शिवजी के गले के मुंडमाला का रहस्य व शुकदेव के उत्पत्ति का प्रसंग (बड़ों से सुनी कहानियों के आधार पर)
शिव के गले में मुंडमाला से यह भाव व्यक्त होता है कि उन्होंने मृत्यु को गले लगा रखा है तथा वे उससे भयभीत नहीं हैं। शिव के श्मशानवास का प्रतीक यह है कि जो जन्मता है, एक दिन अवश्य मरता है अत: जीवित अवस्था में शरीर-नाश का बोध होना ही चाहिए।
एक बार जब भोलेनाथ दीर्घकाल से समाधि में थे, उनकी सेवा में मां पार्वती समेत उनके गणों की सेना तत्पर रहती थी | उसी दौरान देवर्षि नारद का आगमन शिवलोक में हुआ | उन्होंने पार्वतीजी से पूछा कि माते ! क्या आप को पता है कि भोलेबाबा के गले में यह मुंडमाला किसकी है ? इस पर उन्होंने कहा कि नहीं,क्या आप को पता है ? यह बात सुनकर नारद बोले कि माते ! मैं तो इतना बता सकता हूं कि यह किसी स्त्री के मुंडों की मालायें हैं | अधिक जानकारी आप भोलेबाबा से ही ले लीजियेगा | इस प्रकार पार्वतीजी व्याकुल हो उठीं व प्रतीक्षा करने लगीं कि भोलेनाथ की समाधि कब खुलती है ? जब कुछ कालोपरान्त समाधि खुली तब यह ही प्रश्न रख बैठीं भोले नाथ के समक्ष | उन्होंने काफी टालना चाहा,परन्तु बात बनती न दीखने पर उन्होंने कह ही दिया कि गौरा यह सब तुम्हारे ही मुंड हैं | इस पर उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि मैंने इतने जन्म ले लिये और आप प्रारम्भ से ही वह ही हैं | शिव ने कहा कि हां | तात्विक दृष्टि से देखा जाय तब शिव(आत्मा) सदैव वह ही रहता है परन्तु पार्वती(सृष्टि-शरीर-कलेवर) बदलता रहता है |
इस प्रकार उन्होंने जिज्ञासा रखी,इस पर शिवजी कहते हैं कि हां गौरी यह सत्य है | फिर क्या था,पार्वती पूछती हैं कि आप तो सर्वज्ञ हैं,क्या कोई ऐसी विधा नहीं है जिससे मैं भी आपकी तरह शाश्वत हो जाऊं | पार्वती की जिज्ञासा को देखकर सर्वज्ञ शिव कहते हैं कि अमर कथा सुन लो व अमर हो जाओ | तब पार्वती के विशेष आग्रह पर उन्होंनें अमरकथा सुनाने का निश्चय किया | एकान्त ढूंढा जाने लगा | तब अनन्तनाग(स्थान) के निकट एक गुफा मिली(जो वर्तमान में अमरनाथ गुफा के नाम से विख्यात है), जहां शिवजी पार्वती के संग पहुंचे तथा त्रिशूल को निर्देश दिया कि इस स्थान को निर्जन कर दो(समस्त प्राणियों को यहां से भगा दो) जिससे कहीं कोई अनधिकारी इस कथा का दुरुपयोग न कर दे |
इस प्रकार गुफा की निर्जनता के प्रति आश्वस्त हो जाने पर त्रिशूल को पहरे पर लगाकर दोनों जने कथा श्रवण व कथन में तल्लीन हो गये | संयोग से उस गुफा में तोती ने अंडे दिये थे जिसमें त्रिशूल के निकलते ही प्राण पड़ गये तथा वह बच्चा अंडे में ही रहकर पार्वती जी के साथ कथा श्रवण करने लगा | थोड़ी देर के बाद पार्वतीजी सो गयीं फिरभी कथा चालू थी तथा उस कथा के प्रभाव से वह बच्चा अंडे से बाहर निकल कर हुंकारी भरने लगा,शंकरजी को पता ही न चला कि पार्वती सो गयी थीं |
जब कथा पूर्ण हुयी तब शंकर जी नें पूछा कि पार्वती कथा कैसी लगी ? तब उन्होंनें ध्यान दिया कि पार्वती तो सो रहीं हैं,फिर उनके जगाकर पूछा कि कथा कब तक सुनीं,इस पर पार्वती ने बताया कि अर्धरात्रि के पश्चात का नहीं सुना | इस पर शिवजी नें ध्यान लगाया तब तोते(शुक) के बच्चे पर दृष्टि गयी | उन्होंने तुरन्त त्रिशूल चला दिया | अब तो तोते नें भागना शुरू किया, तोता आगे-आगे व त्रिशूल पीछे-पीछे, त्रिलोक में उस शुक के बच्चे को सुरक्षित स्थान नहीं दीख रहा था | तभी वह व्यासजी के आश्रम से गुजरा, उसनें देखा कि उनकी पत्नी मुंह खोलकर जम्भाई ले रहीं थी | सो ब्राह्मण पत्नी के गर्भ को सुरक्षित मानकर वह मुख के रास्ते प्रविष्ट हो गया | यहां ऐसा प्रतीत होता है कि वह शुक भी कथा के प्रभाव से दिव्यदेहधारी हो गया था,जो तेजरूप में गर्भ में जा पहुंचा |
इस प्रकार व्यासजी व उनकी पत्नी को संतान की आशा हो गयी | त्रिशूल धर्मसंकट में पड़ गया कि यदि गर्भ पर वार करता हूं तब ब्रह्महत्या लग सकती है,तथा इसे जीवित छोड़ना उचित न होगा | अतः वह बाहर ही नियुक्त रहा कि गर्भ से बाहर आते ही इसका वध कर दूंगा | इस प्रकार वह बालक गर्भ में मानव बालक की भांति बढ़ने लगा तथा धीरे-धीरे गर्भ की अवधि पूर्ण हो गयी,परन्तु वह बाहर नहीं आया | ब्यासजी उस समय वेदों के भाग कर रहे थे तथा पुराणों की रचना कर रहे थे |
जब वह भी पूर्ण हो गया तब ब्यासजी को भी चिन्ता हो गयी कि सोलह वर्ष का गर्भकाल बीत गया,यह बालक बाहर क्यों नहीं आ रहा है ? उधर उनकी पत्नी की बहुत गंभीर स्थिति थी | तब उन्होंने बालक से बाहर आने का आग्रह किया कि यदि बाहर न आओगे तब तुम्हारा अन्त हो सकता है | इस पर उस बालक नें दिव्यवाणी में कहा कि हे तात! मृत्यु तो बाहर आकर भी मिलेगी ही | तब यहीं क्या बुरा है ?
ब्यासजी नें पुनः आग्रह किया व बाहर आने पर क्या भय है वह पूछा तब उस बालक नें सारी व्यथा कह सुनायी | इस पर विष्णु जी के अंशावतार ब्यासजी नें शिवजी की स्तुति की व समझाया कि यदि इस बालक का वध ही कर देंगे(जो आपके लिये असंभव नहीं है) तब आप की अमरकथा में अमरत्व कहां ? शिवजी को सब स्थिति स्पष्ट हुयी तथा वह स्वयं ही उस शुक के माध्यम से इस कराल संसार की समस्त व्याधाओं का निवारण करना चाहते ही थे , सो उनके द्वारा यह सब लीला रची गयी थी | तथा उन्होंने उस शुक को मृत्युभय से मुक्त किया | अब पुनः प्रार्थना करने रर शुकदेवजी नें ब्यासजी से भी त्रिवाचा धरा लिया कि ब्यासजी (विष्णु) की माया से शुकदेवजी मुक्त रहेंगे | सो निर्द्वन्द्व होकर वह वन को चले गये | षोडशवर्षीय बालक के सदृश तुरन्त के जन्में शुकदेवजी तप को चले गये तथा एक बार परीक्षितजी को शुकताल में भागवत सुनायी है उन्होंने | यह प्रसंग संभवतः भागवत में भी मिल जायेगा | जय राम जी की
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आज हमारी जीवन शैली कितनी बदल गयी है... हम कितनी रफ़्तार से भाग रहे है... थकान तो होती है.. लेकिन आराम कैसे मिले.... वैसे मनुष्य एक फंटेसी से ग्रसित है और मनुष्य के भीतर एक मन होता है, जो थक कर भी कभी नहीं टूटता । नींद की एक छोटी सी रात के बाद जागने एक भयानक लग रहा है। इतना ही नहीं बिस्तर अंगारे के एक बिस्तर पर चलने के लिए समान से बाहर हो रही है, लेकिन यह भी कि कैसे आप नींद के पांच घंटे पर दिन के माध्यम से इसे बनाने के लिए उम्मीद कर रहे हैं?… जब से नयी तकनीक हमारे जीवन में आयी हैं फिर भले ही वे मनोरंजन के लिये हो या कार्य के लिये परंतु हमारे जीवन में निखार आया है। हमारे जीवनशैली भी तकनीक के अनुरूप बदल गयी है। पहले जिन चीजों की जरूरत हमें नहीं होती थी, वे सारी चीजें अब हमारे जीवन के लिये बेहद ही महत्वपूर्ण हो गयी हैं। अब उन तकनीकी चीजों के कार्य में बने रहने के लिये भी हमें उनसे जुड़ी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। पहले जब टीवी आया था, तब हम लोग एँटीने को हिला हिलाकर छत से चिल्लाते थे, अब साफ दिखाई दे रहा है, पर तब भी कई बार हमें टीवी साफ दिखाई नहीं देता था, और चैनल एक ही आता था वो था दूरदर्शन । फिर धीरे धीरे अस्तित्व में केबल वाले आये और अपने साथ लाये चैनलों से उन्होंने सैंकड़ा पार कर दिया, हम एक चैनल वालों को सौ चैनल देखने को मिल जाये तो फिर क्या बात है, पर सबसे बड़ा भ्रम यही होता था कि कौन सा चैनल देखें, पता नहीं कितनी ही फिल्में हमने कितनी बार रिपीट की हैं, हमें लगता है कि हमने जिस बदलते तकनीकी युग को देखा है, जिया है, जो कि हमारे जीवन शैली को प्रभावित करता है, वह शायद ही अब आगे की पीढ़ी देख पायेगी, ऐसा नहीं है कि अब बदलाव नहीं है, बदलाव है, परंतु अब लगभग बहुत कुछ स्थिर सा हो चुका है, ठहर चुका है लेकिन आज भी निर्वस्त्र होकर सोने में अक़्सर ज़्यादातर लोगों को बहुत शर्म आती है ख़ासकर भारतीय समाज में तो इसतरह का चलन न के बराबर है। इसकी एक वजह तो ज़ाहिर है शर्म है और दूसरी वजह है घर में मां-बाप या अन्य लोगों का रहना जिसके चलते ये असंभव सा हो जाता है। हालाँकि शायद यह आपको सुनने में थोड़ा अजीब लगे लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि नग्न होकर सोने के भी कई स्वास्थ्य लाभ हैं और यह आपकी जीवनशैली को बेहतर करने में मदद करता है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक चिकित्सकों ने यह दावा किया है कि वस्त्र पहनकर सोने की तुलना में बिना कोई कपड़ा पहने सोने से अधिक लाभ होता है। इसलिये अपने पायजामे और नाईटी को दूर फेकियें और बिना कपड़ों के सोने की आदत डालिये चाहे पुरुष हो या स्त्री, वृद्ध हो चुके पति-पत्नी या फिर छोटे बच्चे… सभी के लिए कपड़े उतारकर सोने के कई फायदे हैं। जब हम इस संसार में आए थे तो नग्न ही आए थे। कई सारे लोग ऐसे हैं जो पूरा जीवन जी लेने के बाद भी खुद के शरीर के प्रति झिझक महसूस करते हैं। नग्न रहने के कई स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं। तो चलिये जाने की कभी-कबहार नग्न रहने के क्या फायदे हैं। आपका शरीर आपके बारे में बहुत कुछ बताता है। जब आप खुद के शरीर को नग्न अवस्था में देखते हैं तो अपने शरीर के प्रति सहज महसूस कर पाते हैं। जिससे आपका खुद पर आत्मविश्वास मजबूत होता है। जब आप नग्न होते हैं तो आप वास्तविकता में होते हैं। फिर कुछ भी छुपाने को
नहीं होता। अंग्रेजी का शब्द 'नेकेड' भी लिथुआनियाई शब्द 'बसेस' से आया है,
जिसका अर्थ होता है पूर्णता। ब्रेन ब्राउन के शोध के अनुसार नग्न होना भेद्यता या अतिसंवेदनशीलता के अहसास को प्रदर्शित करता है। नग्न होना अतिसंवेदनशीलता की स्थिति को महसूस करने जैसा ही है। और कमजोर या अतिसंवेदनशील महसूस करने का मतलब है कि आपमें खुद की सुनने और दिल की करने की हिम्मत है।नग्न होना हिम्त का काम है। ऐसा कर आप दुनिया (खासतौर पर दोगली सोच वाली
रूड़ीवादी) की सस्ती सोच के गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ते हैं। इससे
उन्हें इस बात का अंदाजा होता है कि सुंदरता केवल संभोग का विषय मात्र
नहीं। नग्न होकर आप अपने डर का सामना करते हैं और अपने आप को आजाद कर पाने की
प्रेरणा प्राप्त कर पाते हैं। सच तो यह है कि जहां एक ओर हम कपड़ों पर तमाम
पैसा खर्चतें हैं, जीवन के कुछ बेहद खास और खुशी वाले पल इनके बिना ही
गुज़रते हैं। ये वे पल होते हैं जिनमें हम जीवन के सबसे बड़े डरों में से
एक का सामना कर रहे होते हैं और खुद को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और
आध्यात्मिक रूप से मुक्त कर सकते हैं। शोध भी बताते हैं कि नग्न रहने से सेक्स इच्छा में वृद्धि होती है। जब आपकी खुली त्वचा से बिस्तर के संपर्क में आते हैं, तो प्यार की इच्छा बढ़ जाती है। इसके अलावा, कुद को किसी और को नग्न देखने पर काम भावना में वृद्धी होती है। वैसे आज कल तो कपल्स के लिए अलग अलग तरह के सेक्स किट आते है जिनमे वेशभूषा के साथ साथ सेक्स फंटेसी पूरी करने वाले अन्य उत्पाद भी होते है। सेक्स क्षमता को बढ़ाते है टॉयज लेकिन बहुत बार ऐसा होता है कि उम्र या जीवनशैली के साथ साथ आपकी सेक्स लाइफ ... आप के स्वास्थ के अनुसार निराश करती है... तो सिर्फ निर्वस्त्र सोने से कोई एक-दो फायदे नहीं बल्कि फायदों की पूरी लिस्ट है। हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक 57 प्रतिशत लोग जो बिना कपड़े के सोते हैं, वह अपने रिलेशनशिप से काफी खुश हैं। साथ ही न्यूड होकर सोने के ऐसे ही कुछ हेल्दी फायदों भी है
जी हां… जब आप बिना कोई कपड़े पहनकर सोते हैं तो इससे आपको अनगिनत फायदे होते हैं। लेकिन अमूमन लोगों को ऐसी आदत नहीं होती। बल्कि सभी कपड़े उतारकर सोना उन्हें अजीब ही लगेगा। पर स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए आप धीरे-धीरे प्रयास करके ऐसा कर सकते हैं। इसके लिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि न्यूड सोने के लिए सबसे पहले इंसान को केवल अपने अंतर्वस्त्रों में सोने की आदत बनानी चाहिए।
ऐसा करके वह पूर्ण रूप से तो नहीं, पर कुछ प्रतिशत तक नग्न महसूस करेगा। और कुछ दिनों तक ऐसे ही सोने से उसे एक आदत-सी बन जाती है। फिर एक दिन वह सारे कपड़े उतारकर सोने के लिए भी तैयार हो सकता हैपर सभी कपड़े उतारकर सोने का सबसे बड़ा फायदा क्या है?
क्या इसका कोई गुप्त फायदा है? नहीं… बिल्कुल नहीं। सभी वस्त्र उतारकर सोने का सबसे बड़ा फायदा है ‘आराम’ का पूर्ण एहसास कर सकना। हम ऑफिस से आने के बाद नाइट सूट पहनते हैं जो कि पूरा दिन पहने तंग कपड़ों से ढीले आकार का होता है। ताकि यह हमें आराम दे सके लेकिन चिकित्सिकों के अनुसार नाइट सूट की तुलना में कुछ भी ना पहनकर सोने जैसा आराम कोई अन्य वस्तु नहीं दे सकती। यह चुटकियों में व्यक्ति की थकान को छू-मंतर कर उसे आरामदायक नींद देता है। विशेषज्ञों के अनुसार सोते समय हमारी बॉडी का तापमान सामान्य से नीचे गिरने लगता है और हमारे द्वारा पहने हुए वस्त्र या फिर ऊपर ओढ़ा गया कंबल उसे वापस गर्म करने का काम करता है, जिससे हमारी नींद में दिक्कत आती है। सोते समय शरीर के तापमान का ठंडा होना एक सुखद नींद की निशानी माना गया है, इसलिए बिना कपड़े पहने कमरे की ठंडक को अपनी त्वचा तक पहुंचाकर हम एक अच्छी नींद पा सकते हैं।
नग्न सोने का एक फायदा हमारी बॉडी में मौजूद हार्मोन्स को भी मिलता है। बॉडी का न्यूनतम तापमानउसमें मौजूद हार्मोन्स के विकास के लिए लाभप्रद साबित होता है। और जितना बॉडी में हार्मोन्स का विकास होगा, यह उतना ही हमारी त्वचा एवं बालों को आकर्षक बनाता है। इसका अर्थ है बिना वस्त्र पहने सोने से आप सुंदर भी बन सकते हैं। अब अगला फायदा उन्हें मिलता है जो शादीशुदा हैं। नहीं यह पर्सनल नहीं, बल्कि एक आम फायदा है जो अपने आप ही रातभर में आपको हासिल हो सकता है। यदि पति-पत्नी दोनों ही बिना वस्त्र पहने सोते हैं तो रातभर बिस्तर पर सोते समय उन दोनों के शरीर एक-दूसरे के कॉंटैक्ट में आते हैं। इससे दोनों की त्वचा को एक-दूसरे का स्पर्श मिलता है। चिकित्सिकों के अनुसार ऐसा करने से बॉडी ‘ऑक्सीटॉसिन’ नामक हार्मोन को रिलीज करती है।
इससे दोनों की बॉडी से हर प्रकार की टेंशन एवं थकान निकल जाती है। साथ ही यह रक्तचाप पर भी नियंत्रण बनाता है और जितना हो सके उसे कम करने का प्रयास करता है। लेकिन यह सभी फायदे यूं ही प्राप्त नहीं होंगे। इसके लिए विशेषज्ञों ने कुछ दिशा-निर्देश भी दिए हैं। इसके अनुसार यदि आपको नग्न सोना है तो इसका यह अर्थ नहीं कि आप अंतर्वस्त्र पहनकर सो जाएं। आपको बिल्कुल ही नग्न सोने की आवश्यकता है। सोते समय अपने ऊपर किसी प्रकार की कोई चादर या फिर कंबल भी ओढ़ने की जरूरत नहीं है। क्योंकि आपकी त्वचा को ठंडी हवा का स्पर्श मिलना ज्यादा जरूरी है।
साथ ही कमरे की लाइट भी बंद ही रखें। कुछ लोगों को एक छोटी लाइट या फिर पास के कमरे की लाइट की रोशनी का सहारा लेकर सोने की आदत होती है, ताकि कमरे में बिल्कुल अंधेरा ना हो। लेकिन रोशनी ही तो आपकी नींद की बाधा है।
नग्न सोते हुए आप एक तरफ अच्छी नींद पाने की कोशिश तो कर ही रहे हैं, लेकिन साथ ही सभी लाइटें ऑफ करके सोने से आप और भी गहरी नींद सो सकते हैं। साथ ही अपने आसपास कोई उपकरण रखकर सोने का कभी ना सोचें।
आज की जेनरेशन को पास में रखे स्मार्टफोन को रातभर उठकर देखते रहने की आदत होती है। जहां कहीं नींद खुली नहीं कि वे अपना फोन ऑन करके उसे चैक करने लगते हैं। अपने पास कभी भी स्मार्टफोन या लैपटॉप या ऐसा ही कोई अन्य गैजेट रखकर कभी ना सोएं।
अधिकतर लोग यही कहेंगे कि कैसी बात करते हो बिना कपड़ों के भी कोई सोता है क्या।लेकिन अगर ये कहा जाए कि बिना कपड़ों के सोने के बहुत से फायदे है तो ? रात को सोते समय अक्सर हम आरामदायक और हलके फुल्के कपड़े पहनकर सोना पसंद करते है।
जब हम सोते है तो बिस्तर पर चादर, उसके बाद शरीर के कपड़े और फिर ओढ़ने के लिए कुछ चद्दर या कम्बल। ऐसे में हमारे शरीर पर कपडे की कई परतें आ जाती है। इस कारण शरीर का तापमान बढ़ जाता है और शरीर उस ढंग से आराम नहीं पाता है जिस ढंग से उसे पाना चाहिए।
पूरे दिन में शायद सिर्फ नहाते समय ही ऐसा होता है जब हम अपने पूरे कपडे उतारते है। शेष पूरे समय हमारे शरीर पर कपड़ों की परत रहती ही है। जिस तरह हमें सांस लेने की ज़रूरत पड़ती है उसी तरह हमारी त्वचा को भी ताज़ी हवा की ज़रूरत पड़ती है।
नग्न सोना आराम के साथ साथ आपको स्वतंत्र भी अनुभव कराता है। आप एक दम खुले खुले सोते है और आपके समय की बचत भी होती है। अब आपको रात को सोने से पहले कपड़े बदलकर दुसरे कपड़े पहनने की ज़रूरत नहीं पड़ती।
यदि आप शादीशुदा है या फिर अपने साथी के साथ रहते है तो नग्न सोना ना सिर्फ आपकी सेक्स लाइफ को बेहतर कर सकता है अपितु आपके अंग विशेष और स्पर्म की संख्या भी बढ़ाता है।
1. डायबिटीज से मिलेगा छुटकारा : २०१४ में हुए एक रिर्सच के मुताबिक, रात को न्यूड होकर सोने से डायबिटीज होने का खतरा भी कम होता है। इस रिर्सच के अनुसार बेडरूम का तापमान मोटापे को प्रभावित करता है। जिसके लिए पुरुषों को अलग-अलग तापमान वाले कमरे में सुलाया गया था। जिसके परिणामस्वरूप पुरुषों की इंसुलिन सेंसिटिविटी बेहतर थी और डायबिटीज होने का खत्तरा भी कम था।
2. न्यूड सोना महिलाओं के लिए है ज्यादा बेहतर कॉस्मोपॉलिटन की एक डॉक्टर के मुताबिक महिलाओं के गर्माहट में सोने से उनमें यीस्ट इंफेक्शन और बैक्टीरिया होने का ज्यादा खत्तरा होता है जबकि बिना कपड़ों के सोने वाली महिलाएं इस तरह के इंफेक्शन से बच सकती हैं।
3. अनिंद्रा की समस्या होती है खत्म : २००४ में हुए एक रिर्सच के मुताबिक, कपड़े उतारकर सोने से शरीर का ताप नियंत्रण रहता है। जिससे अनिंद्रा की सम्सया दूर होती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक नींद न आने का एक सबसे बड़ा कारण होता है ज्यादा तापमान, जो कि न्यूड सोने से संतुलित रहता है।
4. सेक्स लाइफ होती है बेहतर : त्वचा का त्वचा से स्पर्श शरीर में ओक्सीटोसिन बढ़ाता है। जिसका सीधा परिणाम सेक्स लाइफ पर पड़ता है। न्यूड सोने से सेक्स लाइफ बेहतर बनती है।
5 न्यूड होकर सोने से बढ़ती ऐेंटी ऐजिंग हार्मोन :स्लीप जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार सोते वक्त शरीर का तापमान कमरे के समानांतर होता है तो उससे ऐटी एजिंग हार्मोन अधिक बनते हैं।
6. इम्यून सिस्टम बेहतर होता है : डॉक्टर्स के मुताबिक कोर्टिजोल से इम्यून सिस्टम भी काफी सुधरता है। बिना कपड़ों के सोने से आपस में संपर्क होता है जिससे कोर्टिजोल नामक स्ट्रेस होर्मोन बनता है जिससे आॅक्सीटॉक्सीन का स्तर बढ़ जाता है।
पार्टनर के साथ अच्छा रिश्ता :
अपने पार्टनर के साथ नग्न होकर सोना आपके रिलेशनशिप को और मजबूत बनाता है। क्योंकि जब आप दोनों नग्न होकर एक साथ सोते हैं तो एक दूसरे की त्वचा के आपस में छूने पर ऑक्सीटोसिन हार्मोन अधिक मात्रा में निकलता है। यह हार्मोन आपसी रिश्तों को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। ऑक्सीटोसिन का लेवल अपने पार्टनर को किस करने और आलिंगन के दौरान काफी बढ़ जाता है। इन सबके अलावा अपने पार्टनर के साथ सोने में आपको उनके शरीर की पूरी तरह से जानकारी हो जायेगी और आप उनके शरीर के उत्तेजित करने वाली जगहों को आसानी से पहचान जायेंगे। इंग्लैंड में हुए एक सर्वे के अनुसार, 57% लोग जो अपने पार्टनर के साथ नग्न होकर सोते हैं वे सामान्य लोगों की तुलना में ज्यादा खुश पाये गये।
अच्छी बॉडी इमेज बनाने में सहायक :
हममें से कई लोग अपनी अच्छी बॉडी इमेज बनाने के लिये संघर्ष करते रहते हैं। मॉडल्स और एक्टर्स कीपरफेक्ट बॉडी देखकर, वैसा बन पाना लोगों के लिये और मुश्किल हो जाता है। हालांकि न्यूड होकर सोने से धीरे धीरे आप अपने शरीर की फिजिकल कमियों के बारे में आसानी से जान पायेंगे और इससे खुद के शरीर को अपनाने में आपको मदद मिलेगी। क्योंकि जब आप रोज सुबह मिरर में खुद को देखतें हैं तो आप शरीर के कुछ ही हिस्सों को देख पाते हैं लेकिन जब रात में सोते समय आप न्यूड होकर सोयेंगे तब आप अपने शरीर के हर हिस्सों को नोटिस कर पायेंगे और उनमें ज़रूरी बदलाव भी ला सकेंगे।
शरीर को ठंडा रखता है :
गर्मियों के मौसम में अक्सर ही हम ज्यादा गर्मी और आद्रता के कारण ठीक से सो नहीं पाते हैं। इसके अलावा नाईट गाउन और पायजामे में सोने के कारण गर्मी और ज्यादा महसूस होने लगती है। जबकि न्यूड होकर सोने से आपके शरीर का तापमान बिल्कुल नियंत्रित रहता है और आप आसानी से जल्दी सो जाते हैं। यह एक अच्छी नींद पाने का उपयुक्त तरीका है और इससे आप एयर कंडीशनर का तापमान बार बार कम करने के झंझट से छुटकारा भी पा सकेंगे।
स्किन के लिए उपयोगी :
दिन भर कपड़ों में बाहर काम करने के कारण और साथ ही दिनभर गर्मी और आद्रता के कारण आपकी त्वचा को खुद को सही रखने का मौका ही नहीं मिल पाता है। यह हम सब जानते हैं की सोते समय स्किन खुद से ही अपने आप को सही करती है जिसे हम अक्सर ब्यूटी स्लीप कहते हैं। इसलिए जब आप बिना कपड़ों के सोते हैं तो कोई भी फैब्रिक आपके स्किन के संपर्क में नहीं रहता है जिससे यह प्रक्रिया और अच्छे से होती है और आपकी स्किन और बेहतर होती जाती है। इस तरह सोने से आपकी पूरी त्वचा ठीक से सांस ले पाती है जिससे त्वचा से जुड़ी समस्याएं होने का खतरा कम हो जाता है।
स्पर्म की गुणवत्ता बढ़ाता है :
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अमेरिकन रिसर्चर और नेशनल हेल्थ इंस्टिट्यूट ऑफ़ चाइल्ड एंड ह्यूमन डेवलपमेंट द्वारा 2015 में कराए एक शोध के अनुसार, रात में सोते समय टाइट बॉक्सर या अंडरवियर पहनने के कारण आपके स्पर्म की क्वालिटी भी प्रभावित हो सकती है। इस सर्वे में लगभग 500 लोगों को शामिल किया गया था जिसमे उनसे कहा गया था कि वे दिन और रात में अपनी पसंद के हिसाब से अंडरवियर पहनें। इस दौरान उनकी स्पर्म क्वालिटी भी रिकॉर्ड की गयी। इस सर्वे में पाया गया कि जिन लोगों ने दिन में बॉक्सर पहना था और रात में न्यूड होकर सो रहे थे उनके स्पर्म में, बॉक्सर पहन कर सोने वाले लोगों की तुलना में डीएनए फ्रेगमेंटेशन का खतरा 25% कम था। यह शोध अमेरिकन सोसाइटी फॉर रिप्रोडक्टिव मेडिसिन द्वारा आयोजित वार्षिक समारोह में प्रस्तुत किया गया। इसलिए अगर आप अपनी स्पर्म क्वालिटी बढ़ाना चाहते हैं और जल्दी से बच्चा चाहते हैं तो नग्न होकर सोयें।
योनि के स्वास्थ्य को सही रखता है :
आपकी स्किन के जैसे ही ,आपकी योनि को भी उसका पीएच लेवल नियंत्रित रखने और इन्फेक्शन से बचाने के लिये रात में सांस लेने की ज़रूरत होती है। वैजाइनल यीस्ट इन्फेक्शन, कैल्बिकंस नामक फंगस के कारण होता है जो की नमी और गर्म जगहों पर पनपते हैं। न्यूड होकर सोने से आपके प्राइवेट पार्ट्स भी सूखे रहते हैं और ठीक से सांस ले पाते हैं ,जिससे वे इस तरह के खतरों से बचे रहते हैं।
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शिव कौन? भगवान शिव किसे कहते हैं?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिव भगवान हिमालय पर रहते थे, उनकी पत्नी
पार्वती और पुत्र कार्तिकेय और गणेश थे। ये सब उनके बाह्य स्वरूप के लक्षण
है, किन्तु वास्तव में जो भी व्यक्ति आत्मज्ञान पा लेता है, वो भीतर में
"शिव" है।
कौन हैं शिव
शिव संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, कल्याणकारी या शुभकारी। यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता बताया गया है। 'शि' का अर्थ है, पापों का नाश करने वाला, जबकि 'व' का अर्थ देने वाला यानी दाता।
क्या है शिवलिंग
शिव की दो काया है। एक वह, जो स्थूल रूप से व्यक्त किया जाए, दूसरी वह, जो सूक्ष्म रूपी अव्यक्त लिंग के रूप में जानी जाती है। शिव की सबसे ज्यादा पूजा लिंग रूपी पत्थर के रूप में ही की जाती है। लिंग शब्द को लेकर बहुत भ्रम होता है। संस्कृत में लिंग का अर्थ है चिह्न। इसी अर्थ में यह शिवलिंग के लिए इस्तेमाल होता है। शिवलिंग का अर्थ है : शिव यानी परमपुरुष का प्रकृति के साथ समन्वित-चिह्न।
शिव, शंकर, महादेव...
शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं - शिव शंकर भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विनाश के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश (महेश भी शंकर का ही नाम है) नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की है। इस तरह शिव ब्रह्मांड के रचयिता हुए और शंकर उनकी एक रचना। भगवान शिव को इसीलिए महादेव भी कहा जाता है। इसके अलावा शिव को 108 दूसरे नामों से भी जाना और पूजा जाता है।
अर्द्धनारीश्वर क्यों
शिव को अर्द्धनारीश्वर भी कहा गया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव आधे पुरुष ही हैं या उनमें संपूर्णता नहीं। दरअसल, यह शिव ही हैं, जो आधे होते हुए भी पूरे हैं। इस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है। अर्धनारीश्वर शिव इसी पारस्परिकता के प्रतीक हैं। आधुनिक समय में स्त्री-पुरुष की बराबरी पर जो इतना जोर है, उसे शिव के इस स्वरूप में बखूबी देखा-समझा जा सकता है। यह बताता है कि शिव जब शक्ति युक्त होता है तभी समर्थ होता है। शक्ति के अभाव में शिव 'शिव' न होकर 'शव' रह जाता है।
नीलकंठ क्यों
अमृत पाने की इच्छा से जब देव-दानव बड़े जोश और वेग से मंथन कर
रहे थे, तभी समुद से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। उस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगीं। समस्त प्राणियों में हाहाकार मच गया। देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस विष की गरमी से जलने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर, भगवान शिव विषपान के लिए तैयार हो गए। उन्होंने भयंकर विष को हथेलियों में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ (गले) में ही रोक कर उसका प्रभाव खत्म कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
भोले बाबा
शिव पुराण में एक शिकारी की कथा है। एकबार उसे जंगल में देर हो गई। तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया। जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची। वह सारी रात एक-एक पत्ता तोड़कर नीचे फेंकता रहा। कथानुसार, बेल के पत्ते शिव को बहुत प्रिय हैं। बेल वृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था। शिवलिंग पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख शिव प्रसन्न हो उठे, जबकि शिकारी को अपने शुभ काम का अहसास न था। उन्होंने शिकारी को दर्शन देकर उसकी मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया। कथा से यह साफ है कि शिव कितनी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। शिव महिमा की ऐसी कथाओं और बखानों से पुराण भरे पड़े हैं।
शिव स्वरूप
भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना विचित्र है, उतना ही आकर्षक भी। शिव जो धारण करते हैं, उनके भी बड़े व्यापक अर्थ हैं :
जटाएं : शिव की जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं।
चंद्र : चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन चांद की तरह भोला, निर्मल, उज्ज्वल और जाग्रत है।
त्रिनेत्र : शिव की तीन आंखें हैं। इसीलिए इन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव की ये आंखें सत्व, रज, तम (तीन गुणों), भूत, वर्तमान, भविष्य (तीन कालों), स्वर्ग, मृत्यु पाताल (तीनों लोकों) का प्रतीक हैं।
सर्पहार : सर्प जैसा हिंसक जीव शिव के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक जीव है, जिसे शिव ने अपने वश में कर रखा है।
त्रिशूल : शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है। त्रिशूल भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।
डमरू : शिव के एक हाथ में डमरू है, जिसे वह तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्मा रूप है।
मुंडमाला : शिव के गले में मुंडमाला है, जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है।
छाल : शिव ने शरीर पर व्याघ्र चर्म यानी बाघ की खाल पहनी हुई है। व्याघ्र हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा और अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।
भस्म : शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से किया जाता है। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है।
वृषभ : शिव का वाहन वृषभ यानी बैल है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है। वृषभ धर्म का प्रतीक है। महादेव इस चार पैर वाले जानवर की सवारी करते हैं, जो बताता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनकी कृपा से ही मिलते हैं।
इस तरह शिव-स्वरूप हमें बताता है कि उनका रूप विराट और अनंत है, महिमा अपरंपार है। उनमें ही सारी सृष्टि समाई हुई है।
शिवलिंग का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रहस्य...
शिवलिङ्ग (शिवलिंग), का
अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरुप । शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड
और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है।
स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है
और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है |
वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है)
का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।
The whole universe rotates through a shaft called shiva lingam.
पुराणो में शिवलिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित किया गया है जैसे :
प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग,
उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय
स्तंभ/लिंग | शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी
एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार
में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात
दोनों सामान है | हम जानते है की सभी भाषाओँ में एक ही शब्द के कई अर्थ
निकलते है
जैसे: सूत्र के - डोरी/धागा गणितीय सूत्र, कोई भाष्य, लेखन
को भी सूत्र कहा जाता है जैसे नासदीय सूत्र, ब्रह्म सूत्र आदि | अर्थ :-
सम्पति, मतलब (मीनिंग), उसी प्रकार यहाँ लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न,
निशानी या प्रतीक है।
ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और प्रदार्थ |
हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है| इसी प्रकार शिव
पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है | ब्रह्मांड में
उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा शिवलिंग में निहित है. वास्तव में शिवलिंग
हमारे ब्रह्मांड की आकृति है |
अब जरा आईसटीन का सूत्र देखिये जिस के
आधार पर परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक
दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते है | e / c = m c {e=mc²}.इसके अनुसार
पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर
वो दो हो कर स्रष्टि का निर्माण करता है . हमारे ऋषियो ने ये रहस्य हजारो
साल पहले ही ख़ोज लिया था |
हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है की
जब भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव
अपने मूल स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व निचे की ओर
अग्रसर होता है अर्थात दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360
डिग्री)+ऊपर व निचे ) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की
प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप , शांत जल
में कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि ।
स्रष्टि के
आरम्भ में महाविस्फोट(bigbang) के पश्चात् उर्जा का प्रवाह वृत्ताकार पथ
में तथा ऊपर व निचे की ओर हुआ फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ जैसा
की आप आकाशगंगा के चीत्र में भी देख सकते है. जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण,
शिवमहापुराण, स्कन्द पुराण आदि में मिलता है की आरम्भ में निर्मित शिवलिंग
इतना विशाल (अनंत) तथा की देवता आदि मिलकर भी उस लिंग के आदि और अंत का
छोर या शास्वत अंत न पा सके ।
पुराणो में कहा गया है की प्रत्येक
महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है तथा इसी
से पुनः सृजन होता है । शिवलिंग के महात्म्यका वर्णन करते हुए शास्त्रों
ने कहा है कि जो मनुष्य किसी तीर्थ की मृत्तिका से शिवलिंग बना कर उनका
विधि- विधान के साथ पूजा करता है, वह शिवस्वरूप हो जाता है।
शिवलिंग का
सविधि पूजन करने से मनुष्य सन्तान, धन, धन्य, विद्या, ज्ञान,सद्बुद्धि,
दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति करता है। जिस स्थान पर शिवलिंग की पूजा होती
है, वह तीर्थ न होने पर भी तीर्थ बन जाता है। जिस स्थान पर सर्वदा शिवलिंग
का पूजन होता है, उस स्थान पर मृत्यु होने पर मनुष्य शिवलोक जाता है। शिव
शब्द के उच्चारण मात्र से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और उसका
बाह्य और अंतकरण शुद्ध हो जाता है।
दो अक्षरों का मंत्र शिव परब्रह्मस्वरूप एवं तारक है। इससे अलग दूसरा कोई तारक ब्रह्म नहीं है।
तारकंब्रह्म परमंशिव इत्यक्षरद्वयम्।
नैतस्मादपरंकिंचित् तारकंब्रह्म सर्वथा॥
______________________________
शिवलिंग प्रत्येक जीव में, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, सूक्ष्म रूप से
आदि शक्ति(उर्जा) का प्रतिक शिवलिंग सबमें स्थित होता है | इस कारण हिन्दू
मान्यताओं में प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर विधमान होने की मान्यता है इसी
कारण दुसरो को हाथ जोड़ कर उनका अभिनन्दन किया जाता है । यही मानवीय जीवन का मूल सिदांत है ।
भारत में भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंग हैं।
सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर
श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा
अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध
पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री
विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर
केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर.
सम्पूर्ण
भारतवर्ष में शिवलिंग पूजन परम श्रद्धा से किया जाता है. अनादि, अनंत,
देवाधिदेव, महादेव शिव परब्रह्म हैं. सावन में शिवालयों में सुबह से ही
भोलेनाथ की वंदना का क्रम शुरू होता है जो देर रात्रि तक चलता है। पूरे मास
शिव भक्त मनवांछित फल की कामना को लेकर अनुष्ठान-पूजन कार्य क्रम होते
हैं. इस दौरान महाशिव का का दूध, घृत, दही, शक्कर, गंगाजल, शहद, बिल्व
पत्र, पारे, धतूरे से रूद्री पाठ साथ रूद्राभिषेक का क्रम लगातार जारी रहता
है।
शिवलिंग के बारे में भ्रांतियां ::-
शिवलिंग के बारे में
लोगों को इतनी ज्यादा भ्रांतियां हैं और वो भी उसके नाम को लेकर !! लोग आज
कल जो उसका मतलब निकालते हैं वो यहाँ मैं नहीं कह सकता क्योंकि उस भ्रान्ति
का प्रचार हम नहीं करना चाहते। सबसे पहली बात संस्कृत में "लिंग" का अर्थ होता है प्रतीक। Penis या जननेंद्रि के लिए संस्कृत में एक दूसरा शब्द है- "शिश्न".
शिवलिंग भगवान् के निर्गुण-निराकाररूप का प्रतीक है। भगवान् का वह रूप
जिसका कोई आकार नहीं जिसमे कोई गुण ( सात्विक,राजसिक और तामसिक ) नहीं है ,
जो पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतीक है और जो शून्य- अवस्था का प्रतीक है। ध्यान
में योगी जिस शांत शून्य भाव को प्राप्त करते हैं, जो इश्वर के शांत और
परम- आनंद स्वरुप का प्रतीक है उसे ही शिवलिंग कहते हैं।
शिवलिंग में
दूध अथवा जल की धारा चढ़ाने से अपने आप मन शांत हो जाता है ये हम सबका
अनुभव है, और इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। जो सच्चे ब्राह्मण हैं
वो इस बात को जानते हैं कि शिवलिंग पर जल या दूध चढाते समय "ॐ नमः शिवाय "
बोलने की अपेक्षा केवल "ॐ ॐ " बोलना उत्तम है.
शिव अभिषेक करते समय
उसमे भगवान् शंकर के सगुण-साकार रूप का ध्यान भी किया जा सकता है, किया
जाता भी है. भक्त की भावना के अनुसार सबको छूट है इसी कारण आपने देखा होगा
कि बाकी मंदिरों में मूर्ति का स्पर्श वर्जित होता है पर शिवलिंग का हर कोई
स्पर्श कर सकता है (मासिक धर्म वाली स्त्रियाँ पूरे महीने स्पर्श नहीं कर
सकतीं लेकिन मासिक धर्म खत्म होने के बाद शुद्ध होके कर सकती है).
शिवलिंग को भगवान्शं कर का निर्गुण प्रतीक माना जाता है और भगवान् के सगुण
रूप का वास कैलाश पर्वत पर माना गया है. ( कुछ लोग बहस करते हैं कि भगवान्
केवल कैलाश में ही है क्या ?? आदि आदि ; तो भाई सुनो - जैसे भगवान् ने गीता
में कहा है कि " पौधों में मै तुलसी हूँ ", " गायों में मै कामधेनु हूँ ",
"तीर्थों में मै प्रयाग हूँ " आदि आदि. इसका मतलब ये है कि जो सबसे पवित्र
चीज़ हो उसमे इश्वर का वास मानना चाहिए फिर धीरे धीरे आप सब जगह भगवान् को
देख पाएंगे।
पहले आप मित्र में इश्वर को देखोगे तभी बाद में शत्रु में
देख सकोगे तो कैलाश में भगवान् को जल मिल जाए , हमारा चढ़ाया हुआ दूध उनको
वहां मिल जाए , उसके लिए शिवलिंग के चारों तरफ "जल - घेरी " बनाई जाती है।
जल- घेरी की दिशा हमेशा उत्तर दिशा की तरफ होनी चाहिए जिससे हमारा चढ़ाया
हुआ दूध या जल
सीधा उन तक पहुँच जाए। और इसी कारण जल- घेरी को कभी
लांघते नहीं हैं और शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही करते हैं। सावन में जल
लगातार भगवान् को चढ़ता रहे इसी कारण शिवलिंग के ऊपर जल से भरा हुआ कलश
लटकाया जाता है.
जलघेरी पर कभी दिया नहीं जलाते और शिवलिंग या तुलसी या
किसी भी मूर्ती को दिए की आंच नहीं लगनी चाहिये. दिया थोडा सा दूर जलाना
होता है। शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ नारियल कभी फोड़ा नहीं जाता उसे विसर्जित
कर दिया जाता है। शिवलिंग भगवान् शंकर का प्रतीक होने के कारण उसे तुलसी के
नीचे नहीं रखा जाता , तुलसी के नीचे शालिग्राम ( भगवान् विष्णु का निर्गुण
रूप ) रखा जाता है. हालांकि शिवलिंग में मंजरी (तुलसी के फूल) चढ़ाए जाते
हैं।
!!! कहानी नंदी की !!!
पुराणों में यह कथा मिलती है कि शिलाद मुनि के ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने अपनी चिंता उनसे व्यक्त की। शिलाद निरंतर योग तप आदि में व्यस्त रहने के कारण गृहस्थाश्रम नहीं अपनाना चाहते थे अतः उन्होंने संतान की कामना से इंद्र देव को तप से प्रसन्न कर जन्म और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान माँगा। इंद्र ने इसमें असर्मथता प्रकट की तथा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। तब शिलाद ने कठोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया और उनके ही समान मृत्युहीन तथा दिव्य पुत्र की माँग की।
भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। उसको बड़ा होते देख भगवान शंकर ने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम में भेजे जिन्होंने नंदी को देखकर भविष्यवाणी की कि नंदी अल्पायु है। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तो वह महादेव की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए वन में चला गया। वन में उसने शिव का ध्यान आरंभ किया। भगवान शिव नंदी के तप से प्रसन्न हुए व दर्शन वरदान दिया- वत्स नंदी! तुम मृत्यु से भय से मुक्त, अजर-अमर और अदु:खी हो। मेरे अनुग्रह से तुम्हे जरा, जन्म और मृत्यु किसी से भी भय नहीं होगा।"
भगवान शंकर ने उमा की सम्मति से संपूर्ण गणों, गणेशों व वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ। भगवान शंकर का वरदान है कि जहाँ पर नंदी का निवास होगा वहाँ उनका भी निवास होगा। तभी से हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने नंदी की स्थापना की जाती है।
शिवजी का वाहन नंदी पुरुषार्थ अर्थात परिश्रम का प्रतीक है। नंदी का एक संदेश यह भी है कि जिस तरह वह भगवान शिव का वाहन है। ठीक उसी तरह हमारा शरीर आत्मा का वाहन है। जैसे नंदी की दृष्टि शिव की ओर होती है, उसी तरह हमारी दृष्टि भी आत्मा की ओर होनी चाहिये। हर व्यक्ति को अपने दोषों को देखना चाहिए। हमेशा दूसरों के लिए अच्छी भावना रखना चाहिए। नंदी यह संकेत देता है कि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही हर व्यक्ति चरित्र, आचरण और व्यवहार से पवित्र हो सकता है। इसे ही सामान्य भाषा में मन का स्वच्छ होना कहते हैं। जिससे शरीर भी स्वस्थ होता है और शरीर के निरोग रहने पर ही मन भी शांत, स्थिर और दृढ़ संकल्प से भरा होता है। इस प्रकार संतुलित शरीर और मन ही हर कार्य और लक्ष्य में सफलता के करीब ले जाते हुए मनुष्य अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है।
धर्म शास्त्रों में उल्लेख है कि जब शिव अवतार नंदी का रावण ने अपमान किया तो नंदी ने उसके सर्वनाश को घोषणा कर दी थी। रावण संहिता के अनुसार कुबेर पर विजय प्राप्त कर जब रावण लौट रहा था तो वह थोड़ी देर कैलाश पर्वत पर रुका था। वहाँ शिव के पार्षद नंदी के कुरूप स्वरूप को देखकर रावण ने उसका उपहास किया। नंदी ने क्रोध में आकर रावण को यह श्राप दिया कि मेरे जिस पशु स्वरूप को देखकर तू इतना हँस रहा है। उसी पशु स्वरूप के जीव तेरे विनाश का कारण बनेंगे।
नंदी का एक रूप सबको आनंदित करने वाला बी है। सबको आनंदित करने के कारण ही भगवान शिव के इस अवतार का नाम नंदी पड़ा। शास्त्रों में इसका उल्लेख इस प्रकार है-
त्वायाहं नंन्दितो यस्मान्नदीनान्म सुरेश्वर।
तस्मात् त्वां देवमानन्दं नमामि जगदीश्वरम।।
-शिवपुराण शतरुद्रसंहिता ६/४५
अर्थात नंदी के दिव्य स्वरूप को देख शिलाद मुनि ने कहा तुमने प्रगट होकर मुझे आनंदित किया है। अत: मैं आनंदमय जगदीश्वर को प्रणाम करता हूं।
नासिक शहर के प्रसिद्ध पंचवटी स्थल में गोदावरी तट के पास एक ऐसा शिवमंदिर है जिसमें नंदी नहीं है। अपनी तरह का यह एक अकेला शिवमंदिर है। पुराणों में कहा गया है कि कपालेश्वर महादेव मंदिर नामक इस स्थल पर किसी समय में भगवान शिवजी ने निवास किया था। यहाँ नंदी के अभाव की कहानी भी बड़ी रोचक है। यह उस समय की बात है जब ब्रह्मदेव के पाँच मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे, और पाँचवाँ निंदा करता था। उस निंदा से संतप्त शिवजी ने उस मुख को काट डाला। इस घटना के कारण शिव जी को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी ब्रह्मांड में हर जगह घूमे लेकिन उन्हें मुक्ति का उपाय नहीं मिला। एक दिन जब वे सोमेश्वर में बैठे थे, तब एक बछड़े द्वारा उन्हें इस पाप से मुक्ति का उपाय बताया गया। कथा में बताया गया है कि यह बछड़ा नंदी था। वह शिव जी के साथ गोदावरी के रामकुंड तक गया और कुंड में स्नान करने को कहा। स्नान के बाद शिव जी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो सके। नंदी के कारण ही शिवजी की ब्रह्म हत्या से मुक्ति हुई थी। इसलिए उन्होंने नंदी को गुरु माना और अपने सामने बैठने को मना किया।
आज भी माना जाता है कि पुरातन काल में इस टेकरी पर शिवजी की पिंडी थी। अब तक वह एक विशाल मंदिर बन चुकी है। पेशवाओं के कार्यकाल में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। मंदिर की सीढि़याँ उतरते ही सामने गोदावरी नदी बहती नजर आती है। उसी में प्रसिद्ध रामकुंड है। भगवान राम में इसी कुंड में अपने पिता राजा दशरथ के श्राद्ध किए थे। इसके अलावा इस परिसर में काफी मंदिर है। लेकिन इस मंदिर में आज तक कभी नंदी की स्थापना नहीं की गई।
!!! शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के दस प्रमुख अवतार !!!
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के दस प्रमुख अवतार ।
यह दस अवतार इस प्रकार है जो मानव को सभी इच्छित फल प्रदान करने वाले हैं-
1. महाकाल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पहला अवतार महाकाल नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का महाकाल स्वरुप अपने भक्तों को भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला परम कल्याणी हैं। इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी जाती हैं।
2. तार- शिव के दस प्रमुख अवतारों में दूसरा अवतार तार नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का तार स्वरुप अपने भक्तों को भुक्ति-मुक्ति दोनों फल प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं।
3. बाल भुवनेश- शिव के दस प्रमुख अवतारों में तीसरा अवतार बाल भुवनेश नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का बाल भुवनेश स्वरुप अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को बाला भुवनेशी माना जाता हैं।
4.षोडश श्रीविद्येश- शिव के दस प्रमुख अवतारों में चौथा अवतार षोडश श्रीविद्येश नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का षोडश श्रीविद्येश स्वरुप अपने भक्तों को सुख, भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी षोडशी श्रीविद्या माना जाता हैं।
5. भैरव- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पांचवा अवतार भैरव नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का भैरव स्वरुप अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति भैरवी गिरिजा मानी जाती हैं।
6. छिन्नमस्तक- शिव के दस प्रमुख अवतारों में छठा अवतार छिन्नमस्तक नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का छिन्नमस्तक स्वरुप अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति देवी छिन्नमस्ता मानी जाती हैं।
7. धूमवान- शिव के दस प्रमुख अवतारों में सातवां अवतार धूमवान नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का धूमवान स्वरुप अपने भक्तों की सभी प्रकार से श्रेष्ठ फल देने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती माना जाता हैं।
8. बगलामुख- शिव के दस प्रमुख अवतारों में आठवां अवतार बगलामुख नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का बगलामुख स्वरुप अपने भक्तों को परम आनंद प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी बगलामुखी माना जाता हैं।
9. मातंग- शिव के दस प्रमुख अवतारों में नौवां अवतार मातंग के नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का मातंग स्वरुप अपने भक्तों की समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी मातंगी माना जाता हैं।
10. कमल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में दसवां अवतार कमल नाम से विख्यात हैं। भगवान शिव का कमल स्वरुप अपने भक्तों को भुक्ति और मुक्ति प्रदान करने वाला हैं। इस अवतार की शक्ति को देवी कमला माना जाता हैं।
विद्वानो के मत से उक्त शिव के सभी प्रमुख अवतार व्यक्ति को सुख, समृद्धि, भोग, मोक्ष प्रदान करने वाले एवं व्यक्ति की रक्षा करने वाले हैं।
हर हर महादेव
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