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Tuesday, April 28, 2015

ओंकारेश्वर ममलेश्वर दर्शन

२८ अप्रैल २०१५ (मंगलवार )यात्रा का दूसरा दिन 

इंदौर से ८२ किलो मीटर सुबह ८ बजे टैक्सी से
इंदौर- ओंकारेश्वर/ ममलेश्वर- खंडवा
दर्शन पूजा का समय सुबह ११ बजे से ३ बजे तक
ओंकारेश्वर / ममलेश्वर
 
अपनी इस यात्रा में आज चलते हैं ओंकारेश्वर नगरी. नर्मदा क्षेत्र में यह ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ माना जाता मध्य प्रदेश के खंडवा जिले को दक्षिण भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता है. यह जिला नर्मदा और ताप्‍ती नदी घाटी के मध्य बसा है. इंदौर शहर से ८२ किलोमीटर दूर, खंडवा जिले में स्थित यह स्थान नर्मदा के दो धाराओं में विभक्त हो जाने से बीच में बने एक टापू पर है, इसे मान्धाता पहाड़ी भी कहा जाता है. नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तर और दूसरी दक्षिण होकर बहती है.
 
ओंकारेश्वर


 
इंदौर - खंडवा सडक एवं रेलमार्ग पर बसे मोरटक्का से बारह किलोमीटर सडक मार्ग की दुरी तय करके ओम्कारेश्वर तक पहुंचा जा सकता है. सुविधा के साथ प्राकृतिक दृश्यों का लुत्फ लेने की चाह रखने वाले अमूमन बस या फिर खुद के वाहन से ओंकारेश्वर जाना ज्यादा पसंद करते हैं। खंडवा रोड पर बड़वाह, मोरटक्का होते हुए लगभग ढाई घंटे में ओंकारेश्वर पहुंचा जा सकता है। खंडवा जिले की ओम्कारेश्वर नगर पंचायत क्षेत्र में बसा है ओम्कारेश्वर... यहाँ एतिहासिक महत्व के कई मंदिर है जो केन्द्रीय एवं राज्य पुरातत्व के अधीन है जिनमे ओम्कारेश्वर, ममलेश्वर, गौरी सोमनाथ एवं बारहद्वारी सिद्धनाथ महादेव मंदिर प्रमुख है. नर्मदा घाट से ओम्कारेश्वर के मुख्य मंदिर तक कोटेश्वर, हाटकेश्वर, राज राजेश्वर, त्र्यम्बकेश्वर, गायत्रेश्वर, गोविन्देश्वर, सावित्रेश्वर शिव मंदिर है. ओमकार पर्वत की परिक्रमा मार्ग पर एतिहासिक गौरी सोमनाथ मंदिर, बारहद्वारी सिद्धनाथ महादेव मंदिर, पातली हनुमान के अलावा वानर भोजशाला से भी परिचय करने को मिलता है. परिक्रमा मार्ग पर कई एतिहासिक द्वार है, जिनमे  चाँद -सूरज द्वार, हुंडी - कुण्डी द्वार, भीम द्वार एवं पाण्डव द्वार जीर्ण शीर्ण होकर टूटने की कगार पर है . 
शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है।  सर्दियों में जब केदारनाथ के पट बंद हो जाते हैं ऐसे समय में में पांचों केदारों की गद्दियां ओंकारेश्वर मंदिर में स्थापित की जाती है. ग्रीष्मकाल में पंचकेदारों के कपाट खुलने के बाद भी उनके स्वरूपों की पूजा यहां की जाती है.यूँ कहिये कि ओंकारेश्वर मंदिर में वर्ष भर पांचों केदारों के दर्शन किए जा सकते हैं और इनके दर्शन से उतना ही पुण्य मिलता है जितना केदारनाथ में दर्शन से.लेकिन मंदिर समिति के अनुसार अधिकतर श्रद्धालुओं को ओंकारेश्वर मंदिर के बारे में यह जानकारी नहीं है और वे भरपूर प्रयास कर रहे हैं कि पर्यटकों को इस ओर भी आकर्षित किया जाये।

तो हम पहुच ही गए अपने कार से बाबा के दरबार माता जी को ले कर, टैक्सी वाले ने पार्किंग के पास हमको उतार दिया, उतरते ही वहा के पंडे लग गए पीछे, हमहू रहे बनारसी, तो रेट पूछ लिए पैसा कितना लोगे.. हमको लगा की हमही तेज है लेकिन वहा २-४ पंडो का ग्रुप, बड़ी मासूमियत से एक पुजारी बोला मन्दिर के दर्शन और पूजा मैं आपको बिना लाईन के ही करवा दूँगा। हम समझ गये कि पुजारी पूजा करने के बदले जो दक्षिणा मिलने वाली है उसकी उम्मीद में हमारे पीछे लगा है। मैंने कहा ठीक है कराओ दर्शन, लेकिन पहले अपनी दक्षिणा साफ़-साफ़ बता तो कही बाद में तुम ज्यादा बताओ और मैं जो मेहनताना तुम्हे दू, तुम्हे कम लगे। पुजारी और भिखारी में एक समानता होती है कि वह हमेशा कहेंगे कि जो आपकी श्रद्धा हो दे देना। इस पुजारी ने भी अपनी रटी-रटाई बात दोहराई थी। आराम से अभिषेक करा देगे, जो श्रद्धा हो दे दीजियेगा .. लेकिन बात चित से २५० रुपये में फ़रिया गया ओम्कारेश्वर और ममलेश्वर दर्शन पूजन पूजा सामग्री के साथ ... फिर उसने बताया ३ किलो मीटर सामने की पहाड़ी पर पुल के रस्ते चलना होगा, तभी वहा एक नाव वाला भी आ गया, उसने जाने का ऐसा रास्ता बताया की, मैंने उसके नाव का भी रेट पूछ लिया, ६०० रुपये में रिजर्व, उस पर ओम्कारेश्वर के दर्शन फिर साइड सीन फिर ममलेश्वर के दर्शन के बाद हमारे टैक्सी के पास छोड़ देगा ... उपर धुप देखा फिर माता जी को, चल पड़े उसके नाव पर
... मुझे लगा नाव का चुनाव सही ही था, क्यों की तीर्थ स्थली ओम्कारेश्वर में विकसित भारत के दर्शन भी होते है.


नदी पार कर ओम्कारेश्वर तक पहुँचने हेतु बनाया गया " पुल" जिसकी अत्यधिक लंबाई होने के बावजूद उसके मध्य में आधार नही है,कुशल इंजीनियरिंग का नमूना है इसके अलावा नर्मदा हाइड्रो इलेक्ट्रिक कम्पनी द्वारा ऋषिकेश के लक्ष्मन झुला की तर्ज पर नया ममलेश्वर सेतु भी बनाया गया है जो ओम्कारेश्वर मंदिर का अतिरिक्त पहुँच मार्ग है विशेष धार्मिक अवसरों पर इसका अत्यधिक उपयोग होता है इसी सेतु से ५२० मेघावाट विद्युत उत्पादन क्षमता का ओम्कारेश्वर बाँध दिखाई देता है. ये नाव पर बैठने के बाद की पता चला, साथ में धुप में भी सुरक्षा .. पहुच गए ओम्कारेश्वर के तट पर, फिर सीढियों से बाबा के दरबार, ७० -८० सीढियों के बाद हम पहुच गए बाबा के दरबार में, वहा भी अपने काशी की तरह माला फुल वाले लग गए पीछे.. लेकिन सारा खर्च पंडे का ही तो माता जी को पकड़ कर .. मंदिर के पास पहुच गया .. चप्पल उत्तार कर लगा पंडे ने मन्दिर के उस दरवाजे की ओर, जहाँ से आम लोग दर्शन कर बाहर आ रहे थे। निर्गम मार्ग से आगम करते समय पुजारी साथ होने के कारण किसी ने हमें नहीं रोका था। हम सीधे मन्दिर के गर्भ गृह पहुँचे .. इस ज्योतिर्लिंग-मंदिर के भीतर दो कोठरियों से होकर जाना पड़ता है। भीतर अँधेरा रहने के कारण यहाँ निरंतर प्रकाश जलता रहता है। माता जी भी काशी का जल ले कर तैयार , पहुच ही गए हम एक दम पास .. ओंकारेश्वर लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है,बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। प्राय: किसी मन्दिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है और उसके ठीक ऊपर शिखर होता है, किन्तु यह ओंकारेश्वर लिंग मन्दिर के गुम्बद के नीचे नहीं है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि मन्दिर के ऊपरी शिखर पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है। कुछ लोगों की मान्यता है कि यह पर्वत ही ओंकाररूप है। देखने से लगा की ओंकारेश्वर लिंग का निर्माण स्वयं प्रकृति ने किया है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है,  शिवलिंग को छूने नहीं मिलता चारो तरफ से सीसे से बंद है,जलाभिषेक के लिए उपर से पाइप की ब्यवस्था की गयी है .. तभी पंडा श्री एक बाल्टी पानी ले कर आ गए और पहले से ही २ पंडे तैयार थे, लेकिन उन्होने मन मुताबिक जलाभिषेक कराया माता जी के हाथो... माता जी प्रस्सन .. १० मिनट तक अन्दर जो रही इतनी भीड़ में .. जिन दो लोगो ने जलाभिषेक कराया उनके १००-१०० दे कर बाहर निकला तो उन्होंने फोटो भी खीचने दिया, बाहर आये तो इसके बाद नए पुजारी शिवलिंग से लायी गयी फ़ूल-पत्ती लेकर बाहर बरामदे में एक स्थान पर बैठ गए । वहाँ कुछ अन्य पुजारी भी हमारे जैसे पटा कर लाये गये लोगों को बैठाकर पूजा-पाठ करा रहे थे। पुजारी ने हमें आधे घन्टे तक अपने मन्त्रों के जाल में बाँधे रखा मैंने सोचा चलो १०० और लगा, लेकिन उ पंडा महराज तो इमोशनल अत्याचार कर दिए.. लगे रहे आधा घंटा तक .. फिर दक्षिणा की बारी आयी तो, वो अपने जीवन की दास्तान सुनाने लगे.. इस पहाड़ी पर कोई खेती बारी नहीं.. कोई रोजगार नहीं.. बस आप ही लोगो का सहारा है.. हाथ में चावल रखा माता जी के २१०० मानने वाले साहब ... फिर शुरू..माता जी के सामने.. "ऐसा पुत्र बड़े सौभाग्य से मिलता है जो इस कलयुग में माँ को तीर्थ यात्रा करा रहा है.. माता जी ये आप के पिछले १० जन्मो के पुण्य का प्रताप है, ॐकारेश्वर का निर्माण नर्मदा नदी से स्वतः ही हुआ है। यह नदी भारत की पवित्रतम नदियों में से एक है। ओंकारेश्वर में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही अमलेश्वर (ममलेश्वर) ज्येतिर्लिंग भी है। इन दोनों शिवलिंगों की गणना एक ही ज्योतिर्लिंग में कीगई है। स्कन्द पुराण के रेवा खण्ड में श्री ओंकारेश्वर की महिमा का बखान किया गया है-ओंकारेश्वर तीर्थ अलौकिक है। भगवान शंकर की कृपा से यह देवस्थान के समान ही हैं। जो मनुष्य इस तीर्थ में पहुँचकर अन्नदान, तप, पूजा आदि करता है अथवा अपना प्राणोत्सर्ग यानि मृत्यु को प्राप्त होता है, उसे भगवान शिव के लोक में स्थान प्राप्त होता है।' " मै समझ गया बेटा बनारस वाले मिश्रा जी .. दो और निकलो .. निकला २१००/- करवाया पूरा पूजा चन्दन लगवा कर प्रसाद लिया, फिर ब्राह्मण भोजन की , तब उन श्रीमान ने बताया की अब मुझे कही भी पैसा देने की जरुरत नहीं .. तो दे ही दिया ५०१/- तब जा कर पुजारी का चेहरा चहकने लगा था।


मुझे खुशी थी कि इस पुजारी ने जो मेहनत की उसका इनाम उसे मिल गया था। चरण स्पर्श किया माता जी के फिर पुजारी जी के तब उन्होंने ने साल में दो बार आने का आशीर्वाद भी दिया ... अपना पूरा पता ठिकाना भी लिखवा दिया .. अब बारी थी बोटिंग की तो निचे उतरे पहुच गए घाट पर मछलियों के लिए चारा ले कर और शुरू हो गयी बोटिंग .. 


वैसे पुजारी जी एक दम गाइड के तरह बताते जा रहे थे की राजा मान्धाता ने यहाँ नर्मदा किनारे इस पर्वत पर घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और शिवजी के प्रकट होने पर उनसे यहीं निवास करने का वरदान माँग लिया। तभी से उक्त प्रसिद्ध तीर्थ नगरी ओंकार-मान्धाता के रूप में पुकारी जाने लगी। लेकिन पुजारी जी ने उवाचा की लिंग के दो स्वरूप होने की कथा पुराणों में इस प्रकार दी गई है- एक बार विन्ध्यपर्वत ने पार्थिव-अर्चना के साथ भगवान्‌ शिव की छः मास तक कठिन उपासना की। उनकी इस उपासना से प्रसन्न होकर भूतभावन शंकरजी वहाँ प्रकट हुए। उन्होंने विन्ध्य को उनके मनोवांछित वर प्रदान किए। विन्ध्याचल की इस वर-प्राप्ति के अवसर पर वहाँ बहुत से ऋषिगण और मुनि भी पधारे। उनकी प्रार्थना पर शिवजी ने अपने ओंकारेश्वर नामक लिंग के दो भाग किए-एक का नाम ओंकारेश्वर और दूसरे का ममलेश्वर पड़ा.
 
पुजारी जी ने ये भी बताया की पहाड़ी के चारों ओर से बहती हुई नर्मदा नदी इसे ओम के आकार का बनाती है, ओंकार शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ, वेद का पाठ इसके उच्चारण किए बिना नहीं होता है.इस ओंकार का भौतिक विग्रह ओंकार क्षेत्र है. इसमें ६८ तीर्थ हैं. यहाँ ३३  करोड़ देवता परिवार सहित निवास करते हैं तथा २  ज्योतिस्वरूप लिंगों सहित १०८ प्रभावशाली शिवलिंग हैं. संपूर्ण मान्धाता-पर्वत ही भगवान्‌ शिव का रूप माना जाता है. लोग भक्तिपूर्वक इसकी परिक्रमा करते हैं. ओंकारेश्वर मन्दिर नर्मदा नदी के उस पार है जबकि ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा के इस पार..इस ओंकारेश्वर-ज्योतलिंग के दो स्वरूप हैं, एक को ओंकारेश्वर और दूसरा ममलेश्वर के नाम से जाना जाता है. यह नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर हटकर है पृथक होते हुए भी दोनों की गणना एक ही में की जाती है. दोनों के दर्शन करने से ही पूर्ण फल प्राप्त होता है। ओंकारेश्वर मन्दिर में दर्शन करने के बाद बोटिंग की प्रक्रिया १० मिनट की चली उसके बात हम लोग ममलेश्वर मंदिर की ओर चल दिए। ममलेश्वर मंदिर एक बहुत पुराना मंदिर है, यह ओंकारेश्वर मंदिर से नर्मदा नदी के दूसरे तट पर मौजूद है।

ओंकारेश्वर एक प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन माना जाता है कि ममलेश्वर ही वास्तविक ज्योतिर्लिंग है। नाव वाले ने ममलेश्वर मंदिर जाने वाले नर्मदा नदी के किनारे लगा दिया, उस घाट से कुछ ही दुरी पर उपर ममलेश्वर मंदिर है इसका सही नाम अमरेश्वर मंदिर है। ममलेश्वर मंदिर नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर १० वीं सदी में बनाया गया था। यह मंदिरों का एक छोटा सा समूह है। अपने सुनहरे दिनों में इसमें दो मुख्य मंदिर थे लेकिन आजकल केवल एक बड़े मंदिर को ही भक्तों के लिए खोला जाता है। मंदिरों का यह समूह एक संरक्षित प्राचीन स्मारक है। सीड़ियों से चढ़ाई करने के बाद पहुच गए..पूरे रास्ते में भगवान के चड़ावे के लिए बिल्व पत्र, फूल और मिठाई के पैकेट स्टालों पर बिक रहे थे। ममलेश्वर मंदिर ज्यादा बड़ा मंदिर नहीं है। भगवान शिव, शिवलिंग रूप में पवित्र स्थान के केंद्र में मौजूद है। पार्वती माता की मूर्ति दीवार पर मौजूद है। ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग में आप खुद के द्वारा शिवलिंग को अभिषेकं कर सकते हैं और छू सकते हैं । ममलेश्वर के मुख्य मंदिर के चारोंओर भगवान शिव के कई छोटे मंदिर हैं। ममलेश्वर मंदिर में आने वाले श्रदालुओं की संख्या ओंकारेश्वर की तुलना में दसंवा हिस्सा भी नहीं थी। जहाँ एक और ओंकारेश्वर में काफी भीड़ थी और दर्शनों के लिए धक्का मुक्की हो रही थी, यहाँ भीड़ बिलकुल भी नहीं थी। लोग आराम से दर्शन कर रहे थे। जहाँ ममलेश्वर मंदिर में आप शिवलिंग को स्वयं अभिषेक कर सकते हैं, छू सकते हैं, तस्वीरें ले सकते हैं वहीँ ओंकारेश्वर में यह सब कुछ वर्जित है। भगवान से फुर्सत से मिलना सचमुच काफी सकून दायक होता है। वहा भी पांडे जी ने पुरे पूजा सामग्री का प्रबंध किया और अच्छे से जलाभिषेक करवाया ... लेकिन कम भक्तों के कारण शायद चढ़ावा भी कम होता है जिसका असर मंदिर की देख रेख पर साफ दिख रहा था। मंदिर के गर्भ गृह के आस पास सफाई नगण्य थी। इस लिए वहा भी दान कर ही दिया ... पूजा समाप्त हुई .. माता श्री भी प्रस्सन और आदेश दिया इस पण्डे को २५०/- देने के लिए


 
..बाहर निकले फिर चले बोट की तरफ ... नर्मदा के उत्तरी तट पर ओमकार मंदिर के समीप आदि शंकराचार्य की गुफा है,विकम संवत ७४५ को इसी स्थान पर आदि शंकराचार्य ने अपने गुरु गोविन्दाचार्य से दीक्षा ली थी . जिसे गोविन्देश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है .
ओम्कारेश्वर ... एक एसा तीर्थ स्थल,जहाँ पर धर्म, संस्क्रती और इतिहास से रूबरू होने को मिलता है . यहाँ कल-कल बहती नर्मदा नदी की पावन जलधारा भी है जो तन - मन को पवित्र करती है . जिसे माँ नर्मदा भी कहा गया है .जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य पापमुक्त हो जाता है .नर्मदा पुराण में माँ नर्मदा की इसी महिमा का उल्लेख है . दोनों पर्वत शिखरों के मध्य बहने वाली नर्मदा नदी मध्य में गहराई लिए है. नर्मदा और कावेरी नदी का संगम स्थल ही ओमकार पर्वत को टापू का स्वरूप प्रदान करता है .

जोर की भूख प्यास तो रस्ते में ठंडा नीबू पानी दिखा पंडा जी पिलाने ले गए क्यों की उनकी दक्षिणा अलग से जो थी ... मैंने और माता जी ने मिल कर ४ ग्लास नीबू पानी .. और पंडे को भी ... पैसा देने का आदेश माता जी के तरफ से तो वो भी कर दिया ... इतने में माता जी ने साकाहारी खाने के लिए जगह खोजना शुरू किया तो पंडे ने बताया की पास में ही श्री गजानन महाराज संस्थान गेस्ट हाउस सबसे किफ़ायती तथा सुविधाजनक विकल्प है, तो वही नाव छोड़ना पड़ा, पांडे के हाथ से उसके पैसे भिजवाए, फिर पंडे ने ला कर छोड़ दिया गजानन महाराज संस्थान, पहुच गए अन्दर... तो पता चला की ३० रु. में थाली जिसमें दो सब्जी, रोटी, दाल, चावल तथा एक मिष्ठान्न, २ कूपन लिया और बैठ गए खाने खाना सचमुच बड़ा स्वादिष्ट था शुद्ध सात्वीक भोजन और हमें क्या चाहिये,

 
सो भरपेट करने के बाद हम लोग थोड़ी देर वहा आराम किये फिर निकल लिए खंडवा .. जहा से हमारी अगली ट्रेन थी शाम की ७ बजे की नासिक के लिए




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2 comments:

  1. Prabhu yatra aap kar rahe they ya mai,kuchchh aisa khoya jaise mai bhi shamil hu is sub me.kabhi Naimisharanya aayiye mai darshan karata hu aap ko.wo bhi mere swagat per.

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    1. बहुत ही सुन्दर तरीके से अपनी ओंकारेश्वर यात्रा का विवरण दिया है

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