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Saturday, September 30, 2017

Khajuraho Group of Monuments : खजुराहो की यात्रा

खजुराहो की यात्रा 30 September 2017
 
तो सुबह ५ बजे ही पत्नी जी की मधुर आवाज सुनाई दी, उठो चाय आ चुकी है, चाय पि लो कितने बजे खजुराहो की टैक्सी आएगी ? मैंने कहा ९ बजे यहाँ से ब्रेकफास्ट कर के निकलेगे.. १ घंटे में नाहा धो अपन तैयार हुवे आउर निकल पड़े खजुराहो की तरफ, सुबह ९ बजे अपन की टैक्सी आ चुकी थी, एक दम नयी बिना नंबर की अपन दोनों पति पत्नी सामान रख टैक्सी में बिराज हुवे , टैक्सी चालक से पता चला की करीब १४० किलोमीटर की दुरी है जो करीब ४ घंटे लगेगे.. मैहर - उचेहरा – पन्ना – खजुराहो वाया NH 39, हम मैहर से बाहर निकले हमारी टैक्सी दौड़ रही थी,इस नक्से के आधार पर ४० किलो मीटर चलने के बाद तो लगा की किसी गाव में आ गए है, उजड़ी सड़के, धुल मिटटी, खैर जाना तो था तो चुप चाप चल रहे थे



 
कई बार खजुराहो का प्लान किया था, लेकिन रूट न मिलने से ये संभव नहीं हो पाया था लेकिन इस बार किस्मत जग गयी, वैसे खजुराहो बिदेशी पर्यटकों की पसंद है, क्यों की लोग खजुराहो जाने में शर्म करते है... चुकी मैंने दुनिया भर में खजुराहो का महिमा मंडन सुना है , वहा के लोग सपरिवार खजुराहो जाते है.. पता नहीं क्यों खजुराहो की मूर्तियों के बारे में भिन्न भिन्न व्याख्याऐं व विचार हैं। कुछ की मान्यता है कि ये प्रतिमाऐं समकालीन समाज की जर्जर व कमज़ोर नैतिकता का प्रतिनिधित्व करती हैं। कुछ की धारणा है कि यह कामशास्त्र के पौराणिक ग्रंथों के रत्यात्मक आसनों का निदर्शन है। यह भी माना जाता है कि ये प्रतिमाऐं, कुछ विशेष मध्यकालीन भारतीय पंथ जो कि कामुक कृत्य को धार्मिक प्रतीकवाद मानते थे, का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये लोग मोक्ष पाने के लिए योग तथा भोग दोनों ही मार्गों का अनुसरण करते रहे होंगे।
तुझे पाना ही मेरी मोहब्बत नहीं तेरा एहसास भी मेरे जीने की वजह है.. अपन है अपने अंदाज से जीने वाले.. अपन दुनिया की सब अय्याशी करते है बस सिर्फ अपनी धरम की पत्नी के साथ... तो सोचा की एक बार खजुराहो में भी दर्शन कर लिया जाये, सोचे अग्रेज्वा का देखने आते है ...
 
पोस्ट पढने से पहले — माफ कीजिये मै इस पोस्ट को अश्लील तो नही कह सकता क्योेंकि ये सब हमारे ही देश में मंदिरो पर उकेरी गयी प्रतिमाऐें हैं । इन्हे कैसे लिया जाये ये व्यक्ति के अपने नजरिये पर निर्भर करता है । ये हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है और अब भी है पर फिर भी महिलायें और बच्चे या जो एतराज मानते हों उनके लिये दूर रहना श्रेयस्कर है ।
 
सेक्स अग्रेजी में काम हिंदी में दोनों का मतलब शायद एक योग ही है ओशो से ले कर बड़े बड़े बिद्द्वान ज्ञान दिए है अब समझ लीजिये की इए बड़ी अजीब शांति है सेक्स। पहलवान भी करता है और कमज़ोर भी। गोरा भी करता है और काला भी। अमीर भी करता है और ग़रीब भी। ख़ूबसूरत के साथ भी करता हैऔर बदसूरत के साथ भी। कर के न बताओ तो मज़ाक बनेगा, खुले आम करो तो लोग बुरा मान जाएंगे। उम्र से पहले करो तो कानूनन अपराध, उम्र के बाद करो तो सामाजिक अपराध। सेक्स करो तो सही, उसकी बात करो तो ग़लत। सेक्स परोसना जायज़ और मेहमाननवाज़ी, सेक्स मांगना नाजायज़। आदमी कहे-करे तो सही, औरत करे तो ग़लत। छोटा परिवार सुखी परिवार का विज्ञापन बढ़िया, लेकिन कंडोम का विज्ञापन बेहूदा.. लोगो की अपनी अपनी विचार धराये है लेकिन अपन तो ध्यान लगाने के लिए पहुचे अपनी मेनका को ले खजुराहो के मंदिर. अध्यात्म में ध्यान को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। ध्यान हमारे शरीर को केंद्रित रखता है। हमारी पांचों ज्ञानेंद्रियां (आंख, नाक, जीभ, कान और स्पर्श) का एक साथ आनंद लेना ही 'काम' है। कामसूत्र बताता है कि जीवन में पूर्ण आनंद के साथ आध्यात्मिकता को कैसे प्राप्त किया जा सकता है। दरअसल सेक्स परमानंद की चरम अवस्था है। इसलिए यदि कोई अपनी यौन इच्छा को दबाता है तो यह बहुत सी मानसिक बेचैनी को जन्म देता है और जीवन से असंतुष्ठ हो जाता है। 
 
दो घंटे सड़क पर दौड़ती अपन की टैक्सी अपने मुकाम तक पहुंच रही अपन पन्ना में चाय पिने के लिए उतरे, हल्का नास्ता के बात अब चल दिए १ घंटे में पहुच गए खजुराहो .. पुरातत्‍व विभाग के एक बोर्ड पर मेरी नज़र पड़ी- खजुराहो में आपका स्‍वागत है! कला, संस्‍कृति और उससे झांकती हुई एक जीवंत शैली से जल्‍दी से जल्‍दी रू-ब-रू ‌होने की मेरी जिज्ञासा से मेरे मन में अनेक तरंगे उठ रही थीं। क्‍योंकि यहां के बारे में मैने जो सुना था, वह मेरे लिए बहुत जिज्ञासाजनक था। चौड़ी सड़क छोड़ती हुई टैक्सी होटल क्लार्कस खजुराहो पहुची और हमने अपना कमरा लिया । हमारे होटल में हमारा नाश्ता / रात्रि खाना बुकिंग के साथ फ्री था,होटल चेकिंग कर खजुराहो के बारे में जानकारी ली रिसेप्सन से ही फिर रम में पहुच गए .. एक घंटे आराम के बाद पैदल ही अपन दोनों चल दिए खजुराहो घुमने होटल से पता चला की पश्चिमी समूह के मंदिर में लक्ष्मण, कंदारिया महादेव, मतंगेश्वर, विश्वनाथ, लक्ष्मी, जगदम्बी, चित्रगुप्त, पार्वती तथा गणेश मंदिर आते हैं। यहीं पर वराह व नन्दी के मंडप भी हैं। वही खुले आसमान के निचे 50 मिनट का लाइट एंड साउंड शो रोजाना हिंदी और अंग्रेजी में दिखाया जाता है. जिसकी आवाज MPTourism के एक खजुराहो से सम्बन्धित विडियो से लिया गया है... और अपने खिचे फोटो में मिक्स किया गया है .. जिसे सुपर स्टार अमिताभ बच्चन अपनी आवाज़ में दर्शकों को खजुराहो के गौरवशाली इतिहास से रूबरू कराते हैं खजुराहो के मंदिर घूमने के बाद यहां पर्यटकों के मन में कई सवाल अधूरे रह जाते हैं. इसलिए पर्यटकों की तमाम सवालों के जवाब लिए यहां का लाइट एंड शो इसके इतिहास को बताता है.इस शो में चंदेल राजाओं के वैभवशाली इतिहास से लेकर इन अप्रतिम मंदिरों के निर्माण की कहानी बताई जाती है. 
 

खजुराहो प्रसिद्ध पर्यटन और पुरातात्विक स्थल है। जिसमें हिन्दू व जैन मूर्तिकला से सुसज्जित २५ मन्दिर और तीन संग्रहालय हैं। २५ मन्दिरों में से १० मंदिर विष्णु को समर्पित हैं, जिसमें उनका एक सशक्त मिश्रित स्वरूप वैकुण्ठ शामिल है। नौ मन्दिर शिव के, एक सूर्य देवता का, एक रहस्यमय योगिनियों ( देवियों) का और पाँच मन्दिर दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के तीर्थकारों के हैं। खजुराहो के मन्दिर में तीन बड़े शिलालेख हैं, जो चन्देल नरेश गण्ड और यशोवर्मन के समय के हैं। ७ वीं शती में चीनी यात्री युवानच्वांग ने खजुराहो की यात्रा की थी। उसने उस समय भी अनेक मन्दिरों को वहाँ पर देखा था। पिछली शती तक खजुराहो में सबसे अधिक संख्या में मन्दिर स्थित थे, किन्तु इस बीच वे नष्ट हो गए हैं। रात ९ बजे तक घूम घाम किया खजुराहो के वो विश्व प्रसिद्ध मंदिर खड़े थे ..........उन मंदिरों में सबसे पहले निगाहें कामसूत्र की उन मूर्तियों को ढूंढती है .....जो नदारद थी .......वहाँ खड़े एक गाइड नुमा बन्दे ने बताया ....देखो ये रही वो कलाकृति .......विशालकाय मंदिर में बाहरी दीवारों में उकेरी गयी , बमुश्किल चार इंच की छोटी छोटी ....... उन मंदिरों में ऐसी हज़ारों रही होंगी पर अपना कोई इंटरेस्ट जम नहीं रहा था सो अपन यूँ ही घूम फिर के आ गए रात्रि भोजन के बाद अब सोने की तयारी, 
 
सुबह पत्नी जी की मधुर आवाज के साथ चाय की प्याली ... नाहा धो तैयार हुवे आउर पहुच गए नास्ते के हाल में , ११ बजे अपन निकले खजुराहो के मंदिर घुमने, होटल के सामने ही एक ऑटो वाला मिल गया जो ५०० रुपये में सभी मंदिर घुमाने की बात फिक्स हुई, अपन दोनों बैठ लिए टेम्पू में .. चल दी अपनी सवारी ......छोटा सा बाज़ार .....खजुराहो आज भी असल में एक छोटा सा गाँव है जहां बमुश्किल हज़ार आदमी रहते होंगे .......दूर तक फैले खुले मैदानों में विदेशी सैलानियों के लिए तकरीबन हर बड़े ग्रुप के बड़े होटल हैं , हवाई अड्डा है और सुनते है की रोजाना सात आठ फ्लाइट्स उतरती है .........कमबख्त हंसी आती है ...साली बस एक भी कायदे की नहीं आती ........... खजुराहो के बारे में पूरी जानकारी के लिए आप http://bharatdiscovery.org/ पर क्लिक कर के पड़ सकते है 
 








 अपन को खजुराहो घुमने के बाद ये समझ में आया की अध्यात्म एक रास्ता है जिससे आप आशा, उम्मीद, आत्मिक शांति पा सकते हैं। बहुत से लोग अध्यात्म को धर्म से जोड़ते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होता है कि आपके स्वास्थ्य और अध्यात्म में भी एक गहरा रिश्ता होता है। हमारा शरीर, दिमाग और आत्मा एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं, इसलिए एक के सही ना होने पर उसका असर बाकियों पर भी पड़ता है। राय जो भी हो लेकिन मन में एक प्रश्न हमेशा उठता है कि आखिर खजुराहों में इतनी कामुक मूर्तियां क्यों बनाई गई हैं। आमतौर पर इसके पीछे ... दूसरी मान्यता के अनुसार प्राचीन काल लोग कामवासना या सेक्स के विषय पर खुलकर बात नहीं करते थे। खजुराहो की मूर्तियों की सबसे अहम और महत्त्वपूर्ण ख़ूबी यह है कि इनमें गति है, देखते रहिए तो लगता है कि शायद चल रही है या बस हिलने ही वाली है, या फिर लगता है कि शायद अभी कुछ बोलेगी, मस्कुराएगी, शर्माएगी या रूठ जाएगी। और कमाल की बात तो यह है कि ये चेहरे के भाव और शरीर की भंगिमाऐं केवल स्त्री पुरुषों में ही नहीं बल्कि जानवरों में भी दिखाई देते हैं। कुल मिलाके कहा जाय तो हर मूर्ति में एक अजीब सी जुंबिश नज़र आती है, ओशो कहते है की तंत्र ने सेक्‍स को स्प्रिचुअल बनाने का दुनिया में सबसे पहला प्रयास किया था। खजुराहो में खड़े मंदिर, पुरी और कोणार्क के मंदिर सबूत है। कभी आप खजुराहो की मूर्तियों देखी। तो आपको दो बातें अदभुत अनुभव होंगी। पहली तो बात यह है कि नग्‍न मैथुन की प्रतिमाओं को देखकर भी आपको ऐसा नहीं लगेगा कि उन में जरा भी कुछ गंदा है। जरा भी कुछ अग्‍ली है। नग्‍न मैथुन की प्रतिमाओं को देख कर कहीं भी ऐसा नहीं लगेगा कि कुछ कुरूप है; कुछ गंदा है, कुछ बुरा है। बल्‍कि मैथुन की प्रतिमाओं को देखकर एक शांति, एक पवित्रता का अनुभव होगा जो बड़ी हैरानी की बात है।



 
वे प्रतिमाएं आध्‍यात्‍मिक सेक्‍स को जिन लोगों ने अनुभव किया था, उन शिल्‍पियों से निर्मित करवाई गई है।उन प्रतिमाओं के चेहरों पर……आप एक सेक्‍स से भरे हुए आदमी को देखें, उसकी आंखें देखें,उसका चेहरा देखें, वह घिनौना, घबराने वाला, कुरूप प्रतीत होगा। उसकी आंखों से एक झलक मिलती हुई मालूम होगी। जो घबराने वाली और डराने वाली होगी। प्‍यारे से प्‍यारे आदमी को, अपने निकटतम प्‍यारे से प्‍यारे व्‍यक्‍ति को भी स्‍त्री जब सेक्‍स से भरा हुआ पास आता हुआ देखती है तो उसे दुश्‍मन दिखाई पड़ता है, मित्र नहीं दिखाई पड़ता। प्‍यारी से प्‍यारी स्‍त्री को अगर कोई पुरूष अपने निकट सेक्‍स से भरा हुआ आता हुआ दिखाई देगा तो उसे आसे भीतर नरक दिखाई पड़ेगा, स्‍वर्ग नहीं दिखाई पड़ सकता। लेकिन खजुराहो की प्रतिमाओं को देखें तो उनके चेहरे को देखकर ऐसा लगता है, जैसे बुद्ध का चेहरा हो, महावीर का चेहरा हो, मैथुन की प्रतिमाओं और मैथुन रत जोड़े के चेहरे पर जो भाव है, वे समाधि के है, और सारी प्रतिमाओं को देख लें और पीछे एक हल्‍की-सी शांति की झलक छूट जाएगी और कुछ भी नहीं। और एक आश्‍चर्य आपको अनुभव होगा। आप सोचते होंगे कि नंगी तस्‍वीरें और मूर्तियां देखकर आपके भीतर कामुकता पैदा होगी,तो मैं आपसे कहता हूं, फिर आप देर न करें और सीधे खजुराहो चले जाएं। खजुराहो पृथ्‍वी पर इस समय अनूठी चीज है। आध्यातिमिक जगत में उस से उत्‍तम इस समय हमारे पास और कोई धरोहर उस के मुकाबले नहीं बची है।
एक गृहस्थ के जीवन में संपूर्ण तृप्ति के बाद ही मोक्ष की कामना उत्पन्न होती है | संपूर्ण तृप्ति और उसके बाद मोक्ष, यही दो हमारे जीवन के लक्ष्य के सोपान हैं | कोणार्क, पूरी, खजुराहो, तिर तिरुपति आदि के देवालयों मैं मिथुन मूर्तियों का अंकन मानव जीवन के लक्ष्य का प्रथम सोपान है | इसलिए इसे मंदिर के बहिर्द्वार पर ही अंकित/प्रतिष्ठित किया जाता है | द्वितीय सोपान मोक्ष की प्रतिष्ठा देव प्रतिमा के रूप मैं मंदिर के अंतर भाग मैं की जाती है | प्रवेश द्वार और देव प्रतिमा के मध्य जगमोहन बना रहता है, ये मोक्ष की छाया प्रतिक है |


दिन भर घूमते घूमते अपन थक के चूर हो चुके थे, अब रात की ट्रेन थी खजुराहो से बनारस की... तो उसी ऑटो वाले ने हमें स्टेसन पंहुचा दिया, पैदल चलते चलते हालत ख़राब हो चुकी थी तो ट्रेन में बैठते ही आख बंद हो गयी जब आख खुली तो बनारस 

तो आप भी जाये खजुराहो....  


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