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Saturday, May 9, 2015

मुंबई-दिल्ली-वाराणसी

 ९ मई २०१५ (शनिवार ) -अब यात्रा समाप्ति और घर वापसी 

अब मुंबई के बाद दिल्ली के बारी थी, मन में एक सपना था.. माता जी को भारत के बेहतरीन तस्वीर दिखाई जाय इस लिए माता जी के लिए मुंबई से दिल्ली के लिए एयर इंडिया के विमान 809 जो मुंबई राची वाया दिल्ली से यात्रा का प्रोग्राम बनाया था,घर से एअरपोर्ट के लिए मुंबई में "सवारी" नामक कंपनी है तो स्थानिय स्तर पर टैक्सी उपलब्ध कराती है तो मुंबई एअरपोर्ट जाने के लिए और दिल्ली में
एअरपोर्ट से लोकल दिल्ली दर्शन का प्रोग्राम सोच रखा था शाम ५ बजे की हमारी राजधानी ट्रेन थी मुग़ल सराय के लिए.. अब बुलट ट्रेन कब चलेगी कब चलेगी, पता नहीं अभी तो भारत के बेहतरीन ट्रेन है राजधानी, जो हवा के रफ़्तार से चलती है, सो उसी से ही बनारस.
खैर सुबह ६.३० पर टैक्सी आने का समय था, पर हम उस देश के वाशी है, जहा समय पर कोई काम नहीं होता, माता जी एक दम तैयार, अब बिदाई का समय, टैक्सी नदारत, फोन लगाया टैक्सी वाले को, मोबाईल स्विच ऑफ, अब सवारी के ऑफिस में फ़ोन, २० मिनट तक तो कोई बात करने के लिए नहीं आया, सिर्फ प्री रिकार्डेड स्वर.. दिमाक गरम हो गया, २० मिनट बाद एक साहब ने फोन उठाया, जैसे लगा की वो अभी नींद मै है, ७ बज चूका था ८ बजे एअरपोर्ट रिपोर्टिंग, साहब बोलते है सर मई आप को इसी नंबर पर फोने करता हु, काहे करे उ फोन, अभी इतनी सुबह दुकान भी सब बंद, किससे पूछे, कहा मिलेगी टैक्सी, खैर खोजते खोजते मुख्य सड़क पर पहुच गया, जहा टैक्सी का लाइन लगा था. ७.४५ हो चूका था, सवारी वाले का कोई खबर नहीं, तो पकड लिए एक टैक्सी, घर ले कर आये और सामान डाल माता जी के साथ चल पड़े एअरपोर्ट, मामा जी भी हो लिए एअरपोर्ट तक, रास्ता खाली था टैक्सी पहुच ही गयी ८.२० पर एअरपोर्ट.. 

छत्रपति शिवाजी मुम्बई पर घरेलू टर्मिनल 'टर्मिनल 1ए' है और अंतरराष्‍ट्रीय एयरपोर्ट, अंतरराष्‍ट्रीय टर्मिनल टर्मिनल 2' है। उड़ानों के लिए चैक-इन समय सभी श्रेणियों के यात्रियों के लिए प्रस्थान से 3 घंटे पहले आरंभ होता है तथा चैक-इन काउंटर प्रस्‍थान से 60 मिनट पहले बंद होते हैं। एयरलाइन द्वारा यात्रा की अनुमति दिए जाने से पहले और बाद में यात्री को कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं। इन औपचारिकताओं और चैक-इन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए यात्रियों को उड़ान के प्रस्‍थान से पर्याप्‍त समय पहले आना आवश्‍यक है। ट्रांज़िट क्षेत्र टर्मिनल बिल्डिंग के मेज़ेनाइन फ्लोर पर स्थित है। प्रस्थान की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद मुंबई से आने वाले यात्रियों को विमान पर जाने के लिए ट्रांज़िट क्षेत्र में जाना होता है। मुंबई से होते हुए भारतीय घरेलू स्‍थानों से अंतरराष्‍ट्रीय स्‍थानों पर जाने वाले तथा इसके विपरीत जाने वाले अंतरराष्‍ट्रीय यात्रियों को सीधे ट्रांज़िट से जोड़ा जाता है।प्रथम और बिज़नेस श्रेणी के यात्री जो मुम्बई एयरपोर्ट से ट्रांज़िट करते हैं, मेज़ेनाइन फ्लोर पर स्थित महाराजा लाउंज में उपलब्‍ध विशिष्‍ट सेवाएं प्राप्त कर सकते हैं। टर्मिनल 2 सी के मेज़ेनाइन फ्लोर पर स्थित एअर इंडिया का पूर्ण सुसज्जित स्‍थानांतरण डेस्‍क मुंबई एयरपोर्ट से ट्रांज़िट करने वाले यात्रियों की चौबीस घंटे सहायता करता है।
अम्मा को ले सामान ट्रोली पर डाल सुरक्षा द्वार से अन्दर हो लिए और टिकट काउंटर पर चेकिंग कर बोर्डिंग पास लिया, चल पड़े बोर्डिंग के लिए, अंतर्देशीय टर्मिनल-1ए सीआईएसएफ सुरक्षा जांच से पहले स्थित दो लाउंज है १. ऐग्‍जीक्‍यूटिव लाउंज २. लाउंज
ऐग्‍जीक्‍यूटिव लाउंज की भी सीआईएसएफ सुरक्षा जांच सुरक्षा पर हर पहुचे बोर्डिंग हाल में, ९ बज चूका था फ्लाइट १० बजे की थी, तो सोचा अम्मा को बम्बइया कोफ़ी पिला दिया जाए.. अन्दर गर्म अल्‍पहार/जलपान एवं बिस्‍कुट एल्‍कोहल रहित गर्म/ ठंडे पेय ताजा कॉफी/ टी वाई-फाई समाचार-पत्र एलसीडी टीवी चार्जिंग प्‍वाइंट इंटरनेट ऐक्‍सस (ऐग्‍जीक्‍यूटिव लाउंज) तो गर्म अल्‍पहार काउंटर से २ काफी और कॉर्नफ्लेक्स की नमकीन ले बैठ गए एक सोफे पर अम्मा के साथ और काफी का आनंद लिया, उसी बिच अम्मा ने काफी का दाम भी पूछ लिया, का जरुरत रहल एतना महगा काफी क.. मुझे हसी आ गयी, फिर मैंने समझया अम्मा को जिन्दगी है क्या .. अम्मा सुनती
रही.. घुर के देख रही थी मुझे.. लेकिन मैंने कह ही दिया, अम्मा ऐसा आप ने ही तो मुझे बनाया है... क्यों बनाया मुझे ऐसा, अम्मा चुप !! तभी एनोसमेंट हो गया बोर्डिंग के लिए, चल पड़े अम्मा के साथ, फाइनली हम बस में सवार हो बोईंग के पास पहुच ही गए.. अन्दर चले, अम्मा की सिट पर बैठाया, सिट की पेटी लगाई, और अपने भी बिराजमान हुवे, अन्दर यात्रियों को सुरक्षा के बारे में जानकारी देने के बाद हमारी फ्लाइट अब तैयार हो गयी, दिल्ली के लिए,
जब जहाज रनवे पर दौड़ने लगा तो मैंने अम्मा का हाथ पकड़ लिया, अम्मा डर लगत हव, लेकिन वो तो मेरी अम्मा थी, उन्हें डर कहा तब तक जहाज हवा में, अब क्या करते, इयरफोन लगया कान में और अपने सिट के सामने वाली टी वी चालू कर लगा लिए "कामेडी विथ कपिल" अम्मा भी आराम से सिट पर, लेकिन अम्मा के काम को कोई चैनल ही नहीं था, तो अम्मा का भी टी वी भी कपिल के साथ, अब खाने का टाइम हुवा तो खाना भी आ गया मेरा और अम्मा का , लेकिन अम्मा कहा
खाने वाली, मुझे तो भूख लगा था तो मैंने तो ठूस लिया, अम्मा अपना भी खाना दे कर कहा इसको भी खाना पड़ेगा, लेकिन गले तक ठूस लिया था, अब कोई गुंजाईश नहीं थी, अम्मा ने सिर्फ चाय पी.. विमान हमारा हवा में ही था, कान में इयरफोन के साथ आख बंद कर कामेडी विथ कपिल का आनंद ले रहे थे
१२.१५ पर उद्दघोषणा हुई की हमारा विमान दिल्ली के दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट टर्मिनल ३– (वर्ष २०१० में आरंभ हुआ, टर्मिनल ३, कला का उत्कृष्ट नमूना एवं एकीकृत भविष्य टर्मिनल है। यह विश्व की २४वीं सबसे बड़ी इमारत एवं आठवां सबसे बड़ा यात्री टर्मिनल है। यह कुल 5,40,000 मी2 (58,00,000 वर्ग फ़ुट) में बना ३.६ करोड़ यात्री की वार्षिक क्षमता रखता है। इस परियोजना के निर्माण में 12 हजार 700 करोड़ रुपये की लागत आई थी। यह टर्मिनल एच.ओ.के के मॉट्ट मैक-डोनाल्ड के परामर्श में बना, नया टर्मिनल ३० एकड़ क्षेत्र में विस्तृत एक दुमंजिला इमारत है, जिसका भूतल आगमन हेतु एवं ऊपरी तल प्रस्थान हेतु प्रयोग किया जाता है। टर्मिनल में २४० चेक-इन पटल, ६५ संपर्क स्टैण्ड से लगे ७८ एयरोब्रिज, ५४ पार्किंग बे, एवं न्यून प्रतीक्षा समय हेतु ७२ आप्रवास पटल (इम्मिग्रेशन काउन्टर), १५ एक्स-रे जाँच क्षेत्र से लैस शुल्क-मुक्त दुकानों एवं अन्य सुविधाओं से युक्त है। विमानक्षेत्र के लगभग ९०% यात्री पूर्ण होने पर इस टर्मिनल का उपभोग कर सकते हैं। यह टर्मिनल नियत समय से दिल्ली में आयोजित हुए २०१० राष्ट्रमंडल खेलों से पूर्व पूर्ण हो चुका था। यह दिल्ली शहर से राष्ट्रीय राजमार्ग ८ पर एक आठ-लेन सड़क द्वारा एवं दिल्ली मेट्रो द्वारा भली-भांति जुड़ा हुआ है। टर्मिनल का आधिकारिक उद्घाटन ३ जुलाई २०१० को नौ परीक्षण उड़ानों सहित इसकी प्रचालन के लिये तैयार होने तथा भूमि सेवा क्षमता (ग्राउण्ड हैण्डलिंग कैपेबिलिटी) की जाँच के साथ हुआ था। सभी अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों को जुलाई २०१० के अंत तक यहां स्थानांतरित कर दिया गया था, एवं सभी पूर्ण सेवा अन्तर्देशीय वायु सेवाओं ने नवंबर के मध्य से यहां प्रचालन आरंभ कर दिया था। इस टर्मिनल पर १८ पंजीकृत माल (रजिस्टर्ड बैगेज) प्राप्ति बेल्ट हैं। 
टी३ पर भारत की प्रथम स्वचालित पार्किंग प्रबंधन एवं निर्देशन प्रणाली से लैस बहु-मंजिलीय कार पार्किंग बनी है, जिसमें ७ तलों में ६३०० कारों की क्षमता है। यह पार्किंग प्रणाली एफ़.ए.ए.सी इण्डिया प्रा.लि. द्वारा श्री दीपक कपूर (प्रबंध निदे.) एवं श्री अश्फ़ाक आलम, (उत्पाद प्रबंधक) द्वारा अभिकल्पित एवं रिकॉर्ड समय में स्थापित की गई है। इसमें ऐसी सुविधा है कि किसी पार्किंग चाहने वाले को एक इलैक्ट्रॉनिक डायनैमिक साइनेज की सहायता द्वारा अधिकतम ५ मिनट में स्थान मिल सकता है। 
टर्मिनल ३ विमानक्षेत्र विस्तार का प्रथम चरण है, जिसमें एक अंग्रेज़ी के 'U' आकार का भवन मॉड्यूलर रूप में बनाया गया है। २०१० से सभी अन्तर्राष्ट्रीय एवं पूर्ण सेवा वायु-संचालकों का प्रचालन यहां से आरंभ हो गया था, जबकि टर्मिनल १ से मात्र निम्न बजट वायु सेवाओं का प्रचालन ही चलता है। कालांतर में इन्हें भी नये टर्मिनल परिसर में ही स्थान देने की योजना है। ) विमानस्थल पर अवतरित होने वाला है, तो हम भी तैयार हो गए, फिर परम्परागत तरीके से सीढ़ी का आकर यान से जुड़ने के बाद हम जहाज के बाहर, अम्मा देखती रही एअरपोर्ट को, दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट का टी-3 टर्मिनल, जहां कदम रखने के साथ ही अहसास होता है कि आप लंदन के हीथ्रो या जर्मनी के फ्रैंकफर्ट या फिर कैलिफोर्निया के लॉस एंजेलिस जैसे किसी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर खड़े हैं...। टी-3 टर्मिनल एयरपोर्ट डिजाइनिंग फील्ड में इमेजिनेशन और क्रिएशन का शानदार नमूना है। कभी खूबसूरत कारपेट पर कदमताल करते हुए कभी फ्लोर अवीलेटर के सहारे आगे बढ चले अम्मा बोली ये भारत में ही है.. मै मुस्कुराया और अम्मा का हाथ पकड़ कन्वेयर बेल्ट की तरफ चल पड़ा अपना सामान लेने, 
हमें अपना लगेज लेना था और इतने भव्य और तिलिस्मी से लग रहे भवन के निचली मंजिल पर पहुँच कन्वेयर बेल्ट संख्या तीन पर इंडियन एअरलाईन के हमारे विमान एयर इंडिया के विमान 809 का सामान डाल दिया गया है ..मैं अम्मा के साथ वहां पहुंचा तो कन्वेयर बेल्ट पर सामानों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था ....सबकी नजरें अपने अपने सामानों पर गडी थीं ,समान को सामने आते ही पहचान कर तुरंत उठाना था क्योंकि अगले पल इंगित सामान एक विशाल वलयाकार कन्वेयर बेल्ट पर घूमते हुए आगे बढ जाता था .. सारा सामान तो मिल गया लेकिन मेरे एयर बैग में अम्मा का नासिक के गोदावरी का पानी भी था, जो कही उठा पठक के बिच में कही गिर गया, अब क्या करते, अम्मा बोली चल, 

सामान ले बाहर निकले, सवारी की गाड़ी तो बुक कर चुके थे, उसका फ़ोन भी बराबर बज रहा था, लेकिन मुंबई में सुबह का गुस्सा दीमक में था, तो चल पड़े एअरपोर्ट से प्रीपेड टैक्सी ले, सोचा तो था माँ को दिल्ली भी घुमाना है, लेकिन बाहर का तापमान ४४ डिग्री, हिम्मत नहीं हुई, समय भी कम था १.३० हो चूका था और शाम ५ बजे के हमारी ट्रेन राजधानी.. अम्मा सुबह से कुछ खाई भी नहीं थे, तो पहले उनके खाना का प्रबंध, चल पड़े टैक्सी से नयी दिल्ली स्टेशन, रास्ते में अम्मा को दिखाया, दिल्ली का जलवा.. चौड़ी सड़के, फ्लाई ओवर, मैट्रो, कितनी तेज है दिल्ली.. 

भारत का दिल दिल्ली न सिर्फ राजधानी होने की वजह से मशहूर है बल्कि अपनी खूबसूरती के लिए भी लोगों के दिल में बसी हुई है। यह शहर प्रत्येक देशी-विदेशी नागरिकों को अपने दिल में बसाता है। तभी तो इसे भारत का दिल कहा जाता है। ये ऐसा शहर है जो दो भिन्न दुनियाओं को आपस में जोड़ता है। कभी इस्लामी दुनिया की राजधानी रही पुरानी दिल्ली, संकरी गलियों की एक भूलभुलैया है, जिनमें जीर्ण-शीर्ण हवेलियां और दुर्जेय मस्जिदें हैं। इसके विपरीत, ब्रिटिशों द्वारा तैयार नई दिल्ली का आधुनिक खुलापन लिए हुए है, जहां कतार में लगे पेड़ों वाले एवेन्यू और भव्य सरकारी भवन हैं। दिल्ली लगभग एक सहस्त्राब्दी तक अनेक शक्तिशाली राजाओं और कई साम्राज्यों की गद्दी रही है। कई बार यह शहर बसा, उजड़ा और पुनः निर्मित हुआ। यह रोचक तथ्य है कि दिल्ली के शासकों ने दोहरी भूमिकाएं, पहली विध्वंसक के रूप में और बाद में निर्माता के रूप में, निभाई। 

इस शहर का महत्व ने केवल इसके अतीत में राजाओं की गद्दी और भव्य स्मारकों के कारण है बल्कि, इसकी संपन्नता और बहुमुखी संस्कृति के कारण भी है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि दिल्ली की संस्कृति के इतिहास में चन्द्रबरदाई और अमीर खुसरो से लकेर आज के दौर के सभी लेखकों ने इसके बारे में लिखा और अपना योगदान दिया। दिल्ली में आप कई बेहतरीन स्मारकों एवं स्थानों से परिचित होंगे जैसे: बेहतरीन पुराने स्मारक, अद्भुत संग्रहालय व कला दीर्घाएं, स्थापत्य कला, जीवंत कलाकृतियां, लोकप्रिय व्यंजनों के स्थान तथा भीड़ भरे बाज़ार।

दिल्ली भारत का राजनैतिक केन्द्र भी है। देश की प्रत्येक राजनैतिक गतिविधियां यहां देखी जा सकती हैं। ऐसी पौराणिक युग के संदर्भ में भी सत्य है। महाभारत के पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी जो आज की दिल्ली के भौगोलिक क्षेत्र में स्थित मानी जाती है। राजधानी में नए और पुराने का रोचक सम्मिश्रण है। एक ओर आप पुराने वास्तुकला वाले स्थलों का भ्रमण कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर आपको दिल्ली के शानदार मॉल, फ्लाईओवर, आधुनिक सुज्जित ऊंचे भवन और हरित क्षेत्र देखने को मिलेगा। 

घूमते घूमते पहुच गए नयी दिल्ली स्टेशन, वही एक होटल ले अम्मा के लिए खाना मगाया, हम दोनों ने आनंद से खाना खाया, मेरा दिल्ली में कुछ काम था तो मै १५ मिनट के लिए अम्मा हो होते में छोड़ अपना काम पूर्ण किया, वापस आ गया होटल, ४ बज चूका था अब स्टेशन की तयारी.. अब रिक्शे से चल पड़े नयी दिल्ली स्टेशन, ५ मिनट में ही पहुच गए.. कुली के साथ सामान ले पहुच गए प्लेटफोर्म ७ पर जहा से अपनी राजधानी थी मुग़ल सराय के लिए.. खैर अब तो राजधानी में समय पर नहीं चलती, उसका समय था ५ बजे लेकिन १ घंटे हम इतजार करते रहे, ६.३० पर आई प्लेट्फ़ॉर्म पर, 

राजधानी एक्सप्रेस भारतीय रेल की एक पैसेंजर रेल सेवा है जो भारत की राजधानी दिल्ली को देश के विभिन्न राज्यों की राजधानी को जोड़ता है। सबसे पहले राजधानी एक्सप्रेस की शुरुआत 1969 मे तेज चलने वाली ट्रेन सेवा के रुप में की गयी थी जिसकी गति आम रेलों (70 किलोमीटर/प्रति घंटा) की तुलना में काफी अधिक (140 किलोमीटर /घंटा) रखी गयी थी।इन रेलों को भारतीय रेल सेवा में उच्च वरीयता वाली श्रेणी में रखा गया है। ये ट्रेनें पूरी तरह वातानुकूलित होती हैं। इसपर सफर करने वाले यात्रियों को सोने के लिए बिस्तरों के साथ साथ भोजन भी दिया जाता है जिसकी लागत किराये में शामिल होती है। प्राय: इन सभी ट्रेनों में तीन श्रेणियाँ होती हैं - प्रथम श्रेणी वाता, जिसमें 2 से 4 बर्थ होते हैं और इन्हें अंदर से कमरे की तरह बंद किया जा सकता है, द्वितीय श्रेणी वाता, जिसमे दोनो तरफ दो दो बर्थ होते हैं और थोड़ी निजता के लिए पर्दे लगे होते हैं, तृतीय श्रेणी वाता, जिसमें दोनो तरफ तीन तीन बर्थ होते हैं और इनमे पर्दे नहीं लगे होते। वर्तमान में लगभग 15 जोड़ी राजधानी एक्सप्रेस गाड़ियाँ चलायी जा रही हैं: जो नयी दिल्ली को अहमदाबाद, बंगलोर, भुवनेश्वर, बिलसपुर, चेन्नई, गुवाहाटी/डिब्रूगढ, राँची, कोलकाता, जम्मू, मुंबई, पटना, सिकंदराबाद तथा त्रिवेंद्रम से जोड़ती है .. 


सामान ले हम पहुचे अपनी सिट पर, सामान जहग पर रख बैठ गए.. इस ट्रेन की फर्श चकाचक.. जो चादरें मिली वो इस यात्रा के दौरान सभी ट्रेनों में दी जाने वाली चादरों से बेहतर और साफ सुथरीं। बाथरूम का फर्श भी चमकता है। लगता है कि मिनट मिनट पर कोई साफ करता रहता है। एक यात्री ने कहा कि जब आप सो जायेंगे तो अटेंडेंट पर्दा ठीक से लॉक कर जाता है ताकि रोशनी से परेशानी न हो और आप ठीक से सो सकें। पूरे सफर के दौरान नंगे पांव इस ट्रेन में चलता रहा। सफाई को महसूस करने के लिए, ट्रेन चलने के १० मिनट के बाद नास्ता, वाह, मजा आ गया. पर माता जी सिर्फ देखती ही रही.. हमारी बोगी पूरी भरी ही थी, समय समय पर पुरे खाने पिने का इंतजाम, हा अभी नया सुविधा जोड़ा है रेलवे ने फ्री वाई-फाई अब क्या कहे, ये तो वही बात हुई अन्धो में कनवा राजा, उसको लॉग इन करने के लिए लेप टॉप ही चाहिए.. आज भी भारत के ६८% लोग मोबाईल को ही दुनिया का सबसे बड़ा अविष्कार मानते है, वहा ये कंप्यूटर की बात बेमानी है.. खैर जहा जहा डाटा चलता रहा चलते रहे... ८ बजा तो अम्मा सोने की इक्षा जताई तो उनका बिस्तर लगा दिया और अपने भी अपने सिट पर ढरक गए... ९ बजा तो खाना भी आ गया, अम्मा ने सिर्फ आइसक्रीम खा के पेट भर लिया ... ट्रेन चलती रही , मुग़ल सराय में उसका टाइम १.३५ पर था, लेकिन २ घंटे लेट हो चुकी थी, अब भगवान ही जानते थे आगे का हाल.. 

भारत विभिन्‍न संस्‍कृति की भूमि है और रेल न केवल देश की परिवहन संबंधी आवश्‍यकताओं को पूरा करने में मुख्‍य भूमिका निभाता है अपितु बिखरे हुए क्षेत्रों को एक सूत्र में बांधने और राष्‍ट्रीय एकीकरण में भी महत्‍वपूर्ण कार्य करता है। भारतीय रेल भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के प्रभावशाली साधन के रूप से उभरा हैं और यह महान भारतीय कुटुम्‍ब को एक साथ मिलाने के लिए विस्‍तरित किया गया है। 

भारतीय रेल राष्‍ट्र के लिए मुख्‍य प्रवर्तक रहा है और एकल प्रबंधन के अधीन विश्‍व का सबसे बड़ा रेल सिटस्‍म होने के कारण आदर्श रूप में बहुत सी चीजों को एक साथ लाने ले जाने के लिए उपयुक्‍त है यह लम्‍बी दूरी की यात्रा के लिए उपयुक्‍त है। सड़क परिवहन की तुलना में रेल में कई अन्‍तर्निहित फायदे हैं। रेलवे पांच से छह गुना अधिक ऊर्जा सक्षम हैं भूमि उपयोग में चार गुणा अधिक सक्षम और स्‍टैंडप्‍वाइंट या पर्यावरण पर प्रभाव एवं सुरक्षा के ख्‍याल से महत्‍वपूर्ण रूप से श्रेष्‍ठ है। इसलिए भारतीय रेल को राष्‍ट्र की वृद्धि और विकास में गौरव के स्‍थान पर रखना उचित ही है। साधारण रेल जो देश के लगभग सभी भागों को जोड़ता है इसके अलावा भारतीय रेल विशेष विलासिता वाली ट्रेन चलाता है जैसे पैलेस ऑन व्‍हील, राजधानी एक्‍सप्रेस, शताब्‍दीद एक्‍सप्रेस, फेरी क्‍वीन आदि। 

खैर रात ३ बजे छोटे भाई का फोन आ गया, ट्रेन ३.५० पर पहुचेगी मुग़ल सराय, और पहुच ही गए हम बनारस इस यात्रा की समाप्ति पर, ५ बजे घर के अन्दर..

मनसा वाचा कर्मणा आदमी के जीवन में रिश्तों का बहुत महत्व है। पारिवारिक और सामाजिक जीवन की रीढ़ हैं रिश्ते। यूं तो व्यवसायिक और राजनैतिक रिश्तों का भी अपनी जगह महत्व है। रिश्ते कुछ तो जन्मजात बनते हैं जैसे खून के रिश्ते जो माता-पिता से शुरू होकर विस्तारित होते रहते हैं। पहले तो छोटा परिवार सुखी परिवार वाली बात नहीं थी तो रिश्तों का ग्राफ बढ़ता ही जाता था। अब तो पति-पत्नी और दो बच्चे पर इसके साथ दोनों के ससुराल पक्ष के लोगों की लम्बी कतार रहती है। कोई निस्संतान हो तो रिश्तों की गाड़ी वहीं रुक जाती है। वरना लम्बा सफर तय करती है। रिश्तों की बहुत अहमियत है यदि बने रहे या बनाए रखे तो एक से अनेक वाली बात है। पहले सामूहिक परिवार होता था। इसका कुछ अलग ही आनंद था। सुख-दुख में जल्दी से जल्दी पहुंचना एक-दूसरे के काम आना रिश्तों की नींव होती थी जिस पर रिश्तों की इमारत बुलंदी से खड़ी रहती थी। यह नियामत इंसानों को ही मिली है। पर आज कल क्या हो रहा है इस पर नजर डालें तो लगेगा कि हम कहां जा रहे हैं, आगे क्या होगा? रिश्तों की गाड़ी कहां रुक जाएगी पता नहीं। सुख बढ़ जाता था और दुख छोटा लगने लगता था। यही तो रिश्ते की जान होती थी। मनुष्य विचारशील है, भावनाशील है, संवेदनाशील है फिर भी छोटी-छोटी बातों में रिश्तों में दरार पड़ जाती है। पहले आदमी को स्वयं से सही रिश्ता बनाना चाहिए यदि वह बन गया तो बाकी सभी रिश्ते अपने आप कायम रहेंगे। हम अपने आप से ही रिश्ता नहीं बना पाते। आदमी में एकरूपता होनी चाहिए मनसा वाचा कर्मणा तभी अपने आप से रिश्ता बनता है, निभता है, चलता है। रिश्ता भगवान से बनाइए उससे रिश्ता बन गया तो सब रिश्ते ठीक होते जाएंगे। भगवान से रिश्ता बना तो फिर बाकी रिश्तों को हम नहीं भूलेंगे। आदमी के मन में नकारात्मक भाव रहते हैं वे उसे शांति से नहीं रहने देते। इन नकारात्मक भावों का क्या करें। कहने में तो यह आसान है कि सकारात्मक सोचें पर कैसे? यहां आकर गाड़ी रुक जाती हैं। जीवन विचारों की ही देन है। विचार ही मनुष्य उसके कुल विचारों का योग है। योग में संख्या बढऩी चाहिए, घटनी नहीं चाहिए। हां, सकारात्मक, नकारात्मक का योग होगा तो संख्या बढ़ेगी-घटेगी। तो आइए, रिश्तों पर सोचें। स्वयं से ईश्वर से दुनिया से रिश्ते बनाएं और सुखी रहें, स्वस्थ रहें। बस, यही मेरा संदेश है। तो चलते है... तो समाप्त हुवा हमारा ये क्रम "माता जी की तीर्थ यात्रा " हम चले वापस अपनी दुनिया में.. हर हर महादेव 

मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊँ 
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊँ 
कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर 
ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ 
सोचता हूँ तो छलक उठती हैं मेरी आँखें तेरे बारे में 
न सॊचूं तो अकेला हो जाऊँ चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है 
लेकिन क्या ज़रूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊँ 
बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं शमा तो चाह रही है
कि पतंगा हो जाऊँ शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती 
मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊँ 

मुनव्वर राणा

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