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Monday, April 27, 2015

उज्जैन दर्शन

(२७ अप्रैल २०१५ ) महाकाल के दर्शन के बाद गर्भ गृह से बाहर निकले, मंदिर के साथ ही बहुत से लगे हुवे छोटे बड़े मंदिर है .. सभी मंदिरों के दर्शन करते हुवे आगे बढते गए क्यों की सभी मंदिर महाकाल के दरबार में ही थे तो हाजिरी लगाते गए माता श्री के साथ, क्यों की कहा जाता है की जो महाकाल का भक्त है उसका काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

महाकाल के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि यह पृथ्वी का एक मात्र मान्य शिवलिंग है। महाकाल की महिमा का वर्णन इस प्रकार से भी किया गया है - 

     आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् । भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते॥
 
इसका तात्पर्य यह है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है। मन्दिर घुमने के बाद पिछले गेट से बाहर निकले माता जी को चाय नास्ता कराने के लिए, तभी घूमते घूमते एक आटो वाला लग गया उज्जैन दर्शन कराने के लिए,
वैसे उज्जैन दर्शन के लिए पर्यटन विभाग की बस सुविधा भी उपलब्ध है जो की प्रति व्यक्ति ५० रु. के शुल्क पर उज्जैन के प्रमुख स्थलों की सैर कराती है. उज्जैन दर्शन के लिए बस, देवास गेट से प्रातः ७ बजे एवं दोपहर में २ बजे चलती है. इसके अतिरिक्त टेम्पो, ऑटो रिक्शा, टाटा मेजिक आदि वाहनों से भी उज्जैन भ्रमण किया जा सकता है. लेकिन ऑटो रिक्शा वाले ने अपना कार्ड दिया बताया ४ घंटे में पूरा उज्जैन दर्शन कराएगा ३५० रुपिया लेगा, मै तो सोचा था ए सी टैक्सी ले कर उज्जैन दर्शन करुगा क्यों की गर्मी जो थी सुबह ७ बजे ३२ तापमान, तो ऑटो वाले से उसका प्रोजेक्ट समझ कर निकल लिया चाय नास्ता के लिए चुकी माँ और मै दोनों ही सुगर के मरीज है तो चाय चाहिए थी, बिना चीनी की ... खैर मिल गयी , चाय नास्ता भी हो गया ..
महाकाल के दरबार में अम्मा के साथ सेल्फी 

हा .. चाय की दुकान में माँ को बैठा कर सिगरेट खोजने लगा .. आदत जो है लेकिन माँ के डर से सिगरेट का पैकेट बैग में ही छोड़ दिया था, पास के ही एक पान की दुकान में लिया एक गोल्ड फ्लेग .. ९ रूपया का है ।।

माता श्री का चाय नास्ता
पास के ही दुकान में
४५ पैसा का था तब से पीना शुरू किया था।। कितनी महगाई बढ़ गयी है ।। हे राम खैर नास्ता कर के बाहर निकला ही की वो ऑटो रिक्शा वाला इतजार कर रहा था, मैंने सोचा की होटल तक चलूगा फिर उसको बिदा करुगा, लेकिन उसकी भावुक निगाहों के सामने बेबस.. तय कर लिया उसको, होटल पंहुचा धोती कुर्ता बदल पेंट शर्त पहनके कमरे में फैलाया सामान पैक कर होटल से चेक आउट कर लगेज वही छोड़ दिया, निकल पड़े उज्जैन दर्शन के लिए अम्मा को ले कर ऑटो से ;)

ऑटो वाले ने बताया की उज्जैन के प्रमुख दर्शनीय स्थल निम्नानुसार हैं – श्री महाकालेश्वर मंदिर, श्री बड़े गणेश मंदिर, श्री हरसिद्धि मंदिर, श्री चारधाम मंदिर, श्री नवगृह मंदिर, श्री प्रशांति धाम, श्री राम जनार्दन मंदिर, श्री गोपाल मंदिर, श्री गढ़ कालिका मंदिर, श्री चिंतामन गणेश, श्री काल भैरव, श्री भ्रतहरी गुफा, श्री सिद्धवट, श्री मंगलनाथ मंदिर, श्री संदीपनी आश्रम, वेधशाला, श्री चौबीस खम्भा मंदिर, शिप्रा नदी, कलियादेह पेलेस एवं इस्कोन मंदिर.

चूँकि हमारे पास समय की कमी होने की वजह से हम यह सारे मंदिर तो नहीं देख पाए लेकिन इनमें से अधिकतर स्थलों का अवलोकन करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ जिनका वर्णन करना मैं आवश्यक समझता हूँ.

उज्जैन स्थित 'महर्षि सांदीपनी आश्रम' : बताया जाता है कि उज्जैन में स्थित सांदीपनी ऋषि के आश्रम में श्रीकृष्ण ने ६४ दिन रहकर ६४ कलाएं और १४ विद्याएं ग्रहण कीं । वर्तमान में, जिस स्थान पर श्रीकृष्ण, सुदामा, बलराम और सांदीपनी ऋषि की मूर्तियां हैं, उस स्थान को मंदिर का रूप दे दिया गया है । भगवान श्रीकृष्ण ने उज्जैन के सांदीपनी ऋषि आश्रम को ही अध्ययन के लिए क्यों चुना ? वे काशी क्यों नहीं गए ? इसका कारण यह कि काशी में जरासंध का राज्य था और जरासंध कंस का मित्र था । इसलिए, वहां के वातावरण में सतत संघर्ष रहता और अध्ययन के लिए शांत वातावरण आवश्यक होता है । सांदीपनी ऋषि अपने ७ पुत्रों के वियोग से दुखी होकर काशी से उज्जैन आ गए थे । उस समय उज्जैन में अकाल पडा हुआ था । वहां के लोगों ने आज के आश्रमस्थल पर सांदीपनी ऋषि को अपनी पत्नी के साथ एक वृक्ष के नीचे बैठे देखा । उनके मुख पर तेज देखकर वे लोग समझ गए कि ये कोई संत-महात्मा हैं । उन्हें लगा कि ये इस अकाल से हमारी रक्षा करेंगे । अतः उन लोगों ने सांदीपनी ऋषि की शरण में जाने का निश्‍चय किया । सांदीपनी ऋषि ने इसी स्थान पर अनेक वर्ष तपस्या की । उनकी तपस्या से भगवान शिव नेप्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और वर दिया कि यहां जब तक महाकाल नाम से मेरा मंदिर रहेगा, तब तक इस क्षेत्र में अकाल नहीं पडेगा । भगवान शिव ने उस समय सांदीपनी ऋषि को अपने लिए कुछ मांगने को कहा, तो सांदीपनी ऋषि ने कुछ नहीं मांगा; किंतु उनकी पत्नी ने मातृ-प्रेमवश अपने मृत ७ पुत्रों को जीवित करने की अभिलाषा व्यक्त की । इसपर शिवजी ने उन्हें गीता का वचन, कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन सुनाया, अर्थात कहा कि फल की इच्छा त्याग कर कर्म करें; कर्म का फल अवश्य मिलेगा । उन्होंने आगे कहा, आप यहां गुरुकुल की स्थापना कीजिए द्वापरयुग में इस गुरुकुल में पढने के लिए दो विद्यार्थी आएंगे । ये विद्यार्थी गुरुदक्षिणा के रूप में आपके पुत्रों को लाकर आपको देंगे । इतना कहकर शिव बिल्वपत्र में अंतर्धान हो गए । तब, इसी बेलपत्र से एक शिवलिंग प्रकट हुआ । वही सर्वेश्‍वर महादेव हैं ! इस शिवलिंग की जलधारा में कुंडली रूपमें स्वयंभू शेष विराजमान हैं । इस शिवलिंग पर ध्यानस्थ ऋषिचिन्ह है । इस मंदिर में एक शिला है । इस शिला पर भगवान श्रीकृष्ण अध्ययन के लिए तथा शिवजी की पूजा के लिए बैठा करते थे । (इस बात का उल्लेख पुराणों में है ) यह शिला चौकोनी है । इस मंदिर के बाहर स्थित नंदी की प्रतिमा विशेष है । अब तक के सभी शिवमंदिरों में नंदी बैठी अवस्था में दिखाई देते हैं । किंतु, इस स्थान पर नंदी खडे दिखाई देते हैं । संदीपनी आश्रम परिसर में स्थित श्री सर्वेश्वर महादेव मंदिर में ६००० वर्ष पुराना शिवलिंग स्थापित है जिसे महर्षि संदीपनी ने बिल्व पत्र से उत्पन्न किया था. इस शिवलिंग की जलाधारी में पत्थर के शेषनाग के दर्शन होते हैं जो प्रायः पुरे भारत वर्ष में दुर्लभ है.
श्री सर्वेश्वर महादेव मंदिर
श्री हरसिद्धि मंदिर: उज्जैन के पावन दर्शनीय स्थलों में श्री हरसिद्धि मंदिर का अपना एक 
श्री हरसिद्धि मंदिर
विशिष्ठ स्थान है. महालक्ष्मी तथा महासरस्वती माता की मूर्तियों के मध्य में स्थित माँ अन्नपूर्ण की मूर्ति गहरे सिंदूरी रंग में शोभायमान है. श्री यन्त्र जो की शक्ति का प्रतिक है, भी मंदिर में स्थित है. शिव पुराण के अनुसार जब भगवान शिव, सती माता के जलते हुए शरीर को प्रजापति दक्ष के हवन कुंड से उठा कर लेकर जा रहे थे तो रास्ते में जहाँ जहाँ उनके शरीर के अंग गिरे वहां एक शक्ति पीठ स्थापित हो गया, उन्ही शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है श्री हरसिद्धि मंदिर जहाँ माता पार्वती की भुजाएं गिरी थीं. यह मंदिर मराठा काल में पुनर्निर्मित हुआ था, मंदिर के सामने दो दीप स्तम्भ, मराठा कला की विशिष्ठ पहचान है. मंदिर परिसर में एक अति प्राचीन कुवां स्थित है.

श्री गढ़कालिका मंदिर: गढ़कालिका देवी महाकवि कालिदास की आराध्य देवी रही है. इनकी कृपा से ही अल्पज्ञानी कालिदास को विद्वता प्राप्त हुई थी. यह तांत्रिक सिद्ध स्थान है. यह मंदिर जिस जगह पर है, वहां पर पुरानी अवंतिका बसी हुई थी. गढ़ की देवी होने से यह गढ़कालिका कहलाई. मंदिर में माता कालिका के एक तरफ महालक्ष्मी तथा दूसरी तरफ श्री महासरस्वती की प्रतिमाएं हैं. मंदिर के पीछे श्री गणेश जी की पौराणिक प्रतिमा है तथा सामने पुरातन श्री हनुमान मंदिर है जिसके पास ही दर्शनीय श्री विष्णु प्रतिमा है. कुछ दुरी पर क्षिप्रा नदी है जहाँ सतियों का स्थान है.

उज्जैन का सिध्दवट: प्रयत्न के अक्षयवट, वृन्दावन के वंशीवट तथा नासिक के पंचवट के समान 
सिध्दवट
अपनी पवित्रता के लिए प्रसिध्द है। पुण्यसलिला शिप्रा के सिध्दवट घाट पर अन्त्येष्टि-संस्कार सम्पन्न किया जाता है। स्कन्द पुराण में इस स्थान को प्रेत-शिला-तीर्थ कहा गया है। एक मान्यता के अनुसार पार्वती ने यहाँ तपस्या की थी। वह नाथ सम्प्रदाय का भी पूजा स्थान है। सिध्दवट के तट पर शिप्रा में अनेक कछुए पाए जाते है। उज्जयिनी के प्राचीनसिक्कों पर नदी के साथ कूर्म भी अंकित पाए गए हैं. इससे भी यह प्रमाणित होता है कि यहाँ कछुए अति प्राचीनकाल से ही मिलते रहे होंगे. कहा जाता है कि कभी इस वट को कटवाकर इस पर लोहे के तवे जड़ दिए गए थे, परन्जु यह वृक्ष तवों को फोड़कर पुन: हरा-भरा हो गया।
 
  

श्री काल भैरव: अष्टभैरवों में श्री काल भैरव का यह मंदिर बहुत प्राचीन और चमत्कारिक है. इस मंदिर की प्रसिद्धि इस बात के लिए है विशेष है की मुंह में छेद नहीं है फिर भी भैरव की यह 
श्री काल भैरव, उज्जैन
प्रतिमा मदिरापान करती है. पुजारी द्वारा मद्यपात्र काल भैरव के मुंह में लगाया जाता है और देखते ही देखते यह खाली हो जाता है. स्कन्द पूरण में इन्ही काल भैरव का अवन्ती खंड में वर्णन मिलता है. इनके नाम से ही यह क्षेत्र भैरवगढ़ कहलाता है. रजा भद्रसेन द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था. उसके भग्न होने पर राजा जय सिंह द्वारा वर्त्तमान मंदिर का निर्माण करवाया गया. प्रांगण में संकरी तथा गहरी गुफा में पाताल भैरवी का मंदिर है. काल भैरव के मंदिर के सामने जो मार्ग है इससे आगे बढ़ने पर प्राचीन विक्रांत भैरव मंदिर पहुंचा जा सकता है.यह दोनों स्थान तांत्रिक उपासकों के लिए सिद्ध स्थान के रूप में प्रसिद्ध है. शिव पुराण तथा तंत्र ग्रंथों के अनुसार शिव तथा भैरव एक ही है. अतः शिव की नगरी में उन्ही के रुद्रावतार का यह स्थान बड़े महत्व का है.. माता श्री के डर से तो मदिरा नहीं पिला पाया ... ;)

श्री मंगलनाथ: यह उज्जैन का एक महत्वपूर्ण तथा महिमावान स्थान है. पौराणिक मान्यता है की मंगलनाथ की जन्मभूमि यहीं है. इनकी आराधना तथा पूजन विशेष रूप से मंगल गृह की शांति,शिव कृपा, ऋण मुक्ति और
श्री मंगलनाथ,उज्जैन
धन प्राप्ति आदि की कामना से की जाती है. मंगलनाथ की भात पूजा तथा रुद्राभिषेक का बहुत महत्व है. यहाँ पर मंगल की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है. मंगलवार को इनके दर्शनार्थियों की संख्या बहुत बढ़ जाती है. मंदिर एक ऊँचे टीले पर बना हुआ है. मंदिर प्रांगण में ही प्रथ्वी देवी की एक बहुत प्राचीन प्रतिमा स्थापित है. शक्ति स्वरुप होने से इनको सिन्दूर का चोला चढ़ाया जाता है. मंगलनाथ के साथ ही इनके दर्शन का भी महत्व है. मंदिर क्षिप्रा तट पर स्थित है यहाँ पर पक्के घाट बने हुए है. श्री मंगलनाथ से थोड़ी दुरी पर गंगा घाट है जहाँ पर भगवान् श्री कृष्ण ने अपने गुरु संदीपनी जी की गंगा स्नान की अभिलाषा पूर्ण कराने के लिए गंगा प्रकट कराई थी.
श्री स्थिरमन गणेश :  एक अति प्राचीन गणपति मंदिर जो कि उज्जैन में स्थित है । इस मंदिर एवं गणपति की विशेषता यह है कि  वे न तो दूर्वा और न ही मोदक और लडडू से प्रसन्न होते हैं 
श्री स्थिरमन गणेश
उनको गुड़  की एक डली से प्रसन्न किया जाता है । गुड़ के साथ नारियल अर्पित करने से गणपति प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की झोली भर  देते हैं, हर लेते हैं भक्तों का हर दुःख और साथ ही मिलती है मन को बहुत शान्ति । इस मंदिर में सुबह गणेश जी का सिंदूरी श्रंृगार कर चांदी के वक्र से सजाया जाता है ।  यहां सुबह - शाम आरती होती है जिसमें शंखों एवं घंटों की ध्वनि मन को शांत कर  देती है । इतिहास में वर्णन मिलता है कि श्री राम जब सीता और लक्ष्मण के साथ तरपन के लिए उज्जैन आये थे तो उनका मन बहुत अस्थिर हो गया तथा माता सीता ने श्रीस्थिर गणेश की स्थापन कर पूजा की तब श्री राम का मन स्थिर हुआ । कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य का जब मन अस्थिर हुआ तो गलत फैसले होने पर वे श्री स्थिर गणेश मंदिर आकर उन्होंने गणपति की आराधना की तक कहीं उनका मन स्थिर हुआ
 
माता जी थक चुकी थी १ बज चूका था तो उज्जैन की यात्रा यही समाप्त की और चल पड़े माता जी को खाना खिलने वो भी बिना प्याज लहसुन वाला, शहर दिखाते हुवे ऑटो वाला खोज कर एक अच्छे रेस्टुरेंट में ले गया लेकिन वहा खाना तो नहीं था पर नास्ता मिल गया, भूख लगी थी तो भूखे भजन न होए गोपाला ... लिया पोहा और समोसा कचौरी... दबाया भर पेट नास्ता करने के बाद होटल पहुच कर सामान लिया और निकल पड़े इंदौर के लिए, यहाँ से इंदौर ८० किलो मीटर है उज्जैन स्थित देवासगेट बस स्टैंड से बराबर बसे मिलती है
घुमने से मन कहा भरता है, बस घूमते जाओ. घूमते जाओ, लेकिन क्या करते माँ को ले कर तीर्थयात्रा पर जो निकले थे आज तो पहला ही दिन था उज्जैन की सैर भारत के एक ऐसे नगर की जहाँ का कण-कण भक्ति के रस से श्रृंगारित है, जहाँ हर सुबह गली-चौराहों पर हर हर महादेव के जयकारे सुनाई पड़ते हैं, जहाँ हर छोटे-बड़े गली-मुहल्लों व घरों में मंदिर ही मंदिर हैं। भगवान महाकालेश्वर के इस नगर में एक-दो नहीं बल्कि ३३  करोड़ देवता छोटे-बड़े मंदिरों में विराजते हैं, एकदम मेरे बनारस जैसा 

बस स्टैंड के लिए होटल से सामान ले उसी ऑटो से माता जी के साथ कुछ ही देर में उज्जैन स्थित देवासगेट बस स्टैंड पहुँच गए।


वैसे नगर निगम की ओर से उज्जैन शहर में सिटी बसों का संचालन अवंतिका लोक परिवहन सेवा कंपनी द्वारा किया जाता है। हाल ही में आरटीओ ने पांच बसों के लिये उज्जैन-इंदौर-आगर मार्गों के लिये परमिट जारी किये है। ऑटो वाले ने ही एक अच्छी बस में बैठा दिया कुछ ही देर बाद बस चली आगे ही हाईवे पकड़ने के बाद बस हवा से बाते करने लगी क्यों की उज्जैन से इंदौर से बीच सड़क काफ़ी अच्छी बनी हुई है आराम से इंदौर के सरवटे बस स्टैंड पर उतर गए 




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4 comments:

  1. आपके साथ हम भी घूम लिए....बहुत ही बढ़िया विवरण...तस्वीरें भी बहुत अच्छी आई हैं

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  2. ~~~ प्रणाम .......... मस्त फ़ोटो ~~~~~~

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  3. कलियुग में आप जैसा श्रवण कुमार मिलना दुर्लभ है। जय भैरवनाथ।

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