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Wednesday, April 29, 2015

त्र्यंबकेश्वर से पंचवटी

(२९ अप्रैल २०१५) त्र्यंबकेश्वर से नासिक पंचवटी जाने के लिए हम माता श्री को ले कर बैठ गए चल दिए पंचवटीदर्शन के लिए,टैक्सी वाले ने बताया की वह हमें रामघाट पर उतार देगा। बीच में आंजनेरी पर्वत और अंजनी माता का मंदिर भी पड़ता है और वह हमें वहां भी रोकेगा। हालांकि मैं जानता था कि आंजनेरी पर्वत पर हम नहीं जा पाएंगे क्योंकि एक तो पर्वत कुछ दूर है तथा ऊंचा है। दूसरी बात कि माता जी इतना पैदल भी नहीं चल पायेगी साथ ही हमारे पास इतना समय नहीं कि रुक-रुककर चढ़ जाएं। आज ही शिरडी भी पहुंचना है, अतः आंजनेरी पर्वत फिर कभी। हां, अंजनी माता का मंदिर सड़क से सटा हुआ है, वहां आसानी से दर्शन हो सकता है।नासिक को नाशिक के नाम से भी जाना जाता है। यह शहर प्रमुख रूप से हिन्दू तीर्थयात्रियों का प्रमुख केन्द्र है। नासिक पवित्र गोदावरी नदी के तट पर स्थित है।समुद्र तल से इसकी ऊंचाई ५६५ मीटर है। गोदावरी नदी के तट पर बहुत से सुंदर घाट स्थित है। इस शहर का सबसे प्रमुख भाग पंचवटी है। इसके अलावा यहां बहुत से मंदिर भी है। नासिक में त्योहारों के समय में बहुत अधिक संख्या में भीड़ दिखलाई पड़ती है।


नासिक का वट बृक्ष
गूगल बाबा के हिसाब से नाशिक आस्था का शहर है। यहां आपको बहुत से सुंदर मंदिर और घाट देखने को मिलेगें। यहां विभिन्न त्योहारों को बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां ज्‍यादातर भगवान के प्रति आस्‍था रखने वाले पर्यटक अधिक संख्‍या में आर्कषित होते है।कुंभ मेला नाशिक में लगने वाला कुंभ मेला, जिसे यहा सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है, शहर के आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र है। भारतीय पंचांग के अनुसार सूर्य जब कुंभ राशी में होते है,तब इलाहाबाद में कुंभ मेला लगता है और सूर्य जब सिंह राशी में होते है, तब नाशिक में सिंहस्थ होता है। इसे कुंभमेला भी कहते है। अनगिनत श्रद्धालु इस मेले में आते हैं। यह मेला बारह साल में एक बार लगता है। इस मेले का आयोजन महाराष्ट्र पर्यटन निगम द्वारा किया जाता है। भारत में यह धार्मिक मेला चार जगहों पर लगता है। यह जगह नाशिक, इलाहाबाद, उज्जैन और हरिद्वार में हैं। इलाहाबाद में लगने वाला कुंभ का मेला सबसे बड़ा धार्मिक मेला है। इस मेले में हर बार विशाल संख्या में भक्त आते हैं। इस मेले में आए लाखों श्रद्धालु गोदावरी नदी में स्नान करते हैं। यह माना जाता है कि इस पवित्र नदी में स्नान करने से आत्मा की शुद्धि और पापों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा प्रत्येक वर्ष आने वालेशिवरात्रि के त्योहार को भी यहां बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हजारों की संख्या में आए तीर्थयात्री इस पर्व को भी पूरे उमंग और उत्साह के साथ मनाते हैं.. माता जी से पूछ लिया इस साल का कुम्भ नहाना है क्या .. तयारी करू ? माता जी ने मना कर दिया ..
तो टैक्सी वाले ने छोड़ दिया रामघाट के पास अब हमें यहां से पंचवटी का भ्रमण करना था। टैक्सी वाले ने हिदायत दे दी की यहाँ कही भी फोटो खीचना मना है तो सामान के साथ कैमरा भी गाड़ी में छोड़ चल दिए राम घाट निचे पूछ पाछ के पहुच ही गए.. समझ में नहीं आया कहा जाये... तो उसपार पहुच ही गए माता जी को ले. गोदावरी नदी बच्चे खूब मस्ती के साथ स्नान कर रहे थे , माता जी ने भी मेरे ऊपर गोदावरी का जल छिड़क कर मुझे सुद्धा किया और घर के लिए बोतल में जल भर लिया, सोचा अब इतना ही है, सो नदी के पास एक एक बांध के पास से ही उस पार जाने का रास्ता बना था तो हम उन्ही रास्तो पर चल दिए वापस.. माता जी परेशां .. शायद वो सोच रही थी की मै रास्ता भूल गया हु... पर कहा मै
अर्ध नारीश्वर महादेव, नासिक
भी तो बनारसी किट ... बस वापस चले ही थे की मिल गए एक ऑटो वाले... पंचवटी घुमाने का आफर, पैसा पूछा तो बताया २५०/- मैंने भी सोचा ठीक ही है.. कितना पैदल चलेगे बैठ लिए.. ऑटो वाले ने बताया की यहां से पंचवटी का पूरा इलाका ढाई-तीन किलोमीटर की परिधि में होगा। यदि कोई पैदल चलने का शौकीन है तो उसके लिए पंचवटी भ्रमण कोई मुश्किल कार्य नहीं है। यह सौदा कुल मिलाकर ठीक-ठाक होता है। बीच-बीच में वे गाइड का भी कार्य करते रहते हैं। शुरू हुई यात्रा पंचवटी के जहा पहली बार पंचवटी की यात्रा करने पर सोच थी की यह एक हरा-भरा वनक्षेत्र होगा। आखिर, रामायण में लोगों ने यही तो पढ़ा है। कभी यह दंडक वन का एक हिस्सा था जहां भयंकर राक्षस घूमते रहते थे। अनेक प्रकार के हिंस्र पशु वनप्रदेष को भयावन बनाते थे। परंतु वे सब बातें अब कहां? पंचवटी के पांच वट अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्षरत हैं। शायद मन ही मन राम से प्रार्थना करते होंगे कि हे भगवान ! इन भूमाफियाओं से हमारे प्राणों की रक्षा करना। हर तरफ से ऊंची-ऊंची इमारतें इन्हें दबाए जा रही हैं। बीच में वट के पांच वृक्ष जिसके कारण यह स्थल पंचवटी कहलाया।
रामघाट
तो हम अब फिर पहुचे रामघाट..ऑटो वाले ने बताया की नासिक शहर में रामघाट वह स्थल है जहां सिंहस्थ कुंभ का प्रमुख मेला लगता है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था। आज भी इस स्थान पर पिंडदान की परंपरा निभाई जाती है। इस घाट पर लोग नहाते हुए मिल जाएंगे। तुलनात्मक रूप से यहां गोदावरी का जल साफ है; लेकिन प्रदूषणमुक्त नहीं। थोड़ी देर तक भीड़ को निहार लेने और उस काल के विषय में सोच लेने के अलावा जब राम यहां आए होंगे, यहां कुछ खास नहीं बचता। कभी हरीतिमा रही होगी और गोदावरी एक स्वच्छ, निर्मल प्रवहमान जलस्रोत रही होगी, पर हमने इसे गंदे नाले में बदल देने में कितनी कसर छोड़ी ? 

सीता गुफा 
गुम्फा का शब्दिक अर्थ गुफा होता है। सीता गुम्फा पंचवटी में पांच बरगद के पेड़ के समीप स्थित है। यह नाशिक का एक अन्य प्रमुख आकर्षण जगह है। इस गुफा में प्रवेश करने के लिए संकरी सीढ़ियों से गुजरना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि रावण ने सीताहरण इसी जगह से किया था।सीता की स्मृतियों से जुड़ी हुई सीता गुफा है, जिसमें कहा जाता है की सीता जी ने निवास किया था. उस स्थल को देखने वालों की भीड़ देखते बनती थी. और वे सभी एक विशाल लाइन में खड़े थे. जब कि उस गुफा में सिर्फ एक व्यक्ति ही प्रवेश कर आगे बढ़ सकता था और वह भी बैठे बैठे ही आगे बढ़ सकता था. एक लम्बी सुरंग की तरह वह गुफा सीता के निवास की कहानी कह रही थी.



सुंदरनारायण मंदिर
यह मंदिर नाशिक में अहिल्याबाई होलकर ब्रिज के किनारे स्थित है। इस मंदिर की स्थापना गंगाधर यशवंत चंद्रचूड ने १७५६ में की थी। इस मंदिर में भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। भगवान विष्णु को सुंदरनारायण के नाम से भी जाना जाता है।
 

मोदाकेश्वर गणेश मंदिर
मोदाकेश्वर गणेश मंदिर नाशिक में स्थित एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर में स्थित मूर्ति में बारे में ऐसा माना जाता है कि यह मूर्ति स्वयं ही घरती से निकली थी। इसे शम्भु के नाम से भी जाना जाता है। महाराष्ट्र का सबसे प्रसिद्ध मीठा व्यंजन मोदक है जो नारियल और गुड़ को मिलाकर बनाया जाता है। मोदक भगवान गणेश का भी प्रिय व्यंजन है।

कालाराम मंदिर
नाशिक में पंचवटी स्थित कालाराम मंदिर वहां के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का निर्माणगोपिकाबाई पेशवा ने १७९४ में करवाया था। हेमाडपंती शैली में बने इस मंदिर की

काला राम मंदिर, नासिक
वास्तुकला बहुत ही खूबसूरत है। इस मंदिर की वास्तुकला त्र्यंबकेश्वर मंदिर के ही सामान है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह मंदिर काले पत्थरों से बनाया गया है।काले पत्थर से बने ये विशाल मंदिर पुलिस के नियंत्रण में भी हैं. यहाँ पर कैमरा ले जाना निषिद्ध हैं . उन मंदिरों कि स्थापत्य काला देखते बनती है. ये कितने प्राचीन हैं .इसके बारे में उनके पत्थरों और उनपर उत्कीर्ण कृतियों से ही लगाया जा सकता है
इन मंदिरों के बाहर बने बरामदों में बुजुर्ग महिलायें रुई की बत्तियां बना रही होती हैं और लेने वालों को पैसे देकर बेचती भी हैं. यहाँ न बुढापा एक समस्या  न वक्त काटना. कई महिलाओं के समूह आपस में बातें करते हुए काम कर रही होती हैं. जो आत्मनिर्भरता का एक साधन भी है .


इस यात्रा से पहले पंचवटी खोजते यात्रा वृत्तांत में हरिशंकर राढ़ी जी को कही पढ़ा था.. तो याद आ गया उनके शब्दों में ..पञ्चवटी का एक वट 

 

इस स्थान पर एक कृत्रिम गुफा भी है जिसके विषय में जनश्रुति है कि जिस समय राम ने खर-दूषण से युद्ध किया था, लक्ष्मण सीताजी को लेकर इसी में छुपे थे। पास में ही कालेराम और गोरे राम का मंदिर है। कुछ दूर और चलिए तो एक नाला दिखता है। यही नाला लक्ष्मण रेखा के रूप में मान्यताप्राप्त है। नाले के पार एक छोटा सा मंदिर है जहां सीता लक्ष्मणरेखा पार करके निकलीं थीं और रावण को भिक्षा देने का प्रयास किया था। अंततः रावण ने उनका अपहरण कर लिया था। कुछ आगे और चलिए। एक हनुमान मंदिर है जिसके विषय में कहा जाता है कि यहां हनुमान जी पाताल तोड़कर निकले थे। यहां से आगे तपोवन शुरू होता है जहां लक्ष्मण ने सूर्पणखा का नासिका छेदन किया था। सूर्पणखा की एक विशाल धराशायी मूर्ति है जिसे देखकर बच्चों का मनोरंजन होता है। फिर आती है पर्णकुटी और गोदावरी का एक लघु संगम। पंचवटी की यात्रा पूरी। रह जाती है कुछ कसक। पर्णकुटी - जहां राम ने बनवास की लंबी अवधि काटी थी, उसके सामने गोदावरी बंधी हुई है। अतिरंजना नहीं है, यहां गोदावरी के जल से दुर्गंध आती है। पानी रुका हुआ, बिलकुल काला। नाक पर रूमाल देने की नौबत आ जाती है। क्या समय रहा होगा और क्या दृश्य रहा होगा जब राम अपनी पत्नी सीता एवं अनुज लक्ष्मण के साथ तपश्चर्या के दिन बिताए होंगे। इसी गोदावरी और उसके पार फैले जंगल ने उनके मन को कितना बांधा होगा।

राम यहां अगस्त्य मुनि की सलाह पर आए थे। शायद उनका लक्ष्य रहा होगा कि संपूर्ण भारत को देख लिया जाए; उसकी संस्कृति को समझ लिया जाए एवं आत्मसात कर लिया जाए। एक चक्रवर्ती राजा के लिए अपने राज्य के भूगोल और भौतिक-प्राकृतिक संपदा का वास्तविक ज्ञान होना ही चाहिए।

अगस्त्य मुनि को निश्चित रूप से दंडक वन की सुंदरता का ज्ञान रहा होगा, तभी तो उन्होंने राम को पंचवटी में रहने की सलाह दी। गोस्वामी तुलसी दास अरण्य कांड में इस प्रसंग का वर्णन करते हैं-
        है प्रभु परम मनोहर ठाऊं। पावन पंचवटी तेहि नाऊं।।
        दंडक वन पुनीत प्रभु करहू। उग्र शाप मुनिबर कर हरहू ।।

 

और ''गोदावरी निकट प्रभु, रहे परन गृह छाइ।'' जब 'पर्णकुटी' शब्द  कानों में पडा तो तुलसी दास जी का ही कवितावली का प्रसंग भी याद आ गया, हालांकि इस पर्णकुटी और उस पर्णकुटी में बड़ा अंतर महसूस किया जा सकता है। गोस्वामी जी लिखते हैं-
             

       पुर ते निकसीं रघुवीर वधू, धरि धीर दये मग में डग द्वै,
       झलकीं भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुराधर वै,
       फिर बूझति हैं चलनो अब केतिक, पर्णकुटी करिहौ कित ह्वै,
       तिय की लखि आतुरता पिय की अंखिया  अति चारु चलीं जल च्वै।


तब शायद सीता जी ने नहीं सोचा होगा कि एक पर्णकुटी यहां, इतनी दूर भी बनेगी, जहां से उनका हरण हो जाएगा। लेकिन अपनी भयंकरता के बावजूद दंडक वन सुंदर जरूर रहा होगा। 'रामायण' में महर्षि  वाल्मीकि ने अगस्त्य मुनि के मुख से पंचवटी का वर्णन कुछ इस प्रकार कराया है-

   इतो द्वियोजने तात बहुमूलफलोदकः।
   देशो  बहुमृगः श्रीमान् पंचवट्यभिविश्रुतः।।


   अतश्च त्वामहं ब्रूमि गच्छ पंचवटीमिति।
   स हि रम्यो वनोद्देशो  मैथिली तत्र रंस्यते।।

   (अरण्यकांड, त्रयोदश सर्ग)

 

मैं वहां बहुत देर तक तुलसीदास और महर्षि वाल्मीकि की पंचवटी को तलाशता रहा। उस समय की हरीतिमा को अपनी कल्पना में निहारता रहा। कितनी रातें, सुबहें, दोपहरी, बरसातें, शीत - घाम यहां पर राम ने देखा और भोगा होगा। इसी पर्णकुटी के बाहर वीरव्रती लक्ष्मण वीरासन में बैठे अपने कर्तव्य का आदर्श रखा होगा। कितनी सांय-सांय और भांय-भांय उन्होंने झेली होगी।  पर्णकुटी के सामने गोदावरी
हे राम ! आपकी वही पंचवटी आज उजड़ गई है। जब आपके आदर्श, आपका त्याग, आपका धर्माचरण और आपका न्याय ही हमने अप्रांसगिक मान लिया तो आपकी पंचवटी क्या चीज है? आज तो हम लोकतंत्र में जी रहे हैं, राजतंत्र का अंत हो चुका है। राजतंत्र तो सदैव ही 'निंदनीय' रहा है। लोकतंत्र हमारा; 'आदर्श ' है, एक ऐसा तंत्र जिसमें न लेाक है और न तंत्र। इतना भी नहीं कि हम अपने आदर्शों की धरोहर ही संभाल सकें !
पर्ण कुटी, तपोवन, नासिक

रामायण कालीन बहुत सारे स्थल हैं - जो आज भी उस काल के इतिहास के साक्षी माने जाते हैं. एक खास बात मुझे वहाँ जाने पर यह पता लगी कि यहाँ नासिक नाम पड़ने के पीछे भी एक कथोक्ति है कि यहाँ पर लक्ष्मण जी ने रावण की बहन सूर्पनखा की नाक काटी थी इसी लिए इसका नाम नासिक पड़ा. हम लोग उस स्थान को भी देखने गए जहाँ पर ये घटना घटित हुई थी. वहाँ एक कुटिया जैसे स्थान पर सूर्पनखा की क्षत विक्षत नाक वाली प्रतिमा और साथ ही लक्ष्मण जी की प्रतिमा बनी हुई थी.
तिन बज चूका था . पंचवटी दर्शन पूर्ण हुवा तो ऑटो वाले ने हमारी टैक्सी के पास छोड़ दिया .. फिर टैक्सी
पंचवटी दर्शन के हमारे गाइड ऑटो वाले साहब
हमें भोजन हेतु एक शाकाहारी; रेस्तरां में ले गया वहा भोजन करने के उपरांत हमने सिरडी की ओर प्रस्थान किया नासिक की जलवायु उष्णकटिबंधीय है, जहाँ तापमान अधिक रहता है । अतः गर्म ग्रीष्मकाल में यात्रा का परहेज करें, शांत सर्दियों के मौसम में यहाँ यात्रा की जा सकती मानसून के मौसम में भी एक सुंदर समय इस शहर में व्यतीत किया जा सकता है, हालांकि यह केवल बारिश प्रेमियों के लिए एक अच्छा विकल्प बना हुआ है।नासिक देश के केन्द्र में स्थित है और इसलिए देश के किसी भी कोने से यहाँ आराम से यात्रा की जा सकती है।,हमारी टैक्सी ने हमको बस स्टैंड छोड़ दिया .. चलिए .. मिलते है शिर्डी में.. ५ बजे की बस है ..
बस के इतजार में... Nasik Road Saroj Travels - Bytco Chowk तब तक ठंडा माजा का मजा ...


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2 comments:

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  2. आज यों ही घूमते घामते आपके इस ब्लॉग पर गूगल के माध्यम से पहुँच आया। इसमे आपने मेरे पंचवटी यात्रा वृत्तान्त का उल्लेख किया है। अच्छा लगा ॥ धन्यवाद
    hsrarhi@gmail.com

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