post:


Tuesday, April 28, 2015

खंडवा से नासिक

(२८ अप्रैल २०१५) ख़तम हुवा ओम्कारेश्वर / ममलेश्वर का दर्शन पूजन, भोजन भी हो गया, अब निकले खंडवा स्टेशन जहा से नासिक की ट्रेन 12144 / SLN LTT SF SPL शाम ६.५५ पर  रात्रि १० बजेनासिक, रात्रि विश्राम "नासिक " का प्रोग्राम था ... धुप तेज थी तो गाड़ी का ऐ सी भी काम नहीं कर रहा था .. माता जी को ले कर चल दिए खंडवा के लिए ..खाना भी इतना खा लिया था ..कार में ही सोने की कोशिस कर रहा था लेकिन हाय  रे गर्मी... तब सोचा मता जी से ही कुछ बतियाया जाये... तो माता जी के साथ यात्रा के दौरान भोलेनाथ के संदर्भ में चर्चा का विषय .... बस
#टाइम_पास
करता क्या ओम्कारेश्वर से खंडवा रेलवे स्टेशन मोटी मोटा ७५ किलो मीटर, तो समय भी सवा घंटे लगना था
तो मै शुरू हुवा गूगल पर तो मिल ही गया एक सब्जेक्ट अमृतलाल नागर जी का ब्यंग सतसई .. मजा आ गया तो सुना दिया माता जी को .. 8-) देख रहे हो भोलानाथ एक भगत ने तो सौ मन भंग का गोला छनाकर ही संतोष कर लिया था पर दूसरे को तो करोड़ बोरे भंग भी थोड़ी ही मालूम पड़ रही है, जिसमें संखिया, धतूरा, कालकूट और अफीम भी मिलाई गई है ऐसी गहरी पंचरत्नी को भी मात्र तुम्हारे जलपान का ही साधन बतलाया गया है। हद हो गई योगेश्वर, हद हो गई—भला एक बात तो बताओ, इतनी भांग पीकर तुम्हें हाई या लो ब्लडप्रेशर तो नहीं होता ? अजब हाल कर रखा है तुम्हारे भक्तों ने, एक ओर तो तुम्हें इतनी नशे की गर्मी देते हैं और दूसरी ओर लोटों पर लोटे और कलसों पर कलसे गंगाजल चढ़ाते हैं। इस मार्च के महीने यदि और किसी को इतना नहलाया जाए तो उसे डबल निमोनिया ही हो जाए। मगर आप तो भूतनाथ हैं, सर्दी-गर्मी सब एक समान ही अपने अंदर लय कर लेते हैं। आपके इसी विकट महादेवपन के कारण ही तो बड़े-बड़े कवियों ने आपके साथ बड़े-बड़े मजाक किए हैं। अरे संत शिरोमणि, गोस्वामी तुलसीदास जी तक आपकी ब्याह-बारात का रंगीला वर्णन करने से नहीं चूके। राष्ट्रीय आंदोलन के ज़माने में भी आपके भक्तों ने आपकी नशेबाजी की आदत का खूब मज़ाक उड़ाया है।

यह सब हंसी-मजाक सिद्ध करता है कि जनता आपको बेहद चाहती है। आपकी श्रद्धा से सरोबोर होकर कोसों और मीलों से चली आ रही है—बम बम भोले। बमभोले । हर हर महादेव।
लेकिन भोलेनाथ! एक बात सच्ची बताना। क्या तुम अपने इन बड़े-बड़े मन्दिरों में सचमुच विराजमान हो ? यहां तो तुम्हारे नाम पर तुम्हारे पण्डे-पुजारी तुम्हारे भक्तों को लूट रहे हैं। ये देखो, तुम्हारे मन्दिर के अंदर क्या मारा-मारी मची हुई है। तुम्हारे पुजारी लोग तुम्हारी अपढ़ भोले भक्तों के हाथों से झपाझप प्रसाद और पूजा-सामग्री छीन-छीनकर कोने में घरते जा रहे हैं। इन पुजारियों के चेहरों पर भक्ति-भावना की एक धुंधली-सी छाया भी नहीं पड़ी है। सूरत से ही ये लोग डाकू लग रहे हैं, डाकू। तुम्हारे इस मन्दिर में चांदी के किवाड़ हैं संगमरमर की फर्श है, चांदी का विशाल सर्प और सोने का छत्र है, बांस-बल्लियों की आड़ें लगी होने पर भी भक्तों की भीड़ तुम्हारे दर्शनों के लिए टूटी पड़ रही है—पर तुम यहाँ कहाँ हो भगवान्। कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे हो, फूल, बेल-पत्र और धतूरे के फलों का एक पहाड़ तो अवश्य दिखलाई देता है—तो क्या इसी के नीचे तुम दबे हुए हो? तुम अपने भक्तों की अंध श्रद्धा से दबे हुए देवता? नहीं, तुम यहाँ हरगिज-हरगिज़ नहीं हो सकते। शिव ! तुमने तो सदा इन लुटेरे पण्डे-पुजारियों के कर्म-काण्ड का विरोध कर भक्तिरस की अमृत धारा प्रवाहित की है। अपनी मोटी दक्षिणा की लालच से इन पोपपंथी कठमुल्लों ने राजा-प्रजा का कीमती धन और समय यज्ञ पर यज्ञ करके स्वाहा करना शुरू किया,राष्ट्र को अंधा और अपंगु बना डाला तब तुमने भक्ति की महिमा बढ़ाई। तुमने उपदेश दिया कि जो व्यक्ति अपने घर से चलकर नित्य जितनी दूर गंगा-स्नान करने जाता है, जितने कदम चलता है, वह एक-एक कदम पर सौ-सौ वाजपेय यज्ञों का पुण्यफल पाता है। वाह रे त्रिलोचन भगवान् तुमने हजारों-लाखों रुपयों का घी-यव-घान्य आग में जलाकर दक्षिणा से मोटे बननेवालों के धर्म को निकम्मा सिद्ध कर दिया। 

हे शंकर जी, तुम एक बीवी गंगा जी को अपने सिर पर चढ़ाकर और दूसरी पार्वती जी को वामांग में बिठाकर भंग के नशे में बैठे-बैठे चकल्लस कर रहे हो और यहां तुम्हारे एक भक्त की प्यास के मारे जान निकली जा रही है। तुमको लज्जा नहीं आती ? भक्त की फटकार सुनकर तुमने तुरन्त ही गंगा जी को उस अंधेकुएं मेंउतार दिया और प्यासे की जान बचाई। यानी कथा का अर्थ ये है कि सच्चा भाव होता है वहां कर्म भी होता है और जहां भाव है, कर्म है, वहां ज्ञानगंगा भी आप ही आप प्रवाहित होने लगती है। हे त्रिनेत्र, तुम ज्ञान देते हो, भक्ति देते हो, शक्ति देते हो। तुम्हारा यही रूप मंगलकारी है, मैं तुम्हारे इसी रुप को भजता हूं।

जय भोले। भोले बमभोले ।
भोलेनाथ, क्या मरज़ी है तुम्हारी ? होली के दिन नगिचियाए हैं आजकल तो डबल गहरी छनती होगी मेरे गुरु, गुरुओं के गुरु। मगर एक बात कहें ? कहोगे किगुरु से छेड़खानी करता है, भारतीय संस्कृति के खिलाफ काम करता है। नहीं-नहीं, विश्वंभर, सो बात नहीं। अपने यहां के भक्ति दर्शन की यही तो महिमा है 

पितु मातु सहायक स्वामि सखा तुम ही इक नाथ हमारे हो
 
सो तुम गुरु भी हो, यार भी हो। इस बखत हमारा तुमसे यारी बरतने का मूड है, सो यारी बरतेंगे और इस बहाने तुम्हारे हित में कुछ खरी-खरी सुनावेंगे। हमपूछते हैं भोले, महंगाई कितनी बढ़ गई है कुछ इसकी भी खबर रखते हो कि सदा अलमस्त ही बने रहते हो। भगवती से पूछे भला कि तुम समान अलमस्त का खर्चाकैसे चलाती होंगी। ये तो कहो कि कार्तिकेय और गणेश अपने-अपने काम-धन्धे से लगे हैं। नहीं तो गुरु, ये तुम्हारा सारा नाच-हुड़दंग कब का खत्म हो जाता। हम पूछते हैं गुरु जी, इतना बढ़िया नाचते हो कि 'नटराज',आदि नट, कहलाते हो, एक बढ़िया-सी कम्पनी खोल के दुनिया-भर में अपना डांस ट्रुप क्यों नहीं घुमाते ?तुम्हारी नकलें उतार-उतार कर नर्तक लोग लखपती बन गए और तुम भिखारी के भिखारी ही रहे। भोलानाथ,तनिक कल्पना तो करो कि ठाठ से सूट-बूट पहने हो,गले में सर्प डोल रहा है, हाथ में सिगरेट का टिन है, चेहरे पर लापरवाही और खोएपन की अदा है, कपाल पर तीसरा नेत्र और सिर के जटाजूट में गंगा जी मानिन्द फव्वारे के मद्धिम-मद्धिम पिक्टोरियल एफेक्ट मार रही हैं। भूतनाथ, इस छवि को देखते ही सारी दुनियों तुम्हारे पीछे भूत बनी डोलेगी। जहां जाओगे फोटोग्राफरों का हुजूम पीछे जाएगा। आटोग्राफ देते-देतेतुम्हारा हाथ मशीन हो जाएगा। बड़े-बड़े राजमहलों में दावतें उड़ाना, मज़ें से भारतीय संस्कृति पर लेक्चर देना और फिर ठाठ से एक महल बनवाकर रहना बैलछोड़ मोटर, हवाई जहाज़ पर सावारी करना चेला होने के नाते मै भी तुम्हारी कम्पनी का मैनेजर हो जाऊंगा मेरे भी ठाठ हो जाएंगे।
क्या कहा ? आइडिया पसन्द नहीं आया। कहते हो यों ही गुज़री है, यों ही गुजरेगी, हां, एक तरह से तो ठीक ही कहते हो नटराज ! जब तुम्हारे भक्त तक इतने अल्पसन्तोषी हैं कि पुकार-पुकारकर कहते हैं :

अच्छा गुरु नाथ, हमारी एक शंका का समाधान करो। ये तो तुम जानते ही हो कि आज हम साफ-साफ कहने–सुनने के मूड में ही बैठे हैं।—हम पूछते हैं भोले—यह मान लिया कि शरीर क्षणभंगुर है—माटी में से आया बन्दे माटी में मिल जाना है—बिलकुल ठीक है। फिर ये माया-मोह कि राजसुख पा लूं और मान-सम्मान पा लूं,दिग्विजय कर लूं, मामले-मुकदमें लड़ लूं, ये मेरा है, ये तेरा है—ये सब व्यर्थ है—आदमी को नित् ब्रह्म मुहूर्त में उठकर माला हाथ में लेकर ओम् नमो शिवाय ही जपते रहना चाहिए। वाह, क्या बात है, अगर ऐसा ही जीवन होता तो फिर कहना ही क्या था। मगर उसमें दो भारी अड़चनें हैं—एक तो पेट और दूसरे विवाह की समस्या। तुम कहोगे, क्या भौतिक बातें कहता हूं,अध्यात्म में क्यों नहीं मन रमता। पर तुम्हारे भगत लोग कह गए हैं गुरु कि :

भूखे भजन न होहिं गुपाला,
यहि लेओ कण्ठी यहि लेओ माला।।...

बस माता जी सो गयी मेरी बकवास सुन के =D .. फिर हो गया अकेला .. पास में रजनी गंधा भी नहीं वो भी ख़तम ..अब क्या करता तो व्हाट्स ऐअप पर लगा घर वालो को ओम्कारेश्वर की फोटो .. येही करते करते पहुच ही गए खंडवा स्टेशन.. धुप बहुत ही तेज थी तो फटा फट सामान ले कर स्टेशन के अन्दर.. वातानुकूलित बिश्रम्मालय में ताला लगा मिला क्यों की वहा अन्दर बैठ के लोकल लोग दारू जुवा खेलते है.. मैंने भी सोचा ठीके है ... तो माता जी को टिकेट काउंटर के पास बैठा दिया और निकल पड़ा ट्रेन और खंडवा का हाल खबर लेने ... शाम के ४ बज चुके थे लेकिन पूछ ताछ के साथ कोई जानकारी नहीं थे ट्रेन के .. तो निकल लिए बाहर ...

खंडवा भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। समुद्र तल से ९०० मीटर की ऊंचाई पर स्थित मध्य प्रदेश के खंडवा जिले को दक्षिण भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता है। यह जिला नर्मदा और ताप्‍ती नदी घाटी के मध्य बसा है। ६२०० वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैले खंडवा की सीमाएं बेतूल, होशंगाबाद, बुरहानपुर, खरगोन और देवस से मिलती हैं। ओमकारेश्‍वर यहां का लोकप्रिय और पवित्र दर्शनीय स्‍थल है। इसे भारत के १२ ज्योतिर्लिगों में शुमार किया जाता है। इसके अलावा घंटाघर, दादा धुनीवाले दरबार, हरसुद, सिद्धनाथ मंदिर और वीरखाला रूक यहां के अन्य लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं। 

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार खंडवा शहर का प्राचीन नाम खांडववन { खांडव वन } था जो मुगलों और अंग्रेजो के आने से बोलचाल में धीरे धीरे खंडवा हो गया . मान्यतानुसार श्रीरामजी के वनवास के समय यहाँ सीता माता को प्यास लगी थी तथा रामजी ने यहाँ तीर मारकर एक कुआ बना दिया और उस कुए को रामेश्वर कुए के नाम से जाना जाता है जो खंडवा के रामेश्वर नगर में नवचंडी माता मंदिर के पास स्थित है अतः खंडवा मान्यता अनुसार हजारों वर्ष पुराना है जिसका आधुनिक रूप वर्तमान खंडवा है १२ वीं शताब्दी में यह नगर जैन मत का महत्त्वपूर्ण स्थान था। यह नगर पुरातन नगर है, यहाँ पाये जाने वाले अवशेषों से यह सिद्ध होता है, इसके चारों ओर चार विशाल तालाब, नक़्क़ाशीदार स्तंभ और जैन मंदिरों के छज्जे स्थित हैं।
आधुनिक नगर : १८६४ से यह नगर मध्य प्रदेश के नवगठित निमाड़ ज़िले का मुख्यालय रहा। १८६७  में इसे नगरपालिका बना दिया गया। भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित खंडवा एक प्रमुख शहर है। ६२०० वर्ग किलोमीटर के विस्तार वाले खंडवा की सीमा बेतूल, होशंगाबाद, बुरहानपुर, खरगोन और देवास से मिली हुई हैं। फिर आया वापस माता जी के लिए चिल्ड अमूल मिल्क ले कर पिलाया .. माता जी भी किसी महिला से बात चित में मगन थी .. फिर ओनलाइन इन्क्वारी से पता चला की हमारी ट्रेन ९ घंटे लेट है .. माता जी ने हुकुम दिया बस से चलो .. क्यों की अगले दिन सुबह ९ बजे से हमारी त्रयम्बकेश्वर / पंचवटी का प्रोग्राम था .. सो निकल पड़े बस समझने .. वहा से कोई बस नहीं थी नासिक के लिए .. एक सभ्य पुरुष ने सलाह दी की खंडवा से बहुत ही ट्रेन मुंबई जाती है वाया नासिक रोड .. लौट कर फिर पहुचे स्टेशन मास्टर के पास, अपना टिकट दिखाया और ट्रेन लेट है क्या करना है.. मास्टर साहब ने कहा आप का टिकेट तो इन्टरनेट से बना है इसका हम कुछ नहीं कर सकते हा अभी पंजाब मेल और महानगरी दोने लेट थी, जो ५ बजे तक खंडवा पहुच जाएगी.. आप जनरल टिकेट ले कर टी टी से बतिया लीजिये.. सिट मिल जाएगी.. सुनते ही दौड़े पीछे माता जी के पास, काउंटर से २ जनरल टिकेट लिया नासिक के लिए और सामान ले कर माता जी के साथ आ गया २ नंबर प्लेटफार्म पर.. ट्रेन की प्रतीक्षा में फिर ऑनलाइन अपना टिकट भी TDR भर कर कैंसिल कर दिया ... पहले महानगरी आई .. ३ ऐ सी के पास ही हम खड़े थे .. लेकिन टी टी नदारत ... २ मिनट ही समय था तो सामान के साथ माता जी को भी चड़ा दिया AC डब्बे में और लगा टी टी खोजने..  माता जी लगी चिल्लाने अन्दर आ जा .. अब ट्रेन चली.. तभी  एक कुली आ गया ... मुस्कुरा के बोला सिट चहिये .. मैंने भी फुर्ती के साथ सर हिला दिया...  मुझे ले कर दौड़ा वो और टी टी के पास ..पहुच ही गया .. क्या बात किया ... टी टी ने टिकेट के पीछे २ सिट लिख दी.. वापस आया कुली  के साथ .. कुली  ने सामान सिट पर रखवा दिया .. बोला फटा फट २०० रुपये... मैंने पूछा टिकेट का .. उसने कहा टिकेट का हिसाब टी टी करेगा... ये २०० मुझे.. सिट दिलाने के लिए.. ट्रेन धीमी रफ़्तार पर थी तो मैंने भी उसे २०० रुपये दे दिया वो निकल लिया .. ट्रेन मोटी मोटा खाली ही थी ... सामने की सिट पर भोपाल के एक सिन्धी भाई अपने दो बेटियों को ले कर भुसावल जा रहे थे ... किसी शादी में .. उनकी दोनों बेटिया खूब हसी मजाक और मस्ती कर रही थी तो हम भी शांति से बैठ उनकी खुशियों में शरीक हो रहे थे.. वो लोग भुसवाल उतर गए तो आस पास भी खाली हो गया, तभी टी टी साहेब आकर बोले अब मेरा  जलगाव तक की सेवा वहा ड्यूटी फिनिश .. अगला साहेब आ कर आप का टिकेट बना देगे.. सिर्फ मै और माता जी ..अब जलगाव आने वाला था तो माता जी से खाने के बारे में पूछा ... फिर ट्रेन रुकी तो २ खाना लिया १० बज चुके थे .. तो माता जी का बिस्तर लगा के सुला दिया .. अभी तक तक टी टी नहि आया था तो उसको भी सलटाना था तो लगा टहलने डिब्बे में टी टी को खोजते.. टी टी जी भी बदल चुके थे ... आखिर वो वसूली में ब्यस्त जो थे.. मैंने टिकेट के लिए पूछा तो उन्होंने १००० रूपया माग लिया दिया.... मैंने  २ गाँधी जी .. जो टी टी जी के जेभ भी छुप गए... पूछा स्टेशन के बाहर कैसे निकलुगा .. साहब ने टिकेट माँगा और पीछे एक निशान  लगा दिया .. बोला निकल जाओगे.. आ कर बैठ गया सिट पर...

११ बजे पहुच गए नासिक रोड .. माता जी के साथ सामान ले कर बाहर निकल गया और ऑटो पकड़ कर १५ मिनट में होटल पहुच गया ...
 
पीछे : << ओंकारेश्वर ममलेश्वर दर्शन  


Share This :

1 comment: