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Sunday, May 22, 2016

फ्री सेक्स का होता !!

गुरू !! ई फ्री सेक्स का होता है हमको नहीं पता न पता करने की इक्षा है, हा अभी सोशल मीडिया पर ये मुद्दा उठाया है ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमन एसोसिएशन की सेक्रेटरी और सीपीएम (एमएल) पोलित ब्यूरोकी सदस्य कविता कृष्णन और उनकी मां लक्ष्मी कृष्णन ने। इस पोस्ट में उन्होंने जेएनयू के शिक्षकों को भी निशाने पर लिया है। जेएनयू के शिक्षकों ने २०१५ में एक दस्‍तावेज तैयार किया था, जिसमें यूनिवर्सिटी के छात्रों को सेक्‍स और शराब से भरे जीवन के बारे में बताया गया था। पोस्‍ट में दावा किया गया है कि कविता ने एक टीवी चैनल की डिबेट में कहा कि यह अफसोस की बात है कि कुछ लोग ‘फ्री सेक्‍स’ (अपनी मर्जी से किसी भी व्‍यक्ति से शारीरिक संबंध बनाना) से डरते हैं। इए कुल तो बड़े लोगो की बड़ी बाते है मै तो बस इतना ही जानता हूँ कि कुछ लोग बहुत ही सदाचारी होते हैं जो शादी से पहले सेक्स
नहीं करते और शादी के बाद सिर्फ अपने अर्धागिनी से ही सेक्स करते हैं । दुनिया गोल है तो अलग अलग तरह को लोग भी है जिनमे से कुछ कुछ लोग बहुत आशिक मिजाज भी होते हैं जब जहाँ जिसने भी हरी झंडी दिखाई वहीं वो वही अपना झंडा गाड़ लेते हैं, समाज में इस तरह के लोग नैतिकता के प्रति जवाबदार नहीं होते बस अपनी इक्षाओं के मुताबिक जीते हैं, इस तरह के सेक्स में सिर्फ उत्तेजना और हवस होती है कोई लगाव कोई बंधन, किसी तरह की भावना नहीं होती । न दुनिया को बताना है की उन्होंने अग्नि के साथ फेरे लिए है, न कमा कर पारिवारिक जीवन का टेंसन बस यूँ समझिए दो भूखे जिस्म एक दूसरे का पूरक बनकर अपनी अपनी काम पिपाशा शांत करते हैं ।

फ्री सेक्स गया तेल लेने पर उपरोक्त बातों के अंतर्गत आप खुदको तौलिए और देखिए कि आप व्यभिचारी हैं या सदाचारी हैं ? यहाँ बताने की ज़रूरत नहीं है क्यों कि मैं जानता हूँ प्रत्येक व्यभिचारी भी मेरी तरह समाज के बनाये रीती रिवाजो से डरता होगा , सदाचार के खोल में लिपटा होगा , पत्नी अथवा पतिवर्ता होता होगा । और अगर कोई ढीट मेरी तरह इस तरह के अविवाहित संबंधों को स्वीकार कर भी ले तब भी उसके माता पिता और बहनें दूध की धुली होती हैं, वह कल्पना भी नहीं कर सकता कि उसका जन्म किसी फटे कंडोम अथवा व्यभिचार का नतीज़ा है, वह सोच भी नहीं सकता कि उसकी बहन या बेटी ने भी इस तरह का कोई संबंध बनाया होगा । अब ज़रा थोड़ा सा ज्ञान भी अर्जित कर लीजिए

... भइया ऐसा है कि वैवाहिक संबंधों को कानून, समाज, और धर्म सब तरह से मान्यता प्राप्त है, इसकेविपरीत, प्रेम संबंध हैं जो सिर्फ फिल्म और साहित्य में ही अच्छे लगते हैं (हालांकि हर कोई खुद को सच्चा प्रेमी बताता है ) रुकिए ज्यादा लिबरल मत होइए क्यों कि मैं जानता हूँ कि आप भी मेरी तरह अपनी बहन बेटियों के अवैवाहिक संबंध बर्दास्त नहीं कर पायेंगे जल्द ही दोनों की शादी करवा देंगे या ऑनर किलिंग तो खैर चल ही रहा है । सबसे जरुरी अगर आप भारत में रहते है तो नंबर तीन पर आता है विवाहेत्तर संबंध यानी एक्सट्रा मेरियेटल अफेयर - भइया सरल भाषा में यूँ समझिए कि शादी शुदा होकर भी मेरी तरह इधर उधर मुह मारना या प्यार की पींगे बढ़ाना । हाँ तो ये जो विवाहेत्तर संबंध है यह कानूनन जुर्म है कानून की दृष्टि में इसे ही अवैध संबंध माना गया है, यदि आप पर यह जुर्म कोर्ट में साबित हो जाये तो भारत का कानून आप के पिछवाड़े इनकम टैक्स का दफ्तर खोल सकता है जिसके आधार पर आप को सात साल की सजा भी हो सकती है, साथ ही इसी को आधार बनाकर आपकी पत्नी आपसे तलाक़ भी ले सकती है । 

चलिए थोड़ा ज्ञान और पेल देता हूँ ... ऊ का है कि ये जो पति पत्नि के बीच ज़ोर जबरदस्ती होती है जिसे एक बड़ा तबका वैवाहिक बलात्कार कहता है कानून की नज़र में वह घरेलू हिंसा मात्र है । गुरू यदि पत्नी की आज इक्षा नहीं है तो आप पूरे एक हप्ते के लिए अनिक्षुक हो जाइए जबरदस्ती काहें करते हो, वेसे भी समभोग का शाब्दिक अर्थ बराबर बराबर भोगना है परंतु आप भोगे और चलते बने ये तो ग़लत बात है न, तो मेरे कहने का तात्पर्य ये है कि आप महिला हो या पुरुष हो पति पत्नी हो या प्रेमी प्रेमिका हो मैरिड हो या अन मैरिड हो मेरी बला से मुझे क्या पर अपने पार्टनर की इक्षाओं का ख़याल रखें ज़ोर जबरदस्ती न करें, ब्लैकमेल तो बिलकुल न करें फिर कोई कानून कोई समाज आपका कुछ भी उखाड़ नहीं पायेगा ।

फ्री सेक्स क्या है ? एक पगली ने राग छेड़ दिया और तुम लोग शुरू हो गए | इस पगली का यही काम है | भारत का एक बड़ा गैंग आज इस दिशा में काम कर रहा है | ये लोग खाए पिए अघाए घर से है | हमारे देश में तो अस्सी फीसदी दम्पति के जीवन में यौन सुख का कोई विशेष आकर्षण ही नहीं है | विवाह होते ही वह रोजी रोटी के लिए अपने जीवन को प्राथमिकता देता है | फिर ये गिरोह कौन है ? यह अजीब अजीब हरकत क्यों करता है ? असल में ये लोग जेंडर इक्वालिटी को इसी मार्ग से उद्गम स्थल समझते है | इन्हें दिल्ली के जीबी रोड में अपना मांस का लोथरा बेच रही नम-रूआसे आँखों में छुपी पीड़ा नहीं दिखेगी | लेकिन वही बगल से झंडेवालान में चुम्मा-चाटी पर लाइव कैमरा एक्शन खूब करेगे |
दूसरी तरफ मैंने इस खुली सेक्स के आमंत्रण को स्वीकार करने वाले लोगो के प्रोफाइल चेक की है | महाशय लोग अपना उम्र भी नहीं दीखते है | हमें तो इन पर दया कम और घिन्न ज्यादा आती है | कोई इतना बेहूदा कैसे हो सकता है ? मज़े की बात यह है कि वे इसमें अपना सनातनी तर्क भी दे रहे है | अब ऐसे सनातनी से तो तनातनी होगी ही ...

प्रकृति की दी हुई रज-शक्ति जिसका समानार्थी अर्थ पराग और वीर्य से है , सामन्य रूप मे इस को शक्ति के रूप मे समझा गया जिसमे शरीर और आत्मा की चेतना समेत अन्य कई चमत्कारिक ओज पूर्ण शक्तियां निहित है। प्रजनन भी एक ऐसी हि शक्ति है। पराग के कण जब फूल की स्त्रैण शक्ति से मिलते है तो बीज का निर्माण होता है , और एक फलदार वृक्ष का वीर्य फल के केन्द्र में स्थित बीज रूप मे उपस्थित हो जाता है।

कल ही लल्लन टॉप पर आशुतोष की ये खबर पड़ रहा था की बचपन में हमारी मम्मी हाथ पर 20 रुपए का नोट टिका कर कहती थी “जा मंजन ले आ.” हम लाते थे वो वाला टूथपेस्ट, जिसके साथ बुरुस फ्री होता था. अपन तो बच्चे थे. लेकिन मिडिल क्लास एडल्ट का भी यही हाल होता है. कि वो वही चाय की पत्ती लाता है जिसके साथ कटोरा या गिलास फ्री मिले. पैदा होने के बाद ‘फ्री’ से जो पहला पाला पड़ता है, वो यही है. यही जिंदगी भर साथ चलता है लोग आज वही फ्री का मतलब सोच रहे है.... देखो साब सीधा फंडा है. जानवर को भी आजादी है अपना सेक्स पार्टनर चुनने की. मुर्गी सबसे हैंडसम मुर्गा चुनती है. मोर को अपने पार्टनर से इजाजत लेनी पड़ती है, ढिनचक नाचना पड़ता है. सांड भी बाकी सांडों को भगाकर अपनी योग्यता सिद्ध करता है. ये नहीं कि सांस का मरीज है, बाकी सांड उससे भाई बंदी में कह दें कि “भाई तू ही कर ले. तेरा टाइम नजदीक है. हमारा क्या है कहीं और देखेंगे.” ऐसा सिर्फ हमारे समाज में होता है. कि 55 साल का बूढ़ा जबरदस्ती या किसी लालच में 20 साल की लड़की के मत्थे मढ़ दिया जाता है. 20 बिसुवा के बांभन हैं लड़की वाले, उनको अपने से ऊंचे कुल का लड़का चाहिए. भले वो लड़का लड़की को फूटी आंख न सुहाए. दन्न से ब्याह करा दिया गला पकड़कर. और दूल्हेराजा भले चरसी, लड़कीबाज और हांफ की बीमारी से ग्रस्त हों, उसकी हर इच्छा सिर माथे रखनी है. भाई वह परमेश्वर है. जितनी बार चाहे, जैसे चाहे वह सब कर सकता है. बीवी का कोई हक नहीं. वो कभी नहीं कह सकती कि “साले तेरे मुंह से बास आ रही है, नहीं करना तेरे साथ.” दुनिया बहुत आगे है भैया... लोग सेक्स की कुंठा मिटाने के लिए नेपाल, बैकोक थाईलैंड जाते है... दाम उठाते है... उ तो ठीक है..

अब एक बुद्धजीवी की नजर में फ्री सेक्स का मतलब है फ्री सेक्स एक कम्युनिकेसन है.. एक वार्ता लाप है जो आप सेक्स के विषय में बात कर सकते है और बात मिल गयी तो ठोक दीजिये किला.. फ्री सेक्स का मतलब सेक्स के लिए सहमति देने से ज़्यादा असहमति को स्पेस देना हैं। कुछ लोगों ने भारत की संस्कृति की दुहाई देते हुए एक वीर्यवान पुरुष ने उनको न्योता दिया “कविता जी, फ्री सेक्स का प्रदर्शन हम दोनों इण्डिया गेट पर करें तो कैसा रहेगा?”. लोगो की ये मानसिक कुंठा अब दिखाई दे रही है... अच्छा है एक खुली बहस शुरू हुई है.. मेरे हिसाब से तो हर पुरुष की एक फंटेसी ही, ये दिवा स्वप्न को पूर्ण करने के लिए लोग फ्री सेक्स से आख मिचौली कर रहे है... मेरे हिसाब से तो जैसा देश वैसा भेष.... 

इतनी आजादी तो वेश्या को भी मिलनी ही चाहिए कि वो पसंद करे कि उसे किसके साथ सेक्स करना है। फ्री सेक्स का मतलब ये कैसे हो गया मुझे नहीं समझ में आ रहा है। हो सकता मेरी अंग्रेजी कमजोर हो पर इतना जानता हूं कि 'रेपसीड आयल' का मतलब 'बलात्कार के बीज का तेल' नहीं होता है। पर अपने यहां हिन्दी के कुछ विद्वान अंग्रेजी ऐसे ही पढ़ते औऱ समझते हैं। मैं कुछ नहीं कर सकता। स्त्री को सेक्स करने की वस्तु, औजार व मशीन मानने की सोच, मानसिकता व परंपरा ही "फ्री सेक्स" को समझने नहीं देती। नहीं समझने देती कि "फ्री सेक्स" का मतलब शारीरिक यौन क्रिया नहीं होता। 

लेकिन जहां स्त्री को 'नर्क का द्वार' कहा जाता हो, जहां ब्रह्मचारी माने जाने वाले भगवानों के मंदिरों में स्त्री का प्रवेश वर्जित हो जबकि वह भगवान ब्रह्मचारी माना जाता हो, जहां घर के अंदर अपने ही बड़े बुजुर्गों से शरीर को छुपाकर, ढककर रखते हुए सुरक्षित रहने की घूंघट जैसी परंपराएं हों, जहां पत्थर की मूर्तियों के भगवानों के साथ सेक्स करने के लिए स्त्री दासियां नियुक्त की जाती रही हों, कितनी बताऊ.... 

ओशो ने इसी भाव को " सम्भोग से समाधि तक " भाव दवरा समझाने कि चेष्टा की थीं। सम्भोग का अर्थ गुणात्मक ऊर्जा के मिलन से है जो अनभिज्ञता वश ऊसी अर्थ में नहीं लिया जा सका । एक योगी समाधी में स्थित परमात्मा से सम्भोग मे तल्लीन होता है। सृष्टि में एक सामान्य प्राणीजीव सम्भोग के क्षणों मे काम ऊर्जा का मेल प्राकृतिक रूप से प्रदत्त प्रजनन के उपयोग के लिये करते है। अज्ञानता ये की अपनी इस शक्ति का पता उनकों स्वयम नही होता, और बस नैसर्गिक सरलता से एक कृत्य की तरह समाप्त होता है। मनुष्य संज्ञानी है , प्रचुर दिमाग का स्वामी है, इस कारण सोंचता तो है, परन्तु जन्म के साथ ही पर्यावरण धर्म सम्प्रदाय परिवार आदि के कारण, अज्ञानतावश इस ऊर्जा केन्द्र को न समझ के अपराध कर बैठते है , प्रकृति की एक भी शक्ति निरर्थक नहीं , त्याज्य नहीं, प्रयोजन युक्त है , पाप युक्त नहीं , उसको सही प्रकार से न समझना हमारी अज्ञानता है। और इसी अज्ञानता वश अपराध भी होते है , अपराध सिर्फ़ अज्ञानतावश ही होते है, ज्ञानी के तो कृत्य होते है। सम्पूर्ण मानवीय समाज कुछ ऐसे ही विकसित हुआ है , कि दो परम ऊर्जा के स्रोत, सहस्रधार और मूलाधार (काम केन्द्र) सबसे कठिन असाध्य योग्य बताये गए है। तिस पर साधारण वार्ता मे भी परहेज माना गया है। जिसके परिणाम स्वरूप , अज्ञानता को ही बढ़ावा मिला। अपराध को बढ़ावा मिला। यहीं पे एक आध्यत्मिक साधक जिसने चक्र केन्द्रो के रहस्य से साक्षात्कार किया है , वो इस उर्जा के प्रति अपराध कर ही नहीं सकते , संज्ञानी जानते है ,' वीर्यशक्ति जब बहिर्मुखी होती है लौकिक कृत्यों मे काम_रूप है जब यही शक्ति अंतर्मुखी होके योगी कि नसों मे प्रवाहित होती है तो काम_देव का रूप धर परमात्मा से एकाकार होती है। 

अरे यार हम अब आदि मानव नाही रहे भैया..हम सभी इस टॉपिक पर बात करना चाहें या न चाहें, मगर सच्चाई तो यही है कि इश्क, प्यार और मोहब्बत हमारी ज़िंदगी का एक ऐसा दस्तावेज है, जिसे कतई नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. जिस तरह इंसान को जीवित रहने के लिए हवा, पानी और भोजन की ज़रूरत पड़ती है ठीक उसी तरह उसे ज़रूरत पड़ती है, प्यार-रोमांस और सेक्स की. लोग सेक्स के लिए भले ही अलग-अलग शब्दों का चयन करें मगर असल मायने में न सिर्फ़ शारीरिक बल्कि आत्मिक संतुष्टि का नाम भी सम्भोग, रति-क्रिया या सेक्स ही है.

पूरी दुनिया के अलग-अलग देशों में काम करने वाली संस्था alternet ने व्यापक सर्वे के हवाले से जांचा और परखा है कि दुनिया के वे कौन से 12 प्रमुख और अव्वल देश हैं, जहां के लोग सेक्सुअली सैटिस्फाईड हैं. ख़ासकर के उस दौर में जब सेक्स के मुद्दे पर हम स्पेन और फ्रांस से आगे नहीं सोच पाते, ये रिपोर्ट और सर्वे हमारी नज़र को विस्तार देता है 

#12 चीन  
आश्चर्य हो रहा है न! पहले-पहल हमें भी हुआ था. मगर जरा सोचिए कि आख़िर वो चीन ही तो है जो पूरी दुनिया में जनसंख्या के मामले में अव्वल है. साथ ही पूरी दुनिया में बनने वाले Sex Toys में से 70% चीन में ही बनाए जाते हैं. कुल मिला कर कहानी का जीस्त यह है कि, उन बंद दरवाजों के पीछे कुछ बेहद ही ज़हीन और संतुष्ट जोड़े रहते है#11 जर्मनी जर्मनवासियों को हालांकि पूरी दुनिया के सबसे खराब लवर्स का दर्जा प्राप्त है (जिसकी वजह शायद उनके शरीर से आने वाली गंध हो!) मगर फ़िर भी वे सेक्सुअली काफ़ी सैटिस्फाइड दिखते हैं. जहां 32% जर्मनवासियों ने इस बात को स्वीकार किया है कि उनके वन-नाइट स्टैंड रहे हैं, इसके बावजूद उनका एचआईवी दर अमरीका की तुलना में छठा भाग ही है. है न आश्चर्य! 

#11 जर्मनी 
जर्मनवासियों को हालांकि पूरी दुनिया के सबसे खराब लवर्स का दर्जा प्राप्त है (जिसकी वजह शायद उनके शरीर से आने वाली गंध हो!) मगर फ़िर भी वे सेक्सुअली काफ़ी सैटिस्फाइड दिखते हैं. जहां 32% जर्मनवासियों ने इस बात को स्वीकार किया है कि उनके वन-नाइट स्टैंड रहे हैं, इसके बावजूद उनका एचआईवी दर अमरीका की तुलना में छठा भाग ही है. है न आश्चर्य! 

#10 नाइजीरिया 
इस सर्वे में भले ही नाइजीरिया को पूरी दुनिया में 10वां स्थान दिया गया हो, मगर Durex नामक Condom निर्माण करने वाली कम्पनी ने इसे No.1 का दर्जा दिया है. और यहां की 67% जनता ने ऐसे ही थोड़े घोषित किया है कि वे सेक्सुअल निर्वाण की प्राप्ति कर चुके हैं. 

#9 ऑस्ट्रेलिया 
75% ऑस्ट्रेलियाई इस बात को स्वीकार चुके हैं कि उन्होंने सड़कों पर सेक्स किया है. साथ ही ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले मर्दों की औसत तौर पर 25 पार्टनर्स रही हैं. और वहीं 27% ऑस्ट्रलियाई महिलाओं ने कहा है कि वे अपनी सेक्सुअल लाइफ़ में कोई बदलाव नहीं चाहती. अब तो आप समझ ही गए होंगे कि हम क्या कहना चाह रहे हैं! 

#8 इंडिया 
कामसूत्र की धरती के नाम से पूरी दुनिया मे प्रचलित ये देश 8वें नम्बर पर है. हालांकि पहली बार सेक्स करने के मामले में इंडियंस की औसत आयु 22 वर्ष है, मगर ये उम्र उनके उत्साह पर कभी भारी नहीं पड़ती. अब जब अधिकतर भारतीय नौजवान फोरप्ले और सिडक्शन पर विशेष ध्यान दे रहे हैं, लगभग 61% भारतीयों ने स्वीकारा है कि वे सेक्सुअली सेटिस्फाइड हैं. 

#7 मेक्सिको यह देश सेक्स एजुकेशन पर विशेष ध्यान देता है जिसकी वजह से इसे दुनिया के दूसरे सबसे सेक्सुअली सेटिस्फाइड देश का दर्जा प्राप्त है. इसमें ख़ासी मदद इस वजह से हो जाती है कि इस देश के आधे से अधिक राज्यों में सेक्स वर्कर्स के काम को मान्यता प्राप्त है.

#6 नीदरलैंड 
नीदरलैंड की सेक्स एजुकेशन पॉलिसी जहां बेहतरीन है वहीं यहां पर न्यूड बीचेस की बहुतायत है. अब इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि ऐम्सटरडम को यूरोप के सेक्स कैपिटल के तौर पर जाना जाता है. और इस देश का टीन बर्थ रेट 5.3% प्रति 1000 है जो अमरीका के 39.1% प्रति 1000 से काफ़ी कम है.

#5 ग्रीस 
ग्रीसवासियों को पूरी दुनिया के सबसे ख़ुशनुमा लोगों में शुमार किया जाता है और इसकी एक बड़ी वजह है कि वे सेक्स पर खुले रूप से डिस्कस करते हैं. ऐसा भी नहीं है कि ग्रीसवासी ऐसा आज ही कर रहे हैं बल्कि वे ऐसा सदियों से करते आ रहे हैं. यहां के ख़ूबसूरत नज़ारे और फूड का कोई जोड़ नहीं है. यहां से आ रही रिपोर्टें बताती हैं कि ग्रीस के लोग साल में सबसे ज़्यादा बार सेक्स करते हैं. 

#4 ब्राजील  
ब्राजीलवासी न सिर्फ़ फुटबॉल के मैदान में बल्कि बेड में भी चैपियन्स हैं. आश्चर्य नहीं है कि वे दुनिया के सारे देशों में सबसे कम उम्र में वर्जिनिटी लूज करने वाले देशों में अव्वल है. अलग-अलग रिपोर्टें बताती हैं कि ब्राजीलियन सप्ताह में एक से तीन बार सेक्स करते हैं. अब फ्रिक्वेंसी चाहे जो हो मगर ब्राजीलियन दुनिया के दूसरे सबसे बढ़िया प्रेमी तो माने ही जाते हैं.

#3 इटली 
इटलीवासियों को क्यों दुनिया के सबसे जबरदस्त प्रेमियों में शुमार किया जाता है? क्या इसकी वजह वहां की शराब है? क्या इसकी वजह वहां का खान-पान है? क्या इसकी वजह उनके बोलने की शैली है? क्या इसकी वजह उनका सिडक्शन में मास्टरी है? वजह चाहे जो भी हो मगर इटैलियन्स को आप नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते.(मोनिका बेलुची) आपको याद हैं न! इटली के 64% लोग अपनी सेक्स लाइफ़ से संतुष्ट हैं, आखिर इटली ऐसे ही पूरी दुनिया को ख़ुद की ओर थोड़े न आकर्षित करता है.

#2 स्पेन 
स्पेनवासी सेक्सी होते हैं और सबसे अच्छी बात है कि वे इस बात को जानते हैं. न्यूड बीचेस, गे मैरेज को सामाजिक मान्यता, दुनिया के सबसे हैंडसम मर्द और ख़ूबसूरत लड़कियां क्या इसे सबसे आगे नहीं रखते. अभी हाल के ही एक सर्वे जिसमें पूरी दुनिया से 15,000 औरतों को शामिल किया गया था जिसमें से 80% ने स्पेन के मर्दों को अपनी पहली पसंद बताया है. स्पेन के 90% महिलाओं और पुरुषों ने ख़ुद के सेक्सुअली सैटिस्फाइड होने की बात स्वीकारी है. अब इसमें आगे कहने को क्या बचता है. 

#1 स्विटजरलैंड 
क्या ये स्विटजरलैंड के दिलकश नज़ारों का कमाल है? क्या ये सदाबहार रोमांटिक यशराज फ़िल्मों की वजह से है? या फ़िर यहां प्राथमिक शिक्षा के दौरान सेक्स एजूकेशन की क्लासेस इसका कारण हैं? शायद ये सारी चीज़ों का गठजोड़ है. यहां की सबसे अच्छी चीज़ यहां के टीन एज बर्थ रेट का दुनिया में सबसे कम होना है, बावजूद इसके कि यहां 32% लोगों ने खुले में सेक्स करना स्वीकार किया है. 

अब जब आप जान गए हैं कि आपके पड़ोसी कैसा परफॉर्म कर रहे हैं, तो आप अपने परफॉर्मेंस को इम्प्रूव करने के लिए क्या करने जा रहे हैं? बिना सीमा के सेक्‍स के परिणाम भयंकर हो सकते हैं. सेक्‍स और अध्‍यात्‍म और एक सिक्‍से के दो पहलू हैं तो तनी आचार्य रजनीश के “सम्भोग से समाधी “ की तरफ चले... हर बाप को पता होता है की शादी के पहली रात उसकी बेटी क्या कर रही है... फिर भी वो ढोल बारात के जश्न मनाता है... अपनी अपनी सोच है भाई... 

दो स्वयंभू भगवानों का विरोधाभाषी ज्ञान ..

पापी हरिश्चंद्र  Friday December 12, 2014   का भी लेख कुछ स्वान्तः सुखाय देता है  

भगवन श्री  कृष्ण ने श्रीमद भगवत गीता मैं अपने को भगवन सिद्ध किया , भगवन रजनीश ने भी अपने को भगवन सिद्ध किया  |स्वयंभू सिद्ध भगवन रजनीश यानि ओशो जी '' काम '' का ज्ञान ..अध्यात्म ज्ञान ..''.सम्भोग  से समाधी की ओर ''  का  मार्ग प्रशश्त करता है  | समाधिष्ट व्यक्ति का आत्म साक्षात्कार स्वतः ही परमात्मा से हो जाता है | ......सेक्स से अंतःकरण की प्रसन्नता प्राप्त होती है | अन्तः करण की प्रसन्नता से सम्पूर्ण दुखों का अभाव हो जाता है |  और उस प्रसन्न चित्त वाले की बुद्धि शीघ्र ही सब और से हटकर एक परमात्मा मैं ही भली भांति स्थिर हो जाती है | ............................... .......भगवन श्री कृष्ण का ''काम'' पर दिया ज्ञान सन्मार्ग देता शांति प्रदान करता है .......''.रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है ,यह बहुत खाने वाला अर्थात भोगों से कभी न अघाने वाला और बड़ा पापी है इसको ही तू पापाचरण का प्रेरक वैरी जान | अग्नि के समान कभी न पूर्ण होने वाले काम रूप वैरी के द्वारा मनुष्य का ज्ञान ढंका हुआ है | इन्द्रियां ,मन और बुद्धि ..ये सब इसके वास स्थान कहे जाते हैं यह काम इन मन बुद्धि और इन्द्रियों के द्वारा ही ज्ञान को आच्छादित करके जीवात्मा को मोहित करता है | .विषयों का चिंतन करने से उन विषयों मैं आशक्ति हो जाती है ,आशक्ति से उन विषयों मैं कामना उत्पन्न हो जाती है | कामना मैं विद्धन पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है | क्रोध से अत्यंत मूड भाव पैदा होता है ,मूढ़भाव से स्मृति मैं भ्रम ,भ्रम से बुद्धि अर्थात ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से अपनी स्तिथि से गिर जाता है | ................................................इसलिए हे अर्जुन तू पहिले इन्द्रियों को वश मैं करके इस ज्ञान विज्ञानं का नाश करने वाले महान पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक मार डाल | ...........इन्द्रियों को स्थूल शरीर से श्रेष्ठ ,बलवान और सूक्ष्म कहते हैं ,इन इन्द्रियों से पर मन है ,मन से पर बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यंत पर है ..वह आत्मा है | .....................इस प्रकार बुद्धि से पर अर्थात सूक्ष्म ,बलवान ,और श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि के द्वारा मन को वश मैं करके तू इस काम रूप दुर्जय शत्रु को मार डाल |.''..........................................................................................................................दूसरे स्वयंभू सिद्ध भगवन रजनीश यानि ओशो जी '' काम '' का ज्ञान कुछ और ही ज्ञान प्रदान करता है ......अध्यात्म ज्ञान .....''.सम्भोग से समाधी की ओर '' का मार्ग प्रशश्त करता है | समाधिष्ट व्यक्ति का आत्म साक्षात्कार स्वतः ही परमात्मा से हो जाता है | ......सेक्स से अंतःकरण की प्रसन्नता प्राप्त होती है | अन्तः करण की प्रसन्नता से सम्पूर्ण दुखों का अभाव हो जाता है | और उस प्रसन्न चित्त वाले की बुद्धि शीघ्र ही सब और से हटकर एक परमात्मा मैं ही भली भांति स्थिर हो जाती है | ..........................................ओशो के अनुसार ...."धार्मिक व्यक्ति की पुरानी धारणा यह रही है कि वह जीवन विरोधी है। वह इस जीवन की निंदा करता है, इस साधारण जीवन की - वह इसे क्षुद्र, तुच्छ, माया कहता है। वह इसका तिरस्कार करता है। मैं यहाँ हूँ, जीवन के प्रति तुम्हारी संवेदना व प्रेम को जगाने के लिये।" ..............................................................ओशो ने हर एक पाखंड पर चोट की। सन्यास की अवधारणा को उन्होंने भारत की विश्व को अनुपम देन बताते हुएसन्यास के नाम पर भगवा कपड़े पहनने वाले पाखंडियों को खूब लताड़ा। ओशो ने सम्यक सन्यास को पुनरुज्जीवित किया है। सन्यास पहले कभी भी इतना समृद्ध न था जितना आज ओशो के संस्पर्श से हुआ है। इसलिए यह नव-संन्यास है। उनकी नजर में सन्यासी वह है जो अपने घर-संसार, पत्नी और बच्चों के साथ रहकर पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए ध्यान और सत्संग का जीवन जिए। उनकी दृष्टि में एक संन्यास है जो इस देश में हजारों वर्षों से प्रचलित है। उसका अभिप्राय कुल इतना है कि आपने घर-परिवार छोड़ दिया, भगवे वस्त्र पहन लिए, चल पड़े जंगल की ओर। वह संन्यास तो त्याग का दूसरा नाम है, वह जीवन से भगोड़ापन है, पलायन है। और एक अर्थ में आसान भी है-अब है कि नहीं, लेकिन कभी अवश्य आसान था। भगवे वस्त्रधारी संन्यासी की पूजा होती थी। उसने भगवे वस्त्र पहन लिए, उसकी पूजा के लिए इतना पर्याप्त था। वह दरअसल उसकी नहीं, उसके वस्त्रों की पूजा थी। वह सन्यास इसलिए भी आसान था कि आप संसार से भाग खड़े हुए तो संसार की सब समस्याओं से मुक्त हो गए। क्योंकि समस्याओं से कौन मुक्त नहीं होना चाहता? लेकिन जो लोग संसार से भागने की अथवा संसार को त्यागने की हिम्मत न जुटा सके, मोह में बंधे रहे, उन्हें त्याग का यह कृत्य बहुत महान लगने लगा, वे ऐसे संन्यासी की पूजा और सेवा करते रहे और सन्यास के नाम पर परनिर्भरता का यह कार्य चलता रहा : सन्यासी अपनी जरूरतों के लिए संसार पर निर्भर रहा और तथाकथित त्यागी भी बना रहा। लेकिन ऐसा सन्यास आनंद न बन सका, मस्ती न बन सका। दीन-हीनता में कहीं कोई प्रफुल्लता होती है? धीरे-धीरे सन्यास पूर्णतः सड़ गया।. संन्यासी, जो भाग गया है संसार से, वह तुम्हारे जैसे दुःख में नहीं रहेगा, यह बात तय है; लेकिन तुम जिस सुख को पा सकते थे, उसकी संभावना भी उसकी खो गई।जिसको हम सांसारिक कहते हैं, गृहस्थ कहते हैं, वह गिरता है सीढ़ी से; जिसको हम संन्यासी कहते हैं पुरानी परंपरा-धारणा से, वह सीढ़ी छोड़ कर भाग गया। मैं उसको संन्यासी कहता हूँ जिसने सीढ़ी को नहीं छोड़ा; अपने को बदलना शुरू किया और जिसने प्रेम से ही, प्रेम की घाटी से ही धीरे-धीरे प्रेम के शिखर की तरफ यात्रा शुरू की।..................................................................इसीलिए उन्होने अपने शिष्यों को "नव संन्यास" में दीक्षित किया और अध्यात्मिक मार्गदर्शक की तरह कार्य प्रारंभ किया। अपनी देशनाओं में उन्होने सम्पूूूर्ण विश्व के रहस्यवादियों, दार्शनिकों और धार्मिक विचारधारों को नवीन अर्थ दिया।............................................................भगवन रजनीश के अनुसार...........................................शास्त्र भरे पड़े हैं स्त्रियों की निंदा से। पुरुषों की निंदा नहीं है, क्योंकि किसी स्त्री ने शास्त्र नहीं लिखा। नहीं तो इतनी ही निंदा पुरुषों की होती, क्योंकि स्त्री भी तो उतने ही नरक में जी रही है जितने नरक में तुम जी रहे हो। लेकिन चूंकि लिखने वाले सब पुरुष थे, पक्षपात था, स्त्रियों की निंदा है। किसी तुम्हारे संत-पुरुषों ने नहीं कहा कि पुरुष नरक की खान। स्त्रियों के लिए तो वह भी नरक की खान है, अगर स्त्रियां पुरुष के लिए नरक की खान हैं। नरक दोनों साथ-साथ जाते हैं--हाथ में हाथ। अकेला पुरुष तो जाता नहीं; अकेली स्त्री तो जाती नहीं। लेकिन चूंकि स्त्रियों ने कोई शास्त्र नहीं लिखा--स्त्रियों ने ऐसी भूल ही नहीं की शास्त्र वगैरह लिखने की--चूंकि पुरुषों ने लिखे हैं, इसलिए सभी शास्त्र पोलिटिकल हैं; उनमें राजनीति है; वे पक्षपात से भरे हैं।.............................................तुम्हारे साधु-संन्यासी खड़े हैं सदा तैयार कि जब तुम उलझन में पड़ो, वे कह दें, हमने पहले ही कहा था कि बचना कामिनी-कांचन से, कि स्त्री सब दुःख का मूल है। वे कहेंगे, हमने पहले ही कहा था कि स्त्री नरक की खान है।......................सुख दुःख पर भगवन रजनीश की व्याख्या .......जब हमें वोध हो जाता है की अपनी स्तिथि के लिए हम ही जिम्मेदार हैं दूसरा कोई नहीं ,उस क्षण हमारे अंदर क्रांति आ जाती है हमारा रूपांतरण हो जाता है ...दुःख से सुख की ओर ...| ..............................................................................................जबकि भगवन कृष्ण कहते हैं कि....जो पुरुष सम्पूर्ण कर्मों को सब प्रकार से प्रकृति के द्वारा ही किये जाते देखता है और आत्मा को अकर्ता देखता है वही यथार्थ देखता है | सतगुण ,रजोगुण ,तमोगुण आत्मा को शरीर से बांधते हैं | सतगुण सुख मैं ,रजोगुण कर्म मैं और तमोगुण ज्ञान को ढककर प्रमाद मैं लगाता है | श्रेष्ठ कर्म का फल सात्विक (सुख ज्ञान और वैराग्यादि निर्मल फल ) कहा गया है | राजस कर्म का फल दुःख और तामस कर्म का फल अज्ञान कहा है | ........................................जिस समय तीनो गुणों के अतिरिक्त किसी अन्य को कर्ता नहीं देखता और मुझ सच्चिदानंदघन स्वरुप परमात्मा को पहिचानता है ,वह शरीर की उत्पत्ति के कारन रूप इन तीनो गुणों का उल्लंघन करके जन्म ,मृत्यु , वृद्धावस्था और सब प्रकार के दुखों से मुक्त हुआ परमानंद को पाता है | .............................................मर्म न जानकर किये हुए अभ्यास से ज्ञान श्रेष्ठ है , ज्ञान से मुझ परमेश्वर का ध्यान श्रेष्ठ है ,और ध्यान से भी सब कर्मों के फल का त्याग श्रेष्ठ है ,क्यों कि त्याग से तत्काल ही परम शांति होती है | ...................................................................यह है दो स्वयं सिद्ध भगवानों के ज्ञान बर्धक बचन किन्तु विज्ञानं के रूप मैं सिद्ध ज्योतिष सब कुछ जन्म समय बनी कुंडली मैं ही सिद्ध कर देती है | जातक मनुष्य किस प्रकृति का होगा | काला होगा गोरा होगा ,कर्मठ होगा ,अकर्मठ होगा , भाग्यवान होगा ,अभागा होगा ,धनवान होगा ,निर्धन होगा ,संत होगा ,वैरागी होगा या राजा होगा | सदगुणी होगा ,या दुर्गुणी होगा | विवाहित रहेगा या अविवाहित | कामुक होगा या नपुंसक | पूर्व जन्मों के कर्मों के फल के अनुसार सब निश्चित हो जाता है | ............................................................मनुष्य को दुखों से सुखों की ओर ले जाने के भगवानो के तो सिर्फ उपदेश ही होते हैं | जिनका कार्यान्वन तो सिद्ध पुरुषों द्वारा ही किया जा सकता है| सांसारिक व्यक्तियों के लिए .. अमल तो करना मुस्किल होता है ...| किन्तु सबसे सुगम भक्ति मार्ग तो अपना ही सकते हैं | किन्तु ज्योतिषियों के द्वारा अति सुगम उपाय किये जाते हैं | नए नए उपक्रमों से भी मनुष्य को क्या सुखी कर पाते हैं ज्योतिषी ...? ..और भी सुगम उपाय है निर्मल बाबा की कृपा .................इससे सुगम तो सिर्फ .................................................................ओम शांति शांति शांति जपो और सुखी महसूस करो

पाप और पुण्य के मध्य भी एक महीन सी मात्र अज्ञानता की लकीर है, एक छोटी सी परिभाषा पाप और पुण्य कि सम्पूर्ण है ," वो समस्त कृत्य पाप कीं श्रेणी में आते है जो सृष्टि के प्रति अपकार से जुड़े हो , जहाँ भी सृष्टि की शक्ति का सृष्टि की कृति का रंच मात्र भी अपमान का भाव शामिल है वो कृत्य (मनसा, वाचा, कर्मणा ) तीनो के ही अन्तर्गत पाप कहे गए, और जहाँ सृष्टि का सम्मान, श्रद्धा है प्रेम है ऐसे कृत्य पुण्य कीं श्रेणी मे माने गये। " और इसी आधार पे सच्चा आध्यात्मिक साधक अपनी साधन मे सबसे पहला पाठ आभार , कृतज्ञता और प्रेम और करुणा का ही सीखता है , एक आध्यत्मिक आलोकित आत्मा सिर्फ़ प्रकर्ति से एकाकार होकर परमात्मा से मिलने चल पड़ती है। फिर तो मिलने के लिये चलना भी नहि यहीं का यहीं परमात्मा से मिलन हुआ हीं है।

जिस समाज मे भी अध्यत्मिक सज्ञान और उत्थान बढ़ेगा वहां ऐसे काम प्रेरित तथा अन्य जो सृष्टि के प्रति अपकार दिखाएँ, अकृतज्ञता दिखाएँ ऐसे लौकिक अपराध स्वयम ही समाप्त हो जायेंगे।

कोउ नृप होय हमें का हानी, चेरि छांड़ न होउब रानी’
स्वस्थ्य तथा उन्नतशील समाज की शुभेक्षा, शुभकामनाये !!

 

 





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