खैर ये तो अब बनेगी धीरे धीरे एक आग.. देखते रहे.. ये भी कुछ नया है... भगवान करे मै गलत हो जाऊ.. यार एक बनारसी अपने बनारस के लिए नहीं हार सकता तो उ भोसड़ी वाला अपनी !@#$%^&*()_+ पिप पिप... मै कह नहीं सकता मोदी के मन की बात वाली अंदाज में ... अपने बनारसी किताब का एक नायब वेब पर उपलब्ध किया है... अब इटरनेट भी फ़ास्ट हो गया है तो ऑनलाइन भी कर देगे लेकिन अगर आप को पड़ने का मन हो तो इस लिंक पर डाऊनलोड कर के पड़ सकते है... जयशंकर प्रसाद की गुंडा कहानी के नन्हकू सिंह के मिजाज वाले शहर को देखने को उत्सुक थे।चकाचक बनारसी की "आयल हौ जजमान चकाचक", "कस बे चेतुआ दाब से टेटुआ को देखत है?" सुन चुके थे। बनारस के उपकुलपति (शायद इकबाल नारायण) कहा करते थे- 'बनारस इज अ सिटी व्हिच हैव रिफ्यूस्ड टु मार्डनाइज इटसेल्फ'। इंकार कर दिया हमें नहीं बनना आधुनिक।
रुकजा मालिक, तानी दवैया खा लेइ.. का करी मालिक कुल बीमारी लग गयल हव.. खाली एड्स छोड़ के...
हा तो अपन थे तन्नी गुरु पर..
बनारसी और बनारस का रिश्ता इतना गहरा है कि वह न बनारस से दूर रह सकता है और न ही बनारस की बुराई सुन सकता है। उसके खान पान, पहनावे से लेकर बातचीत में बनारस झलकता है। लेखक श्री विश्वनाथ मुखर्जी अपनी पुस्तक 'बना रहे बनारस' में बनारसी के लिए लिखते हैं कि ... सही मायने में बनारसी है, जिसके सीने में एक धड़कता हुआ दिल है और उस सीने में बनारसी होने का गर्व है। वह कभी भी बनारस के विरुद्ध कुछ सुनना या कहना पसन्द नहीं करेगा। यदि वह आपसे तगड़ा हुआ तो जरूर इसका जवाब देगा। अगर कमजोर हुआ तो गालियों से सत्कार करने में पीछे न रहेगा।
बनारसी को सुबह गंगा स्नान तो नाश्ते में कचौड़ी जलेबी प्रिय है। शाम होते ही चाय की दुकान व घाट की सीडिय़ों पर जमघट लगाकर बातें हांकना इनका शगल। दुनिया भले ही चांद पर जा पहुंची हो, लेकिन बनारसी अपनी जगह अटल हैं। वह नहीं बदलेंगे। काशी नाथ सिंह पुस्तक 'काशी का अस्सी' में लिखते हैं कि ... खड़ाऊं पहनकर दोनों पांव के बिच में निगोटा का पोछ लटकाए पान की दुकान पर बैठे तन्नी गुरू से एक आदमी बोला किस दुनिया में हो गुरू ! अमरीका रोज रोज आदमी को चन्द्रमा पर भेज रहा है और तुम घण्टे भर से पान घुला रहे हो। तन्नी गुरु पान की पीक थूककर बोले देखौ ! एक बात नोट कर लो ! चन्द्रमा हो या सूरज भोंसड़ी के जिसको गरज होगी। खुदै यहां आएगा। तन्नी गुरू टस से मस नहीं होंगे हियां से ! एक
मस्त केरेक्टर है "तन्नी गुरु.. समझे कुछ...
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के लफ्जो में कहे तो बनारस में रस है। इस रस का पान करने वाला बानारसी।
परंपराओं से पुराना है बनारस
एक किवंदती के अनुसार बनारस शहर की खोज भगवान शिव ने पांच हजार साल पहले की थी और इस वजह से पूरे देश में यह भगवान शिव की आराधना का महत्वपूर्ण शहर माना जाता है। कई हिंदू धर्मग्रंथ जैसे ऋग्वेद, स्कंद पुराण, रामायण और महाभारत में इस शहर का उल्लेख हैं। गौतम बुद्ध के समय वाराणसी काशी महाजनपद की राजधानी हुआ करती थी। कहते हैं कि बनारस संसार का सबसे पुराना जीवित शहर है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों से भी प्राचीन है, और जब इन सबकों एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।
जब आमों में बौर आते हैं, टिकोरे उगते हैं और जब (यहाँ प्रशान्त महासागर के बीच बसे हवाई द्वीप-समूहों के एक द्वीप ओआह पर बसे शहर होनोलुलु में, कम से कम मेरी कल्पना में ही) कोयल की टीस-भरी कूकों से चप्पा-चप्पा गूँज उठता है; जब खेतो और जंगलों में दूर बहुत दूर तक सरसों के फूलों की पीली चादर तन जाती है या फिर जब काली घटाएँ घिरती हैं, हवाएँ बगटुट-आवारा इधर-उधर फिर रही होती हैं और अचानक एक सतरंगी इन्द्रधनुष न जाने कहाँ से उछलकर आकाश की छाती पर आराम से पसर जाता है, तो मुझे घर की याद आती है। जी हाँ, मुझे बहुत याद आती है घर की, बनारस की, उस बनारस की जो गंगा के किनारे-किनारे, कुछ-कुछ इन्द्रधनुष जैसा ही दक्षिण से उतर तक पसरा हआ है। कहनेवाले तो यह भी कहते हैं कि गंगा के किनारे शहर नहीं बसा है। शहर के किनारे गंगा बसी हुई है। व्याकरण के पण्डित जानते हैं कि कैसे ’गंगा के बीचोबीच अहीरोंकी बसती’ गंगा में न होती हुई भी गंगा में ही होती हैं। गंगा के बीचोबीच न होता हआ भी बनारस गंगा के बीचोबीच है ही। है न यह अजीब बात? वैसे ऐसी अजीब बातें और भी कई हैं मेरे पास इस नगर के बारे में। चाहे आप यह मानने के लिए तैयार न हों कि बनारस बाबा विश्वनाथ के त्रिशूल की नोंक पर बसा हआ है या चाहे आप यह भी न मानें कि काशी में मरनेवाला सीधे स्वर्ग ही जाता है, पर आप को यह तो मानना ही पड़ेगा कि भारत में यही एक अकेली जगह है जहाँ गंगा उलटी बहती है। जी हाँ, और कहीं नहीं, बस यहीं बहती है उलटी गंगा - दक्षिण से उतर की ओर। हुई न एक और अजीब बात यह ? आइए आपका परिचय कराऊँ अपने इस अजीब प्यारे शहर से।
"
मस्ती क शहर है भाई... आखिर नाम भी तो है बना रस..
तन्नी गुरु और पराठा...
चेला : गुरु ...इ आलू के परांठन में आलू नजर नाही आवत ह्वव् ?
तन्नी गुरु : अरे चापरनाशी,नाम पे मत जा! कश्मीरी पुलाव म कभी कश्मीर नज़र आवल ला ?
<जिया रजा बनारस>
जिया रजा बनारस बनारस के एक दिब्य मस्ती का सूचक है.. वो किसी भी माहौल में हो सकता है.. इसके लिए कोई मानक निर्धारित नहीं अब फेसबुक पर ही देख लीजिये ये कोट बहुतो के वाल पर लिखा दिख जायेगा
बनारस ने कबीर दास दिया
बनारस ने तुलसीदास दिया
बनारस ने चंद्रशेखर आज़ाद दिया
बनारस ने लाल बहादुर शास्त्री दिया
बनारस ने मुंशी प्रेमचंद दिया
बनारस ने राजा हरिश्चंद्र को शरण दिया
बनारस ने काशीनाथ सिंह दिया
बनारस ने बिस्मील्लाह खान दिया
बनारस ने मदनमोहन मालवीय दिया
बनारस ने सी एन राव दिया
बनारस ने अकेले 7 भारत रत्न दिये
बनारस ने गंगा यमुना तहजीब दिया
बनारस ने लस्सी दिया
बनारस ने कुल्फ़ी दिया
बनारस ने छुन्नूलाल मिश्रा दिया
बनारस ने समोसा दिया
बनारस ने ललईसाव का कचैाड़ी दिया
बनारस ने भांग दिया
बनारस ने पान दिया
बनारस ने बनारसी साड़ी दिया
बनारस ने लंगड़ा ,केसर और
दसहरी आम दिया
बनारस ने चाट दिया
बनारस ने संस्कृत विश्वविद्यालय दिया
बनारस ने बीएचयू दिया
बनारस ने क्रान्तिकारी विद्यापीठ दिया
बनारस ने मोक्ष दिया
बनारस ने मुरब्बा दिया
बनारस ने गोभी आँवला चूरन
और नवरतन अचार दिया
बनारस ने गोलगप्पा दिया
बनारस ने टिकिया दिया
बनारस ने सुश्रुता (सर्जरी) दिया
बनारस ने घुगरी दिया
बनारस ने ठुमरी दिया
बनारस ने गुलकंद दिया
बनारस ने फारा दिया
बनारस ने मकुनी दिया
बनारस ने ठंडाई दिया
बनारस ने बेल रस दिया
बनारस ने बथुआ का साग दिया
बनारस ने छोले को स्वाद दिया
बनारस ने लवंगलता दिया
बनारस ने रासमलाई दिया
बनारस ने छेना दिया
बनारस ने कलाकंद दिया
बनारस ने मलैयु दिया
बनारस ने संस्कार दिया
बनारस ने संस्कृति दिया
और बनारस ने बहुत कुछ दिया
और तो और बनारस ने
26 मई 2014 को प्रधानमंत्री दिया
बनारस बाबा भोलेनाथ
की नगरी सदा देती रही है ....
लिया कुछ भी नहीं........
बम बम बोल रहा है काशी ...
बम बोल ! बोल बोल बम.......
हर हर महादेव शम्भो !
काशी विश्वानाथ गंगे !!
जिया रजा बनारस ...... लोगो के अपने अपने मूल्याकन है
मार्टिन लूथर किंग ने कहा
"अगर तुम उड़ नहीं सकते तो, दौड़ो !
अगर तुम दौड़ नहीं सकते तो,...चलो !
अगर तुम चल नहीं सकते तो,......रेंगो !
पर आगे बढ़ते रहो !"
तभी एक बनारसी बाबू ने पान थूकते हुऐे कहा :-
"उ त ठीक हौ लूथर गुरु , पर ई बतावा मर्दे कि... ..जाये के कहाँ हौ?लोगो के अपने अंदाज है
बाकी दुनिया शेषनाग के फन पर टिकी है पर बनारस शिव के त्रिशूल पर टिका हुआ है । यानी बनारस बाकी दुनिया से निराला है। अपने होने के साथ ही बनारस बाबा भोलेनाथ की नगरी है। कभी कभी मुझे लगता है, शिव के व्यक्तित्व में दिखने वाली अंतर्विरोधी धाराएँ बनारस में भी मौजूद हैं . चन्द्रमा की अमृत जैसी शीतलता और अमरत्व के साथ हलाहल विष का दाह लिए अपने में मगन रहता है बनारस .विरुद्धों को स्वीकारने और धारण करने की क्षमता ही बनारस को शिव की नगरी बनाती है . शिव की बूटी भांग की मस्ती यहाँ की हवा में है .जो इसे छानते हैं वे भी और जो नहीं छानते वे भी मस्ती के आलम में रहते हैं .मजे की बात यह है कि इस आलम में भी चेतना का तीसरा नेत्र हमेशा खुला रहता है . बिलकुल शिव की तरह बनारस के महाश्मशान में निरंतर जलने वाली आग की रौशनी में हर तरह के छद्म को भेद कर जीवन सत्य को प्रकाशित करने की सामर्थ्य है .
पान बनारस की पहचान है, सड़क चलते आपको सावधान रहना पड़ता है की कब कौन किधर से पच्च से पान थूक दे और आप भी लाल हो जाएँ। हालाँकि शहर के लोगों को इसकी आदत पड़ चुकी है और वो किसी की बॉडी लैंग्वेज से ही अंदाजा लगा लेते हैं की अगला थूकने वाला है और उसके बर्थ राइट का ख्याल रखते हुए खुद सावधान हो जाते हैं।
तमाम आधुनिक औषधियां भी शहर में उपलब्ध हैं लेकिन भांग अपनी जगह कायम है और यहाँ कहा भी जाता है की 'गंग भंग दुई बहिन हैं, रहत सदा शिव संग/पाप निवारण गंग है, होश निवारण भंग'। जहाँ तक गंग की बात है तो कुछ दिनों पहले धोबी समाज से कहा गया था की वो गंगा में कपड़े धोना बंद करे क्योंकि नदी प्रदूषित होती और जल की पवित्रता पर असर होता है। उस समय ये भी बात उठी थी धोबी समाज के लिए शहर में कहीं इंतजाम किये जाएगा ताकि उनकी रोजी रोटी चलती रहे
तो यहाँ सभी लोगो के पास सिर्फ समस्याए ही है समाधान किसी के पास नहीं
जीने का अंदाज निराला है इस शहर का , इस शहर का सामान्य घोष है हर हर महादेव, कोई भी देसी विदेशी मेहमान आये लोग स्वागत में हर हर महादेव का नारा जरुर लगाते हैं, इसका मतलब वही लोग समझ सकते हैं जो बनारस को जीना जानते हैं या बनारस में जीते हैं। इस नारे में हिन्दू-मुसलमान का कोई भेद नहीं होता, हाँ कुछ जो खांटी बनारसी हैं वो किसी को हर हर महादेव कहने के बाद उसका नाम जोड़ कर 'भोंसड़ी के' भी जरुर कहते हैं क्योंकि उसके बिना सम्मान अधूरा है
यहाँ लोग इसका बुरा नहीं मानते।
जो बनारस के हैं उन लोगों को अभी भी उन लोगों की याद होगी जो बिना बात प्रेम से गालियाँ दिया करते थे और कोई बुरा नहीं मानता था, कई बार ऐसे लोगों को जान बूझ कर छेड़ा जाता था ताकि गलियों का यानि साबर मन्त्र का कोई नया वर्जन निकले। बीएचयू में दूसरे शहरों से आये पुराने छात्रों को कचौड़ी-जलेबी वाली चाची की याद जरुर होगी जो बिना बात मीठी-मीठी गालियाँ दिया करती थी। मरते दम तक उनकी गालियाँ निकलती रहती थीं और साथ में खस्ता कचौड़ी और करारी जलेबी। खैर शहर में कचौड़ी-जलेबी का जलवा अभी भी कायम है और दुनिया भर की गाईड बुक इसे वर्ल्ड फेमस बनारसी नाश्ता ऐसे ही नहीं बतातीं, लम्बी दौड़ लगा कर और जिम में पसीना बहा कर नई जनरेशन भी टूटती है इन दुकानों पर क्योंकि ये भी बनारसीपन की एक निशानी है। हालाँकि अब शाम के नाश्ते के नाम गोलगप्पे और चाट वाले बने हुए हैं अपनी जगह लेकिन जगह-जगह अंडा रोल कार्नर और गरम मसाला वाला चौमिंग बेचने वाले भी जमने लगे हैं, पता नहीं चीन में स्ट्रीट फ़ूड के रूप में चाउमीन कितना लोकप्रिय है लेकिन बनारस में तो चौमिंग की जगह दिख रही है, शहर सब कुछ एडजेस्ट कर लेता है।
हाँ दारु की दुकानें बढ़ीं हैं और लोग सरकार को पीकर दे रहे हैं इसमें खालिस अंग्रेजी वाले और देसी पीकर अंग्रेजी झाड़ने वाले, दोनों का बड़ा योगदान है। अपने लीवर-किडनी के बूते सरकार के राजस्व में इजाफ़ा करने वाले पूरे देश में बढ़ रहे हैं तो बनारस क्यों पीछे रहता, लेकिन इसका मतलब नहीं की बूटी की खपत कम हुई, बनारस के बने रहने तक बूटी भी बनी रहेगी। बस फरक ये है की बूटी सेवन के बाद आदमी साइलेंट मोड में चला जाता है इसलिए वर्तमान हालत को देखते हुए लोग वोकल होने के लिए दारु पी रहे हैं
..
वैसे हर बनारसी के लिए अपने अपने नियम, काशी में दिन के हिसाब से मंदिर निर्धारित हैं कुछ लोग अभी उस हिसाब से नियम से अलग अलग मंदिरों में पूजा करते हैं, यहाँ नियम से अपने अनुष्ठान -उपासना करने वाले को नेमी कहते हैं, जड़ी मियाँ तो अलग ढंग के नेमी लगे। खैर, देखा की जड़ी मियाँ ने दोनों कुल्हड़ भरे और बोले – 'ए सरदार , रजा तनी लड़ावा' फिर दोनों कुल्हड़ आपस में हलके से मिले, कांच के गिलास वाले जैसे जाम टकराते हैं तो चियर्स बोलते हैं उसी तरह कुल्हड़ आपस में लड़ाने का ये बनारसी अंदाज बिहाने -बिहाने वर्णनातीत लगा। ऐसे भी लोग अभी बचे हुए हैं, अपन को तो सोच कर नशा छाने लगा। सरदार यहाँ उन लोगों को कहते हैं जो भैंस -गाय पालने और दूध के धंधे में लगे हैं, यानि यादव जी लोग।
होली के अवसर पर होने वाले अस्सी मुहल्ले में होने अश्लील कवि सम्मेलन के किस्से हम लोगों में प्रचलित थे। दुनिया के तनाव से बेपरवाह मस्ती के आलम में डूबे रहने वाले शहर बनारस के बारे में कहा जाता है:-
जो मजा बनारस में
वो न पेरिस में न फारस में।
जब से मैंने होश सम्हाला है तब से ऐसे ही देख रहा हु बनारस को, लोगो के मन में कुछ खास नहीं है.. हुवा तो ठीक है नहीं तो घर से क्या गया बनारसी रंग से लोगो को फुर्सत मिले तब लोग किताबे, या दुनिया के बारे में कुछ ज्यादा समझने की कोशिश करे.. सब मस्ती के आलम में डूबे पड़े है... बाबा हउवन न... उ देखिये.. सब बाबा ही देख रहे है एक पक्के बनारसी को ... श्रीमती जी का बनारस में बीएसएनएल का इन्टरनेट २४ जुलाई से ख़राब है... लेकिन सोचते सोचते ७ दिन निकल दी की कम्प्लेन किस नंबर पर किया जाये... अगर आप हम हो तो इन्टरनेट कट जाये तो लगता है.. हम शुन्य में चले जाते है ... लेकिन ये बनारस है भाई... जिन्दा दिलो का सहर...
मुझे एक ऐसा माहौल बनाना है कि जयापुर में भी, क्या जयापुर के लोग इतना फैसला कर सकते हैं? मैं कुछ दिनों से टीवी पर देख रहा हूं, जयापुर चमक रहा है टीवी पर। सरकारी लोग भी आए हैं, सफाई कर रहे थे, रास्ते ठीक कर रहे थे। क्यों? तो बोले मोदी जी आने वाले हैं और गांव वाले भी कहते हैं कि मोदी जी हर बार आ जाए तो अच्छा होगा, गांव साफ हो जाएगा। क्या ये सोच सही है क्या? क्या हम नहीं तय कर सकते कि चलो भई इस निमित्त अब गांव साफ हो गया है। अब मेरा जयापुर गांव का एक-एक नागरिक तय करें, हम हमारे गांव को गंदा नहीं होने देंगे। ये आदर्श ग्राम की शुरूआत हुई कि नहीं हुई? हुई कि नहीं हुई? करेंगे? आप मुझे बताईये मैं जयापुर के लोगों को पूंछू- कि हमारे इस गांव में सबसे पुराना, सबसे बड़ी उम्र का वृक्ष कौन सा है? कौन सा है जो सबसे पुराना है, सबसे बूढ़ा है? कभी सोचा है गांव वालों ने? नहीं सोचा होगा। क्या कभी स्कूल के मास्टर जी को लगा कि चलो भई हम स्कूल के सभी बच्चों को ले करके उस पेड़ के पास ले जाएं और उनको कहें कि देखिए ये पेड़ १५० साल पुराना है, २०० साल पुराना है और उसको कहें कि तुम्हारे दादा के दादा थे न, वो भी इस पर खेला करते थे, तुम्हारे परिवार के लोग थे न, वो भी यहां आते थे। उस पेड़ के साथ उसका लगाव होगा। आज किसी गांव को मालूम नहीं होगा कि हमारे गांव का सबसे पुरातन पेड़ कौन सा है। कौन सा वृक्ष सबसे पुरातन है। क्यों? हमें इन चीजों से लगाव नहीं है। हमारे गांव में १०० साल से ऊपर के लोग कितने हैं? ७५ साल से ऊपर लोग कितने हैं? वयोवृद्ध लोग कितने हैं? क्या कभी हमारे गांव के बालकों को इन वृद्ध परिवारों के साथ बिठा करके उनके साथ कोई संवाद का कार्यक्रम किया क्या कि आप छोटे थे तब क्या करते थे? तब स्कूल था क्या? टीचर आता था क्या? तब खाना-पीना कैसे होता था? उस समय ठंड कैसी रहती थी? गर्मी कैसी थी? कभी किया है ये जो सहज रूप से एक गांव का अपनापन का माहौल होता है वो धीरे धीरे धीरे सिकुड़ता चला जा रहा है। क्या हम मिल करके इस माहौल को बदलने की शुरूआत कर सकते हैं क्या?
मैं यहां अपने लोगों से पूंछू, कोई १० वीं कक्षा में पढ़े होंगे, कोई १२ वीं पास किए होंगे, ग्रेजुएट होंगे, कोई ५० साल के होंगे, कोई ६० साल के होंगे, कोई ८० साल के होंगे, मैं उनको पूंछू- कि जिस स्कूल में आपका बच्चा पढ़ता है क्या कभी आप उस स्कूल में गए हो? उस स्कूल को देखा है? मास्टर जी आते हैं कि नहीं आते हैं? सफाई होती है कि नहीं होती है? पीने का पानी साफ है कि गंदा है? वहां शौचालय है कि नहीं है? लेबोरेट्ररी है कि नहीं है? लाइब्रेरी है कि नहीं है? कम्प्यूटर है तो चलता है कि नहीं चलता? कुछ भी। कभी जा करके हमने रूचि ली होगी? कभी नहीं ली क्योंकि पहले दिन बच्चे को छोड़ आए और कह दिया कि मास्टर जी ये सौंप दिया, अब तुम जानो, उसका नसीब जाने, जो करना है करो, ऐसे चलता है क्या? हम अगर हमारे गांव के स्कूल का, अगर हम तय करें कि चलो भई हर मोहल्ले की एक कमिटी बनाएं। ये कमिटी के लोग रोज स्कूल जाएंगे, दूसरी कमिटी वाले दूसरे दिन जाएंगे, तीसरी कमिटी वाले तीसरे दिन जाएंगे। हमें बताइए, हमारा स्कूल, कितना भी छोटा स्कूल क्यों न हो, वो फिर एक प्रकार से गांव के अंदर सरस्वती का मंदिर बन जाएगा कि नहीं बन जाएंगा? शिक्षा का धाम बन जाएगा कि नहीं बन जाएगा? सरल काम है।
मेरे मन में इस, बनारस का जो पूरा विस्तार जो मेरे जिम्मे आया है और एक प्रकार से ये जिला भी.. बहुत कुछ करने का मेरा इरादा है लेकिन सरकारी तरीके से नहीं करना है, सरकारी खजाने से नहीं करना है। हमें जनता की शक्ति से करना है, जन-शक्ति से करना है।
ये एक मैंने रास्ता उल्टा करने का प्रयास किया है और मेरा विश्वास है कि ६० साल तक हम एक ही बात को ले करके चले.. क्योंकि जब आजादी की लड़ाई लड़ते थे, तबसे एक बात हमारे मन में एक बात बैठ गई कि एक बार आजादी आ जाएगी, बस फिर कुछ नहीं करना है फिर सब अपने आप हो जाएगा, इसी इंतजार में रहे। फिर समय आया, हमें लगने लगा कि सरकार ये नहीं करती, सरकार वो नहीं करती, बाबू ये नहीं करता, टीचर वो नहीं करता, क्यों नहीं करता, तो समाज और सरकार अलग-अलग होने लग गईं। सरकार एक जगह पे, समाज दूसरी जगह पे। एक बहुत बड़ी खाई हो गई। इसका मतलब ये हुआ कि ६० साल तक हमने जो तौर-तरीके अपनाये, जो रास्ते अपनाएं वे ऐसे रास्ते हैं, जिनमें कुछ न कुछ कमी नजर आती है। सब कुछ गलत नहीं होगा, सब कुछ बुरा भी नहीं होगा, लेकिन कुछ न कुछ कमी नजर आती है। क्या इस कमी को हम भर सकते है? और ये कमी इस बात की है कि ये देश हमारा है, ये गांव हमारा है, ये मोहल्ला हमारा है, क्या हमें अपना गांव, अपना मोहल्ला, सबने मिल करके अच्छा बनाना चाहिए कि नहीं बनाना चाहिए? कहीं एक गड्ढा हो गया हो, तो हम किराया खर्च के लखनऊ जाएंगे, लखनऊ जा करके मेमोरेंडम देगें कि हमारे गांव का गड्ढा भर दो। उसमें हम सैकड़ों रुपया खर्च कर देंगे लेकिन मिल करके तय करें कि गड्ढा भर देना है तो गड्ढा भर जाता है।
कब तक बनेगा ऐसा बनारस पता नहीं...
अजय सिंह की कलम से : बदहाली के मझधार में खुशहाली का किनारा ढूंढता मैं बनारस हूं
वाराणसी : शिवालों के घंटे ही मेरी पहचान नहीं हैं, ना ही अजान की वो पाक आवाज़। गंगा के घाटों पर उतरती सुबह की मुलायम धूप भी मेरी तबीयत का एक हिस्सा भर है। सती, सांड, सीढ़ी और संन्यासी से आगे मैं तो अपने ब्रह्मांड में और भी बहुत कुछ समाए हुए हूं। मैं शिव की काशी हूं। मैं भारत का वाराणसी हूं। मुझमें वो उम्मीदें, वो सपने भी हैं, जो पिछले साल सत्ता की आंच पर पक कर पक्के हो गए हैं।
ये भी एक लेख दिखा .. अच्छा लगा
ये मेरा बनारस है और हम है बनारसी मस्ती के बनारस वाले.. बनार्सियन क जेतना उमर नहीं हॉट ओसे चार गुना तजुर्मा.. सुनावे बदे ...
अब मोदी जी बिहार में जा रहे है... लोगो को लगता है बिहारी लंठ होते है.. लेकिन अगर आप बिहार को देखे तो आज भी आईएस में बिहार से सबसे ज्यादा ... तो देखिये.... खैर बिहार के मित्रो ये फोटोशॉप के अंदाज में नहीं... सही चेहरा दिखाइए... ताकि आप के जो अपने सोये है..वो सोये ही रह जाये ....
पुरे संघी " श्री सुरेश चिपुलाकर जी.. जीतेन्द्र भैया ... लेकिन इतने लोग मेरे वाल पर लेकिन कभी मेरा विरोध नहीं किया... लोग पड़ते है ... लोग चुप्पा बॉक्स में बहस कर ले जाये... लेकिन भक्तो के गरियाने वाले अंदाज में नहीं
चलिए
अब भोर का ३ बज गया है... अब चलते है सुतने.... महादेव..
पति पत्नि ये संसार की गाड़ी के दो पहिये है इसमें का १ भी पहिया बिगड़ गया तो संसार की गाड़ी चल नहीं सकती इसलिए बुद्धिमान लोग स्टेपनी रखते है.. ता चला अब तू लोग हम तानी स्टेपनी चेक कर ले ..
'.
बनारसी कैसा अड़भंगी होता है, इसका जायजा उसके बनारसी अंदाज से मिल जाता है... " गंगा ओ पार" बनसी का एक खुबसूरत अंदाज है... उसमे कइए चीज आती है जैसे दिब्य निपटान... नहाना. बाटी चोखा का प्रोग्राम.. या भांग बूटी छानना.. लिखा नहीं जा सकता ये सिर्फ महसूस करने की चीज है.. आप को बनारस में हर जात, धर्म को लोग मिल जायेगे.. जो बहुत पहले बाहर से आ कर बनारस में बस गए... लेकिन आज उनका रंग भी खांटी बनारसी जैसा भी है... उनके लिए इस युग में कोई समस्या ही नहीं है, किसी के भी प्रतिस्पर्धा भी नहीं , सब अपने में मस्त... इस लिए तो कहा जाता है की काशी तीनो लोगो से न्यारी है
ये भी एक मन की बात आप मोदी की बात करते हैं, ..
ए खुदा तू ही बता अब दूआ उसकी खुशी की करु या मायूसी की...........
बनारस त बनारसे रहेगा
कब आएगा 'काशी को संवारने में क्योटो का अनुभव... ?
वाराणसीं पुरपतिम् भज विश्वनाथम्
हर हर महादेव ...
बनारस एक तीर्थ नगर है। पण्डे-पुजारिओं, मन्दिरों-देवालयों का। यहाँ गली का कोई भी नुक्कड़ नहीं जहाँ एक मूर्ति अपने छोटे देवालय में पतिष्ठित न हो। यहाँ सारे रास्ते घूम-फिरकर गंगा की ओर जाते लगते हैं। सभी रास्ते यहीं गंगा किनारे आकर खतम हो जाते हैं। जिन्दगी का चक्कर भी तो यहीं खतम होता है - महाश्मशान पर। जी हाँ, मणिकर्णिका नाम है इस शहर के महाश्मशान का। इस महाश्मशान की आग कभी ठण्डी नहीं होती। वैश्वानर अपनी सहस कालजिह्वाएँ लपलपाता चौबीस घण्टे किसी दुर्मद की तरह चकरघिन्नी बना घूमता रहता है। लपटें और लपटें...लपटें ही लपटें। राख की ढेर पर बैठा महाश्मशान का रखवाला डोमराज यहाँ अब भी खप्पर में ढली सुरा पीता है। मांसपिण्डों की चिरायंध गन्ध उसके नथुनों की फड़फड़ाहट में तेजी लाती है। चिटकती हड्डियों की करताल पर थिरकता है डोमराज। जलो...जलो...जलो...मेरी दी हुई आग की लपटों में जलो। इसीलिए तो खरीदी थी यह आग तुम्हारे चाहनेवालों ने। हाँ वे ही, जिन्होंने राम-नाम सत्य की धुन पर कदम मिलाते हए दो बांसों की टिकटी पर तुम्हें ढोया, तुम्हारी चिता सजाई और मेरी दी हुई, या यह कहो कि मुझसे खरीदी हुई, आग लेकर तुम्हें लपटों के हवाले कर दिया। यह शरीर पांच तत्वों से बना है न ? क्षिति-जल-पावक-गगन-समीरा....तुम्हारा भस्मशेष शरीर अभी कुछ ही देर में गंगा को समर्पित कर देंगे ये। पंचतत्वों से बना पंचतत्वों में ही मिल जाएगा। महाश्मशान का यह सत्य पंचभौतिक जीवन का चरम सत्य है।
कोई नहीं समझ पाया है, महिमा अपरम्पार बनारस।
भले क्षीर सागर हों विष्णु, शिव का तो दरबार बनारस।।
हर-हर महादेव कह करती, दुनिया जय-जयकार बनारस।
माता पार्वती संग बसता, पूरा शिव परिवार बनारस।।
कोतवाल भैरव करते हैं, दुष्टों का संहार बनारस।
माँ अन्नपूर्णा घर भरती हैं, जिनका है भण्डार बनारस।।
महिमा ऋषि देव सब गाते, मगर न पाते पार बनारस।
कण-कण शंकर घर-घर मंदिर, करते देव विहार बनारस।।
वरुणा और अस्सी के भीतर, है अनुपम विस्तार बनारस।
जिसकी गली-गली में बसता, है सारा संसार बनारस।।
एक बार जो आ बस जाता, कहता इसे हमार बनारस।
विविध धर्म और भाषा-भाषी, रहते ज्यों परिवार बनारस।।
वेद शास्त्र उपनिषद ग्रन्थ जो, विद्या के आगार बनारस।
यहाँ ज्ञान गंगा संस्कृति की, सतत् प्रवाहित धार बनारस।।
वेद पाठ मंत्रों के सस्वर, छूते मन के तार बनारस।
गुरु गोविन्द बुद्ध तीर्थंकर, सबके दिल का प्यार बनारस।।
कला-संस्कृति, काव्य-साधना, साहित्यिक संसार बनारस।
शहनाई गूँजती यहाँ से, तबला ढोल सितार बनारस।।
जादू है संगीत नृत्य में, जिसका है आधार बनारस।
भंगी यहाँ ज्ञान देता है, ज्ञानी जाता हार बनारस।।
ज्ञान और विज्ञान की चर्चा, निसदिन का व्यापार बनारस।
ज्ञानी गुनी और नेमी का, नित करता सत्कार बनारस।।
मरना यहाँ सुमंगल होता और मृत्यु श्रृंगार बनारस।
काशी वास के आगे सारी, दौलत है बेकार बनारस।।
एक लंगोटी पर देता है, रेशम को भी वार बनारस।
सुबहे-बनारस दर्शन करने, आता है संसार बनारस।।
रात्रि चाँदनी में गंगा जल, शोभा छवि का सार बनारस।
होती भव्य राम लीला है, रामनगर दरबार बनारस।।
सारनाथ ने दिया ज्ञान का, गौतम को उपहार बनारस।
भारत माता मंदिर बैठी, करती नेह-दुलार बनारस।।
नाग-नथैया और नक्कटैया, लक्खी मेले चार बनारस।
मालवीय की अमर कीर्ति पर, जग जाता, बलिहार बनारस।।
पाँच विश्वविद्यालय करते, शिक्षा का संचार बनारस।
गंगा पार से जाकर देखो, लगता धनुषाकार बनारस।।
राँड़-साँड़, सीढ़ी, संन्यासी, घाट हैं चन्द्राकार बनारस।
पंडा-गुन्डा और मुछमुन्डा, सबकी है भरमार बनारस।।
कहीं पुजैय्या कहीं बधावा, उत्सव सदाबहार बनारस।
गंगा जी में चढ़े धूम से, आर-पार का हार बनारस।।
फगुआ, तीज, दशहरा, होली, रोज़-रोज़ त्योहार बनारस।
कुश्ती, दंगल, बुढ़वा मंगल, लगै ठहाका यार बनारस।।
बोली ऐसी बनारसी है, बरबस टपके प्यार बनारस।
और पान मघई का अब तक, जोड़ नहीं संसार बनारस।।
भाँति-भाँति के इत्र गमकते, चौचक खुश्बूदार बनारस।
छनै जलेबी और कचौड़ी, गरमा-गरम आहार बनारस।।
छान के बूटी लगा लंगोटी, जाते हैं उस पार बनारस।
हर काशी वासी रखता है, ढेंगे पर संसार बनारस।।
सबही गुरु इहाँ है मालिक, ई राजा रंगदार बनारस।
चना-चबेना सबको देता, स्वयं यहाँ करतार बनारस।।
यहाँ बैठ कर मुक्ति बाँटता, जग का पालनहार बनारस।
धर्म, अर्थ और काम, मोक्ष का, इस वसुधा पर द्वार बनारस।।
मौज और मस्ती की धरती, सृष्टि का उपहार बनारस।
अनुपम सदा बहार बनारस, धरती का श्रृंगार बनारस।।
कासी सेवन का एक दूसरा अंदाज भी है। यह बनारस का चौथा सत्य है-