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Thursday, February 26, 2015

माता श्री की द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा

हिंदू धर्म के चार संप्रदाय हैं- 1.वैष्णव 2.शैव, 3.शाक्त और 4.ब्रह्म (अन्य)। चारों के तीर्थ हैं।

तीर्थ से ही वैराग्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। तीर्थ यात्रा का समय संक्रांति के बाद माना गया है जबकि सुर्य उत्तरायण होता है। तीर्थ में सबसे प्रमुख कैलाश मानसरोवर को माना गया है। इसके बाद क्रमश: चार धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ, सप्तपुरी का नंबर आता है।
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Friday, February 20, 2015

मेरा ४१वा जनम दिन..

आज २० फ़रवरी है... तो खास क्या है.. आज मै ४१ साल पूर्ण कर ४२ साल में प्रवेश कर रहा हु ...

जिन्दगी में सिर्फ माँ बाप से लड़ाई के सिवा किया क्या है मैंने... अब तो पापा भी नहीं रहे... माँ अकेली , छोटा भाई तो है साथ में लेकिन फिर भी माँ शायद उदास है , ऐसा मुझे लग रहा है.. क्या किया है मैंने अपने इस ४१ साल के जीवन में, आज तो शर्म से माँ को फ़ोन भी नहीं कर पा रहा हु... शायद मै ही इसका जिम्मेदार हु.. चलो कोई बात नहीं , ले आया एक अद्धा खोला बोतल... रात के १० बजे   ....

माता जी काशी छोड कभी बाहर नहीं गयी, लेकिन अभी छोटी बहन “टूसी” के पास है रामपुर में.. मै २० 

फ़रवरी १९७४ को पैदा हुवा था, उस दिन शिवरात्रि थी... तो दादा जी ने मेरे नाम के बिच में शंकर लगा दिया, पापा ने राजीव, उस समय कुछ रेयर ही नाम था राजीव.. आज तो १०० में से २७ मिलते है राजीव... तो मै बन गया “राजीव शंकर मिश्र” बुद्धि प्रकाश भारती देवी का पहला पुत्र... लेकिन मेरा अनुभव ये कहता है की मै ज्यादा लाड प्यार में लतखोर हो चूका हु... माँ पापा जो कहते मै उसका उल्टा... इसी वजह से पापा तो बहुत दूर चले गए मुझे छोड़ कर, बस माँ है लेकिन मै उससे दूर... मै दो भाई एक बहन में सिर्फ मेरे पास ही बाप का साया नहीं है अभी चाहे घर से चाहे ससुराल से... हर कुछ अकेले ही करना पड़ता है.. थक चूका हु मै... इस लिए सोचता हु कुछ पल माँ के साथ गुजार लू....   

माँ का फ़ोन उठा... माँ प्रणाम ... कौन .. राजू .. हा का हाल चाल हव तोहार... आज त तोहार जनम दिन हव न.. का करत हए....माँ को याद है क्यों की वो माँ है न... हाल चाल क्या बताता.. “ ए माँ .. एक ठे बात कही ... “का” माँ बोली... हम सोचत हाई तोहके ले के कही बहरे घुमे चली... “ और के चली” माँ पूछती है... धर्म संकट... नशा काफूर... केहू नहीं . खाली हम और तू... तब माता जी के आवाज में थोड़ी नरमी आयी... “ कहा चलबा...” माँ ने पूछा... कुछ भी प्लान नहीं दिमाक में... क्या जवाब दू... लेकिन हमेशा मेरे साथ मेरे आराध्य देव भोले ... जिनकी तीसरी नेत्र चालू हो गए..  फटा फट मुख से आवाज निकली... “ अम्मा ज्योतिर्लिंग और धाम का दर्शन “ कब चले के हव ... माँ ने कहा .. शायद ये शब्द मेरे लिए दुनिया के सबसे खुबसूरत सब्दो में थे... , पहिले “ हा “ कहा तब प्रोग्राम करी... .. माँ ने कहा चला .. चलब ... विश्वास हो गया माँ चलेगी क्यों की आज तक बनारस छोड़ कर कभी बाहर भी नहीं गयी क्यों की शायद  

चना चबेना गंगजल जो पुरवै करतार।
काशी कबहूं न छोड़िए विश्वनाथ दरबार।।


जब भक्त ही कहीं नहीं जाना चाहते तो तुम अपने भक्तों को छोड़कर भला कहां जाओगे ?

मगर भोले, आज के समय में ये अल्पसन्तोष की फिलासफी ठीक नहीं।... फ़ोन रखा ... उस ख़ुशी के नापने का कोई मशीन होती तो जरुर नापता ... फ़िलहाल माँ को सुभ रात्रि कहा ... १-२ दिन में प्रोग्राम फाइनल कर के बताइला... प्रणाम... शायद ये जन्म दिन मेरे जीवन का सबसे खुबसूरत तोहफा....

>>शुरुवात जोतिर्लिंग यात्रा की 
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