मस्ती से भरल रहेला बनारस के लोग, उहवां के किस्सा पढ़के रउओ हो जाइब मस्त!
बनारसी संस्कृति अउर जीवनशैली क जीवनी तत्व मस्ती हौ. बनारसी बिना भोजन के रहि सकयलन, लेकिन मस्ती के बिना नाही रहि सकतन. खांटी बनारसी दूसरे जगह एही के नाते असानी से टिक नाही पउतन.
बनारस में आज भले ही धर्म क बोलबाला होय, लेकिन असल में बनारस धर्म के साथ ही देश क संस्कृति अउर विद्या क राजधानी हौ. संस्कृति भी गंगा-जमुनी. मस्ती बनारसी संस्कृति अउर जीवनशैली क जीवनी तत्व हौ. बनारसी बिना भोजन के रहि सकयलन, लेकिन मस्ती के बिना नाही रहि सकतन. खांटी बनारसी दूसरे जगह एही के नाते असानी से टिक नाही पउतन. बनारस में कहावत चलयला -जवन मजा बनारस में, उ न पेरिस न फारस में. आज भी कवनो बनारसी से पूछा कि आखिर बनारस में अइसन कवन खासियत हौ कि शहर से एतनी मोहब्बत हौ त उ इहय बात कही कि दुनिया में तमाम चीज मिलि सकयला, लेकिन बनारस जइसन मस्ती अउर बनारसिन जइसन अपनत्व नाही मिलि सकत.
बनारस में एक पन्नी गुरु क किस्सा सुना. हलांकि बनारस में सब गुरु हौ. यादव, दूबे, चउबे, मिश्रा, गुप्ता, सिंह, पटेल जइसन टाइटल बनारसी कगरी लगाइके रखयलन. गुरु तखल्लुस हिया बनारसी नागरिकता क पहिचान हौ. त पन्नी गुरु एक ठे पाने के दुकानी पर खड़ा रहलन. खड़ा का, घंटा भर से मुंहे में पान घुलइले जनता जनार्दन के बनारसी में ज्ञान देत रहलन. तबय बीचे में एक अर्द्ध बनारसी टपकि पड़ल -का बात कहत हय गुरु, अमेरिका रोज चांद पर आदमी भेजत हौ अउर तू हिया दुइ घंटा से खाली मुंहे में पान घुलावत हउवा. एतनय में टन्नी गुरु क भेजा गरम होइ गयल. पच्च से मुंहे क पान थूकलन अउर ताव में जवाब देहलन -देखा चाहे चंद्रमा होय या सूरज होय, जे सारे के गरज होई उ हिया आई, टन्नी गुरु टस से मस न होइहय. समझ में आयल कि नाही.
अजगर करय न चाकरी पंछी करय न काम,
दास मलूका कह गए सबके दाता राम.
त हर बनारसी एही सिद्धांत क पालन करयला. अउर बहरी अलंग के बहार क मजा लेवय के नाम पर देवतन तक के जीभी से पानी टपकयला. बहरी अलंग उ स्वर्ग हौ, जहां जाए बदे हर बनारसी मस्त मलंग मचलायल करयला. एकर मतलब इ नाही कि बनारसी लोग साधना करय उहां जालन. अरे बहरी अलंग बनारिसन के मस्ती क अड्डा हौ, पूरी पलटन के साथ रेजगारी (बच्चा लोग) लोगन के लेइके जालन. घरे में चाहे केतनव कचकच होय, लेकिन बहरी अलंग क निश्चय खंडित नाही होइ सकत. चाहे हड़ताल होय, या राष्ट्रपति शासन, राजा मरय चाहे रानी, कवनो भी कारण से अगर दुकान या दफ्तर बंद हौ त बनारसी हर हाल में बहरी अलंग क प्रोग्राम सेट कइ लेई. जवने तरह से व्यापारिन के भीतर हमेशा नफा-नुकसान जोड़य-घटावय क झक सवार रहयला, नेतन के दिमाग में हमेशा हर बाती में राजनीति घुसेड़य क सनक सवार रहयला, ओही तरह हर खांटी बनारसी के भीतर बहरी अलंग क धुन सवार रहयला.
बहरी अलंग कवनो तीर्थस्थल या पर्यटन स्थल नाही हौ. लेकिन बनारसिन बदे इ स्थान हर स्थल से बढ़ि के हौ. बनारसी गुरु लोगन क निच्छद्दम, स्वच्छंद होइके मउज-पानी लेवय क दिव्य स्थान. बनारसी भाषा में एके माचा मारब भी कहल जाला. बहरी अलंग ओही स्थान के कहल जाला, जहां पक्का तलाब होय. तलाब में चैचक पक्का घाट बनल होय, जहां तबीयत से साफा-पानी लगावल जाइ सकय. साफा-पानी मतलब नहाना-धोना, शरीर अउर कपड़ा क साफ-सफाई. अगर तलाब न भी होय त कम से कम बढ़िया क इनारा यानी कुंआ होय. आसपास पेड़-पल्लव, बगइचा, जंगल होेंय. निपटय लायक लंबा-चउड़ा मैदान होय, जवन साफ-सुथरा भी होवय के चाही. वरना गुरु लोग ठीक ओइसय मुंह बनइहय जइसन अफीमची इमली देखि के बनावयलन. बनारसी दरअसल निपटय क अत्यंत प्र्रेमी होलन. भोजन चाहे जइसन मिलय, सूतय क जुगाड़ भले ही गड़बड़ होय, लेकिन निपटय क स्थान दिव्य होवय के चाही. साफा लगावय लायक चैरस जमीन चाही. इहय कारण हौ कि बनारसी लोग जब बनारस के बहरे जालन त निपटय-नहाये क दिव्य स्थान तजबीजयलन.
रामनगर, सारनाथ, राजा तलाब के अलावा अब विंध्याचल अउर चकिया-चंदौली तक बहरी अलंग क विस्तार होइ गयल हौ. बहरी अलंग क खास पहिनावा भी होला. बहरी अलंग क प्रेमी गुरु लोग धोती, गमच्छा, निगोटा अउर दुपट्टा क उपयोेग करयलन. धोती अउर दुपट्टा न रही तबौ चलि जाई, लेकिन गमच्छा अउर निगोटा हर हाल में चाही. जरूरी समाने में बल्टी-लोटा, डोरी, सिल-लोढ़ा, साबुन क बट्टी, तेल क शीशी अउर भांग क पैकेट हर बहरी अलंग प्रेमी अपने संघे रखयला. बहरी अलंग पहुंचतय सबसे पहिले गुरु लोग निगोटा पर आइ जालन. भांग के खूब साफ कइके बूटी तइयार कयल जाला. बूटी छनले के बाद नटई तक पानी डकारिके हाड़ी या बल्टी लेइके लोग निपटय जालन. निपटय क क्रिया एतना खास हौ कि इ शोध करय लायक हौ. घंटा-आध घंटा निपटब त साधारण बात हौ. कुछ अइसन भी बनारसी होलन जवन कई घंटा तक निपटत रहि जालन.
निपटले के बाद अब मालिश क नंबर आवयला. मालिश क दौर तबतक चलयला जबतक कि शरीर क तापमान 100 डिग्री से ऊपर न पहुंचि जाय. एकरे बाद नहान अउर फिर डंड बैइठक. अगर गदा-जोड़ी मिलि गयल त ओहू पर रियाज होई. हर बनारसी अपने परिवार के लेइके साल में कम से कम दुइ दइया बहरी अलंग बदे सारनाथ अउर रामनगर जरूर जाला. गरमी में सारनाथ अउर जाड़ा में रामनगर. इ दूनो स्थान क मेला देखतय बनयला. लेकिन परिवार के संघे रहले के बाद भी गुरु लोगन के कार्यक्रम में कवनो कंजूसी नाही होत. ओही तरह से भांग छनयला, साफा लगयला अउर नहान-निपटान होला. इ कुल काम से फुर्सत भइले के बाद अहरा पर बनावल बाटी, चूरमा, दाल-भात अउर चोखा, तरकारी भिड़ावल जाला. बहरी अलंग क ही प्रभाव हौ कि बनारस में अक्सर दंगल होलन. नागपंचमी देश में चाहे जइसे मनावल जात होय, लेकिन बनारस में छोटे गुरु-बड़े गुरु के रूप में पूजा होला, अउर पूरे बनारस भर में दंगल होला. बनारस में दंगल खाली पट्ठन के बीच नाही होत, जानवरन के बीच भी होला. सड़क पर सांड़ गरजयलन. भइस, भेड़ा अउर पक्षिन क दंगल जाड़ा के मौसम में हर साल होला. बुलबुल, तीतर, बटेर क भी युद्ध होला. मकर संक्रांति पर खासतौर से पक्षिन क दंगल होला. इ कुल दंगल खाली खेल तक सीमित नाही होतन, बल्कि बाजी भी लगयला. अपने-अपने पक्षिन के बनारसी लोग पूरे साल दंगल बदे ट्रेनिंग देलन, तइयार करयलन. कजरी, बिरहा, अउर शायरी क दंगल गरमी के मौसम में होलन.
बहरी अलंग क असली अर्थ विश्वकोश में चाहे जवन भी होय, लेकिन बहरी अलंग के मट्टी में उ बहार हौ, जवन न त बंबई के चैपाटी में हौ, न कनाट प्लेस के नफासत में हौ. बनारसी लोगन के जेतना गर्व बहरी अलंग पर हौ, ओतना अपने नगर पर नाही. बनारस अउर बनारसी लोगन क असली रूप बहरी अलंग में ही देखल जाइ सकयला. बिना बहरी अलंग देखले इ समझब कठिन हौ कि बनारसी लोगन के अपने बनारस से एतना मोहब्बत काहे हौ. बहरी अलंग खाली दिल बहलाव क क्षेत्र नाही हयन, बल्कि अध्यात्म अउर साधना क क्षेत्र भी हयन. बनारस के तीनों लोक से न्यारी नगरी क सर्टिफिकेट देवावय में बहरी अलंग क महत्वपूर्ण योगदान हौ. मृत्युलोक के मारा गोली, स्वर्ग तक में बनारस के बहरी अलंग क मिसाल नाही हौ. लेकिन सरकार आधुनिकता अउर नियोजन के चक्कर में कई ठे बहरी स्थानन के भीतरी यानी शहरी रंग में रंगले जात हौ, जवन बनारसी लोगन बदे बड़ी समस्या बनल जात हौ.
Sunday, September 27, 2020
मस्ती से भरल रहीला बनारस के लोग, उहवें के किस्सा पढ़े रउओ हो जाइब मस्त!
Tuesday, September 1, 2020
सांडा...मर्दाना कमज़ोरी के नाम पर जान गंवाने वाला
#सांडा...मर्दाना कमज़ोरी के नाम पर जान गंवाने वाला
मासूम जानवर
पाकिस्तान से लेकर राजस्थान के गरम रेगिस्तानी इलाक़ों में रेत पर रेंगता ये मासूम सा जानवर सांडा कहलाता है.शिकारी और परिंदों से बचते इसके दिन गुज़रते हैं लेकिन ये ख़ुद को इंसान से नहीं बचा पता. इसका वैज्ञानिक नाम युरोमेस्टिक हार्डवीकी है. छिपकली जैसा दिखने वाला ये सरीसृप परिवार का प्राणी है. शक़्ल से भले शक्ति कपूर जैसा डरावना हो लेकिन होता है सीधा आलोक नाथ जैसा. इसी सीधेपन का फायदा उठा कर शिकारी इनको धर लेते हैं.दूसरे हर जानवर की तरह इसमें भी चर्बी पाई जाती है इसकी चर्बी पर इंसान की ख़ास नज़र है. इसलिए ये आपको लाहौर की गलियों, चौराहों में सड़क किनारे या फिर ठेलों, दुकानों पर बैठा मिलेगा. मगर सांडा वहां ख़ुद से नहीं आता है. रेगिस्तान से पकड़ कर लाया जाता है.यहां ये चल फिर नहीं सकता क्योंकि इसकी कमर की हड्डी तोड़ दी जाती है. इसके बाद इसकी ज़िंदगी के दिन गिने चुने होते हैं.फ़ुटपाथों पर मजमा लगाए या फिर बड़ी-बड़ी दुकानों पर 'सांडे के शुद्ध तेल' की शीशियां सजाए सांडे के उन शिकारियों को ग्राहक मिलने की देर है, वो चाकू की मदद से इसका नरम पेट चीरते हैं और अंदर मौजूद चर्बी निकाल लेते हैं.ये सब कुछ ग्राहक की नज़रों के सामने किया जाता है. ताकि उसको तसल्ली हो की ये 'असली तेल' है.
ये शाकाहारी सरीसृप है ये कभी भी कीटों का शिकार नही करता है। ये बिना पानी पीये कई बर्षो तक जीवित रह
सकता है ये पानी पीता है तो सिर्फ बरसाती ताज़ा पानी...बारिश आने से पहले अपने बिलों को ढक देता है जिससे हम ग्रामीण लोग बारिश होने की संभावना व्यक्त करते है...यदि इसकी गर्दन को काट भी दिया जाता है तो भी ये कुछ घंटों तक जीवित रहता है...ये सांडा नर लगभग 2 फ़ुट तक होता है और मादा इससे कम होती है...ये अपने मज़बूत पैर से किसी को नुक़सान नही पहुँचाते बल्कि ये बिलों को खोदने में काम लेते है...इनके पास तीन दाँत होते है एक ऊपर और दो नीचे...ये अप्रेल माह के आसपास संभोग करते है और मादा 10–15 तक अंडे देती है इनमें से आधे ये कम ही बच पाते है। इसके अन्दर दोनों पैरों के बीच में दो वसा की थैलियॉ होती है जिसके इसके पेट में चीरा लगाकर निकाला जाता है इस थैली की चर्बी को गरम कर दो तीन बूंद तेल निकल आता है बस. इतनी सी बात के लिए बेचारे को जान गंवानी पड़ती है. अब सुनो असली बात. यह लिंग के सेंटीनेंस के लिए दवाई है या नहीं है इसका तो पता नही लेकिन इसमें होता है पॉली अन्सेच्युरेटेड फैटी एसिड, जोड़ो और मांसपेशियों के दर्द में राहत देता है ये. तेल का उपयोग माँसपेशियों और नब्ज में रक्त संचार का काम करता है क्योकि ये बहुत ही गर्म तेल होता है लेकिन ज्यादातर इसका उपयोग लोग मर्दाना कमजोरी को दूर करने में करते है । बहुत सारे लोग सांडे को खा लेते है क्योकि इससे भी मर्दाना ताक़त और जोश का संचार होना एक कारण मानते है। बात करे इसके काम करने की तरीक़े की तो आप लोग अक्सर देखते हो पाकिस्तान के बाजारो में इन मासूम से सरीसृप की ढ़ेरो हकीमों के दुकानो पर अधमरे स्थिति में मिल जाते है हालाँकि भारत और पाकिस्तान दोनों में इसका मारना और तेल निकालना ग़ैर क़ानून है।
अब बात करते मर्दाना ताक़त की तो ये बात कुछ सच साबित होती है लेकिन जितना लोग सोचकर इसको ख़रीदते है उनके मुक़ाबले बहुत ही कम है...ये मालिस करने से रक्त संचार तो करता है लेकिन इसके साइंड इफ़ेक्ट भी हो सकते है क्योकि इसके मालिस से लिंग में अतिरिक्त माँस बनने लगता जो आपको परेशानी में डाल सकता है और मूत्र तक बंद कर सकता है...ये ना ही कोई लिंग वृद्धि करता है ना ही ताक़त उत्पन्न करता है क्योकि ये दोनों कार्य हार्मोन के कारण होते है न कि तेल के कारण। ये राजस्थान के इलाक़ों और कुछ हरियाणा पंजाब के इलाक़ों में भी पाया जाता है...इनको पकड़ना बड़ा आसान होता है क्योकि ये अपने बिलों को ताज़ा मिट्टी से ढककर रखते जिससे शिकारी लोग इन्हें आराम से खोज लेते है...फिर शिकारी लोग बिलों में धुआँ करते है जिससे इस मासूम को बाहर आना पड़ता है और शिकार जाल बिछाकर रखते है इनके बाहर आते ही इसकी कमर तोड़ देते है जिसके बाद ये भाग तो नही पता लेकिन कई महीनों तक ज़िंदा रहता है बाद में जैसे जैसे तेल लेने वाले आते है उनके सामने मारकर ताज़ा वसा का तेल निकालकर देते है। तेल को निकालने के लिए पहले साँडे के पेट पर चीरा लगाकर उसकी अन्दर की वसा निकाली दी जाती है ...ये वसा एक सांडे के अन्दर से दो थैलियाँ निकलती है फिर इनको निकालकर गर्म करने पर वसा से तेल निकलता है...एक सांडे से लगभग 1–5 ml तक प्राप्त होता है यानि 4–5 बूँद यदि आपको 100 ml तक चाहिए तो 50–60 सांडे मारने होगे...जो लोग बोतल भर कर देते है 3–4 सांडे मारकर वो सही नही है उसमें कुछ मिलाया जाता है...कुछ साँड़ों की वसा ज़्यादा होती है तो ज़्यादा भी मिल सकता है।
अन्ततः अगर आप सांडे के तेल में निकलने वाली चर्बी की मेडिकल जांच करें तो आपको पता चलेगा कि ये किसी भी जीव में पाई जाने वाली दूसरी चर्बी की तरह है और इसमें कोई ख़ास बात नहीं है'.सच तो यह है तेल में भी कोई ऐसी ख़ासियत नहीं है जो किसी भी तरह की यौन कमज़ोरी का इलाज कर सके. सांडे को बिना वजह मार दिया जाता है और ले दे कर ये सब पैसे का खेल है'.लोग इसको आलू की सब्जी की तरह खुल कर बेंच रहे हैं जबकि सांडा मारना अब गैरकानूनी है. इसको विलुप्तप्राय प्रजाति घोषित कर दिया गया है. अगली बार मर्द बनने के लिए किसी मजबूर का निकाला तेल लगाने की बजाय अमिताभ की फिल्म देख लीजिए और गाना गाइये- मैं हूं मर्द तांगे वाला. मैं हूँ मर्द तांगे वाला।।।
Dharmendra Kumar Singh जी पोस्ट
Tuesday, October 15, 2019
MUKTINATH :NEPAL : यात्रा मुक्तिनाथ की
Monday, June 24, 2019
Pashupatinath Temple,-पशुपतिनाथ मंदिर, काठमांडू नेपाल – दर्शन मान्यताएं और परम्पराएं
भोलेनाथ, महादेव, रुद्र, पचमुखी प्रभु-पशुपति आदि नाम को समर्पित स्थान है नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर यह ऐसा ही एक स्थान है, जिसके विषय में यह माना जाता है कि आज भी इसमें शिव की मौजूदगी है। कई धार्मिक स्थलों के साथ अद्भुत मान्यताएं और परम्पराएं जुड़ी होती हैं, जो उन्हें ख़ास बनाती हैं। नेपाल की राजधानी काठमाण्डू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर भी ऐसा ही एक धार्मिक स्थल है जिसके साथ कई अनोखी बातें, मान्यताएं और परम्पराएं जुड़ी हैं।
Monday, January 14, 2019
Kumbh Mela 2019: आइये कुंभ चले
शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं. पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था. पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था. साधुओं के जत्थे में पीर और तद्वीर होते थे. अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ. अखाड़ा साधुओं का वह दल है जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है. कुछ विद्वानों का मानना है कि अलख शब्द से ही अखाड़ा शब्द बना है. कुछ मानते हैं कि अक्खड़ से या आश्रम से.
कुंभ मेला 2019: ये हैं कुंभ के 14 अखाड़े, जानें क्या है महत्व🙏🏻🚩👇🏻👇🏻
🚩कुंभ का मेला विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन में से एक है. लाखों की संख्या में लोग इस मेले में शामिल होते हैं. कुंभ का मेला हर 12 वर्षों के अंतराल होता है. लेकिन कुंभ का पर्व हर बार सिर्फ 4 पवित्र नदियों में से किसी एक नदी के तट पर ही आयोजित किया जाता है. जिनमें हरिद्वार में गंगा, उज्जैन की शिप्रा, नासिक की गोदावरी और इलाहाबाद में जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है।।🚩
क्या होते हैं अखाड़े👇🏻👇🏻❓❓
🌹कुंभ में अखाड़ों का विशेष महत्व होता है. अखाड़े शब्द की शुरुआत मुगलकाल के दौर से हुई. अखाड़ा साधुओं का वह दल होता है, जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत रहता है।।
क्या होती है पेशवाई❓❓🚩🙏🏻👇🏻👇🏻👇🏻
✍जब कुंभ में नाचते-गाते धूमधाम से अखाड़े जाते हैं, तो उसे पेशवाई कहते हैं. कहा जाता है कि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में 13 अखाड़े बनाए थे. तब से वही अखाड़े बने हुए थे. लेकिन इस बार एक और अखाड़ा जुड़ गया है, जिस कारण इस बार कुंभ में 14 अखाड़ों की पेशवाई देखने की मिलेगी।।🚩👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
आइए जानें इन 14 अखाड़ों के बारे में🚩🙏🏻👇🏻👇🏻👇🏻
Ⓜ1. अटल अखाड़ा -(शैव )👉🏻 इनके ईष्ट देव भगवान गणेश हैं. इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षा ले सकते हैं और कोई अन्य इस अखाड़े में नहीं आ सकता है. यह सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक माना जाता है।।🚩
Ⓜ2. अवाहन अखाड़ा-(शैव )👉🏻 इनके ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन दोनो हैं. इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है।।🚩
Ⓜ3. निरंजनी अखाड़ा-(शैव )👉🏻 यह अखाड़ा सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा है. इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्र्चर हैं. इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिक हैं. इस अखाड़े की स्थापना 826 ईसवी में हुई थी।।🚩
Ⓜ4. पंचाग्नि अखाड़ा -(शैव )👉🏻 इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते है. इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है.🚩
Ⓜ5. महानिर्वाण अखाड़ा-(शैव )👉🏻 महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्मा इसी अखाड़े के पास है. इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं. इनकी स्थापना 671 ईसवी में हुई थी।।🚩
Ⓜ6. आनंद अखाड़ा-(शैव ) 👉🏻 इस अखाड़े की स्थापना 855 ईसवी में हुई थी. इस अखाड़े के आचार्य का पद ही प्रमुख होता है. इसका केंद्र वाराणसी है।।🚩
Ⓜ7. निर्मोही अखाड़ा👉🏻- वैष्णव संप्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में से इसी में सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल हैं. इस अखाड़े की स्थापना रामानंदाचार्य ने 1720 में की थी. इस अखाड़े के मंदिर उत्तर प्रदेश, मध्या प्रदेश, गुजरात, बिहार, राजस्थान आदि जगहों पर स्थित हैं।।🚩
Ⓜ8. बड़ा उदासीन पंचायती अखाड़ा👉🏻 इस अखाड़े की शुरुआत 1910 में हुई थी. इस अखाड़े के संस्थापक श्रीचंद्रआचार्य उदासीन हैं. इस अखाड़े उद्देश्य सेवा करना है🚩.
Ⓜ9. नया उदासीन अखाड़ा👉🏻- इस अखाड़े की शुरुआत 1710 में हुई थी. मान्यता है कि इस अखाड़े को बड़ा उदासीन अखाड़े के साधुओं ने बनाया था.🚩
Ⓜ10. निर्मल अखाड़ा-👉🏻 इस अखाड़े की स्थापना श्रीदुर्गासिंह महाराज ने की थी, जिनके ईष्टदेव पुस्तक श्री गुरुग्रंथ साहिब हैं. कहा जाता है कि इस अखाड़े के लोगों को दूसरे अखाड़ों की तरह धूम्रपान करने की इजाजत नहीं है।।🚩
Ⓜ11. वैष्णव अखाड़ा👉🏻- इस अखाड़े की स्थापना मध्यमुरारी द्वारा की गई थी.🚩
Ⓜ12. नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा👉🏻 इस अखाड़े की स्थापना 866 ईसवी में हुई, जिसके संस्थापक पीर शिवनाथ जी हैं.🚩
Ⓜ13. जूना अखाड़ा👉🏻 इस अखाड़े के ईष्टदेव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं. हरिद्वार में इस अखाड़े का आश्रम है. इस अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज हैं🚩
Ⓜ14. किन्नर अखाड़ा-👉🏻 अभी तक कुंभ में 13 अखाड़ों की पेशवाई होती थी, लेकिन इस बार कुंभ में किन्नर अखाड़ा भी शामिल हो चुका है. इस अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी हैं।।🚩
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#रजुवाबनारस
अभ्युत्थानम् अधर्मस्या, तदात्मानं सृजाम्यहम्
Monday, November 5, 2018
फेसबुक के बारे में रोचक तथ्य
1. फेसबुक का लाइक बटन :
फेसबुक के 'लाइक' बटन का नाम पहले 'ऑसम' (Awesome) रखने का डिसीजन लिया गया था
2.फेसबुक केवल 70 भाषाओं में उपलब्ध है :
फेसबुक सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट है। लेकिन यह अब तक केवल 70 भाषाओं में उपलब्ध है।
3. क्यों है फेसबुक का रंग नीला :
फेसबुक के नीले रंग में रंगे होने के पीछे सीधा सा कारण है। इसके फाउंडर मार्क जुकरबर्ग का कलर ब्लाइंड होना। न्यूयॉर्कर को दिए अपने एक इंटरव्यू में मार्क ने कहा की उन्हें लाल और हरा रंग दिखाई नहीं देता है। इसलिए नीला रंग उनके लिए सबसे आसान रंग है। फेसबुक शुरू से ही एक ही रंग में रंगा हुआ है। मार्के इसे हमेशा से जितना हो सके उतना सादा बनाना चाहते थे। यही वजह है कि उन्होंने फेसबुक को नीले रंग में रंग दिया।
4. फेसबुक पर ब्लॉक नहीं हो सकते जुकरबर्ग-
फेसबुक की प्राइवेसी सेटिंग्स के कारण हर यूजर को ब्लॉक करने की सुविधा दी गई है, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि आप चाहें तो भी फेसबुक से मार्क जुकरबर्ग को ब्लॉक नहीं कर सकते हैं।
5. आइसलैंड का संविधान लिखा गया था फेसबुक की मदद से-
1944 में डेनमार्क से अलग होने के बाद आइसलैंड ने अपना संविधान कभी नहीं बनाया। यहां हमेशा से डेनमार्क के संविधान को ही माना जाता था। आइसलैंड ने 2011 में अपना संविधान दोबारा लिखने का फैसला लिया। इसके बाद 25 लोगों की एक काउंसिल बनाई गई जिसने फेसबुक का सहारा लेकर लोगों से सुझाव मांगे। इस काउंसिल ने अपना ड्राफ्ट जिसमें नियमों को लिखा गया था उसे फेसबुक पर पोस्ट किया। इस ड्राफ्ट पर लोगों ने अपने कमेंट्स किए लोगों के कमेंट्स और सुझावों के आधार पर ही आइसलैंड का संविधान बना जिसे बाद में फेसबुक पर पोस्ट भी किया गया।
6. लोकेशन के हिसाब से बदल जाता है फेसबुक का ग्लोब-
शायद आपको ना पता हो, लेकिन फेसबुक ग्लोब (नोटिफिकेशन टैब) यूजर्स की लोकेशन के हिसाब से बदल जाती है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी यूजर ने भारत से लॉगइन किया है तो फेसबुक नोटिफिकेशन ग्लोब एशिया का नक्शा दिखाएगा और उसी यूजर ने अगर अमेरिका में जाकर अपना अकाउंट खोला तो ग्लोब नॉर्थ अमेरिका और साउथ अमेरिका का नक्शा दिखाएगा।
7. फेसबुक यूजर कि मृत्यु के बाद क्या होता है उसके अकाउंट का ?
इस वक़्त फेसबुक पर 30 मिलियन मरे हुए लोग है ! यदि किसी फेसबुक यूजर कि मृत्यु हो जाति है तो क्या उसकी फेसबुक प्रोफाइल ऐसे ही चलती रहती है ? जी नहीं ! यदि हमारी जान पहचान में किसी कि मृत्यु हो जाति है तो हम फेसबुक को रिपोर्ट कर उस प्रोफाइल को फेसबुक पर एक स्मारक का रूप दिलवा सकते है !
8. 2011 में तलाक का सबसे बड़ा कारण बनी थी फेसबुक-
2011 में डायवोर्स ऑनलाइन के आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका में फाइल किए गए सभी डायवोर्स में से एक तिहाई में तलाक लेने का कारण किसी ना किसी वजह से फेसबुक था। डायवोर्स ऑनलाइन के मुताबिक इस बात का दावा करने के लिए लोगों द्वारा अपने पार्टनर के चैट मैसेज, भद्दे कमेंट्स और फेसबुक फ्रेंड्स लिस्ट सबूत के तौर पर पेश किए गए। सोशल मीडिया के आने से रिश्तों में बदलाव देखने को मिला है।
9.फेसबुक के इंडियन FACTS
सबसे ज्यादा फेक अकाउंट्स बनाते हैं भारतीय-
फेसबुक की तरफ से नवंबर में एक रिपोर्ट जारी की गई थी। इस रिपोर्ट में कंपनी का कहना था कि 14.3 करोड़ अकाउंट्स फेक होते हैं। इनमें से सबसे ज्यादा फेक अकाउंट भारत से बनाए जाते हैं।
फेसबुक पर पहली भारतीय-
फेसबुक से जुड़ने वाली पहली भारतीय मूल की महिला थी शीला तंद्राशेखरा क्रिश्नन। इनका यूजर नंबर फेसबुक पर 37 है।
फेसबुक की पहली महिला इंजीनियर
फेसबुक पर काम करने वाली पहली महिला इंजीनियर है रुचि सांघवी (RUCHI SANGHVI) रुचि ने ही फेसबुक पर न्यूज फीड का आइडिया दिया था। फेसबुक का न्यूज फीड सबसे विवादास्पद होने के साथ साथ फेसबुक का सबसे लोकप्रिय फीचर भी रहा।
शायद आपको यह जानकर हैरानी हो लेकिन Facebook का एडिक्शन एक बीमारी का रूप लेता जा रहा है। दुनियाभर में हर उम्र के लोग Facebook एडिक्शन डिसऑर्डर यानी Facebook की लत से जूझ रहे हैं। इस बीमारी का संक्षिप्त नाम FAD है। इस वक्त दुनिया में लगभग 35 करोड़ लोग FAD से ग्रसित हैं।
यदि फेसबुक एक देश होता तो दुनिया में यह पांचवां सबसे बड़ा देश होता जिसका नंबर चीन , भारत, अमेरिका, और इंडोनेशिया के बाद आता।
दोस्तो कैसी लगी हमारी पोस्ट कमेंट करके जरुर बताइए।
धन्यवाद।
Sunday, July 8, 2018
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यु तो लिखने पड़ने का सुख नेपाल में ही ले पाया क्यों की जब तक भारत में रहे नौकरी के लिए ही संघर्ष करते रहे, बचपन से थे लंठ बनारसी तो हर जगह वही अंदाज.. २००४ से सोसल साइड के आने के बाद लगा की बनारस के लोग कुछ भी नहीं जानते क्यों की वो सिफ शिवत्व में ही रहते है .
गूगल बाबा के अनुसार “नागरिक स्तर पर या व्यक्तिगत स्तर पर कोई विशेष प्रकार का सिद्धान्त एवं व्यवहार राजनीति (पॉलिटिक्स) कहलाती है। अधिक संकीर्ण रूप से कहें तो शासन में पद प्राप्त करना तथा सरकारी पद का उपयोग करना राजनीति है। राजनीति में बहुत से रास्ते अपनाये जाते हैं जैसे- राजनीतिक विचारों को आगे बढ़ाना, कानून बनाना, विरोधियों के विरुद्ध युद्ध आदि शक्तियों का प्रयोग करना। राजनीति बहुत से स्तरों पर हो सकती है- गाँव की परम्परागत राजनीति से लेकर, स्थानीय सरकार, सम्प्रभुत्वपूर्ण राज्य या अन्तराष्ट्रीय स्तर पर। “
Thursday, April 27, 2017
मदर्स डे (मातृ दिवस)
Sunday, April 23, 2017
तो यह काशी एक असाधारण यंत्र है
प्रसून जोशी: सद्गुरु, युगों पहले से लोग बनारस के बारे में बात करते आ रहे हैं। इस शहर में आखिर ऐसा क्या खास है? कहा जाता है कि कुछ यंत्र और खास विचार को ध्यान में रखते हुए इस शहर का डिजाइन तैयार किया गया था। क्या आप बता सकते हैं कि इस शहर का निर्माण कैसे हुआ और इसका महत्व क्या है?
सद्गुरु: यंत्र का मतलब है एक मशीन। मूल रूप से आज हम जो भी हैं – अपनी मौजूदा स्थिति को बेहतर बनाने के लिए ही हम कोई मशीन बनाते हैं या अब तक हमने इसी मकसद से मशीन बनाए बनाये हैं।
Thursday, April 13, 2017
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Saturday, March 25, 2017
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Thursday, December 1, 2016
भारत में करंसी का इतिहास I History Of Indian Rupee In Hindi
😊 गौर से पढिए :
भारतीय मुद्रा (रुपया ₹) से जुड़े 31 ग़ज़ब रोचक तथ्य :-
1. भारत में करंसी का इतिहास2500 साल पुराना हैं। इसकी शुरूआत एक राजा द्वारा की गई थी।
2. अगर आपके पास आधे से ज्यादा (51 फीसदी) फटा हुआ नोट है तो भी आप बैंक में जाकर उसे बदल सकते हैं।
3. बात सन् 1917 की हैं, जब 1₹ रुपया 13$ डाॅलर के बराबर हुआ करता था। फिर 1947 में भारत आजाद हुआ, 1₹ = 1$ कर दिया गया. फिर धीरे-धीरे भारत पर कर्ज बढ़ने लगा तो इंदिरा गांधी ने कर्ज चुकाने के लिए रूपये की कीमत कम करने का फैसला लिया उसके बाद आज तक रूपये की कीमत घटती आ रही हैं।
4. अगर अंग्रेजों का बस चलता तो आज भारत की करंसी पाउंड होती. लेकिन रुपए की मजबूती के कारण ऐसा संभव नही हुआ।
5. इस समय भारत में 400 करोड़ रूपए के नकली नोट हैं।
6. सुरक्षा कारणों की वजह से आपको नोट के सीरियल नंबर में I, J, O, X, Y, Z अक्षर नही मिलेंगे।
7. हर भारतीय नोट पर किसी न किसी चीज की फोटो छपी होती हैं जैसे- 20 रुपए के नोट पर अंडमान आइलैंड की तस्वीर है। वहीं, 10 रुपए के नोट पर हाथी, गैंडा और शेर छपा हुआ है, जबकि 100 रुपए के नोट पर पहाड़ और बादल की तस्वीर है। इसके अलावा 500 रुपए के नोट पर आजादी के आंदोलन से जुड़ी 11 मूर्ति की तस्वीर छपी हैं।
8. भारतीय नोट पर उसकी कीमत 15 भाषाओंमें लिखी जाती हैं।
9. 1₹ में 100 पैसे होगे, ये बात सन् 1957 में लागू की गई थी। पहले इसे 16 आने में बाँटा जाता था।
10. RBI, ने जनवरी 1938 में पहली बार 5₹ की पेपर करंसी छापी थी. जिस पर किंग जार्ज-6 का चित्र था। इसी साल 10,000₹ का नोट भी छापा गया था लेकिन 1978 में इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया।
11. आजादी के बाद पाकिस्तानने तब तक भारतीय मुद्रा का प्रयोग किया जब तक उन्होनें काम चलाने लायक नोट न छाप लिए।
12. भारतीय नोट किसी आम कागज के नही, बल्कि काॅटन के बने होते हैं। ये इतने मजबूत होते हैं कि आप नए नोट के दोनो सिरों को पकड़कर उसे फाड़ नही सकते।
13. एक समय ऐसा था, जब बांग्लादेश ब्लेड बनाने के लिए भारत से 5 रूपए के सिक्के मंगाया करता था. 5 रूपए के एक सिक्के से 6 ब्लेड बनते थे. 1 ब्लेड की कीमत 2 रूपए होती थी तो ब्लेड बनाने वाले को अच्छा फायदा होता था. इसे देखते हुए भारत सरकार ने सिक्का बनाने वाला मेटल ही बदल दिया।
14. आजादी के बाद सिक्के तांबे के बनते थे। उसके बाद 1964 में एल्युमिनियम के और 1988 में स्टेनलेस स्टील के बनने शुरू हुए।
15. भारतीय नोट पर महात्मा गांधीकी जो फोटो छपती हैं वह तब खीँची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे। यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी। इससे पहले महात्मा गांधी की जगह अशोक स्तंभ छापा जाता था।
16. भारत के 500 और 1,000 रूपये के नोट नेपालमें नही चलते।
17. 500₹ का पहला नोट 1987 में और 1,000₹ पहला नोट सन् 2000 में बनाया गया था।
18. भारत में 75, 100 और 1,000₹ के भी सिक्के छप चुके हैं।
19. 1₹ का नोट भारत सरकार द्वारा और 2 से 1,000₹ तक के नोट RBI द्वारा जारी किये जाते हैं.
20. एक समय पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 0₹ का नोट 5thpillar नाम की गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी किए गए थे।
21. 10₹ के सिक्के को बनाने में 6.10₹ की लागत आती हैं.
22. नोटो पर सीरियल नंबर इसलिए डाला जाता हैं ताकि आरबीआई(RBI) को पता चलता रहे कि इस समय मार्केट में कितनी करंसी हैं।
23. रूपया भारत के अलावा इंडोनेशिया, मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की भी करंसी हैं।
24. According to RBI, भारत हर साल 2,000 करोड़ करंसी नोट छापता हैं।
25. कम्प्यूटर पर ₹ टाइप करने के लिए ‘Ctrl+Shift+$’ के बटन को एक साथ दबावें.
26. ₹ के इस चिन्ह को 2010 में उदय कुमार ने बनाया था। इसके लिए इनको 2.5 लाख रूपयें का इनाम भी मिला था।
27. क्या RBI जितना मर्जी चाहे उतनी कीमत के नोट छाप सकती हैं ?
ऐसा नही हैं, कि RBI जितनी मर्जी चाहे उतनी कीमत के नोट छाप सकती हैं, बल्कि वह सिर्फ 10,000₹ तक के नोट छाप सकती हैं। अगर इससे ज्यादा कीमत के नोट छापने हैं तो उसको रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 में बदलाव करना होगा।
28. जब हमारे पास मशीन हैं तो हम अनगणित नोट क्यों नही छाप सकते ?
हम कितने नोट छाप सकते हैं इसका निर्धारण मुद्रा स्फीति, जीडीपी ग्रोथ, बैंक नोट्स के रिप्लेसमेंट और रिजर्व बैंक के स्टॉक के आधार पर किया जाता है।
29. हर सिक्के पर सन् के नीचे एक खास निशान बना होता हैं आप उस निशान को देखकर पता लगा सकते हैं कि ये सिक्का कहाँ बना हैं.
*.मुंबई – हीरा [◆]
*.नोएडा – डाॅट [.]
*.हैदराबाद – सितारा [★]
*.कोलकाता – कोई निशान नहीं.
30. जानिए, एक नोट कितने रूपयें में छपता हैं।
*.1₹ = 1.14₹
*.10₹ = 0.66₹
*.20₹ = 0.94₹
*.50₹ = 1.63₹
*.100₹ = 1.20₹
*.500₹ = 2.45₹
*.1,000₹ = 2.67₹
31. रूपया, डाॅलर के मुकाबले बेशक कमजोर हैं लेकिन फिर भी कुछ देश ऐसे हैं, जिनकी करंसी के आगे रूपया काफी बड़ा हैं आप कम पैसों में इन देशों में घूमने का लुत्फ उठा सकते हैं.
*.नेपाल (1₹ = 1.60 नेपाली रुपया)
*.आइसलैंड (1₹ = 1.94 क्रोन)
*.श्रीलंका (1₹ = 2.10 श्रीलंकाई रुपया)
*.हंगरी (1₹ = 4.27 फोरिंट)
*.कंबोडिया (1₹ = 62.34 रियाल)
*.पराग्वे (1₹ = 84.73 गुआरनी)
*.इंडोनेशिया (1₹ = 222.58 इंडोनेशियन रूपैया)
*.बेलारूस (1₹ = 267.97 बेलारूसी रुबल)
*.वियतनाम (1₹ = 340.39 वियतनामी डॉन्ग).
भारतीय मुद्रा प्रणाली का संशिप्त विवरण
.
OLD INDIAN CURRENCY SYSTEM..
Phootie Cowrie to Cowrie
Cowrie to Damri
Damri to Dhela
Dhela to Pie
Pie to to Paisa
Paisa to Rupya
256 Damri = 192 Pie = 128 Dhela = 64 Paisa (old) = 16 Anna = 1 Rupya
Now u know how some of the indian sayings originated..
ek 'phooti cowrie' nahin doonga...
'dhele' ka kaam nahin karti hamari bahu...
chamdi jaye par 'damdi' na jaye...
'pie pie' ka hisaab rakhna...
.
कैसा लगा आपको ?
👌👌 ~ 👌👌
Friday, July 8, 2016
चेन्नई दर्शन
सामान ले बाहर निकले यात्रियों के पीछे ही.. मुख्य सड़क पर आते ही एक ऑटो वाले से पूछा.. आसपासकोई अच्छा होटल.... ऑटो वाले ने पूछा बजट... मैंने १०००-१२०० रुपये बोला AC रूम के लिए... उसने सामान रख ऑटो में बैठा कर पास ही एक होटल में पंहुचा दिया... होटल कुछ पुराने ढंग का था लेकिन करना क्या था.... होटल में एंट्री कर पहुच गए रूम में... चाय मगा कर पिलाया माता श्री को... फिर निचे उतरे आस पास देखने... सुबह का समय था... तो सड़क भी एक दम खाली ही... लेकिन आस पास और भी होटल थे...आधे घंटे के चक्कर लगाने के बाद वापस पहुचे होटल... वहा काउंटर पर लोकल साइड सीन के बारे में पूछा तो पता चला की यहाँ मिनी बस से साइड सीन की
Monday, June 6, 2016
कन्याकुमारी और तिरुअनंतपुरम
Sunday, June 5, 2016
रामेश्वरम साइड सीन
Saturday, June 4, 2016
रामेश्वरम यात्रा
Friday, June 3, 2016
कोडईकनाल
तो माता जी ने कभी हिल स्टेशन नहीं देखा था... इस लिए सोचा की माँ को उधर भी घुमा ले.. सुबह ६ बजे माता जी चिल्लाई उठ... केतने बजे बस आई.. बस फटा फट.. उठा.. २ चाय मगाया... कमरे के
Wednesday, June 1, 2016
मदुरई साइड सीन
मदुरै के टूर के लिए वहा छोटे छोटे ट्रेवल एजेंट है... जो आपके बजट के हिसाब से प्लान बना देते है... और सभी एजेंट अपने अपने यात्रियों को उस रूट के बस पर यात्रिओ को बैठा देते है... जिसमे बस और गाइड की ब्यवस्था होती है...और गाइड घुमाने के एवज में २०-२० रुपये लेता है.. तब हम भी सवार हो चले... साथ ही अन्य एजेंट के भी यात्री के साथ ...
मदुरई यात्रा
Sunday, May 29, 2016
श्रीशैल, श्रीमल्लिकार्जुन, श्रीशैलम (श्री सैलम ) की यात्रा
तिरुपति बालाजी की कथा और आस पास
Saturday, May 28, 2016
भगवान तिरुपति के दर्शन
Thursday, May 26, 2016
माता जी की तीर्थ यात्रा “ भाग २
Monday, May 23, 2016