश्वर भोलेनाथ के दर्शन पाकर हम कृतार्थ हुए. आराधना पूर्ण हुई तत्पश्चात हम माता जी को ले कर बाहर निकले ...



 
त्र्यंबक एक अद्भुत एवं दिव्य प्रभाव का तीर्थ माना जाता है। धार्मिक कर्मकांडों में श्रद्धा रखने वालों के लिए यह विशेष महत्त्व का स्थान है। बहुत से लोग यहां केवल कालसर्प योग की शांति के लिए ही जाते हैं। यहां त्रिपिंडी विधि पूजन होता है तथा नारायण नागबलि पूजा तो केवल त्र्यंबकेश्वर  में ही होती है। त्र्यंबकेश्वर में शिवलिंग  की पूजा रुद्री, लघु रुद्र, महारुद्र और अतिरुद्र मंत्रोच्चार के साथ की जाती है जो समस्त दैहिक , दैविक एवं भौतिक तापों का शमन करती है। गागा पूजन, गंगाभेंट , देहशुद्धि, प्रायश्चित, तर्पण, श्राद्ध एवं गोदान जैसे धार्मिक कर्म भी कुशावर्त क्षे़त्र में होते हैं। अब चूंकि इतने पूजन विधान त्र्यंबकेश्वर में होते हैं, इसलिए लोगों के भय एवं श्रद्धा का अनुचित दोहन करने वाले लोग भी वहां होंगे ही। त्र्यंबक क्षेत्र में पहुंचते ही ऐसे पंडे यात्री को घेरना शुरू कर देते हैं और बहुत से कातर लोग उनके झांसे में आ भी जाते हैं। परंतु यह भी ध्यान देने योग्य है कि मंदिर की व्यवस्था ट्रस्ट के अधीन है और ट्रस्ट की ओर से  कोई लूट-पाट नहीं है।अतः उचित होगा कि यदि कोई पूजा करवानी है तो मंदिर के अंदर जाकर ही पुजारियों से बात करके कराना ठीक होगा। अपना कैमरा मोबाईल लिया फिर अगल बगल घुमे १ घंटा ... माता जी के साथ वहा का प्रसिद्द नास्ता किया ... परम्परागत खाने के शौकीन लोगों के लिए नाशिक में बहुत ही कम रेस्तरां है। लेकिन मन प्रस्सन ... चल पड़े अगले पड़ाव... लौटते समय माता जी शुरू हो गयी खरीददारी में बच्चो , बहुओ के लिए तो मै फोटोग्राफी में लग गया ... धुप तेज थी .. सामान भी बहुत हो चूका था , मुझे शरारत सूझी ... मैंने माँ के लिए एक टोपी खरीद ली .. और पहना दिया माँ को... लगा की फिर से बच्चा हो चूका हु... , खैर अपनी गाड़ी में बैठे और चल पड़े पंचवटी के लिए ...



वास्तव में यही हमारे हिन्दू सनातन धर्म की विशेषता है, कि जहाँ हमने भगवान को पूजा करते है वहाँ हमें आनंद मिलता है और जहाँ हम वासना कि पूजा करते है वहाँ हमें दुःख व कष्ट मिलता है..बचपन में माँ बताती थी ... वो सत्य आज दिख गया .. हर हर महादेव

पीछे: << खंडवा से नासिक
आगे : >> चलते है पंचवटी


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3 comments:

  1. Yatra aur wo bhi teerth yatra hame mansik aur adhyatm santusti dilati hai.Badhai aur lekh ke liye aabhar.

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  2. मजा आ गया पड़ के , एक दम सजीव प्रसारण जैसा.. (c) जब तो जय शिव कहना की पड़ेगा

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