(३ मई २०१५ ) २ मई की शाम पूना से अहमदाबाद रात्रि ९ बजे की Train No : 12298, दुरी ६६५ किलो मीटर,
अहमदाबाद यानी गुजरात की राजधानी। भीड़ भाड़ वाला अतिव्यस्त शहर. ३ मई की सुबह 0६:१५ पर अहमदाबाद पहुच ही गए, मुख्य रेलवे स्टेशन अहमदाबाद जंक्शन को
यहां लोग कालूपुरा भी कहते हैं, जैसे बनारस के मुख्य स्टेशन को कैंट कहा जाता है।
हालांकि हमने हर शहर में होटलों की आनलाइन एडवांस बुकिंग की थी।
पर अहमदाबाद का प्रोग्राम फिक्स नहीं था तो वहा होटल बुक नहीं किया था, माता जी को ले कर निकले स्टेशन के बाहर, मिल गया एक ऑटो वाला, उसी से बात
किया होटल दिलाने के लिए तैयार ही गया, उसी दिन शाम की ट्रेन भी थी अहमदाबाद – वेरावल तो होटल भी आस पास ही खोज रहे थे .. ऑटो वाले ने बताया वैसे रेलवे
स्टेशन के सामने रीलीफ रोड पर सबसे ज्यादा होटल हैं।एक दो होटल में ले गया लेकिन कमरा नहीं मिला तो हम पूछे रीलीफ रोड, वहा होटल सागर इन, चौथे मंजिल पर
कमरा मिल गया तो प्रवेश किया माता जी को ले कर, अब आगे नहा धो के अहमदाबाद की घुमाई तो तैयार हो कर निचे उतरे अहमदाबाद के बारे में होटल वाले ने
बताया अहमदाबाद टूर के बारे में : (सिदी सैय्यद मस्जिद, इस्कॉन मंदिर, श्री बाला जी मंदिर, अहमदाबाद, अडालज कुआं, वैष्णो माता मंदिर, स्वामी नारायण मंदिर, शीशे
की भूल भुलैया, कांकरिया झील, साबरमती आश्रम, साबरमती रिवर फ्रन्ट एवं लोकल मार्केट) अहमदाबाद में घुमने लायक बहुत जगह है पर समय के अभाव में हमलोग
ज्यादा नहीं घूम पाए.
पर हाँ यहां के महत्वपूर्ण और घुमने लायक जगहों को हमने नहीं छोड़ा. १०.३० बजे हमलोग टैक्सी से निकल गए अहमदाबाद दर्शन के लिए. रविवार का दिन था तो सडको पर ज्यादा भीड़ नहीं थी.. तब तक गूगल बाबा के सहयोग से अहमदाबाद को समझा, उनके अनुसार पुराना शहर और द सिटी वॉल्स ऑफ अहमदाबाद, अहमदाबाद (गुजराती: અમદાવાદ अमदावाद) गुजरात प्रदेश का सबसे बड़ा शहर है।
पर हाँ यहां के महत्वपूर्ण और घुमने लायक जगहों को हमने नहीं छोड़ा. १०.३० बजे हमलोग टैक्सी से निकल गए अहमदाबाद दर्शन के लिए. रविवार का दिन था तो सडको पर ज्यादा भीड़ नहीं थी.. तब तक गूगल बाबा के सहयोग से अहमदाबाद को समझा, उनके अनुसार पुराना शहर और द सिटी वॉल्स ऑफ अहमदाबाद, अहमदाबाद (गुजराती: અમદાવાદ अमदावाद) गुजरात प्रदेश का सबसे बड़ा शहर है।
भारतवर्ष में यह नगर का सातवें स्थान पर है। इक्क्यावन लाख की जनसंख्या वाला ये शहर, साबरमती नदी के किनारे बसा हुआ है। पहले गुजरात की राजधानी यही शहर ही था, उसके बाद ये स्थान गान्धीनगर को दे दिया गया। अहमदाबाद को कर्णावती के नाम से भी जाना जाता है। इस शहार की बुनियाद सन १४११ में डाली गयी थी। शहर का नाम सुलतान अहमद शाह पर पडा था। और बाद में इसकी सुरक्षा उनके पोते महमूद बेगडा ने की थी। यह दीवार १० किमी. की परिधि में बनी हुई है जिसमें १२ गेट, १८९ गढ़ और ६००० से अधिक बैटलमैन बने हुए है। शहर की ओर बढ़ने पर दीवार कम हो जाती है और साबरमती नदी तक इसका द्वार बना हुआ है। शाहपुर द्वार, दिल्ली द्वार, दरियापुर द्वार, प्रेम द्वार, कालूपुर द्वार, पंचकुवा द्वार, सारंगपुर द्वार, रायपुर द्वार, अस्तोडिया द्वार, महुदा द्वार, जमलपुर द्वार, खानजिया द्वार, रायखड़ द्वार, गणेश द्वार और राम द्वार इसके १२ द्वारों के नाम है। इन सभी द्वारों पर सुंदर सी नक्काशी है और इन पर सुलेख भी है।
दीवारों के भीतर स्थित शहर और दरवाजे, पुराने शहर का हिस्सा है जो बहुत संकीर्ण है और वहां तक केवल दो पहिया वाहन ही प्रवेश कर सकते है। यह पुराना शहर
यूनिटों में बंटा हुआ है जिसे पोल कहा जाता है जहां एक समुदाय और सम्प्रदाय के लोग साथ - साथ रहते है। इनमें से कई पोल के निजी मंदिर भी है जो केंद्र में स्थित
होते है, इस मंदिर की वास्तुकला बेहद सुंदर होती है, दरवाजों पर हुई नक्काशी भी खास दिखती है। यहां के खंभों पर फ्रेस्को काम हुआ है। पोल में एक और प्रकार की
संरचना, चबूतरों होती है जहां एक बर्ड फीडर बनाया जाता है ताकि चिडिया उस पर अपना घर बना सकें, इसे शहर में कटते पेड़ों के बदले में बनाया जाता है ताकि चिडियां
अपना घोंसला आसानी से बना सकें।
तब तक हम पहुच गए सिदी सैय्यद मस्जिद (सिदी सईद मस्जिद), अहमदाबाद.. टैक्सी के पायलट ने बताया मस्जिद बंद ही होता है.. बस बाहर से देख सकते है, उसने बताया की इस
तब तक हम पहुच गए सिदी सैय्यद मस्जिद (सिदी सईद मस्जिद), अहमदाबाद.. टैक्सी के पायलट ने बताया मस्जिद बंद ही होता है.. बस बाहर से देख सकते है, उसने बताया की इस
मस्जिद को १५७३ में बनवाया गया था और यह अहमदाबाद में मुगल काल के दौरान बनी आखिरी मस्जिद है। मस्जिद के पश्चिमी ओर की खिड़की पर पत्थर पर बनी जाली का काम पाया जाता है जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। बाहर परिसर में पत्थर से ही नक्काशी और खुदाई करके एक पेड़ का चित्रांकन किया गया है जो उस काल की शिल्प कौशल की विशिष्टता को दर्शाता है। यह शहर के व्यस्ततम इलाके में स्थित है, यहां आकर निश्चित रूप से पर्यटक को शांति का अनुभव होगा और उसके मन को तसल्ली होगी। यह शाही मस्जिद जालीदार पत्थर की अपनी जुड़वां खिड़कियों के लिए विख्यात है,खजूर के पत्तों और घुमावदार प्रतान के साथ पेड़ की शैली में काम किया गया है । यह नाजुक नक्काशी का एक शानदार और अद्वितीय उदाहरण है जो पत्थर को ज़रदोज़ी के काम में बदल देती है। इसका निर्माण अहमद शाह के एक गुलाम, सिदी सैयद द्वारा किया गया था, और इसमें सुंदर नक्काशीदार पत्थर की खिड़कियाँ हैं जिनमें पेड़ की शाखाओं की जटिल गुथाई का चित्रण किया गया है।
चल पड़े आगे, वैसे तो गुजरात राज्य का एक ऐसा शहर जो हमेशा से ही विरोधाभासी रहा है, जहां एक ओर गुजराती लोग, सारी दुनिया में मास्टर बिजनेसमैन के नाम से जाने जाते है वहीं इसी शहर में ही गांधी जी ने सत्याग्रह और अंहिंसा का पाठ पढ़ाया था। एक तरफ भौतिकवादी दृष्टिकोण है और दूसरी तरफ आत्म - त्याग की आध्यात्मिकता है ये यहाँ की खासियत है शहर के भीतर सडक़ों पर जबरदस्त ट्रैफिक। भागते वाहनों से भरी सभी सडक़ें। सबमें आगे निकलने की होड़। इसके बावजूद, अचानक सामने आ जाने वाले वाहन को खामोशी से रास्ता देते लोग। कोई तू तू- मैं मैं नहीं। पहले आप जैसी तहजीब। बाहर का कोई आदमी इस भीड़ में वाहन नहीं चला सकता। शहर की सडक़ों पर तेजी से चलती कार पर बैठे हुए मुझे कई बार लगा अब भिड़े,
तब भिड़े, लेकिन मेरा अहमदाबादी ड्राइवर मुझे सब जगह सकुशल घुमाता रहा। शहर में पचास से ज्यादा फ्लाईओवर हैं। फ्लाईओवर के ऊपर फ्लाईओवर हैं। इन फ्लाईओवरों के ऊपर से गुजरते हुए शहर देखने का अलग मजा है।
अब पहुच गए इस्कॉन मंदिर, सेटेलाइट रोड गाँधी नगर हाईवे क्रासिंग अहमदाबाद इस्कॉन या
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (International Society for Krishna Consciousness - ISKCON), को "हरे कृष्ण आंदोलन" के नाम से भी जाना जाता है।
इसे १९६६ में न्यूयॉर्क नगर में भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने प्रारंभ किया था। देश-विदेश में इसके अनेक मंदिर और विद्यालय है उसी सृखला में इस्कॉन मंदिर, गुजरात
राज्य के अहमदाबाद शहर में स्थित है। मंदिर में भगवान कृष्ण और राधाजी के साथ ही सीता, राम, लक्ष्मण, हनुमानजी,बलदेव और सुभद्राजी की भव्य मूर्तियाँ मौजूद हैं।
इस मंदिर में १२००० वर्ग फुट का एक बड़ा कक्ष है जहां लगभग ४००० श्रद्धालु इकट्ठा हो सकते हैं। मंदिर में शांति का अहसास होता है, अन्दर सावरे की खुबसूरत
मुर्तिया, १० मिनट में घूम लिया फिर निकले ..
श्री बाला जी मंदिर, (वेकटेश्वर मंदिर) अहमदाबाद भगवान बालाजी के मंदिर की महत्ता कौन नहीं जानता। भगवान व्यंकटेश स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड
का स्वामी माना जाता है उसका एक प्रारूप तिरुपति बालाजी मंदिर अहमदाबाद आंध्र महासभा और तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम की दो संस्थाओं के संयोजन के रूप
में बनाया गया है। मंदिर में आश्चर्यजनक है और साथ ही इस तरह कल्याण मंडपम, सूचना केन्द्र, वेद विद्यालय, कला और अन्य लोगों के बीच सांस्कृतिक केंद्र के रूप
में अपनी जटिल घरों कई अन्य छोटे संरचनाओं। सूचना केन्द्र तिरुपति देवस्थानम में यात्रा करने के लिए इच्छा है और अपेक्षित और प्रामाणिक जानकारी नहीं है जो उन
सभी लोगों के लिए एक बहुत सहायता की है। पूरा मंदिर ग्रेनाइट पत्थरों से बनाया गया है, मंदिर छह हजार वर्ग मीटर के करीब है,एक दम तिरुमाला के वेकटेश्वर मंदिर
की तरह, पहुचे हम मंदिर के अन्दर, सुचना लगी थी , परिसर के अन्दर मोबाईल कैमरा चलाना मना था तो हम थो ठहरे आज्ञाकारी, मान लिया अभी भगवान के आरती
का समय था तो दरवाजा बंद था...मंदिर के अन्दर स्वचालित घंटे बज रहा था हाल में ही एक सुरक्षा अधिकारी ने कहा २० मिनट बाद दरवाजा खुलेगा तब तक आप बात
कर इतजार कर सकते है.. सोचा अभी तक बाला जी का दर्शन कर लेते है, सो इतजार कर लिया , फिर पता चला की वहा पूजा भी होती है जिसका कूपन बाहर मिलता
है, तो ले लिया पूजा का कूपन और पूजन सामग्री... दरवाजा खुल ही है... हम लाइन में लग गए... थोड़ी देर बाद हमारा नंबर भी आ गया अच्छे से पूजन हुई.. पूजन का
तरीका विशुद्ध दक्षिण भारतीय तरीके का, क्यों की पुजारी भी दक्षिण भारतीय, खैर लगे हाथ वेकटेश्वर भगवान के दर्शन हो गए २०१२ में नरेन्द्र मोदी जी जब गुजरात के
मुख्य मंत्री थे तब से इस मंदिर का काया कल्प हो गया
.. प्रसाद ले चल पड़े तभी सामने एक दक्षिण भारतीय रेस्टोरेंट वेकटेश्वर मंदिर परिसर में दिख गयी, तो माता जी के साथ विशुद्ध दक्षिण भारतीय स्टाइल का नास्ता
किया, अब आगे किसी कुवे के पास ..
अदलज कुआं, अहमदाबाद अदलज - गांधीनगर जिले के दक्षिण-पश्चिम में स्थित यह छोटा-सा गांव प्राचीन काल में दांडई देश नाम से जाना जाता था। गांव का मुख्य आकर्षण एक सीढीनुमा कुआं है जिसे अदलज वव के नाम से भी जाना जाता है। दूर-दराज से बड़ी संख्या में लोग इस कुएं को देखने आते रहते हैं। यह गांव गांधीनगर से मात्र ५ किमी. की दूरी पर है। तो हम अपने रथ के साथ पहुच गए अदलज कुआं, बाहर ही एक घोड़े के नचाया जा रहा था मस्त डी जे पर__मजा आ गया देख कर
अब चले अन्दर का जायजा लेने, पहले मंजिल में एक संगमरमर की सुचना के आधार पर पता चला की सन १४९९ में वाघेला के राजा वीर सिंह की पत्नी रानी रूदा बाई ने अपने पति के याद में इसका निर्माण कराया था. इसकी खासियत यह है कि यह वाव ५ मजिला अस्टभुजकार और १६ खम्बो पर टिका है, पूरी की पूरी पांच मंजिला इमारत जमीन से नीचे है. और इसके नीचे एक कुआं बनाया गया है. जिसका तापमान अन्दर शायद ५-७ डिग्री ही होता है इसके दीवारों पर बेहद ही खुबसूरत कलाकारी की गयी है. जगह जगह परकोटे और खिड़की बने हुए है, तो हम भी धीरे धीरे निचे उतर के कुवे को देखा,
फिर माता जी फोटो फाटो खीच कर बाहर निकले तो बाहर वहा की महिलाये पारंपरिक नित्य कर रही थी डी जे की थीम पर, महसूस किया गरीबो का डिस्को थिक ४० डिग्री की गर्मी में ..
अदलज कुआं, अहमदाबाद अदलज - गांधीनगर जिले के दक्षिण-पश्चिम में स्थित यह छोटा-सा गांव प्राचीन काल में दांडई देश नाम से जाना जाता था। गांव का मुख्य आकर्षण एक सीढीनुमा कुआं है जिसे अदलज वव के नाम से भी जाना जाता है। दूर-दराज से बड़ी संख्या में लोग इस कुएं को देखने आते रहते हैं। यह गांव गांधीनगर से मात्र ५ किमी. की दूरी पर है। तो हम अपने रथ के साथ पहुच गए अदलज कुआं, बाहर ही एक घोड़े के नचाया जा रहा था मस्त डी जे पर__मजा आ गया देख कर
अब चले अन्दर का जायजा लेने, पहले मंजिल में एक संगमरमर की सुचना के आधार पर पता चला की सन १४९९ में वाघेला के राजा वीर सिंह की पत्नी रानी रूदा बाई ने अपने पति के याद में इसका निर्माण कराया था. इसकी खासियत यह है कि यह वाव ५ मजिला अस्टभुजकार और १६ खम्बो पर टिका है, पूरी की पूरी पांच मंजिला इमारत जमीन से नीचे है. और इसके नीचे एक कुआं बनाया गया है. जिसका तापमान अन्दर शायद ५-७ डिग्री ही होता है इसके दीवारों पर बेहद ही खुबसूरत कलाकारी की गयी है. जगह जगह परकोटे और खिड़की बने हुए है, तो हम भी धीरे धीरे निचे उतर के कुवे को देखा,
फिर माता जी फोटो फाटो खीच कर बाहर निकले तो बाहर वहा की महिलाये पारंपरिक नित्य कर रही थी डी जे की थीम पर, महसूस किया गरीबो का डिस्को थिक ४० डिग्री की गर्मी में ..
अब आगे हम गांधीनगर हाईवे पर वैष्णो माता मंदिर की तरफ जा रहे थे, वैष्णों देवी मंदिर जैसा बना एक छोटा मंदिर था जो गांधीनगर में है. यहां भी कई मोड़
दार गुफा ऐसा बनाया गया है, जहां से गुजरते वक़्त लगता है कि बिलकुल असली लेकिन वहा भी आरती का समय हो चूका था, इस लिए बाहर से ही प्रणाम कर आगे
प्रस्थान कर गए..
अब हमारी गाड़ी अक्षरधाम मंदिर की ओर जा रही थी. गुजरात के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माना जाने वाला यह मंदिर स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा
बनवाया गया है. जो अहमदाबाद स्टेशन से २८ किलोमीटर दूर गांधीनगर के सेक्टर २० में स्थित है.
यह मंदिर सनातन धर्म में विश्वास रखने वाले स्वामीनरायाण संप्रदाय का मंदिर है। इस मंदिर को गुलाबी पथर से बनवाया गया था जिसमें भगवान स्वामीनरायण की मूर्ति रखी हुई है, जो इस सम्प्रदाय के संस्थापक है। मंदिर में स्वंय स्वामीनारायण की मूर्ति लगी हुई है जो पूरी तरीके से सोने से मढ़ी हुई है और यहां दोनो ओर स्वामी गुनाटीनंद और स्वामी गोपालनंद के की मूर्ति भी रखी हुई है। जब वहां पहुंचा तो देखा काफी भीड़ थी. मंदिर के अंदर कैमरा-मोबाइल से लेकर हैंड बैग कुछ भी ले जाने की मनाही थी. लाकर रूम में अपने मोबाइल और कैमरे को जमा कर अंदर जाने वाले कतार में खड़े हो गए. मेटल डिटेक्टर के पास बेल्ट अंगुठियाँ, घड़ी आदि भी उतरवा दिए। ऐसी सुरक्षा जाँच पहली बार देखी थी। तो हमलोग दाखिल हुए मंदिर के अंदर. उफ़ क्या मंदिर है यार.. दिखने में कितना बड़ा और विशाल. ३२ मीटर ऊंचा, ७३ मीटर लंबा और ३९ मीटर चौड़े इस मंदिर की खासियत यह है कि यह ६००० टन गुलाबी बलुआ पत्थर से बना है. और तो और इस मंदिर के निर्माण में कही भी स्टील या सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया है. भगवान स्वामीनारायण को समर्पित यह मंदिर तीन मंजिला है. हरी मंडपम या मुख्य तल, विभूति मंडपम या उपरी तल, प्रसादी मंडपम या भूमि तल. अक्षर धाम मंदिर का पहला तल जो हरी मंडपम कहलाता है, यहीं इस सम्प्रदाय के संस्थापक भगवान स्वामीनारायण की सोने की मूर्ति विराजमान है. दोनों ओर भगवान के अनुयायी स्वामी गुनाटीनंद और स्वामी गोपालनंद की भी मूर्ति है. पुरे मंदिर में बेजोड़ नक्काशी की गयी है. मंदिर घुमने के बाद हमलोग इसके प्रदर्शनी कक्ष में गए. टिकट लेने के बाद एक्सिबिशन हाल के अंदर जाने के लिए फिर एक लम्बी लाइन का हिस्सा बने. यहां कुल पांच प्रदर्शनी हाल है, जिसमे भगवान नीलकंठ (स्वामी नारायण) के जीवनी को विभिन्न तरीके जैसे पार्श्व ध्वनि, कठपुतली नाटक, चलचित्र आदि के द्वारा दर्शाया गया है. माता जी के साथ २ घंटे बिताने के बाद निकले बाहर, माता जी को आइसक्रीम खिलाया वही यहां लगे बगीचे और पानी के फव्वारे भी देखने में बेहद आकर्षक लगते हैं. यहां शाम ७ बजे लाइट और साउंड शो भी होता है जो देखने और सुनने में काफी मनमोहक एवं आश्चर्य चकित कर देता है लेकिन समय के आभाव में नहीं देख पाए, सामने ही एक बड़ा रेस्टुरेंट दिख गया, लेकिन वहा माता जी को खाने लायक कुछ नहीं मिला तो निकल पड़े बाहर की तरफ
सडक़ से गुजरते हुए मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की कोठियां देखीं। गुजरात विधानसभा देखी और सेक्टर- ३० के एक शानदार रेस्टोरेंट में माता जी के हिसाब का लंच मिल गया तो... ग्रहण किया.. गुजरात राज्य परिष्कृत, हलके, शाकाहारी भोजन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के स्थानीय व्यंजन मीठेपन व नमकीन के मिश्रण से बनते है जो कि अन्य किसी भी भारतीय व्यंजनों के विपरीत है। गुजराती व्यंजनों की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता यह है कि ये लगभग अचूक रूप से शाकाहारी होते हैं। अहमदाबाद में आपको हर तरह का व्यंजन खाने के लिए मिल जाएगा। इसके अलावा अगर आप गुजराती खाना खाने के शौकीन है तो आपको गुजराती थाली बहुत ही सस्ते दाम ( ४०-६० रू.) में मिल जाएगी। इसके अलावा फारसन, श्रीखंड और अमारस आदि का स्वाद भी बेजोड़ है इसके लिए गोपी डायनिंग हॉल, ईलिस ब्रिज के पास जाया जा सकता है । इसके अतिरिक्त अहमदाबाद के अगाशीय रेस्तरां, एमजी हॉउस में भी इसका मजा लिया जा सकता हैं। अगर आप परम्परागत गुजराती खाने का आनन्द लेना चाहते हैं तो इसके लिए आपको १९५-२९५ रू.(एक व्यक्ति) तक देने होगें। वहीं आप अगर हुक्का और जूस का मजा भी लेना चाहते हैं तो इसके लिए आपको अपनी जेब कुछ ज्यादा खाली करनी होगी। रस्ते में हमारे वाहन के पायलट ने बताया की मल्टीप्लेक्स (फन रीपब्लिक, वाइड ऐंगल, सिटी गोल्ड, आर-वर्ल्ड आदि), ड्राइव-इन-मूवी हॉल, खेल पार्लर, बॉलिंग एली...
यह मंदिर सनातन धर्म में विश्वास रखने वाले स्वामीनरायाण संप्रदाय का मंदिर है। इस मंदिर को गुलाबी पथर से बनवाया गया था जिसमें भगवान स्वामीनरायण की मूर्ति रखी हुई है, जो इस सम्प्रदाय के संस्थापक है। मंदिर में स्वंय स्वामीनारायण की मूर्ति लगी हुई है जो पूरी तरीके से सोने से मढ़ी हुई है और यहां दोनो ओर स्वामी गुनाटीनंद और स्वामी गोपालनंद के की मूर्ति भी रखी हुई है। जब वहां पहुंचा तो देखा काफी भीड़ थी. मंदिर के अंदर कैमरा-मोबाइल से लेकर हैंड बैग कुछ भी ले जाने की मनाही थी. लाकर रूम में अपने मोबाइल और कैमरे को जमा कर अंदर जाने वाले कतार में खड़े हो गए. मेटल डिटेक्टर के पास बेल्ट अंगुठियाँ, घड़ी आदि भी उतरवा दिए। ऐसी सुरक्षा जाँच पहली बार देखी थी। तो हमलोग दाखिल हुए मंदिर के अंदर. उफ़ क्या मंदिर है यार.. दिखने में कितना बड़ा और विशाल. ३२ मीटर ऊंचा, ७३ मीटर लंबा और ३९ मीटर चौड़े इस मंदिर की खासियत यह है कि यह ६००० टन गुलाबी बलुआ पत्थर से बना है. और तो और इस मंदिर के निर्माण में कही भी स्टील या सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया है. भगवान स्वामीनारायण को समर्पित यह मंदिर तीन मंजिला है. हरी मंडपम या मुख्य तल, विभूति मंडपम या उपरी तल, प्रसादी मंडपम या भूमि तल. अक्षर धाम मंदिर का पहला तल जो हरी मंडपम कहलाता है, यहीं इस सम्प्रदाय के संस्थापक भगवान स्वामीनारायण की सोने की मूर्ति विराजमान है. दोनों ओर भगवान के अनुयायी स्वामी गुनाटीनंद और स्वामी गोपालनंद की भी मूर्ति है. पुरे मंदिर में बेजोड़ नक्काशी की गयी है. मंदिर घुमने के बाद हमलोग इसके प्रदर्शनी कक्ष में गए. टिकट लेने के बाद एक्सिबिशन हाल के अंदर जाने के लिए फिर एक लम्बी लाइन का हिस्सा बने. यहां कुल पांच प्रदर्शनी हाल है, जिसमे भगवान नीलकंठ (स्वामी नारायण) के जीवनी को विभिन्न तरीके जैसे पार्श्व ध्वनि, कठपुतली नाटक, चलचित्र आदि के द्वारा दर्शाया गया है. माता जी के साथ २ घंटे बिताने के बाद निकले बाहर, माता जी को आइसक्रीम खिलाया वही यहां लगे बगीचे और पानी के फव्वारे भी देखने में बेहद आकर्षक लगते हैं. यहां शाम ७ बजे लाइट और साउंड शो भी होता है जो देखने और सुनने में काफी मनमोहक एवं आश्चर्य चकित कर देता है लेकिन समय के आभाव में नहीं देख पाए, सामने ही एक बड़ा रेस्टुरेंट दिख गया, लेकिन वहा माता जी को खाने लायक कुछ नहीं मिला तो निकल पड़े बाहर की तरफ
सडक़ से गुजरते हुए मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की कोठियां देखीं। गुजरात विधानसभा देखी और सेक्टर- ३० के एक शानदार रेस्टोरेंट में माता जी के हिसाब का लंच मिल गया तो... ग्रहण किया.. गुजरात राज्य परिष्कृत, हलके, शाकाहारी भोजन के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के स्थानीय व्यंजन मीठेपन व नमकीन के मिश्रण से बनते है जो कि अन्य किसी भी भारतीय व्यंजनों के विपरीत है। गुजराती व्यंजनों की एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता यह है कि ये लगभग अचूक रूप से शाकाहारी होते हैं। अहमदाबाद में आपको हर तरह का व्यंजन खाने के लिए मिल जाएगा। इसके अलावा अगर आप गुजराती खाना खाने के शौकीन है तो आपको गुजराती थाली बहुत ही सस्ते दाम ( ४०-६० रू.) में मिल जाएगी। इसके अलावा फारसन, श्रीखंड और अमारस आदि का स्वाद भी बेजोड़ है इसके लिए गोपी डायनिंग हॉल, ईलिस ब्रिज के पास जाया जा सकता है । इसके अतिरिक्त अहमदाबाद के अगाशीय रेस्तरां, एमजी हॉउस में भी इसका मजा लिया जा सकता हैं। अगर आप परम्परागत गुजराती खाने का आनन्द लेना चाहते हैं तो इसके लिए आपको १९५-२९५ रू.(एक व्यक्ति) तक देने होगें। वहीं आप अगर हुक्का और जूस का मजा भी लेना चाहते हैं तो इसके लिए आपको अपनी जेब कुछ ज्यादा खाली करनी होगी। रस्ते में हमारे वाहन के पायलट ने बताया की मल्टीप्लेक्स (फन रीपब्लिक, वाइड ऐंगल, सिटी गोल्ड, आर-वर्ल्ड आदि), ड्राइव-इन-मूवी हॉल, खेल पार्लर, बॉलिंग एली...
अक्षर धाम घुमने के बाद हम पहुचे स्वामी नारायण धाम, अहमदाबाद, १८२२ में निर्मित, यह स्वामी नारायण सम्प्रदाय का पहला मंदिर है जिसे ब्रिटिश काल में स्वामी आदिनाथ के द्वारा बनवाया गया था।
इस मंदिर को बर्मी टीक की लकड़ी से बनाया गया था। इस पर की गई नक्काशी बेहद खूबसूरत है और कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख
की गई आकृतियों को यहां उकेरने की
कोशिश की गई थी और उनमें सुंदर रंग भी भरे गए थे। स्वामीनारायण ने इस मंदिर में कई मूर्तियों को स्थापित किया था, इसके अलावा उन्होने वह मूर्तियां भी
यहां लाकर स्थापित की थी, जो वह अपने पूजाघर में रखते थे। इस मंदिर में कई धर्मो का प्रदर्शन होता है, उनके भगवान यहां रखे गए है और कई उनकी मूर्तियों का भी
प्रदर्शन किया गया है।
स्वामी नारायण धाम के अंदर एक छोटी से थीम शो चलती है, मानव जीवन के उद्श्यो को अनुभूत कराती ये प्रदर्शनी बेहद चमकदार रंग और पटाखों जैसी आवाज वाले इस नेचर के शो .. अलग अलग थीम से होते हुए हम माता जी के साथ आगे जा रहे थे. कभी जंगल और फुफकारता हुआ सांप तो कभी बादल और बरसात सबसे होकर गुजर रहे थे. देखने में विल्कुल रियल वाली फीलिंग आ रही थी. उसके बाद आगे एक शीशे की भूल भुलैया है जीवन के चक्रों को अनुभूत कराती, कैसे निकला जाय इस मोह माया से , खैर हम कहा फसने वाले घूम घाम के निकल ही गए उसके आगे थ्री डी लाइट का अद्भुत नजारा...
अन्दर एक छोटा सा सिनेमा भी चलता है.. लेकिन समय की कमी के कारण हम चल दिए अपने अगले पॉइंट पर
स्वामी नारायण धाम के अंदर एक छोटी से थीम शो चलती है, मानव जीवन के उद्श्यो को अनुभूत कराती ये प्रदर्शनी बेहद चमकदार रंग और पटाखों जैसी आवाज वाले इस नेचर के शो .. अलग अलग थीम से होते हुए हम माता जी के साथ आगे जा रहे थे. कभी जंगल और फुफकारता हुआ सांप तो कभी बादल और बरसात सबसे होकर गुजर रहे थे. देखने में विल्कुल रियल वाली फीलिंग आ रही थी. उसके बाद आगे एक शीशे की भूल भुलैया है जीवन के चक्रों को अनुभूत कराती, कैसे निकला जाय इस मोह माया से , खैर हम कहा फसने वाले घूम घाम के निकल ही गए उसके आगे थ्री डी लाइट का अद्भुत नजारा...
अन्दर एक छोटा सा सिनेमा भी चलता है.. लेकिन समय की कमी के कारण हम चल दिए अपने अगले पॉइंट पर
गांधी आश्रम, अहमदाबादगांधी आश्रम साबरमती नदी के किनारे पर स्थित है और इसे साबरमती आश्रम के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना, १९१७ में
महात्मा गांधी द्वारा की गई थी। यह आश्रम, गांधी जी के दांडी मार्च के लिए विख्यात है, यही से गांधी जी ने नमक आंदोलन के लिए उठाए गए कदम दांडी मार्च की
शुरूआत की थी। यह आश्रम, गांधी जी यादगार घटनाओं का संग्रह है। गांधी जी ने इस स्थान को अपनी रचनात्मक गतिविधियों के साथ किए जाने वाले प्रयोगों को जिससे
वह आत्मनिर्भर हो सकें, के रूप चुना था। उन्होने इसी आश्रम में कपड़ा को कातना और बुनना शुरू किया था। उन्होने इसी आश्रम में खादी को बनाया और उसका प्रसार
किया। अगर पर्यटक एक गाइडेड टूर पर जाएं तो वह यहां के कई प्रमुख स्थानों जैसे - मगन निवास, उपासना मंदिर, हद्य कुंज, विनोभा - मीरा कुटीर, नंदिनी, उद्योग
मंदिर, सोमनाथ छत्रालय, टीचर्स निवास, गांधी स्मारक संग्रहालय, पेंटिग्स गैलरी, माई लाइफ ईज माय मैसेज, लाइब्रेरी और आर्चीव को भी देखें।
आर्चीव में कई पांडुलिपि, बधाई पत्र, फोटो के निगेटिव, फाइलें आदि रखी हुई है, यह सभी गांधी जी के जीवन से जुड़ी है। विनोवा - मीरा कुटीर वह स्थान है जहां आचार्य विनोभा भाबे और मीरा बेन कई बार आकर ठहरे थे, उपासना मंदिर वह स्थान है जहां आश्रम के लोग प्रार्थना किया करते थे और अन्य स्थान भी पर्यटकों को यहां आने के लिए आकर्षित करते है। यहां की हर वस्तु गांधी जी के जीवन से जुड़ी हुई है। पातंजलि योग सूत्र के ५ सिद्धांतों, सत्य, अहिंसा, ब्रहचर्य, अपरिग्रह और अस्तेय में गांधी ने युग के अनुकूल ६ नए सिद्धांत जोड़े। गांधी के यह नए सिद्धांत अस्पृश्यता निवारण, स्वाश्रय, सर्वधर्म समभाव, स्वदेशी, अभय और अस्वाद थे। इस प्रकार साबरमती आश्रम में रहने वालों के लिए इन ११ व्रतों का पालन अनिवार्य हो गया। यही ११ सिद्धांत गांधी दर्शन की पीठिका बने। साबरमती आश्रम में हमने गांधी संग्रहालय देखा। गांधी जी का घर देखा। विनोबा भावे की कुटिया देखी। साबरमती नदी के किनारे बने इस खूबसूरत आश्रम में हमने खूब फोटोग्राफी की। विजिटर्स बुक पर अपनी अनुभूति लिखी। गांधी जी से जुड़े स्थानों का भ्रमण करके हम नई ऊर्जा से भर उठे। इन स्थानों की शुचिता ने हमें सोचने समझने का नया दृष्टिकोण दिया।
साबरमती रिवर फ्रंट :पहले साबरमती नदी के किनारे गंदगी का अम्बार लगा रहता था | दोनों तरफ कई झोपड़पट्टी बनी हुई थी .. और महानगर का सारा कचरा वहाँ फेका जाता था | साबरमती नदी का पट कई तरह की गैरकानूनी गतिविधियों जैसे अवैध शराब बनाना, देह व्यापार, चोरी का सामान बेचना आदि का केन्द्र बन गया था | फिर मोदी जी ने २००५ मे साबरमती रिवर फ्रंट बनाने की घोषणा की | इसमें नदी के दोनों तरफ कंक्रीट का किनारा बनाकर और वहाँ पेड पौधे, रेस्टोरेंट, आदि बनाकर इसे खुबसूरत बनाया है फिर नदी मे एम्फिबियन बस, छोटे क्रूज शिप, तैरते होटल , वाटर स्पोर्ट आदि का प्रावधान है कब दिखेगा पता नहीं अभी तो अहमदाबाद की साबरमती के रिवरफ्रंट पर अब आसमान छूने वाली स्काई लाइन दिखना मुश्किल लग रहा है। रिवरफ्रंट विस्तार में जमीन के ऊंचे दाम डेवेलपर्स को रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट से दूर कर रहे हैं। यही वजह है कि आने वाले समय में म्युनिसिपल कॉरपोरेशन सरकारी जमीनों के दाम घटाने पर विचार भी कर सकता है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते मोदीजी ने इस रिवर फ्रंट के किनारे अमेरिका और लंदन की तर्ज पर साबरमती नदी के आसपास के विस्तार को विकसित करने का सपना देखा था। लेकिन मोदीजी का यह सपना बिखरता हुआ दिख रहा है। वजह है, रिवरफ्रंट डेवेलपमेंट अथॉरिटी ने यहां की जमीन की कीमत २ लाख रुपये प्रति स्क्वेयर मीटर रखी है। बाजार के जानकारों की मानें यह कीमत रिवर फ्रंट के मुकाबले दो गुनी है।साबरमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के नाम से इस योजना के माध्यम से नदी के तट पर अहमदाबाद की लाइफस्टाइल के साथ-साथ सांस्कृतिक पहलुओं को दर्शाने का एक प्रयास है हालांकि साबरमती को पहले से ही शहर की लाइफलाइन कहा जाता है। हाल ही में इसी प्रोजेक्ट के लिये अहमदाबाद मुनिस्पल कॉर्पोरेशन को हुडको नेशनल अवार्ड २०१२ से नवाजा गया। यही नहीं साबरमती रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री पुरस्कार भी मिल चुका है।
यह पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ कॉन्सेप्ट और डिजाइन के लिये मिला है। २००६ में इस परियोजना को नेशनल सेफ्टी काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा सेफटी अवार्ड दिया गया था। लेकिन अब साबरमती रिवर फ्रंट तो खूब चमकता है ये भी साबरमती ही है देख लीजिये सच मे ऐसा स्थान जहां बैठकर आप सुकून और प्रकृति को पाकर धन्य महसूस करेंगे
अब ४ बज चूका था, अब समय कम ही था तो शहर के रास्तो पर लौट चले होटल की तरफ..वैसे अहमदाबाद अपने दर्शकों के लिए मनोरंजन के सभी आधुनिक रूप प्रदान करता है। वाटर पार्क और गो कार्टिंग आउटलेट बच्चों और वयस्कों में बेहद लोकप्रिय हैं। दूसरी ओर काँकरिया झील हर तरह से राहत प्रदान करता है। यह साबरमती के दूसरे किनारे पर स्थित है और अहमदाबाद में सबसे पुराने मनोरंजन स्थलों में से एक है। यह १४५१ में सुल्तान कुतुबउद्दीन द्वारा बनवाया गया था और झील के केंद्र में एक ग्रीष्मकालीन महल के साथ एक द्वीप उद्यान भी है। यहाँ बच्चों और वयस्कों दोनों को लुभाने वाला एक पार्क और एक चिड़ियाघर है, जो आदर्श पिकनिक स्पॉट बन चुका है। अगर आप शराब पीने का शौक रखते हैं तो इसके लिए आपको गुजरात में एल्कोहल आज्ञापत्र लेना होगा। यह आज्ञापत्र केवल विदेशियों और भारत के अन्य राज्यों से आए यात्रियों को कुछ प्रमुख दुकानों में ही उपलब्ध हो सकता हैं। इस आज्ञापत्र की कीमत एक व्यक्ति के लिए २५० रू. है। इस शहर की जीवंतता देखने लायक है। मेहनती गुजराती मनोरंजन का कोई अवसर नहीं छोड़ते। दिन भर काम करना और शानदार तरीके से शाम गुजारना, गुजरातियों का शगल है। यही कारण है कि शाम को क्लबों और बार से लेकर मल्टीप्लैक्स और सडक़ों तक पर जगह नहीं होती। अहमदाबाद में दर्जनों ऐसे क्लब हैं, जिनकी मेंबरशिप फीस लाखों रुपए में है। कई क्लबों ने तो लाखों रुपयों की मेंबरशिप फीस लेकर वेटिंग लिस्ट जारी कर रखी है। वर्षों से इन क्लबों में किसी नए को सदस्यता नहीं मिली है अहमदाबाद तेजी से विकसित होने वाला शहर है जहां विभिन्न क्षेत्रों में जैसे - रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल, केमिकल, फार्मास्यूटिकल्स, पेट्रोलियम और आईटी इंडस्ट्री में कई परियोजनाएं हमेशा चलती रहती है। यहां कई सिटी हाउस है जैसे - आईआईएम ( इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट )- अहमदाबाद, एनआईडी ( नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन ), एनआईएफटी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी), धीरूभाई अंबानी इंस्टीट्यूट ऑफ इंर्फामेशन एंड कम्यूनिकेशन टेक्नेलॉजी और कई अन्य।अहमदाबाद और गांधीनगर घूमने के बाद हमें विश्वास हो गया कि यह शहर व्यापार के खेल में महंगा है तो ठीक ही है। लेकिन गुजरात की राजधानी गांधीनगर एक योजनाबद्ध शहर है। चौड़ी सड़कें और हरियाली भी खूब है।
देखते समझते पहुच गए होटल, माता जी थक चुकी थी तो वो आराम के मुड में थी, तो चाय ओर पनीर की पकौड़ी मगाया, रात १० बजे की ट्रेन थी तो हम भी नास्ता के पश्चात आराम के मुड से बिस्तर पकड़ लिए फिर ८ बजे चलने की तयारी.. गर्मी थी तो नहा धो कर सामान पैक किया, होटल से ही रात का खाना पैक कराके, अब हम अपने अहमदाबाद टूर के आखिरी सफ़र पर थे पहुच गए अहमदाबाद स्टेशन सोमनाथ की यात्रा पर.. ३ मई की शाम अहमदाबाद-सोमनाथ अहमदाबाद – वेरावल ट्रेन #19221 SOMNATH EXPRESS से दुरी ४३२ किलो मीटर.... पता नहीं क्या गलती कर दी मैंने ..आज तक हमारी अम्माँ आज भी हमें इस बात के लिए डांटती हैं कि तू अपने बाल हरजोत्तो की तरह क्यों रखता है, ठीक से बाल को कंघी से झाड़ के रखता तो तेरा माथा तो दिखाई देता .....
पीछे : << भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
आगे : >> सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
आर्चीव में कई पांडुलिपि, बधाई पत्र, फोटो के निगेटिव, फाइलें आदि रखी हुई है, यह सभी गांधी जी के जीवन से जुड़ी है। विनोवा - मीरा कुटीर वह स्थान है जहां आचार्य विनोभा भाबे और मीरा बेन कई बार आकर ठहरे थे, उपासना मंदिर वह स्थान है जहां आश्रम के लोग प्रार्थना किया करते थे और अन्य स्थान भी पर्यटकों को यहां आने के लिए आकर्षित करते है। यहां की हर वस्तु गांधी जी के जीवन से जुड़ी हुई है। पातंजलि योग सूत्र के ५ सिद्धांतों, सत्य, अहिंसा, ब्रहचर्य, अपरिग्रह और अस्तेय में गांधी ने युग के अनुकूल ६ नए सिद्धांत जोड़े। गांधी के यह नए सिद्धांत अस्पृश्यता निवारण, स्वाश्रय, सर्वधर्म समभाव, स्वदेशी, अभय और अस्वाद थे। इस प्रकार साबरमती आश्रम में रहने वालों के लिए इन ११ व्रतों का पालन अनिवार्य हो गया। यही ११ सिद्धांत गांधी दर्शन की पीठिका बने। साबरमती आश्रम में हमने गांधी संग्रहालय देखा। गांधी जी का घर देखा। विनोबा भावे की कुटिया देखी। साबरमती नदी के किनारे बने इस खूबसूरत आश्रम में हमने खूब फोटोग्राफी की। विजिटर्स बुक पर अपनी अनुभूति लिखी। गांधी जी से जुड़े स्थानों का भ्रमण करके हम नई ऊर्जा से भर उठे। इन स्थानों की शुचिता ने हमें सोचने समझने का नया दृष्टिकोण दिया।
साबरमती रिवर फ्रंट :पहले साबरमती नदी के किनारे गंदगी का अम्बार लगा रहता था | दोनों तरफ कई झोपड़पट्टी बनी हुई थी .. और महानगर का सारा कचरा वहाँ फेका जाता था | साबरमती नदी का पट कई तरह की गैरकानूनी गतिविधियों जैसे अवैध शराब बनाना, देह व्यापार, चोरी का सामान बेचना आदि का केन्द्र बन गया था | फिर मोदी जी ने २००५ मे साबरमती रिवर फ्रंट बनाने की घोषणा की | इसमें नदी के दोनों तरफ कंक्रीट का किनारा बनाकर और वहाँ पेड पौधे, रेस्टोरेंट, आदि बनाकर इसे खुबसूरत बनाया है फिर नदी मे एम्फिबियन बस, छोटे क्रूज शिप, तैरते होटल , वाटर स्पोर्ट आदि का प्रावधान है कब दिखेगा पता नहीं अभी तो अहमदाबाद की साबरमती के रिवरफ्रंट पर अब आसमान छूने वाली स्काई लाइन दिखना मुश्किल लग रहा है। रिवरफ्रंट विस्तार में जमीन के ऊंचे दाम डेवेलपर्स को रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट से दूर कर रहे हैं। यही वजह है कि आने वाले समय में म्युनिसिपल कॉरपोरेशन सरकारी जमीनों के दाम घटाने पर विचार भी कर सकता है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते मोदीजी ने इस रिवर फ्रंट के किनारे अमेरिका और लंदन की तर्ज पर साबरमती नदी के आसपास के विस्तार को विकसित करने का सपना देखा था। लेकिन मोदीजी का यह सपना बिखरता हुआ दिख रहा है। वजह है, रिवरफ्रंट डेवेलपमेंट अथॉरिटी ने यहां की जमीन की कीमत २ लाख रुपये प्रति स्क्वेयर मीटर रखी है। बाजार के जानकारों की मानें यह कीमत रिवर फ्रंट के मुकाबले दो गुनी है।साबरमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के नाम से इस योजना के माध्यम से नदी के तट पर अहमदाबाद की लाइफस्टाइल के साथ-साथ सांस्कृतिक पहलुओं को दर्शाने का एक प्रयास है हालांकि साबरमती को पहले से ही शहर की लाइफलाइन कहा जाता है। हाल ही में इसी प्रोजेक्ट के लिये अहमदाबाद मुनिस्पल कॉर्पोरेशन को हुडको नेशनल अवार्ड २०१२ से नवाजा गया। यही नहीं साबरमती रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री पुरस्कार भी मिल चुका है।
यह पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ कॉन्सेप्ट और डिजाइन के लिये मिला है। २००६ में इस परियोजना को नेशनल सेफ्टी काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा सेफटी अवार्ड दिया गया था। लेकिन अब साबरमती रिवर फ्रंट तो खूब चमकता है ये भी साबरमती ही है देख लीजिये सच मे ऐसा स्थान जहां बैठकर आप सुकून और प्रकृति को पाकर धन्य महसूस करेंगे
अब ४ बज चूका था, अब समय कम ही था तो शहर के रास्तो पर लौट चले होटल की तरफ..वैसे अहमदाबाद अपने दर्शकों के लिए मनोरंजन के सभी आधुनिक रूप प्रदान करता है। वाटर पार्क और गो कार्टिंग आउटलेट बच्चों और वयस्कों में बेहद लोकप्रिय हैं। दूसरी ओर काँकरिया झील हर तरह से राहत प्रदान करता है। यह साबरमती के दूसरे किनारे पर स्थित है और अहमदाबाद में सबसे पुराने मनोरंजन स्थलों में से एक है। यह १४५१ में सुल्तान कुतुबउद्दीन द्वारा बनवाया गया था और झील के केंद्र में एक ग्रीष्मकालीन महल के साथ एक द्वीप उद्यान भी है। यहाँ बच्चों और वयस्कों दोनों को लुभाने वाला एक पार्क और एक चिड़ियाघर है, जो आदर्श पिकनिक स्पॉट बन चुका है। अगर आप शराब पीने का शौक रखते हैं तो इसके लिए आपको गुजरात में एल्कोहल आज्ञापत्र लेना होगा। यह आज्ञापत्र केवल विदेशियों और भारत के अन्य राज्यों से आए यात्रियों को कुछ प्रमुख दुकानों में ही उपलब्ध हो सकता हैं। इस आज्ञापत्र की कीमत एक व्यक्ति के लिए २५० रू. है। इस शहर की जीवंतता देखने लायक है। मेहनती गुजराती मनोरंजन का कोई अवसर नहीं छोड़ते। दिन भर काम करना और शानदार तरीके से शाम गुजारना, गुजरातियों का शगल है। यही कारण है कि शाम को क्लबों और बार से लेकर मल्टीप्लैक्स और सडक़ों तक पर जगह नहीं होती। अहमदाबाद में दर्जनों ऐसे क्लब हैं, जिनकी मेंबरशिप फीस लाखों रुपए में है। कई क्लबों ने तो लाखों रुपयों की मेंबरशिप फीस लेकर वेटिंग लिस्ट जारी कर रखी है। वर्षों से इन क्लबों में किसी नए को सदस्यता नहीं मिली है अहमदाबाद तेजी से विकसित होने वाला शहर है जहां विभिन्न क्षेत्रों में जैसे - रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल, केमिकल, फार्मास्यूटिकल्स, पेट्रोलियम और आईटी इंडस्ट्री में कई परियोजनाएं हमेशा चलती रहती है। यहां कई सिटी हाउस है जैसे - आईआईएम ( इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट )- अहमदाबाद, एनआईडी ( नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन ), एनआईएफटी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी), धीरूभाई अंबानी इंस्टीट्यूट ऑफ इंर्फामेशन एंड कम्यूनिकेशन टेक्नेलॉजी और कई अन्य।अहमदाबाद और गांधीनगर घूमने के बाद हमें विश्वास हो गया कि यह शहर व्यापार के खेल में महंगा है तो ठीक ही है। लेकिन गुजरात की राजधानी गांधीनगर एक योजनाबद्ध शहर है। चौड़ी सड़कें और हरियाली भी खूब है।
देखते समझते पहुच गए होटल, माता जी थक चुकी थी तो वो आराम के मुड में थी, तो चाय ओर पनीर की पकौड़ी मगाया, रात १० बजे की ट्रेन थी तो हम भी नास्ता के पश्चात आराम के मुड से बिस्तर पकड़ लिए फिर ८ बजे चलने की तयारी.. गर्मी थी तो नहा धो कर सामान पैक किया, होटल से ही रात का खाना पैक कराके, अब हम अपने अहमदाबाद टूर के आखिरी सफ़र पर थे पहुच गए अहमदाबाद स्टेशन सोमनाथ की यात्रा पर.. ३ मई की शाम अहमदाबाद-सोमनाथ अहमदाबाद – वेरावल ट्रेन #19221 SOMNATH EXPRESS से दुरी ४३२ किलो मीटर.... पता नहीं क्या गलती कर दी मैंने ..आज तक हमारी अम्माँ आज भी हमें इस बात के लिए डांटती हैं कि तू अपने बाल हरजोत्तो की तरह क्यों रखता है, ठीक से बाल को कंघी से झाड़ के रखता तो तेरा माथा तो दिखाई देता .....
पीछे : << भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
आगे : >> सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
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