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Thursday, December 1, 2016

भारत में करंसी का इतिहास I History Of Indian Rupee In Hindi

आपको आनंद आएगा 👌
😊 गौर से पढिए :

भारतीय मुद्रा (रुपया ₹) से जुड़े 31 ग़ज़ब रोचक तथ्य :-

1. भारत में करंसी का इतिहास2500 साल पुराना हैं। इसकी शुरूआत एक राजा द्वारा की गई थी।


2. अगर आपके पास आधे से ज्यादा (51 फीसदी) फटा हुआ नोट है तो भी आप बैंक में जाकर उसे बदल सकते हैं।

3. बात सन् 1917 की हैं, जब 1₹ रुपया 13$ डाॅलर के बराबर हुआ करता था। फिर 1947 में भारत आजाद हुआ, 1₹ = 1$ कर दिया गया. फिर धीरे-धीरे भारत पर कर्ज बढ़ने लगा तो इंदिरा गांधी ने कर्ज चुकाने के लिए रूपये की कीमत कम करने का फैसला लिया उसके बाद आज तक रूपये की कीमत घटती आ रही हैं।

4. अगर अंग्रेजों का बस चलता तो आज भारत की करंसी पाउंड होती. लेकिन रुपए की मजबूती के कारण ऐसा संभव नही हुआ।

5. इस समय भारत में 400 करोड़ रूपए के नकली नोट हैं।

6. सुरक्षा कारणों की वजह से आपको नोट के सीरियल नंबर में I, J, O, X, Y, Z अक्षर नही मिलेंगे।

7. हर भारतीय नोट पर किसी न किसी चीज की फोटो छपी होती हैं जैसे- 20 रुपए के नोट पर अंडमान आइलैंड की तस्वीर है। वहीं, 10 रुपए के नोट पर हाथी, गैंडा और शेर छपा हुआ है, जबकि 100 रुपए के नोट पर पहाड़ और बादल की तस्वीर है। इसके अलावा 500 रुपए के नोट पर आजादी के आंदोलन से जुड़ी 11 मूर्ति की तस्वीर छपी हैं।

8. भारतीय नोट पर उसकी कीमत 15 भाषाओंमें लिखी जाती हैं।

9. 1₹ में 100 पैसे होगे, ये बात सन् 1957 में लागू की गई थी। पहले इसे 16 आने में बाँटा जाता था।

10. RBI, ने जनवरी 1938 में पहली बार 5₹ की पेपर करंसी छापी थी. जिस पर किंग जार्ज-6 का चित्र था। इसी साल 10,000₹ का नोट भी छापा गया था लेकिन 1978 में इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया।

11. आजादी के बाद पाकिस्तानने तब तक भारतीय मुद्रा का प्रयोग किया जब तक उन्होनें काम चलाने लायक नोट न छाप लिए।

12. भारतीय नोट किसी आम कागज के नही, बल्कि काॅटन के बने होते हैं। ये इतने मजबूत होते हैं कि आप नए नोट के दोनो सिरों को पकड़कर उसे फाड़ नही सकते।

13. एक समय ऐसा था, जब बांग्लादेश ब्लेड बनाने के लिए भारत से 5 रूपए के सिक्के मंगाया करता था. 5 रूपए के एक सिक्के से 6 ब्लेड बनते थे. 1 ब्लेड की कीमत 2 रूपए होती थी तो ब्लेड बनाने वाले को अच्छा फायदा होता था. इसे देखते हुए भारत सरकार ने सिक्का बनाने वाला मेटल ही बदल दिया।

14. आजादी के बाद सिक्के तांबे के बनते थे। उसके बाद 1964 में एल्युमिनियम के और 1988 में स्टेनलेस स्टील के बनने शुरू हुए।

15. भारतीय नोट पर महात्मा गांधीकी जो फोटो छपती हैं वह तब खीँची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे। यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी। इससे पहले महात्मा गांधी की जगह अशोक स्तंभ छापा जाता था।

16. भारत के 500 और 1,000 रूपये के नोट नेपालमें नही चलते।

17. 500₹ का पहला नोट 1987 में और 1,000₹ पहला नोट सन् 2000 में बनाया गया था।

18. भारत में 75, 100 और 1,000₹ के भी सिक्के छप चुके हैं।

19. 1₹ का नोट भारत सरकार द्वारा और 2 से 1,000₹ तक के नोट RBI द्वारा जारी किये जाते हैं.

20. एक समय पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 0₹ का नोट 5thpillar नाम की गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी किए गए थे।

21. 10₹ के सिक्के को बनाने में 6.10₹ की लागत आती हैं.

22. नोटो पर सीरियल नंबर इसलिए डाला जाता हैं ताकि आरबीआई(RBI) को पता चलता रहे कि इस समय मार्केट में कितनी करंसी हैं।

23. रूपया भारत के अलावा इंडोनेशिया, मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की भी करंसी हैं।

24. According to RBI, भारत हर साल 2,000 करोड़ करंसी नोट छापता हैं।

25. कम्प्यूटर पर ₹ टाइप करने के लिए ‘Ctrl+Shift+$’ के बटन को एक साथ दबावें.

26. ₹ के इस चिन्ह को 2010 में उदय कुमार ने बनाया था। इसके लिए इनको 2.5 लाख रूपयें का इनाम भी मिला था।

27. क्या RBI जितना मर्जी चाहे उतनी कीमत के नोट छाप सकती हैं ?
ऐसा नही हैं, कि RBI जितनी मर्जी चाहे उतनी कीमत के नोट छाप सकती हैं, बल्कि वह सिर्फ 10,000₹ तक के नोट छाप सकती हैं। अगर इससे ज्यादा कीमत के नोट छापने हैं तो उसको रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 में बदलाव करना होगा।

28. जब हमारे पास मशीन हैं तो हम अनगणित नोट क्यों नही छाप सकते ?
हम कितने नोट छाप सकते हैं इसका निर्धारण मुद्रा स्फीति, जीडीपी ग्रोथ, बैंक नोट्स के रिप्लेसमेंट और रिजर्व बैंक के स्टॉक के आधार पर किया जाता है।

29. हर सिक्के पर सन् के नीचे एक खास निशान बना होता हैं आप उस निशान को देखकर पता लगा सकते हैं कि ये सिक्का कहाँ बना हैं.

*.मुंबई – हीरा [◆]
*.नोएडा – डाॅट [.]
*.हैदराबाद – सितारा [★]
*.कोलकाता – कोई निशान नहीं.

30. जानिए, एक नोट कितने रूपयें में छपता हैं।
*.1₹ = 1.14₹
*.10₹ = 0.66₹
*.20₹ = 0.94₹
*.50₹ = 1.63₹
*.100₹ = 1.20₹
*.500₹ = 2.45₹
*.1,000₹ = 2.67₹

31. रूपया, डाॅलर के मुकाबले बेशक कमजोर हैं लेकिन फिर भी कुछ देश ऐसे हैं, जिनकी करंसी के आगे रूपया काफी बड़ा हैं आप कम पैसों में इन देशों में घूमने का लुत्फ उठा सकते हैं.
*.नेपाल (1₹ = 1.60 नेपाली रुपया)
*.आइसलैंड (1₹ = 1.94 क्रोन)
*.श्रीलंका (1₹ = 2.10 श्रीलंकाई रुपया)
*.हंगरी (1₹ = 4.27 फोरिंट)
*.कंबोडिया (1₹ = 62.34 रियाल)
*.पराग्वे (1₹ = 84.73 गुआरनी)
*.इंडोनेशिया (1₹ = 222.58 इंडोनेशियन रूपैया)
*.बेलारूस (1₹ = 267.97 बेलारूसी रुबल)
*.वियतनाम (1₹ = 340.39 वियतनामी डॉन्ग).


भारतीय मुद्रा प्रणाली का संशिप्त विवरण
.
OLD INDIAN CURRENCY SYSTEM..
Phootie Cowrie to Cowrie
Cowrie to Damri
Damri to Dhela
Dhela to Pie
Pie to to Paisa
Paisa to Rupya
256 Damri = 192 Pie = 128 Dhela = 64 Paisa (old) = 16 Anna = 1 Rupya

Now u know how some of the indian sayings originated..

ek 'phooti cowrie' nahin doonga...
'dhele' ka kaam nahin karti hamari bahu...
chamdi jaye par 'damdi' na jaye...
'pie pie' ka hisaab rakhna...
.
कैसा लगा आपको ?

       👌👌 ~ 👌👌
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Friday, July 8, 2016

चेन्नई दर्शन

सुबह ६ बजे माता जी ने जगाया... देख चेन्नई आवत हव.. उठ... मै  भी हडबडा के उठा... पूछ ताछ करने पर पता चला की 7 बजे तक पहुचे ही चेन्नई इग्मोर .

सामान ले बाहर निकले यात्रियों के पीछे ही.. मुख्य सड़क पर आते ही एक ऑटो वाले से पूछा.. आसपासकोई अच्छा होटल.... ऑटो वाले ने पूछा बजट... मैंने १०००-१२०० रुपये बोला AC रूम के लिए... उसने सामान रख ऑटो में बैठा कर पास ही एक होटल में पंहुचा दिया... होटल कुछ पुराने ढंग का था लेकिन करना क्या था.... होटल में एंट्री कर पहुच गए रूम में... चाय मगा कर  पिलाया माता श्री को... फिर निचे उतरे आस पास देखने... सुबह का समय था... तो सड़क भी एक दम खाली ही... लेकिन आस पास और भी होटल थे...आधे घंटे के चक्कर लगाने के बाद वापस पहुचे होटल... वहा काउंटर पर लोकल साइड सीन के बारे में पूछा तो पता चला की यहाँ मिनी बस से साइड सीन की
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Monday, June 6, 2016

कन्याकुमारी और तिरुअनंतपुरम

(6 May 2016- Friday ) कश्मीर भारत माता का मस्तिष्क है तो कन्याकुमारी चरण। कन्याकुमारी, तमिलनाडु राज्य का एक प्राचीन शहर है। इस शहर का नाम कन्याकुमारी ही क्यों हैं? इस नाम के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है।
एक कहावत के अनुसार बहुत समय पहले बानासुरन नाम का दैत्या हुआ था। उसने भगवान शिव कीतपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया और वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु कुंवारी कन्या के अलावा किसी से न हो। शिव जी ने उसे मन माँगा वरदान दे दिया। उसी कालक्रम में भारत में ही एक राजा हुए जिनका नाम था भरत। राजा भरत की आठ पुत्रियां और एक पुत्र था। राजा भरत ने अपना साम्राज्य 9 बराबर हिस्सों में बांट दिया। दक्षिण का हिस्सा जहां वर्तमान में कन्या कुमारी है राजा भरत की पुत्री कुमारी को मिला। मान्यता है कि कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता है।
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Sunday, June 5, 2016

रामेश्वरम साइड सीन

(5 May 2016- Thursday ) रामेश्वरम मंदिर की एक खास दर्शन है “मणि दर्शन” जो मंदिर में सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच मणि दर्शन कराया जाता है और मणि दर्शन में स्फटिक के शिवलिंग का दर्शन होता है सुबह सात बजे के बाद मणि दर्शन बन्द कर दिये जाते है उनके दर्शन करने के लिये नहा धोकर सुबह पांच बजे ही तैयार होना पडता है जब कहीं जाकर मंदिर में लाइन लगाकर दर्शन होते है, मणि दर्शन का शुल्क ५०/- है जिसका टिकट मंदिर के अन्दर ही मिलता है तो माता जी ५ बजे जगा दी.. अपने नहा धो के तैयार... फटाफट मै भी सुबह ही नहा धोकर, माता जी ने दूसरा धोती कुर्ता निकाल के रखा था तो तैयार हो मणि दर्शन करने के लिये पहुच गए मंदिर के अन्दर ..मणि दर्शन के लिए भी ५० लोगो की भीड़ थी... लेकिन हमारा नंबर आया ... सफ़ेद  स्फटिक के शिवलिंग.. उनके आगे एक ज्योति जल रही थी.... लगा की उस पल को देखने के लिए शायद यही सत्य है... वेद के अनुसार, इस "शेषनाग" के "मणि" है इस लिए इन्हें मणि दर्शन कहा जाता है फिर
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Saturday, June 4, 2016

रामेश्वरम यात्रा

(4 May 2016 –Wednesday) सुबह उठकर रामेश्वरम के लिये निकलना था। इसलिये सुबह पाँच बजे ही उठकर नहा धोकर तैयार भी हो गये। बस वाले ने सुबह 7 बजे का समय दिया था। लेकिन जब सवा 7 बजे तक भी हमें लेने कोई नहीं आया तो मन में खटका कि हमें यही छोड़कर तो नहीं भाग गये? लेकिन शुक्र रहा कि ठीक 7:30 पर हमें लेने के लिये एक आदमी आया हम उसके साथ बस तक चले गये। मदुरै से बिदा.. यहाँ से बस में बैठकर रामेश्वरम के लिये निकलने की तैयारी होने लगी। दूसरी बस कल वाली बस की तरह थी मिनी बस ..। सामान पीछे की डिक्की में डाल दिया और लैपटॉप का बैग हाथ में .. और होटलों से यात्रियों के लेते हुवे बस मदुरै रेलवे स्टेशन वाले मोड़ पर ठीक नौ
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Friday, June 3, 2016

कोडईकनाल

( 3 May 2016- Tuesday) आज की यात्रा थी तमिलनाडु का हिल स्टेसन “कोडईकनाल” भारत के तमिल नाडु राज्य में बसा एक शहर है। समुद्र तल से २१३३ मीटर ऊंचा तमिलनाडु का कोडईकनाल हिल रिजॉर्ट अपनी सुन्दरता और शान्त वातावरण से सबको सम्मोहित कर देता है। पाली हिल के बीच बसा यह जगह दक्षिण भारत का बेहद ही सुकून देने वाली हिल स्टेशन है। यहाँ की झीलें, आकर्षण दृश्य और ठंडी वादियां सचमुच किसी स्वप्न से कम नहीं लगती। मदुरै से कोडैकनाल सिर्फ १२० किलोमीटर दूर है

तो माता जी ने कभी हिल स्टेशन नहीं  देखा था... इस लिए सोचा की माँ को उधर भी घुमा ले.. सुबह ६ बजे माता जी चिल्लाई उठ... केतने बजे बस आई.. बस फटा फट.. उठा.. २ चाय मगाया... कमरे के
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Wednesday, June 1, 2016

मदुरई साइड सीन

दिन के तीन बजे हम निकले एक मिनी बस से मदुरई के अन्य दर्शनीय जगहों के दर्शन के लिए उस मिनी बस में १२-१४ परिवार था जो सब हिंदी ही बोल रहे थे

मदुरै के टूर के लिए वहा छोटे छोटे ट्रेवल एजेंट है... जो आपके बजट के हिसाब से प्लान बना देते है... और सभी एजेंट अपने अपने यात्रियों को उस रूट के बस पर यात्रिओ को बैठा देते है... जिसमे बस और गाइड की ब्यवस्था होती है...और गाइड घुमाने के एवज में २०-२० रुपये लेता है..   तब हम भी सवार हो चले... साथ ही अन्य एजेंट के भी यात्री के साथ ...
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मदुरई यात्रा

दिनांक : (1 May 2016-Sunday) अब तयारी थी श्री सैलम से मदुरई के लिए, हमारी बस (Andhra Pradesh State Road Transport Corporation  ) की दिन के १२.३० पर खुली श्री सैलम बस स्टैंड से कर्नूल के लिए, ड्राईवर ने बताया की शाम ४.३० तक बस पहुचेगी गर्मी भी ठीक ठाक ही थी, बस की रफ़्तार भी औसत ही थी, लेकिन वहा के सडको की हालत उत्तर भारत से बेहतर ही दिखा, निर्धारित समय पर बस ने कुर्नुल पंहुचा ही दिया हैदराबाद के लिए मदुरई की बस थी जो कर्नूल हो कर गुजरती है इस लिए हमारी बोर्डिंग थी कर्नूल  से.. दक्षिण भारत में आराम दायक बस के लिए kpn ट्रेवल ठीक है उनकी Volvo A/C Multi Axle Semi Sleeper (2+2) सीटर बस की यात्रा आरामदायक है कर्नूल से मदुरई के लिए करीब 12:15 Hrs.  लगते है.. कुर्नूल, आंध्रप्रदेश  राज्य के बड़े शहरों मे एक है। यह तुंगभद्रा नदी के किनारे बसा है। आंध्र प्रदेश के अवरतण के पूर्व कर्नूल नवंबर १, १९५६ तक आंध्र राष्ट्र का राजधानी था।
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Sunday, May 29, 2016

श्रीशैल, श्रीमल्लिकार्जुन, श्रीशैलम (श्री सैलम ) की यात्रा

(29 April 2016- Friday) भगवान तिरुपति के दर्शन से जीवन सफल हुवा.. माता जी भी प्रस्सन थी, तिरुपति की पहाडियों से उतर कर तिरुपति के श्री निवास बस स्टैंड से श्री सैलम के लिए बस पकडनी थी, लेकिन जानकारी तो कुछ थी नहीं की वहां देखने के लिये क्या क्या है,रुकने की क्या व्यवस्था है, रास्ते में अगर देखने लायक कोई जगह है तो उसके लिये कहां उतरना है …बोले तो कोई जानकारी नही थी। हालांकि इस तरह कही जाने का अपना अलग मजा है। आप झोला उठाइये और जिधर मन आये चल दीजिये। यह सोंचकर, कि जो होगा वो देखा जायेगा। हमारी जिप तिरुपति शहर में पहुच चुकी थी, निवेदन किया की भाई बस स्टैंड तक छोड़ दो, जो पैसे हो ले लेना, तो जिप वाले ने बस स्टैंड के थोडा पहले उतर दिया, हमने भी २५०/- दो लोगो का भुगतान कर दिया, जिप से उतर, सामान लाद चल दिए बस स्टैंड की तरफ, तभी माता श्री को नारियल पानी पिने का मन किया, बस
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तिरुपति बालाजी की कथा और आस पास

तिरुपति बालाजी की कथा :
वराह पुराण में वेंकटाचलम या तिरुमाला को आदि वराह क्षेत्र लिखा गया है। वायु पुराण में तिरुपति क्षेत्र को भगवान विष्णु का वैकुंठ के बाद दूसरा सबसे प्रिय निवास स्थान लिखा गया है जबकि स्कंदपुराण में वर्णन है कि तिरुपति बालाजी का ध्यान मात्र करने से व्यक्ति स्वयं के साथ उसकी अनेक पीढ़ियों का कल्याण हो जाता है और वह विष्णुलोक को पाता है। पुराणों की मान्यता है कि वेंकटम पर्वत वाहन गरुड़ द्वारा भूलोक में लाया गया भगवान विष्णु का क्रीड़ास्थल है। वेंकटम पर्वत शेषाचलम के नाम से भी जाना जाता है। शेषाचलम को शेषनाग के अवतार के रूप में देखा जाता है। इसके सात पर्वत शेषनाग के फन माने जाते है। वराह पुराण के अनुसार तिरुमलाई में पवित्र पुष्करिणी नदी के तट पर भगवान विष्णु ने ही
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Saturday, May 28, 2016

भगवान तिरुपति के दर्शन

(28 April 2016 Thursday) भक्‍तों के ठहरने के लिए वहां धर्मशाला से लेकर कॉटेज तक की पूरी व्‍यवस्‍था है...और इनका किराया महज ५० से १००० रुपए रोज पर आपको यहां धर्मशाला और कॉटेज मिल जाता है, लेकिन इसके लिए इंटरनेट से पहले ही बुकिंग लेनी पड़ती है। लेकिन हमने कोई बुकिंग नहीं की थी... तो drivar के साथ पहुचे कमरा लेने के लिए... उसको बोला एक AC रूम दिलवा दे भाई... बुकिंग आफिस में करीब १५० लोगो की लाइन... हम भी लगे लाइन में... वहा डिस्प्ले के माध्यम से खाली कमरों की सुचना दी जाती है जिसमे AC रूम सिर्फ २ ही थे जो खाली नहीं थे... सिर्फ ५० रुपये वाले ही कमरे.. तो क्या करते ले लिए ५० रुपये में काटेज जिसके लिए ५००/- रुपये कासन मनी जमा करनी पड़ती है जो
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Thursday, May 26, 2016

माता जी की तीर्थ यात्रा “ भाग २

तो पिछले साल की तरह इस साल भी माता जी को ले निकल पड़े “माता जी की तीर्थ यात्रा “ भाग २ में.. इस बार का थीम था दक्षिण भारत, जहा २ ज्योतिर्लिंग है.... श्री सैलम और श्री रामेश्वरम... 

तो इस बार के यात्रा का रूट कुछ ऐसा था.. वाराणसी से तिरुपति होते श्री सैलम से मदुरै के दर्शन के बाद रामेश्वरम से कन्या कुमारी के बाद चेन्नई होते हुवे वाराणसी.. करीब १५ दिन की यात्रा... तिरूपति बालाजी, श्री सैलम (मल्लिकाजरुन ज्योर्तिलिंग), मदुरै के मीनाक्षी मंदिर, पद्मनाभम मंदिर, रामेश्वरम,व कन्याकुमारी का भ्रमण :
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Monday, May 23, 2016

Esteban Murillo (बारतोलोमिओ एस्तेबन मुरिलो की पेंटिंग )

अभी सोशल मीडिया पर इस कहानी और फोटो बहुत जोरो से वायरल हो रही है..शायद इस चित्र की आधी सच्चाई आपको बुरी लगे पर पूरी कहानी सुनकर आपका मन जरूर बदलेगा ! समझ नहीं आ रहा इस पर क्या लिखू..। 

समाज अपने तरीके से कानून बनाता है। जब उससे हटकर कुछ अलग होता है तो लोगों को आश्चर्य होता है। एक अफ़्रीकी फ़िल्म देखा था एक कबीले के आक्रमण में दूसरा कबीला नष्ट हो जाता है केवल दो कुंवारी लड़कियां और चार बुजुर्ग जीवित बचते है। इन कुँवारी लडकियों से ही वो बुजुर्ग सन्तानोत्तपति करते हैं और अपना कबीला आगे बढ़ाते हैं।  
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Sunday, May 22, 2016

फ्री सेक्स का होता !!

गुरू !! ई फ्री सेक्स का होता है हमको नहीं पता न पता करने की इक्षा है, हा अभी सोशल मीडिया पर ये मुद्दा उठाया है ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमन एसोसिएशन की सेक्रेटरी और सीपीएम (एमएल) पोलित ब्यूरोकी सदस्य कविता कृष्णन और उनकी मां लक्ष्मी कृष्णन ने। इस पोस्ट में उन्होंने जेएनयू के शिक्षकों को भी निशाने पर लिया है। जेएनयू के शिक्षकों ने २०१५ में एक दस्‍तावेज तैयार किया था, जिसमें यूनिवर्सिटी के छात्रों को सेक्‍स और शराब से भरे जीवन के बारे में बताया गया था। पोस्‍ट में दावा किया गया है कि कविता ने एक टीवी चैनल की डिबेट में कहा कि यह अफसोस की बात है कि कुछ लोग ‘फ्री सेक्‍स’ (अपनी मर्जी से किसी भी व्‍यक्ति से शारीरिक संबंध बनाना) से डरते हैं। इए कुल तो बड़े लोगो की बड़ी बाते है मै तो बस इतना ही जानता हूँ कि कुछ लोग बहुत ही सदाचारी होते हैं जो शादी से पहले सेक्स
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Thursday, April 14, 2016

बनारस का खाना

बनारस के खान पान पर एक सीरीज़ लिखने की इच्छा बहुत दिनों से थी लेकिन “जाए दा” के आलस्य के बनारसी महामंत्र के कारण लिखना संभव नहीं हो पा रहा था. फिलहाल अचानक आज बनारस बेतरह याद आया और थोड़ा जोड़ तोड़ कर बनारसी कचौड़ी-जलेबी पर ये पहला आलेख तैयार हो गया. यहां की कचौड़ी, लौंगलता, जलेबा और भांग वाली ठंडई जैसी तमाम खाने-पीने वाली चीजें लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। बनारस का पान. बनारस का नाम जुबां पर आते ही सबसे पहले 'बनारसी पान' की तस्वीर सामने आ जाती है।

बनारस का खाना
जिसने न जाना
रह गया बेगाना:
उड़द की दाल की पीसी हुई थोड़ी मसालेदार पीठी को आटे में भर कर बनाई देशी घी से भरे कड़ाहे में नाचती वो लाल लाल कचौड़ी और थोड़ा हल्का सुगंध का फ्लेवर लिए मोटा जलेबा. ये है बनारस का राजसी नाश्ता.
कचौरी शब्द बना है कच+पूरिका से। क्रम कुछ यूं रहा- कचपूरिका > कचपूरिआ > कचउरिआ > कचौरी जिसे कई लोग कचौड़ी भी कहते हैं। संस्कृत में कच का अर्थ होता है बंधन, या बांधना। दरअसल प्राचीनकाल में कचौरी पूरी की आकृति की न बन कर मोदक के आकार की बनती थी जिसमें खूब सारा मसाला भर कर उपर से लोई को उमेठ कर बांध दिया जाता था। इसीलिए इसे कचपूरिका कहा गया।
दूसरी और जलेबी मूल रूप से अरबी लफ्ज़ है और इस मिठाई का असली नाम है जलाबिया । यूं जलेबी को विशुद्ध भारतीय मिठाई मानने वाले भी हैं। शरदचंद्र पेंढारकर (बनजारे बहुरूपिये शब्द) में जलेबी का प्राचीन भारतीय नाम कुंडलिका बताते हैं। वे रघुनाथकृत ‘भोज कुतूहल’ नामक ग्रंथ का हवाला भी देते हैं जिसमें इस व्यंजन के बनाने की विधि का उल्लेख है। भारतीय मूल पर जोर देने वाले इसे ‘जल-वल्लिका’ कहते हैं । रस से परिपूर्ण होने की वजह से इसे यह नाम मिला और फिर इसका रूप जलेबी हो गया। फारसी और अरबी में इसकी शक्ल बदल कर हो गई जलाबिया।
फिलहाल बात करते हैं बनारस की कचौड़ी और जलेबी की!

जब बाकी की दुनिया बेड-टी का इंतजार कर रही होती है, सयाने बनारसी सुबह छह बजे ही गरमा-गरम कचौड़ीऔर रसीली जलेबी का कलेवा दाब कर टंच हो चुके होते हैं। इस रसास्वादन अनुष्ठान के कर्मकांड रात के तीसरे पहर से ही शुरू हो जाते हैं। भठठी दगाने और कड़ाहा चढ़ाने के बाद चार बजते-बजते शहर के टोले मुहल्ले भुने जा रहे गरम मसालों की सोंधी खुशबू से मह-मह हो उठते हैं। एक ऐसी नायाब खुशबू जो नासिका रंध्रों को उत्तेजित कर भूख को आक्रमक बना दे। इस सुगंध से आप वंचित हैं तो समझिये आप स्वाद के एक भरे पुरे अहसास को मिस कर रहे हैं। सुबह के पांच बजते न बजते तो खर कचौडि़यों की व्रत डिगा देने वाली सोंधी गंध, सरसों तेल की बघार से नथुनों को फड़का देने वाली कोहड़े की तरकारी की झाक और खमीर के खट्टेपन और गुलाबजल मिश्रित शीरे में तर करारी जलेबियों की निराली गंध से सुवासित आबो हवा स्वाद का जादू जगा चुकी होती हैं। एक ऐसा जादू जो सोये हुए को जगा दे। जागे हुओं को ब्रश करा कर सीधे ठीयें तक पहुंचा दे। सात बजते-बजते तो विश्वेश्वरगंज के विश्वनाथ साव, चेतगंज के शिवनाथ साव, हबीबपुरा के मम्मा,डेढ़सी पुल वाली दोनो दुकानों, जंगमबाड़ी के बटुकसरदार, लोहटिया में लक्ष्मण भंडार, सोनारपुरा के वीरू और लंका वाली मरहूम चचिया की दुकान पर नरम-गरम कचौडियों की आठ दस घानी उतर चुकी होती है।
सो बनारस में भोजन की शुरुआत होती है सुबह के नाश्ते से .........ऐसा बताते हैं की पुराने ज़माने में कोई बनारसी कभी घर पे नाश्ता नहीं करता था ......वहां जगह जगह दुकानों पे और ठेलों पे कचौड़ी जलेबी बिका करती थी ....आज भी बिकती है ....एक पूरी गली है बनारस में ....नाम है कचौड़ी गली ......वो केंद्र था कभी बनारसी नाश्ते का ........अब ये कचौड़ी असल में पूड़ी है जिसे थोडा अलग ढंग से बनाते हैं .........उसमे उड़द की दाल की पीठी भरते है और उसे करारा कर के तलते है .........पहले देसी घी में बनती थी ...अब refined में बनाते हैं .......साथ में सब्जी .....आज भी दोने और पत्तल (पेड़ के पत्तों से बनी (use and throw plates ) में ही परोसते हैं .....फिर उसके बाद जलेबी ........


ये कचौड़ी और जलेबी का combination है ....जैसे coke और चिप्स का है ........अब जलेबी तो दुनिया जहां में बिकती है ....पर बनारस की जलेबी की तो बात ही कुछ और है. 'बनारसी हलवाई जलेबी बनाने वाली मैदानी पर बेसन का हल्का-सा फेंट मारते हैं. जलेबियां कितनी स्वादिष्ट बनेंगी, यह फेंटा मारने की समझदारी पर निर्भर करता है. कितनी देर तक और कैसे फेंटा मारना है यह कला बनारसी हलवाई अच्छी तरह जानते हैं. 

शहर बनारस का स्वादिष्ट कलेवा खर कचौड़ी और तर जलेबी, आपाधापी के इस दौर में भी मजबूती से अपनी जगह बनाए हुए है। फर्क सिर्फ इतना आया है कि पहले यह कलेवा झपोलियों में भरकर घर आया करता था। जल्दी भागो के इस दौर में यह नाश्ता भी अब फास्ट फूड से टक्कर लेने लगा है। चार कचौडिय़ों के साथ जलेबी फटाफट मुंह में डाली और चल पड़े अपने काम पर। 

हालांकि स्पर्धा की होड़ में बनारस के इस पुराने व्यंजन के साथ अब इडली व डोसा भी टक्कर लेने लगे हैं। बावजूद इसके अपने अनूठे स्वाद के दम पर जलेबी-कचौड़ी की बादशाहत कायम है

यह बात अलग है कि स्वास्थ्य के प्रति सर्तकता बढ़ जाने के कारण कुछ लोग अब नाश्ते की फेहरिस्त में ओट्स और दलिया को प्रमुखता देने लगे हैं। टोस्ट और आमलेट भी जोर आजमाइश में है लेकिन बनारस की जीवन शैली में शामिल हो चुके जलेबी कचौड़ी को अब उसकी जगह से हटाना संभव नहीं है।
आज भी बनारस का आदमी बगल की दुकान पर अल सुबह भूने रहे मसाला की सुगंध से ही जागता है और नित्य काम से निबटने के बाद सीधे कचौड़ी.जलेबी की दुकान पर भागता है। जाड़ा, गर्मी या हो बरसात जतनवर के विश्वनाथ साव भोर में जब कचौड़ी के साथ चलने वाली सब्जी की बघार देते हैं तो पास.पड़ोस के बाशिंदों की नथुने फड़क उठते हैं। इसके बाद तो सारा आलस्य काफूर हो जाता है और लोग कचौड़ी.जलेबी के कतार में लग जाते हैं।

अंत में बनारसी कचौड़ी के बारे में बेढब बनारसी नें अपने हास्य उपन्यास लफ्टन पिगसन की डायरी में जो वर्णन किया है उसे पढ़ लेना भी बनारसी कचौड़ी जलेबी के स्वाद सा मनभावन है!
एक मिठाई की दुकान पर मैंने देखा कि एक आदमी बड़े-बड़े घुँघराले बाल रखे हुए बेलन से आटे की गोल-गोल गेंद बनाकर बेल रहा है और फिर एक कड़ाही में उसे डालता है। कड़ाही में घी खौल रहा था। वह झूम-झूमकर बेलना बेल रहा था। उसके श्यामल मुख पर पसीने की बूँदें चमक रही थीं जैसे नीलाम्बर नक्षत्र में कभी-कभी तारे आकाश से टूटकर गिरते हैं वैसे ही पसीने की बूँदें नीचे गिरती थीं जो उसी आटे की गेंद में विलीन हो जाती थीं। पूछने पर पता चला कि यह दो प्रकार की होती हैं। एक का नाम पूरी है जिसका अर्थ है कि इसमें किसी प्रकार की कमी नहीं है। इसे खा लेने से फिर भूख में किसी प्रकार की कमी नहीं रह जाती। दूसरी को कचौरी कहते हैं। इसके भीतर एक तह आटे के अतिरिक्त पिसी हुई दाल की रहती है। पहले इसका नाम चकोरी था। शब्दशास्त्र के नियम के अनुसार वर्ण इधर से उधर हो जाते हैं। इसीसे चकोरी से कचोरी हो गया। चकोरी भारत में एक चिड़िया होती है जो अंगारों का भक्षण करती है। कचौरी खानेवाले भी अग्नि के समान गर्म रहते हैं, कभी ठण्डे नहीं होते। गर्मागर्म कचौरी खाने का भारत में वही आनन्द है जो यूरोप में नया उपनिवेश बनाने का

विश्व की प्राचीन नगरी काशी मंदिरों और घाटों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां का रहन-सहन, अक्खड़पन, खुशमिजाजी और सुकून लोगों को काफी पसंद है। बनारस की एक और चीज है, जो लोगों को इस शहर की तरफ खींच लाती है। वो है यहां का खान-पान। बनारसी पान हो या फिर टमाटर चाट, भांग वाली ठंडाई हो या फिर कचौड़ी, जो एक बार यहां के लजीज व्यंजनों का स्वाद चखता है, वो वाराणसी का और भी मुरीद हो जाता है।
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Monday, February 15, 2016

वैलेंटाइन रे वैलेंटाइन

अभी ऑफिस में वर्क लोड कुछ ज्यादा ही है, तो कुछ कम ही लिख पाते है... लेकिन इस साल कुछ खास सोचा था की इस साल हम संत वैलेंटाइन जरुर बनेगे.. इस लिए बनारस गया था पत्नी जी के साथ कुछ रोमांटिक फोटो खीचने के लिए, वैसे इस बार का थीम सोचा था " गोरी तेरा गाव बड़ा प्यारा " घाट किनारे बेटे की सायकिल ले कर उस पत्नी जी को बैठा कर कुछ रोमांटिक अंदाज में फोटो खिचाने का .. लेकिन कहते है न किस्मत थी .गांडू.. तो हम आ गए काठमांडू.. जाने दीजिये साहेब अब ज़िन्दगी में इतने मुक़दमे हैं .. एक मुकदमा मुहब्बत का भी सही ।

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Friday, February 5, 2016

नरेंद्र मोदी सरकार का गला न सूख जाए इस बार का आम बजट बनाने में...?

मोदी जी, इस बार पीएम नहीं देश फेल होगा

दो दिन बाद संसद के बजट सत्र की शुरुआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से होगी। जिस पर संसद की ही नहीं बल्कि अब देश की नजर होगी आखिर मोदी सरकार की किन उपलब्धियों का जिक्र राष्ट्रपति करते हैं और किन मुद्दों पर चिंता जताते हैं । क्योंकि पहली बार जाति या धर्म से इतर राष्ट्रवाद ही राजनीतिक बिसात पर मोहरा बनता दिख रहा है । और पहली बार आर्थिक मोर्चे पर सरकार के फूलते हाथ पांव हर किसी को दिखायी भी दे रहे है। साथ ही  संघ परिवार के भीतर भी मोदी के विकास मंत्र को लेकर कसमसाहट पैदा हो चली है। यानी 2014 के लोकसभा चुनाव के दौर के तेवर 2016 के बजट सत्र के दौरान कैसे बुखार में बदल रहे है यह किसी से छुपा नहीं है ।
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वाराणसी-बानारसी-बनारस अविमुक्त क्षेत्र, महाश्मशान, आनंदवन, हरिहरधाम, मुक्तिपुरी, शिवपुरी, मणिकर्णी, तीर्थराजी, तपस्थली, काशिका

भारत को धर्म और दर्शन की धरा के रूप में जाना और माना जाता है। भारत अनेकता में एकता की सजीव प्रतिमा है। इसी भारतीयता का समग्र चरित्र किसी एक शहर में देखना हो तो वह होगा बनारस। बनारस को काशी और वाराणसी नामों से भी जाना जाता है। बनारस/वाराणसी/ काशी को जिन अन्य नामों से प्राचीन काल से संबोधित किया जाता रहा है वे हैं – अविमुक्त क्षेत्र, महाश्मशान, आनंदवन, हरिहरधाम, मुक्तिपुरी, शिवपुरी, मणिकर्णी, तीर्थराजी, तपस्थली, काशिका, काशि, अविमुक्त, अन्नपूर्णा क्षेत्र, अपुनर्भवभूमि, रुद्रावास इत्यादि। इसी का आभ्यांतर भाग वाराणसी कहलता है। वरुणा और अस्सी नदियों के आधार पर वाराणसी नाम पड़ा ऐसा भी माना जाता है। कहते हैं, दुनिया शेषनाग के फन पर टिकी है पर बनारस शिव के त्रिशूल पर टिका हुआ है। यानी बनारस बाकी दुनिया से अलग है।
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