२ मई २०१५ -शनिवार, तीर्थ यात्रा का छटवा दिन
औरंगाबाद-श्री भीमशंकर
तो सुबह ५ बजे हम ही उठ गए.. क्यों की आज की यात्रा लम्बी थी औरंगाबाद से भीमा शंकर, सुबह ९ बजे भीमशंकर के लिए प्रस्थान करना था, क्यों की दुरी–२८५ किलो मीटर थी, अम्मा अभी सो रही थी, क्यों की कल की औरंगाबाद की यात्रा से थक चुकी थी, सुबह ही २ चाय बोल दिया, और कमरे के बाहर एक सिगरेट जला कर टहलने लगा, २० मिनट के बाद चाय भी आ गया कमरे में, ६ बज चूका था, तो अम्मा को जगाया, ब्रश कर अम्मा चाय पि.. गयी बाथरूम तो मै लग गया अपने सामान की पैकिंग में, क्यों की ६ दिन का कपडा धुलवा दिया था, तो उसकी पैकिंग, तब तक अम्मा नहा धो के रेडी.. फिर हम भी तैयार हो लिए नहा धो कर, अम्मा भी अपना पूजा पाठ कर सामान पैक कर चुकी थी.. वैसे भीमा शंकर में पूजा का समय ३ बजे से ५ बजे तक सोच रखा था बिना भीमा शंकर के पूजा के अम्मा कुछ खाती नहीं तो, बाहर जा कर महारास्ट्र का प्रसिद्ध श्रीखंड ले लिया, कब तक अम्मा भूखे रहती भीमाशंकर मंदिर महाराष्ट्र के भोरगिरि गांव, जो की खेड़ तालुका से ५० कि.मि. उत्तर-पश्चिम तथा पुणे से ११० कि.मी. में स्थित है। यह पश्चिमी घाट के सह्याद्रि पर्वत पर ३२५० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहीं से भीमा नदी भी निकलती है जो की दक्षिण पश्चिम दिशा में बहती हुई आंध्रप्रदेश के रायचूर जिले में कृष्णा नदी से जा मिलती है। यहां भगवान शिव के भारत में पाए जाने वाले बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग है, तब तो यात्रा में ४ से ५ घंटे तो लगना ही था, अब ९.२० पर अपनी टैक्सी भी आ गयी, तो टैक्सी में सामान रख होटल से बिदा लिए और अपनी टैक्सी से चल पड़े माता जी को ले भीमा शंकर के दर्शन के लिए हमारा मार्ग था औरंगाबाद-मंचर-शिनोली-घोडगांव होते हुवे भीमा शंकर के लिए
औरंगाबाद-श्री भीमशंकर
तो सुबह ५ बजे हम ही उठ गए.. क्यों की आज की यात्रा लम्बी थी औरंगाबाद से भीमा शंकर, सुबह ९ बजे भीमशंकर के लिए प्रस्थान करना था, क्यों की दुरी–२८५ किलो मीटर थी, अम्मा अभी सो रही थी, क्यों की कल की औरंगाबाद की यात्रा से थक चुकी थी, सुबह ही २ चाय बोल दिया, और कमरे के बाहर एक सिगरेट जला कर टहलने लगा, २० मिनट के बाद चाय भी आ गया कमरे में, ६ बज चूका था, तो अम्मा को जगाया, ब्रश कर अम्मा चाय पि.. गयी बाथरूम तो मै लग गया अपने सामान की पैकिंग में, क्यों की ६ दिन का कपडा धुलवा दिया था, तो उसकी पैकिंग, तब तक अम्मा नहा धो के रेडी.. फिर हम भी तैयार हो लिए नहा धो कर, अम्मा भी अपना पूजा पाठ कर सामान पैक कर चुकी थी.. वैसे भीमा शंकर में पूजा का समय ३ बजे से ५ बजे तक सोच रखा था बिना भीमा शंकर के पूजा के अम्मा कुछ खाती नहीं तो, बाहर जा कर महारास्ट्र का प्रसिद्ध श्रीखंड ले लिया, कब तक अम्मा भूखे रहती भीमाशंकर मंदिर महाराष्ट्र के भोरगिरि गांव, जो की खेड़ तालुका से ५० कि.मि. उत्तर-पश्चिम तथा पुणे से ११० कि.मी. में स्थित है। यह पश्चिमी घाट के सह्याद्रि पर्वत पर ३२५० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहीं से भीमा नदी भी निकलती है जो की दक्षिण पश्चिम दिशा में बहती हुई आंध्रप्रदेश के रायचूर जिले में कृष्णा नदी से जा मिलती है। यहां भगवान शिव के भारत में पाए जाने वाले बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग है, तब तो यात्रा में ४ से ५ घंटे तो लगना ही था, अब ९.२० पर अपनी टैक्सी भी आ गयी, तो टैक्सी में सामान रख होटल से बिदा लिए और अपनी टैक्सी से चल पड़े माता जी को ले भीमा शंकर के दर्शन के लिए हमारा मार्ग था औरंगाबाद-मंचर-शिनोली-घोडगांव होते हुवे भीमा शंकर के लिए
सहमाद्रि पर्वत के शिखर पर स्थित इस ज्योतिर्लिंग का पुराणों में बहुत अधिक महत्व है। आकर्षक हरियाली से घिरे इस तीर्थस्थल तक पहुंचने के लिए बस या अपने सवारी साधन का सहारा लेना पड़ता है। पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार कुंभकरण का बेटा भीम ब्रहृमा के वर से इतना वलशाली हो गया कि उसने सभी देवताओं को हराकर इंद्र को भी परास्त कर दिया। इसके बाद उसने कामरूप के महाराजा सुर्दाक्षण को भी अपने कब्जे में कर लिया। सुर्दाक्षण शिवभक्त थे। उन्होंने कारागार में ही शिवलिंग बनाकर तपस्या शुरू कर दी। भीम ने क्रुद्ध होकर उस ज्योतिर्लिंग को तोडऩा चाहा जिससे रुष्ट होकर शिवजी प्रकट हुए और भीम का बध कर दिया तथा वहीं स्थापित हो गए। जिसके कारण इस ज्योतिर्लिंग को लोग भीमशंकर के नाम से जानते हैं।
दूसरी कथा इस प्रकार है ..सहृयाद्रि और इसके आस-पास के लोगों को त्रिपुरासुर नामक दैत्य अपनी असुरी शक्तियों से बहुत सताता था। इस दैत्य से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शंकर यहाँ भीमकाय स्वरूप में प्रकट हुए। त्रिपुरासुर को युद्ध में पराजित करने के बाद भक्तों के आग्रह पर भगवान शंकर वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए। कहते है कि युद्ध के बाद भगवान शंकर के तन से जो पसीना बहा उस पसीने से वहाँ पर भीमवती नदी का जन्म हुआ। शिवपुराण में यह कथा पूरे विस्तार से दी गई है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा अमोघ है। इसके दर्शन का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता। भक्तों की सभी मनोकामनाएं यहां आकर पूर्ण हो जाती हैं।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग |
विभिन्न मतों के अनुसार --शिवपुराण की एक कथा के आधार पर भीमशङ्कर ज्योतिर्लिङ्ग असम के कामरूप जिले में गोहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी पर स्थित बतलाया जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि नैनीताल जिले के काशीपुर नामक स्थान में एक विशाल शिवमंदिर है, वहीं भीमशंकर का स्थान है..नाना फदनिस (पेशवा) जी ने यहाँ वर्तमान मंदिर बनवाया था. इसका प्रवेश द्वार लकड़ी का बना हुआ है.
आप यहां सड़क और रेल मार्ग के जरिए आसानी से पहुंच सकते हैं। पुणे के शिवाजीनगर बस डिपो से
पुणे में एक वताकुनुलित DJ बस |
एक मात्र उपलब्धि रही। बाहर के सुहाने मौसम के कारण अपनी गाड़ी का शीशा खोल दिया और ऐ सी भी बंद कर दिया.. तभी
हल्की मीठी ठंड ने मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर दी और मेरा मन प्रसन्नता से भर गया। चारों ओर ऐसा प्रतीत होता था, मानो प्रकृति ने अपने खजाने को बिखेर दिया हो, चारों ओर मखमल-सी बिछी घास, बड़े और ऊँचे-ऊँचे वृक्ष ऐसे प्रतीत होते थे मानो सशस्त्र सैनिक उस रम्य वाटिका के पहरेदार हैं। पहाड़ीयों से झरते सुंदर झरने वो भी एक दो नहीं कई कई, जहाँ भी नज़र दौड़ाओ वहीं सौंदर्य का खजाना दिखाई देता था। हरियाली की चादर ओढे धरती इतने सुन्दर द्रश्य उपस्थित कर रही थी जिनका वर्णन शब्दों में करना संभव नहीं है, प्रकृति की असीम सुंदरता को निहारते हुए हम लोग करीब चार बजे भीमाशंकर पहुंचे। मन में इतनी प्रसन्नता थी, जिसका बयान करना मुश्किल है, मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था की हम अन्तत: वहां पहुंच ही गये जहां जाने की मन में वर्षों से तमन्ना थी।
बाहर अपनी टैक्सी पार्किंग कर हम माता जी को ले कर मन्दिर पहुँच मार्ग के लगभग प्रारम्भिक छोर पर आ गए वही माता जी ने माता श्री भी पूजा अर्चन के लिए माला फुल ले कर चल पड़े दरबार में मुश्किल से सौ-डेड़ सौ मीटर की दूरी पर, मन्दिर की सीढ़ियाँ शुरु हो जाती हैं। मन्दिर पहाड़ी की तलहटी में है। सो जाते समय आपको सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं और आते समय चढ़नी पड़ती है। सीढ़ियों की संख्या २३५ के आस पास हैं। सीढियॉं आपको मन्दिर के पीछेवाले हिस्से में पहुँचाती हैं। अर्थात्, मन्दिर के प्रवेश द्वार के लिए आपको घूम कर जाना पडता है।
मन्दिर काफी पुराना है न तो मन्दिर का प्रांगण भव्य और लम्बा-चौड़ा है न ही मन्दिर का मण्डप। सब कुछ मझौले आकार का। शिवलिंग बहुत ही छोटे आकार और कम उँचाई का है। सनातन धर्मियों के तमाम तीर्थ स्थानों की तरह यहाँ भी शिव लिंग के चित्र लेना निषेधित है। गर्भगृह के बाहर, एक दर्पण लगाकर ऐसी व्यवस्था की गई है कि मण्डप में खड़े रहकर आप शिवलिंग के दर्शन कर सकें। रख-रखाव औरसाफ-सफाई ठीक-ठाक है। भीमा नदी इस मन्दिर के पास से ही निकली है। इसीलिए इस ज्योतिर्लिंग को भीमा शंकर कहा गया। पण्डित-पण्डों वाली परेशानी यहाँ बिलकुल ही नजर नहीं आई। सब कुछ आपकी इच्छा और श्रद्धानुसार। मन्दिर आने के लिए पहली सीढ़ी से लेकर अन्तिम सीढ़ी तक, पूरे रास्ते पूजन सामग्री और फूलों की तथा 'नीबू पानी' की दुकानें आपको निमन्त्रित करती चलती हैं।
चुकी शाम की आरती के लिए ४.१५ से ४.४५ तक मंदिर के दरवाजे बंद रहते है इस वहज से तो थोड़ी भीड़ थी और फिर जो लोग पुणे से बस द्वारा दर्शन के लिये आते हैं वे आमतौर पर शाम छ: बजे तक लौट जाते हैं लेकिन हम लग गए दर्शन की लाइन में धीरे धीरे आगे बड़ते बड़ते भीड़ कम होने की वजह से दर्शन के लिए हम पहुच ही गए गर्भ गृह एक और बात है, यहां भी अन्य ज्योतिर्लिंगों की तर्ज़ पर क्षरण से बचाव के लिये ज्योतिर्लिंग पर पुरे समय एक चांदी का आवरण चढा कर रखा जाता है, जिससे ज्योतिर्लिंग के साक्षात दर्शन नहीं हो पाते हैं । खैर पुजारी जी ने माता जी के हाथो पूजन सामग्री ले मेरे हाथ में एक गाँधी जी देख अच्छे से पूजन कराया तभी माता जी ने अपने झोले से काशी का जल निकला जलाभिषेक के लिए तो पुजारी जी ने वो जल रख लिया बोला अभिषेक सिर्फ सुबह ही होता है तभी मैंने गर्भग्रह में पूजा करवा रहे एक पंडित जी से आवरण के हटाने के समय के बारे में पुछा तो उन्होने बताया की यह आवरण सुबह सिर्फ़ आधे घंटे के लिये ५ से ५.३० बजे तक खुलता है,
चुकी शाम की आरती के लिए ४.१५ से ४.४५ तक मंदिर के दरवाजे बंद रहते है इस वहज से तो थोड़ी भीड़ थी और फिर जो लोग पुणे से बस द्वारा दर्शन के लिये आते हैं वे आमतौर पर शाम छ: बजे तक लौट जाते हैं लेकिन हम लग गए दर्शन की लाइन में धीरे धीरे आगे बड़ते बड़ते भीड़ कम होने की वजह से दर्शन के लिए हम पहुच ही गए गर्भ गृह एक और बात है, यहां भी अन्य ज्योतिर्लिंगों की तर्ज़ पर क्षरण से बचाव के लिये ज्योतिर्लिंग पर पुरे समय एक चांदी का आवरण चढा कर रखा जाता है, जिससे ज्योतिर्लिंग के साक्षात दर्शन नहीं हो पाते हैं । खैर पुजारी जी ने माता जी के हाथो पूजन सामग्री ले मेरे हाथ में एक गाँधी जी देख अच्छे से पूजन कराया तभी माता जी ने अपने झोले से काशी का जल निकला जलाभिषेक के लिए तो पुजारी जी ने वो जल रख लिया बोला अभिषेक सिर्फ सुबह ही होता है तभी मैंने गर्भग्रह में पूजा करवा रहे एक पंडित जी से आवरण के हटाने के समय के बारे में पुछा तो उन्होने बताया की यह आवरण सुबह सिर्फ़ आधे घंटे के लिये ५ से ५.३० बजे तक खुलता है,
उस समय दर्शन किये जा सकते हैं, खैर ज्योतिर्लिंग भीमा शंकर की यात्रा प्रारम्भ में जितनी उत्सुकता भरी थी, समापन में उसका रोमांच नाम मात्र का भी नहीं था। बस ! एक ही आनन्द था - एक और ज्योतिर्लिंग के
दर्शन कर लिए बहुत अच्छे से हो गए थे। खैर दर्शन कर बाहर हाल में पहुचे तभी टेबुल पर बैठे पुजारी विभिन्न पूजाओ के लिए चन्दा ले रहे थे , हमने भी भाव पूछा जलाभिषेक का २५१/- तो निकला, तभी पुजारी ने एक लिफाफा दिया घर का नाम पता लिखने के लिए... बोला पूजा करने के बाद प्रसाद डाक से भेज दिया जायेगा... पैसे की पावती भी बिल गयी तो बाहर निकले , अब निकले बाहर.. ६ बज चूका था... सुबह से माता जी ने कुछ नहीं खाया था, चलते समय श्री खंड ले लिया था... सुबह वही खाया था और रस्ते में १ ग्लास गन्ने का रस मेरा भी भूख से बुरा हाल तो अब खाने की दुकान का खोज ... तभी मंदिर के पास जड़ी बूटी के दुकान थी तो माता जी एक सुगर की जड़ी मिल गयी... लगी लेने मेरे लिए... खैर .. मंदिर के सामने SBI का ATM था तो मै पैसे निकालने चला.. कार्य संपन्न हुवा चले टैक्सी की तरफ अब पूना जो पहुचना था .. आगे सीढियों पर ही एक दक्षिण भारतीय रेस्टोरेंट दिख गया तो माँ को ले घुस गए अन्दर ... अब समस्या प्याज लहसुन की... तो पहले माँ के लिए २ प्लेट इडली और नारियल की चटनी... अपने लिए १ मसाला डोसा... लेकिन पेट कहा भरने वाला ... फिर माँ के लिए प्लेन डोसा और दाल के साथ नारियल की चटनी..और अपने लिए इडली सांभर... तब जा के आख की रोशनी वापस आयी.. पानी था नहीं तो
अम्मा के साथ लाइन में |
२ ठंडा अमूल मिल्क.. पेट के अन्दर गया तो थोड़ी राहत हुई... पीने का सामान्य पानी बिलकुल नहीं मिलता है। 'नीबू पानी' की प्रत्येक दुकान पर बोतलबन्द पानी बिक्री के लिए उपलब्ध है। आहार और स्वल्पाहार की काम चलाऊ व्यवस्था यहाँ है। एक-दो मकानों पर रहने की व्यवस्था के सूचना फलक भी नजर आए। हमें ताज्जुब हुआ - भला यहाँ कौन ठहरता होगा ! यहां ठहरने के लिए भीमशंकर से कुछ ही दूरी पर शिनोली और घोडगांव है, जहां आपको हर तरह की सुविधा मिल जाएगी। चल पड़े बाहर की तरफ ... सीढ़ियाँ बहुत ही आरामदायक हैं - खूब चौड़ी और दो सीढ़ियों के बीच सामान्य से भी कम अन्तरवाली। फिर भी, लौटते समय, चढ़ते-चढ़ते हम माँ बेटे की साँस फूल आई। उम्र की वजह से अन्यथा, अन्य लोग सहजता से चढ़ रहे थे।
किसी भी भक्त की निश्छल भक्ति पर प्रसन्न होकर शीघ्र वरदान देने वाले एकमात्र देव देवाधिदेव भगवान शिव ही हैं। उनकी इसी भक्तवत्सलता का लाभ रावण सहित अनेकानेक असुरों ने उठाया और वरदान में अतुल बल प्राप्त किया। वह भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होते हैं, तो दुष्टों का संहार करने के लिए प्रकट होने में भी देर नहीं करते।
भीमशंकर ज्योतिर्लिंग में शिव का प्राकट्य इसी रूप में हुआमुक्त पवन यहां आने वालों के अंतरतम को छू लेती है। शिव के अन्य ग्यारह ज्योतिर्लिंगों की अपेक्षा यहां पहुंचना थोड़ा दुर्गम है। यह स्थल घने जंगल के बीच स्थित है। इन जंगलों में दुर्लभ वनस्पतियां भी पाई जाती हैं और शेर भी घूमते हुए देखे जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये शेर प्रत्येक रात्रि को भगवान भीम शंकर के दर्शन को मंदिर में आते हैं।
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बढ्यिा रोचक वर्णन । सुंदर।
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