वैदिक पुराणों के अनुसार देवताओं के बहुत से अवतार
धरती पर अवतरित हुए हैं उसी प्रकार विष्णु की पत्नी
लक्ष्मी जी श्रीकृष्ण
की पत्नी रुक्मिणी के रूप में इस धरती पर अवतरित हुई हैं ,सनातन धर्म में
लक्ष्मी सुख और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं और उस धर्म के लोगों को ऐसी
मान्यता और आस्था है कि लक्ष्मी के पूजने से वह प्रसन्न होकर परिवार को
समृद्धि से भर देंगी और दिपावली पर्व पर इसी लिये उनकी विशेष पूजा की जाती
है । आज धनतेरस है और सनातन धर्म के
लोगों के लिये यह दिन बेहद महत्वपूर्ण है । धनतेरस के दिन धन के देवता
कुबेर की पूजा भी धन और सुख संपति के लिए होती है । लोग सोना चाँदी या चल
अचल संपत्ति भी इसलिए खरीदते हैं कि पौराणिक मान्यता है कि इस दिन धन (चल
या अचल संपत्ति) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है।
वैदिक
पुराणों के अनुसार इसी धनतेरस के दिन देवताओं के वैद्य "धनवंतरि ऋषि" अमृत
कलश सहित सागर मंथन से प्रकट हुए थे। अतः इस दिन धनवंतरी जयंती भी मनायी
जाती है । उनके कलश लेकर प्रकट होने की घटना के प्रतीक स्वरूप ही बर्तन
खरीदने की परम्परा का प्रचलन आज तक सनातन धर्म के लोग करते हैं , लोग उसी
कलश के प्रतीक के रूप में इस विश्वास के साथ बर्तन खरीदते हैं कि इसमें
बनने या रखने वाला भोज्य पदार्थ उसी धनवंतरि के कलश में आए अमृत समान होगा ।
धनतेरस के ही दिन और मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विशेष महत्व है, यमराज की पूजा अकाल मृत्यु से बचने के लिए घर के दरवाज़े पर दीप जला कर की जाती है और इसका कारण यह है कि वैदिक पुराणों में एक मेह राजा का वर्णन है जिसे बहुत से देवताओं की पूजा प्रार्थना के बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति इस शर्त के साथ होती है कि किसी भी स्त्री का साया यदि इस पुत्र के जीवन में पड़ा तो उसके चार दिन बाद उसे अकाल मृत्यु प्राप्त होगी ,राजा मेह ने राजकुमार पुत्र को जन्म से युवा होने तक स्त्री की छाया से दूर रखने का सफल प्रयास किया।राजकुमार पुत्र जवान होने के बाद एक राजकुमारी के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर गंधर्व विवाह कर लेते हैं , राजा मेह को पता चलता है तो वह विचलित होते हुए पुत्र की अकाल मृत्यु से बचाने देवताओं की अथक पूजा करते हैं देवता उन्हे घर के आंगन और द्वार पर दीप जला कर अकाल मृत्यु से बचने का वरदान देते हैं जिससे द्वार तक आए यमराज वापस चले जाते हैं , अकाल मृत्यु से बचने के लिए आज तक सनातन धर्म के लोग घर के द्वार और आंगन में द्वीप जलाते हैं ।
धन तेरस के दिन ग्रामीण क्षेत्रों में लोग धनिये के बीज भी खरीदते हैं। दीवाली के बाद इन बीजों को वे अपने खेतों में बो देते हैं। देश के कुछ ग्रामीण इलाकों में इस दिन लोग अपने पशुओं की पूजा करते हैं। इसके पीछे वजह यह है कि पशुओं को वे अपनी आजीविका चलाने का सबसे महत्वपूर्ण साधन मानते हैं।देश के पूर्वी क्षेत्रों में गोवर्द्धन की भी पूजा होती है जो गाय के गोबर से पृथ्वी पर देवता की आकृति बना कर पूजा जाता है ।
खैर यह सबकी अपनी अपनी आस्था और विश्वास का विषय है और हम सभी को इसका सम्मान करना ही चाहिए । यही है हमारा भारत और उसका "मूल चरित्र" ।
" सभी मित्रों को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ"
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