शैव मत / शैव संप्रदाय
हिंदुओं के ६ संप्रदाय माने गए हैं- शैव, वैष्णव, शाक्त, नाथ, वैदिक और चर्वाक। इसमें से चर्वाक संप्रदाय तो लुप्त हो गया लेकिन बाकी सभी संप्रदाय प्रचलन में हैं। सबसे प्राचीन संप्रदाय शैव संप्रदाय को ही माना जाता है। शैव मत का मूल रूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में है। १२ रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए। इनकी पत्नी का नाम है पार्वती जिन्हें दुर्गा भी कहा जाता है। शिव का निवास कैलाश पर्वत पर माना गया है। इनके पुत्रों का नाम है कार्तिकेय और गणेश और पुत्री का नाम है वनमाला जिन्हें ओखा भी कहा जाता था।
शिव के अवतार : शिव पुराण में शिव के भी दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है, जो निम्नलिखित हैं- १. महाकाल, २. तारा, ३. भुवनेश, ४. षोडश, ५. भैरव, ६. छिन्नमस्तक गिरिजा, ७. धूम्रवान, ८. बगलामुखी, ९. मातंग और १०. कमल नामक अवतार हैं। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं।शिव के अन्य ११ अवतार : १. कपाली, २. पिंगल, ३. भीम, ४. विरुपाक्ष, ५. विलोहित, ६. शास्ता, ७. अजपाद, ८. आपिर्बुध्य, ९. शम्भू, १०.चण्ड तथा ११. भव का उल्लेख मिलता है।
इन अवतारों के अलावा शिव के दुर्वासा, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है जिन्हें अंशावतार माना जाता है।
अगर विस्तार से देखा जय तो
•भारत के धार्मिक सम्प्रदायों में शैवमत प्रमुख हैं। वैष्णव, शाक्त आदि सम्प्रदायों के अनुयायियों से इसके मानने वालों की सख्या अधिक है। शिव त्रिमूर्ति में से तीसरे हैं जिनका विशिष्ट कार्य संहार करना है शैव वह धार्मिक सम्प्रदाय हैं जो शिव को ही ईश्वर मानकर आराधना करता है। शिव का शाब्दिक अर्थ है 'शुभ','कल्याण', 'मंगल', श्रेयस्कर' आदि, यद्यपि शिव का कार्य संहार करना है।
•शैवमत का मूलरूप ऋग्वेद में रुद्र की कल्पना में मिलता है। रुद्र के भयंकर रूप की अभिव्यक्ति वर्षा के पूर्व झंझावात के रूप में होती थी। रुद्र के उपासकों ने अनुभव किया कि झंझावात के पश्चात जगत को जीवन प्रदान करने वाला शीतल जल बरसता है और उसके पश्चात एक गम्भीर शान्ति और आनन्द कावातावरण निर्मित हो जाता है। अतः रुद्र का ही दूसरा सौम्य रूप शिव जनमानस में स्थिर हो गया।
•हिंदुओं के देवताओं की त्रिमूर्ति- ब्रह्मा, विष्णु और महेश में शिव विद्यमान हैं और उन्हें विनाश का देवता भी माना जाता है।
•शिव के तीन नाम शम्भु, शंकर और शिव प्रसिद्ध हुए। इन्हीं नामों से उनकी प्रार्थना होने लगी।
•यजुर्वेद के शतरुद्रिय अध्याय, तैत्तिरीय आरण्यक और श्वेताश्वतर उपनिषद में शिव को ईश्वर माना गया है।
उनके पशुपति रूप का संकेत सबसे पहले अथर्वशिरस उपनिषद में पाया जाता है, जिसमें पशु, पाश, पशुपति आदि पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग हुआ है। इससे लगता है कि उस समय से पशुपात सम्प्रदाय बनने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी थी।
•रामायण-महाभारत के समय तक शैवमत शैव अथवा माहेश्वर नाम से प्रसिद्ध हो चुका था।
•महाभारत में माहेश्वरों के चार सम्प्रदाय बतलाये गये हैं
१ .शैव
२ .पाशुपत
३ .कालदमन और
४ .कापालिक।
•वैष्णव आचार्य यामुनाचार्य ने कालदमन को ही 'कालमुख' कहा है। इनमें से अन्तिम दो नाम शिव को रुद्र तथा भंयकर रूप में सूचित करते हैं, जब प्रथम दो शिव के सौम्य रूप को स्वीकार करते हैं। इनके धार्मिक साहित्य को शैवमत कहा जाता है। इनमें से कुछ वैदिक और शेष अवैदिक हैं। सम्प्रदाय के रूप में पाशुपत मत का संघटन बहुत पहले प्रारम्भ हो गया था। इसके संस्थापक आचार्य लकुलीश थे। इनहोंने लकुल (लकुट) धारी शिव की उपासना का प्रचार किया, जिसमें शिव का रुद्र रूप अभी वर्तमान था। इसकी प्रतिक्रिया में अद्वैत दर्शन के आधार पर समयाचारी वैदिक शैव मत का संघटन सम्प्रदाय के रूप में हुआ। इसकी पूजा पध्दति में शिव के सौम्य रूप की प्रधानता थी। किन्तु इस अद्वैत शैव सम्प्रदाय की भी प्रतिक्रिया हुई। ग्यारहवीं शताब्दी में वीरशैव अथवा 'लिंगायत सम्प्रदाय' का उदय हुआ, जिसका दार्शनिक आधार शक्तिविशिष्ट अद्वैतवाद था।
•कापालिकों ने भी अपना साम्प्रदायिक संघटन किया। इनके साम्प्रदायिक चिह्न इनकी छः मुद्रिकाएँ थीं, जो इस प्रकार हैं-
1.कंठहार
2.आभूषण
3.कर्णाभूषण
4.चूड़ामणि
5.भस्म और
6.यज्ञोपवीत।
इनके आचार शिव के घोर रूप के अनुसार बड़े वीभत्स थे, जैसे कपालपात्र में भोजन, शव के भस्म को शरीर पर लगाना, भस्मभक्षण, यष्टिधारण, मदिरापात्र रखना, मदिरापात्र का आसन बनाकर पूजा का अनुष्ठान्करना आदि। कालमुख साहित्य में कहा गया है कि इस प्रकार के आचरण से लौकिक और पारलौकिक सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। इसमें सन्देह नहीं की कापालिका क्रियायँ शुध्द शैवमत से बहुत दूर चली गयीं और इनका मेल वाममार्गी शाक्तों से अधिक हो गया।
•पहले शैवमत के मुख्यतः दो ही सम्प्रदाय थे-
१ .पाशुपत और
२ .आगमिक।
•फिर इन्हीं से कई उपसम्प्रदाय हुए, जिनकी सूची निम्नांकित है:
•पाशुपात शैव मत
१ .पाशुपात,
२ .लघुलीश पाशुपत,
३ .कापालिक,
४ .नाथ सम्प्रदाय,
५ .गोरख पन्थ,
६ .रंगेश्वर।
•आगमिक शैव मत
१ .शैव सिध्दान्त,
२ .तमिल शैव
३ .काश्मीर शैव,
४ .वीर शैव।
•पाशुपत सम्प्रदाय का आधारग्रन्थ महेश्वर द्वारा रचित 'पाशुपतसुत्र' है। इसके ऊपर कौण्डिन्यरचित 'पंचार्थीभाष्य' है। इसके अनुसार पदार्थों की संख्या पाँच है-
१ .कार्य
२ .कारण
३ .योग
४ .विधि और
५ .दुःखान्त्।
•जीव (जीवात्मा) और जड (जगत) को कार्य कहा जाता है। परमात्मा (शिव) इनका कारण है, जिसको पति कहा जाता है। जीव पशु और जड पाश कहलाता है। मानसिक क्रियाओं के द्वारा पशु और पति के संयोग को योग कहते हैं। जिस मार्ग से पति की प्राप्ति होती है उसे विधि की संज्ञा दी गयी है। पूजाविधि में निम्नांकित क्रियाएँ आवश्यक है-
१ .हँसना
२ .गाना
३ .नाचना
४ .हुंकारना और
५ .नमस्कार।
•संसार में दुखों से आत्यन्तिक निवृत्ति ही दुःखान्त अथवा मोक्ष है।
•आगमिक शैवों के शैव सिध्दान्त के ग्रन्थ संस्कृत और तमिल दोनों में हैं। इनके पति, पशु और पाश इन तीन मूल तत्वों का गम्भीर विवेचन पाया जाता है। इनके अनुसार जीव पशु है जो अज्ञ और अणु हैं। जीव पशु चार प्रकार के पाशों से बध्द हैं। यथा –मल, कर्म, माया और रोध शक्ति। साधना के द्वारा जब पशु पर पति का शक्तिपात (अनुग्रह) होता है तब वह पाश से मुक्त हो जाता है। इसी को मोक्ष कहते हैं।
•कश्मीर शैव मत दार्शनिक दृष्टि से अद्वैतवादी है। अद्वैत वेदान्त और काश्मीर शैव मत में साम्प्रदायिक अन्तर इतना है कि अद्वैतवाद का ब्रह्म निष्क्रिय है किन्तु कश्मीर शैवमत का ब्रह्म (परमेश्वर) कर्तृत्वसम्पन्न है। अद्वैतवाद में ज्ञान की प्रधानता है, उसके साथ भक्ति का सामञ्जस्य पूरा नहीं बैठता; कश्मीर शैवमत में ज्ञान और भक्ति का सुन्दर समवन्य है। अद्वैतवाद वेदान्त में जगत ब्रह्म का विवर्त (भ्रम) है। कश्मीर शैवमत में जगत ब्रह्म का स्वातन्त्र्य अथवा आभास है। कश्मीर शैव की दो प्रमुख शाखाऐं हैं–
१ .स्पन्द शास्त्र और
२ .प्रत्यभिज्ञा शास्त्र। पहली शाखा के मुख्य ग्रन्थ ‘शिव दृष्टि’ (सोमानन्द कृत), ‘ईश्वरप्रत्यभिज्ञाकारिका’ (उत्पलाचार्य कृत), ईश्वरप्र्त्यभिज्ञाकारिकाविमर्शिनी’ और (अभिनवगुप्त रचित) ‘तन्त्रालोक’ हैं। दोनों शाखाओं में कोई तात्त्विक भेद नहीं है; केवल मार्ग का भेद है। स्पन्द शास्त्र में ईश्वराद्वय्की अनुभूति का मार्ग ईश्वरदर्शन और उसके द्वारा मलनिवारण है। प्रत्यभिज्ञाशास्त्र में ईश्वर के रूप में अपनी प्रत्यभिज्ञा (पुनरनुभूति) ही वह मार्ग है। इन दोनों शाखाओं के दर्शन को ‘त्रिकदर्शन’ अथवा ईश्वराद्वयवाद’ कहा जाता है।
•शैवमत के प्रधानतया चार सम्प्रदाय माने जाते हैं-
१ .पाशुपत
२ .शैवसिद्धान्त
३ .कश्मीर शैवमत
४ .वीर शैवमत
पहले का केन्द्र गुजरात और राजपूताना, दूसरे का तमिल प्रदेश, तीसरे का कश्मीर और चौथे का कर्नाटक है।
•वीर शैव मत के संस्थापक महात्मा वसव थे। इस सम्प्रदाय के मुख्य ग्रन्थ ब्रह्म सूत्र पर ‘श्रीकरभाष्य’ और ‘सिध्दान्त-शिखामणि’ हैं। इनके अनुसार अन्तिम तत्त्व अद्वैत नहीं, अपितु विशिष्टाद्वैत है। यह सम्प्रदाय मानता है कि परम तत्त्व शिव पूर्ण स्वातन्त्र्यरुप है। स्थुल चिदचिच्छक्ति विशिष्ट जीव और सूक्ष्म चिदचिच्छक्ति विशिष्ट शिव का अद्वैत है। वीर शैव मत को लिंगायत भी कहते हैं, क्योंकि इसके अनुयायी बराबर शिवलिंग गले में धारण करते हैं।
आदि शक्ति : the Female aspect of the Supreme Divine in Kinetic Dynamic Form.
तीन महाशक्तियाँ : (Super Powers) of the Universe or the Super Goddesses In Hinduism.
महासरस्वती (Great Saraswati) - Universal Force of Creation
महालक्ष्मी (Great Lakshmi) - Universal Force of Preservation
महाकाली (Great Kali) - Universal Force of Dissolution
हिन्दू त्रिदेव (GOD = Generator + Operator + Destroyer)
ब्रह्मा - the creator (Generator)
विष्णु - the sustainer (Operator)
शिव - the destroyer (Destroyer)
हिन्दू त्रिदेवी - Triple Goddess, the consorts of the Trinity
सरस्वती - Hindu Goddess of Knowledge and Wisdom, Wife of Brahma
लक्ष्मी - Hindu Goddess of Wealth and Fertility, Wife of Vishnu
पार्वती - Hindu Goddess of Power and Might, Wife of Shiva
विष्णु से सम्बन्धित अन्य देवता
गरुण- The Eagle Headed Deity who is the vehicle of Vishnu
अनन्त या शेष - The Infinite Serpent which is the Bed of Vishnu
नारद - The Divine Messenger of the Gods
दत्तात्रेय - Shown with Three Heads, representing the Oneness with Brahma, Vishnu and Siva (Shiva) - He is Guru and God, worshipped by all sects
हयग्रीव - He is shown with the head of a horse and is worshipped as the repository of all wisdom and knowledge
शिव
शिव के विभिन्न रूप RUDRA- THE LORD OF POWER नटराज - The Lord of Dance
दक्षिणमूर्ति - The Lord of the South - The Preceptor and Guru
महादेव - The Great God
हनुमान - Personified as a Monkey Headed Deity, God of Service and Devotion
अर्धनारीश्वर - The Androgynous God (Half Man and Half Woman)
शिव से सम्बन्धित अन्य देवता
गणेश - Oldest Son of Shiva and the God of Prosperity, shown with an elephant head
कार्तिक या स्कन्द - The Second Son of Shiva, The God of War, Youth and Purity
वीर भद्र- The Deity who Guards the Abode of Shiva
नन्दी - The Bull which is the vehicle of Shiva
अयप्पा - Also called Manikantha, Sasta - son of Siva and Mohini, the feminine form of Vishnu Lakshmi
लक्ष्मी के आठ रूप
आदि लक्ष्मी
विजया लक्ष्मी
विद्या लक्ष्मी
धन लक्ष्मी
धान्य लक्ष्मी
संतान लक्ष्मी
धैर्य लक्ष्मी
लक्ष्मी से सम्बन्धित अन्य देवता
श्री देवी- The Goddess of Beauty
पृथ्वी या भूदेवी - The Goddess of Earth
अलक्ष्मी या ज्येष्ट देवी - The Contra Goddess of Misfortune Parvati . The Passive/Peaceful Manifestations of Parvati
सती- Goddess of Marriage and Wedlock
Shashti - Goddess of Marriage and Childbirth
अन्नपूर्णा - Goddess of Food and Nourishment
ललिता - Goddess of Beauty
The Warrior Manifestations of Parvati
Kali - The Goddess of Time and Death
The Ten Great Wisdom Manifestations of Kali
Kali - The Goddess as Time
Tara - The Goddess as Space
Chinnamasta - The Goddess as The Cycle of Life and Death
Bhuvaneshvari - The Goddess as Perfection
Tripura Sundari - The Goddess as the Most beautiful
Bhairavi - The Goddess as the Most frightful
Bagalamukhi - The Crane headed Goddess as upholder of Universal Order
Dhumavati - The Widowed Goddess as Chaos and Misery
Matangi - The Goddess as Leftovers and Salvage
Kamala - The Goddess as Perfection
Durga - The Goddess of Power and War
The Nine Manifestations of Durga
Shailaputri
Brahmacharini
Kushmanda
Skanda Mata
Katyani
Chandraghanta
Siddhi Dhatri
Maha Gauri
Kaal Ratri
Maya - The Goddess of Illusion and Mystery
The Adityas
Indra - god of weather and war
Mitra - god of honesty, friendship and contracts
Ravi, Surya - the Sun gods
Varuna - god of the oceans and rivers
Yama - god of death
Some of the most important Devas:
Agni - god of fire
The Asura - Demons, Anti gods
The Aswini - gods of sunrise and sunset
Dyaus-pitar - ('Heaven-father') cognate of the Roman god Jupiter
Ganesh - personified with the head of an elephant, god of wisdom, intelligence, education and prudence
Parjanya - god of wind
Parvati or Parvathi, wife of Shiva
Prithivi - the Earth goddess
Purusha - the Cosmic-Man
The Rudras - the storm deities
Soma - the lunar deity
Ushas - The goddess of sunrise
Vasus, the
Vayu - god of wind
The Visvedevas
Ishvara - One who gives prosperity.
Hari - One who destroys sins (obstacles on the way to Moksha (liberation from the cycles of birth-death-birth)).
Narayana - The final destination towards which all individual souls are travelling.
हिन्दू धर्म के सिद्धान्त के कुछ मुख्य बिन्दु:
1. ईश्वर एक नाम अनेक.
2. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है.
3. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें.
4. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर.
5. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है.
6. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं.
7. परोपकार पुण्य है, दूसरों को कष्ट देना पाप है.
8. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है.
9. स्त्री आदरणीय है.
10. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है.
11. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में.
12. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता.
13. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी.
14. आत्मा अजर-अमर है.
15. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र.
16. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं.
17. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है.
18. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है.
हिंदू धर्म के पांच प्रमुख देवता
हिंदू धर्म मान्यताओं में पांच प्रमुख देवता पूजनीय है। ये एक ईश्वर के ही अलग-अलग रूप और शक्तियां हैं।
सूर्य - स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा व सफलता।
विष्णु - शांति व वैभव।
शिव - ज्ञान व विद्या।
शक्ति - शक्ति व सुरक्षा।
गणेश - बुद्धि व विवेक।
देवताओं के गुरु
देवताओं के गुरु बृहस्पति माने गए हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वे महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। भगवान शिव के कठिन तप से उन्होंने देवगुरु का पद पाया। उन्होंने अपने ज्ञान बल व मंत्र शक्तियों से देवताओं की रक्षा की। शिव कृपा से ये गुरु ग्रह के रूप में भी पूजनीय हैं
आत्मा
हिन्दू धर्म के अनुसार हर चेतन प्राणी में एक अभौतिक आत्मा होती है, जो सनातन, अव्यक्त, अप्रमेय और विकार रहित है। हिन्दू धर्म के मुताबिक मनुष्य में ही नहीं, बल्कि हर पशु और पेड़-पौधे, यानि कि हर जीव में आत्मा होती है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आत्मा के लक्षण इस प्रकार बताए गए हैं:
हिंदू धर्म मान्यताओं में पांच प्रमुख देवता पूजनीय है। ये एक ईश्वर के ही अलग-अलग रूप और शक्तियां हैं।
सूर्य - स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा व सफलता।
विष्णु - शांति व वैभव।
शिव - ज्ञान व विद्या।
शक्ति - शक्ति व सुरक्षा।
गणेश - बुद्धि व विवेक।
देवताओं के गुरु
देवताओं के गुरु बृहस्पति माने गए हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वे महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। भगवान शिव के कठिन तप से उन्होंने देवगुरु का पद पाया। उन्होंने अपने ज्ञान बल व मंत्र शक्तियों से देवताओं की रक्षा की। शिव कृपा से ये गुरु ग्रह के रूप में भी पूजनीय हैं
आत्मा
हिन्दू धर्म के अनुसार हर चेतन प्राणी में एक अभौतिक आत्मा होती है, जो सनातन, अव्यक्त, अप्रमेय और विकार रहित है। हिन्दू धर्म के मुताबिक मनुष्य में ही नहीं, बल्कि हर पशु और पेड़-पौधे, यानि कि हर जीव में आत्मा होती है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा आत्मा के लक्षण इस प्रकार बताए गए हैं:
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूय:।
अजो नित्य: शाश्वतोअयं पुराणो, न हन्यते ह्न्यमान शरीरे।।
(यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न तो मरता ही है तथा न ही यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य सनातन, पुरातन है; शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।)
किसी भी जन्म में अपनी आज़ादी से किये गये कर्मों के मुताबिक आत्मा अगला शरीर धारण करती है। जन्म-मरण के चक्र में आत्मा स्वयं निर्लिप्त रह्ते हुए अगला शरीर धारण करती है। अच्छे कर्मफल के प्रभाव से मनुष्य कुलीन घर अथवा योनि में जन्म ले सकता है जबकि बुरे कर्म करने पर निकृष्ट योनि में जन्म लेना पड्ता है। जन्म मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है। उसके बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्-चित्-आनन्द स्वभाव को सदा के लिये पा लेती है। मानव योनि ही अकेला ऐसा जन्म है जिसमें मनुष्य के कर्म, पाप और पुण्यमय फल देते हैं और सुकर्म के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति मुम्किन है। आत्मा और पुनर्जन्म के प्रति यही धारणाएँ बौद्ध धर्म और सिख धर्म का भी आधार है। `
ये तो रही धर्म का आधार और शैव मत ,चलिए अब आगे जरा वेद पुराणों को भी समझा जाय..>> : वेद पुराण
<< : पीछे देखे
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