" गिलाफ-ए-औज़ार-ए-मज़ा-ए-मोहब्बत औ' बंदिश-ए-इज़ाफा-ए-नस्ल " का इस्तेमाल नहीं किया बस उस रात ये ही तकलीफ थी
येही कमी है मेरे अन्दर.. मुझे अफ़सोस करना नहीं आता.. आज से ठीक १० साल पहले २४ ओक्टोबर २००३ दिल्ली से बनारस शिवगंगा खचाखच भरी ट्रेन .. लटकता हुवा बनारस जा रहा हु.. वो भी बिना टिकट.. क्या जल्दी है मुझे.. पता नहीं.. पर बनारस जाना है..
सुबह ८ बजे बनारस पहुच कर सीधे औरगाबाद कमल जिया जी के यहाँ पंहुचा था.. जेब बे सिर्फ १०० रुपये.. वो भी सिर्फ ५-५ के नोट ... दिवाली का दिन वो भी सनिवार २५ अक्तूबर २००३ .. सिखा दीदी ने कहा क्षमा को अस्पताल ले जाना है.. जल्दी नाहा धो लो..