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Saturday, November 16, 2013
याद आता है बचपन का वो जमाना
.. नशे और मस्ती में चूर.. हफ्तो घर नहीं आता था..
नौकरी का बहाना.. काम कर रहा हु.. बहुत प्रेसर है.. १० दिन बाद घर आये तो
गेट पर ताला लगा .. बुलेट का हार्न देने पर माँ आती थी गेट का ताला खोलने
.. खोल कर चली जाती.. बरमडे के अंदर अपनी बुलेट खड़ी कर के घर में घुसता तो
अँधेरे कमरे में पापा बैठ कर न्यूज़ पेपर पड़ते देखता.. पर लतखोर जो मै था..
पापा से पूछता .. अँधेरे में समाचार पत्र पड़ रहे है... पापा बोलते.. ये तो
१० दिन पुराना है.. तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था.. इस लिए ये समाचार
पत्र ख़तम नहीं हुवा.. अब तुम घर आ गए हो तो बाकि ९ दिन का भी आज रात पड़
लुगा.. खाना खा लो.. सो जाओ.. अरे सुनो.. ९ दिन का पेपर कहा रखा है.. देते
जाना..
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