हम ठहरे खांटी बनारसी, दिमाक से वही तन्नी गुरु स्टाइल, आप समझ सकते है, २००३ में भारत से बाहर निकले तो एक नयी दुनिया देखी, लोग कितने ब्यस्त है, कितनी क्रिएटिविटी है, उनकी सोच कुछ अलग है है, लेकिन वो एक समाज के ऐसे कोने में है की लोगो की नजरे ही नहीं जाती, लेकिन हम सुनते सबकी है, करते अपने मन का, लोगो की सोच में मंथन करने का, ये बनारसियो की आदत है, जो दुनिया नहीं करती वो बनारसी करते है क्यों की बनारस में हर बिद्या के गुरु है, बनारसी हु, लेकिन बनारस गुरु लोगो की ही नगरी है, मस्ती का शहर, उसी क्रम में एक बनारसी मस्ती का अंदाज “ विनय कुल जी “ अब का तो पता नहीं, आज से २० साल पहले बनारस में संध्या कालीन अख़बार “ गांडीव “ जिसमे विनय जी के कार्टून “जवाब नहीं” नियमित रूप से बनारसियो का एक नशा था “ छान घोट के गांडीव पड़ना और दिन भर के थकान को विनय कुल जी के कार्टून के माध्यम से राहत .. उस समय चुकी आज जैसे मिडिया का जमाना तो था नहीं, बस पत्र पत्रिकाए, जिसमे विनय जी के हास्य ब्यंग दिख जाते ... अब मिडिया का जमाना आया तो एक दिन फेसबुक के एक पेज में साल २०१२ में धरा गए, जिन्होंने हम जैसे बनारसियो जो बनारस को प्रतक्ष्य नहीं देख सकते थे “सुबहे बनारस“ “हमारी काशी “ के भी दर्शन आप के माध्यम से होने लगा डरते डरते उनको फेसबुक पर निवेदन भेजे, स्वीकार हो गया, तो हमहू फुल के कुप्पा हो गए की आज पहली बार किसी दिब्य बनारसी के हम मित्र सूचि में जगह पाए है.. अब तो विनय जी की विधा पुरे सोसल मिडिया में छितरा रहा है, पुरे बनारस के सटीक जानकारी के एन्साक्लोपीडिया है, ३-४ बार मिलना हुवा, जो हास्य विधा में मालिक है, वो असल जिन्दगी में बहुत गंभीर, नपी तुली बात करने वाले और अपने उसूलो के कट्टर, नो एहर होहर, उनके साथ बनारस की और भी छुपी विधा के दर्शन हुवे, जिसे मैंने गूगल पर लिखने की कोशिश की है, क्यों की ये बनारस की प्रतिभा सिर्फ बनारस में ही न रह जाये, दुनिया के लोग जाने इसी क्रम में विनय कुल जी.
आपका शुभ नाम है विनय कुल .पिता और माता के बारे में उन्होंने कभी बताया नहीं जिनके सौजन्य से आप इस प्रतिभा के मालिक हुवे है माता पिता के कौन नंबर के पुत्र है और किस सन में आप पृथ्वी पर अवतरित हुवे उहो पता नहीं अब वो कुल आगे पूछ कर बतायेगे किस जिले की भूमि पर टपके थे. संपूर्ण हुलिया से बनारसी ठलुवा के बाऊ लगते हैं इनका चश्मा उतार दे तो आसाराम बापू और टोपी उतार दे लकरसुंघवा लगने लगेंगे . दिखने में ये कुछ भी लगें लेकिन सच तो यह है की इनकी कलई खोलना शुरू की जाय तो भोर हो जायगी, उसके लिए एक अभिन्दन पत्र नाकाफी होगा, कई टन कागज लग जाएंगे, विस्तार में आप चित्रकार, शिल्पकार, दार्शनिक, कवि, चिंतक, वैज्ञानिक और सार में चैंपियन आफ आल भी हैं..अभी आप बनारस के कोतवाली थाना छेत्र के मछोदरी में निवास करते है, चुकी मेरा ससुराल भी उसी थाने में है जो उनसे बराबर मिलना हो जाता है उनका लैब जहा वो बैठ के लेखन करते है, वो जगह भी सकून देने वाला है, पुरानी किताबो की एक दबी हुई लाइब्रेरी जहा एक मस्त जिंदादिल बनारसी, खैर आधुनिकता के दौर में व्हाट्स एप और मेसेंजर से वार्ता लाप हो जाती है, लेकिन जब भी मै बनारस जाता हु, उनसे मिलना नहीं भूलता, शयद वो उनकी आत्मीयता है, जो एक बार मिल ले बवासीर बन के चिपक जाता है,
बनारस के पुराने साहित्य और संस्कृति को जीवित रखने में आप का बड़ा योगदान है, उनकी सबसे बड़ी खोज “ठलुवा “ है, वास्तव में ठलुवा मुझे लगता है ये एक कट्टर शैव पंथ है, जिसमे बनारस की हवा से शिवत्व को प्राप्त करना है, काशी में जब तक आप ठलुवा भाषा का प्रयोग न करे आप शिव को प्राप्त नहीं कर सकते. अगर आप ठलुवा के बारे में बनारस के बाहर पूछेगे तो लोग बस एक बार में ही बनारसी का नाम ले लेगे, जो आज भी लंगोट में लक्स साबुन लगाते घाट किनारे एक मस्त चिंतन में मगन होते है. ठलुवा लोगो की पार्टी में जाये देखे आनंद. बस मौज मस्ती जिसकी एक थीम होती है, उस थीम के महारथी है विनय जी ,आप बनारस की बहुत सी साहित्यिक सभ्यातो को पुनर जीवित करने में हमेश अगरनी रहते है, काफी बार मैंने उनके साथ बनारस में घुमा तो लगा की अभी बनारस को बहुत ही समझना है, हा तरह की जानकारी है उनके पास बनारस की कथा कहानियो के बारे में.
कुल मिला के विनय कुल जी काशी के प्रमुख व्यंग्य चित्रकार हैं । देश की लगभग हर प्रमुख हिन्दी की पत्र -पत्रिकाओं " धर्मयुग ,पराग ,कादम्बनी ,सरिता,नंदन, ब्लिट्ज आदि में नियमित रूप से जिनके व्यंग्य चित्र प्रकाशित होते रहे हैं । लगभग २९ वर्षों तक दैनिक सांध्य " गाण्डीव " में कार्टूनों का नियमित प्रकाशन हुआ । अभी हाल वो काशी के एक संध्या दैनिक " काशी वार्ता " Kashivarta के माध्यम से आप उनकी रचनाये देख सकते है...
कुल मिला के विनय कुल जी काशी के प्रमुख व्यंग्य चित्रकार हैं । देश की लगभग हर प्रमुख हिन्दी की पत्र -पत्रिकाओं " धर्मयुग ,पराग ,कादम्बनी ,सरिता,नंदन, ब्लिट्ज आदि में नियमित रूप से जिनके व्यंग्य चित्र प्रकाशित होते रहे हैं । लगभग २९ वर्षों तक दैनिक सांध्य " गाण्डीव " में कार्टूनों का नियमित प्रकाशन हुआ । अभी हाल वो काशी के एक संध्या दैनिक " काशी वार्ता " Kashivarta के माध्यम से आप उनकी रचनाये देख सकते है...
गूगल पर एक दो शानदार बहस भी है आप यहाँ देख सकते है :
वर्त्तमान में फेसबुक के विभिन्न पेजों पर प्रतिदिन व्यंग्यचित्रों का प्रकाशन हो रहा है।अब तक लगभग २०,००० व्यंग्यचित्रों का प्रकाशन एवं आकाशवाणी एवं विविध भारती से धारावाहिकों का प्रसारण हो चुका है ।
विनय जी के चित्र देखने के लिए यहाँ क्लिक करे
हमें गर्व है की कुल जी का ये विडियो देख सीना ५६ इंची का हो गया है. की बनारस के इन गांजे के चिलम से हम अपने दिमाक को एक मोटिवेशन समझे.. उनके बारे में ये विडियो सहजता से समझा जा सकता है प्रतिभा
एक कलाकार की समाज के अनछुये पहलू को उजाकर कर पानें में तो समर्थ होती ही
है नहीं तो दिमाक को भी अपनी पेन व तूलिका से उद्वेलित कर देती है! विनय
कुल जी आपकी प्रतिभा को सादर नमन
Vinay Kull Ji , Cartoonist ,
An Intervew with Citi Channel,
Varanasi, 2004
अगर आप के पास में भी कोई जानकारी हो तो आप कमेन्ट बॉक्स में दे कर इस लेख को सुधारने में मदत का सकते है .
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मिश्रा जी आपने तो कुल जी का शब्दचित्र खिंचकर उनके ठलुत्व में चार-चांद लगा दिए ।
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